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जप चर्चा दिनांक ६ - २ -२०२० अमरावती हरे कृष्णा ! लेट्स टॉक ! लेट्स वॉक डा टॉक ! ऐसा भी कहते है ५०० स्थान से जप होरा है ५०० भक्त कहने के बजाये ५०० स्थान कहना अति उचित है | भक्त ५०० नहीं होते ५०० लोग हुए ५०२ हुए भक्त ५०२ नहीं होते ५०२ और संख्या भी अधिक होती है डॉ श्यामसुंदर शर्मा पहले आप एक थे फिर एक थे फिर एक के दो हो गए गए फिर २ के तीन फिर अभी पीछे भी कोई बैठा है इस प्रकार धन्यवाद् हरी हरी वैसे कोई मेहरबानी भी नहीं कर रहे हो आप जप करके किसी पे मेहरबानी तोह नहीं करते हो हरी ! अपने फ़ायदे के लिए अपने कल्याण के लिए अपने सुधार के लिए और असली स्वार्थ यही इसी में है न ते विदु: स्वार्थगतिं हि विष्णुं प्रह्लाद महाराज का है आजकल और इस भौतिक जगत में कलयुग में न ते विदु: स्वार्थगतिं हि विष्णुं लोग अपने स्वार्थ को नहीं जानते या विष्णु प्राप्ति या विष्णु की आराधना या कृष्ण की आराधना में ही अपना स्वार्थ है इसको नहीं न ते विदु: नहीं जानते तोह भगवान की कृपा से आप जप कर रहे हो आप समझ रहे हो जान रहे हो अपने स्वार्थ स्वा अर्थ ऐसा अर्थ है स्वार्थ स्वा अर्थ स्वा मतलब हम खुद और मतलब खुद तोह कह दिए स्वा, स्वा तो शरीर भी होता है स्वा मन भी हो सकता है स्वा या कोई बुद्धिमान इंटेल्लेक्टुअल्स अपने बुद्धिमन्ता को भी डे आइडेंटीफ़्य विद इंटेल्लेक्टुअल्स कैपेबिलिटीज या अबेलिटीज़ तो कोई अपने शरीर को स्वा मानता है कोई अपने मन को मानता है कोई बुद्धि को मानता है और फिर इससे ये सब सूक्ष्म शरीर ये भगवद गीता का प्रवचन में आपको दे रहा हु ये सब मुझे नहीं करना था तोह कहने का आश्रय ये है की स्वा तोह आत्मा है स्वा शरीर नहीं है स्वा स्वा हैं हम खुद जो है हम शरीर नहीं है हम है आत्मा अहम् दासोऽहमि अहम् दासः अस्मि आप कौन हो ? तो उसका उत्तर क्या है अहम् दासः अस्मि में दास हु अहम् कृष्णा दासः अस्मि में कृष्ण का दास हु कृष्ण का दास तोह आत्मा है ममैवांशो जीवलोके जीवभूत: सनातन: | तो इस आत्मा का स्वार्थ हरी हरी भगवान् के भक्त की भक्ति में है या धर्म है आत्मा का धर्म है भगवान की सेवा करना हम स्वाभाव से दास है तोह दास के स्वामी की सेवा स्वामी की आराधना या स्वामी के लिए सब कुछ करे तोह फिर ऐसा करने में ही जीव का स्वार्थ है तोह इसी में फ़ायदा है इसी में लाभ है इसी में मंगलया है इसी में सबकुछ है तोह हम जप करते हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे हम किसी पर मेहरबानी नहीं करते अपने लिए करते है हरी हरी तोह आप बुद्धिमान हो आप इसे समझ रहे हो आप कौन हो और आपका स्वार्थ किन बातों में है और जीव का स्वार्थ कलयुग में हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे करने में है तो गौर भगवान प्रभु ने आज कुछ पोस्टिंग किया अंग्रेजी में था तो उस पोस्टिंग के लिए उनको आभार पता नहीं आप पढ़ पाए नहीं पाए उसको कॉन्फरन्स का है , उसको