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जप चर्चा 20 नवंबर 2020 पंढरपुर धाम

हरे कृष्ण, 690 स्थानों से भक्त जप के लिए जुड़ गए हैं। हरि हरि, कार्तिक व्रत की जय! कुछ ही दिन शेष है कार्तिक मास के। 10 दिन और 10 दिन बाकी है। उसी के साथ यह चातुर्मास भी और कार्तिक मास का भी समापन होगा। पूर्ण होगा। कुछ ही दिनों में इस कार्तिक मास को दृढ़ता से पूर्ण करो। अधिक जप करने का अपने संकल्प लिया होगा या और भी परिक्रमा करने का संकल्प लिया होगा आपने। परिक्रमा से जुड़ते रहिए प्रतिदिन और दीपदान भी आपको ही करना होगा औरों से करवाना है। दामोदर मास की जय! परिक्रमा करते करते एक दिन आप गोकुल पहुंचने वाले हो। इस गोकुल में ही तो दिवाली के दिन जब कार्तिक में आती है। दिवाली अभी हम लोगों ने मनाई है। दिवाली का दिन था दिवाली का किंतु स्थान था गोकुल। गोकुल में वह लीला संपन्न हुई। दामोदर लीला, उखल बंधन लीला। परिक्रमा करते करते आपको एक दिन उखल बंधन लीला जहां संपन्न हुई उस स्थान पर पहुंचाया जाएगा। हरि हरि, उस स्थान का भी दर्शन आप करोगे, जय दामोदर! जहां श्रीकृष्ण बन गए दामोदर। वैसे आज ही समाचार आया कि हमारी ऑल इंडिया पदयात्रा या श्रील प्रभुपाद पदयात्रा कहो। जो पदयात्रा करने का आदेश मुझे श्रील प्रभुपाद ने दिया था।

पदयात्रा या बैलगाड़ी पर संकीर्तन करने के लिए आदेश दिया था तो वह पदयात्रा बैलगाड़ी का संकीर्तन आज तक चल ही रहा है और आज हमारी पदयात्रा ऑल इंडिया पदयात्रा जो गुजरात में है। गुजरात में बहुत समय से है। वह सोमनाथ आज पहुंच रहे हैं। सोमनाथ बहुत बड़ा धाम है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से मुझे ऐसे लगता है संभावना है कि वह भी एक ज्योतिर्लिंग है। तो वहां आज हमारे आचार्य दास प्रभु पदयात्रा का नेतृत्व करते हुए सोमनाथ पहुंच रहे हैं। वैसे वहां पास में ही बिल्कुल पास में ही रावल नाम का स्थान भी है। यहां हमारे प्राणनाथ श्रीकृष्ण अंतर्धान हो गए। मथुरा में जन्म लिया। लीला तो खेली है कई स्थानों में। गोकुल में लीला उनकी फिर वृंदावन में लीला मथुरा में लीला और फिर द्वारिका में लीला द्वारिका से फिर यह रावल जो सरस्वती के तट पर वहां पहुंचे थे। तो फिर उसका बहुत सारा वर्णन श्रीमद्भागवत के एकादश स्कंध में आप पढ़ सकते हो। और यहां तक की वहां कैसे बैठे हैं और फिर शिकारी आया फिर उस ने बाण चलाया। भगवान के चरणों के दर्शन उसने सोचा कि यहां कोई हिरण है, वह लीला यहां संपन्न हुई। और फिर भगवान जहां से प्रस्थान किए। कुछ ही समय पहले बलराम ने प्रस्थान किया और फिर श्रीकृष्ण भी प्रस्थान किए।

