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*जप चर्चा* *वृंदावन धाम से* *24 अक्टूबर 2021* हरे कृष्ण ! आज 864 भक्त हमारे साथ जपा टॉक में सम्मिलित हैं । हरे कृष्ण । आप तैयार हो ? एवरेडी मतलब सदैव तैयार रहते हैं। ऐसी आशा है कि आप हमेशा तैयार रहते हैं। तो ऑनलाइन परिक्रमा को आप फॉलो कर ही रहे होंगे ही। हमेशा आप इसी भाव में रहिए। ब्रज में पहुंच जाइए जैसे शिवराम महाराज कह रहे थे। हम जहां भी हैं, वह हंगरी में रहते हैं। लेकिन उनका लक्ष्य होता है वृंदावन में रहने का, वृंदावन वनवास। वृंदावन के कृष्ण का स्मरण जब हम करते हैं तो हम ब्रजवासी बन ही जाते हैं, वृंदावन पहुंच ही जाते हैं। कृष्ण वृंदावन में ही रहते हैं। वैसे मथुरा में भी रहते हैं और वहां से द्वारका भी जाते हैं। यह गोलोक है वृंदावन ,मथुरा और द्वारिका। हरी हरी। कृष्ण द्वारिका में पूर्ण है ,मथुरा में पूर्णतर और वृंदावन में पूर्णतम है। कृष्ण कन्हैया लाल की जय। इस धाम की परिक्रमा, इस धाम का दर्शन, वृंदावन की परिक्रमा कहिए, चलती रहती है। जब से यह धाम है तब से परिक्रमाऐं हो रही है और कब से यह धाम है? ऐसा समय नहीं था जब यह धाम नहीं था। धाम की सृष्टि नहीं होती, उसका निर्माण नहीं होता इसीलिए इसका प्रलय भी नहीं होता या नाश भी नहीं होता। यह धाम शाश्वत है और तब से परिक्रमाऐं हो रही हैं। परिक्रमा करने वाले स्वयं कृष्ण भी तो है ही। हम जैसे परिक्रमा मार्ग पर चलते एक निश्चित मार्ग भी है किंतु श्रीकृष्ण प्रतिदिन हर दिन अलग अलग वनों की यात्रा करते हैं, भ्रमण करते हैं। हरि हरि। केशीघाट बंसीबट द्वादश कानन । जहां सब लीला कईलो श्री नंदनंदन ॥ केशी घाट है या वंशीवट है। यह दो नाम ही लिए हैं। उन्होंने कहा कि केशीघाट बंसीबट द्वादश कानन। द्वादश कानन है। ऐसा कोई वन नहीं बचता जहां पर कृष्ण लीलाएं नहीं खेले हैं। जो मधुबन है नाम भी हम जब सुनते हैं तो यह नाम भी पवित्र है अलग-अलग वनों के, इनके नाम सुनने मात्र से ही हम पवित्र हो जाते हैं। मधुबन है या तालवन है। आपको याद रखना चाहिए अलग-अलग वन है। आपकी नगरी में अलग-अलग सेक्टर या कॉलोनी होते हैं, जिसको आप याद रखते हैं या मोहल्ले होते हैं। तो कृष्ण के धाम के जो वन है, हम उनको याद क्यों नहीं रख सकते। उनका स्मरण क्यों ना करें। उनके नाम को कंठस्थ कर सकते हो और फिर हम हृदयंगम भी कर सकते हैं। इस वन में यह लीला हुई, उस वन में वह लीला हुई। मधुबन, तालवन, कोमुद वन , बगुला वन, वृंदावन, कामवन, खादिर वन। यह सात वन हुए। यह यमुना के पश्चिमी तट पर हैं। फिर हम यमुना के पार पहुंच जाते हैं। फिर हम भद्र वन में पहुंचते हैं। वहां से हंडीर वन पहुंचते है। जहां राधा कृष्ण का विवाह हुआ था। हर वन में बहुत कुछ हुआ है। रोज कुछ ना कुछ होता रहता है। कृष्ण कुछ ना कुछ वहां पर लीलाएं जोड़ते रहते हैं। वहां से बेल वन या श्रीवन भी कहते हैं। जहां लक्ष्मी अपनी तपस्या कर रही है। लेकिन गलतियां भी कुछ कर रही हैं तो उनसे हमको सीखना चाहिए। अनुगत्त्य को स्वीकार नहीं करती, पालन नहीं करना चाहती इसीलिए लक्ष्मी भगवान की लीला में प्रवेश करने की तीव्र इच्छा तो है लेकिन प्रवेश प्राप्त नहीं होता और गोपियों जैसे वह भी कृष्ण के साथ रास क्रीडा खेलना चाहती है। लेकिन संभव नहीं हो पा रहा है। हरि हरि। गोपी जैसा भाव चाहिए है तभी यह संभव है। रास क्रीडा में प्रवेश करना या माधुर्य लीला में प्रवेश करना। लोभ वन है यह ग्यारवाह वन है। 