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जप चर्चा, पंढरपुर धाम से, 5 जुलाई 2021 हरे कृष्ण! 884 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं,जैसे चौरासी कोस ब्रज मंडल परिक्रमा होती हैं।आप सभी का स्वागत हैं। ओम् अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया । चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥ जय श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद श्री अद्वैत गदाधर श्रीवास आदि गोर भक्त वृंद। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। आप में से कई लोग हैप्पी बर्थडे टू यू इत्यादि लिख रहे हो।मैंने किसी को बताया तो नहीं था लेकिन फिर भी आप सबको पता लग ही जाता हैं,वैसे आज व्यास पूजा वाला बर्थडे तो नहीं हैं,लेकिन अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार आज ही के दिन 72 साल पहले की बात हैं, जब अरावड़े गांव में मेरा जन्म हुआ।जन्म तो हुआ लेकिन मैं उस दिन को अपना वास्तविक जन्मदिन नही मानता हूं।जब श्रील प्रभुपाद ने मुझे स्वीकार किया और मुझे दीक्षा दी, दीक्षा के दिन को ही मैं अपना वास्तविक जन्मदिन समझता हूं। हरि हरि!ऐसा एक वचन है कि हर जन्म में माता-पिता तो मिलते ही हैं लेकिन किसी एक दुर्लभ जन्म में ही गुरु मिलते हैं या माता-पिता के द्वारा दिया गया जन्म तो भगवद्गीता 3.31.1 श्रीभगवानुवाच कर्मणा दैवनेत्रेण जन्तुर्देहोपपत्तये । खियाः प्रविष्ट उदरं पुंसो रेतःकणाश्रयः ॥१ ॥ भगवान् ने कहा : परमेश्वर की अध्यक्षता में तथा अपने कर्मफल के अनुसार विशेष प्रकार का शरीर धारण करने के लिए जीव ( आत्मा ) को पुरुष के बीर्यकण के रूप में स्त्री के गर्भ में प्रवेश करना होता है । भगवद्गीता 13.22 ” पुरुषः प्रकृतिस्थो हि भुङ्क्ते प्रकृतिजान्गुणान् | कारणं गुणसङ्गोऽस्य सदसद्योनिजन्मसु || २२ ||” अनुवाद इस प्रकार जीव प्रकृति के तीनों गुणों का भोग करता हुआ प्रकृति में ही जीवन बिताता है | यह उस प्रकृति के साथ उसकी संगति के कारण है | इस तरह उसे उत्तम तथा अधम योनियाँ मिलती रहती हैं | अपने कर्म का और प्रारब्ध का फल व्यक्ति भोगता ही रहता है और जन्म लेता रहता है तो वैसे वाला जन्मदिन भी क्या जन्मदिन है उसको हैप्पी तो नहीं कह सकते क्योंकि फिर पुनः मरने का दिन आने वाला है और फिर पुनः जन्मदिन आने वाला है और यह चलता ही रहता हैं। पुनरपि जननं पुनरपि मरणं पुनरपि जननं पुनरपि मरणं पुनरपि जननीजठरे शयनम्। इह संसारे बहुदुस्तारे कृपयापारे पाहि मुरारे ॥21॥ - शंकराचार्यजी द्वारा रचित भज गोविन्दम् – श्लोक सं.