अंतर्धान हुए। श्याम त्व्यक्त्वा स्वपदं गतः इस पृथ्वी को त्याग कर, जिस धरातल पर अपनी लीला खेल रहे थे, उसको पीछे छोड़ कर स्वपदं गतः अपने धाम लौटे जहां से। वहां स्थान अभी-अभी हमारे पदयात्री वही थे, या कल भी थे। तो वह लीला स्थली हम भी गए थे। वहां बहुत साल पहले बात है। यह पदयात्रा करनेे का, बेल गाड़ी चलानेे का आदेश हमें श्रील प्रभुपाद ने दिया है। उस आदेश का पालन आज भी हो रहा है। किसके माध्यम से? धीरे-धीरे हमने पदयात्रा श्रील प्रभुपाद की जन्म शताब्दी जब मनाई जा रही थी। संभावना है कि, या तो आप उस समय जन्म में भी नहीं होगे। यहां 90 की बात है। 1996 में श्रील प्रभुपाद की जन्म शताब्दी मनाई गई थी। जन्मशताब्दी 1०० जन्म वर्षगांठ। उस समय श्रील प्रभुपाद के प्रसन्नता के लिए पदयात्रा मिनिस्ट्री ने जिसका मैं मिनिस्टर हूँ, पदयात्रा मिनिस्टर तो हमने श्रील प्रभुपाद के संसार भर के अनुयायियों और शिष्यों और फिर पर शिष्यो उनकेे मदद से योगदान से एक सौ देशों में पदयात्रा का आयोजन हुआ। एक सौ देशों में पदयात्रा और यह पदयात्रा आप तक कुछ 300000 किलोमीटर चली हैैै। श्रील प्रभुपाद कि पदयात्रा, श्रील प्रभुपाद के पदयात्री, श्रील प्रभुपाद के और से उनका प्रतिनिधित्व करते हुए। यह भी श्रील प्रभुपाद की महानता है। महिमा है, श्रील प्रभुपाद का उन्होंने ऐसी योजना बनाई। इस योजना का उद्देश्य था, की चैतन्य महाप्रभु की भविष्यवाणी सच हो। कैसी भविष्यवाणी?

पृथ्वीते आछे जत नगराादिग्राम। सर्वत्र प्रचार होईबो मोर नाम।।

मेरे नाम का प्रचार सर्वत्र होगा। सारी पृथ्वी पर होगा। पृथ्वीते आछे जत आप कृपया ध्यान दें। चैतन्य महाप्रभु स्वयं भगवान श्रीकृष्ण चैतन्य राधा कृष्ण नहीं अन्य, वह क्या कह रहे हैं? मेरे नाम का प्रचार सर्वत्र होगा। होगा, कहां पर पृथ्वी पर। पृथ्वी के सारे नगरों मेंं, ग्रामों में मेरे नाम का प्रचार होगा। इस्कॉन की स्थापना और फिर भविष्य में इस पदयात्रा की बैलगाड़ी पर संकीर्तन पार्टी की योजना। यह बैलगाड़ी संकीर्तन हो गया या फिर पदयात्रा के भी संस्थापक श्रील प्रभुपाद ही हैं। और जारे दाखों तारे कहो हरे कृष्ण उपदेश भी हमनेे कहा था जो श्रीला प्रभुपाद हमसे कहे थे। क्या करो? जारे दाखों तारे कहो हरे कृष्ण उपदेश और हरे कृष्ण का उपदेश करो। 100 देशों में पदयात्रा का आयोजन हुआ। तो कल्पना कर सकते हो की, हरिनाम को कहां कहां तक फैलाएं है यह पदयात्री। एक पदयात्रा तो ग्लास्गो जो इंग्लैंड में है। ग्लास्गो सेेे मास्को तक 5 वर्ष अखंड हररोज हररोज इस पदयात्रा का नाम उन्हें उन्होंने ऑल यूरोप पदयात्रा यूरोपियन पदयात्रा ऐसा नाम तो था। यूरोप के कई देशों की पदयात्रा करते हुए यह पदयात्री ग्लास्गो में या उसके पहले आयरलैंड से इंग्लैंड से फिर हॉलैंड से इसी तरह फ्रांस स्पेन और सभी यूरोपियन देश ज्यादातर यूरोपियन देश इन सभी के उपरांत पदयात्रा मास्को में पहुंच गई। 1996 में 1992 में शुरू हुई पदयात्रा 1996 में मास्को पहुंच गई। मैं भी था उस वक्त वहां पर। मैं समय-समय पर जुड़ता रहा उस पदयात्रा से। और फिर 1996 में जब मास्को पहुंच गई पदयात्रा, फिर उनका स्वागत और अभिनंदन करने के लिए मैं पहुंचा था वहां मास्को में। तो कितनेे नगरों में ग्रामों में हमारे पदयात्री हरिनाम का प्रचार केवल नगरों में और ग्रामों में ही नहीं करते थे, तो बीच-बीच में यह हमारेे पदयात्रा की खासियत है। हरिनाम का प्रचार। पदयात्रा केवल एक नगर या ग्राम में नहीं करती। एक नगर से दूसरे नगर जाते समय रास्ते में भी हरिनाम का प्रचार करते हैं। रास्ते में कई सारे लोग मिलते हैं।

