Hindi

जप की विधि तथा निषेध   आज हमारे साथ ४५३ प्रतियोगी जप कर रहे हैं तथा विशेष रूप से मंगोलिया से एकनाथ गौर प्रभुजी जप कर रहे हैं। मंगोलिया चीन तथा रूस से भी उत्तर में उत्तरी ध्रुव के समीप हैं। मैं मंगोलिया से उन्हें जप करते हुए देखकर अत्यंत प्रसन्न हूँ। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने हमें विशेष रूप से गोपियों तथा राधारानी ने जिस प्रकार भगवान कृष्ण की आराधना की , उस प्रकार से आराधना करने की संस्तुति की हैं। ' रम्या काचिदुपासना व्रजवधू वर्गभीर या कल्पिता ' चैतन्य महाप्रभु ने बल देकर कहा हैं , " गोपियों द्वारा राधा कृष्ण की उपासना की पद्दति सर्वश्रेष्ठ हैं। रम्या काचिदुपासना , इसके अतिरिक्त अन्य कोई उपासना इतनी उन्नत नहीं हैं। " गोपियों तथा राधारानी की उपासना में इतना विशेष क्या हैं ? - " सदैव कृष्ण का स्मरण तथा कभी भी कृष्ण का विस्मरण नहीं होना " बस  इतना ही। यही सिद्धांत हैं।  इसका एक सुप्रसिद्ध मन्त्र हैं जिसका वर्णन कृष्णदास कविराज गोस्वामी चैतन्य चरितामृत में करते हैं : स्मर्तव्यः सततं विष्णुर विस्मृतयोर न जातुचित। सर्वे विधि निषेधम स्यूर एतयोर इव किकरः।।  " कृष्ण भगवान विष्णु के उद्गम हैं। उनका सदैव स्मरण करना चाहिए तथा कभी भी उनका विस्मरण नहीं होना चाहिए। शास्त्रों में वर्णित सभी विधियाँ तथा निषेध इन दोनों मूल सिद्धांतों के सेवक हैं। "  (चैतन्य चरितामृत मध्य लीला २२.११३) मैं पहले इस श्लोक का तात्पर्य पढ़ूँगा तत्पश्चात हम पुनः इस श्लोक पर चर्चा करेंगे तथा इसे और अधिक समझने का प्रयास करेंगे। श्रील प्रभुपाद लिखते हैं , " यह श्लोक पद्म पुराण से उद्द्यत हैं। शास्त्रों में नियामक सिद्धांतों का तथा आध्यात्मिक गुरु द्वारा प्रदान किये जाने वाले दिशा - निर्देशों का वर्णन हैं। ये नियामक सिद्धांत , मूल सिद्धांत के सेवक के रूप में स्वीकार किये जाते हैं। " निर्देश दो भागों में होते हैं : सकारात्मक तथा नकारात्मक। प्रथम हैं विधि तथा दूसरा हैं निषेध। एक कहता हैं हमें यह करना चाहिए वहीँ दूसरा बताता हैं कि हमें क्या नहीं करना चाहिए। अतः स्मर्तव्यः सततं विष्णुर यह विधि हैं , ऐसा हमें करना चाहिए। हमें सततं अर्थात सदैव स्मरण करना चाहिए। " विस्मृतयोर न जातुचित " अर्थात हमें कभी नहीं भूलना चाहिए , यह निषेध हैं। शास्त्रों में सामान्यतया दोनों का वर्णन आता हैं  : विधि तथा निषेध। इसलिए , " ये नियामक सिद्धांत, मूल सिद्धांत के सेवक हैं तथा हमें सदैव कृष्ण का स्मरण करना चाहिए तथा कभी भी उनका विस्मरण नहीं होना चाहिए। अतः हमें निरंतर २४ घंटे हरे कृष्ण महामंत्र का जप तथा कीर्तन करना चाहिए , यह विधि हैं। " अतः हमें निरंतर २४ घंटे हरे कृष्ण महामंत्र का जप करना चाहिए। किसी के लिए  करणीय अन्य भी कोई कार्य हो सकते हैं जिन्हे उसे अपने आध्यात्मिक गुरु के निर्देशन में सम्पूर्ण करने होते हैं परन्तु उसके लिए सर्वप्रथम कार्य हैं अपने आध्यात्मिक गुरु द्वारा प्रदान किये गए एक निश्चित संख्या में जप को पूरा करना। " उसके पश्चात वह अपने अन्य कार्य कर सकता हैं। इस प्रकार से हम इसे समझ सकते हैं। " इस हरे कृष्ण आंदोलन में हम नए भक्तों को प्रतिदिन १६ माला का जप करने का अनुमोदन करते हैं।  