पोस्ट किया जा सकता था जिसको आप पढ़ सकते हो जिसमे उन्होंने मेने तो थोड़ा जिक्र किआ था अलग अलग अवस्था जैसे जागृत अवस्था स्वपन अवस्था सुसुक्ति और उसकी परिभाषा भलीभांति उन्होंने संक्षिप्त में लिखा है तो आप उसको पढियेगा या उसको पोस्ट करेंगे फेसबुक में जप कॉन्फरन्स का जो फेसबुक है करे वो जो भी जिम्मेदार है पोस्टिंग ऑफ़ गौर भगवन प्रभु हरी हरी तोह जप करना सर्वोच्च अवस्था है सर्वोपरि है चतुर्थ अवस्था भी कहा है शास्त्रों में ये गुणातीत स्थिति है शरीर के अतीत जागृत अवस्था में हमारी सारे कार्यकलाप चलते रहते है इन्दिर्यो के भी कार्यकलाप चलते रहते है मन के भी कार्यकलाप चलते रहते है या जब निद्रा की अवस्था में निद्रा में ड्रीम स्टेट स्वपन देखते है तोह वह पर इन्दिर्य तोह कार्य नहीं करती लेकिन मन एक्टिव रहता है और कहीं सारी परेशानिया भी नाईटम्येर्स जिसको कहते है उफ़ वो भी कस्ट दायक अनुभव हो सकता है होता ही है सुसुक्ति जो है डीप स्लीप इन्दिर्य और मन भी निष्क्रिय होता है स्वपन अवस्था में मन एक्टिव रहता है बिजी रखता है स्ट्रेस और स्ट्रेन चलता ही रहता है लेकिन फिर सुसुक्ति या डीप स्लीप में फिर आराम मिलता है तोह जब हम जग जाते है कभी कभी कहते है हम आई हेड ए गुड स्लीप रिलैक्स्ड स्लीप या ऐसा पूछा भी जाता है मेहमान आ गए गेस्ट आगये या कोई हो सकता है हाउ डीड यू स्लीप लास्ट नाईट ? हाउ वाज़ योर स्लीप ! अगर डीप स्लीप थी तोह गुड स्लीप आई एंजोयेड रिलैक्स्ड तोह डीप स्लीप सुसुक्ति की अवस्था में सारे जो भौतिक कार्यकलाप है शारीरिक या इंदिरियो के स्तर पर या मानसिक के स्तर पर या बुद्धि के स्तर पर ठप होते है और एक प्रकार से आत्मा को कुछ रिलीफ या राहत या आराम या रिलैक्स्ड और सुख और शान्ति का अनुभव करता है और कहता है आई हेड गुड स्लीप तोह जो तूर्य अवस्था है या चतुर्थ अवस्था वही कृष्णा भावना की अवास्थ है हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ये ध्यानपूर्वक जप करने के प्रयास करने का फल यहाँ है की हम जो जिव है हम जो आत्मा है हम गुणातीत पहुंच जाते है फिर , फिर वो हमारी अवस्था या जब प्रेम अञ्जन च्छुरित भक्ति विलोचनेन सन्तः सदैव हृदयेषु विलोकयन्ति | (ब्रह्मसंहिता ५.३८ ) और जप की वो भी अवस्था जिसको हम कल भी कह रहे थे चैतन्य महाप्रभु ने कहा श्लोका ये भाव भावभक्ति भाव के स्तर पर भाव से ही फिर ऊँचा है प्रेम तोह शिक्षाष्टक में भी श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु साधन भक्ति के सम्बन्ध कुछ अस्टाक कहे पहले ५ अस्टाक साधन साधन भक्ति और फिर ६ और ७ भाव भक्ति का उल्लेख करता है तोह ८ जो अस्तक है आश्लिष्य वा पादरतां पिनष्टु मामदर्शनान्-मर्महतां करोतु वा। यथा तथा वा विदधातु लम्पटो मत्प्राणनाथस्-तु स एव नापरः॥८॥ अनुवाद: एकमात्र श्रीकृष्ण के अतिरिक्त मेरे कोई प्राणनाथ हैं ही नहीं और वे ही सदैव बने रहेंगे, चाहे वे मेरा आलिंगन करें अथवा दर्शन न देकर मुझे आहत करें। वे नटखट कुछ भी क्यों न करें -वे सभी कुछ करने के लिए स्वतंत्र हैं क्योंकि वे मेरे नित्य आराध्य प्राणनाथ हैं ॥ वो जो है ८ वा सर्वोच्च या प्रेम की अवस्था या प्रेम का प्रेम फिर शुरुआत होती है भाव से फिर भाव से फिर प्रेम तोह जब हम उस अवस्था में या उस मन की अवस्था में उस भावना में वहा पहुँचते है उस मनोस्थिति में जप करते है तोह तूर्य या चतुर्थ वो अवस्था है या शरीर के परे या मन के परे इन्दिर्यो के गुणातीत या कालातीत काल का प्रभाव नहीं है वह गुणों का प्रभाव नहीं वह सत रज तमो गुण वो जो सक्रिय रखते है हमारे शरीर हमारी इन्दिर्या को हमारे मन को तोह वो जो सर्वोच्च अवस्था है कृष्ण भावना की अवस्था तोह उस अवस्था को प्रपात करने का ही प्रयास है ये नाम जप जो हम संकीर्तन करते है या जप यज्ञ करते है तोह जागृत अवस्था इसको कहा है या स्वपन अवस्था इसको कहा है या सुसुक्ति डीप स्लीप ये अवस्था को कहा है उससे भी उची सर्वोपरि अवस्था है तोह सुसुक्ति या डीप स्लीप गहरी नींद में भी वो एक प्रकार से मुक्त होता है वो मुक्त होने का अनुभव करता है इसीलिए वो समाधान व्यक्त करता है मुझे बहुत अछि नींद आयी प्रस्सन रहता है जब व्यक्ति जगता है तोह उसे भी शुद्ध और पवित्र अवस्था भावना कॉन्सियसनेस्स चेतना या चेतो दर्पण मार्जनम हुआ है हरी हरी मेने और भी थोड़ा कह दिया वो प्रभुजी यही बातें लिखे थे गौर भगवन प्रभु ये पढ़ने का विषय है इसको और गहराई में समझना चाहिए ये मदद करेगा हमे ध्यानपूर्वक जप करने के लिए हरी हरी आज वराह द्वादशी है वराह भगवान की जय केहवा धृता सूकर रूपा जय जगदीश हरे स्वामी जय जगदीश हरे भगवन सूकर बने ब्रह्मा के नासिका से ब्रह्मा जी को आई छींक स्नीजिंग जिसको कहते है उसके साथ ब्रह्मा के नाक से भगवन प्रकट हुए जब प्रकट हुए तोह छोटे से अंघूठे का आकर होता है उतने थे और धीरे धीरे उन्होंने विशाल विराट रूप वो विराट रूप नहीं जो भगवन ने अर्जुन को दिखाए लेकिन वही सुकर रूप वही विशाल रूप धारण किए भगवन कब प्रकट होते है धर्मसंस्थानार्थाय सम्भवामि युगे युगे परित्राणाय साधुनां विनाशाय च दुष्कृताम् तोह उस जमाने का एक दुष्ट हिरण्यास्क का वध किये भगवान् क्युकी ऐसे हिरयाणास्क जैसे प्रवर्ति वाले जो भोगना चाहते है डे लाइक टू एक्सप्लॉइट डा रिसोर्सेज तोह इसके कारण उस समय पृथ्वी समुद्र में गिर गयी कौनसे समुद्र में गिर गयी पसिफ़िक ओसियन इंडियन ओसियन की अरेबिक ओसियन ये सरे ओसियन पृथ्वी पे ही है तोह पृथ्वी गिर गयी पतन हुआ मतलब वो किसी और सागर में गिरी होगी तोह गरबोदाक्षायी गरबो दख नमक जो सागर है ब्राह्मण में वो सब बता नहीं सकते अस्टोनमी यग खगो तोह वह गिरे पृथ्वी के उद्धार के लिए भगवान् ये सुकर रूप वराह रूप धारण किए और फिर हिरण्यास्क के साथ लड़े भगवान् इसका बढ़िया वर्णन आप भागवत में पढ़ सकते हो अभी समय नहीं है ये सब वर्णन करने का भगवान् ने वध किआ हरिबोल सभी देवता प्रसन हुए आप भी प्रसन हो की नहीं