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जप चर्चा
31 अगस्त 2020
760 स्थानो से भक्त हमारे साथ जप कर रहे है।
श्रील भक्तिविनोद प्रणति
नमो भक्ति विनोदाय सच्चिदानन्द नामिने
गौर शक्ति स्वरूपाय रूपानुग वराय ते।।
अनुवाद : मैं भक्तिविनोद ठाकुर को नमस्कार करता हूँ जो सच्चिदानन्द नाम से जाने जाते हैं। वह चैतन्य महाप्रभु की शक्ति के स्वरूप हैं तथा रूप गोस्वामी के अनुयायियों में अग्रणी हैं।
यह प्रणाम मंत्र श्रील भक्तिविनोद ठाकुर जी का है। आज उनका आविर्भाव तिथि महोत्सव पूरा संसार मना रहा है। श्रील भक्तिविनोद ठाकुर आविर्भाव तिथि महोत्सव की जय !
गौर चांद सुन रहे हो? तुम उड़ीसा से हो ना भक्ति विनोद ठाकुर भी उड़ीसा से है । उनको सच्चिदानंद भक्ति विनोद ठाकुर भी कहते हैं उनका नाम है सच्चिदानंद और गौर शक्ति स्वरूपाय वे गौर गौर शक्ती के स्वरूप भी है वे गौर शक्ति के भक्ति से युक्त थे ।श्रील भक्तीविनोद ठाकुर और रूपानूग वर , रूपनुग वराय ते अर्थात् रुपा नुगो में श्रेष्ठ थे । उनके चरण कमलों में हम दंडवत प्रणाम करते हैं आज के इस आविर्भाव तिथि महोत्सव के उपलक्ष्य में। भक्ति विनोद ठाकुर एक बहुत बड़ा नाम है उनका काम बड़ा रहा इसलिए उनका नाम बड़ा हो गया ।
उनका जन्म 1838 में यह उनके जन्म का साल रहा लगभग 180 वर्ष पूर्व वे उड़ीसा के भद्रक में जन्मे थे। उड़ीसा में इस स्थान पर अब इस्कॉन के मंदिर भी है । हम भी पदयात्रा लेकर वहां गए थे तो वहीं पर श्रील भक्ति विनोद ठाकुर ने एक हाई स्कूल भी बना ई थी और वह स्वयं उस हाई स्कूल के हेड मास्टर भी रहे । पहले ब्रिटिश राज्य का जमाना था तो श्रील भक्ति विनोद ठाकुर को ब्रिटिशो ने डिस्ट्रिक्ट मैंजिस्ट्रेट(जिलाध्यक्ष) बनाया और कौनसे जिले के वह मैजिस्ट्रेट बने ? जगन्नाथ पुरी के। जगन्नाथ पुरी धाम की जय। उनका हेड क्वार्टर जगन्नाथपुरी में ही था तो जगन्नाथ स्वामी की सेवा की व्यवस्था उसमें वह कई सुधार लाएं क्योंकि वही वहां के मुख्य थे जिले का पूरा अधिकार उन्ही के हाथों में था।
जगन्नाथ पुरी के मंदिर के कारोबार , उसकी देखरेख, उसके नियमावली बनाना इत्यादि की सेवा भी भक्ति विनोद ठाकुर की ही रही । श्रील भक्ति विनोद ठाकुर का निवास स्थान जो रथयात्रा का मार्ग है इस मार्ग पर ही उनका हेड क्वार्टर था निवास स्थान था और फिर वही जन्म हुआ श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर प्रभुपाद का ।
उनका बड़ा परिवार था 10 बालक बालिकाऐं थे भक्ति विनोद ठाकुर जी के परिवार में । उसमें से एक विशेष बालक उनका नाम वैसे उन्होंने विमला प्रसाद रखा था । मतलब जगन्नाथ का प्रसाद जगन्नाथ का प्रसाद ग्रहण करने वाली विमला देवी हैं। जगन्नाथ का प्रसाद सर्वप्रथम विमला देवी को प्राप्त होता है जगन्नाथ के बगल में विमला देवी की आराधना होती है तो भक्ति विनोद ठाकुर ने मान लिया कि विमला देवी का प्रसाद मुझे इस पुत्र रत्न के रूप में प्राप्त हुआ है। जिसको भक्ति विनोद ठाकुर कहते हैं विष्णु की या जगन्नाथ की एक किरण। एक आशा की किरण। श्रील भक्ति विनोद ठाकुर उत्तम साधक थे।