यदि कोई सदैव भगवान श्री कृष्ण का स्मरण करना चाहता हैं तथा कभी उनका विस्मरण नहीं चाहता तो उसके लिए इन १६ माला का जप करना अत्यंत आवश्यक हैं। यह एक प्रकार से प्रक्रिया तथा निषेध हैं। सभी नियामक सिद्धांतों में आध्यात्मिक गुरु द्वारा दिया गया निर्देश कि प्रतिदिन १६ माला का जप करो सर्वाधिक अनिवार्य हैं। यहाँ अनिवार्य शब्द सबसे सटीक हैं। इसके अलावा अन्य कोई उपाय नहीं हैं। हरेर नाम हरेर नाम हरेर नाम इव केवलं। कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिर अन्यथा।। (चैतन्य चरितामृत ७.२६)   सर्वे विधि निषेधम स्यूर एतयोर इव किकरः यह इस श्लोक का द्वितीय भाग हैं। इसका प्रथम भाग हैं : स्मर्तव्यः सततं विष्णुर विस्मृतयोर न जातुचित। सदैव स्मरण रखिये तथा कभी भूलियेगा मत ये दोनों महत्वपूर्ण कार्य हैं। एतयोर इव किकरः अर्थात ये शब्द इन दो सिद्धांतों के सेवक हैं। सभी विधियाँ तथा निषेध इनके सेवक हैं। इसलिए शास्त्रों में जो कुछ भी कहा गया हैं उन्हें दो भागों में विभक्त किया जा सकता हैं  : विधि तथा निषेध। इसमें प्रथम विधि हैं जिसका हम पालन करते हैं तथा दूसरा निषेध हैं , जो हम नहीं करते हैं। उत्साहात निश्चयात धैर्यात, तत तत कर्मप्रवर्तनात। संगत्यागात्सतो वृत्ते:, षड्भिर भक्ति: प्रसिध्यति।। (उपदेशामृत श्लोक ३)  यह विधि हैं। उत्साह , दृढ निश्चय , पूर्वी आचार्यों के पदचिन्हों का अनुसरण करना तथा अन्य इस प्रकार ये छः विषय हैं जो सकारात्मक हैं , तथा विधि हैं जिससे भक्ति प्रसिद्धति होता हैं अर्थात आध्यात्मिक पथ में पूर्णता प्राप्त हो सकती हैं। यह षड्भिर भक्ति प्रसिद्धति हैं तथा इसके अलावा एक और अन्य श्लोक हैं : अत्याहारः प्रयासश्च प्रजल्पो नियमाग्रह:। जनसङ्गश्च लौल्यश्च षड्भिर्भक्ति  विनश्यति।। (उपदेशामृत श्लोक २)  ये सभी निषेध हैं : बहुत अधिक प्रयास  करना अथवा बहुत अधिक एकत्रित करना। ऐसा करने से षड्भिर भक्ति विनश्यति होता हैं।  इसलिए हमें सांसारिक संग से दूर रहना चाहिए। ये कुछ उदाहरण हैं। इस प्रकार हमें शास्त्रों में कुछ विधि तथा निषेध मिलते हैं। इस प्रकार ये सभी कार्यविधियां तथा निषेध  " एतयोर " (इन दो सिद्धांतों) के सेवक हैं। इनमे प्रथम हैं स्मर्तव्यः सततं विष्णुर तथा दूसरा हैं : विस्मृतयोर न जातुचित।  हमें इन दोनों पर चिंतन करना चाहिए । हम यह कह सकते हैं कि ' हरेर नाम इव केवलं ' यह विधि हैं तथा ' हरिनाम के प्रति दस अपराध ' यह निषेध हैं। वैष्णव अपराध , गुरु अवज्ञा , श्रुति शास्त्र निन्दनम - ये सभी निषेध हैं। अतः हमें क्या करना चाहिए , " हरे कृष्ण का जप कीजिये " तथा हमें क्या नहीं करना चाहिए ? हरिनाम के प्रति अपराधों से बचना चाहिए। जब हम जप करते हैं , जप योग तथा ध्यान योग करते हैं , जो अष्टांग योग में  ' समाधी ' अर्थात हमें पूरी एकाग्रता तथा विवेक के साथ भक्ति में संलग्न रहते हैं। जब