-21 हिंदी अर्थ 1 हे परम पूज्य परमात्मा! मुझे अपनी शरण में ले लो। मैं इस जन्म और मृत्यु के चक्कर से मुक्ति प्राप्त करना चाहता हूँ। मुझे इस संसार रूपी विशाल समुद्र को पार करने की शक्ति दो ईश्वर। लेकिन इसका अंत तब होता है जब गुरु जन्म देते हैं जब गुरु मंत्र देते हैं या गुरु कृष्ण को ही दे देते हैं और फिर भगवद्गीता 4.9 “जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः | त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन || ९ ||” अनुवाद हे अर्जुन! जो मेरे अविर्भाव तथा कर्मों की दिव्य प्रकृति को जानता है, वह इस शरीर को छोड़ने पर इस भौतिक संसार में पुनः जन्म नहीं लेता, अपितु मेरे सनातन धाम को प्राप्त होता है | लेकिन इसका अन्त तब होता हैं, जब गुरु जन्म देते हैं। जब गुरु मंत्र देते हैं या गुरु कृष्ण को ही दे देते हैं और फिर पुनर्जन्म नहीं होता। हरि हरि!वृंदावन के भक्त जिस दिन मेरी दीक्षा हुई थी वृंदावन में,मेरा जन्म तो वृंदावन का हैं, मैं वृंदावन में जन्मा था,जहां मेरी दीक्षा हुई थी राधा दामोदर मंदिर के प्रांगण में मेरा जन्म हुआ था। राधा कुंड के प्राकट्य का दिवस था। भक्त जब उस दिन राधा दामोदर मंदिर जाते हैं और उत्सव मनाते हैं यह मुझे बहुत अच्छा लगता हैं। उस समय जब भक्त उत्सव मनाते हैं तो मुझे बहुत प्रसंता होती हैं। हरि हरि। आदि लीला 9.41 भारत-भूमिते हैल मनुष्य जन्म यार। जन्म सार्थक करि' कर पर-उपकार ॥41॥ अनुवाद जिसने भारतभूमि (भारतवर्ष ) में मनुष्य जन्म लिया है, उसे अपना जीवन सफल बनाना चाहिए और अन्य सारे लोगों के लाभ के लिए कार्य करना चाहिए।" तो जन्म हुआ वृंदावन में, या मैं कहूंगा कि प्रभुपाद ने जन्म दिया और मेरा जन्म सार्थक हुआ या मेरा जन्म कैसे सार्थक हो सकता हैं यह श्रील प्रभुपाद ने मुझे बताया वैसे क्रॉस मैदान में मैं श्रील प्रभुपाद से सर्वप्रथम मिला था।श्रील प्रभुपाद ने मुझे मेरे जीवन का मिशन दिया या श्रील प्रभुपाद ने मुझे मेरे जीवन का उद्देश्य दिया।अरावड़े गांव में मेरा जन्म हुआ।बचपन से ही मैं लोगों के हित की बात सोचा करता था।मेरी चिंता का यही विषय हुआ करता था कि सभी का कल्याण कैसे हो।मैं यही सपना देखता था कि औरों के दुख का मैं कैसे निवारण कर सकता हूं।किंतु आपने सुना ही है कि जब मैं श्रील प्रभुपाद से मिला और मैने श्रील प्रभुपाद को सुना तब श्रील प्रभुपाद ने मुझे बता दिया कि नहीं, नहीं यह सही मार्ग नहीं हैं, ऐसे लोग सुखी नहीं होंगे।तो फिर क्या करना होगा?हमें कृष्ण को सुखी करना होगा।कृष्ण की सेवा करो।पहले माधव सेवा फिर उसके बाद चाहो तो मानव सेवा, पर उस समय मैं तो केवल मानव सेवा का ही सोचा करता था। यही सोचा करता था कि मानव की सेवा कैसे करूं लेकिन श्रील प्रभुपाद ने मुझे माधव सेवा सिखाई। 4.31.14 यथा तरोर्मूलनिषेचनेन तृप्यन्ति तत्स्कन्धभुजोपशाखाः । प्राणोपहाराच्च यथेन्द्रियाणां तथैव सबहिणमच्युतेज्या ॥१४ ॥ जिस तरह वृक्ष की जड़ को सींचने से तना , शाखाएँ तथा टहनियाँ पुष्ट होती हैं और जिस तरह पेट को भोजन देने से शरीर की इन्द्रियाँ तथा अंग प्राणवान् बनते हैं उसी प्रकार भक्ति द्वारा भगवान् की पूजा करने से भगवान् के ही अंग रूप सभी देवता स्वत : तुष्ट हो जाते हैं। यह श्रीमद्भागवत का प्रसिद्ध वचन हैं, इस वचन का श्रील प्रभुपाद अपने प्रवचन में पुन: पुन: स्मरण दिलाया करते थे,वह तो सभी को सुनाते थे। मैंने भी इसे सुना और पता नहीं कितने लोगों ने उसको ग्रहण किया। इस विचार ने उनका ध्यान आकर्षित किया या नहीं किया लेकिन मेरा तो इस विचार ने पूर्णरूपेण ध्यान आकर्षित किया कि बस मेरे जीवन को उसी समय सही दिशा प्राप्त हुई और मेरे जीवन में उसी समय क्रांति हुई। अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से आज के दिन जन्म हुआ। 5 जुलाई उन्नीस सौ संतालीस की बात हैं, आज ही के दिन जन्म हुआ था लेकिन दिन तो मंगलवार था। आज सोमवार हैं। आज मैं वहां जा रहा हूं जहा जन्म हुआ था। यह शायद आपको नहीं पता होगा कि आज मैं अरावड़े जा रहा हूं। साल भर के लिए मैंने कोई भी यात्रा नहीं की थी और यह अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से आज जन्मदिन हैं तो मैं आज जहां जन्मा था वही जा रहा हूं तो क्या यह बात अच्छी हैं या नही या मेरा पुनर मुष्टिक: भव: होगा। चूहे थे और चूहे बन जाओ।ऐसा तो नहीं हो रहा हैं। श्रील प्रभुपाद ने जो जन्म दिया मुझे और प्रभुपाद ने मुझे कृष्ण दिए और श्रील प्रभुपाद ने मुझे सेवा दी। उसी का परिणाम यह है कि वह ग्राम अब अरावड़े नहीं रहा।कुछ लोग तो उसे अरावड़े कहते हैं लेकिन हम हरे कृष्ण भक्तों के लिए अब वह गांव हैं, हरे कृष्ण ग्राम। अब अरावड़े को भूल जाओ।उसका नाम हैं, हरे कृष्ण ग्राम और यह सब श्रील प्रभुपाद के कारण ही संभव हुआ।जब मैं हरे कृष्णा वाला बन गया तो 2 सालों के बाद मैं उस गांव में गया था।एक और भक्त को अपने साथ लेकर गया था शायद नव योगेंद्र स्वामी महाराज थे। उस वक्त वह नव योगेंद्र ब्रह्मचारी थे। बस इतना याद हैं, कि उन्हें भी एक बार अपने साथ ले गया था।उन भक्त को साथ में लेकर में अरावडे ग्राम गया था। हरि हरि। वैसे ही कहने की बात तो नहीं है लेकिन बस कह दे रहा हूं,पता नहीं सब कहना जरूरी हैं भी या नहीं या फिर कहने के लिए बहुत सारी बातें हैं, उन में से कौन सी बात कहनी चाहिए कौन सी बात नहीं,यह मैं नहीं जानता।मैंने कुछ सोचा तो नहीं था कि यह कहूंगा या नहीं कहूंगा लेकिन यह सब दिल की बात बस कह रहा हूं। हरि हरि। तो हमने सत्संग किया और सत्संग में पूरा गांव जुट गया। दिन में फुड फार लाइफ करा और सायंकाल में किसी भी घर में चूल्हा नहीं जला। सारे गांव के लोग इकट्ठे हुए और प्रसाद बनाया। सब ने खीर बनाई और सभी गांव के लोगो ने इकट्ठा होकर उस प्रसाद को ग्रहण किया।फैमिली स्पिरिट।यही कृष्णभावनामृत हैं। जैसे कृष्ण भी अपने सभी सखाओ के साथ बैठकर भोजन किया करते थे और सायं काल को सभी लोग र्कीतन के लिए आ गए। दिन में तो सभी यही कह रहे थे कितना अच्छा था लड़का क्या हो गया। सभी में ऐसी टिप्पणियां चल रही थी। कितना अच्छा लड़का था।अब पागल हो गया हैं। फिर तो वह लोग भी पागल हो गए। मैं भी पागल और मुझ पगला बाबा के पीछे वह सब लोग भी पागल हो गए। इसकी रिपोर्ट हमने श्रील प्रभुपाद को भेजी थी।