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*जप चर्चा* *पंढरपुर धाम से* *दिनांक 27 अप्रैल 2021* 890 स्थानों से आज जप हो रहा है । जय राम श्री राम जय जय राम ऐसे हनुमान गाया करते थे । हनुमान अपने प्रभु के गुण गाते थे , जय हनुमान आज चैत्र पूर्णिमा है , कुछ लोगो को पता नहीं था ,पहली बार सुन रहे है , पंचांग को देखा करो , चंद्रमा को तो देखा ही होगा , मैंने भी देखा ही है कल रात को भी देखा था आज प्रात भी देखा है और आज का चंद्रमा थोड़ा विशेष था ऐसे समाचार में भी आया था । सुपरमून, चंद्रमा का आकार थोड़ा बड़ा हो जाता है क्योंकि वह जरा पृथ्वी के अधिक निकट पहुंचता है , अधिक निकटतम पहुंचता है और फिर दूर जाता है, सुपरमून बड़े आकार वाला और केवल सुपरमून ही नहीं गुलाबी रंग के चंद्रमा का भी हमने प्रात काल ब्रम्हमुहूर्त में दर्शन किया । आज चैत्र पूर्णिमा है और यह श्रीकृष्ण की भी रास पूर्णिमा है , वसंत राज , वसंत ऋतु भी चल रहा है । यह 2 महीने है चैत्र वैशाख , चैत्र की पूर्णिमा है । चैत्र वैशाख 2 मास का वसंत ऋतु होता है , प्रात काल में हम कई सारे पक्षियों की चहक चुन रहे थे , पंढरपुर में कोयल भी गा रही थी तब पता चला कि हां वसंत ऋतु है , वसंत ऋतु में आज की पूर्णिमा के दिन श्री कृष्ण की रासक्रीड़ा होती है ।यह विशेष रासक्रीड़ा खेलते हैं , रासक्रीड़ा वैसे हर रात्रि को होती है और फिर एक विशेष रास क्रीडा शरद पूर्णिमा की और फिर आज की वसंत ऋतु में चैत्र पूर्णिमा में कृष्ण की रासक्रीड़ा और भी प्रसिद्ध है । हरि हरि । और वैसे आज बलराम रास पौर्णि भी है। रास खेलने वाले रास मतलब डांस , नृत्य कृष्ण रास क्रीड़ा खेलते हैं और कृष्ण के स्वरूप है जो स्वयं रूप ही है जो स्वयं प्रकाश है , बलराम । कृष्ण और बलराम यह दो ही रासक्रीड़ा सकते हैं , राम नही , नरसिम्हा नहीं और कोई नहीं । अद्वैत अच्युतम अनादि भगवान के अनंत रूप है , ऐसे आदिरूप , मूल रूप श्री कृष्ण है , बलराम नंबर दो का रूप है । तप और सिद्धांत की बातें भी हो रही है । बलराम जब द्वारका से वृंदावन आए , अकेले ही आए , अकेले को ही भेजा द्वारका वासियों ने , दोनों को नहीं भेजना चाहते थे । दोनों जाते तो फिर गए काम से शायद लौटेंगे नहीं ऐसा सोचकर द्वारका वासियों ने कृष्ण को द्वारिका में रखा और बलराम को भेजा , आप जाओ, आप जा सकते हो, आप कुशल मंगल पूछ कर आओ मिलो और यहाँ का समाचार ब्रज वासियों को दो । बलराम जी आए वृंदावन और 2 मास रहे । चैत्र वैशाख के दो मास बलराम वृंदावन में रहे सभी से मिल रहे थे , सभी से मिले , नंद बाबा यशोदा को मिले , ग्वाल बालको को मिले , गोपियों को भी मिले और बलराम की अपनी खुद की गोपियां है । अपने गोपियों के साथ अधिकतर गोपियां कृष्ण की गोपियां है लेकिन बलराम की भी गोपिया है , बलराम का भी माधुर्य रस सम्बंध कुछ ब्रज की युतियों के साथ है , उन बृजबालाओं के साथ बलराम ने आज पूर्णिमा की रात्रि को रास क्रीडा खेली । वृंदावन में एक रामघाट है , आप को ब्रज मंडल परिक्रमा में जाना होगा तब यह सब आपको पता चलेगा , कौन सा स्थान कोनसी लीला स्थली ब्रज में कहा है ? रामघाट जय जय ।