हमारी आत्मा पूर्णरूपेण भगवान पर केंद्रित रहती हैं तथा उनका ही चिंतन करती हैं , वही समाधी हैं। यह अष्टांग योग का सिद्धांत भी यम - नियम से प्रारम्भ होता हैं। यम निषेध हैं तथा नियम विधि हैं। यदि आप ' यम '  वाले कार्य करते हैं तो यमराज आएँगे। इस प्रकार से हमें इनका स्मरण करना चाहिए। नियम का अर्थ हैं सकारात्मक तथा यम का अर्थ हैं ध्वंसात्मक। एक विधि हैं तथा अन्य निषेध हैं। अतः एक साधक होने के नाते हमें इस बात का स्मरण रखना चाहिए कि हमें हरे कृष्ण का जप अत्यंत सावधानीपूर्वक करना चाहिए जो सही कार्य हैं। हमें हरिनाम के प्रति होने वाले सभी अपराधों से बचना चाहिए। ये सभी निषेध हैं। ये सभी ध्वंसात्मक हैं तथा हम निषेध वाले कार्य नहीं करते हैं। इस प्रकार आज के विचारों के लिए यह एक आहार हैं। यह आप सभी के लिए गृहकार्य हैं, परन्तु यह गृहकार्य आपके सम्पूर्ण जीवन के लिए  पर्याप्त हैं, क्योंकि हमें प्रत्येक दिन हरे कृष्ण का जप करना होता हैं तथा प्रत्येक दिन अपराधों से बचना होता हैं। जब हम जप का कहते हैं तो इसका अर्थ हैं प्रतिदिन कम से कम १६ माला तथा कुछ भक्त उससे अधिक जप भी करते हैं। ऐसा नहीं हैं कि हमें केवल जप करते समय ही इन अपराधों से बचना चाहिए अपितु आपको हर समय इनसे बचना चाहिए। हम प्रतिदिन अपराध करते हैं तथा वैष्णवों का सम्मान नहीं करते हैं। जप करते समय हम वैष्णवों के प्रति अपराध नहीं करते हैं परन्तु जैसे ही हम हमारा जप पूरा करते हैं , पहला कार्य हम वैष्णव अपराध ही करते हैं, अथवा आध्यात्मिक गुरु के आदेशों की अवज्ञा करना अथवा शास्त्रों की अवज्ञा करना अथवा शास्त्रों का अध्ययन नहीं करना। इस प्रकार ये सभी अपराध हैं जो हम प्रतिदिन करते हैं। हमें इस बात का अवश्य ध्यान रखना चाहिए : हरिनाम के प्रति अपराधों से हमें केवल बैठकर जप करते समय ही नहीं बचना चाहिए अपितु इनसे पुरे दिन बचना चाहिए। आपको सम्पूर्ण दिन सचेत रहना चाहिए तथा इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहिए कि हम अपराधों से बचते रहें। इस प्रकार हम हरिनाम का जप करते समय सेवा में व्यस्त रहते हैं तथा अपराधों से बचते हैं। मैं समय समय पर कहता हूँ कि हमें आज के जप की तैयारी पिछले दिन करनी होती हैं। कल के जप के लिए हमें आज ही तैयारी करनी चाहिए, यह एक प्रकार से दृश्य प्रारम्भ होने से पहले मंच की व्यवस्था करना हैं। इस प्रकार जब हम अगले दिन जप करने बैठेंगे तो हमारा जप कैसा होगा - यह और अधिक ध्यानपूर्वक तथा सावधानीपूर्वक होगा। इस प्रकार हरिनाम की सेवा करके हम २४ घंटे व्यस्त रह सकते हैं। हमें इन दो बातों का ध्यान रखना चाहिए, प्रथम जप करना तथा द्वितीय अपराधों से बचना। इनके अलावा और कुछ भी नहीं हैं जिसमें हमारा दिन व्यस्त होता हैं। हम साधक हैं तथा प्रयासरत हैं अतः यह सम्पूर्ण जीवन के लिए हमारा अभ्यास हैं , जिसे हमें करना चाहिए। आप अन्यों को भी इसके विषय में बता सकते हैं कि किस प्रकार जप करना चाहिए तथा अपराधों से बचना चाहिए। मैं अपनी वाणी को यहीं विश्राम देता हूँ। हरे कृष्ण !

