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जप चर्चा –17 मई, 2020 श्री गुरु गौरांग जयतः श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद श्री अद्वैत गदाधर श्री वास गौर भक्त वृन्द । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। आप सभी तैयार हो जप वार्ता के लिए । आज हमारे साथ 802 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। अब तक 805 जगह से आप जप कर रहे हो। आप ने जो चैट सैशन उपलब्ध कराया था जिसमे कई सारे अनुभव बताए गए थे। इस लॉक डाउन के दौरान आप क्या सोचा रहे थे? आपने क्या क्या किया? कुछ अच्छी बाते की, कुछ सेवा की, कुछ साधना की, उसका कुछ लाभ उठाया आपने और फिर भविष्य में, इस लॉक डाउन के उपरांत जिसका अनेक राज्यों में, देशो में, या जिलों में आज कल में समापन होने वाला हैं। जो इस लॉक डाउन समय के दौरान आपने किया या सिखा उसमें से अतिरिक्त क्या कार्य आप भविष्य में करते रहोगे। आप में से कई भक्तों ने इस के बारे में बहुत कुछ लिखा है उसमें से कुछ मैं पढ़ रहा था। आप को भी यह पढ़ना चाहिए यदि आपने कल दिन में यह नहीं पढ़ा होगा । लोक संग में इसका प्रकाशन होता है । जप वार्ता में भी होता है, और कभी चैट सैशन होता है तो उसका अनुवाद जो आप लोग करते हो या लिखते हो उसको भी अपलोड किया जाता है । आज दिन में आप उसे पढिएगा यह आपका आज का गृहकार्य है । लोक संग , चैंट विथ लोकनाथ स्वामी यह फेस बुक पेज है वहां पर आप पढ़ना। और भक्तों के अनुभव, साक्षात्कार, या गुह्यं अख्याती प्रछती जो आप लोगों ने की है उसको जरुर पढ़ना मैं भी पढ़ने की कोशीस करूँगा । ददाति प्रति ग्रहणाति गुह्यं अख्याती प्रछती । भुङ्क्ते भोजयते चैव षड विध प्रीति लक्षणं । । (उपदेशामृत श्लोक 4 ) (भावार्थ- उपहार देकर, उपहार स्वीकार करके, अपने मन की बात कह कर, अन्यों के मन की बात सुनकर, किसी के घर प्रसाद ग्रहण करके, किसी को अपने घर प्रसाद पर निमंत्रित करना यह प्रीति के यह छः लक्षण बताए गए हैं जिन्हें भक्त एक दुसरे के साथ करते हैं । ) आप ये सभी साक्षात्कार जरुर पढ़ना औरों के अनुभवों से आप सभी लाभान्वित होंगे । आप सभी इसे लिख लो और आज दिन में इसको पढ़ ही लेना । भविष्य में आप कभी लिख भी सकते हो या उस भक्त से आप परिचित हो या उनका ईमेल एड्रेस लेकर उन्हें आप धन्यवाद, बधाई या अभिनन्दन प्रभु ऐसा भी कह सकते हो । ये संवाद, संपर्क या प्रीतिलक्षणं भी कहिए बना रहेगा । ये आपके प्रीति का भक्तों से आपका जो प्रेम है उसका भी प्रदर्शन होगा । इसको याद रख कर जरुर से पढ़ना इससे पहले की आप लॉक डाउन हटने के बाद अन्य क्रिया कलापों में व्यस्त हो जाओ। ये लॉक डाउन लगभग बंद होने वाला है आप जानते ही हो क्या क्या होने वाला हैं, क्या – क्या हो रहा है इस दुनिया में, और क्या भरोसा इस जिंदगी का यह भी आप शायद समझ रही होंगे । ऐसी है ये दुनिया और ऐसी है ये दुनियादारी लेकिन हमको दुनिया वाले नहीं बनना हैं। हम इस संसार में कुछ दिन के मेहमान हैं फिर हमें भगवत धाम लौट कर जाना हैं । बाकि लोगों को पता भी नहीं हैं कि हम कौन हैं? क्या हैं? लेकिन आप को पता चल रहा है इसीलिए आप अब जग जाओ तथा यहाँ से आगे बढ़ने की तैयारी करो और उसी तैयारी के अंतर्गत हमारे साथ जप करने वाले भक्तों की संख्या 830 हो चुकी हैं। ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया । चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥ (मंगला चरण) ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः हम गीता लेकर बैठे हैं । शायद आपने देखी होगी या नहीं देखी । गीता का एक या कुछ वचन जिनका मैं जप करते समय स्मरण कर रहा था तथा सोच रहा था कि ये बाते आपके साथ साझा करू । इसीलिए ॐ नमो भगवते और वेसे भी सब समय कह सकते है ॐ नमो भगवते भगवान को नमस्कार, बारम्बार प्रणाम हैं । प्रमाण समझते हो - प्रमाण (पूछते हुए ) क्या प्रमाण हैं? क्या सबूत हैं? ऐसा हम लोग पूछते रहते हैं । शास्त्रों में प्रमाण और फिर प्रमेय कहते हैं । प्रमाण से हम कुछ बातों को सिद्ध करते हैं, कुछ बातों की स्थापना करते हैं । सत्य की स्थापना करते हैं तो उसको प्रमेय हुआ । प्रमाण से हुआ प्रमेय तो इस संसार में कई सारे प्रमाण हैं । श्री जीव गोस्वामी कुछ छोटे मोटे दस प्रमाणों की बात करते हैं । शास्त्रों में दस अलग अलग प्रमाणों का उल्लेख हैं किन्तु मुख्य प्रमाण शास्त्र प्रमाण हैं । भगवत गीता के सोलहवें अध्याय जिसका नाम दैवी तथा आसुरी स्वभाव हैं । दैवी सम्पदा तथा आसुरी सम्पदा । सुर तथा असुर संसार में दो प्रकार के लोग होतें हैं । द्वौ भूतसर्गौ लोकेSस्मिन्दैव आसुर एव च । दैवो विस्तरशः प्रोक्त आसुरं पार्थ मे श्रृणु । । (भगवत गीता 16.6) (भावार्थ - हे पृथापुत्र! इस संसार में सृजित प्राणी दो प्रकार के हैं - दैवी तथा आसुरी । मैं पहले ही विस्तार से तुम्हें दैवी गुण बतला चुका हूँ । अब मुझसे आसुरी गुणों के विषय में सुनो । ) ऐसा भी भगवान ने शायद इसी अध्याय में कहा है । इस संसार में दो प्रकार के लोग होते हैं भगवान ने उनके लक्षण बताएं हैं । दैवीय सम्पदा वाले ऐसे होते हैं असुरी सम्पदा वाले ऐसे होते हैं । लेकिन हमें दैवीय सम्पदा वाला होना चाहिए असुरी सम्पदा वाले नहीं । न मां दुष्कृतिनो मूढाः प्रपद्यन्ते नराधमाः । माययापहृतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिताः । । (भगवत गीता 7.15) (भावार्थ - जो निपट मुर्ख है, जो मनुष्यों में अधम हैं, जिनका ज्ञान माया द्वारा हर लिया गया है तथा जो असुरों की नास्तिक प्रकृति को धारण करने वाले हैं, ऐसे दुष्ट मेरी शरण ग्रहण नहीं करते । ) ऐसा भगवान ने कहा है कि वो नर अधम है नरों में