उस स्थान का नाम रामघाट हुआ क्योंकि वहा बलराम गोपियों के साथ महारास खेले । आज वह महारास की पूर्णिमा है उसे पढियेगा श्रीमद्भागवत के दशम स्कंध में या श्रील प्रभुपाद का लीला पुरुषोत्तम नामक ग्रँथ है , कृष्ण बुक उसमें एक अध्याय आपको मिलेगा बलराम की वृंदावन में भेट और उसी के अंतर्गत बलराम की रास क्रीडा आज की रात्रि को बलराम खेलें । जय बलदेव , जय बलराम। रासलीला महोत्सव की जय। हरि हरि। इसी चैत्र पूर्णिमा के दीन श्यामानंद पंडित भी जन्मे । श्यामानंद पंडित आविर्भावतिथि महोत्सव की जय । इनका जन्म उड़ीसा में हुआ।और इनके पहले , उनके कई भाई-बहन जन्म ले चुके थे , लेकिन जन्म लेते ही वह मर जाते थे । इसलिए माता-पिता दुखी थे तो जब आज के दिन रामानंद पंडित का जन्म हुआ तब इस बालक का नाम रखा दुखिया ,स्वयं दुखी थे , शायद यह भी हम को दुख देने वाला है लेकिन कुंडलि पढ़ी तब पता चला कि यह जीते रहेगे इनकी दीर्घायु होंगी और यह महान भक्त संत होंगे और बाल अवस्था में ही ऐसे लक्षण दिखने लगे । यह गौर नित्यानंद की कथा का श्रवण किया करते थे , उस श्रवण में तल्लीन होते थे कानों से वह नित्यानंद की लीलाएं कथाएं सुन रहे है , आंखों से अश्रु बह रहे हैं , शरीर में रिमांच है , बाल अवस्था में ऐसी स्थिति होने लगी इस बालक की , दुखिया जिसका नाम था । वह गौर भक्तों का संग चाहते थे , उड़ीसा से वह बंगाल में आए और नवद्वीप में आकर हृदय चैतन्य के शिष्य बने । जो हृदय चैतन्य या गौड़ीय वैष्णव यह समय वैसे चैतन्य महाप्रभु के अंतर्धान होने के उपरांत तुरंत की बातें है अभी अभी चैतन्य महाप्रभु यह धरातल पर थे लेकिन अभी नहीं रहे । तभी श्यामानंद , हृदयानंद प्रकट हुए। उन्होंने आदेश दिया उनकी इच्छा भी थी वृंदावन जाने की तो जब दीक्षा हुई हॄदयानंद आचार्य ने दुखिया को दिशा दि और उसका नाम दुखिया कृष्ण या दुखी कृष्ण रखा । दुखी कृष्णा वृंदावन आए और वहां के उस समय के जो गौड़ीय वैष्णव थे उनके संपर्क में आए । जीव गोस्वामी थे अन्य गोस्वामी थे अभी धीरे-धीरे नही रहे उन्होंने प्रस्थान किया था , परलोक या गोलोक के लिए वह पधारे थे लेकिन जीव गोस्वामी थे लोकनाथ गोस्वामी थे और श्रीनिवास आचार्य भी वहां पहुंचे थे और नरोत्तम दास ठाकुर भी थे । वैसे तीनों की टीम बन जाती है , श्रीनिवास आचार्य ,नरोत्तम दास ठाकुर और श्यामानंद पंडित । जीव गोस्वामी ने ही इन तीनों को यह पदविया दी , एक को कहा तुम श्रीनिवास आचार्य ,नरोत्तम तुम नरोत्तमदास ठाकुर और श्यामानंद तुम श्यामानंद पंडित ऐसे उपाधिया दी , लेकिन यह श्यामानंद बने कैसे ? श्यामानंद नाम कैसे हुआ यह बड़ी रहस्यमई घटना घटी । जीव गोस्वामी ने दुखिया कृष्णा को एक के सेवा दी , जब भगवान हर रात्रि को सेवा कुंज में रासक्रीड़ा खेलते हैं उनके रासक्रीड़ा के उपरांत तुम प्रातकाल में या ब्रह्म मुहूर्त में वहा जाना और वहां सफाई का काम तुम करना, झाड़ू पोछा तुम लगाओ तब बड़े आराम के साथ , प्रसन्न चित्त इस प्रकार की सेवा करने लगे , कर रहे थे। करते करते वे जब रास क्रीड़ा क्षेत्र की सफाई करते तो रास क्रीड़ा का स्मरण भी किया करते थे कैसी हो संपन्न हुई होगी आज रात्रि की रासलीला भगवान की हर रात्रि को रासलीला होती है हर रात्रि को होती हैं। तो वो हाथ से सफाई भी कर रही है मन तो खाली है मन व्यस्त है मन को व्यस्त रखो वह तो दुखिया कृष्ण ही थे अपने मन को व्यस्त रखते थे मन मे *मनो मध्ये स्थितो मंत्र मंत्र मध्ये स्थितं मन मनो मंत्र समायुक्तम येतधी जप लक्षण ।