12वा वन महावन है। जहां पर गोकुल है। गोकुल धाम की जय। वहीं पास में रावल गांव है। रावल गांव का राधा रानी का गांव है। परिक्रमा में जाते हैं तब हमको पता चलता है नहीं तो हम गाते तो रहते हैं। राधा रानी की जय , महारानी की जय, बरसाने वाली की जय जय जय। ऐसा हम भी सोचते थे। राधा रानी का जन्म बरसाने में हुआ। मेरी भी एक समय ऐसी समझ थी और कईयों की होगी या होती होगी। बरसाने वाले की राधारानी बनने के पहले उन्होंने रावल गांव में राधाअष्टमी के दिन जन्म हुआ था। यह हमको पता नहीं होता है। हम कृष्ण जन्माष्टमी मानते रहते हैं। लेकिन राधा अष्टमी भी तो है उनका कहां पर जन्म हुआ और जन्म की लीला। रावल गांव भी महावन में है और पुन: उनकी परिक्रमा द्वादश कानन में करके हम लौटते हैं। मथुरा पहुंचते हैं। विश्राम घाट पर पहुंचते हैं। जिस विश्राम घाट पर विश्राम किए किसी ने विश्राम किया होगा इसलिए इसका नाम विश्राम घाट हुआ। तो वह विश्राम करने वाले वराह भगवान थे। केशव धृत शूकर रूप जय जगदीश हरे। तब वराह भगवान के रूप में जिस पृथ्वी का पतन हुआ था। अपने स्थान से च्युत हुई, नीचे गिर गई, गर्भोधक सागर में, इस खगोल में, ब्रह्मांड में। एक सागर है जिसको गर्भोधक कहते हैं। जिसमें गर्भोदक्षयी विष्णु जिस जल के ऊपर विराजमान हुए हैं। वहां गिर गई है पृथ्वी। भगवान प्रकट हुए वराह रूप में और उन्होंने हिरण्याक्ष का वध किया। हिरण्याक्ष का वध कब हुआ? इस कल्प के प्रारंभ में। यह जो ब्रह्मा का दिन चल रहा है। ब्रह्मा का जब दिन प्रारंभ हुआ तब पहला असुर जिसका भगवान ने वध किया वह हिरण्याक्ष थे, हिरण्यकशिपु के भाई। वराह कल्पे इसीलिए कल्प मतलब ब्रह्मा के दिन को कल्प कहते हैं। आप कब याद रखोगे। हम कह कह कर थक गए। थके तो नही। कल्प मतलब ब्रह्मा का दिन। इस दिन को वराह कल्प भी कहते हैं। इस दिन के प्रारंभ में हिरण्याक्ष का वध हुआ। पृथ्वी का उद्धार किए। अपने दांत के ऊपर ही पृथ्वी को धारण किए। जैसे जंगली सुअर या शूकर होता है वैसे। यह भगवान के दांत वाले सुकर थे। प्राय: हम दांत वाले सुकर नहीं देखते। हम गांव में या शहरो में सुकर देखते हैं। दांत के ऊपर पृथ्वी को धारण किए है। थोड़ी लड़ाई हुई हिरण्याक्ष के साथ, उसमें भी तो परिश्रम रहा ही। फिर पृथ्वी को ऊपर लाए। भगवान विश्राम कर रहे थे। कहा विश्राम किए? यमुना के तट पर विश्राम घाट पर भगवान विश्राम कर रहे हैं और उस समय पर पृथ्वी कहां पर है भगवान के दांत के ऊपर है। मतलब यह आपका दिल्ली या आगरा है, यह दांत के ऊपर है। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, एशिया, जितने भी खंड या भू खंड है। यह सारे भगवान के दांत के ऊपर है। भगवान मथुरा में बैठे है। विश्राम घाट पर विश्राम कर रहे हैं। हरी हरी। इससे आपको कुछ समझ आता है? इससे यह समझ में आना चाहिए कि हम अपराध करते रहते हैं। कौन सा अपराध है? वैसे 10 धाम अपराध भी हैं। 