English

VIDHI and NISHEDHA FOR CHANTING. Today we had 453 participants, and special mention is, Eknath Gaur Prabhuji was chanting from Mongolia. Mongolia is very close to the North Pole, beyond China and Russia. I was surprised and pleased to see him chanting all the way from Mongolia. Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu has strongly recommended, worship Krsna , the way gopis worshipped, Radharani worshipped, we should be worshipping like that. - Ramya kecid upāsanā vraja-vadhu-vargabhir ya kalpita. Śrī Caitanya Mahāprabhu recommended, "The upāsanā, the worship which was invented by the gopīs to worship Rādhā and Kṛṣṇa, ramya kecid upāsanā, there is no more perfect upāsanā." What was the special feature of worship of Gopis and Radharani? - “Always remember Krsna and never forget Krsna!” that's it. This is the principal. There is a well-known mantra of this meaning which Krsnadas Kaviraj Goswami has quoted in Caitanya Caritamrita. smartavyaḥ satataṁ viṣṇur vismartavyo na jātucit sarve vidhi-niṣedhāḥ syur etayor eva kiṅkarāḥ “‘Kṛṣṇa is the origin of Lord Viṣṇu. He should always be remembered and never forgotten at any time. All the rules and prohibitions mentioned in the śāstras should be the servants of these two principles.’(CC Madhya Lila 22.113) I will read the purport of this verse first and then we can go back to the verse and try to understand further. Srila Prabhupada writes, - ‘This verse is a quotation from Padma - Purana. There are regulative principles in the sastras and directions given by the spiritual master. These regulative principles should act as servants of the basic principle.” Instructions are in two parts. One is positive and other is negative. One is vidhi and other is nisedhah. One is do's’ and other is don’ts. Do this, don't do this. So smartavyaḥ satataṁ viṣṇur is vidhi or process . It's a Do part. One should remember satatam - always. vismartavyo na jātucit One should never forget. This is the nishedhah part. Sastra's explanations are of two kinds - one is vidhi and other is nishedhah, prohibition. So that is ,” These regulative principles should act as servants of the basic principle, that is one should always remember Krsna and never forget Him. Therefore one must strictly chant Hare Krsna mahamantra 24 hours daily. That is the vidhi. “Therefore one must strictly chant the Hare Kṛṣṇa mahā-mantra twenty-four hours daily. One may have other duties to perform under the direction of the spiritual master, but he must first abide by the spiritual master’s order to chant a certain number of rounds”, then next do the other duties. That's how we should understand this. “In Hare Krsna movement we have recommended the neophytes to chant at least 16 rounds. This chanting of 16 rounds is absolutely necessary, if one wants to remember Krsna and never forget Him.” This is the process and the prohibition.Of all the regulative principles , the spiritual master’s order to chant at least 16 rounds is the most essential. Essential is the most significant word. There is no other option. harer nama harer nama harer nama eva kevalam kalau nastyeva nastyeva nastyeva gatiranyatha. ( CC 7.26) sarve vidhi-niṣedhāḥ syur etayor eva kiṅkarāḥ That's the second part. The first verse was. smartavyaḥ satataṁ viṣṇur vismartavyo na jātucit Always remember and never forget, these are the two items. etayor eva kiṅkarāḥ of these two principals are the servants of these two principals. All the vidhis, all the nishedhahs are servants of two principals. All that is said in shastra can be divided in two parts. One part is process, something that you should do , other one is Nishedh. utsahat nishayat dhairyat tat tat karma pravartant sanga tyagat sato vritte shadbhir bhaktir prasiddhati. (NOI verse 3) This is vidhi. Enthusiasm, determination and following in the footsteps of the previous acaryas , and so on by following these six items , which is a positive, a vidhi, by that bhakti prasiddhati. - You attain perfection in your devotional service. That is shadbhir bhaktir prasiddhati. and other one is attyahar prayashacha prajalpa