* मन में मन्त्र को स्थिर करते थे। *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे* *हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे* भी गा रहे हैं और उसी मन से फिर जब गा रहे हैं तो उनको स्मरण भी हो रहा है। वही स्थान पर रासलीला भगवान खेला करते थे हर रात्रि को और ऐसा स्थान का प्रभाव भी है आप समझ सकते हो हम जहां भी जाते हैं हरी हरी सिनेमाघर जाते हैं दुर्दैव से सिनेमा घर जाओगे तो क्या याद आएगा अभी सिनेमा शुरू भी नहीं हुआ तो पहले ही नट नटी की याद आएगी ऐसा प्रभाव होता है हर स्थान का प्रभाव होता है। स्थान प्रभाव डालता ही है उन लोगों पर जो वहां रहते हैं या पहुंच जाते हैं। तो ऐसा हर स्थान का प्रभाव है कई स्थान तमोगुण है कई स्थान रजोगुण संपन्न है तो कई स्थान सत्वगुण का प्राधान्य है तो कुछ तान तो गुनातीत है। शुद्ध सत्व गुण वाले हैं वृंदावन धाम की जय और इस स्थान का क्या कहना जहा भगवान रास क्रीड़ा खेलते हैं और कहीं भी जाएगा जो साधक हैं उनको ऐसा ट्रेनिंग दिया जाता है कि स्मरण किया करो यह दुखीकृष्ण जीवगोस्वामी के अभी शिष्य बने फिर शिक्षा शिष्य बने श्री हृदयानंद आचार्य के वह दीक्षा शिष्य थे और यहां जीवगोस्वामी से शिक्षा लिए। रासलीला का स्मरण करते समय वह सफाई का कार्य कर ही रहे थे तो जल्दी बताना होगा समय खत्म हो रहा है। हरी हरी मरने के लिए समय नहीं है वैसे नहीं मरेंगे हम यह कथा सुनेंगे इस कथावो को यदि हम हॄदयांगम करेंगे फिर नहीं मरेंगे या मर भी जाएंगे तो यह हमारी आखरी मृत्यु होगी पुन्हा नही जन्म लेंगे *पुनरपि जननं पुनरपि मरणं* *पुनरपि जननं पुनरपि मरणं पुनरपि जननीजठरे शयनम्। इह संसारे बहुदुस्तारे कृपयापारे पाहि मुरारे ॥21॥ -* *शंकराचार्यजी द्वारा रचित भज गोविन्दम् – श्लोक सं.-21* *अनुवाद:-हे परम पूज्य परमात्मा! मुझे अपनी शरण में ले लो। मैं इस जन्म और मृत्यु के चक्कर से मुक्ति प्राप्त करना चाहता हूँ। मुझे इस संसार रूपी विशाल समुद्र को पार करने की शक्ति दो ईश्वर।* तो इसी लिये हमारे पूर्ववर्ती आचार्य को के चरित्र सुनना चाहिए कृष्ण के चरित्र के साथ राम के चरित्र के साथ हनुमान का चरित्र भी हमको पढ़ना चाहिए और साथ ही ये श्यामानंद प्रभु की बातें चल रही है अभी तक तो वो दुखिया कृष्ण ही हैं। तो वह जब सफाई कर रहे थे तो सफाई करते करते वैसे राधा ने ही ये योजना बनाई थी ऐसा समझ में आता है क्या किया राधा ने अपने चरण का जो नूपुर है एक नूपुर गिर गया भी कह सकते हैं या गिरा दिया भी कह सकते हैं। तो गिरा ही दिया राधारानी ने ऐसी कृपा करना चाहती थी दुखिया कृष्ण के ऊपर इस रासक्रीड़ा के उपरांत वो जरूर आएगा और उसको दर्शन होगा। उसको स्पर्श होगा इस नूपुर का ऐसी कृपा करने के उद्देश्य से ही राधा रानी ने एक नूपुर वहीं छोड़ दिया या गिर गया तो उसके बाद दुखिया कृष्ण आ गए जब सफाई कर रहे थे तब सफाई करते करते वह स्थान पर पहुंचे जहां वह नूपुर रखा था ऐसी चमक-दमक थी उसकी उसकी किरणें सोनेरी रंगों की थी वहां जे स्वर्ण किरणे निकल रहित थीं और उसके बाद उसकी ओर ध्यान गया और उन्होंने उसको उठा लिया और उनके शरीर में रोमांच होने लगा उस नूपुर के दर्शन और स्पर्श मात्र से उस नूपुर का स्पर्श मात्र भी राधा का ही