अधम है । माया ने उनका ध्यान चुरा लिया है ये असुरी सम्पदा वाले लोग मूढ़ है । इस अध्याय के अंत में हमारे पास समय सिमित होता है इसीलिए पूरा विस्तार से इस चैट सैशन में नहीं कह पाते हैं । तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ । ज्ञात्वा शास्त्रविधानोक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि । । (भगवत गीता 16.24) (भावार्थ- अतएव मनुष्य को यह जानना चाहिए कि शास्त्रों के विधान के अनुसार क्या कर्तव्य है और क्या अकर्तव्य है । उसे विधि-विधानों को जानकर कर्म करना चाहिए जिससे वह क्रमशः ऊपर उठ सके । ) मै कहने ही वाला था कि दस अलग अलग प्रमाण आते हैं उनमें प्रत्यक्ष प्रमाण प्रमुख हैं । संसार का विश्वास, शास्त्रोभ्य का विश्वास, दुनिया वालों का विश्वास प्रत्यक्ष प्रमाण होता है । प्रत्यक्ष मतलब प्रति अक्ष, आँखों के समक्ष जो भी हे उसे मैं देख सकता हूँ, स्पर्श करके, सुनकर के, महसूस कर सकता हूँ। दुसरे शब्दों में कहा जा सकता है – इन्द्रिय । इन्द्रियों के भी दो प्रकार बताए गए हैं – ज्ञानेन्द्रियाँ तथा कर्मेन्द्रियाँ । ज्ञानेन्द्रियाँ – इस शरीर में ज्ञान इन्द्रिय हैं । उन पांच ज्ञानेन्द्रियाँ की मदद से हम जो भी ज्ञान प्राप्त करते हैं वह प्रत्यक्ष प्रमाण होता है । ज्ञान प्राप्त करने का यह एक प्रकार है, इस दुनिया या संसार में यही एक मुख्य प्रकार है । जो भी हम देखते है, सूंघते है, अनुभव करते हैं वही है अन्यथा वह नहीं है । तभी संसार के लोग प्रत्यक्षवादी बनते हैं । असुर प्रत्यक्षवादी होते है और सूर परोक्षवादी होते है । परोक्ष का ज्ञान प्राप्त करना है । हमारी आँखों या हमारी इन्द्रियों से परे जो ज्ञान है उसे प्राप्त करना हैं । शास्त्र प्रमाण है । इस संसार के लोग अधिकतर प्रत्यक्ष प्रमाण को ही मानते हैं । जो हमें दिखाई नहीं देता, जिसे हम स्पर्श नहीं कर सकते, जिसे हम सूंघ कर उसके ज्ञान का पता नहीं लगा सकते वह है ही नहीं, उसका अस्तित्व ही नहीं है । तुम कहते हो की तुम्हारा भगवान् है । कहाँ पर है तुम्हारा भगवान् दिखाओ । अगर तुम उसे दिखा नहीं सकते तो वह है ही नहीं । इसीलिए आप नहीं दिखा सकते । असुरी प्रवृति के लोगों या जनों का यह हाल हैं । उनका पूरा विश्वास इन्द्रियों की ज्ञान प्राप्त करने की शक्ति या सामर्थ्य पर है । अतएव श्री कृष्ण नामादि, न भवेद ग्राह्यं इंद्रियें। सेवनमुखे ही जिव्हादो स्वयमेव स्फूर्तयदा।। (भक्तिरसामृत सिन्धु) शास्त्रों में कहा है कि भगवान के नाम, रूप, गुण, लीला को इन्द्रियों के माध्यम से या मदद से जाना नहीं जा सकता । आप शास्त्रों की बात सुनो और फिर वैसे ही करो जैसे शास्त्र कहते है कि जिव्हा से भगवान की सेवा करो । कैसे करोगे आप (पूछते हुए ) :- हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। और हम क्या कर सकते है जिव्हा से प्रसाद ग्रहण कर सकते है। प्रसाद का नाम सुनते ही आपके चेहरे पर हास्य और उल्लास। महा प्रशादे गोविन्दे कहते ही आप जग जाते हो। छलांग मार के दौड़ते है पहले मै और ॐ नमो भगवते वासुदेवाय कहते ही नींद प्रारम्भ होती है। यह एक बहुत ही गंभीर विषय है। दुनिया का विश्वास है असुरों का विश्वास है , अपनी इन्द्रियों में प्रत्यक्ष ज्ञान में और वैष्णवों का और भक्तो का विश्वास है, शास्त्रों में। जो शास्त्रों के प्रमाण को स्वीकार करते है अपनाते है। यदि व्यक्ति जिव्हा से भगवान् का नाम लेता है या गान गाता है और प्रशाद भी ग्रहण करता है तो इससे क्या होगा (पूछते हूए) भगवान् स्वयं प्रकट होंगे और ऐसे व्यक्ति को धीरे धीरे भगवान् की उपस्थिति का ज्ञान या अनुभव होने लगेगा। और अंततोतत्व भगवान् से मिलन होगा। ये संभव है और अधिकार भी है हर जीव का । भगवद प्राप्ति करना और भगवान् का दर्शन करना मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मै उसको प्राप्त करके ही रहूँगा उत्साह निश्चय और धैर्य के साथ। ऐसे ही हमारे आचार्य भी घोषणा करते है। लोकमान्य तिलक ने और कई घोषणा की वह समझते नहीं थे। कार्य कार्य व्यवस्थितौ। क्या करना चाहिए मतलब क्या करने योग्य है और क्या नहीं करने योग्य है इसका पता कैसे चलता है की ऐसा कार्य करना चाहिए और ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए। इसका निर्धारण कैसे होगा " शास्त्र प्रमाणन्ते " शास्त्र बताएगा, या शास्त्र की बात हमको आचार्य बताएंगे, सिखाएंगे, समझायेंगे। गुरुकुल में जाकर क्या प्रारम्भ होता है विद्यार्जन होता है शास्त्रों का अध्यन होता है। एकम शास्त्रं देवकीपुत्र गीतम। गीता शास्त्र है भागवतम शास्त्र है , वेद पुराण, उपनिषद् , वेदांत सूत्र , महाभारत , महा पुराण , महा भागवत ये सब शास्त्र है। यदि ये शास्त्र भगवान् नहीं कहते अर्जुन को या अन्य भक्तो को समय समय पर तोह इस संसार को या संसार वालों को भगवान् का पता बिलकुल भी नहीं लगने वाला था। भगवान का भी पता नहीं चलता , वैकुण्ठ का भी पता नहीं चलता। स्वर्ग का भी कैसे पता चलेगा। इस संसार और इस सृष्टि की रचना कैसे हुई ये एक बहुत बड़ा सवाल संसार के समक्ष होता। किसको पता चला की इस संसार की रचना कैसे हुई है सिर्फ उन्ही को पता चला है जिन्होंने शास्त्र पढ़ा है। गीता भागवत वेद पुराण को शास्त्र कहते है भगवान् इनको शास्त्र कहते है। आचार्यों ने भी गीता भागवत को शास्त्र कहा है। दुनिया वाले किसको शास्त्र कहते है। उनकी नज़र में भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान ये शास्त्र है। हम जब हाई स्कूल में थे तोह वहा भी हमे शास्त्र पढ़ाया जाता था। उसमे भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, जीवविज्ञान, और वनस्पति विज्ञान पढ़ाया जाता था । यह