*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।*
इस महामंत्र का वे 64 माला का जप करते थे । आप कल्पना कर सकते हो वह कितने व्यस्त रहते होंगे डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट होने के नाते । और बड़ा परिवार भी था 10 अपत्य रहे और कई सारे ग्रंथों की रचना का कार्य संभाल रहे थे। वह उत्तम कवी भी थे हम कई सारे भजन जाते हैं , उनमें से अधिकतर श्रील भक्तिविनोद ठाकुर के ही भजन हम गाते हैं।
जय जय गोराचाँदेर आरतिक शोभा।
जाह्नवी तट वने जगमन लोभा॥1॥
दक्षिणे निताईचाँद बामे गदाधर।
निकटे अद्वैत श्रीवास छत्रधर॥2॥
बसियाछे गौराचाँदेर रत्न-सिंहासने।
आरति करेन ब्रह्मा-आदि देवगणे॥3॥
नरहरि आदि कोरि चामर ढुलाय।
सञ्जय मुकुंद वासुघोष आदि गाय॥4॥
शंख बाजे घण्टा बाजे, बाजे करताल।
मधुर मृदंग बाजे परम रसाल॥5॥
(शंख बाजे घंटा बाजे, मधुर मधुर मधुर बाजे।
निताई गौर हरिबोल हरिबोल हरिबोल हरिबोल॥)
बहु कोटि चन्द्र जिनि वदन उज्जवल।
गलदेशे वनमाला करे झलमल॥6॥
शिव-शुक नारद प्रेमे गद्गद्।
भकति-विनोद देखे गौरार सम्पद॥7॥
अर्थ
(1) श्रीचैतन्य महाप्रभु की सुन्दर आरती की जय हो, जय हो। यह गौर-आरती गंगा तट पर स्थित एक कुंज में हो रही है तथा संसार के समस्त जीवों को आकर्षित कर रही है।
(2) उनके दाहिनी ओर नित्यानन्द प्रभु हैं तथा बायीं ओर श्रीगदाधर हैं। चैतन्य महाप्रभु के दोनों ओर श्रीअद्वैत प्रभु तथा श्रीवास प्रभु उनके मस्तक के ऊपर छत्र लिए हुए खड़ें हैं।
(3) चैतन्य महाप्रभु सोने के सिंहासन पर विराजमान हैं तथा ब्रह्माजी उनकी आरती कर रहे हैं, अन्य देवतागण भी उपस्थित हैं।
(4) चैतन्य महाप्रभु के अन्य पार्षद, जैसे नरहरि आदि चँवर डुला रहे हैं तथा मुकुन्द एवं वासुघोष, जो कुशल गायक हैं, कीर्तन कर रहे हैं।
(5) शंख, करताल तथा मृदंग की मधुर ध्वनि सुनने में अत्यन्त प्रिय लग रही है।
(6) चैतन्य महाप्रभु का मुखमण्डल करोड़ों चन्द्रमा की भांति उद्भासित हो चमक रहा है तथा उनकी वनकुसुमों की माला भी चमक रही है।
(7) महादेव, श्रीशुकदेव गोस्वामी तथा नारद मुनि के कंठ प्रेममय दिवय आवेग से अवरुद्ध हैं। श्रील भक्तिविनोद ठाकुर कहते हैंः तनिक चैतन्य महाप्रभु का वैभव तो देखो।
यशोमती-नन्दन, व्रज-वर-नागर,
गोकुल-रंजन कान
(1) भगवान् कृष्ण मैया यशोदा के अत्यन्त प्रिय पुत्र हैं, ब्रजभूमि के दिवय प्रेमी हैं, गोकुल-वासियों को आकर्षित करने वाले कान्हा हैं, गोपियों के प्राणधन हैं, मदन (कामदेव) का मन हरने वाले तथा कलियनाग का दमन करने वाले हैं