असुर का जब वध होता है तो देवता प्रस्सन होते है और फिर पृथ्वी को वराह भगवन ने अपने स्थान पर जो उसकी नार्मल स्थिति है वह स्थित किआ तो वो करने के पहले और भी वर्णन है तो सनसिकपट में आपको बताते है की वराह भगवान् ने पृथ्वी को उठाया कैसे उठाया उन्होंने अपने दांत के ऊपर जंगली जो सुकर होते है जो वन में जंगल में मिलते है आपके जो गाओ में मिलते है उसमे दांत नहीं होता लेकिन ये जंगली सूकर इसके ऐसे जैसे हाथी के दांत होते है तो उनके भी छोटे दांत होते है तो वराह भगवान् के भी ऐसे दांत , दांत के ऊपर उन्होंने उठया धारण किया पृथ्वी को और उठाके ऊपर उठे चढ़े और एक समय भगवान् को भी युद्ध में पृथ्वी को ढोने में कुछ प्रयास भी उनको करना ही पड़ा प्रकाराम भी दिखाया ही तो भगवान् विश्राम करना चाहते थे तो उन्होंने मथुरा में विश्राम किआ तोह गरभदाय समुद्र से ऊपर आये भगवान् और अब बैठे है यमुना के तट पर बैठे है मथुरा के बहार मथुरा के तट पर तो जहा बैठे उस जगह का नाम हुआ विश्राम घाट मथुरा में जो विश्राम घाट है बड़ा प्रसिद्ध स्थान है विश्राम घाट तो वह भगवान् बैठे थे तो अभी पृथ्वी कहा है अभी उनके दांत पर ही है पृथ्वी दांत पर ही है और भगवान् बैठे है मथुरा वृन्दावन में में विश्राम कर रहे है पृथ्वी ऊपर है मतलब सब ऊपर ही है सारे देश उसी के ऊपर है सारे पहाड़ उसी के ऊपर है सारे समुद्र उसी के ऊपर है दिल्ली है आगरा है सब उसी के ऊपर है लेकिन भगवान् कहा बैठे है भगवान् मथुरा वृन्दावन में बैठे है विश्राम कर रहे है इससे ये भी समझ आना चाहिए जो हम कहते रहते है जैसे नाम अपराध है तो वैसे धाम अपराध भी है एक धाम अपराध ये है की ये समझना की ये वृन्दावन उत्तर प्रदेश में है मायापुर बंगाल में है द्वारिका गुजरात में है ऐसा समझना अपराध है अयोध्या उत्तर प्रदेश में है तो ये धाम इस जगत में नहीं है या इस पृथ्वी पर नहीं है उसकी स्तिथि भिन्न ही है और पृथ्वी का पतन हुआ था पर ये धाम पतन नहीं हुए धाम अपने स्थान पर ही रहे वैसे ही जब पृथ्वी का पतन भी हुआ था फिर पृथ्वी का प्रलय भी होता धामों का प्रलय नहीं होता वृन्दावन का प्रलय अयोध्या का प्रलय द्वारक का मायापुर का जग्गनाथ पूरी का प्रलय विनाश नहीं होता क्युकी वे इस जगत में नहीं है इस जगत के नहीं बने है पृथ्वी वायु जल आकाश से ये धाम नहीं बने है ये धाम चिंतामणि से बने है ये चिंतामणि से बने है पृथ्वी पृथ्वी से बानी है पृथ्वी पर जल है हवा है अग्नि है लेकिन धाम से भिन्न है और पृथ्वी की सृष्टि होती है पृथ्वी का संहार भी होता है लेकिन वृन्दावन मथुरा मायापुर धाम इसकी सृष्टि नहीं हुई है इसके सृष्टि कर्ता ब्रह्मा नहीं है और इसका विनाश या प्रलय करने की क्षमता शिवजी के पास नहीं है ये धाम शास्वत है ये सिद्धांत भी वराह लीला या वराह भगवान् की जो लीला से पृथ्वी का उद्धार किया पृथ्वी को उठाया अपने दांत धारण किया और फिर अपने स्थान पर स्तिथ भी किआ अपने ऑर्बिट पे तो फिर पृथ्वी