यह बहुत लंबी रिपोर्ट थी और इस रिपोर्ट में हमने यह भी लिखा था कि एक व्यक्ति तुरंत उसी वक्त मुझे आकर मिला और मुझसे कहा कि आज से मैं हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे इस मंत्र का 16 माला का जप करूंगा यह मैंने उस रिपोर्ट में लिखा था जो पत्र मैंने श्रील प्रभुपाद को भेजा था। मेरे गांव में जो हमने हरे कृष्णा उत्सव मनाया उससे श्रील प्रभुपाद बहुत ही प्रसन्न थे और उसके उत्तर में श्रील प्रभुपाद ने मुख्य रूप से कहा कि वह जो व्यक्ति हरे कृष्ण मंत्र जपने के लिए तैयार हुआ है उसे अपने गांव मे इस्कान का प्रतिनिधि बना दो। जब यह पढ़ा तो मुझे फिर यह नया विचार आया। श्रील प्रभुपाद मेरे गांव में इस्कान को चाहते हैं। वहां वह प्रतिनिधि चाहते हैं तो इसका अर्थ हैं कि वह इस्कान को चाहते हैं। फिर वही हुआ कि आज हरे कृष्ण ग्राम और राधा गोपाल मंदिर की स्थापना हो चुकी हैं। यह बहुत पहले से ही हो चुकी हैं। अब से 11 साल पहले श्री राधा गोपाल आ गए थे और आज गांव का पूरा नक्शा ही बदल चुका हैं। अब यह गांव भी पहले जैसा गांव नहीं रहा। हरे कृष्ण गांव या हरे कृष्ण ग्राम बन चुका हैं। तो आज मैं उस गांव में जा रहा हूं।हरि हरि। ठीक हैं। कल सायं काल में मैं भागवत का एक श्लोक पढ़ रहा था तो उसमें प्रभुपाद लिखते हैं कि मलेध्वज की बात चल रही हैं। राजा मलेध्वज बिना किसी संशय से शुद्ध भक्त थे। श्रील प्रभुपाद लिख रहे हैं कि मलेध्वज राजा ने कई पुत्रों को, शिष्यों को जन्म दिया और उनको प्रचार प्रसार किया और उनको ही प्रचार प्रसार की जिम्मेदारी भी दे दी। सारे विश्व का विभाजन करना चाहिए और कुछ भक्तों को यहां भेजो और कुछ भक्त को वहां भेजो। उन्हें अलग-अलग जगहों की जिम्मेदारी दे दो।प्रभुपाद कह रहे हैं कि ऐसा जरूर करना चाहिए।जब मैंने यह पढ़ा कि प्रभुपाद कह रहे हैं कि प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारी अपने पुत्रों को देनी चाहिए।अपने शिष्यों को देनी चाहिए और अगर वयोवृद्ध गुरु हैं,तो उनको थोड़ी राहत देनी चाहिए ताकि वह एक स्थान पर रहकर ग्रंथों की रचना कर सकते हैं और अपना भोजन कर सकते हैं या वहीं से प्रचार कर सकते हैं।यह मैं अपनी तरफ से बोल रहा हूं।हरि हरि। श्रील प्रभुपाद श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती महाराज का उदाहरण दे रहे हैं। वह अपने मन को प्रचार कर रहे हैं कि हे दुष्ट मन!तुम कैसे वैष्णव हो? अपनी पूजा लाभ प्रतिष्ठा के लिए या फिर तुम्हारा नाम हो या सर्वत्र बोलबाला हो उसके लिए तुम निर्जन भजन करना चाहते हो। हां! देखो यह महात्मा निर्जन भजन कर रहे हैं। यह तो तुम कपटी हो, ढोंगी हो।आगे श्रील प्रभुपाद लिखते हैं कि यह भक्ति का जो आंदोलन हैं, अपने गुरु या इस्कॉन के जो जीबीसी हैं उनके मार्गदर्शन के अनुसार भक्ति आंदोलन का प्रचार सर्वत्र होना चाहिए।