Hindi
24th May 2020
आप सभी जप करने वाले ठीक हैं । थोड़े समय के लिए चर्चा करेंगे चर्चा मतलब आदान-प्रदान भी होता है । आज अनुवाद कौन कृष्ण भक्त करेगा बताइये मुझे । और फिर आज 7:15 बजे का लक्ष्य है। तो इस समय आपका कोई प्रश्न या कमेंट हैं तो लिखने का अवसर दिया जाएगा फिर उसमें से कितने संभव है उसका उत्तर भी आप सभी सुनेंगे । आज अनन्तशेष प्रभु आपके प्रश्न मुझे या हम सभी को सुनाएंगे जिसका उत्तर आप सभी सुनेंगे । अभी 786 स्थानों से जप कर रहे हैं । हिंदी से अंग्रेजी में अनुवाद करने वाले भक्त ही चैट करेंगे आप सभी नहीं करेंगे । बाकि भक्त सिर्फ सुनेंगे ।
श्रवणं ही केवलं।
कल आपको अजामिल की पूरी कथा नहीं सुनाई थी सारांश में तो सुनाई थी अजामिल आप जैसा जप तो नहीं करता था लेकिन जब यमदूत आए तो बेचारा डर गया तो केवल उसी समय उसने नारायण नहीं कहा था । उस समय जो उसने नारायण नाम का उच्चारण किया । उस समय उसने जिस भाव से असहाय होकर नारायण, नारायण कहा नारायण बचाओ । उससे उसकी रक्षा हो गई वह भक्त तो नहीं हुआ पर मुक्त तो हो गया । ऐसा हम आपको समझा रहे थे । उस समय अजामिल द्वारा जो उच्चारण हुआ नारायण नाम का या हरी नाम का वह नामाभास था । नाम का आभास मात्र था । यह बीच की स्थिति या सोपान है । भक्ति रसामृत सिंधु में रूप गोस्वामी ने जप का शास्त्र या भक्ति शास्त्र भी समझाया हैं । शुद्ध नाम जप करना लक्ष्य हैं । शुद्ध नाम जप ही प्रेम प्राप्ति हैं । जब उच्चारण होगा या शुद्ध नाम का जप होगा तो उस समय जप कर्ता अनुभव करेगा ।
नाम चिन्तामणि, कृष्ण चैतन्य रस विग्रह।
पूर्ण,नित्य, सिद्ध, मुक्त, अभिनत्वात नाम नामीनो ।।
(चैतन्य चरितामृत मध्य लीला 17.133)
अनुवाद : भगवान का नाम चिन्तामणि के समान हैं, यह चेतना से परिपूर्ण हैं। यह हरिनाम पूर्ण1, नित्य, शुद्ध तथा मुक्त हैं । भगवान तथा भगवान के नाम दोनों अभिन्न हैं ।
यह एक विशेष सिद्धांत हैं , भगवान का नाम और भगवान अभिन्न हैं, एक ही हैं । इसका साक्षात्कार उस जप कर्ता को हो गया है जो शुद्ध नाम जप करता है । या जो अपराध शुन्य कृष्ण नाम लेता है । प्रारंभ में जब हम जप करते हैं या सारा संसार जप करना प्रारंभ करता है तो वो जप नाम अपराध होता है । नाम भी हो रहा होता है और अपराध भी हो रहा होता है । जब व्यक्ति समझ जाएगा कि नाम अपराध भी कुछ होता है । हरे कृष्ण आन्दोलन में ऐसा शास्त्रों से बताया जाता हैं । पद्मपुराण शाश्वत है । पद्मपुराण में श्रील व्यास देव ने 10 नाम अपराधों को लिखा है । लेकिन उसकी ओर कोई ध्यान आकृष्ट नहीं करता । अलग – अलग धर्मों में, हिन्दू धर्म में या भारत वर्ष में ऐसी कोई चर्चा होती है कि नाम अपराध होते हैं । नाम की चर्चा या महिमा सब करते रहते हैं लेकिन नाम अपराध होता है उससे सभी बच कर रहो ऐसा आपने कभी हिन्दू जगत में सुना हैं ?
