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जप चर्चा आरवडे धाम से 06 जुलाई 2021 हरे कृष्ण ग्राम में मेरा स्वागत हो रहा है , आप आओगे तो आपका भी स्वागत जरूर करेंगे । हरे कृष्ण ग्राम की जय । राधे गोपाल की जय । जहां मेरा जन्म हुआ था वहां पर भगवान ने जन्म लिया , समझे ? राधा गोपाल अभी 11 साल के हो गए । 11 साल पूर्व जिसे मैं समझता था कि मेरी जन्मभूमि है उसी को भगवान ने अपनी जन्मभूमि बनाई , और मैं यह भी कह रहा था कल उसे भी सुन लीजिये । मुझे तो और कुछ कहना है लेकिन यह भी कह देता हूं , एक जन्म तो मेरा यहां हरे कृष्ण ग्राम में हुआ है किंतु असली जन्म , मेरा रियल बर्थ वृंदावन में हुआ जब श्रील प्रभुपाद ने मुझे दिक्षा दी । वृंदावन मथूरा जो भगवान का जन्म स्थान है वह मेरा जन्म सन हुआ ऐसे विचार थे मेरे । मेरे जन्म स्थान पर भगवान ने जन्म लिया राधा कृष्ण गोपाल प्रकट हुए , अपने जन्मभूमि में वृंदावन में , मथुरा में मुझे जन्म दिया । 1972 की बात है । जय श्री प्रभुपाद । श्रील प्रभुपाद ने मुझ पर विशेष कृपा की यह महा मंत्र दिया । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। इसी के साथ हमको जन्म प्राप्त होता है , हम जीवित होते हैं । हम हमारा जीवन वापस प्राप्त करते हैं । यह हरे कृष्ण महामंत्र ही जीवन है , यह हरे कृष्ण महामंत्र ही भगवान है । आज एकादशी है , एकादशी दुप्पट खासी ऐसा मराठी में कहते हैं (हंसते हुए) उपवास है लेकिन कुछ लोग आज दुगना खा लेते हैं । जो जितना खाते हैं उसे आधा नहीं उससे दुगना खा लेते हैं । ठीक है । ऐसी बातें तो संसार में चलती रहती है , हरे कृष्ण जगत में भी चलती रहती है । आज एकादशी है , उपवास का दिन है । हम पहले भी बता चुके हैं उपवास , उप मतलब पास , भगवान के पास रहने का यह दिन है । एकादशी के दिन ही क्यों भगवान के पास रहना है ? वैसे हर दिन उपवास का दिन हो , हर दिन उपवास का दिन हो । आप प्रसाद से दृष्टि से उपवास करें ना करें लेकिन उपवास होना चाहिए । भगवान के पास हर दिन हमको होना चाहिए । यह नही कि केवल एकादशी के दिन हम भगवान के सानिध्य में रहे या साथ रहेंगे , हम तो भगवान के साथ सदैव रहना चाहते हैं । सलोख्य मुक्ति , सामिख्य ऐसी अनेक मुक्तियां भी है । भक्त इस प्रकार की मुक्तिया भी नहीं चाहते । भगवान की भक्ति , भगवान की सेवा ही चाहते हैं , और भगवान की सेवा करते हैं तो भगवान के पास ही होंगे ना हम ? नहीं तो कैसी भगवान की सेवा ? मैं भगवान की सेवा कर रहा हूं भगवान कहां है फिर? भगवान वहां नहीं है तो कैसी सेवा कर रहे हो ? जिससे आप भगवान की सेवा कर रहे हो , हम तो चाहते हैं भगवान का दर्शन भगवान संघ , भगवान का सानिध्य , भगवान की सेवा यह सब प्राप्त होता है । इस कलयुग मे , कृते यद्ध्यायतो विष्णुं त्रेतायां यजतो मखैः । द्वापरे परिचर्यायां कलौ तद्धरिकीर्तनात् ॥ (श्रीमद्भागवत 12.3.52) अनुवाद:- जो फल सत्ययुग में विष्णु का ध्यान करने से , त्रेतायुग में यज्ञ करने से तथा द्वापर युग में भगवान् के चरणकमलों की सेवा करने से , प्राप्त होता है , वही कलियुग में केवल हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन करके प्राप्त किया जा सकता है । हरि कीर्तन से , जप से ऐसी उपलब्धि हमको प्राप्त होती हैं । कृष्ण प्राप्ति कृष्ण प्राप्ति होए जहाँ कोहिते । हम लोग गाते भी हैं । कृष्ण कृपा से हमको गुरु मिलते है और गुरु की कृपा से हमको कृष्ण मिलते हैं । कृष्ण के पास ले जाते हैं । गुरु मंत्र देते हैं , जप करने के लिए गौड़ीय परम्परा में हरे कृष्ण महामंत्र देते हैं । यह महामंत्र ही भगवान है , इस महामंत्र के पास पहुंचना है । महा मंत्र की सिद्धि कहते हैं , मंत्र की सिद्धि को प्राप्त करना है । और यह होता है जब हम ध्यान पूर्वक जप करते हैं । ध्यान पूर्वक , भक्ति पूर्वक जप करेंगे तो मंत्र की सिद्धि होगी और फिर मंत्र के देवता भी होते हैं यह भी बता चुके है , आप शायद भूल जाते हो । हर मंत्र के देवता होते हैं , हरे कृष्ण महामंत्र के देवता राधा कृष्ण है । मंत्र सिद्धि , जप करते-करते मंत्र सिद्ध होती हैं मतलब उस मंत्र के जो देवता है राधा कृष्ण के दर्शन होते हैं । ठीक है । आज आपसे क्या बता दूं , मैं ऐसा जब सोच रहा था तब इस कमरे में यह पंखा चल रहा है । मैंने सोचा इसका कुछ जप के साथ संबंध जोड़ सकते हैं । वैसे सीधा संबंध है , एक होता है पावर हाउस , पावर हाउस की पावर ही तो पंखे को चलाती है किंतु पंखा और पावर हाउस के बीच में क्या होता है ? रेगुलेटर होता है । क्या कहते है ? रेगुलेटर ही कहते हैं जिस पर लिखा होता है 1-2-3-4-5 तक उसकी संख्या होती है , आप उसको घुमाते हो । एक पर होता है ? एक पर क्या होता है ? (स्लो स्पीड वहा उपस्थित भक्त )जो भी होता है । तब पंखा बहुत धीरे धीरे चलता है । 2 पर रखा है तो उसकी स्पीड बढ़ती है और फिर जब 5 पर हम रखेंगे तब फुल स्पीड , पूरी रफ्तार के साथ पंखा चलता है । एक पर रखते हैं , पंखा धीरे धीरे चलता है । तब होता क्या है ? टेक्नीकल या इलेक्ट्रिकल भाषा में जो पावर हाउस की ओर से आने वाला जो करंट है उसमें से कम करंट को वह रेगुलेटर की वजह से पंखे तक पहुचता है । इसे रजिस्टेंस भी कहते हैं वह रेगुलेटर रेसिस्ट करता है , अवरोध उत्पन्न करता है । तुम रुक जाओ ।पूरा रुकता नही , थोड़ा करंट जाता है थोड़ा-थोड़ा चालू होता है । पूरा रुकता नहीं थोड़ा थोड़ा करंट पंखे की ओर जाने देता है । रेगुलेटर एक फ़ोर्स है जो करंट को अवरोध उत्पन्न करता है और जब 2 पर होता है तब अधिक करंट विकल्प से बेटर , क्या? गुड कंडक्टर , ब्याड कंडक्टर है । ऐसी भाषा होती है । बेटर कंडक्टर , गुड़ कन्डक्टर , ब्याड कन्डक्टर । 