तो श्रील प्रभुपाद ने हमे, अपने अनुयायियों को कई भजन दिए हैं। भक्तिविनोद ठाकुर के इन भजनों को आज पूरा संसार गा रहा है । इतने व्यस्त भक्ति विनोद ठाकुर 64 माला का जप भी करते थे। जल्दी सो जल्दी उठो इसका भी ज्वलन्त उदाहरण वह थे । वे जल्दी सो जाते थे । वे रात्रि के 8:00 बजे सो जाते थे फिर जल्दी उठ जाते थे फिर 10:30 बजे उठ जाते थे दूसरे दिन का 10:30 नहीं 10:30 p.m. जग गए और पूरी रात भर सेवा करते रह ते। अपना जप तप कर रहे हैं और अधिकतर समय रात में ग्रंथों की रचना में लगाते थे उन्होंने 100 ग्रंथ लिखे है ।उड़िया में बंगला भाषा मे संस्कृत भाषा में अंग्रेजी भाषा में उनके ग्रंथ पाए जाते हैं। उनके ग्रंथों में एक विशेष ग्रन्थ है : हरिनाम चिंतामणि। क्योंकि हम जप करने वाले भक्त हैं , एचएन एक जपा टीम है हम जपा चर्चा चलाते हैं अतः श्रील भक्ति विनोद ठाकुर हमारे लिए आदर्श है । वह कितना सारा जप भी किया करते थे और उनका सारा जप ध्यान पूर्वक ही होता था। और फिर हम सबको ध्यान पूर्वक जप करने में मदद करने के लिए उन्होंने हरिनाम चिंतामणि नामक ग्रंथ की रचना की जिस हरिनाम चिंतामणि में उसको एक संवाद के रूप में प्रस्तुत किए हैं संवाद किनके बीच में श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु और नाम आचार्य श्री हरिदास ठाकुर के मध्य के मध्य का संवाद है । तो इस हरिनाम चिंतामणि में ध्यान पूर्वक जप और अपराध रहित जप करने के विषय में बताया है।
।। नदिया-गोद्रुमे नित्यानन्द महाजन
पातियाछे नाम-हट्ट जीवेर कारण॥1॥
(श्रद्धावान जन हे, श्रद्धावान जन हे)
प्रभुर अज्ञाय, भाइ, मागि एइ भिक्षा
बोलो ‘कृष्ण, ‘भजकृष्ण, कर कृष्ण-शिक्षा॥2॥
अपराध-शून्य ह’ये लह कृष्ण-नाम
कृष्ण माता, कृष्ण पिता, कृष्ण धन-प्राण॥3॥
कृष्णेर संसार कर छाडि’ अनाचार।
जीवे दया, कृष्ण-नाम सर्व धर्म-सार॥4॥*
अनुवाद:-
अर्थ
(1) भगवान् नित्यानंद, जो भगवान् कृष्ण के पवित्र नाम का वितरण करने के अधिकारी हैं, उन्होंने नदीया में, गोद्रुम द्वीप पर, जीवों के लाभ हेतु भगवान् के पवित्र नाम लेने का स्थान, नाम हाट का प्रबन्ध किया है।
(2) हे सच्चे, वफादार वयक्तियों, हे श्रद्धावान, विश्वसनीय लोगों, हे भाइयों! भगवान् के आदेश पर, मैं आपसे यह भिक्षा माँगता हूँ, “कृपया कृष्ण के नाम का उच्चारण कीजिए, कृष्ण की आराधना कीजिए और कृष्ण की शिक्षाओं का अनुसरण कीजिए। ”
(3) “पवित्र नाम के प्रति अपराध किए बिना, कृष्ण के पवित्र नाम का जप कीजिए। कृष्ण ही आपकी माता है, कृष्ण ही आपके पिता हैं, और कृष्ण ही आपके प्राण-आधार हैं। ”
(4) “संपूर्ण अनुचित आचरण को त्याग कर, कृष्ण से संबधित अपने कत्तवयों को सम्पन्न कीजिए। सभी जीवों के प्रति दया करने के लिए कृष्ण के पवित्र नाम का उच्चारण सभी धर्मों का सार है। ”।।
वे तो लिख रहे हैं इस गीत में की नदिया गोद्र में नित्यानंद प्रभु ने नाम हट प्रारंभ किया है और कौन से लोग यह भाग्यवान जन। हे भाग्यवान लोगों क्या करो इसका फायदा उठाओ और फिर इस गीत में आगे वो लिखते हैं अपराध शून्य हया ल हो कृष्ण नाम तो अपराध शुन्य होकर आप जप करें । तो इसकी विधि और विधान भक्ति विनोद ठाकुर अपने इस हरिनाम चिंतामणि ग्रंथ में लिखे है ।