niyamagraha Jansanghasha laulyascha shadbhir bhaktir vinashyati ( NOI verse 2) By doing these things , which is nishedh getting too much or accumulating too much. By following this shadbhir bhaktir vinashyati we stay away from worldly association . These are the examples. So like that we will find in the sastras some vidhi and some nishedh. So all these processes and prohibitions are the servants of etayor( two principals). One is smartavyaha satatam Vishnu and second is vismartvya na jatu chita. These we should contemplate. We could also say that vidhi is chant “Harer name eva kevalam” and nishedh is - avoid these ten offenses against the holy name. No - vaishnav aparadh. No - Gurur avadyna. No - sruti shastra nindanam. So what should you do, “ chant 'Hare Krsna’ , and what should you not do ? Avoid all the offenses against the holy name. While we are chanting, this Japa yoga or Dhyan-yoga, there is astang yoga which is aimed at ‘samadhi’ or full concentration of your mind and intelligence. The soul where your mind is fully absorbed in the Lord or focused on the Lord. That is samadhi. That astanga yoga process also begins with yama- niyama. Yama is nishedh and niyama is vidhi. Yama is if you do this or that then Yamaraj will come. That's how you should remember. Niyam means positive and yama is destructive. One is process and the other is prohibition. So as chanters we should remember that we have to chant Hare Krsna with attention and this is the right thing to do. We have to have to avoid all the offenses against the holy name. This is nishedh or prohibition. This is destructive and we don't do this. So that's the food for thought for the day. This is a homework for you. But this homework is enough for the rest of your life. Because everyday you have to chant Hare Krsna and everyday you have to avoid offences. But we have to say chanting you have to do, minimum sixteen rounds, some do even more rounds. The offences are not to be avoided only during chanting. We keep doing aparadh daily. Offending Vaisnavas. We may not offend Vaisnavas during chanting, but as soon as we finish chanting , first thing we begin with is offending Vaisnavas. Or disobeying this order or that order of the spiritual master, or if we blaspheme the scriptures or if we didn't read the scriptures. So these are the offences we keep committing all day. Just try to understand that OFFENCES AGAINST THE HOLY NAME ARE NOT ONLY TO BE AVOIDED WHILE SITTING DOWN and CHANTING, BUT ALL DAY! All day you have to be alert and make sure you are not committing offences. So we kind of remain busy in the service of the holy name chanting or avoiding offences. I had been saying that tomorrow's chanting preparation we have to do today. Chanting tomorrow, preparation today! It's like setting the scene. So when we sit for chanting the next day how will our japa be - more attentive. It will not happen overnight or in one day. Tomorrow's chanting will be attentive if today we make our best efforts to avoid the offences. Like that we stay busy serving the holy name of the Lord 24 hours. One either we are chanting or two we are trying to avoid the offences. There is nothing more in which our whole day is spent. We are sadhakas. We are practitioners. So this is the lifelong practice. You can preach others also to chant and avoid offences. So we will stop here. Hare Krsna!!

Russian

Джапа сессия 30.03.2019 ВИДХИ И НИШЕДХИ ДЛЯ ВОСПЕВАНИЯ Сегодня у нас было 453 участника, и особенно следует отметить, что Экнат Гаур Прабхуджи воспевал из Монголии. Монголия находится очень близко к Северному полюсу, за пределами Китая и России. Я был удивлен и рад видеть, что он повторяет из далекой Монголии. Шри Кришна Чайтанья Махапрабху настоятельно рекомендовал, поклоняться Кришне, как поклонялись гопи, как поклонялась Радхарани, мы должны поклоняться именно так. - Ramya kecid upasana vraja-vadhu-vargabhir ya kalpita. Шри Чайтанья Махапрабху порекомендовал: «Упасана, то как поклонялись гопи Радхе и Кришне, Ramya kecid upasana, нет более совершенной упасаны». В чем была особенность поклонения гопи и Радхарани? - «Всегда помнить Кришну и никогда не забывать Кришну!»