Hindi

जहाँ ध्यान जाता हैं वहां ऊर्जा बहती हैं आज इस कांफ्रेंस में ३३५ प्रतियोगी सम्मिलित हुए हैं। इस कांफ्रेंस में सम्मिलित होने के लिए आप सभी को धन्यवाद। आप में से कई नियमित रूप से इस कांफ्रेंस में सम्मिलित हो रहे हैं। अतः इस शुभ कार्य को जारी रखिए। आज नवद्वीप मण्डल परिक्रमा के आधिवास के लिए मुझे जल्दी जाना होगा। परिक्रमा दल पहले से ही योगपीठ के लिए प्रस्थान कर चुके हैं। सामान्यतया मैं भी उनके साथ योगपीठ तक पैदल जाता हूँ परन्तु चूँकि आज मुझे इस कांफ्रेंस में सम्मिलित होना था अतः मैं पीछे रुक गया। मैं आप सभी के साथ जप सत्र को छोड़ना नहीं चाहता हूँ परन्तु मुझे परिक्रमा दल के साथ भी सम्मिलित होना हैं। अगले कुछ दिनों में हम अपने इस जप सत्र का १०० वां सत्र सम्पूर्ण करेंगे। मैं इसके विषय में आपसे प्रतिक्रिया लेना चाहुँगा - किस प्रकार हम इसे और अधिक उन्नत बना सकते हैं , क्या यह आपके जप को और अधिक ध्यानपूर्वक करने में सहायता कर रहा हैं ? एक भक्त जो नियमित रूप से इस कांफ्रेंस में सम्मिलित होते हैं , उन्होंने कुछ दिनों पहले मुझे लिखा , " महाराज , मैंने यह संकल्प लिया हैं कि मैं अपनी १६ माला सुबह ७ बजे से पहले पूरी करूँगा। " इस प्रकार इस कांफ्रेंस का यह एक परिणाम हैं। इसी प्रकार मैं आप सभी से भी सुनना चाहता हूँ। न केवल " बहुत अच्छा हैं " अथवा " इससे हमें सहायता होती हैं " परन्तु यह बताइये कि यह क्यों अच्छा हैं ? किस प्रकार यह आपको सहायता कर रहा हैं? क्या आप भी अपने जप की गुणवत्ता को सुधारने के लिए कुछ प्रयास कर रहे हैं , क्योंकि इस कांफ्रेंस के माध्यम से हम जप सुधारने के कई उपाय बताते हैं। प्रत्येक दिन जप सत्र के दौरान मैं आपको कुछ उल्लेख करता हूँ , जिनका अंग्रेजी , हिन्दी तथा रुसी भाषा में अनुवाद होता हैं। इसलिए आप सभी का इन अनुवादों को पढ़ने के लिए स्वागत हैं। हम विशेष रूप से जप सत्र के लिए एक वेबसाइट बना रहे हैं जहाँ आप अंग्रेजी तथा हिन्दी भाषा में इन अनुवादों को पढ़ सकते हैं। माधवी गौरी माताजी हमारी वेबसाइट बनाने वाली भक्त हैं , जिन्होंने और भी कई वेबसाइट बनाई हैं। आप सभी को इस विषय में सुचना शीघ्र ही प्रदान कर दी जाएगी कि किस दिन यह वेबसाइट , वर्तमान वेबसाइट से संलग्न होगी। जब ऐसा हो जाएगा तो आप अभी तक के सारे जप सत्रों का अनुवाद वहाँ पढ़ पाएंगे। हम आपकी प्रतिक्रियाएँ तथा प्रश्नों के लिए प्रतीक्षा करेंगे। इस कांफ्रेंस के माध्यम से भी कुछ आदान प्रदान होता हैं परन्तु मुख्यतया यह दण्डवत प्रणाम का ही होता हैं। यदि आप दण्डवत के भाव में रहते हैं तो सम्पूर्ण दिन आप दिन भर कई सारे दण्डवत स्वीकार तथा प्रदान करते हैं। तृणादपि सुनीचेन तरोरपी सहिष्णूनां। अमनीना मानदेन कीर्तनीय सदा हरी:।। इस प्रकार यहाँ भी कुछ संचार होता हैं परन्तु वह इतना अधिक ठोस नहीं हैं। इसके अलावा यह समय मुख्यतया जप के लिए ही हैं अतः इस समय को आप टाइपिंग तथा लेखन में बर्बाद मत कीजिए। इसे आप जप के पश्चात कर सकते हैं। हम इस कांफ्रेंस को और अधिक परस्पर संवादात्मक बनाना चाहते हैं। अभी यह केवल एक तरफा यातायात के समान हैं। मैं बोलता हूँ तथा आप सभी के मुँह बन्द रहते हैं क्योंकि आप म्यूट में रहते हैं। मैंने सुना कि हवाई से मेरे गुरु भाई नरहरी प्रभुजी भी ज़ूम के माद्यम से सत्र लेते हैं , वे जप सत्र नहीं परन्तु कोई अन्य सत्र का आयोजन करते हैं। हमारी चर्चा के दौरान वे बता रहे थे कि कई अलग अलग प्रतियोगी इसमें सम्मिलित होते हैं जो प्रश्न पूछते हैं तथा अपनी टिप्पणियाँ देते हैं, तत्पश्चात नरहरी प्रभु उनका उत्तर देते हैं। इस प्रकार इसकी भी सम्भावना हैं। इस प्रकार हमें इस पर भी कार्य करना चाहिए , या तो उसी समय कुछ प्रश्नोत्तर हो सकते हैं अथवा कोई एक भक्त उन सभी के प्रश्नों को यहाँ बता सकता हैं , जैसे मैं करता हूँ। हम उस वेबसाइट के लिए भी प्रतीक्षा कर रहे हैं जहाँ सभी अनुवाद उपलब्ध होंगे। हमारा लक्ष्य सदैव " ध्यानपूर्वक जप करने के लिए प्रयास करना " होना चाहिए। जब मैं चर्चा कर रहा हूँ उस