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*जप चर्चा*
*पंढरपुर धाम से*
*दिनांक 26 अप्रैल 2021*
*हरे कृष्ण!*
*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे* *हरे।।*
808 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं।
*हरि हरि।*
*हरि हरि बोल गोर हरि बोल मुकुंद माधव गोविंद बोल!*
ऐसे गाते जाइए।
*भज गौरांग, कहो गौरांग*
*लह गौरांगेर नाम रे,*
*जेई जना गौरंगा भाजे,*
*सेई होय अमार प्राण रे,*
*जो गोरांग का भजन करते हैं,वह हमारे प्राण हैं।*
क्या गोरांग का भजन करने वाले आपके प्राण हैं?क्या आपके लिए वह प्राणों से प्रिय हैं? अगर नहीं हैं,तो होने चाहिए।केवल गोरांग ही नहीं,बल्कि गोरांग को भजने वाले, गोरांग का नाम लेने वाले सभी भक्त हमारे प्राण होनें चाहिए।ऐसे गोर भक्त जो गोरांग गोरांग गोरांग कहते हैं,या नित्यानंद नित्यानंद नित्यानंद कहते हैं या हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे कहते हैं यह सभी हमारे प्राण होने चाहिए क्योंकि यह भी गौरांग का भजन करना ही हुआ।
*भज गौरांगो, कहो गौरांगो,*
*लहा गौरांगेरो नाम रे।*
ऐसे भक्तों का संग किया करो,ऐसे भक्तों कि या संतों की सेवा किया करो।
*हरि हरि।*
जिस विषय पर हम पिछले 2 दिनों से चर्चा कर रहे हैं, उसी को आगे बढ़ाते हैं।हम आत्मा की बात कर रहे थे,यह आत्मा की बात हैं,या आत्मा की समझ की बात या आत्मसाक्षात्कार की बात।
आत्मा को समझेंगे तभी तो आत्म साक्षात्कार होगा। नास्तिक तो जानते ही नहीं क्योंकि वह मानते ही नहीं।लेकिन जो आस्तिक हैं, या धार्मिक हैं, वह भी आत्मा को भलीभांति नहीं जानते। उनकी आत्मा की समझ का ज्ञान कम अधिक ही हैं। किसी का कम है किसी का अधिक हैं। ज्यादा या कम। वह कुछ कुछ जानते हैं। कोई थोड़ा अधिक जानता हैं और कोई थोड़ा और अधिक जानता हैं लेकिन अधिकतर पूरा नहीं जानते। जैसे कि गोडिय वैष्णव इस ज्ञान को जानते हैं, या वैष्णव परंपरा में आने वाले भक्त इस ज्ञान को जानते हैं। परंपरा अनुगामी अनुयायी जानते हैं।
*एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः।*
*स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप।।*
*भगवद्गीता ४.२*
*अनुवाद-*
*इस प्रकार यह परम विज्ञान गुरु - परम्परा द्वारा प्राप्त किया गया* *और राजर्षियों ने इसी विधि से इसे समझा किन्तु कालक्रम में यह* *परम्परा छिन्न हो गई ,अत : यह विज्ञान यथारूप में लुप्त हो गया* *लगता हैं।*