2 पर वह रेगुलेटर कम अवरोध उत्पन्न करता है तब अधिक इलेक्ट्रिसिटी आती है और जब 5 पर जाते हैं तो पूरा , बिना अवरोध के पावर हाउस का पूरा करंट पंखे के पास जाता है और पंखा पूरे स्पीड से घूमता है । हमको को आराम मिलता है , अधिक आराम मिलता है । इसको हम जप के साथ कैसे जोड़े ? क्या संबंध है ? एक और पावर हाउस है , यह कहिए कि भगवान यह पावर हाउस है , वही तो स्त्रोत है । अहंम सर्वस्या ऐसा भी भगवान ने कहा है और वही भगवान जब करते समय महामंत्र के रूप में हमारे पास है । वह महामंत्र ही , नाम्नामकारि बहुधा निजसर्वशक्ति- स्तत्रार्पिता नियमितः स्मरणे न कालः। एतादृशी तव कृपा भगवन्ममापि दुर्दैवमीदृशमिहाजनि नाऽनुरागः॥ (चैतन्य चरितामृत अंत्य 20.16) अनुवाद:- हे भगवान्! आपका अकेला नाम ही जीवों का सब प्रकार से मंगल करने वाला है। कृष्ण, गोविन्द जैसे आपके लाखों नाम हैं। आपने इन अप्राकृत नामों में अपनी समस्त अप्राकृत शक्तियाँ अर्पित कर दी हैं। इन नामों का स्मरण और कीर्तन करने में देश-कालादि का कोई नियम भी नहीं है। प्रभो! आपने तो अपनी कृपा के कारण हमें भगवन्नाम के द्वारा अत्यन्त ही सरलता से भगवत्-प्राप्ति कर लेने में समर्थ बना दिया है, किन्तु मैं इतना दुर्भाग्यशाली हूँ कि आपके नाम में मेरा तनिक भी अनुराग नहीं है। चैतन्य महाप्रभु ने कहा है , मैंने अपनी पूरी शक्ति हरि नाम में, महामंत्र में , नाम्नामकारि बहुधा निजसर्वशक्ति- मेरी सारी शक्ति नाम में भर दी है । यह नाम शक्तिशाली है , नाम पावर हाउस है । एक और यह पावरफुल हरि नाम है और यह पावर आत्मा तक पहुंचानी है । ताकि आत्मा भी एमपावर होगा , आत्मा में भी कुछ जान आएगी , कुछ हर्ष , उल्लास , अल्लाह का अनुभव करेगा । हम यहां जप करते हैं तो पंखे में जैसा रेगुलेटर होता है , जब करते समय हमारा मन , माइंड उस काम कार्य वही है जो पंखे का रेगुलेटर का होता है । भगवान , भगवान का नाम फुल पावर है और यह पावर आत्मा के पास पहुंचानी है , आत्मा को पावर देनी है तब बीच में मन आता है। बीच में मन है ही । मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः । बन्धाय विषयासक्तं मुक्त्यै निर्विषयं स्मृतम् ॥ (विष्णुपुराण 6.7.28 ) अनुवाद:- मन ही सभी मनुष्यों के बन्धन एवं मोक्ष की प्रमुख कारण है। विषयों में आसक्त मन बन्धन का और कामना-संकल्प से रहित मन ही मोक्ष (मुक्ति) का कारण कहा गया है ॥ हमारा मन ही कारणं बन्धमोक्षयोः , मन ही कारण बनता है । उसका चांचल्य चल रहा है , मन के अपने काम धंधे उद्योग चल रहे हैं । मन सारी दुनिया का चक्कर काट रहा है , ऐसा अगर हमारा मन है तो ऐसा वाला मन अधिक अवरोध उत्पन्न करेगा । भगवान के नाम में जो शक्ति है वह शक्ति को मन रोक देगा । बैड कंडक्टर यह माइंड है । अवरोध उत्पन्न करेगा और भक्ति की शक्ति , हरिराम की शक्ति आत्मा तक नहीं पहुंचेगी और हमारे पल्ले