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जप चर्चा पंढरपुर धाम से 23 नवम्बर 2020

ब्रजमंडल परिक्रमा की जय...... आप सब परिक्रमा कर रहे हो तो परिक्रमा में रहो आप सुनते जाओगे तो रहोगे भी ब्रज में या ब्रज में रमोंगे भी रम जाओगे रहमान होंगे वैसे जब हम हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हैं। तो एक प्रार्थना हमारी यह भी होती है होनी भी चाहिए आपको पता है कि नहीं समझाया तो है हम कहते हैं की मैया सह रमस्व हे कृष्ण हे राधे मेरे साथ भी रमिये मेरे साथ रमीये मैं आपके साथ रमता हूं।

परिक्रमा के लीलाओं का श्रवण करेंगे या श्रवण ही नही भगवान की लीलाओं का नाम रूप गुण लीलाओं का श्रवण ब्रज में करते हैं तो फिर हम ब्रज के मूड में आ जाते हैं वृंदावन के मूड में आ जाते हैं हम धीरे-धीरे बृजवासी बन जाते हैं जो ब्रज में वास करें ब्रज में निवास करें उनको ब्रजवासी कहते हैं। वह केवल निवास शरीर को तो रखा है ब्रज में लेकिन यादें तो दिल्ली नागपुर यहां वहां की आ रही है मन तो इधर उधर दौड़ रहा है।

वृंदावन में कभी तो कभी अपने घर पर तब उनको ब्रजवासी नहीं कहा जाएगा वैसे श्रीराम जब वनवासी हुए तब वो केवल वन में रहते थे दंडकारण्य मे रहते थे इसीलिए उनको वनवासी नहीं कहा वैसे वनवास मन में वनवासी जैसे रहते थे अन्य वनवासी जैसे रहते हैं वैसे ही प्रभु श्रीराम रहते थे वही जीवन की शैली कहो वह किसी घर में नहीं रहे वन में रहे एक कुटी बनाकर वहां रह जाते वैसे वन में वो कंदमूल ही ग्रहण करते पकाया हुआ भोजन नहीं करते और वह एक दर्जी एक टेलर के पास नहीं गए 14 साल अपने वस्त्र सिलाने के लिए वह सचमुच बनवासी बने तो ऐसे ही श्री राम वनवासी राम एक समय थे अयोध्यावासी राम फिर वनवासी बने तो हमको भी ब्रज मंडल परिक्रमा में ऐसा अनुभव प्राप्त होता है। हम भी वनवास या फिर वहां के वास का अवसर प्राप्त होता है वैसे हमारे शरीर तो वृंदावन में नहीं है मानसिक परिक्रमा कर रहे हैं पर हमारा मन वृंदावन में है हमारा ध्यान वृंदावन में हैं।

तो परिक्रमा कल चीर घाट मे पड़ाव रहा आज चीर घाट से माट जायेंगी और बीच में यमुना आयेगी फिर हम यमुना को पार करोगे आप तो इसी के साथ आप वृंदावन केवल द्वादश वनों में एक वन है वृंदावन उस वृंदावन से आज आप भद्र वन में प्रवेश करोगे और फिर कुछ समय कि वहां की परिक्रमा के उपरांत आप भांडीरवन में प्रवेश करोगे और माट भांडीरवन में ही है तो यही आपका आज का पड़ाव रहेगा मैं आपको थोड़ा चीर घाट के संबंध में अधिक कुछ कहना चाहता हूं।

चीर घाट यह खाट है तो झठ से समझ में आना चाहिए कि ये किसी नदी का तट होगा तभी तो चीरघाट या घाट होता है। चीर घाट यमुना के तट पर ही है तो इस घाट को चीर घाट इसलिए कहा कि चीर मतलब वस्त्र इसलिए इसे अच्छी घाट कहां गया है यहां वस्त्र का हरण किया गया तो वस्त्रों का हरण कौन करेंगे कृष्ण में ही यहां गोपियों के वस्त्रों को साड़ियों को चोरी किए हरण किए और पेड़ पर जा कर बैठे यह वस्त्र चोर भी है माखन चोर ही नहीं है वैसे वह चित चोर तो है ही तो कृष्ण जी और राधा के प्रकट लीला में 1 वर्ष कार्तिक मास के उपरांत अगला मास मार्गशीर्ष कार्तिक मार्गशीर्ष पौष माग फ़ाल्गुन तो इस मार्गशीर्ष मास में माह मार्गशीर्ष है और ऋतू है हेमंत रितु यह भागवत में शुकदेव गोस्वामी कहते हैं।