вот и все. Это основное. Существует известная мантра, которую Кришнадас Кавирадж Госвами цитирует в «Чайтанья Чаритамрите». смартавйах сататам вишнур висмартавйо на джатучит сарве видхи-нишедхах сйур этайор эва кинкарах „Кришна — источник Господа Вишну. Надо всегда помнить о Нем и не забывать Его ни при каких обстоятельствах. Все предписания и запреты, упомянутые в шастрах, должны служить этим двум принципам“... (ЧЧ Мадхья Лила 22.113) Сначала я прочитаю смысл этого стиха, а затем мы можем вернуться к стиху и попытаться понять его дальше. Шрила Прабхупада пишет: «Этот стих является цитатой из Падма Пураны. В шастрах и наставлениях, данных духовным учителем, есть регулирующие принципы. Эти регулирующие принципы должны действовать как слуги основного принципа ». Инструкция состоит из двух частей. Одна положительная, а другая отрицательная. Одна - видхи, а другая - нишедхах. Одна - это то, что нужно, а другая – то что не нужно. Делайте это, не делайте то. Итак смартавйах сататамвишнур это видхи или процесс. Это часть того что нужно делать. Сататам -следует помнить всегда. висмартавйо на джатучит - никогда не следует забывать. Это часть нишедхи. Объяснения Шастр бывают двух видов: одно - видхи, а другое - нишедхах, запрет. Так что «Эти регулирующие принципы должны действовать как слуги основного принципа, то есть всегда следует помнить Кришну и никогда не забывать Его. Поэтому человек должен строго повторять Харе Кришна Махамантру 24 часа в сутки. Это видхи. «Поэтому нужно строго повторять маха-мантру Харе Кришна двадцать четыре часа в сутки. Можно выполнять другие обязанности под руководством духовного учителя, но он должен сначала выполнить приказ духовного учителя повторять определенное количество кругов», а затем выполнять другие обязанности. Вот как мы должны это понимать. «В движении Харе Кришна мы рекомендовали неофитам повторять как минимум 16 кругов. Это повторение 16 кругов абсолютно необходимо, если кто-то хочет вспомнить Кришну и никогда не забывать Его ». Это метод и запрет. Из всех регулирующих принципов приказ духовного учителя  повторять как минимум 16 кругов это самая основная вещь. Основной -является наиболее показательным словом. Там нет другого варианта. харер нама харер нама харер намаива кевалам калау настй эва настй эва настй эва гатир анйатха. (ЧЧ Ади 17.21) «В век Кали нет другого пути, нет другого пути, нет другого пути к постижению себя, кроме повторения святого имени, повторения святого имени, повторения святого имени Господа Хари». сарве видхи-нишедхах сйур этайор эва кинкарах Это вторая часть. Первый стих был. смартавйах сататам вишнур висмартавйо на джатучит „Кришна — источник Господа Вишну. Надо всегда помнить о Нем и не забывать Его ни при каких обстоятельствах. Все предписания и запреты, упомянутые в шастрах, должны служить этим двум принципам“. Всегда помните и никогда не забывайте, это два пункта. этайор эва кинкарах это два принципа являются слугами этих двух принципов. Все видхи, все нишедхи - слуги двух принципов. Все, что сказано в шастре, можно разделить на две части. Одна часть - это процесс, то, что вы должны делать, другая - Нишедха. утсахан нишчайад дхаирйат тат-тат-карма-правартанат санга-тйагат сато врттех шадбхир бхактих прасидхйати (НН.текст 3) Существует шесть принципов, следование которым благоприятствует чистому преданному служению. Необходимо: 1)действовать с энтузиазмом; 2)с уверенностью прилагать усилия; 3)проявлять терпение; 4)следовать регулирующим принципам (в частности, шраванам кӣртанам вишнох смарарам — слушать повествования о Кришне, прославлять Его и постоянно помнить о Нем); 5)отказаться от общения с непреданными; 6)идти по стопам предшествующих ачарьев. Придерживаясь этих шести принципов, человек, несомненно, добьется успеха в чистом преданном служении. Это видхи. Энтузиазм, решительность следование по стопам предыдущих ачарьев, и так далее, следуя этим шести пунктам, что является позитивным - видхи,  бхакти прасиддхати - вы достигаете совершенства в своем преданном служении. Это шадбхир бхактих прасидхйати а другой атйахарах прайасаш ча праджалпо нийамаграхах джана-сангаш ча лаулйам ча шадбхир бхактир винашйати (НН.