समय कोई अन्दर आया हैं। वैभव कुछ व्यायाम कर रहा हैं। मैं इसके माध्यम से सभी देख सकता हूँ। कल हमने श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों को पढ़ने तथा उनका वितरण को बढ़ावा देने वाले वैयासकी प्रभु से एक बात सुनी , वे एक उच्च कोटि के पाठक तथा लीडर हैं। उनका वह वचन अत्यंत गंभीर था। उन्होंने कहा , " नेता पाठक होने चाहिए। " वे एक उत्तम नेता हैं क्योंकि वे पाठक हैं। हल की सभा में हमने एक और वाक्य सुना जो इस प्रकार था , " जहाँ ध्यान जाता हैं वहां ऊर्जा बहती हैं " जप का समय ध्यानपूर्वक रहने का समय हैं तथा इस समय बिना ध्यान के बैठना उत्तम नहीं हैं। जैसे ही हमारा ध्यान किसी ओर जाता हैं , जैसे यदि कोई दरवाज़े पर दस्तक देता हैं तो हमारा ध्यान उस ओर चला जाता हैं तथा तुरन्त ही हमारी ऊर्जा भी उस ओर चली जाती हैं। जैसे ही आप उस ओर देखते हैं वैसे ही पूरी जाँच - पड़ताल प्रारम्भ हो जाती हैं , वहां कौन हैं ? वह किसलिए आया हैं ? आदि आदि। इस प्रकार सोचने का कार्य प्रारम्भ होता हैं तथा अन्त में हम उस व्यक्ति को देखते हैं। हमारी अन्य इन्द्रियाँ भी उस दिशा में जाती हैं जिससे कुछ जानकारी उपलब्ध की जा सके। हमारी इन्द्रियाँ ज्ञान एकत्रित करने के लिए हैं। वे जानकारियों को एकत्रित करती हैं जो अन्ततः मस्तिष्क तक पहुँचती हैं। तत्पश्चात इसमें बुद्धि भी संलग्न होती हैं जो सही तथा गलत का भेद करती हैं। इस प्रकार हमारा शरीर , इन्द्रियाँ , मन तथा बुद्धि उस ओर जाती हैं जिस ओर हमारा ध्यान जाता हैं। जिस भी दिशा में हमारा ध्यान जाता हैं उसी ओर हमारी ऊर्जा भी बहती हैं। इसलिए हमें सही प्रकार का वातावरण , संग तथा आसान चाहिए। आसन का अर्थ केवल यह नहीं हैं जिस पर आप बैठे हैं अपितु आप किस स्थान पर बैठे हैं , वह भी आसन ही हैं। यदि वह आसन मायापुर धाम में हो तो , वह धाम ही आसन बन जाता हैं। आपके आसपास कौन हैं वे भी आपके आसान का अंग बन जाते हैं। घूमते हुए जप करना हमारे आसन का अंग नहीं होता हैं। हमें आसन इस प्रकार बनाना चाहिए जहाँ उपचार से बचाव अच्छा हो। जप के समय किसी भी प्रकार के विक्षेप से स्वयं को बचाइए। इन सभी बातों का ध्यान रखते हुए हम अपने आसन पर बैठते हैं। हमें उस समय अत्यंत कम अथवा नहीं के बराबर विक्षेप चाहिए जिससे हमारा ध्यान इधर - उधर नहीं भटके तथा हमारी ऊर्जा भी यत्र - तत्र जाए नहीं। वास्तव में ये सभी प्रसंग छोटे नहीं हैं, परन्तु आप इस बात का ध्यान रखिए , " जहाँ भी ध्यान जाता हैं , ऊर्जा उधर बहती हैं। " हम हमारी ऊर्जा को कृष्ण के अतिरिक्त और कहीं भी नहीं जाने देना चाहते हैं। ध्यानपूर्वक रहना सभी बातों का निचोड़ हैं। जप करने वाले साधकों के लिए " ध्यानपूर्वक रहना " सबसे आवश्यक हैं। यदि हम जप को एक शब्द में कहना चाहें तो वह हैं - " ध्यानपूर्वक " . यह शब्द अपने आप में पर्याप्त हैं। यद्यपि हम केवल एक शब्द " ध्यानपूर्वक " कहते हैं परन्तु जैसे हम हमारा ध्यान हटता हैं हमारी सम्पूर्ण ऊर्जा उस दिशा में चली जाती हैं। अतः यह अभ्यास हैं जो हमें जप के समय करना चाहिए। हम इसे यही विराम देंगे क्योंकि मुझे योगपीठ जाना हैं। नवद्वीप मंडल परिक्रमा की जय ! गौर प्रेमानन्दे हरी हरी बोल !

English

“WHERE ATTENTION GOES ENERGY FLOWS!” We had 335 participants today. Thank you for your participation. Some of you are very regular chanters on this conference. So keep up the good work . Today I have to leave early for adhivasa of Navadvipa-mandala Parikrama. The party has already walked to Yogpitha. Normally I also walk till there, but today I had to attend this conference. I didn't want to miss chanting with you all, but I have to catch up with the Parikrama party. In some days we will be completing 100 days of our Japa session. I would like to get your feedback on the performance of the conference - how we could improve the system, whether it is helping you to chant better, with more attention. One devotee who is a very regular chanter on the conference wrote to me a few days ago, ‘Maharaja I have taken sankalpa. I will chant all my 16 rounds before 7.00 am.’ So that is one outcome of this conference. Like that I will like to hear from you. Not just 'Very good!’ or 'Helping us,’ but narrate why it is good? How it is helping? Whether you are also making plans to improve your chanting as we keep giving you some tips to chant better. Every day during Japa talk I give you some hints which are also transcribed in English, Hindi and Russian. So you are welcome to read. We will have a website dedicated to Japa talks where you can get English and Hindi transcriptions. Madhavi Gauri Mataji is our website developer for many of our websites. You will be notified when this feature will be added to the existing website. Then you will be able to read all the Japa talk transcriptions there. We will also like to hear your comments and questions. Here some communication occurs, but mostly it is dandavats. If you remain in dandavat mood , that will amount to lots of dandavats during the whole day. tṛṇād api sunīcena taror api sahiṣṇunā amāninā mānadena kīrtanīyaḥ sadā hariḥ So like that some communication goes on here, but not very substantial. Also this is a time for chanting, so you don't have to spend it typing or writing. You can do that after the chanting. That can also be posted. We want to make this conference more interactive. Now it's only one way traffic. I speak and your mouth is shut as you all are muted. I also heard one of my god brothers, Narahari Prabhuji from Hawaii is also using the same Zoom conference, not for japa but something else. He was mentioning during our discussion that he does get different participants to speak, raise questions or comments. Then he responds. So that is also a possibility. We have to work out, whether there can be some on the spot dialogue or one of you could also address the participants like I am speaking. We are also looking forward to the website where all the postings will be made available. Our goal is always “to try to chant with attention”. Someone is walking while I am talking. He is ‘walking the talk’. Vaibhav is doing some exercises. I get to see all sorts of things. Yesterday we heard one statement from Vaiyasaki Prabhu who is a promoter of book distribution and of reading Srila Prabhupada's books. He is a great reader and leader. The statement was very profound. He said, “ Leader should be reader!” He is a good or ideal leader because he is a reader. In yesterday’s meeting we heard one statement which says - ‘ Where attention goes, energy flows.’ Chanting is a time to be attentive and it is also the time 'not to be inattentive’. As soon as our attention goes, for example if there is someone at the door, all our attention as well our energy flows in that direction. You look and there is a whole screening, who is that? Why? etc. So the thinking process starts. We end up seeing that person. Some other senses will go in that direction to gather information. Senses are knowledge acquiring senses. They gather information which reach the mind. Intelligence gets involved and does some processing or discrimination, right or wrong etc. Like that our body, senses , mind and intelligence get directed where our attention goes. Wherever attention goes, energy flows. That's