श्रीशुक उवाच हेमन्ते प्रथमे मासि नन्दव्रजकमारिकाः । चेहविष्यं भुञ्जानाः कात्यायन्यर्चनव्रतम् ॥१ ॥ श्रीमद्भागवत 10.22.1

शुकदेव गोस्वामी ने कहा : हेमन्त ऋतु के पहले मास में गोकुल की अविवाहिता लड़कियों ने कात्यायनी देवी का पूजा - व्रत रखा । पूरे मास उन्होंने बिना मसाले की खिचड़ी खाई

हेमन्ते प्रथमे मासि नन्दव्रजकमारिकाः हेमंत ऋतु के प्रथम मास में हर ऋतु में 2 मास रहते हैं महीने रहते हैं महीने 12 है और ऋतु 6 है मार्गशीर्ष और पौष ये हेमंत ऋतू में आता हैं। तो इस मास में गोपिया प्रति दिन प्रात काल यहां जिसका अब नाम हुआ है चीर घाट यहां पहुंच कर वह स्नान किया करती थी और कात्यायनी की पूजा करती थी पूरे मास वह किया करती थी और पूजा करते समय वह प्रार्थना करती रहती थी हे महामाया

कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि । नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नमः । इति मन्त्रं जपन्त्यस्ताः पूजां चक्रुः कमारिकाः ॥४ ॥ श्रीमद्भागवत 10.22.4

अनुवाद:- प्रत्येक अविवाहिता लड़की ने निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए उनकी पूजा की : " हे देवी कात्यायनी , हे महामाया , हे महायोगिनी , हे अधीश्वरी , आप महाराज नन्द के पुत्र को मेरा पति बना दें । मैं आपको नमस्कार करती हूँ

कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि । नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नमः नंद महाराज का पुत्र हमें पति रूप में प्राप्त हो हमारा तुम्हारे चरणों में बारंबार प्रणाम है हम माथा टेक कर पुनः पुनः प्रार्थना कर रहे हैं। हमें कृष्ण प्राप्त हो पति रूप में प्राप्त हो तो प्रार्थना कर ही रही थी प्रतिदिन तो फिर भगवान ने या कृष्णा ने कृष्ण भगवान है।

एते चांशकलाः पुंसः कृष्णस्तु भगवान् स्वयम् । इन्द्रारिव्याकुलं लोकं मृडयन्ति युगे युगे ॥ २८ ॥ श्रीमद्भागवत 1.3.28

अनुवाद :- उपर्युक्त सारे अवतार या तो भगवान् के पूर्ण अंश या पूर्णांश के अंश ( कलाएं ) हैं , लेकिन श्रीकृष्ण तो आदि पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् हैं । वे सब विभिन्न लोकों में नास्तिकों द्वारा उपद्रव किये जाने पर प्रकट होते हैं । भगवान् आस्तिकों की रक्षा करने के लिए अवतरित होते हैं

कृष्णस्तु भगवान् स्वयम् और कृष्ण ही है नंद गोप कुमार नंद गोप कौनसे गोप गोप और नंद गोप कुमार उनका गोप कृष्णा तो वह पहुंच गए पूर्णिमा के दिन मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन पहुंच कर उन्होंने गोपियों के वस्त्रों का हरण किया और पेड़ के शाखाओं पर बैठ गए वस्त्रों के साथ गोपियों ने स्नान समाप्त होने के उपरांत जब तक पर आ गई घाट पर आ गए तो वस्त्र नहीं थे तो उन्होंने प्रार्थना की है कृष्ण को वस्त्र लौटाने के लिए निजांगदान ये गोपी भाव राधा भाव वाली जो भक्ति हैं निजांगदान पूर्ण समर्पण कायेन मनसा वाचा अपने अंग का भी दान सर्वस्व समर्पण के लिए प्रसिद्ध है विख्यात है गोपिया हरि हरी तो श्रील प्रभुपाद जी समझाते हैं या एक तो भगवान ने उनके प्रार्थना को सुना और उनका स्वप्न कहो साकार हुआ जब कृष्ण आए और उनको भी विवस्त्र हो कर वैसे वो विवस्त्र थी ही जब स्नान कर रही थी तब तो उन्हें बिना वस्त्र के आगे बढ़ना पड़ा घाट पर पहुचना पड़ा सारी लजा त्याग कर ऐसा भी किया उन्होने

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज *अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा श्रुचः || ६६ ||

