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जप चर्चा 22 नवंबर 2020 पंढरपुर धाम
641 स्थानों से भक्त जप के लिए जुड़ गए हैं। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल। कैसे हो, अच्छे ही होंगे। जप जो कर रहे हो। परिक्रमा भी कर रहे हो। शेरघट से चिरघाट जा रही है। रस्ते में हैं तैयार रहिए और संयम की बात भी है। आज गोपाष्टमी है, गोपाष्टमी महोत्सव की जय। गोपाष्टमी महोत्सव बड़ी धूम-धाम के साथ पूरे ब्रज में मनाया जाता है। गोपाष्टमी के दिन हम वन की यात्रा कर रहे हैं। सभी वनों में कृष्ण की गौ चारण लीला संपन्न हुई ही है। यह वन और आज की यात्रा विशेष स्थली है। यहां गायो के साथ गोपाल का बड़ा ही प्रेममय आदान-प्रदान हुआ है। आज हम परिक्रमा में जा रहे हैं तो पहले तो रामघाट आता है जगह-जगह रामघाट रोहिणी नंदन। इस घाट या जमुना नदी के तट पर श्री बलराम की रास क्रीड़ा संपन्न हुई। वहां से जैसे हम आगे बढ़ते हैं तो हम विहार वन में प्रवेश करते हैं। वहां विशेष कुंड भी है, इस कुंड में कन्हैया की गाय जलपान किया करती थी और यहां रुक कर हम कथा भी करते हैं। इसी स्थान पर बहुत बड़ी गौशाला है। इस स्थान को खेलनवन भी कहते हैं। जब गौ चारण हो रहा है गायों का, गाय चर रही है।
यहां कृष्ण की विचरण करते हैं विहार करते है खेलते हैं। गायों का दर्शन भी होता है आज इस विहार वन में और फिर हम गायों की सेवा करते हैं उन्हें खिलाते हैं।गायों की परिक्रमा करते हैं हम देखते हैं कि कैसे पूरे व्रज में संस्कृति है। गायों को खूब सजाते हैं। उनके सींग पर चित्र बनाते हैं उनके गले में माला और घुंगरू पहनाते हैं। हरि हरि। कृष्ण आज के दिन कार्तिक मास में गोप बने थे। पहले वत्स्पाल थे, बछड़ों की सेवा करते थे। बछड़ों को चराने ले जाते थे। तभी तो एक असुर आया था, वत्स बन के,वत्सासुर। भद्र वन में जहां हम कल जाएंगे उस समय कृष्ण छोटे थे। छोटी छोटी गईया छोटे छोटे ग्वाल, ग्वाले और कृष्ण छोटे थे कुमार थे बालक थे। बछड़े चराते थे तो आज के दिन कृष्ण पोगंड अवस्था को प्राप्त किए। वे वात्स्पाल के गोपाल हो गए। गोपाल कृष्ण भगवान की जय। कैसे हैं भगवान, भगवान तो कहते हैं, भगवान क्या करते हैं, गाय चराते हैं। विदेश में लोग पूछते हैं कि आपके भगवान क्या करते हैं फिर हमको बताना होता है जो भी सच है। सच के अलावा हम कुछ कहते ही नहीं। हमारे भगवान गाय चराते हैं। लोग समझ नहीं पाते कि आपके भगवान गाय चराते हैं? इसीलिए उनका नाम गोपाल है।गायों से इतना प्रेम करते हैं गाय भी इनसे इतना सारा प्रेम करती है। गायों के साथ जो संबंध है कृष्ण का उसको वात्सल्यभाव कहते हैं। गायों के लिए कृष्ण वत्स है बछड़ा है। जैसे गाय अपने बछड़ों से प्रेम करती है वैसे ही गाय कृष्ण से भी प्रेम करती है।
बछड़ों का जो अपनी गौ माता के प्रति उनका मातृभाव। मातृ देवो भव: माता उनके लिए मानो देवता है महान है या सब कुछ है। वैसे कृष्ण भी इसी वात्सल्यभाव प्रेम करते हैं मां के रूप में। गाय मेरी मां है , गौ माता की जय। जैसे कृष्ण गाय को माता मानते हैं इसलिए हम भी गाय को माता मानते हैं। वैसे हम मनुष्यों की अलग-अलग 7 माता होती है ऐसा शास्त्रों में उल्लेख है। उसमें गाय भी एक माता है। तो कृष्ण भी गाय के साथ अपनी मैया, यशोदा मैया और अब गौ मैया गौ माता वैसा ही प्रेम करते हैं। और सिर्फ प्रेम ही नहीं करते हैं उनकी सेवा भी करते