why we have to choose the right surroundings , right association, right asana. Asana is not just where you sit, but the location of your seat, that is also asana. If that asana is in Mayapur dham , then the dham also becomes asana. Who is around you also becomes part of your asana. Running around is not an asana while doing japa meditation . We have to have our asana where prevention is better than cure. Avoid all distraction during chanting. Taking everything into consideration we take our seat or asana. With no or least distractions so that our attention doesn't go here and there otherwise energy is going to flow. Of course all these topics are not small topics. But just remember this - Wherever attention goes, energy flows. We don't want our attention to go anywhere else but to Krsna. To be attentive is the crux of the matter. Foundational guideline for the chanters is “Be attentive”. We want to say in one word how the chanting should be - ATTENTIVE ( Dhyanpoorvak). All this says a lot. Although we say just one word - ATTENTIVE. As soon as there is inattention, energy flows in that direction. So that's an exercise, abhyas we have to do during chanting.

Russian

Джапа сессия 08.03.2019 «КУДА НАПРАВЛЕНО ВНИМАНИЕ ТУДА УХОДИТ ЭНЕРГИЯ!» , Сегодня у нас было 335 участников. Благодарим за Ваше участие. Некоторые из вас регулярно участвуют в этой конференции. Так что продолжайте в том же духе. Сегодня я должен уйти раньше для участия в Навадвипа-мандала парикраме. Группа уже ушла к Yogpitha. Обычно я тоже иду туда, но сегодня я должен уделить внимание этой конференции. Я не хотел пропустить воспевание со всеми вами, но я должен догнать группу Парикрамы. Через несколько дней мы завершим 100-дневную сессию джапы. Я хотел бы получить ваши отзывы о работе конференции - как мы могли бы улучшить систему, помогает ли она лучше воспевать, с большим вниманием. Один преданный, который регулярно повторяет на конференции, написал мне несколько дней назад: «Махарадж, я принял санкалпу. Я буду повторять все свои 16 кругов до 7 часов утра ». Таков один из результатов этой конференции. Я хотел бы услышать от вас не просто «Очень хорошо!» или «Помогает нам», но расскажите, почему это хорошо? Как это помогает? Планируете ли вы также улучшить свое воспевание, поскольку мы постоянно даем вам несколько советов, как лучше воспевать. Каждый день во время джапы я даю вам советы, которые также транскрибируются на английском, хинди и русском языках. Вы можете прочитать их. У нас будет веб-сайт, посвященный беседам о джапе, где вы сможете получить транскрипцию на английском и хинди. Мадхави Гаури Матаджи - разработчик многих наших сайтов. Вы будете уведомлены, когда эта функция будет добавлена на существующий веб-сайт. Тогда вы сможете прочитать там все транскрипции разговоров о джапе. Мы также хотели бы услышать ваши комментарии и вопросы. Сюда иногда приходят сообщения, но в основном это дандаваты. Если вы остаетесь в настроении дандавата, значит будет много дандаватов в течение всего дня. tṛṇād api sunīcena taror api sahiṣṇunā amāninā mānadena kīrtanīyaḥ sadā hariḥ Здесь происходит некоторое общение, но не очень существенное. К тому же это время для воспевания, так что вам не нужно тратить его на то, чтобы печатать или писать. Вы можете сделать это после воспевания. Это также может быть опубликовано. Мы хотим сделать эту конференцию более интерактивной. Сейчас