कृष्ण यह घोषणा कर चुके हैं,कि हे अर्जुन!इस ज्ञान को परंपरा में रहकर ही जाना जा सकता हैं।जो परंपरा में नहीं है या जिन्होंने अपनी खुद की नई परंपरा बना ली हैं या फिर जो परंपरा से पूरी तरह से नहीं जुड़े हुए हैं,जिनका परंपरा से घनिष्ठ संबंध नहीं है।कुछ समझ और संबंध हैं,उनकी नासमझी को हम समझने का प्रयास कर रहे हैं।यह लोग क्या समझते हैं और क्या नहीं समझते हैं। ग्रीस के पलैटों इसे समझ गए थे। यह बहुत समय पहले की बात हैं। वह आत्म साक्षात्कारी थे।वह जानते थे कि शरीर और आत्मा दो अलग-अलग चीजें हैं। शरीर मरता हैं, लेकिन आत्मा अमर हैं या शाश्वत हैं। शरीर एवं आत्मा दो अलग-अलग चीजें हैं। उनका कहना था कि मृत्यु का अर्थ है आत्मा का शरीर से अलग होना। आत्मा जब शरीर से अलग होती है तो उसी को मृत्यु कहते हैं।ऐसा उन्होंने लिखा भी और ऐसा वह प्रचार भी कर रहे थे। यह समझ आत्मा के दायरे तक सही हैं। उस समय की सरकार इस प्लेटो से नाराज थी और ऐसा आदेश जारी किया गया था कि उसकी जान ले लो।प्लेटो ने कहा कि अगर आप मुझे पकड़ सकते हैं,तभी आप मुझे मारोगे।आप मुझे मारने की योजना तो बना रहे हैं लेकिन मार तो तभी पाएंगे जब आप मुझे पकड़ पाएंगे। इस वचन में वह आत्मा की बात कर रहे थे क्योंकि आत्मा को तो पकड़ा नहीं जा सकता।उनका मानना था कि आप लोग तो शरीर को मारेंगे लेकिन मैं तो शरीर नहीं हूं मैं आत्मा हूं।
*“नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।*
*न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।।*
*भगवद्गीता २.२३*
*अनुवाद*
*यह आत्मा न तो कभी किसी शस्त्र द्वारा खण्ड-खण्ड किया जा* *सकता है, न अग्नि द्वारा जलाया जा सकता है, न जल द्वारा भिगोया* *या वायु द्वारा सुखाया जा सकता।*
आत्मा को किसी अस्त्र या शस्त्र से मारा नहीं जा सकता।आत्मा की हत्या संभव ही नहीं हैं।हम आत्महत्या-आत्महत्या तो करते रहते हैं, लेकिन आत्मा की हत्या संभव नहीं हैं। यहां पर शरीर को आत्म माना गया हैं।शरीर को भी आत्म माना जाता हैं। आत्मा मतलब मैं।
शरीर की हत्या होती हैं,आत्मा की हत्या संभव नहीं हैं। इस बात को प्लेटो भली-भांति समझ गए थे। आत्मा के संबंध में अलग-अलग धर्मों की अलग-अलग मान्यताएं हैं। आत्मा का स्त्रोत,आत्मा का प्रवास, और आत्मा का गंतव्य इन सब के बारे में यहां चर्चा हुई हैं। मैं थोड़ा आगे पीछे की बातें कर रहा हूं।बौद्ध पंथी का मत या समझ यह है कि यह जो मुक्ति हैं, मुक्ति अर्थात किस से मुक्त होना हैं? एक तो दुख से मुक्त होना हैं, यह बात तो उन लोगों को समझ आ चुकी हैं। जैसा कि कृष्ण ने भगवद्गीता में कहा हैं, दुखालयम अशाश्वतम्।
*मामुपेत्य पुनर्जन्म दु:खालयमशाश्वतम्।*
*नाप्नुवन्ति महात्मान: संसिद्धिं परमां गता:।।*
*भगवद्गीता ८.१५*
*अनुवाद*
*मुझे प्राप्त करके महापुरुष जो भक्ति योगी* *हैं,कभी भी दुखों से* *पूर्ण इस अनित्य जगत में नहीं लौटते,क्योंकि उन्हें परम सिद्धि प्राप्त* *हो चुकी होती हैं*