अनुवाद:-समस्त प्रकार के धर्मों का परित्याग करो और मेरी शरण में आओ । मैं समस्त पापों से तुम्हारा उद्धार कर दूँगा । डरो मत

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ऐसा भी किया उन्होंने और कृष्ण की शरण में आई श्रील प्रभुपाद लिखते हैं कि संसार जानता ही हैं अपने पति के सानिध्य में ही स्त्री विवस्त्र रहती हैं बिना वस्त्र की और किसी के सानिध्य में नहीं यह संभव भी नहीं है यह तो अधर्म होगा तो यह उचित है पति के संग में सानिध्य में स्त्री बिना वस्त्र के आ सकती है रह सकती हैं तो फिर वैसे ही हुआ इस पूर्णिमा के दिन चिर घाट पर भगवान ने दर्शाया कि प्रार्थना कर रही थी

पतिं मे कुरु ते नमः मैं आपका पति हूं तो आ जाओ तो फिर वह आ ही ही गई तो फिर ग़ौर प्रेमानन्दे हरि हरि बोल तो फिर भगवान ने वस्त्र लौटाये और फिर गोपियां अपने अपने ग्राम या नगर में लौट गई फिर उन्होंने हमारे वस्तु की चोरी की लेकिन आप हम अनुभव कर रहे हैं कि और कृष्ण कन्हैया ने हमारी चित की भी चोरी की हमारा मन उनकी ओर दौड़ रहा है।

या हमारे चित्त की चोरी करके वह चले गए वस्त्र तो दे दिया यह साड़ी ले लो यह चोली ले लो यह ले लो वस्त्र लेलो किन्तु उनका विरह सता रहा है या उनका स्मरण हो रहा है हम भूलना चाहते हैं तो भी भूल नहीं सकती हैं उस कन्हैया को उस नंदनंदन को और उसके लिए गोपिया प्रसिद्ध भी है भगवान को कभी नहीं भूलना और भगवान का सदैव स्मरण करें तो उसे ही दिन और थोड़ा आगे बढ़ते हैं भगवान जब वृंदावन से मथुरा से फिर द्वारिका पहुंचे हैं और फिर वहां पर द्वारकाधीश बने हैं। फिर उन्होंने आश्रम भी बदल दिया वह गृहस्थ बने हैं।

उनके इस 16108 विवाह हो चुके हैं यही ब्रज की गोपियां ही द्वारका की द्वारकाधीश की रानियां बन जाती है पत्नियां बन जाती हैं वह गोपीया वृंदावन में रहती है गोपी भाव में गोपी बनकर और साथ ही साथ उनका विस्तार होता है गोपियों से रानियां बन जाती है द्वारका की रानियां बन जाती है।

साथ ही राधा रानी भी द्वारका की सत्यभामा बन जाती है और चंद्रावली रुक्मिणी बन जाती है। यहां की यमुना कालिंदी बन जाती है। इस प्रकार यह गोपिया द्वारका पहुंच जाती है और विवाहित हो जाती है तो कात्यायनी ने उनके प्रार्थना सुन ली वैसे प्रार्थना तो सुनने वाले कृष्ण ही हैं और इस सचमुच अक्षर जहां गोपियां कृष्ण की पत्नियां बन जाती है कृष्ण को अपने पति रूप में पा लेती है।

इन गोपियों को मिलते है और उसी के साथ उसी दिन गोपियां अपने अपने घर लौटी और कृष्णा बड़े तार के भोर में ही वहा पहुंचे चिर घाट पर इस लीला को सम्पन्न करने के लिए वस्त्र हरण करने के लिए और उनके मित्र भी साथ मे आए थे उस चिर घाट मे लीला हो रही थी उस समय कृष्ण ही थे और उनके मित्र अन्य स्थान पर थे किंतु इस लीला के उपरांत कृष्णा अपने गायों के साथ और अपने मित्रों के साथ आगे बढ़ते हैं और जमुना के तट पर चिर घाट पर वे थे और आगे बढ़ते हुए वे अक्रुर घाट पर वे पहुंचे आप जानते हो या मथुरा या वृंदावन आज कल का वृंदावन जिसे आप कहते हो पंचकोश वाला वृंदावन कीशी घाट जहा है राधा मदन मोहन मंदिर जहा है