कुछ भी पढ़ना नहीं है । हरि हरि । मन जो अवरोध उत्पन्न करता है , उस अनुरोध को कम करेंगे । रेगुलेटर को 2 पर रख देंगे तब हरी नाम की जो पावर है उसका वहन होगा , उसका फ्लो होगा और एनर्जी भी कहा वहन होती है ? हाय पोटेंशियल टू लो पोटेंशियल ऐसा ही कुछ सिद्धांत है , वहां ही करंट बहता है इलेक्ट्रिसिटी बहता है । वैसे ही भगवान की जितनी भी शक्तिया है , हरिनामा है । वह सारी शक्ति स्वाभाविक है वह आत्मा के और बढ़ेगी या फिर कहो भगवान का जो आत्मा के प्रति स्नेह है स्निग्धता है उसका वहन आत्मा की और होगा । भगवान जो करुणा सिंधु है भगवान का कारुण्य आत्मा की ओर अधिक जाएगा , अधिक पहुंचेगा । जब मन का रेजिस्टन्स या अवरोध कम होगा और कम होगा और कम होगा और कम होगा और कम होगा जैसे पंखे में 1 से 2 तक गए 2 से 3 तक गए और अवरोध कम कम कम होता जाता है और जीरो रेजिस्टेंस , कुछ भी अवरोध नहीं रहता । पूरा का पूरा पावर हाउस का करंट पंखे तक पहुंचता है और फिर ऐसी अवस्था में मन भी , भजहुँ रे मन श्रीनन्दनन्दन, अभय चरणारविन्द रे। दुर्लभ मानव-जनम सत्संगे, तरह ए भव सिन्धु रे॥1॥ अनुवाद:- हे मन, तुम केवल नन्दनंदन के अभयप्रदानकारी चरणारविंद का भजन करो। इस दुर्लभ मनुष्य जन्म को पाकर संत जनों के संग द्वारा भवसागर तर जाओ! मन ऐसा करने देगा , रोकथाम नहीं लगाएगा । भगवान ही हरिनाम बने हैं , हरिनाम आत्मा तक पहुंचेगा और इसी को कह सकते कि यही भक्ति योग है। भक्ति योग हो रहा है योग मतलब संबंध कहो योग का अर्थ यह है यह संबंध को अपडेट करता है। मन अगर को ऑपरेट करता है तो भगवान आत्मा तक पहुंचेंगे वहां फिर केवल हात मिलाना ही नही वहां तो मिलन और गले लगाने की बातें भी संभव है क्योंकि आत्मा को और हरिनाम को दूर रखने वाला जो मन है वो अभी रास्ते मे नही आएगा तब मन बीच में अपने खेल नहीं खेलेगा। हरि हरि यही तो बात है जप करते समय हमें वॉच यूवर माइंड मन पर ध्यान दो मतलब ध्यान पूर्वक जप करो मतलब भगवान का तो ध्यान करना है ही है लेकिन मन पर भी ध्यान दो अब वह कहां है कहां है अब कहां है अब कहां है आपका मन तो मन पर ध्यान देने वाला कौन है मन पर ध्यान कौन देता है बुद्धि दे दी है। सत असत विवेक बुद्धि से काम लेना होगा बुद्धि तो है गवर्नर या ड्राइवर या संचालक यह लगाम घोड़े हैं इंद्रिय और लगाम है मन और वह लगाम होते हैं और वो लगाम सारथी के हाथ में होती हैं और वो है बुद्धि इसलिए भी हम कहते रहते हैं कि जप करना भी भक्ति करना भी यह बुद्धू का काम नहीं है। हे काम नाही एल्या गबाडया चे त्यांला पाहिजे जातीचे यह कार्य बुदु का नही अपितु बुद्धिमान व्यक्ति का कार्य है। मैं यह सोच रहा था कि करुणा की आशा है कि कोरोनावायरस चला गया लेकिन जब था जब कोरोना के पेशेंट को ऑक्सीजन की जरूरत होती थी, मतलब ऑक्सीजन के तो सभी को जरूरत होती है और पेशेंट को भी