संसार इसको शास्त्र कहता है। उनका जो प्रत्यक्ष वाद का सम्भन्ध का जो ज्ञान है। जो उन्होंने प्राप्त किया या ईखठा किया है। अपने ही इन्द्रियों की शक्तियों, सामर्थ्य को बढाकर भी इन आँखो से तो बहुत कुछ नहीं दिखाई देता तोह क्या करो। इन आँखों की शक्ति सामर्थ्य को बढ़ाओ और सूक्ष्म दर्शक का उपयोग करो ताकि जो सूक्ष्म जीव है कीटाणु है वायरस है इसके चरित्र को हम पढ़ेंगे और फिर चरित्रवान होंगे हम। कैसा चरित्र होगा हमारा उस कीटाणु जैसा ही होगा। एक व्यक्ति न्यूज़ीलैंड गया और वहा उसे शायद अधिक जीव जंतु मिले होंगे। इसलिए उसकी पढाई के लिए वहा गया कई सारे साल बिताये। खूब पढाई करि और फिर उसको पद्वी मिली। डॉ. वोरमोलॉजिस्ट । कीड़े को अंग्रेजी में वोर्म कहते है तो ये कौन है पीएचडी डॉ. वोरमोलॉजिस्ट। जब उनका भारत में आगमन हुआ। हवाई अड्डे पे उनके स्वागत के लिए पत्रकार उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे कौन आ रहे है डॉ. वोरमोलॉजिस्ट आ रहे है। पिछले दस बीस सालों से अध्ययन कर रहे थे क्या अध्ययन कर रहे थे और किसका अध्ययन कर रहे थे जीव जंतुओं का कीड़े मकोड़ों का जो गटर में होते है और पता नहीं कहा कहा रहते है । ये साइंटिस्ट है जो वे पढ़ते है ये शाश्त्र है जिसको पढ़ाते है वोह शाश्त्र है विज्ञानं है। गीता भागवत शास्त्र नहीं है। ये मिथ्या है। ये केवल भावुकता ही है। ऐसा भी संघर्ष है संसार में। कौनसा शास्त्र, शास्त्र है। भगवान् तो गीता भागवत को शाश्त्र कहते है और सुना भी रहे है और सुनाते सुनाते सोहलवें अध्याय के अंत तक पोहोंचे है भगवान्। कही हुई बातों को भगवान् शास्त्र कह रहे है । मै जो तुमको सुना रहा हु हे अर्जुन और दुनिया के सभी लोगों के लिए मै सुना रहा हु ये शास्त्र है और ये शास्त्र क्या है अधिकार है प्रमाण है। कभी कभी हम ये पूछते है की ये जो भी तुम कह रहे हो ये शास्त्रीक है क्या महाराष्ट्र में काफी चलता है जो भी बात होनी चाहिए शास्त्रोक्त बात होनी चाहिए। शाश्त्र जमा उक्त शाश्त्रोक्त इसका मतलब है शास्त्रों से उक्त। फिर कौनसे शास्त्रों से उक्त है गीता भागवत से उक्त है। तुकाराम महाराज भी तो कहा है : गीता भागवत करिती श्रवण , अखण्ड चिंतन विठोबा चे। शास्त्रों को उल्लेख नहीं किया असल में लेकिन आचार्यों के अनुसार और तुकाराम भी आचार्य रहे है , या रामानुज आचार्यं , विष्णु स्वामी , निम्बार्क आचार्य इनके अनुसार गीता भागवत वेद पुराण ये शास्त्र है। यदि ज्ञान प्राप्त करना है तो शास्त्रों से ज्ञान प्राप्त करो। इसीलिए ऐसे शास्त्रों को शास्त्र चक्षु शास्त्र कहते है फिरर देखो दिखाई देगा। तब दिखाई देगा ऐसी बातें दिखाई देगी जो इन आँखों से दिखती नहीं और ऐसे बातें सुनाई देंगी जो इन कानो से सुनने की संभावना नहीं है। ऐसी बातों को, व्यक्तियों को हम ऐसी त्वचा से स्पर्श नहीं कर पाएंगे ऐसी बातों को सुनने की हम में क्षमता नहीं है और ये सारा ऐसा अनुभव है शास्त्र चक्षु शास्त्र का चश्मा पहनो और फिर बहुत कुछ दखाई देगा जो इन आँखों से दिखता नहीं है। इसलिए भी हम लोग कहते रहते है ओम अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया । चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥ गुरुजन क्या करते है ज्ञान का अंजन शाश्त्र का अनजन हमारी आँखों में डालते है तब हमको दृष्टि प्राप्त होती है तब हमको दिखने लगता है। संसार के साधु शास्त्र आचार्य ये सब प्रमाण है। क्योंकि शास्त्र को वे स्वयं ही सीखे समझे उनको साक्षात्कार हुआ है तोह उसी को फिर साधु समझाते है साधु संग साधु संग सब शास्त्र कय । लव् मात्र साधु संगे सर्व सिद्धि होय ।। हम सिद्ध होंगे। यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः । न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम् ॥ (भगवद गीता १६ अध्याय २३ श्लोक ) ( भावार्थ:- जो शास्त्रों के आदेशों की अवहेलना करता है और मनमाने ढंग से कार्य करता है, उसे न तो सिद्धि, न सुख, न ही परम गति की प्राप्ति हो पाती है ) भगवान् ही कहे है श्लोक संख्या २३ भगवद गीता अध्याय सोहळा में । तो २३ और २४ इस अध्याय के आखरी दो श्लोक इस अध्याय के। जिसमे शास्त्र है। जो लोग शास्त्रों के विधि को ठुकरा के बहुत ही व्यस्त है। सारा संसार दिन और रात व्यस्त चल रहा है। कार्य तोह कर रहे है लेकिन शास्त्रों के विधि को उसको टाल के उसको ना मानकर। फिर क्या होगा भगवान् कहे है। ऐसा व्यक्ति कभी सिद्ध नहीं होने वाला पूर्ण प्राप्ति को कभी प्राप्त नहीं करने वाला है। वह सफल नहीं होने वाला है। वैसे सफल और असफल की अलग अलग परिभाषा है। न सुखम न वाप्नोति। उसे सुख कभी नहीं प्राप्त होगा। और न परमगति , परमगति को भी प्राप्त नहीं होगा। परम गति क्या है भगवद्धाम लौटना भगवान के चरणों की सेवा भी परमगति है। और ऐसे भगवान् जहा सदैवं रहते है ऐसे धाम की प्राप्ति ये कभी नहीं प्राप्त करने वाला है। इसीलिए भगवान् कह रहे है । तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ । ज्ञात्वा शास्त्रविधानोक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि ॥