यह संसार दुखों का आलय हैं और मुक्त होने का अर्थ हैं। इस संसार के दुखों से मुक्त होना। यह संसार दुख आलय हैं और अश्वातम अर्थात शाश्वत नहीं है। उनके कहना हैं कि कुछ भी शाश्वत नहीं है और उसमें आत्मा भी सम्मिलित हैं, कि आत्मा भी शाश्वत नहीं हैं। उनकी समझ हैं कि आत्मा का भी आया राम गया राम होता हैं। एक दिन हमारी आत्मा और आत्मा की ज्योति बुझ जाएगी। ऐसा उनका मानना हैं और उस समय आत्मा समाप्त हो जाएगी। उनके हिसाब से आत्मा का अस्तित्व समाप्त होना ही निर्वाण हैं। ईसाई धर्म या मुस्लिम लोगों का पुनर्जन्म में विश्वास नहीं हैं। उनकी समझ है कि मनुष्य जीवन ही आखिरी जीवन हैं। यह अंतिम जीवन हैं। इसके बाद जीवन नहीं हैं। जब ईसाइयों की या मुसलमानों की मृत्यु होती हैं और उन को मकबरे में दफनाते हैं,उनकी समझ यह हैं कि हमें मकबरे में दफनाया जाता हैं। जिसे हम समाधि कहते हैं। हम हर किसी को समाधि में नहीं रखते। हिंदू धर्म में या सनातन धर्म में इस शरीर को भस्म कर देते हैं और अगर अभी भी वह अगर शरीर के साथ संबंध तोड़ नहीं रहा हैं, वही अटका हुआ हैं तो गंगा के जल से छोड़ता हैं। यह अंतिम संस्कार हैं। कई सारे संस्कार होते हैं। इसी अंतिम संस्कार के साथ आत्मा को शरीर से अलग किया जाता हैं।
मृत्यु होने पर आत्मा शरीर से अलग होता हैं, लेकिन तो भी कुछ ना कुछ संबंध बना रहता हैं।आत्मा के शरीर से सारे संबंधों को तोड़ने के लिए,उसे मिटाने के उद्देश्य से अंतिम संस्कार किया जा सकता हैं। ताकि आत्मा आगे बढ़ सके।आत्मा को किसी ओर योनि को प्राप्त करना हैं।स्वर्ग जाना हैं या नर्क जाना हैं या भगवद् धाम जाना हैं।आत्मा का शरीर के साथ स्थूल या सूक्ष्म संबंध हैं। उसे अंतिम संस्कार के द्वारा मिटाया जाता हैं। ईसाइयों और मुसलमानों की समझ यह है कि जब मृत्यु हुई तो आत्मा शरीर से अलग हुई तो भी आत्मा उसी शरीर के इर्द-गिर्द लटकता या भटकता रहता हैं और फिर वह व्यक्ति पुनः जीवित होगा।यह उनकी समझ हैं और फिर कयामत के दिन पर फैसला होगा। जैसा बोओगे वैसा काटोगे। ऐसी समझ हैं। इसका फैसला जजमेंट के दिन पर होगा यानी उनके हिसाब से कयामत के दिन पर। उनकी समझ के अनुसार पुनर्जन्म नहीं है दो ही पर्याय हैंं।
*” बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते।*
*वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः।।*
*भगवद्गीता ७.१९*
*अनुवाद*
*अनेक जन्म-जन्मान्तर के बाद जिसे सचमुच ज्ञान होता है, वह* *मुझको समस्त कारणों का कारण जानकर मेरी शरण में आता है |* *ऐसा महात्मा अत्यन्त दुर्लभ होता है |*