कृत्रिम व्यवस्था की गई थी ऑक्सीजन का सप्लाई हो रहा था तो बात तो वही है कि ऑक्सीजन कितना रप्तार में पहुंच रहा है इसको मेडिकल टर्म में अब्जॉर्प्शन कहते हैं ऑक्सीजन गेटिंग अब्जॉर्प्शन इन द ब्लड ऑक्सीजन जब तक 92 तक अब्जॉर्प्शन हो रहा है जितना भी सप्लाई दिया जा रहा है फिर वो फेफड़ों में ब्लड आ जाता है यह प्योर ब्लड है क्योंकि उसमें कार्बन डाइऑक्साइड और कई सारे जो रक्त दूषित है तो उसका शुद्धिकरण करना है उसमें जान डालनी हैं और ऑक्सीजन जो है यह जीवन है यह प्राणवायु है ऑक्सीजन उसको प्राणवायु भी कहते हैं। तो रक्त में ऑक्सीजन कितना शोषित हो रहा है उस पर उसका यश है कोरोनावायरस के पेशेंट का सक्सेस उस पर निर्भर करता था कि रक्त में कितना ऑक्सीजन शोषित हो रहा है। तो वहां पर अगर ऑक्सीजन शोषित नहीं हो रहा है तो क्या कारण है कोरोनावायरस जो वायरस है वह बीच में आता था ऑक्सीजन तो वहां तक पहुंच गया उस ऑक्सीजन और रक्त खुद के बीच यह वायरस यह वायरस रेजिस्टेंस निर्माण कर रहा है। वह ऑक्सीजन को रक्त तक पहुंचने नहीं देता यही उसका काम धंधा है। यही उसकी समस्या है यही समस्या है। इस वायरस के साथ कई सारे उपाय मेडिसिन,थेरेपी से क्या करते हैं वो जो वायरस है उसको खत्म करते हैं उस वायरस को पराभूत करते हैं। वहां से हटाते मिटाते उसकी जान लेते है। उसको बाहर कर देते हैं ताकि यह जो ऑक्सीजन उपलब्ध है स्वाभाविक रूप से फेफड़ों में रक्त तक पहुंचकर फिर जो खून भी है ऑक्सीजन से वह भरा है प्राणवायु है तो यह जीवन है। तो वही बात है जैसे हम पंखे की बात कह रहे थे उनको देखना है कि हमारा लक्ष्य होना चाहिए जब करते समय हम हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे यह कितना शोषित हो रहा है आत्मा इसको इतना अप्सोर्ब कर रहा है। वो कितना पान कर रहा है। कितना आस्वादन कर रहा है तो यही है फिर मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः । बन्धाय विषयासक्तं मुक्त्यै निर्विषयं स्मृतम् ॥ अनुवाद:- मन ही सभी मनुष्यों के बन्धन एवं मोक्ष की प्रमुख कारण है। विषयों में आसक्त मन बन्धन का और कामना-संकल्प से रहित मन ही मोक्ष (मुक्ति) का कारण कहा गया है ॥ हम बंधन में तो थे ही और हैं भी कुछ हद तक मुक्त भक्त हो सकते हैं। मन का बहुत बड़ा हमारे जीवन में भूमिका है। मन पर मन निग्रह सेल्फ कंट्रोल माइंड कंट्रोल इस पर हमको अभ्यास करना है। प्रभुपाद जी ने एक समय कहा था कि हम कभी तालाब के किनारे हैं या कुआं है हमारे गांव में भी तालाब नहीं था लेकिन अब हो रहे हैं कुहे हुआ करते थे तो वहा अगर आपको आप अगर बैठे हो वहां पानी शांत और संत रहता है उसमें कोई लहरे तरंगे भी नहीं होती पानी स्वच्छ है, पारदर्शक है लेकिन ऐसे स्थिति में अचानक प्रभुपाद ने मॉर्निंग वॉक के समय में अचानक कहां की अचानक क्या होता है नीचे से