текст 2) Шесть видов деятельности пагубно отражаются на преданном служении. Преданное служение страдает, если человек: 1)ест слишком много или накапливает вещей и денег больше, чем необходимо; 2)прилагает чрезмерные усилия ради осуществления труднодостижимых мирских целей; 3)без особой необходимости ведет разговоры на мирские темы; 4)выполняет правила и предписания шастр только ради следования им, а не во имя духовного развития, или не выполняет никаких правил и предписаний, а действует независимо, как ему заблагорассудится; 5)общается с людьми мирского склада, которым неинтересно сознание Кришны; 6)жаждет мирских успехов. Делая эти вещи, которы являются нишедхами,  получать слишком много или накапливать слишком много. Следуя этому шадбхир бхактир винашйати, мы избегаем мирского общения. Это примеры. Так мы можем найти в шастрах некоторые видхи и некоторые нишедхи. Итак, все эти процессы и запреты являются слугами этайор (два принципа). Один это смартавйах сататам вишнур, а второй это висмартавйо на джатучит. Это мы должны рассмотреть. Мы могли бы также сказать, что видхи - это повторять «харер намаива кевалам», а нишедхи - избегать  десяти оскорблений святого имени. Нет - вайшнава апарадхам. Нет - Gurur avadyna. Нет - шрути шастра нинданам. Итак, что вы должны делать, «повторять Харе Кришна », а что не следует делать? Избегайте всех оскорблений святого имени. Пока мы воспеваем, это джапа-йога или дхьяна-йога, есть аштанга- йога, которая направлена на «самадхи» или полную концентрацию вашего ума и разума.. Состояние сознания когда ваш разум полностью поглощен Господом или сосредоточен на Господе -это самадхи. Этот процесс аштанга йоги также начинается с яма-ниямы. Яма - это Нишедхи, а Нияма - это Видхи. Яма, если ты сделаешь это или то, тогда придет Ямарадж. Вот так вы должны запомнить. Нияма означает положительный, а яма разрушительный. Один - это процесс, а другой - запрет. Поэтому, как воспевающие, мы должны помнить, что мы должны повторять Харе Кришна внимательно, и это правильно. Мы должны избегать всех оскорблений святого имени. Это нишедха или запрет. Это разрушительно, и мы этого не делаем. Так что это пища для размышлений на весь день. Это домашнее задание для вас. Но этой домашней работы хватит на всю оставшуюся жизнь. Потому что каждый день вы должны повторять Харе Кришна, и каждый день вы должны избегать оскорблений. Но вы должны повторять минимум шестнадцать кругов, каждый день, кто-то повторяет еще больше кругов. Оскорблений следует избегать не только во время воспевания. Мы продолжаем ежедневно совершать апарадхи. Оскорбление вайшнавов. Мы не можем оскорблять вайшнавов во время повторения, но как только мы заканчиваем повторение, первое, что мы начинаем делать, это оскорблять вайшнавов. Неподчинение этому наставлению или наставлениям духовного учителя, или если мы хулим священные писания, если мы не читаем священные писания - это оскорбления, которые мы совершаем весь день. Просто попытайтесь понять это ОСКОРБЛЕНИЯ СВЯТОГО ИМЕНИ НЕ ДОЛЖНЫ БЫТЬ ИСКЛЮЧЕНЫ ТОЛЬКО ВО ВРЕМЯ ВОСПЕВАНИЯ, ОНИ ДОЛЖНЫ БЫТЬ ИСКЛЮЧЕНЫ ВЕСЬ ДЕНЬ! Весь день вы должны быть начеку и следить за тем, чтобы не совершать оскорблений. Таким образом, мы заняты служением святому имени, повторяя или избегая оскорблений. Я говорил, что подготовку к завтрашнему воспеванию, мы должны сделать сегодня. Воспевание завтра, подготовка сегодня! Это как установка сцены. Поэтому когда мы будем повторять на следующий день, наша джапа будет более внимательной. Это не произойдет в одночасье или за один день. Повторение завтрашнего дня будет внимательнее, если сегодня мы приложим все усилия, чтобы избежать оскорблений. Таким образом, мы остаемся занятыми служением святому имени Господа 24 часа. Когда мы повторяем, мы пытаемся избежать оскорблений. Больше нет ничего, на что мы должны тратить весь наш день. Мы садхаки. Мы практикующие. Так что это практика на всю жизнь. Вы также можете проповедовать другим, чтобы они воспевали и избегали оскорблений. Итак, мы остановимся здесь. Харе Кришна !!