हरे कृष्ण आन्दोलन में जब हम आते है रुपानुगामी बनते है, रूप गोस्वामी के अनुयायी हम बनते है । फिर रूप गोस्वामी की शिक्षाओं को हम सीखते है । भक्ति रसामृत सिन्धु का हम अध्ययन करते है, तब हमें पता चलता है कि नाम अपराध का भी एक अध्याय है । इन 10 नाम अपराधों का हमने आपको एक दिन कहा था, उनका स्मरण कराया था । इनको भलीभांति समझना अनिवार्य है । इनको केवल समझाना ही नहीं है उनको टालना भी है । अपराध रहित जप करने का प्रयास करना है । ऐसे प्रयास में जब सफलता प्राप्त होती है तो जप कर्ता नामाभास की स्थति या स्तर को प्राप्त कर लेता है । अजामिल को भी नामाभास हुआ था। और भी प्रयास ज़ारी रखेंगे । उन अपराधों से बचने के प्रयास करेंगे तो फिर शुद्ध नाम जप होगा ।
यह तीन अवस्था या स्तर है
1. नाम अपराध
2. नाम आभास
3. शुद्ध नाम जप
ध्यान पूर्वक जप नहीं होता हैं हमें कई बार ऐसी शिकायत सुनने को मिलती है । आपने सुनी है? (पूछते हुए) । या आपने भी कभी ऐसी शिकायत करी होगी या अपना अनुभव बताया होगा । जप में ध्यान नहीं लगता ऐसा किसी का अनुभव है क्या? यहाँ सभी शुद्ध नाम जप करने वाले है । ईमानदारी सर्वोत्तम नीति है । जप के लिए बैठे है और ध्यान पूर्वक जप करना चाहते है लेकिन ध्यान पूर्वक जप हो नहीं रहा है तो क्या करें ? इसकी चिंता हमें केवल जप करते समय ही नहीं करनी चाहिए । ध्यान पूर्वक जप नहीं हो रहा है? तो जप करते समय भी कुछ प्रयास किया जा सकता है जिससे ध्यान पूर्वक जप हो सके। नींद आ रही है इसलिए ध्यान पूर्वक जप नहीं हो रहा है । हम सीधे नहीं बैठे है । सीधे बैठने से भी एक विशेष ऊर्जा हमारे सर्वांग में फैलती है और हम सतर्क भी हो जाते हैं । हमारा दिमाग ताज़ा हो जाता है । अष्टांग योग के अंतर्गत यह नियम है । ये नियम हम पर भी लागु होते ही हैं । नियम नहीं है ऐसी भी समझ है लेकिन तो भी कुछ हद तक उन नियमों के पालन का प्रयास तो हमें करना चाहिए । कैसे बैठना है?, कहाँ बैठना है? और जप के लिए कब बैठना है? जप के लिए सुबह का समय सर्वोत्तम है । विषय परिवर्तित हो रहा है ।
किसी ने कहा था की सुबह के समय तो हम गौर निताई की इतनी अच्छी आराधना करते है, पूजा करते है, प्रति दिन अभिषेक करते है, आरती उतारते है, भोग लगाते है । इसी में ही हमारी सारी सुबह चली जाती है । जप के लिए समय ही नहीं मिलता है । इसीलिए फिर हम दिन में जप करते हैं और फिर हमारा जप ध्यान पूर्वक नहीं हो पाता है । मुझे किसी भक्त ने पत्र लिखा था कि हम गौर निताई की सेवा करते है, आरती करते है, जप के लिए समय ही नहीं मिल पाता है? महाराज बताइये हम क्या करे? हम ने उन्हें कहा कि गौर निताई की आरती थोड़ी काम करो । गौर निताई इस कलियुग में किस प्रकार के भोग से खुश होंगे ।
कोई कहेगा की सुबह के समय में हम गौर निताई की इतनी बढ़िया से सेवा करते है। हर रोज अभिषेक करते है। आरती करते है। आरती उतारते है भोग लगाते है। इसी मे हमारा सुबह का समय चला जाता है। पहले किसी ने मुझे पत्र लिखा कि हरी नाम का भोग या 56 भोग। किस से अधिक प्रसन होंगे।
कृष्ण वर्णन त्वीश अकृष्ण, संगे पंगस्त्र पार्षद।
यज्ञे संकीर्तन प्राये, यजन्ति सुमेधसा। (श्रीमद भागवतम 11.5.32)
अनुवाद : उनका वर्ण श्याम नही होगा तथा वे सदैव भगवान के नामों का कीर्तन करेंगे। वे सदैव अपने पार्षदों से घिरे रहेंगे । कलियुग में बुद्धिमान लोग संकीर्तन आंदोलन में सम्मिलित होंगे ।