स्पर्श था। उसको उन्होंने एक वस्त्र में बांध कर रख दिया और सफाई करने लगे तो राधा प्रात काल में अपने घर पर पहुंच गई और घर पर पहुंचने पर पता चला नुपुर कहां है एक नूपुर नहीं है उसने ललिला सखी को बुलाया और कहा कि जाओ जाओ जहां रात्रि में रासक्रीड़ा हो रही थी ना तो उस रात की रासकीड़ा विशेष रही थी तो वहां स्पर्धा थी राधा नृत्य करती थी फिर कृष्ण नृत्य करते दोनों में स्पर्धा होती थी और फिर अलग-अलग सखियों के मध्य में भी स्पर्धा होती थी। तुम सखी ललिता विशाखा के साथ और इस तरह होती थी तो राधा ने ललिता को बुलाया ललिता सुंदरी पहुंची तो कहा कि जाओ जाओ मेरा नूपुर ढूंढ के लेकर आओ तो ललिता भागे दौड़े गई उस रास क्रीड़ा स्थान पर और उसने देखा कि वहां एक साफ सफाई कर रहा था वो दुखिया कृष्ण झाड़ू लगा रहा था तो उसने पूछा कि तुम्हे यहां नूपुर मिला तो पहले तो उसने कुछ नहीं कहा फिर वह एक गोपनीय बात भी थी यह मूल्यवान तो था ही ये नूपुर तो ठीक है हमें रुकना चाहिए तो तुम कौन हो तो ललिता ने कहा कि अपनी आंखें बंद करो तो दुखिया कृष्ण ने अपनी आंखें बंद की तो ललिता ने अपना दर्शन दिया वैसे तो ललिता वहां थी ही किंतु दिव्य दर्शन दिया दुखियाकृष्ण को दिव्य दर्शन भी हुआ और फिर ललिता ने अपना परिचय भी दिया कि मैं राधा दासी हूं और राधा ने ही मुझे भेजा है वह नूपुर जो तुमको मिला है वह राधा रानी का है कृपया दे दो तो श्यामानंद ने नूपुर को जो वस्त्र में बांधकर रखा था वो लौटा दिया ललिता को दे दिया ललिता ने उस नूपुर को अपने हाथ में लेकर दुखियाकृष्ण के कपाल पर रखा और उसको चिन्हित किया और बाद में उसका चिन्न बन गया श्यामानंद के कपाल पर राधा रानी के नूपुर का चिन्ह बन गया। हमेशा के लिए बन गया और उस समय ललिता ने दुखियाकृष्ण को और एक नाम दिया तुम्हारा नाम होगा श्यामानंद शाम आनंद नहीं श्यामानंद श्यामानंद राधानंद तो पहले की दुखिया बन गए दुखियाकृष्ण फिर बन गए श्यामानंद फिर बन गए श्यामानंद पंडित जीव गोस्वामी ने पंडित की उपाधि दी तो ऐसे श्यामानंद पंडित का आज आविर्भाव दिवस आज पूरा गौड़ीय वैष्णव जगत मना रहा है। ठीक है हरि हरि हनुमान जी को तो आप जानती हो लेकिन हनुमान भगवान नहीं है इतना तो समझ लो कुछ लोग कहते है लॉर्ड हनुमान ,लॉर्ड हनुमान हमारे देश में या फिर कहीं पर भी जब कोई अपने सिद्धि का प्रदर्शन करता है या कोई चमत्कार करता हैं जो हनुमानजी ने किया अपनी सिद्धि का दर्शन जैसे कहि उड़ान भरना हैं जैसे लंका हवाई मार्ग से गए तो फिर ये सब जो चमत्कार देखे सुने तो वह चमत्कार देखकर व्यक्ति नमस्कार करता है। उनको भगवान समझते है तो हनुमान भगवान नहीं थे भगवान तो श्रीराम हैं और हनुमान है रामदास,राम भक्त हनुमान की जय..... यह राम भक्ति है जो कृष्ण भक्ति है भक्ति के अंतर्गत जो दास्य नाम की जो भक्ति है नवविधा भक्ति मे से जो श्रवण,कीर्तन और दास्यम,साँख्यम,आत्मनिवेदनम इसमे से जो दास्य हैं इस दास्य भक्ति जे सर्वोपरि अधिकारी या भक्त या आप कह सकते हैं आचार्य वह हनुमान हैं। हनुमान जैसा दास संसार में नहीं है तो ऐसे हनुमान का आज जन्म दिवस है हनुमान जयंती है। *हनुमान जयंती महोत्सव की जय गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल*

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