(भगवत गीता १६ अध्याय २४ श्लोक ) (भावार्थ:- अतएव मनुष्य को यह जानना चाहिए कि शास्त्रों के विधान के अनुसार क्या कर्तव्य है और क्या अकर्तव्य है । उसे विधि-विधानों को जानकर कर्म करना चाहिए जिससे वह क्रमशः ऊपर उठ सके।) इसीलिए हे अर्जुन शास्त्रों की बात को मानो मेरे शास्त्रों को पढ़ो। शास्त्रों को पाठ्यक्रम बना दो और फिर सीखो शास्त्र। शिक्षा दीक्षा गुरुओं से आचार्यों से। इसका अध्यन इस शास्त्र का अध्यन करने के लिए मनुष्य जीवन है। तोह फिर जब हम शाश्त्र को पढ़ेंगे मतलब भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान ये सब पढ़ लिया , मिश्र और धातु विज्ञान और आजकल क्या क्या पढ़ रहे है हम। मनु शाश्त्र पढ़ लिया। जो मनु शास्त्र पढ़ते है उन्हें कभी मन समझ नहीं आता है। अगर मन समझना है तोह भगवान् से ही समझना होगा। शास्त्रों से समझना होगा। अन्यथा इन दुनिया वालों को मन का ही पता नहीं है। और मन तोह इतना सूक्ष्म तत्व है। स्थूल बातों का तोह समझ भी आ जाता है लेकिन सूक्ष्म बातों का नहीं । अति सूक्ष्म तोह आत्मा है। पृथ्वी , आग , वायु , आकाश , मन बुद्धि अहंकार और फिर आत्मा और फिर हम स्थूल की ओर से, स्थूल समझते हो। तोह पृथ्वी से फिर आप जल की ओर जल से अग्नि की ओर और फिर अग्नि से हवा की ओर आकाश की ओर जाते हैं तो ये सूक्ष्म बात है। सूक्ष्म होते जाते है ये तत्व और फिर सूक्ष्म है मन उससे भी सूक्ष्म बुद्धि। बुद्धि एक तत्व है बुद्धि भगवान् की शक्ति है बहिरंगा शक्ति। और अहंकार भी भगवान् की एक शक्ति है। अहंकार को भी कौन जानता है। फिर शास्त्र विधि ज्ञात्वा शास्त्रविधानोक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि। शास्त्रों के विधान या शास्त्रों में कहे हुए विधान को जानकार कर्म कर्तुमिहार्हसि तुम्हे अपना कार्य तब करना है जब तुम शास्त्रों को पढ़े हो। गीता भागवत को पढ़े हैं। गीता भागवत को पढ़कर कार्य प्रारम्भ करो। फिर शास्त्र बतलायेगा कार्य अकार्य व्यवस्थितौ। ये कार्य है ये अकार्य है। ऐसा नहीं करना चाहिए। ये विधि है ये निषेध है ये शास्त्र ही बताएगा। फिर ये जो गीता भागवत के अलावा और जो शास्त्र है तथा कथित शास्त्र। जो शास्त्रों को जानता है उसे क्या कहते है शास्त्रज्ञ। भौतिक शास्त्र भी है और आध्यात्मिक शास्त्र भी है लेकिन दोनों में बहुत अंतर है कितना अंतर् है जमीन और आसमान जितना। तो भौतिक शास्त्र जो है वे प्रमाण है, वे अधिकार है ऐसा घोषित तोह करते है और सारी दुनिया की मस्तिष्क की धुलाई करि हुई है इन शास्त्रज्ञों ने और दुनियां भी अपनी मुंडी हिलाती रहती है। जो भी शास्त्रज्ञ कहता है उन्ही की हाँ में हाँ मिलाते रहते हैं। इस संसार के जो भौतिक शास्त्रज्ञ है उसमे दोष है जो मुख्य दोष कहे है वे भ्रम विप्रहिंसा कर्ण पाठव् वैसे ये चार है। ये बहुत ही महत्वपूर्ण है। चैतन्य चरित्रमृत के प्रारम्भ में कृष्णदास कविराज गोस्वामी लिखते है। संसार के जो शास्त्रज्ञ है उनमे चार दोष है इसीलिए हम भगवान् के भक्त इसको नहीं मानते उनके विचार धरा को या जो वह सिखाते है तो क्या दोष है वे भ्रम में है वह गलती करते रहते है। गलतियों पे गलतियां होती रहती है उनसे। वह भ्रम में है। उन्हें ये नहीं पता की वे स्वयं है कौन। देहात्मबुद्धि में फसे रहते है। ठगाने की प्रवर्ति उनमे है। जैसे प्रभुपाद कहते थे दो ही प्रकार के लोग है इस संसार में एक वह जो ठगाते है और दूसरे जो ठग जाते है। ये सारी मंडली ठग है। जो भी गीता भागवत को नहीं मानते इन शास्त्रों को नहीं मानते और दूसरा भौतिक शास्त्रों को लेकर बैठे है। और बड़ी बड़ी उपाधि लेकर कहते है की हम साइंटिस्ट है हम शास्त्रज्ञ है लेकिन आप ठग हो शास्त्र कहता है या गीता भागवत कहता है और चौथी बात क्या है कर्ण पाठव , कर्ण मतलब हमारी इन्द्रियां ज्ञान इन्द्रियाँ वे कुशल नहीं है या सक्षम नहीं है ज्ञान प्राप्ति के लिए। इंद्रियां पूरी तरह से दोषपूर्ण हैं। तोह ज्ञान प्राप्ति के साधन में ही दोष है त्रुटि है आभाव है तोह उस से जो ज्ञान हम प्राप्त करेंगे उसमे भी क्या होगा दोष होगा त्रुटि होगी आभाव होगा। मुख्य रूप से ये चार बातें बताई जाती है। इसलिए सवधान भी रहना है संसार के जो प्रमाण है जो अधिकार है उसके रूप में कई सारे अधिकार है इस संसार में तोह सब होशियार है हमेशा यही कहते है मुझे पता है। तोह ये समस्या उनके साथ है भ्रम विप्रहिंसा और कर्ण पाठव्। प्रमाण कौनसा है शास्त्र प्रमाण। इसलिए प्रभुपाद कहे किताबें आधार हैं। ग्रन्थ ही आधार है। तोह फिर पढ़नी चाहिए की नहीं। तोह प्रभुपाद के ग्रन्थ पढ़ेंगे गीता भागवत पढ़ेंगे चैतन्य चरित्रमृत पढ़ेंगे वैदिक वांग्मय पढ़ेंगे। और भी प्रमाण है। ये सब जानकर हमे हमारी सारी दिन चरियाँ जो है शास्त्र के आधार पर या साधु शास्त्र आचार्य के आधार पर हमे निर्धारित करना है। निताई गौर प्रेमानन्दे हरी हरी बोल परम् पूज्य लोकनाथ स्वामी महाराज की जय।

English

17 May 2020 Wake up and prepare yourselves to return to Godhead! Are you ready for the Japa Talk? Walk your talk! Chanting is taking place in 805 locations. Yesterday I asked you to share your realisations during the lockdown. What did you do during lockdown? What were you thinking before it and what are you going to do in the future? 100’s of devotees have written. This is published on Loksanga. Please read all the statements. You will learn from the experiences of others. I will also try to read all of them. Just remember that and read it during the day. If you have further comments then you can write in the future. If you know someone and want to communicate with that devotee and say thank you, then you can do so if you know his email address. Love amongst devotees will increase by doing so. Do this before the lockdown is over. We don't know what is going to happen in this world. This is the reality of the world. We are guests over here for some days. We have to return to Godhead. Many people don't know what to do. You know now. Wake up and prepare yourselves to return to Godhead. Now 830 