वह मानकर बैठे हैं कि मनुष्य जीवन आखिरी जीवन है और फिर जब पुनः जीवित होंगे तो सब साथ होंगे।ऐसा ईसाइयों में खास रूप से देखा जाता है कि अपने परिवार के लिए एक पूरा प्लॉट खरीद लेते हैं। ताकि एक परिवार को एक जगह पर एक साथ दफनाया जा सके और परिवार के सदस्यों की जब एक के बाद एक मृत्यु होगी तो उन्हें वही कब्र में दफनाया जा सके और उनकी समझ यह है कि जब वह पुनः जीवित होंगे तो सारा परिवार पुनः जीवित होगा।सारे परिवार के सदस्य वहां एक साथ एक ही जगह पर रहेंगे क्योंकि आसकती इतनी जबरदस्त हैं।इसलिए वह ऐसा चाहते हैं कि सब मृत्यु के बाद भी साथ मे रहे। ऐसी उनकी मान्यता हैं, लेकिन यह हकीकत नहीं हैं। कयामत के दिन पर जब फैसला होगा तब उनके हिसाब से दो ही प्रकार के फैसले होते हैं एक तो स्वर्ग या नर्क और फिर तुम सदा के लिए नर्क में या स्वर्ग में रहो। हरि हरि और तो और कुछ ऐसे मुस्लिम बंधु हैं जो कि जिहाद को मानते हैं। जो जिहादी होते हैं उनके अनुसार अगर हम इस्लाम का प्रचार करते हुए मरते हैं या जो इस्लाम के विरोधी हैं उनकी जान लेते हुए मरते हैं तो आंतकवादी बन कर या मानव बंम अगर बनते हैं तो और बंम को चालू करके विस्फोट होते होते अल्लाह बोलते हुए मरते हैं तो आपको पुनः जन्म नहीं लेना पड़ेगा।
इस प्रक्रिया से नहीं गुजरना पड़ेगा।आप सीधे अल्लाह को प्राप्त करोगे। इस प्रकार अगर आपने करा तो आपके लिए नर्क तो हैं ही नहीं।अच्छा! यह अमरीकी मुस्लिमों के खिलाफ हैं। तो चलो विमान को उड़ा देते हैं और सब को मार देते हैं। कैप्टन को वहां से निकाल देंगे और हम खुद ही कैप्टन बनेंगे और जो न्यूयॉर्क में ट्विन टॉवर वर्ल्ड ट्रेड सेंटर है उसी को उड़ा देते हैं और उस समय अगर हम अल्लाह कहते हैं तो हम सीधे अल्लाह के धाम जाएंगे। अल्लाह को प्राप्त करेंगे। हमारे लिए कयामत के दिन पर फैसला नहीं होगा। फैसला तो औरों के लिए होगा। हमारा तो उसी वक्त ही फैसला होगा और हम तुरंत ही अल्लाह को प्राप्त होंगे। और हम मुक्त हो जाएंगे ।हमें इस बात की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी कि हमें दफनाया जाएगा और हमारा नंबर जब आएगा।हम पुनः जीवित होंगे और फैसले का दिन आएगा और तब फैसला होगा। ऐसा हमारे साथ नहीं होने वाला आदि। लोग ऐसा सोचते हैं ऐसा होने पर हो सकता है कि हम नरक में भी चले जाए तो इन सब से बचना है तो जिहादी बन जाओ।तो देखो इन लोगों का कैसा धर्म हैं।कैसे-कैसे इनके कर्म हैं और कैसी इनकी समझ हैं। इनके हिसाब से इस तरीके से यह मुक्त हो सकते हैं। इनके हिसाब से पुनर्जन्म तो हैं ही नहीं और यह मनुष्य जीवन ही अंतिम जीवन हैं। हम पुनर्जन्म में विश्वास नहीं करते ऐसा यह लोग कहते हैं। अरे मूर्ख! तुम्हारा विश्वास नहीं है तो इससे भगवान तो समाप्त नहीं होंगे हमारे विश्वास होने या ना होने से जो हकीकत हैं उसमें तो कोई परिवर्तन तो हो नही जाएगा। उल्लू को जैसे रात में दिखता हैं, दिन में उसे दिखता ही नहीं हैं। सूर्य उदय होते ही उसकी आंखें बंद हो जाती हैं। उसको दिखना बंद हो जाता हैं। इसलिए यह बात कौन कह रहा हैं?उल्लू कह रहा है कि मेरा सूर्य में विश्वास नहीं हैं।दिखता ही नहीं हैं और वह बक रहा हैं। हरि हरि। ऐसे ही कोई कहे कि मेरा मृत्यु में विश्वास नहीं हैं, तो क्या वह मृत्यु से बच जाएगा? मैं पुनर्जन्म में विश्वास नहीं करता, पुनर्जन्म समझते हो?ऐसा भगवान स्वयं के लिए कहते हैं संभवामि युगे युगे।
*परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |*
*धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।*
*भगवद्गीता ४.८*
*अनुवाद*
*भक्तों का उद्धार करने दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से* *स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूं।*
भगवान पुनः पुनः प्रकट होते हैं,तो भगवान के संबंध में हम इस शब्द का प्रयोग करते हैं। लेकिन पाश्चात्य देशो में या ईसाई और इस्लाम धर्म में जीव का पुनः पुनः एक शरीर में आना इसे यह रिइनकारनेशन कहते हैं।विश्वास होने या ना होने से फर्क नहीं पड़ता। पुनर्जन्म तो होता ही हैं।
हरि हरि।
और वैसे कृष्ण ने भी कहा है
नित्यो नित्यानाम भगवान भी नित्य हैं और जीव भी नित्य हैं।
*नित्योऽनित्यानां चेतनश्चेतनानामेको बहूनां यो विदधाति कामान् ।*
*तमात्मस्थं येऽनुपश्यन्ति धीरास्तेषां शान्तिः शाश्वतीनेतरेषाम् ॥ १३ ॥*
*कथा उपनिषद २.२.१३*
और कृष्ण ने कहा कि तथा देहांतर प्राप्तिर भी हैंं।
*“देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा |*
*तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति || भगवद्गीता २.१३ ||”*
*अनुवाद*
*जिस प्रकार शरीरधारी आत्मा इस (वर्तमान) शरीर में बालयावस्था* *तरुणावस्था में और फिर वृद्धावस्था में निरन्तर अग्रसर होता रहता* *है, उसी प्रकार मृत्यु होने पर आत्मा दूसरे शरीर में चला जाता है |* *धीर व्यक्ति ऐसे परिवर्तन से मोह को प्राप्त नहीं होता |*
जैसे इस शरीर में भी हम देखते हैं कि हम बालक का शरीर छोड़कर युवा शरीर को प्राप्त करते हैं, युवा शरीर छोड़कर वृद्धावस्था प्राप्त करते हैं ,यह अलग-अलग शरीर ही हैं। तो एक ही जीवन में शरीर में परिवर्तन हुआ। उसी प्रकार मृत्युपरान्त एक और बड़ा बदलाव आएगा। दूसरी देह की प्राप्ति होगी। कोई भी शरीर प्राप्त हो सकता हैं। राजा भरत थे तो राजा लेकिन अगले जन्म में हीरन बन गए।
*karmaṇā daiva-netreṇa*
*jantur dehopapattaye*
*striyāḥ praviṣṭa udaraṁ*
*puṁso retaḥ-kaṇāśrayaḥ*
*श्रीमद् भागवतम् ३.३१.१*
अपने कर्मों के अनुसार हमें सत् या असत् योनि प्राप्त होती हैं। यहां कृष्ण ने कहा हैं कि
*” ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः |*
*जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसाः || १८ ||”*
*भगवद्गीता १४.१८*
*अनुवाद*
*सतोगुणी व्यक्ति क्रमशः उच्च लोकों को ऊपर जाते हैं,रजोगुणी इसी*
*पृथ्वीलोक में रह जाते हैं, और जो अत्यन्त गर्हित* *तमोगुण में स्थित हैं, वे नीचे नरक *लोकों को जाते हैं ।*