हैं। पूरे दिनभर गाय की सेवा करने के लिए निकल जाते हैं। गौ चारण लीला क्या है गाय की सेवा करते हैं। गायों को चराते हैं गायों को फिर जल पिलाते हैं। हरि हरि। यहां तक कि गायों का मनोरंजन करते हैं। अपनी मुरली बजा कर गायों को इकट्ठा करते हैं। पेड़ की किसी शाखा पर बैठकर मुरली बजाते हैं, गायों की प्रसंता के लिए। आज के दिन ही हम परिक्रमा में अक्षयवठ जाएंगे। एक विशेष वट वृक्ष है अब तो छोटा ही है लेकिन एक समय कृष्ण की प्रकट लीला में एक विशेष वृक्ष विशाल और ऊंचा उसकी शाखा कई मीलो तक लंबी है।
गाय जो चर रही थी कृष्ण उनको बुला लेते हैं। मुरली बजाते हैं इसी के साथ बुलाते हैं आ जाओ आ जाओ आ जाओ। बुलावा भेजते हैं या मुरली के नाद के माध्यम से ही वे गायों के अलग-अलग नाम पुकारते हैं। उन्होंने अपने गायों के नाम रखें हैं। कितना निजी और घनिष्ठ संबंध है। वे गाय नहीं कहते हैं वह मृदंगमुखी कहते हैं। ये धवली, पिवली, चित्रा ऐसे बड़े प्यारे नाम रखे हैं उन्होंने अपने गायों के। गायों का नामकरण होता हैं और वे नाम से पुकारते हैं और सभी गायों के नाम कृष्ण को याद हैं। उनके पास एक जप माला हैं। तो सभी गाए पहुंची कि नहीं ये पता लगवाने के लिए वे एक एक गाए का नाम पुकारते है। जैसे ही नाम पुकारा जाता है,किसी गाय का, मृदंगमुखी का उसका मुख मृदंग जैसा है। अलग अलग रंग, अलग अलग कुछ आकार भी थोड़े भिन्न हैं। तो उसके अनुसार भी नाम रखे हैं। जैसे ही किसी गाय का नाम पुकारा जाता है तो गाय इतनी प्रसन्न हो जाती है। कृष्ण ध्यान रखते हैं कि सारी गाये पहुंच गई है। कोई बिछुड़ तो नहीं गई उसका पता लगवाने के लिए कृष्ण एक एक गाय का नाम पुकारते है। मानो उनका जप चल रहा हैं। हम तो हरे कृष्ण हरे कृष्ण कहते है। कृष्ण का नाम राधा का नाम पुकारते है। कृष्ण गायों के नाम पुकारते है। अपने भक्तो का नाम उच्चारण करते हैं। गाय जो उनकी भक्त है या वे उनके भक्त है। कृष्ण गाय के भक्त है।
नमो ब्रह्मण्य-देवाय गो-ब्राह्मण-हिताय च। जगद्धिताय कृष्णाय गोबिन्दाय नमो नमः ॥77॥
अनुवाद मैं उन भगवान् कृष्ण को सादर नमस्कार करता हूँ, जो समस्त ब्राह्मणों के आराध्य देव हैं, जो गायों तथा ब्राह्मणों के शुभचिन्तक हैं तथा जो सदैव सारे जगत् को लाभ पहुँचाते हैं। मैं कृष्ण तथा गोविन्द के नाम से विख्यात भगवान् को बारम्बार नमस्कार करता है।
हम यहां आए हैं इस वन में आज यात्रा परिक्रमा हो रही है। कल हम जमुना को पार करेंगे। कृष्ण भी जमुना को पार किया करते थे। कैसे और फिर गायों को भी पार करना है। वे मुरली बजाते हैं गायों की सेवा में मुरली बजाई तो जमुना का जल जो द्रव्य है, द्रविभूत है अभिभूत हो जाता है। वो कठिन बर्फ बनता हैं। कृष्ण की मुरली की नाद के साथ और फिर गाय चलती है। वहां पानी नहीं है, पानी का बर्फ बन गया। तो आसानी के साथ गाय जमुना को पार करती हैं। तो इस तरह भिन्न भिन्न तरीके से कृष्ण गायों की सेवा करते हैं, गायों की रखवाली करते हैं। गायों से प्रेम करते हैं इसलिए वे प्रसिद्ध है गोपाल। आज के दिन वो गोपाल बने इसीलिए इस तिथि का नाम हुआ है या हम मनाते हैं इस तिथि का नाम हुआ है गोपाष्टमी के रूप में। आप इतना ही याद रखिए या इन बातों का स्मरण ,चिंतन या विचारो का मंथन कीजिएगा। अभी कथा होने वाली है। इसकी सूचना सुनोगे अब आप।
जय गुरुदेव। जय श्रील प्रभुपाद। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।