locations are in preparation. om ajnana-timirandhasya jnananjana-salakaya caksur unmilitam yena tasmai sri-gurave namah Translation I was born in the darkest ignorance, and my spiritual master opened my eyes with the torch of knowledge. I offer my respectful obeisances unto him. om namo bhagavate vasudevaya I'm sitting here along with the Gita and I was thinking to share some statements from the Gita with you. We can also say om namo bhagavate vasudevaya again and again as we offer obeisances to the Lord. Do you understand praman, proof, or evidence? We keep on asking this. From evidence, we make things true. Then it becomes prameya or theory or a theorem. Srila Jiva Goswami has written 10 pramans. The main praman is Sastra praman. The 16th chapter of Bhagavad-Gita is entitled Divine and Demoniac Qualities. There are 2 kinds of people in the world and the Lord describes the symptoms of such people. Divine people are like this and demoniac people are like that. na mam duskrtino mudhah prapadyante naradhamah mayayapahrta-jnana asuram bhavam asritah Translation Those miscreants who are grossly foolish, lowest among mankind, whose knowledge is stolen by illusion, and who partake of the atheistic nature of demons, do not surrender unto Me.[ BG 7.15] Demoniac people are foolish and their knowledge has been covered by illusion or Maya. tasmac chastram pramanam te karyakarya-vyavasthitau jnatva sastra-vidhanoktam karma kartum iharhasi Translation One should understand what is the duty and what is not duty by the regulations of the scriptures. Knowing such rules and regulations, one should act so that he may gradually be elevated. [ BG 16.24] Krsna has said tasmac chastram pramanam te. Among the ten pramana Pratyaksh pramana (direct perception) is also there. Mostly in this world, people see everything through Pratyaksh pramana. Scientists also go this way. They use their senses. There are knowledge acquiring senses and we get knowledge by these senses. The knowledge which we acquire from the senses is called Pratyaksh pramana. In this world mostly people accept the truth through their senses. Hence such people become pratyakshavadi. Demons are pratyakshavadi while demigods are parokshavadi (knowledge beyond sense perception). Our main goal is to gain this. For that scriptures are evidence. Most of the people in this world believe in direct perception. If they can't see or smell it then they don't believe it exists. They say if you can't show it, then it doesn't exist. This is the condition of people with a demoniac mentality. ataḥ śrī-kṛṣṇa-nāmādi na bhaved grāhyam indriyaiḥ sevonmukhe hi jihvādau svayam eva sphuraty adaḥ Translation: "No one can understand the transcendental nature of the name, form, quality and pastimes of Śrī Kṛṣṇa through his materially contaminated senses. Only when one becomes spiritually saturated by transcendental service to the Lord are the transcendental name, form, quality and pastimes of the Lord revealed to him." (Bhakti-rasāmṛta-sindhu 1.2.234) We can't understand the Lord with our senses, but you can hear the scriptures and act accordingly. And what do the scriptures say? You serve the Lord with the tongue. How? Chant Hare Krishna and honour prasada. Hearing prasada you awaken, jump up and run and when we say om namo bhagavate vasudevaya then you sleep. This is a very serious matter. Demons believe in direct perception and demigods believe in scriptures. If we serve the Lord with our senses and honour prasada then we will experience the Lord and in the end, we will shake hands with the Lord just like Lord Brahma. This is the right of every living entity and one should do so with enthusiasm and patience. Our Acaryas made this announcement, but Lokamanya Tilak made some other announcement. He didn't understand this. kāryākārya-vyavasthitau What is worth doing and what is not? How will it be decided? Scriptures tell us or things from scriptures will be told by acaryas. As you go to Gurukul then there will be the study of scriptures. Bhagavad-Gita, Upanishads, Mahabharata are all scriptures. If the Lord had not spoken the Bhagavad-Gita then we wouldn't have known about the Lord and Vaikuntha. We wouldn't have known about hell and heaven. How creation took place? This is a big question. This can only be known to those who read scriptures. Acaryas have recognised Bhagavad-Gita as a scripture, but people of this world consider Physics and Chemistry as scriptures. When we were in school there were lectures of Sastra (Physics, Chemistry, Biology, and Botany). If you can't acquire knowledge by your senses then increase their capacity by using a microscope and see the virus. How will your character be? Like that virus. One person went