गोस्वामीजी द्वारा स्थापित विशेष सात मंदिर जहा है कृष्णा बलराम मंदिर है वो वृंदावन और मथुरा के बीच मे अक्रुर घाट और अक्रुर घाट के पास वो वन अशोक वन उसका नाम है बन के अंदर बन के अंदर बन ऐसा होता है ऐसा आपको बटाया गया है अधि वन उपवन ऐसे वनो के चार प्रकार बताये गये हैनारायण भट्ट गोस्वामी अपने ब्रज भक्ति विलास नामक अपने ग्रंथ में ये सब वर्णन आता है अलग अलग वनो के बनो के प्रकार तो द्वादस बारा वनो के अलावा कई सारे बन के अंदर बन के अंदर बन है तो एक अशोक बन मे वे गाय चराते हुए पहुंचे है और अब मध्यान्ह का समय हुआ है लेकिन आज के दिन वह साथ मे लंच नहीं ला पाए थे क्योंकि बना नहीं था वेसे प्रति दिन तो वहा 8.30 प्रस्थान करते है 8 बजे कहो 8 बजे गो चारण के लिए 8 बजे प्रस्थान प्रति दिन करते थे लेकिन आज तो वे प्रातः काल ब्रम्हा मुहूर्त मे उठे और चल पड़े और किसी भी बालक के माताओ ने उन के लिए भोजन नहीं बनाया था तभी भोजन का जो पैकेट है शीदोरि जिसे कहते हैं वे बन मे आए थे तो मध्यान्ह का समय हुआ तो सबको भूक लगी तो तब उस दिन भगवान ने कहा था पास मे ही कुछ यज्ञ हो रहा है वहा जाके कुछ मांग ली भिक्षा मांग लो या कहो कि कृष्णा बलराम यहा पास मे ही कुछ गायों को चारा चरा रहे है उनके लिया कुछ भोजन दीजिए कुछ खाद्य की सामाग्री दीजिए और वो जरूर देंगे आपन जाओ हो वहा कुछ बालक गए लेकिन ये यज्ञनित ब्राम्हण सामर्थ ब्राम्हण या कर्मकांडी ब्राम्हण ने ध्यान नहीं दिया बाल्को की ओर उनका तो चल रहा था स्वाहा स्वाहा.. अरे कृष्णा पास मे ही है कुछ खाने के लिए दीजिए.. स्वाहा स्वाहा स्वाहा दे आर बिजी ई भगवान के मंत्र या शायद वो समाज नहीं रहे थे यज्ञरारतात यज्ञ वेसे यज्ञ पुरुष के लिए यज्ञ होता है वेसे यज्ञ!भगवान का नाम है और भगवान के प्रसन्नता के लिए ही यज्ञ होता है लेकिन ये जो यज्ञनित ब्राम्हण है उसको कोई परवाह नहीं तो कोई चिंता नहीं थी क्योंकि वह कर्मकांडी थे किसी भी कर्म का फल हम ही भोगेंगे उनको हम कर्मी भी कह ते है तो कर्मकांडी कर्मकांड जो है उसका उद्देश यही होता है हम हम भोगे गे लेकिन भगवान ने तो कहा है

कर्मण्यवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि

अनुवाद:- तुम्हें अपने कर्म (कर्तव्य) करने का अधिकार है, किन्तु कर्म के फलों के तुम अधिकारी नहीं हो | तुम न तो कभी अपने आपको अपने कर्मों के फलों का कारण मानो, न ही कर्म न करने में कभी आसक्त होओ

यह कर्म का सिधांत है या कर्मा की शैली या उसका उद्देश्य भाव भगवान कहे है कर्म कर सकते हो पर मा फलेषु कदाचन.. लेकिन ये कर्मकांडी ब्राम्हण जो थे वेसे वे देवताओ के प्रसन्नता के लिए यज्ञ कर रहे थे ताकि देवता खुश होकर उन्हें कुछ फल दे दे उन्हें.. तो उन ब्राम्हण ने ध्यान नहीं दिया यज्ञkr रहे थे तो भगवान के मित्र निराश को कर वहा से उन्होंने कुछ नहीं दिया कुछ भी नहीं दिया हमारी तरफ ध्यान भी नहीं दिया हमारे कहने पन उनका ध्यान नहीं था उन्होंने कोई परवाह नहीं की हो कृष्ण कहे उन ब्राम्हण की पत्नियों जो है वो बड़ी भक्त है उनके पास जाओ हो कृष्ण के कुछ मित्र वहा गए और जिसे ही मांग की और बटाया की कृष्ण और बलराम पास मे ही बन मे गाय चरा रहे हैं और उन्हें लगी है भूक कुछ तो दीजिये खाने के लिए ऐसा सुनते ही उन्होंने सारी सामाग्री एकत्रित की सारी टोकरियों भर दी थालियां भर दी और वो ग्वाल बालकों को भी नहीं दे रही थी ये टोकरियों थाली भर भर के हम स्वयम जा ते पहुंचा देगी और खिलाएंगी भी कृष्ण बलराम को और उनके मित्रों को भी तो फिर ये यज्ञ पत्नियाँ भी पहुंच जाती है जहा कृष्णा बलराम थे और कृष्णा बलराम अपने कई मित्रों के मध्य मे थे तो भी ईन पत्नियों ने उन्होंने कभी कृष्णा बलराम को देखा नहीं था फिर नहीं उन्होंने उन्हें ढूंढ निकाला कोण कोण है