10 जैसे नाम अपराध है। वैसे ही धाम अपराध भी है। आप पता लगवाइए। 10 धाम अपराध कौन से हैं। अगर आपको पता है तो आप टाल सकते हो। नहीं तो धाम की यात्रा कर रहे हो और अपराधी हो रहे है। उसमें से एक यह अपराध है कि धाम किसी किसी देश में है या किसी प्रदेश में है। वह किसी देश का या राज्य का भाग है। यह अज्ञान है। यह सही नहीं है। ऐसी समझ अपराध है। वृंदावन यूपी में है और अयोध्या भी यूपी में है। मायापुर बंगाल में है। जगन्नाथ पुरी उड़ीसा में है और द्वारिका गुजरात में है और कृष्ण गुजराती थे। ऐसे कई लोग कहते हैं कि कृष्ण गुजराती थे। लेकिन क्योंकि वह गुजरात में है। द्वारिका गुजरात में है। लेकिन यह धाम इस संसार में नहीं है या पृथ्वी के अंग नहीं है। नहीं तो पृथ्वी जब डूब जाती है, जब पृथ्वी का विनाश होता है, इन धामों का भी विनाश होता। जब प्रलय होता है। तब ऐसा नहीं होता है। यह धाम तो बने रहते हैं। यहां पर आप देख सकते हो, भगवान ने पृथ्वी को धारण किया हुआ है और अपने दांत के ऊपर उठाया हुआ है। भगवान मथुरा वृंदावन में विराजमान है या विश्राम घाट पर विराजमान है। पृथ्वी ऊपर है, भगवान मथुरा वृंदावन में बैठे हैं। यह तत्व है या सिद्धांत है। धाम तथ्य या धाम महात्म्य कहिए। धाम शाश्वत है। इसका सृष्टि यह आप समझ सकते हो कि यह ब्रह्मा की सृष्टि नहीं है। धाम ब्रह्मा की सृष्टि नहीं है और देवताओं को यहां कोई कुछ कार्य नहीं कर सकते। देवता अपना जो कार्य वह करते रहते हैं। सृष्टि का कार्य है या प्रलय का कार्य है। वहां पर नहीं चलता या वहां पर आवश्यकता नहीं है क्योंकि धाम की सृष्टि नहीं होती है। यहां तीन गुणों का प्रभाव भी नही है। यह गुणातीत धाम है। सच्चिदानंद धाम सच्चिदानंद चिंतामणि। चिन्तामणिप्रकरसद्यसु कल्पवृक्ष- लक्षावृतेषु सुरभीरभिपालयन्तम् । लक्ष्मीसहस्रशतसम्भ्रमसेव्यमानं गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि ॥ ( ब्रह्म संहिता 5.29 ) अनुवाद:- जहाँ लक्ष-लक्ष कल्पवृक्ष तथा मणिमय भवनसमूह विद्यमान हैं, जहाँ असंख्य कामधेनु गौएँ हैं, शत-सहस्त्र अर्थात् हजारों-हजारों लक्ष्मियाँ-गोपियाँ प्रीतिपूर्वक जिस परम पुरुष की सेवा कर रही हैं, ऐसे आदिपुरुष श्रीगोविन्द का मैं भजन करता हूँ। हरि हरि। तो परिक्रमाऐं करने वाले हम कह रहे थे कि वह सर्वप्रथम कृष्ण ही हैं। वह प्रतिदिन नंदग्राम से इन सारे अलग-अलग वनों की यात्रा करते हैं। गौचारण लीला के लिए और गौचारण लीला सभी वनों में होती है और माधुर्य लीला निकुंजो में होती है और वात्सल्य भरी लीलाएं नंदग्राम या गोकुल में होती हैं। यह वृंदावन के प्रधान लीलाएं के 3 प्रकार हैं। एक वात्सल्य से पूर्ण लीला, यशोदा दामोदर को हम दीपदान कर रहे हैं। यह वात्सल्य है। यशोदा का वात्सल्य कृष्ण के प्रति और कई सारे जो बड़े बुजुर्ग लोग हैं वृंदावन के उन सब का भी कृष्ण के साथ ऐसा ही वात्सल्य भाव है । इन भावों