to New Zealand. He studied one worm and then he got a degree as a Wormologist. He was studying worms and insects which are there in sewage pipelines and this is considered science or scripture. People consider Bhagavad-Gita as sentimental. When the Lord reached the end of the 16th chapter He declared that this is a scripture and this is evidence. In Marathi, we say if this is sastrokta, or is it mentioned in scriptures? Tukaram Maharaja has also said this. Gita Bhagwat kariti sravanam, Akhand chintan vithoba che Ramanujacarya, Madavacarya, Vishnu Swami, Nimbakacarya have all mentioned Gita Bhagwat as scriptures. See with the help of sastra-chaksus or through the eyes of the scriptures. Then you will be able to see things which you can't see with the help of the eyes or you can touch things which you can't touch with a sense of touch. om ajnana-timirandhasya jnananjana-salakaya caksur unmilitam yena tasmai sri-gurave namah Gurus give this ointment of knowledge and then we can see. Hence Sastra, sadhu, acaryas are praman or proofs. They have realized it and they explain it. sādhu-saṅga', 'sādhu-saṅga' sarva-śāstre kayaya Lava-mātra sādhu-saṅge sarva-siddhi haya Translation: “The verdict of all revealed scriptures is that by even a moment’s association with a pure devotee, one can attain all success.(CC Madhya 22.54) yaḥ śāstra-vidhim utsṛjya vartate kāma-kārataḥ na sa siddhim avāpnoti na sukhaṁ na parāṁ gatim Translation He who discards scriptural injunctions and acts according to his own whims attains neither perfection, nor happiness, nor the supreme destination.[ BG 16.23] Those people who reject injunctions of scriptures and are busy day and night working, what will happen with them? Such people will not get perfection, happiness, and the highest destination. What is the highest destination? Returning back to Godhead is the highest destination. Such people won't get it. Hence the Lord is asking us to read and understand scripture from Siksa and Diksa Guru. Human life is there to study these scriptures. We learn Physics, Chemistry, Metallurgy, and Psychology. We try to study the mind which is very difficult to understand. The mind is very subtle. Much more subtle is the soul. Elements get subtler as we go towards mind, intelligence, false ego, and then the soul. Intelligence is an element and it is one of the energies of the Lord. False ego is also one of the energies. Who knows false ego? jñātvā śāstra-vidhānoktaṁ karma kartum ihārhasi We should act by knowing scriptures and by reading Srila Prabhupada’s Gita and Bhagavatam. Scriptures will tell you what to do and what not to do. Apart from Gita and Bhagavatam, there are other sciences. There are Bhautik Sastras (Material Science) and Adhyatmika Sastras (Spiritual Science) There is so much difference between them. Material scientists brainwash. There are 4 defects in such people bhrama, pramāda, vipralipsā, karaṇāpāṭava īśvarera vākye nāhi doṣa ei saba Translation: “The material defects of mistakes, illusions, cheating, and sensory inefficiency do not exist in the words of the Supreme Personality of Godhead.[ CC_Adi_7.107] This is very important. Krishna Dasa Kaviraja Goswami has explained in Caitanya-caritamrta. They keep on committing mistakes. They are in illusion. They don't know their identity. They have cheating propensities. Srila Prabhupada used to say there are cheaters and cheated. Even if they have big degrees, scriptures call them cheaters if they don't believe in Gita and Bhagavatam. Imperfect senses include 4th defects. If the source from which we get the knowledge is defective, then the knowledge we get is also defective. In Kaliyuga everyone acts as an authority. Scriptures are praman and Srila Prabhupada says books are the basis. So we have to read the scriptures like Bhagavad-Gita and Caitanya-caritamrta. Hence we should live our lives as per saintly persons, scriptures and the acarya Nitai Gaur Premanande Hari Haribol

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Наставления после совместной джапа сессии 17 мая 2020. ПРОСНИТЕСЬ И ПРИГОТОВЬТЕСЬ К ВОЗВРАЩЕНИЮ К БОГУ! Готовы ли вы к разговору о джапе? Поучаствуйте в разговоре! Воспевание происходит в 805 местах. Вчера я попросил вас поделиться своими реализациями во время карантина. Что вы делали во время карантина? О чем вы думали до этого и что будете делать в будущем? Нам написали сотни преданных. Все опубликовано на Локсанге. Пожалуйста, прочитайте все сообщения. Вы будете учиться на опыте других. Я также постараюсь прочитать их все. Просто запомните это и читайте в течение дня. Если у вас есть дополнительные реализации, вы можете написать в будущем. Если вы знаете кого-то и хотите общаться с этим преданным и