आप या तो ऊपर के लोको में जा सकते हो या नीचे के लोको में या स्वर्ग में या नरक में। कोई सी भी योनि प्राप्त कर सकते हैं। हमें या तो इसका ज्ञान नहीं है या आधा ज्ञान हैं। जैसे पशु शरीर में आत्मा नहीं है आत्मा केवल मनुष्य शरीर में होती हैं, इसलिए पशुओं को काटो मारो खाओ,कोई पाप नहीं लगेगा। किंतु इस पर अब धीरे-धीरे खोज हो रही हैं। आत्मा के अस्तित्व के संबंध में बहुत सी खोजे हो रही हैं या चेतना पर बहुत अनुसंधान हो रहे हैं।
वैज्ञानिक इस पर बहुत अनुसंधान कर रहे हैं कि भावना या चेतना हैं या नहीं। इस पर बहुत सा धन खर्च कर रहे हैं कि पुनर्जन्म होता है या नहीं। कोई उन्हें बताएं कि गीता भागवत पढ़ो, आत्मा का तुरंत ज्ञान हो जाएगा।कोई खर्चा पानी नहीं हैं। यह लोग खोज में बहुत सी धनराशि खर्च कर रहे हैं।इनको ऐसे दो हजार मनुष्य मिले हैं,जिन्होंने कहा हैं कि इससे पहले जन्म में मैं यह था या यहां जन्मा था, वहां जन्मा था इस तरह से मेरी मृत्यु हो गई। कुछ लोगों को ऐसी यादें हैं। भगवान उनको ज्ञान दे रहे हैं। तो उनके पास यह लोग झट से पहुंचकर उनसे जान रहे हैं और वह व्यक्ति बता रहा हैं कि मैं इस जन्म में यह था ऐसे दो हजार मनुष्य उनको मिल चुके हैं जिन्होंने अपनी आपबीती बताई हैं और यह लोग अब धीरे-धीरे घोषित कर रहे हैं,कि हां हां पुनर्जन्म होता हैं। लोग सत्य की तरफ मुड़ रहे हैं।कुछ लोग गीता भागवत को नहीं मानते। उन्हें लातों के साथ अब माया मनवा रही हैं या उनकी खोपड़ी में कुछ प्रकाश डाल रही हैं। यह आत्मा एक बहुत बड़ा विषय हैं। आत्मा का ज्ञान एक बहुत बड़ा विषय हैं और पूरा संसार आत्मा और परमात्मा की खोज में हैं। जाने अनजाने लोग इसे जानने और समझने का प्रयास तो कर रहे हैं और कुछ इंकार कर रहे हैं कि ऐसा नहीं हैं, लेकिन यह ज्यादा समय नहीं चलेगा। हरि हरि।। अब यहां रुकेंगे।
आप गीता भागवत पढ़ते रहो।गीता भागवत को पढ़ोगे तो आप भी आत्मसाक्षात्कारी बनोगे।भगवद् साक्षात्कारी बनोगे
*गीता भागवत करिती श्रवण। अखंड चिंतन विठोबाचे*
*(संत तुकाराम)*
और
*जीवेर स्वरूप हय कृष्णनेर नित्य दास*
*(भक्ति विनोद ठाकुर)*
मैं जीव हूं और यह जीवात्मा कृष्ण का दास हैं। मित्र भी हो सकता है ऐसा अगर जान लेंगे तो भक्ति विनोद ठाकुर कहते हैं कि कोई दुख नहीं होगा और यहां केवल दुख ही दुख नहीं हैं,यहां सुख भी हैं।
वैष्णवो के लिए यह संसार सुखालय हैं।
*विश्वम पूर्ण सुखायते*
*(प्रभोदानंद सरस्वती)*
या भक्त सुख का अनुभव कर सकते हैं। आत्मानंद या परमानंद या कृष्णानंद या हरिनाम आनंद। आनंद ही आनंद।। ठीक हैं तो आप इन बातों को सुनकर समझ कर और इस पर अमल करके आनंद लूटीये।
*आनंदी आनंद गडे , इकडे तिकडे चोहीकडे।*
*निताई गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल*
*हरे कृष्ण*