को रस भी कहते हैं या यह संबंध भी है इस प्रकार का संबंध है । मुझे मालूम नहीं कि कितना प्रतिशत के व्रजवासी वात्सल्य रस वाले हैं ? कितने सख्य रस वाले हैं ? कितने सखा है ? कितने गोपियां हैं ? मुझे मालूम नहीं कि तिहाई एक तिहाई एक तिहाई है कि कुछ कम अधिक । लेकिन आबादी का बड़ा हिस्सा जो व्रज की है वृंदावन की है । उनका संबंध उनका वात्सल्य कृष्ण के साथ वत्स, अपना पुत्र ऐसा ही भाव कृष्ण के प्रति है और फिर, तो यह लीलाएं तो अधिकतर गोकुल में या नंदग्राम में ही संपन्न होती है और गो चारण लीला बनो में होती है, गोष्ट बिहारी, गोष्ट मतलब; वृंदावन जहां गो चारण लीला संपन्न होती है और जहां कुंज है । "राधा माधव कुंज बिहारी" तो कुंजू में माधुमाधुर्य लीलाएं संपन्न होती है । जहां थोड़ा एकांत है यह माधुर्य लीला गोपियों के साथ वाली लीला राधा कृष्ण की लीला व्रज के नगर या ग्राम के चौराहे पर नहीं होती है । कोई मैदान में तो दिल्ली में रामलीला मैदान है या और कैसे मैदान होते हैं । यह रासक्रीड़ा है और माधुर्य लीला तो एकांत में वन में निकुंजो में बड़े गुप्त में अति गोपनीय लीला है । इस प्रकार श्री कृष्णा पूरे वृंदावन में भ्रमण करते रहते हैं । वैसे वे सदैव व्यस्त रहते हैं रात दिन । इसीलिए इसको हम अष्ट कालिय लीला भी कहते हैं । 24 घंटे भगवान व्यस्त रहते हैं । अलग-अलग लीला खेलते हुए वृंदावन में, तो हम जब परिक्रमा में जाते हैं तो जो लीला जहां हुई थी वहां पहुंचकर और वहां बैठकर या हो सकता है कोई खड़े होके भी हम सुनते हैं, तो फिर क्या कहना । देखकर ही विश्वास किया जा सकता है कहते हैं । दिखा दो, प्रमाण करो ! क्या सबूत है ? भोजन स्थली पहुंचते हैं तो देखो यहां तो भगवान ने अपना यहां थाली रखी तो हाली का चिन्ह बन गया है । उस स्थान को काम वन में एक स्थान है जहां भोजन थाली भी कहते हैं । भोजन की थाली जहां कृष्ण ने रखी जिस पत्थर के ऊपर वो पत्थर ही पिघल गया । कई पर कटोरिया रखी हुई है तो कटोरी के चिन्ह है और फिर हम परिक्रमा में जाते हैं तो उस दिन हम वह लीला का श्रवण भी करते हैं कृष्ण की भोजन की लीला । कृष्ण कैसे सब के मध्य में बैठे रहते हैं और सारे मित्र गोला कर बैठते हैं सभी और I हरि हरि !! फिर हम जब जाते हैं तो हम परिक्रमा में उसी स्थान पर बैठकर जहां कृष्ण बलराम अपने मित्रों के साथ भोजन किया करते थे । एक तो वहां की भोजन लीला का श्रवण करो । वो कटोरी का चिन्ह देखो थाली का चिन्ह देखो और फिर वही पर बैठो और महाप्रसादे गोविन्दे , नाम - ब्रह्मणि वैष्णवे । स्वल्पपुण्यवतां राजन् विश्वासो नैव जायते ॥ 1 ॥ सेइ अन्नामृत पाओ , राधाकृष्ण गुण गाओ फिर जब हम अन्नामृत को प्राप्त करते हैं हमारे इस्कॉन का जो फुड् फर लाइफ प्रोग्राम स्कोर अन्नामृत कहते हैं तो सेइ अन्नामृत पाओ, फिर राधाकृष्ण गुण गाओ । फिर मुख से अनायास कुछ राधा कृष्ण के कुछ गुण निकल ही आते हैं । फिर बोलना भी शुरू करते हैं । मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम् । कथयन्तश्र्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च ॥ ( भगवद् गीता 10.9 ) अनुवाद:- मेरे शुद्ध भक्तों के विचार मुझमें वास करते हैं, उनके जीवन मेरी सेवा में अर्पित रहते हैं और वे एक दूसरे को ज्ञान प्रदान करते तथा मेरे विषय में बातें करते हुए परमसन्तोष तथा आनन्द का अनुभव करते हैं । होने लगता है । "कथयन्तश्र्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च" कुछ हम जो देखते हैं, सुनते हैं फिर वो सुनाने लगते हैं या उस पर विचार करते हैं, हम गंभीर हो जाते हैं । हमारी कोई शंका है उसका समाधान हो जाता है । वो देखो व्योमासुर गुफा देखो ! व्योमासुर के गुफा के बारे में हम सुने तो रहते हैं या पढ़ते रहते हैं । व्योमासुर "व्योम" मतलब आकाश । आकाश में उड़ान भरने वाला आसुर क्या करता है ? कृष्ण के मित्रों को गोवर्धन के ऊपर जहां मित्र खेल रहे थे वहां आकर यह व्योमासुर उनको चोरी कर रहा था उनका अपहरण कर रहा था और आकाश मार्ग से वो कामवन में पहाड़ है एक गुफा में व्योमासुर मित्रों को रख रहा था और फिर शीला से उसका मुंख बंद कर देता, तो फिर कृष्ण कैसे पीछा करते हैं व्योमासुर का । कृष्ण को पता होता है, ऐ ! इतने सारे हम मित्र थे अभी तो पूछी ही बच गए हैं, क्या हुआ ? ऐसी पूरी लीला है । वो खेल ही खेल रहे थे आप पढ़िएगा । फिर कामवन में जाते हैं तो फिर व्योमासुर कोई गुफा भी देखते हैं और कहते हैं इस आकाश में यहां आकाश में कृष्ण ! व्योमासुर के साथ युद्ध खेलें । यह लीला का श्रवण, वृंदावन ही पहुंच जाओ, परिक्रमा में पहुंचाओ और फिर उस लीला स्थली पर पहुंच जाओ और वही लीला का श्रवण करो या अध्ययन करो । उसका जो प्रभाव है यह हमारे साथ सदैव रहेंगे । क्योंकि हम तपस्या भी करते हैं । परिक्रमा जाना है तो तपस्या है कुछ असुविधा है और धूल भी खाते हैं, धूल में लौटते हैं, तो भगवान देखते हैं कि यह व्यक्ति वास्तविक में गंभीर है मेरी प्राप्ति के लिए । कितना सारा प्रयास कर रहा है । परिक्रमा में जा रहा है ... शीत आतप , वात बरिषण , ए दिन यामिनी जागि ' रे । विफले सेबिनु कृपण दुर्जन , चपल सुख - लव लागि ' रे ॥ 2 ॥ ( भजहुँ रे मन श्रीनन्दनन्दन ) अनुवाद:- मैं दिन - रात जागकर सर्दी - गर्मी , आँधी - तूफान , वर्षा में पीड़ित होता रहा । क्षणभंगुर सुख के लिए मैंने व्यर्थ दुष्ट और लोगों की सेवा की । फिर परिक्रमा है तो कभी ठंडी है तो या हो सकता है कभी गर्मी है तो परिक्रमा कभी लंबी है । आज का परिक्रमा है 30 किलोमीटर, ऐसे भी 1-2 दिन होते हैं । आज कितना चलेंगे ? 25 किलोमीटर 30 किलोमीटर चलेंगे और भक्त चलते हैं, चलते क्या है ! दौड़ते हैं, तो भगवान या बेशक वह सब देखते हैं जानते हैं और ऐसे प्रयास जब हमारे तक होते हैं तो कृष्ण प्रसन्न होते हैं और फिर ... ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् । मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ॥ ( भगवद् गीता 4.11 ) अनुवाद:- जिस भाव से सारे लोग मेरी शरण ग्रहण करते हैं, उसी के अनुरूप मैं उन्हें फल देता हूँ । हे पार्थ! प्रत्येक व्यक्ति सभी प्रकार से मेरे पथ का अनुगमन करता है । फिर कृष्ण प्रकट होते हैं । ऐसे साधक जो ... उत्साहात्निश्वयाद्धैर्यात् तत्त्कर्मप्रवर्तनात् । सङ्गत्यागात्सतो वृत्तेः षड्भिर्भक्तिः प्रसिध्यति ॥ ( श्री उपदेशामृत 3 ) अनुवाद:- भक्ति को सम्पन्न करने में छह सिद्धांत अनुकूल होते हैं : (1) उत्साही बने रहना (2) निश्चय के साथ प्रयास करना (3) धैर्यवान होना (4) नियामक सिद्धांतों के अनुसार कम करना ( यथा श्रवणं, कीर्तनं, विष्णो: स्मरणम्--कृष्ण का श्रवण, कीर्तन तथा स्मरण करना ) (5) अभक्तों की संगत छोड़ देना तथा (6) पूर्ववर्ती आचार्यों के चरणचिह्नों पर चलना । ये छहों सिद्धान्त निस्सन्देह शुद्ध भक्ति की पूर्ण सफलता के प्रति आश्वस्त करते हैं । तो श्रील रूपगोस्वामी उपदेशामृत में कहे हैं जब हम अपनी साधना भक्ति और फिर परिक्रमा की बात चल रही है तब हम कैसे करते हैं ? उत्साह के साथ, निश्चय के साथ, धैर्य के साथ । धैर्य भी चाहिए और "तत्त्कर्मप्रवर्तनात्" अलग-अलग विधि-विधान ओं का पालन करते हुए "सतो वृत्तेः" और सजल ओके चरण कमलों का अनुगम, अनुसरण करते हुए ... तर्कोंSप्रतिष्ठ श्रुतयो विभिन्ना नासावृषिर्य़स्य मतं न भिन्नम् । धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायां महाजनो ये़न गत: स पन्था: ॥ ( श्री चैतन्य चरितामृत मध्यलीला 17.186 ) अनुवाद: - श्री चैतन्य महाप्रभु ने आगे कहा, "शुष्क तर्क में निर्णय का अभाव होता हैं । जिस महापुरुष का मत अन्यों से भिन्न नहीं होता, उसे महान ऋषि नहीं माना जाता। केवल विभिन्न वेदों के अध्ययन से कोई सही मार्ग पर नहीं आ सकता, जिससे धार्मिक सिद्धांतों को समझा जाता हैं। धार्मिक सिद्धांतों का ठोस सत्य शुद्ध स्वरूपसिद्ध व्यक्ति के ह्रदय में छिपा रहता हैं । फलस्वरूप, जैसा कि सारे शास्त्र पुष्टि करते हैं, मनुष्य को महाजनों द्वारा बतलाए गये प्रगतिशील पद पर ही चलना चाहिए । या पहले भी परिक्रमा कर चुके हैं या कई सारे जहां श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने ही परिक्रमा की । राघव गोस्वामी ने परिक्रमा की । व्रजाचार्य नारायण भट्ट गोस्वामी ने यह परिक्रमा के पुनर्स्थापना की । फिर श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर 1932 में परिक्रमा करने आए । उस समय श्रील प्रभुपाद गृहस्थ थे, वे अलाहाबाद से मथुरा पहुंचे, मथुरा से टांगा लेके प्रभुपाद पहुंच गए कोसी पहुंचे वृंदावन नंदग्राम के पास जहां श्रील भक्ति स्थान सरस्वती ठाकुर की परिक्रमा पहुंची थी और उस समय भी अभय बाबू थे, तो अभय बाबू ने ज्वाइन किए या भविष्य के; हिस डिवाइन ग्रेस भक्ति वेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद की ! उन्होंने परिक्रमा की । एक दिन घोषणा हुई परिक्रमा शेषषायी जाएगी, तो जो जाना चाहते हैं तैयार हो जाओ लेकिन जो नहीं जाएंगे उनके लिए श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर वे हरि कथा सुनाएंगे, तो अभय बाबू ने सोच लिया कि मैं नहीं जाऊंगा । मैं यहीं रहूंगा श्रील भक्तिसिद्धांता सरस्वती ठाकुर के साथ, तो वे रहे और उन्होंने श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती के मुखारविंद से हरि कथा सुनी । हरि हरि !! फिर उसी साल श्रील प्रभुपाद के या अभय बाबू के दीक्षा का संस्तुति हुआ । यह अलाहाबाद के गोडिया मठ में दीक्षा समारोह संपन्न हो रहा था, तो अभय बाबू की बारी आई तो श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर के कुछ शिष्य कह रहे थे कि यह अभय बाबू है । इनके दीक्षा होगा अब, तो श्री भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर ; मैं इसको जानता हूं ! कैसे जानते हैं आप ? वह मुझे सुनना पसंद करता है । यह मुझे सुनते रहता है । मैं जब हरि कथा करता हूं तो उसमें यह बहुत रुचि लेता है बड़े ध्यान पूर्वक सुनता है मेरी कथा को मेरी बातों को और कुछ याद आया नहीं आया लेकिन यह बात जरूर ध्यान दिए थे श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर ने की "हि लाइक्स टू हियर मी" यह मुझे सुनते रहता है मैं जब बोलता हूं, कुछ कथा सुनाता हूं । हरि हरि !! तुम्हारा नाम अभय चरण है । प्रभुपाद का नामकरण हुआ, अभय चरण बने । से परिक्रमा में गए और परिक्रमा करके फिर वे कृपा पात्र बने । श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर की कृपा के पात्र बने जब वे परिक्रमा में भी गए थे । हरि हरि !! तो इस प्रकार यह परिक्रमाएं या कभी कुछ अलग से सुनाएंगे आपको परिक्रमा का सारा या जितना मुझे पता है इतिहास कहो । यह जो परिक्रमाएं वृंदावन में होती है । व्रजमंडल की जय ! यशोदा दामोदर की जय ! और भी कई सारी जय ! राधा श्याम सुंदर की जय ! कृष्ण बलराम की जय ! निताई गौर सुंदर की जय ! और विशेष रुप से श्रील प्रभुपाद की जय ! जिन्होंने इस धाम को प्रकट किया है हमारे समक्ष । प्रभुपाद ने यह वृंदावन का परिचय दिया सारे संसार को और संसार भर के लोगों को वृंदावन प्रभुपाद ले आए और वृंदावन का दर्शन कराए, तो प्रभुपाद भी 1971 की बात हो सकती है श्रील प्रभुपाद अपने विदेश के शिष्यों को वृंदावन ले आए थे और श्रील प्रभुपाद उनको दिखा रहे थे अलग-अलग स्थान । पैदल यात्रा नहीं कर रहे थे लेकिन यहां आने से या टांगे से कैसे कैसे चाह रहे थे और कथा सुना रहे थे एक समय वे ब्रह्मांड घाट भी गए थे और वहां श्रील प्रभुपाद स्नान भी किए उसका एक फोटोग्राफ, एक मायापुर में श्रील प्रभुपाद का गंगा में स्नान करते हुए एक फोटोग्राफ है और दूसरा प्रसिद्ध फोटोग्राफ ब्रह्मांड घाट पर स्नान करते हुए और फिर बरसाने भी गए यहां गए वहां गए । फिर मायापुर वृंदावन उत्सव जब शुरू हुए तो उस समय प्रातः कालीन कार्यक्रम के उपरांत प्रभुपाद हमको पूरे दिन भर व्रज की यात्रा में भेजा करते थे, तो हम बसों में उन दिनों में पैदलयात्रा नहीं होती लेकिन बसों में हम बैठकर सारे व्रज की यात्रा करके शाम को लौट आते जो प्रतिवर्ष वो आज तक हो रहा है तो इस प्रकार प्रभुपाद ने कृष्ण का और कृष्ण के धाम का, वृंदावन धाम की जय ! सारे संसार को परिचय दिया उन्होंने इस धाम को प्रकट किया है । ॥ गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल ॥ ॥ हरे कृष्ण ॥

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