сказать спасибо, вы можете сделать это, если знаете его адрес электронной почты. Благодаря этому любовь к преданным возрастет. Сделайте это до окончания карантина. Мы не знаем, что произойдет в этом мире. Это реальность этого мира. Мы здесь ненадолго. Мы должны вернуться к Богу. Многие люди не знают, что делать. Теперь вы знаете. Проснитесь и приготовьтесь к возвращению к Богу. Сейчас 830 мест подключения находятся в стадии подготовки. ом аджнана-тимирандхасйа джнананджана-шалакайа чакшур унмилитам йена тасмаи шри-гураве намах Перевод: Я был рожден во тьме невежества, но мой духовный учитель открыл мне глаза, факелом знания рассеяв мрак невежества. Я в глубоком почтении склоняюсь перед моим Духовным Учителем. (молитва духовному учителю, Мангалачарана) ом намо бхагавате васудевайа Я сижу здесь вместе с Гитой, и я думал поделиться некоторыми высказываниями из Гиты с вами. Мы также можем снова и снова произносить «ом намо бхагавате васудевайа», предлагая поклоны Господу. Вы понимаете что означает прамана - подтверждение или доказательство. Мы продолжаем задавать вопросы. Получая доказательства мы понимаем, что это правда. Тогда это становится праманой или теорией или теоремой. Шрила Джива Госвами написал 10 праман. Основная прамана - это шастра прамана. 16-я глава Бхагавад-гиты называется «Божественные и демонические натуры». В мире есть 2 вида людей, и Господь описывает качества таких людей. Божественные люди такие, а демонические люди такие. на мам душкр̣тино мудхах прападйанте нарадхамах майайапахрта-джнана асурам бхавам ашритах Перевод Шрилы Прабхупады: Невежественные глупцы, низшие из людей, те, чье знание украдено иллюзией и кому присуща безбожная природа демонов, — все эти грешники не предаются Мне. (Б.Г. 7.15.) Демонические люди глупы, и их знания покрыты иллюзией или майей. тасмач чхастрам праманам те карйакарйа-вйавастхитау джнатва шастра-видханоктам карма картум ихархаси Перевод Шрилы Прабхупады: Поэтому именно на основе священных писаний определи, что следует делать, а чего делать не следует. Изучив содержащиеся в них указания и правила, действуй так, чтобы постепенно достичь духовных высот. (Б.Г. 16.24) Кришна сказал тасмач чхастрам праманам те. Среди десяти праман также есть пратьякша прамана (прямое восприятие). В основном в этом мире люди видят все через пратьякша праману. Ученые тоже идут по этому пути. Они используют свои чувства. Есть знания, получаемые чувствами, и мы получаем знания этими чувствами. Знание, которое мы получаем от чувств, называется пратьякша прамана. В этом мире люди в основном принимают истину своими чувствами. Следовательно, такие люди становятся пратьякшавади. Демоны - это пратьякшавади, а полубоги - парокшавади (знание за пределами чувственного восприятия). Наша главная цель - добиться этого. Ибо Священные Писания являются доказательством. Большинство людей в этом мире верят в прямое восприятие. Если они не могут видеть или чувствовать запах чего-то, они не верят, что это существует. Они говорят, что если ты не можешь показать это, то этого не существует. Это состояние людей с демоническим менталитетом. атах шри-кр̣шна-намади на бхавед грахйам индрийаих севонмукхе хи джихвадау свайам эва спхуратй адах̣ Перевод Шрилы Прабхупады: «Кришну невозможно постичь с помощью грубых материальных органов чувств. Но Он Сам открывает Себя Своим преданным, довольный их трансцендентным любовным служением Ему.» (Бхакти-расамрита-синдху, 1.2.234). Мы не можем понять Господа своими чувствами, но вы можете услышать Священные Писания и действовать соответственно. А что говорится в Священных Писаниях? Вы служите Господу языком. Как? Повторяя Харе Кришна и почитая прасад. Услышав слово прасад, вы просыпаетесь, вскакиваете и бежите, а когда мы говорим «ом намо бхагавате васудевайа», вы засыпаете. Это очень серьезный вопрос. Демоны верят в прямое восприятие, а полубоги верят в Священные Писания. Если мы будем служить Господу своими чувствами и почитать прасад, тогда мы однажды почувствуем Господа и, в конце концов, мы пожмем руки Господу, точно так же, как это делал Господь Брахма. Это право каждого живого существа, и нужно делать это с энтузиазмом и терпением. Наши ачарьи дали такое наставление, но Локаманья Тилак дал другое наставление. Он этого не понял. карйакарйа-вйавастхитау Что стоит делать, а что нет? Как в этом разобраться? Священные Писания говорят нам или ачарьи будут рассказывать что-то из Священных писаний. Когда вы пойдете в Гурукулу, тогда вы будете изучать Священные Писания. Бхагавад-Гита, Упанишады, Махабхарата - все это писания. Если бы Господь не поведал Бхагавад-Гиту, мы бы не знали о Господе и Вайкунтхе. Мы не знали бы об аде и рае. Как произошло творение? Это большой вопрос. Это могут знать только те, кто читает