यह पदयात्रा अमेरिकन पदयात्रा, ऑस्ट्रेलियन पदयात्रा, न्यूजीलैंड पदयात्रा। न्यूजीलैंंड एक मोल देश है, लेकिन वहां हमारे यशोदा दुलाल प्रभु वहां इंचार्ज थे। तो जिन जिन नगरों से पदयात्रा गुजरती थी वहां के मेयर स्वागत किया करते थे। कुछ 50 शहर ग्रामों से मेयर नगराध्यक्ष 50 नगराध्यक्ष से मेयर से न्यूजीलैंड के पद यात्रा का स्वागत हो रहा था। वह नगराध्यक्ष जब पदयात्रा गुजर रही थी तो सबसे आगे रहते थे, उस पदयात्रा में। मैं वहां भी था न्यूजीलैंड में तो हमने भी ऐसे कई सारे मेेेयर का अभिनंदन किया। उनको उपहार दिए। प्रभुपाद के ग्रंथ दिए। वे भी इस पदयात्रियों का स्वागत किया करते थे। और श्रीला प्रभुपाद के चरण चिह्न भी थे, गौर निताई भी थे उनके दर्शन किया करते थे। तो कितनों के पास हरिनाम को पहुंचायाा है इस पदयात्रा ने। मैं भी एक ग्रामस्थ था या गांव में मेरा जन्म हुआ था। तो श्रील प्रभुपाद समझ गए ऐसे ही जहां महाराष्ट्र के गांव में पदयात्रा एक सहज बात है। पदयात्रा जैसे दिंडी महाराष्ट्रीयन जब तीर्थ यात्रा में जाते हैं। और यहां का महान तीर्थ महाराष्ट्र की आध्यात्मिक राजधानी पंढरपुर है। तो यहां जब वह चलकर आतेेे हैं उसको डिंडी कहते हैं।

पदयात्राा करते हुए आते हैं। मेरेे पिताश्री भी आया करते थे 100 किलोमीटर चलते हुए। विट्ठठल भगवान की जय! विट्ठल भगवान के दर्शन के लिए। दर्शन के उपरांत फिर 100 किलोमीटर चलते हुए गांव लौटते थे। फिर कई लोग 200 किलोमीटर 500 किलोमीटर की यात्रा करतेेेेे हुए पंढरपुर आते रहे और आजकल भी रहे हैं। तो ऐसे स्थान का मैं महाराष्ट्र के गांव का जन्मा। न जाने कैसे प्रभुपाद इस बात को जाने समझे। और फिर जो सोच रहे हैं की पदयात्रा शुरू करनी है भारत में। तो फिर उन्होंने मेरा स्मरण किया दिल्ली में। 1976, 1 सप्टेंबर 1976 के दिन दिल्ली में राधा पार्थसारथी के मंदिर में वह भी राधा अष्टमी का दिन था। श्रील प्रभुपाद ने मुझे यह पदयात्रा प्रारंभ करने का या बैलगाड़ी पर संकीर्तन पार्टी स्थापन करने का आदेश दिए। ऐसा आदेश देनेेे के लिए ऐसी सेवा देने के लिए मैं श्रील प्रभुपाद का सदैव ऋणी हूँ। ऐसी सेवा मुझे दिए चैतन्य महाप्रभु के सेवा में या चैतन्य महाप्रभु के प्रसन्नता के लिए। चैतन्य महाप्रभु की भविष्यवाणी सच करने के लिए। तो ऐसे श्रील प्रभुपाद की जय! ठीक है फिर, मैंने भी कुछ कहे वचन श्रील प्रभुपाद के गुणगान में। ठीक है। फिर कल जो बचे थे वहां शुरू कर सकते हैं, शब्दांजली।

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