बुलबुले आते हैं और ऊपर आकर नष्ट होते हैं। सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था कुछ लहरें नहीं कुछ नहीं थी लेकिन अचानक बुलबुले आ गए और नष्ट भी हो गए तो प्रभुपाद ने पूछा ऐसा क्यों तब प्रभुपाद ने उत्तर दिया कि उस तालाब में उसको यह में नीचे क्या है कचरा है या गंदगी है और वही गंदगी हो सकता है मतलब कुछ तो पूरा ही गंदा हो सकता है ऊपर से नीचे तक गंदा होता है केवल नीचे ही गंदगी नहीं होती यह गंदगी सर्वत्र फैली रहती है। तो हमारे मन ऐसे भी हो सकते हैं या हमारा जीवन हमारे विचार हमारे विचार गंदे लो थिंकिंग लेकिन मानलो कि हमने कुछ हद तक मन को स्वच्छ किया है थोड़ा हम सुसंस्कृत है थोड़े चरित्रवान है तो भी वह पानी साफ सुथरा दिख रहा था लेकिन अचानक बुलबुले आ गए मतलब अभी भी कुछ कुछ कचरा नीचे है गन्दगी है। तो हमको क्या करना है जहाँ झा कचरा अटका हुआ है वहां वहां पहुंचकर उसकी सफाई करनी होगी उसको हटाना मिटाना होगा। हरि हरि मन तो हमारे कर्मों से तो दूसरा भी विषय आगे कहना है। हमारे जो और अप्रारब्ध हम जो पाप करते हैं पाप करते हैं जाने अनजाने में इस जीवन में तो नहीं किया इसमें काम किया लेकिन इसके पहले जन्मों में भी जो जो हमने किया उसका और अप्रारब्ध फिर कूट बीज और प्रारब्ध ऐसे भक्तिरसमृत सिंधु में क्रम बताएं प्रारब्ध कर्म जब संचित होते हैं इकट्ठे होते हैं उसका ढेर बन जाता है कूट मतलब ढेर ही कहो माउंटेन जब अप्रारब्ध का जैसे ये कर्म वो कर्म तो ये कूट हो गया अप्रारब्ध से कूट हो गया और इसमें से इसी कर्म के ढेर में से फिर किसी किसी का समय आ जाता है और फिर बीज अंकुरित होने लगते है और फिर प्रारब्ध कर्म मतलब अब इसी वक्त आज के दिन आज जो हो रहा है वह बीज का फल हम चक रहे हैं। मीठे भी हो सकते हैं कड़वे भी हो सकते हैं या मीठे या कड़वे के दिव्य फल कृष्ण प्रेम ही है वह तो हम यह भी कह सकते हैं हम सभी को यह जो कचरा पड़ा है उस कुएं में या उस तालाब में जो हमारे जीवन में हमारे मन में बहुत कचरा पड़ा हुआ है जन्म जन्मांतर से यह अप्रारब्ध जो है। तो उसी को समाप्त करना है या साफ करना है उसी ढेर को आग लगाने हैं। और वही करते है हम जब जप करते हैं मतलब भगवान की शरण लेते हैं। और जब भगवान की शरण लेते हैं। सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज | अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा श्रुचः || ६६ || अनुवाद:- समस्त प्रकार के धर्मों का परित्याग करो और मेरी शरण में आओ । मैं समस्त पापों से तुम्हारा उद्धार कर दूँगा । डरो मत । तो क्या होता है जो ढेर है प्रारब्ध कर्म का जो ढेर है जो अप्रारब्ध का जो बीज और फिर अंकुरित होना फिर वह फलीभूत हो ना उसके पहले ही स्टॉक है उसी अवस्था में उसको समाप्त करो फिर प्रारब्ध कर्मों को वहां तक पहुंचेंगे ही नहीं और आजकल किया