बुद्धिमान लोग क्या करते है। भगवान् की आराधना करते है कैसे:- यज्ञ सकिर्तन प्राय: तो हम विग्रह आराधना में हम व्यस्त है और कीर्तन के लिए समय नहीं है तो हम एक युग पीछे हट गए। हम द्वापर युग के हो गए। अब जग जाओ और देख लो। कौनसा युग आया है। जप में लोग सो रहे है । या जप में ध्यान नहीं लग रहा है साधको का तो यह कौनसा युग होगा ? यह कलियुग होगा। कलि क्या करता है। आराधना में बाधा उत्पन करता है।
सर्व साधन बाधकम
ध्यान पूर्वके जप करने की कला है इसका शास्त्र है और इसको भली भांति समझना होगा। इसलिए एक दिन हमने इसी जप चर्चा में बताया भी था। कौन कौन से ग्रंथो को हमे पढ़ना चाहिए यदि हम ध्यान पूर्वक जप करना चाहते है। एक विशेष ग्रन्थ का भी नाम लिया था हमने कौनसा था ? (पूछते हुए)। हरी नाम चिंतामणि नामक ग्रन्थ। जिसमे 10 नाम अपराधों की चर्चा है और हम इन 10 नाम अपराधों से कैसे बच सकते है। वहाँ पर श्रील भक्ति विनोद ठाकुर ने समझाया है। चैतन्य महाप्रभु और नाम आचार्य हरी दास ठाकुर के मध्य का सवांद को एक शास्त्र के रूप में श्रील भक्ति विनोद ठाकुर प्रभुपाद ने हरीनाम चिंतामणि की रचना की है तथा उसमे समझाया है। हम जप भी करते रहेंगे और अपराध भी करते रहेंगे तो फिर ये भी कहा है
बहुजन्मे करे यदि श्रवण कीर्तन।
तबहुँ ते नहीं पाए कृष्ण पदे प्रेम धन।।
अनुवाद : यदि कोई कई जन्मों तक श्रवण कीर्तन करता रहे परन्तु फिर भी उसे कृष्ण प्रेम की प्राप्ति नहीं हो सकती।
बहुत जन्मो तक हमने श्रवण और कीर्तन किया तब भी क्या नहीं हुआ। कृष्ण प्रेम प्राप्त नहीं हुआ और होगा भी नहीं ? क्या करने से हमें यह प्रेम धन प्राप्त नहीं होगा । अपराध करने से। हम अपराध भी करते रहेंगे तो करते रहो जप करते रहो एक जन्म दो जन्म या बहुत सारे जन्म। ये वचन सुनते है तो हमको हलचल मच जाती है। हम जप कर रहे है मगर अपराध रहित जप करते रहेंगे तो बहुत जन्मो तक घूमते रहो कृष्ण प्रेम नहीं मिलने वाला है। यह एक बहुत ही गंभीर विषय है। ध्यान पूर्वक जप करने के लिए मैं समझा रहा था। केवल जप के समय ही हमें चिंता नहीं करनी है बल्कि एक दिन पहले या दो या दो दिन पहले हमे सावधानी बरतनी होगी अपराधों से बचना होगा 10 नाम अपराधों से बचना होगा। और भी अपराध है उससे भी अपराध होंगे ही।
सेवा अपराध है। श्री विग्रह आराधना के सेवा से सम्बंधित अपराध है या विग्रह से सम्बंधित अपराध है। 10 नाम अपराध तो कहा है लेकिन उसी के अंतर्गत अन्य अपराध भी है। वैष्णव अपराध है। वैष्णवों की सेवा करने की बजाय वैष्णव सेवी बनिए । हम वैष्णव भोगी बन गए या वैष्णव त्यागी बन गए हैं या वैष्णव द्रोही बन गए। गुरु के संदर्भ में भी ऐसा कहा जाता है की शिष्यों के ३ या ४ प्रकार हो सकते है। गुरु सेवी होना चाहिए उसके बजाये कोई गुरु भोगी , गुरु त्यागी , गुरु द्रोही हो सकता है । ये वैष्णवों के सम्बन्ध में भी लागु हो सकता है। वे भी गुरु है आपके। आपके शिक्षा गुरु हो सकते है। इनसे भी सीखना है सभी से कुछ न कुछ उनके जीवन से सीखना है। ताकि कुछ गुण हम में भी आ जाये। वह वैष्णव गुरु है।