कृष्ण यहा हज़ारों लाखो ग्वाल बालक थे और कृष भी बालक ही है तो वह पत्नियों ये नहीं ये नहीं ये भी नहीं और यह है कृष्णा यहा वर्णन भी है कैसे थे किस प्राक्तन खड़े थे किसी के कंधे पर अपना हाथ रखे थे उनके हाथ मे कमाल का फूल था उसको घुमा रहे थे और सवर्ण मुख अरविंद नेत्र तो उनको केसे पता चाला की ये कृष्णा है यही कृष्ण है तो आचार्य बीरन उन्हें समझाते है ईन यज्ञ पत्नियों ने भागवत की कथा सुनी हुई थी भागवत पढ़ा था कृष्णा के रूप माधुरी का वर्णन सुना था पीताम्बर वस्त्र पहनते है murli धारण करते है मुकुट मे मोर पंख होता है और उनके अंग की कांति घनशाम क्योंकि उन्होंने सुना था कृष्णा के इसे दिखते है कइसा दिखता है सोंदर्य क्या वैशिष्ट्य है उनके रूह माधुरी का और वो सौंदर्य केसे भिन्न है अद्वितीय है और किसी की तुलना कृष्णा की सोंदर्य के साथ नहीं हो सकती अधिक जो गुण है

चौसठ गुण मेसे ये कृष्णा का वैशिष्ट्य है उनकी रूप माधुरी उनकी लीला माधुरी उनका प्रेम माधुर्य उनका वेणु माधुर्य ये सारा सुनी थी वे पाढ़ी थी भागवत मे तो वे परिचित थी कृष्ण से तब बड़ी आसानी के साथ उन्हें कृष्ण को इतनी भीड़ मे ढूंढ़ और सीधे पहुंच गई और कृष्णा बलराम को और सारे मित्रों को भोजन खिलाई संभावना है कि भात की मात्रा या कई सारे भात के व्यंजन दूध भात या दही भात या मसाला भात या साउथ इन्डिया मे कई सारे भात बनते है तो इसीलिए सम्भव है कि जहा यज्ञ पत्नियों कृष्णा बलराम और उनके मित्रों को भोजन खिलाए उस स्थान का नाम बना है भातरोंड और फिर वहा दर्शन भी है भातरोंड बिहारी कहते है और हम परिक्रमा प्रारंभ करते है पहले दिन वृंदावन से कृष्णा बलराम मंदिर से मथुरा की ओर जाते है तो पहला स्थान जहा परिक्रमा पहुंचती है रुकती है कथा का श्रवण होता है

तब भातरोंड जहा भात और भी व्यंजन चतुर्वेधों श्रीभागवत प्रसाद खिलाए वो स्थान तो वहा लीला भी भातरोंड मे भोजन यज्ञ पत्नियों ने कराया कृष्णा बलराम और उनके मित्रों को तो वहा लीला भी उसी दिन संपन्न हुई जिस दिन चिर घाट मे कृष्ण ने गोपियों के वस्त्र का हरण किया था अभी आपन सुन तो लिए हो उसको भूलना नहीं तो नहीं भूलने के लिए क्या करना होगा फिर जो सुना है या सुनते समय आपने लिख भी लिया होगा जिसे आप पूना पढ़ सकते हो और उसका चिंतन करो उसका मनन करो कहानी याद रहेगी उसका मतलब आपको कृष्ण कृष्णा की याद बनी रहेंगी और कृष्णा कहते है मेरा स्मरण करो तो भगवान का समान करने की यह विधि है श्रावण करने से स्मरण होता है और स्मरण की हुई बातों को औरों को सुनाए तो और स्मरण होगा क्योंकि कीर्तन करने के लिए हमने स्वयं हो स्मरण करना होता है या याद करते करते हम कहते है और याद रहता है|

हरे कृष्ण

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