Священные Писания. Ачарьи признали Бхагавад-гиту как писание, но люди этого мира считают физику и химию писаниями. Когда мы были в школе, были лекции Шастры (физика, химия, биология и ботаника). Если вы не можете получить знания своими чувствами, увеличьте их возможности с помощью микроскопа и посмотрите на вирус. Какой будет ваш объект? Как этот вирус. Один человек отправился в Новую Зеландию. Он изучал одного червя, а затем получил степень доктора биологии. Он изучал червей и насекомых, которые есть в канализационных трубопроводах, и это считается наукой или писанием. Люди считают Бхагавад-гиту сентиментальной. Когда Господь достиг конца 16-й главы, Он сказал, что это священное писание и это доказательство. На маратхи мы говорим, это шастрокта, или это упоминается в Священных Писаниях. Тукарам Махарадж также сказал это. гита бхагавад карити шраванам, акханд чинтан витхоба че Рамануджачарья, Мадхвачарья, Вишну Свами, Нимбакачарья - все упоминали Бхагавад Гиту как писание. Смотрите с помощью шастра-чакшу или глазами Священных Писаний. Тогда вы сможете увидеть то, что вы не можете увидеть с помощью глаз, или вы можете прикоснуться к вещам, которых вы не можете коснуться с помощью чувства осязания. ом аджнана-тимирандхасйа джнананджана-шалакайа чакшур унмилитам йена тасмаи шри-гураве намах Перевод: Я был рожден во тьме невежества, но мой духовный учитель открыл мне глаза, факелом знания рассеяв мрак невежества. Я в глубоком почтении склоняюсь перед моим Духовным Учителем. (молитва духовному учителю, Мангалачарана) Гуру дают этот бальзам знания, и тогда мы можем видеть. Следовательно, шастры, садху, ачарьи являются праманами или доказательствами. Они осознали это и объясняют это. садху-санга, садху-санга — сарва-шастре кайа лава-матра садху-санге сарва-сиддхи хайа «Как гласят все священные писания, даже мимолетного общения с чистым преданным может оказаться достаточным для достижения полного успеха». (Ч.Ч. Мадхья-лила 22.54) йах шастра-видхим утсрджйа вартате кама-каратах на са сиддхим авапноти на сукхам на парам гатим Перевод Шрилы Прабхупады: Тот же, кто пренебрегает указаниями священных писаний и действует по собственной прихоти, не достигает ни совершенства, ни счастья, ни высшей цели. (Б.Г. 16.23) Те люди, которые отвергают предписания Шастр и заняты дневной и ночной работой, что с ними будет? Такие люди не достигнут совершенства, счастья и высочайшего предназначения. Какой самый высший пункт назначения? Возвращение обратно к Богу - высшее предназначение. Такие люди не достигнут этого. Поэтому Господь просит нас читать и понимать Священные Писания от Шикша и Дикша Гуру. Человеческая жизнь предназначена для изучения этих писаний. Мы изучаем физику, химию, металлургию и психологию. Мы стараемся понять ум, который очень трудно понять. Ум очень тонкий. Но душа гораздо тоньше ума. Элементы становятся тоньше, когда мы идем к уму, разуму, ложному эго, а затем к душе. Разум - это элемент, и это одна из энергий Господа. Ложное эго также является одной из энергий. Кто знает ложное эго? джнатва шастра-видханоктам карма картум ихархаси Изучив содержащиеся в них указания и правила, действуй так, чтобы постепенно достичь духовных высот. (Б.Г. 16.24) Мы должны действовать, зная Священные Писания и читая Гиту и Бхагаватам Шрилы Прабхупады. Писание скажет вам, что делать, а что не делать. Помимо Гиты и Бхагаватам, есть и другие науки. Есть Бхаутик шастра (материаловедение) и адхйатмика шастра (духовная наука). Между ними так много различий. Материаловеды промывают мозги. У таких людей 4 недостатка: бхрама, прамада, випралипса каран̣апат̣ава ӣшварера вакйе нахи доша эи саба Перевод Шрилы Прабхупады: «Слова Верховной Личности Бога свободны от материальных недостатков, таких как ошибки, заблуждения, обман и несовершенство чувственного восприятия». (Ч.Ч. Ади лила 7.107) Это очень важно. Кришнадас Кавирадж Госвами объяснил в Чайтанья-чаритамрите. Они продолжают совершать ошибки. Они в иллюзии. Они не знают свою личность. У них есть склонность к обману. Шрила Прабхупада говорил, что есть обманщики и обманутые. Даже если они имеют большие степени, Священные Писания называют их обманщиками, если они не верят в Гиту и Бхагаватам. Несовершенные чувства являются 4-м недостатком. Если источник, из которого мы получаем знания, является несовершенным, то и знания, которые мы получаем, также являются несовершенными. В Кали Югу каждый действует как эксперт. Писание - это Прамана, и Шрила Прабхупада говорит, что книги - это основа. Поэтому мы должны читать Священные Писания, такие как Бхагавад-Гита и Чайтанья-чаритамрита. Следовательно, мы должны жить согласно указаниям святых личностей, писаний и ачарьев. Нитай Гаур Премананде Хари Хари бол! (Перевод Кришна Намадхан дас)