Hindi

१८ अप्रैल आप भी मेरी भांति करें हरे कृष्ण। सभी प्रतिभागियों का केवल एक ही लक्ष्य है जोकि बहुत बड़ा नहीं है, वह है की प्रत्येक द्वारा एक अन्य को इस जप-सत्र में जोड़ना। आपको किसी एक को, अपने गुरु भाई, गुरु बहन, भक्त, मित्र या निकटस्थ अपने किसी सम्बन्धी को जोड़ना है, जिससे हम इस माह के लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे। स्मरण रखे की अन्यों भक्तों को भी इस जप-सत्र में जोड़ना हमारा लक्ष्य है। मैं मुंबई जाने की तैयारी में हूं। मैं रेलगाड़ी से आज प्रातः यात्रा करने की सोच रहा था परंतु इससे आज का सत्र छूट जाता इसलिए मैंने रेल से जाना निरस्त किया और अब मैं सूरत हवाई अड्डे पर हूं जिससे जप सत्र के पश्चात हवाई यात्रा द्वारा मुंबई पहुंच सकूं। मैंने यह कार्यक्रम परिवर्तित केवल इसलिए किया कि मैं आपके साथ जप कर सकूं। मैं यहां पार्क में एक बेंच पर बैठा हूं। यह स्थिति मुझे स्मरण कराती है कि श्रील प्रभुपाद भी एक पार्क में बेंच पर बैठे थे। वास्तव में प्रभुपाद उस समय अनुयायियों से नहीं घिरे थे। जब वह टॉम्पकिन्स स्क्वायर पार्क में बैठे थे, उस समय उनके साथ बैठ कर जप करने वाला कोई नहीं था। एक दिन एक सज्जन व्यक्ति उस बेंच पर बैठे थे और प्रभुपाद बता रहे थे " मेरे पूरे विश्वभर में बहुत सारे मंदिर हैं और पूरे ब्रह्मांड में बहुत सारे अनुयायी हैं"। प्रभुपाद अपनी दूरदृष्टि साझा कर रहे थे, जैसे वह त्रिकालज्ञ (भूत ,वर्तमान ,भविष्य को जानने वाला) हैं। प्रभुपाद हरे कृष्ण आंदोलन की भविष्य की रूपरेखा साझा कर रहे थे। वहां बैठे उस सज्जन ने पूछा "मंदिर कहां है?" प्रभुपाद ने कहा कि "समय की बात है कि मैं मंदिरों व अपने अनुयायियों से दूर हूं। कुछ ही समय में पूरे विश्व भर में मंदिर व अनुयायी होंगे"। अब सूरत में भी मंदिर है और उनके अनुयायी भी हैं। मैं श्रीमद्भागवतम् के विचारों में निमग्न था। यह एक लंबी कहानी है। सत्यं विधातुं निजभृत्यभाषितं व्याप्तिं च भूतेष्वखिलेषु चात्मन: । अद‍ृश्यतात्यद्भ‍ुतरूपमुद्वहन् स्तम्भे सभायां न मृगं न मानुषम् ॥ "अपने दास भक्त प्रहलाद महाराज के वचनों को सिद्ध करने हेतु कि वह सत्य है - अर्थात यह सिद्ध करने हेतु कि परमेश्वर सर्वत्र उपस्थित हैं, यहाँ तक कि सभा भवन के खंबे के अंदर भी हैं - पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान श्री हरि ने अपना अभूतपूर्व अद्भुत रूप प्रकट किया। यह रूप ना तो मनुष्य का था न सिंह का। इस प्रकार श्रीभगवान उस सभाकक्ष में अपने अद्भुत रूप में प्रकट हुए।" उनसे पूछा गया था कि भगवान कहाँ हैं ? क्या वे इस खंभे में उपस्थित हैं? तो भक्त प्रहलाद महाराज ने निर्भय होकर उत्तर दिया 'हाँ मेरे भगवान सर्वत्र उपस्थित हैं'। अतएव हिरण्यकश्यप को यह विश्वास दिलाने हेतु कि भक्त प्रहलाद महाराज का कथन अकाट्य रूप से सत्य था, श्री भगवान उस खंभे से प्रकट हो गए, श्री नृसिंह के रूप में प्रकट होकर श्री भगवान ने मानो यह कहते हुए अपने भक्त को प्रोत्साहित किया हो कि, "मत चिंतित हो, मैं यहां उपस्थित हूं"। श्री नृसिंह देव के रूप में प्रकट होकर श्री भगवान ने ब्रह्मा जी के वचनों को भी रख लिया कि, हिरण्यकश्यप का वध ना तो किसी पशु के द्वारा होगा ना मनुष्य द्वारा। श्रीभगवान ऐसे रूप में प्रकट हुए जो ना तो किसी प्रकार से मनुष्य का और न ही सिंह का कहा जा सकता था। भगवान इसलिए भी प्रकट हुए "विनाशाय च दुष्कृताम" (भगवत गीता - ४.८)। इस प्रकार से भगवान प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्मा जी द्वारा दिए गऐ सब वरदान पूर्ण किए और फिर उसका वध भी किया।
 प्रभुपाद ने कहा "सत्यं विद्यातुम",
"ओह! मेरे मंदिर सर्वत्र है"। इसलिए श्रील प्रभुपाद के वचन को सत्य सिद्ध करने के लिए ही उनके बहुत सारे मंदिर और अनुयायी है। यह हरे कृष्ण आंदोलन सर्वत्र फैल रहा है। पुस्तकों का वितरण हो रहा है। प्रसाद का वितरण हो रहा है। मंदिर बन रहे हैं और अर्चविग्रह की स्थापना हो रही है। इस सब योजना के पीछे भगवान हैं। श्री चैतन्य महाप्रभु यह सब कार्य पूर्ण करा रहे हैं। वही हरे कृष्ण आंदोलन के पीछे हैं तथा साथ हैं। वह सब बातों को वास्तविक रूप से सत्य सिद्ध कर रहे हैं जो प्रभुपाद ने कहीं।
 हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। 
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ 
परंतु मूल रूप से श्री चैतन्य महाप्रभु ने यह भविष्यवाणी की थी कि सर्वत्र मेरे नाम का प्रचार होगा। प्रभुपाद ने यह आंदोलन स्थापित किया जिससे श्री चैतन्य महाप्रभु की भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हो। प्रभुपाद यह भी जानते थे कि चैतन्य महाप्रभु ने यह भी कहा है कि मेरे नाम के प्रचार के साथ बहुत से मंदिर होंगे, श्रीमद्भागवतम का उच्चारण होगा, प्रसाद वितरण होगा तथा रथ यात्राएं होंगी। केवल हरि नाम का प्रचार ही नहीं होगा बल्कि मंदिर होंगे, रथ यात्राएं होंगी व पुस्तक वितरण भी होगा।
 यह एक दूरदृष्टि एवं भविष्यवाणी थी। श्रील प्रभुपाद ने भगवान की दृष्टि को देखा और भगवान की दृष्टि को सत्य साबित करने के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की। उन्होंने इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ की स्थापना की। श्रील प्रभुपाद ने भगवान की इच्छा को अपनी इच्छा बनाया। वह भगवान की इच्छा पूर्ति के माध्यम बनें। जैसे पिता की इच्छा उनके पुत्र पूरी करते हैं ऐसे ही जिससे कि तरह प्रभुपाद भी परमपिता परमेश्वर के पुत्र थे इसलिए भगवान सहायता कर रहे हैं। अब हमें श्रील प्रभुपाद के अनुयायियों को उनकी इच्छा को अपनी इच्छा बनानी चाहिए। श्रील प्रभुपाद कहेंगे "आप ऐसे करो जैसे मैंने किया"। हम श्रील प्रभुपाद के शाश्वत रूप ॠणी है और इससे मुक्त होने के लिए हमें वैसे ही करना है जैसे उन्होंने किया। समाज की भलाई के लिए हमें प्रभुपाद के इस आंदोलन को आगे जोर से बढ़ाना चाहिए। हमें यहीं रुकना होगा। मुझे विमान यात्रा पकड़नी है और श्री श्री राधा रास बिहारी की सेवा में पहुंचना है। आपसे फिर भेंट होगी। हरे कृष्ण।

English

18th April 2019 YOU DO AS I DID! Hare Krishna! All participants have one target, not a big one. Just get one more. Each one of you get one more, your godbrother, godsister, your devotee friends, your near and dear ones to attend the conference and we will be able to achieve the target of this month. Remember that is also our target - to encourage others to join. I am on the way to Mumbai. I was going to travel by train this morning, but then I would have missed this japa session, so I cancelled my train travel, instead I am here at Surat airport, so that I can fly to Mumbai later after attending the conference with you. I made this change, just to chant with you. I am just sitting here in a park on a bench. This situation reminded me of Srila Prabhupada sitting in New York, also in some park on a bench. Of course that time Srila Prabhupada was not surrounded by any followers. When he sat in Tompkins Square Park, there was no one to sit and chant with him. One day one gentleman was sitting on the same bench and Prabhupada was talking , ‘I have so many temples all over the world and so many followers all over the planet.’ Prabhupada was sharing his vision as he was 'trikalajnana' ( knower of past, present and future). Prabhupada was sharing the future of the Hare Krishna movement. Gentleman sitting there asked ‘ Where are the temples?’ Prabhupada said, ‘Only time separates me from those temples and my followers. In due course of time there will be temples and followers all over the world.’ Now in Surat also there is temple and followers of Prabhupada. My thought was in the Bhagavatam, it's a long story. satyam vidhatum nija-bhrtya-bhasitam vyaptim ca bhutesv akhilesu catmanah Adrsyatatyadbhuta-rupam udvahan stambhe sabhayam na mrgam na manusam To prove that the statement of His servant Prahlad Maharaj was substantial - in other words, to prove that the Supreme Lord is present everywhere, even within the pillar of an assembly hall - the Supreme Personality of Godhead, Hari, exhibited a wonderful form never before seen. The form was neither that of a man nor that of a lion. Thus the Lord appeared in His wonderful form in the assembly hall.(Srimad Bhagavatam, 7.8.17) Lord Narasimha appeared to make the statement of his devotees true . He was asked, where is your Lord? He replied everywhere. “Is he present in this pillar?” “Yes! Why not , in this pillar also” Prahlad replied this way. In order to make statement of His devotee true, the Lord appeared as Narasimha from the pillar. Right out of the pillar! Brahma had also said, that you will not die inside the house , outside the house , in the sky or on the land, not in the morning or at night..,.... and on and on there is a big list. Lord had to appear to do the vinasaya ch duskrutam. ( B.G. 4.8) So the Lord appeared. He fulfilled all the conditions agreed upon by Brahma. The Lord kept all those conditions intact to keep Brahma's boon given to Hiranyakasipu intact and still did the killing also. Sattyam vidhatum Prabhupada said , “Oh! I have temples everywhere! “ So the Lord in order to make Srila Prabhupada's statement true that there are temples everywhere, devotees everywhere and books are being distributed, prasada is being distributed. . Prabhupada said this, so to make his statement true this Hare Krishna movement is spreading, and the Lord is getting everything done. The Lord is behind this. Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu is getting it done. He is behind the Hare Krishna’ movement and with the Hare Krishna movement. He is making sure, whatever Prabhupada said , is being made a reality. HARE KRISHNA HARE KRISHNA KRISHANA KRISHANA HARE HARE HARE RAMA HARE RAMA RAMA RAMA HARE HARE But originally, it is the prediction of Caitanya Mahaprabhu that My name will reach everywhere. Srila Prabhupada made his mission to make Caitanya Mahaprabhu's prediction true. Prabhupada also knew that if Caitanya Mahaprabhu has said , that My name is going to be chanted everywhere, then there are going to be temples and Bhagavatam recitation and prasada distribution and Ratha -Yatras. So not only holy name is going to reach everywhere, but there will be temples, Ratha-Yatras and book distribution. This was the vision and prediction. Prabhupada shared the Lord's vision and in order to realize the Lord's vision , he was working hard. He established the International Society for Krishna Consciousness. Srila Prabhupada made the Lord's will his will. He became the executer of the will of the Lord. Father's will is executed by the children, so Prabhupada is a good son of the Lord, as Jesus was the son of the Lord. Prabhupada was a good son who worked on bringing the will of the Lord true. So the Lord is cooperating. Now we the followers of Prabhupada have to make Srila Prabhupada's will our will and we have to work on execution of the will of the Lord and Srila Prabhupada. Prabhupada would say,“ You do as I did.” So we are eternally indebted to Srila Prabhupada. To become free from this debt, he said, “ You do as I did.” So let's all push on this movement of Srila Prabhupada for the welfare of society. We will have to stop now. I have to catch flight, and have to reach lotus Feet of Sri Sri Radha Rasbihari. So see you another day. Hare Krishna!

Russian