ऐसे वैष्णवों की सेवा करने की बजाय हमने क्या किया , हमने अपराध किये, उनका लाभ उठाया , भोग भोगे या फिर द्रोही बन गए , वैष्णव द्रोही या राष्ट्र द्रोही बहुत सारे द्रोही होते है तो उसी प्रकार वैष्णव द्रोही, गुरु द्रोही भी होते है। और फिर गुरु त्यागी , वैष्णव त्यागी भी हैं। अगर हम ये कहे कि हमे कोई चिंता नहीं है । मैं तो अकेला ही रहूँगा मुझे कोई चिंता नहीं है। वैष्णव को त्याग दिया उसने। मन से निकाल दिया उसने वैष्णवों को। इसे वैष्णव नींदा कहेंगे। दिन भर हमको अभ्यास करना होगा की ये करो ये मत करो। यह अपराध है वह अपराध है। 10 नाम अपराध है। साधु को सावधान होना चाहिए।
कृष्ण प्राप्ति हम भक्तो ने अपना लक्ष्य बनाया है और श्रील प्रभुपाद हमको प्रेम रस देते रहे ये कृष्ण प्रेम। कृष्ण को हमे कब प्राप्त करना है इसी जीवन काल में प्रभुपाद कहा करते थे।इसको आगे मत धकेलो। लोग कहते है देखा जायेगा अगले जन्म में तो फिर प्रभुपाद कहा करते थे की जो व्यापारी होते है दुकानदार होते है उद्योग करते रहते है। उद्योग तो करते रहेंगे लेकिन उसका जो मुनाफा जो फायदा है अगले जन्म में मिलेगा तह भी चलेगा ऐसा कोई सोचता है। मुनाफा उसी दिन चाहते है। शाम को अट्ठनी चव्वनी गिनते रहते है। गिनते है की कितना फायदा हुआ आज के उद्योग का प्रयास का।
हम भी जिस उद्योग में लगे हुए है। ये भक्ति भी प्रयास है उद्योग है गाडी है। इसके फल को मतलब कृष्ण को, गौड़ीय वैष्णव में सीधी बात कही जाती है घुमा फिराके नहीं , किसको प्राप्त करना है। कृष्ण को प्राप्त करना है। मैं यहाँ पर रुकूंगा और किसी का कोई प्रश्न है।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।
क्या किसी का कोई प्रश्न है। अनत शेष प्रभु :- हरे कृष्ण गुरु महाराज, बंगलोर से प्रश्न पुछा है। गुरु महाराज :- ये साधक ही बता सकता है या फिर उसका परीक्षण निरिक्षण करना होगा नाड़ी परीक्षा होगी तो फिर बता पाएंगे कि आप कहाँ हो , श्रद्धा तक ही हो उसी स्तर पर हो या फिर और कुछ लक्षण से भी पता लग सकता है कि इस व्यक्ति की श्रद्धा कैसी बन चुकी है दृढ़ श्रद्धा बन चुकी है तोह फिर निष्ठावान हुए। वैसे हम ऊपर तक जा भी सकते है लेकिन किस स्तर पर है ये कहने के लिए या निर्धारित करने के लिए अधिकतर हम कहाँ पर है वह देखना होगा। कुछ क्षणों के लिए हल्का सा कुछ कृष्ण प्रेम का अनुभव हो सकता है कुछ भाव हो सकते है साधक के मन में भक्ति भाव पांच दस मिनट के लिए या एक आधे दिन के लिए पर स्थिरता नहीं होती है तो यह ऊपर नीचे चलता रहता है। लेकिन उसमे से वह कहाँ पर है अधीकतर कहा पर है उसके मन की स्थिती क्या है। तीन गुण है। वैसे तीनो गुण में एक दूसरे के साथ में प्रतियोगिता चलती रहती है।
सतोगुण पहले कुछ समय के लिए दो गुणों पर हावी हो जाता है और कुछ समय रजोगुण हावी होता है और कभी तमोगुण हावी होता है। ऐसे रोज हम अलग अलग गुणों से गुजरते है। अलग अलग गुणों का प्रदर्शन होता है हमारे जीवन में हमारे मन में और फिर कार्य कलापो में। उदाहरण ये व्यक्ति रजोगुणी है मतलब अधिकतर वह रजोगुणी है। ये नहीं की कभी वह सतोगुणी होता नहीं है या तमोगुण उसको छूता नहीं है अधिकतर ये रजोगुणी है। या ये सतोगुणी है सात्विक है व्यक्ति है। सात्विक व्यक्ति कभी राजसिक तामसिक से प्रभावित होते है कुछ रजोगुणी कार्य कर सकते है आप समझ रहे हो न। ये तीन गुणों से ऊपर नीचे चलता ही रहता है लेकिन अधिकतर वह किस गुण से प्रभावित होता है या किस गुण वाले कार्य कलापों का वह प्रदर्शन करता है। वैसे ही श्रद्धा से प्रेम तक का मार्ग है।
श्रील प्रभुपाद की जय
परम पूज्य लोकनाथ स्वमी महाराज की जय।