आप इस हरिनाम चिंतामणि ग्रंथ को पढ़ सकते हो। और आप आपस में चर्चा कर सकते हो जब आप इकट्ठे होते हो और भक्तों के साथ गुरु भाई बंधुओं के साथ तो हरिनाम चिंतामणि पर चर्चा करो । स्वयं ही उसका अध्ययन करो या और भक्तों के साथ यदि उसका अध्ययन करोगे तो और उसका लाभ मिलेगा आपका कोई प्रश्न होगा तो दूसरा भक्त हो जो आप के साथ में बैठा है जिनके साथ आप अध्ययन कर रहे हो वह मिल जाएगा तो यह सारे भजन भक्ति विनोद ठाकुर की देन है।
हम ऋणी है भक्ति विनोद ठाकुर के, श्रील प्रभुपाद के जिन्होंने हरे कृष्णा आंदोलन की स्थापना के पूर्व पूरे जीवन भर अध्ययन कर रहे थे तैयारी कर रहे थे। लेकिन यह तैयारी प्रभुपाद के जीवनभर में हो रही थी या नही हो रही थी वैसे यह तैयारी भक्ति विनोद ठाकुर से प्रारंभ हुई या फिर कहना होगा कि यह तैयारी तो वैसे श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु या माधवेंद्र पुरी से शुरू हुई तो परंपरा के आचार्य सब तैयारी कर ही रहे थे ताकि एक दिन पूरे संसार भर में जो हरिनाम का प्रचार करने की जो योजना है योजना बनेगी।
पृथिवीते आछे जन नगरादि ग्राम
सर्वत्र प्रचार हइबे मोर नाम।।
चैतन्य महाप्रभु की भविष्यवाणी है कि शीघ्र ही पृथ्वी के नगर-नगर, ग्राम-ग्राम मेंउनका प्रचार होगा।
मेरे नाम का प्रचार इस पृथ्वी पर जितने नगर है ग्राम है उन सभी में होगा। इस भविष्यवाणी को सच करना था करना है। तो हमारी पूरी परंपरा इस तैयारी में लगी हुई थी या लगी है ,, किंतु फिर भक्ती विनोद ठाकुर जी ने कुछ विशेष तैयारी की कदम उठाए और क्योंकि उन दिनों में भक्ति विनोद ठाकुर के काल में क्या है ।।
काल का प्रभाव बड़ा जबरदस्त है कई सारे परिवर्तन होते हैं कई सारे बिगाड़ भी होते हैं,,
“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ”
भगवद्गीता4.7
अनुवाद:-
हे भरतवंशी! जब भी और जहाँ भी धर्म का पतन होता है और अधर्म की प्रधानता होने लगती है, तब तब मैं अवतार लेता हूँ
तो श्रील भक्ति विनोद ठाकुर के समय 200 वर्ष पूर्व की बात है लगभग उस समय गौड़िय वैष्णवता में काफी हानि हो चुकी थी । कई अप सिद्धांत फैल रहे थे , उल्टा पुल्टा प्रचार हो रहा था । उस समय कई सारे अप सिद्धान्त चल रहे थे जैसे सहजिया गौरांग नागरी, आऊ बिलाऊ आदि।
उनकी आवा-जावी के लिए क्योंकि उनका कार्यालय तो था कृष्ण नगर में और निवास स्थान था गोद्रुम द्वीप में उनकी सुविधा के लिए ब्रिटिश सरकार ने एक रेल लाईन की स्थापना की केवल श्रील भक्तिविनोद ठाकुर की सुविधा के लिए ताकि भक्तिविनोद ठाकुर सुविधा पूर्वक अपने निवास स्थान गोद्रुमधाम से कृष्ण नगर आना-जाना आसानी से कर सकते थे । आप इससे कल्पना कर सकते हो कि श्रील भक्तिविनोद ठाकुर महाराज कितने महत्वपूर्ण व्यक्तितत्व थे वो एक प्रकार से वी वी आई पी थे।