это только одностороннее движение. Я говорю, а вы молчите, так как вы все обеззвучены. Я также слышал, что один из моих духовных братьев, Нарахари Прабхуджи с Гавайских островов, также использует ту же конференцию Zoom, не для джапы, а для чего-то еще. Он упомянул во время нашей дискуссии, что он просит разных участников говорить, задавать вопросы или писать комментарии. Затем он отвечает. Так что это тоже возможно. Нам нужно разобраться, может ли кто-то вести диалог на месте или может ли кто то из вас обратиться к участникам, когда я говорю. Мы также с нетерпением ждем веб-сайта, где будут доступны все публикации. Наша цель - всегда «стараться воспевать внимательно». Кто-то ходит, пока я говорю. Кто-то делает зарядку. Вайбхава делает несколько задач одновременно. Я вижу все эти вещи. Вчера мы слышали одно высказывание Вайшешаки Прабху, который проповедует распространение книг и чтение книг Шрилы Прабхупады. Он отличный читатель и лидер. Заявление было очень глубоким. Он сказал: «Лидер должен быть читателем!» Он хороший или идеальный лидер, потому что он читает. На вчерашнем заседании мы услышали одно заявление, в котором говорится: «Куда направляется внимание, туда направляются потоки энергии». Воспевание - это время быть внимательным, а также время «не быть невнимательным». Как только наше внимание уходит, например, если кто-то открывает дверь, все наше внимание, а также наша энергия уходит в этом направлении. Вы смотрите, начинаете сканировать, кто это? Зачем? Так далее. Потом включается мыслительный процесс. В итоге мы видим этого человека. Остальные органы чувств уходят в этом направлении, чтобы собрать информацию. Чувства собирают информацию. Они собирают информацию, которая достигает ума. Ум вовлекается, начинает обрабатывать информацию или начинает разбирать верно или неверно и т.п. Таким образом, наше тело, чувства, разум и ум направляются туда, куда направляется наше внимание. Куда бы ни направлялось внимание, туда течет энергия. Вот почему мы должны выбрать правильное окружение, правильное общество, правильную асану. Асана - это не только место, где вы сидите, но и место вашего пребывания это также асана. Если эта асана находится в Майяпур дхаме, тогда дхама также становится асаной. Тот, кто вокруг вас, также становится частью вашей асаны. Нужно сесть, и сидеть в асане. Бегать вокруг - это не асана во время джапы медитации. Мы должны иметь нашу асану. Профилактика лучше лечения. Избегайте всякого отвлечения во время воспевания. Принимая это все во внимание, мы садимся на свое место или асану. Без каких-либо тех или иных отвлекающих факторов, чтобы наше внимание не рассеивалось туда и сюда, в противном случае энергия будет утекать. Конечно, все эти темы не маленькие темы. Но просто запомните: куда бы ни направлялось внимание, туда же уходит энергия. Мы не хотим, чтобы наше внимание было направлено на что то еще, кроме Кришны. Быть внимательным – суть всего процесса, основополагающий принцип для воспевающих Мы хотим одним словом сказать, каким должно быть воспевание – ВНИМАТЕЛЬНЫМ (Dhyanpoorvak). Этим много сказано. Хотя мы говорим только одно слово - ВНИМАТЕЛЬНО. Как только возникает невнимательность, энергия уходит в том направлении. Эту практику (abhyas) мы должны делать во время воспевания. Сейчас я должен остановиться и идти вYogapitha. Навадвип-мандала Парикрама Ки Джай. Gaur premanande Hari Hari Bol!