ब्रह्मण करती रहती है सारे ग्रह नक्शत्र ब्रह्मण करते मण्डलमय तो हरी हरी पृथ्वी माता है तो उस माता की सेवा करनी चाहिए भारत माता की। .. ऐसा भी कुछ चलता रहता है भारत माता की। .. क्युकी पृथ्वी माता है वैसे एक समय तो भारत इंडिया का जितना नक्शा है उतना ही नहीं पूरी पृथ्वी का जो नक्शा है उसपे फैला हुआ था पूरी पृथ्वी ही भारत था आज भी है साडित है ढका हुआ है सारी पृथ्वी को हमे पुनः भारत बनाना है तो इस पृथ्वी का धरती का इस पृथ्वी के जो र्सोसेस है उपभोग लेना चाहते है इंदिरिया तृप्ति में जो लगे हुए है मनोरंजन जो चाहते है सुख सम्पति घर आवे चाहते है उनके कारण धरती माता परेशान होती है परेशान करते है या में कल कह रहा था की उसको नग्न करने का विवस्त्र करने का भी प्रयास होता है है हमारा डेफोरेस्टशन जब वन के वन उसको सम्पात किआ जा रहा है और कई सारे पेड़ काट के एक दो नहीं हज़ारो एकड़ भूमि को साफ़ किया जाता है फिर वहा कोई उद्योगपति इंडस्ट्री की स्थापना करता है तो में कह रहा था की जो वन है वह की हरियाली है वहा की वनस्पति है वृक्ष है ये वस्त्र है पृथ्वी का पहना हुआ वस्त्र है कई सारी हरी भरी है फिर एम्बोरिदरी भी है रंग बिरंगे फूल है दूससयान ने प्रयास तो किया ही द्रौपदी वस्त्रहरण का प्रयास किया द्रौपदी को अपमानित करने का जो प्रयास रहा उसका परिणाम आप जानते हो क्या निकला युद्ध हुआ महाभारत का और सभी का विनाश हुआ युद्ध के माध्यम से भगवान् ने कई सारे दुसासन दुर्योधन तो जो दुस्ट होते है कई सारे उन्होंने द्रौपदी को निवस्त्र करने का प्रयास किया तो वैसा ही प्रयास आजकल के दुसासक दुष शासन करने वाले पृथ्वी का डेफोरेस्टशन करते है पेड़ काटते है तोह उसका परिणाम भी कोणवीरस ऐसा कुछ आता है और फिर हमको दण्डित किया जाता है ये रोग आते है भोग का परिणाम फिर रोग हो जाता है भोग भोगना चाहते है धरती माता की सेवा करने के बजाये उसका भोग लेना चाहते है तो हरी हरी ! हिरयाणाक्ष ने जो भी किया भोग लेना का प्रयास किया उसका जो परिणाम निकला हम जानते है इतिहास अभी सनसिकपट में कह रहे थे तो सावधान उनको ऐसा चाहिए धरती माता की हमे सेवा करनी चाहिए धरती का उपयोग भगवान् की सेवा में करना चाहिए हरी हरी तभी ये धरती पृथ्वी प्रस्सन होगी आप घर भी बनाते हो पृथ्वी पर तो और आप वहा पर भगवान् की भक्ति कर रहे हो घर का आपने मंदिर बना लिआ तो ये सही उपयोग हुआ धरती का जमीं का और फिर पृथ्वी भी प्रस्सन और भगवान् पप्रस्सन भगवान् को प्रस्सन करते हो भूमि आप भगवान् की सेवा में उपयोग करते हो हरी हरी कल या आज भी हम कहा है अमरावती में है यहाँ नव मंदिर निर्माण लिए और भी विशाल वैभवशाली मंदिर निर्माण के लिए भूमि की खोज में हमारे यहाँ के भक्त है तो और प्राथना कर रहे है और शायद हफ्ता दो हफ्ता पहले सूचना दिए थे की यहाँ के भक्त हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ऐसे प्राथना करते हुए और वो प्राथना ऐसे अहर्निस २४ घण्टे रात दिन दिन और रात मंदिर में आके भी जप कर रहे है लगातार जप के साथ प्राथना की हमे भूमि प्राप्त हो ताकि उस भूमि की हम रुक्मिणी द्वारकादिश की जय रुक्मिणी द्वारकादिश की सेवा में उपयोग करेंगे तो हरे कृष्ण महामंत्र के साथ जप के साथ जो प्राथनाए हो रही है प्राथना भगवान् सुन रहे है और वे भगवान् जो सभी के हृदय प्रागण में विराजमान है उनमे से कुछ लोगो को व्यक्तियों को भगवान् प्रेरणा दे रहे है और कल हम एक फंक्शन में मंदिर में जो फंक्शन सम्प्पन हुआ तो कई लोगो ने घोसणाए की और कल कुल ८ एकड़ भूमि दान देने का संकल्प यहाँ के भक्तो ने किया तो किसी ने एक एकड़ किसी ने २ एकड़ तो ये भी एक उदेस्य है की उसमे से किसी एक भूमि पर मंदिर का निर्माण होगा लेकिन बाकी जो भूमि है जो भक्त दान दे रहे है कुछ बिक्री वगैरह की जाएगी और उससे धन राशि जो प्राप्त होगी उसका उपयोग मंदिर निर्माण के लिए नव मंदिर निर्माण के लिए किया जायेगा तो इस छेत्र के भक्तगण भक्त बन रहे है अपने पास जो भूमि है हिस्सा कुछ भूमि भगवान् की सेवा में सम्पर्पित कर रहे है तो फंक्शन में आये जो थे उनमे से कुछ ने कहा हमारा माकन है एक एक्स्ट्रा माकन है हम उसको बेचेंगे तो ऐसे ही कुछ माकन हमारा प्लाट है कुछ लोग पहुंच नहीं पाए फंक्शन में तो फंक्शन के उपरांत जब में निवास स्थान पर पहुंचा तो वह एक परिवार आगया महाराज हम हमे माफ़ कर दीजिये हम पहुंच नहीं पाए समय पर पर हमारी भूमि है कृपया स्वीकार कीजिये तो उन्होंने अपनी भूमि दान का भी संकल्प ले लिए तो हरे कृष्ण महामंत्र के साथ जप के साथ प्राथनाए हो रही है और इससे लोगो के अंतकरण में कुछ सुधिकरण हो रहा है और लोगो प्रेरणा प्राप्त हो रही है अंदर से भगवान कुछ कह रहे है ये सेवा करो भूमि दान दो धन दान दो रुक्मिणी द्वारकादिश की सेवा में तो उन दानदाताओ ने संकल्प लिया उनके भी हम भगवान् की और से आभार मानते है और भगवान् उनको अपना प्रेम प्रदान करे प्रेम दे प्रेममयी सेवा दे भगवान् कृतग्य है जो भी व्यक्ति भगवान् की सेवा करते है भगवान् उसको याद रखते है और सोचते है इस व्यक्ति के लिए में क्या कर सकता हु किया वो किया फिर छोटी या मोती मुक्ति भाव के साथ सेवा अर्पित की तो मुझे भी कुछ करना होगा सोचते है और जरूर करते है भगवान् कृतग्य है और भी बहुत कुछ कर सकते है लेकिन वो प्रेम ही दे सकते है प्रेम ही दे सकते है उस सेवा करने वाले भक्त को तो और क्या चाहिए और कुछ चाहिए भगवान् ने आपको प्रेम दिया प्रेममयी सेवा दी यही परफेक्शन है हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे जब हम करते रहते है जप करते है कीर्तन करते है हमे सेवा के योग्य बना दो ऐसे प्राथना भी हम करते है भगवान् करे आप सभी की प्राथना भगवान् सुने जल्द से जल्द और आपको प्रेममयी सेवा दे आपको प्रेममयी सेवा प्राप्त हो ये हमारी भगवान् के चरणों में प्राथना है ! हरे कृष्णा !

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