यह आपके लिए ही हैं। निर्जन भजन का समय नहीं हैं, कि एकांत में कहीं बैठे हैं और 64 माला कर रहे हैं या 108 माला कर रहे हैं। वैसे तो ऐसा संभव ही नहीं होगा श्रील प्रभुपाद आगे लिखते हैं कि भक्ति सिद्धांत महाराज के उदाहरण के अनुसार अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ के भक्तों को प्रचार करना चाहिए। प्रचारक बन के संपूर्ण विश्व में अपनी सेवा प्रदान करें और उसके बाद मैं सोच रहा था कि अपने वयोवृद्ध भक्तों को रिटायर होने दे सकते हैं। इसे गलत मत समझो।वैसे कृष्णभावनामृत भक्त तो चाहे गुरु हो या शिष्य रिटायरमेंट जैसा कुछ हैं ही नहीं।मैं मेरे गुरु भाई महात्मा प्रभु से बात कर रहा था जो कि अमेरिका में बैठे हैं,मैं उनसे पूछ रहा था कि वह एक साल से कोई भी यात्राएं नहीं कर रहे हैं, एक ही स्थान पर हैं तो मैंने उनसे पूछा कि क्या मायापुर आ रहे हैं? उनहोने कहा कि नहीं नहीं मैं तो अपना भजन कर रहा हूं।तो मैंने पूछा कि क्या आप सेवानिवृत्त हो रहे हैं? क्या आप रिटायर होने वाले हैं?तो उन्होंने बोला कि नहीं नहीं। कोई रिटायरमेंट नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि आई में एक्सपायर बट आई विल नेवर रिटायर।यह बात मुझे बहुत अच्छी लगी। मेरा भी ऐसा ही विचार हैं। और सभी वैष्णवो का ऐसा ही विचार होता हैं। लेकिन एक प्रकार से कुछ दृष्टि से रिटायरमेंट ले सकते हैं।अपने गुरु के जीवन की अंतिम अवस्था में और अभी अंतिम अवस्था ही हैं तो प्रचार कार्य या मैनेजमेंट का कार्य यह शिष्यो को अपने हाथ में लेना चाहिए। इस जिम्मेदारी को अपने कंधों पर लेना चाहिए।इस जिम्मेदारी को निभाना चाहिए।निष्कर्ष में प्रभुपाद कहते हैं कि इस तरह से गुरु एकांत स्थान पर बैठ सकते हैं और निर्जन भजन कर सकते हैं। मैं आज के अवसर पर इस विचार को आपके हृदय में डालना चाहता हूं।यह विचार जो प्रभुपाद ने इस तात्पर्य में कहा है यह मैं आपके साथ शेयर कर रहा हूं शायद पूरी तरह से वह समय अभी नहीं आया या आ गया हैं। पहले ही बहुत देर हो चुकी हैं। विचार कीजिए और आप सभी ज्यादा से ज्यादा जिम्मेदारी लीजिए। रिस्पांस+एबिलिटी= जिम्मेदारी लेने का सामर्थ्य।यह क्षमता लाइए।जैसे परिवार में भी माता-पिता या पिता ऐसी अपेक्षा करते हैं कि उनकी संतान ट्रेनिंग पूरी करके परिवार की जिम्मेदारी संभाले तो हमारा भी यह परिवार हैं।वैसे छोटा परिवार होता हैं, हमारा बड़ा परिवार हैं। वासुदेव कुटुंबकम। यहां फैमिली प्लानिंग नहीं हैं। हम दो हमारे दो और मैं तो सन्यासी हूं। मेरा तो एक भी नहीं होना चाहिए। लेकिन हजारों बच्चे हैं। समझना कठिन हैं। किंतु ऐसा ही हैं। श्रील प्रभुपाद अपने शिष्यों को जब पत्र लिखा करते थे तो ऐसा लिखा करते थे कि मेरे प्रिय आध्यात्मिक पुत्र और पुत्रियों तो ऐसा भी संबंध हैं। आज के दिन जन्मदिन ना होते हुए भी एक प्रकार से जन्मदिन हैं। यह श्रील प्रभुपाद के विचार हैं जो मैं आपके साथ शेयर कर रहा हूं। यह आपके लिए फूड फॉर थॉट हैं। आप इस पर मनन कीजिए और इस संबंध में कुछ कहना हैं तो अभी कहिए। ठीक हैं। अब मैं यहीं रुकूंगा। हरे कृष्णा।

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