हुआ या पहले कभी किया हुआ पाप कर्म है उसका फल या तो हम इस जीवन में भोंकते हैं या इतना सारा स्टाक है अप्रारब्ध कर्मों का उसमें से कुछ का फल इस जीवन में और बचा हुआ जो स्टॉक है उसका फल चकने के लिए ही तो हमें अगला जन्म लेना पड़ता है तो हमे प्रारब्ध भोगने के लिए हमें शरीर की आवश्यकता है इतना स्टॉक है हमारे इस संचित कर्मों का अप्रारब्ध कर्मो का कितना हो सकता है 10000 लाख 1000000 जन्मो तक आराम से इतने जन्म लेने पड़ सकते हैं और यह सब होना है होता रहता है। पुनरपि जननं पुनरपि मरणं पुनरपि जननं पुनरपि मरणं पुनरपि जननीजठरे शयनम्। इह संसारे बहुदुस्तारे कृपयापारे पाहि मुरारे ॥21॥ - शंकराचार्यजी द्वारा रचित भज गोविन्दम् – श्लोक सं.-21 हिंदी अर्थ 1 हे परम पूज्य परमात्मा! मुझे अपनी शरण में ले लो। मैं इस जन्म और मृत्यु के चक्कर से मुक्ति प्राप्त करना चाहता हूँ। मुझे इस संसार रूपी विशाल समुद्र को पार करने की शक्ति दो ईश्वर। जब तक हम क्या नही करते जब तक हम भगवान की शरण मे नही जाते हम भगवान को बीच में नहीं लाते भगवान के शरण में नहीं चाहते हमे या भक्ति के 64 प्रकार है उस प्रकार से भक्ति के जो अंग या प्रकार रूप गोस्वामी प्रभुपाद लिखे हैं भक्तिरामृत सिंधु में लिखा है खासकर नवविधा भक्ती है फिर कहां है 5 प्रधान भक्ति के अंग है उसमें साधु संग है भागवत श्रवण है नाम संकीर्तन है धाम में निवास है और वीग्रह की आराधना है पांच प्रकार हो गए जब तक नहीं करते और उस पांच प्रकार में भी हरेर्नाम हरेर्नाम हरे मैव केवलम् । कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा ॥२१ ॥ अनुवाद:- " इस कलियुग में आत्म - साक्षात्कार के लिए भगवान् के पवित्र नाम के कीर्तन , भगवान् के पवित्र नाम के कीर्तन , भगवान् के पवित्र नाम के कीर्तन के अतिरिक्त अन्य कोई उपाय नहीं है , अन्य कोई उपाय नहीं है , अन्य कोई उपाय नहीं है । " ये हरिनाम महत्वपूर्ण है सर्वोपरि है तो इसको जब हम अपनाएंगे " येन केन प्रकारेण मन : कृष्णे निवेशयेत || " भक्ति रसामृत सिंधु - 1.2.4 , रूप गोस्वामी अनुवाद:- मन को किसी भी प्रकार से श्री राधा कृष्ण में लगाओ , यही साधना है | यह हमारे मन को भगवान के नाम में लगाएंगे श्रवण करेंगे सुनेंगे ध्यान पूर्वक जप करने का पूरा अभ्यास करेंगे तो फिर वही मन बंधन मुक्त हो जाएगा या हमारे मुक्ति का कारण बनेगा तो ऐसा करते रहो एकादशी के दिन भी और यह सब को और अधिक बढ़ाना होता है ठीक है समय समाप्त हुआ है। यह जपा चर्चा बन गया जप रिट्रीट जैसा बन गया है। हमने आपको स्मरण दिलाया कुछ ध्यान पूर्वक जप करना वह विधि-विधान आपको सुनाएं हरी हरी आपको यश मिले साधना भक्ति में यश मिले फिर भगवान भी मिले आपको भगवान से ये भी मेरी प्रार्थना है । ठीक है । हरि बोल ।

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