वह बहुत बड़े अधिकारी थे ब्रिटिश सरकार ने उनके आवा जावी के लिए रेल्वे की व्यवस्था की वह बहुत बड़े अधिकारी थे ब्रिटिश सरकार ने उनके आवा जावी के लिए रेल्वे की व्यवस्था की जैसे आपने कभी देखा होगा जहां भक्तिविनोद ठाकुर महाराज की समाधि है उसी स्थान पर वो निवास करते थे और कभी ऐसा भी समय था जब भक्तिविनोद ठाकुर महाराज थे वहां और वह ऐसा समय था कि भक्तिविनोद ठाकुर महाराज के शिक्षा गुरु जगन्नाथ दास बाबाजी महाराज और स्वयं भक्तिविनोद ठाकुर महाशय और श्रील भक्तिविनोद ठाकुर महाराज जी के शिष्य गौर किशोर दास बाबाजी महाराज और इनसे दीक्षित हुए श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर ये चार हमारे परंपरा के आचार्य है एक ही साथ श्रील भक्तिविनोद ठाकुर महाराज जी के निवास स्थान पर रहते तो नहीं थे सभी किंतु वहां दिन में सब मिलते रहते थे।
सत्संग होता तो या विचार गोष्ठी होती थी तो यह कितना विशेष दृश्य होगा आप इसका स्मरण करिए श्रील भक्तिविनोद ठाकुर महाराज जी का निवास स्थान गोद्रुम में यह समाधी उनकी है और वहां गौर गदाधर मंदिर भी है और जलंगी का तट हैं और गोद्रुम द्वीप हैं वहां हमारे चार आचार्य एक साथ इकठे होते थे। जैसे षडगोस्वामी वृंद भी राधा दामोदर जी के आँगन में सारे एकत्रित होते हैं और फिर क्या करते.....
नानाशास्त्र विचारणैक निपुणौ सद्धर्मसंस्थापकौ लोकानां हितकारिणौ त्रिभुवने मान्यौ शरण्याकरौ राधाकृष्णपदारविन्द भजनानन्देन मत्तालिकौ वन्दे रूपसनातनौ रघुयुगौ श्रीजीव गोपालको
(षडगोस्वामी अष्टकम्)
अनुवाद:-"मैं श्रीसनातन गोस्वामी , श्रीरूप गोस्वामी , श्रीरघुनाथ भट्ट गोस्वामी , श्रीरघुनाथदास गोस्वामी , श्रीजीव गोस्वामी तथा श्रीगोपाल भट्ट गोस्वामी - इन छहों गोस्वामियों को सादर नमस्कार करता हूँ , जो समस्त मानवों के लाभार्थ सनातन धर्म की स्थापना करने के उद्देश्य से समस्त शास्त्रों का आलोचनात्मक अध्ययन करने में परम निपुण हैं । इस तरह वे तीनों लोकों में समादरित हैं और शरण लेने के योग्य हैं , क्योंकि वे गोपीभाव में निमग्न रहकर राधा - कृष्ण की दिव्य प्रेमाभक्ति में लगे रहते हैं"
शास्त्रार्थ होता था या फिर....
ददाति प्रतिगृह्णाति गुह्यमाख्याति पृच्छति।
भुङ्क्ते भोजयते चैव षड्विधं प्रीतिलक्षणम्॥
(श्री उपदेशामृत श्लोक 4)*
ऐसा करते हुए वह अपना प्रीति का लक्षण भी प्रकट करते थे उनका एक दूसरे के प्रति जो प्रेम है वह भी व्यक्त होता था और वैसे ही यहां नवद्वीप धाम में श्रील जगन्नाथ दास बाबाजी महाराज, श्रील भक्तिसिद्धांता सरस्वती ठाकुर महाराज, गौर किशोर दास बाबाजी महाराज, श्रील भक्तिविनोद ठाकुर महाराज इकट्ठे होकर....
“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ”
(भगवद्गीता 4.7)
अनुवाद:- हे भरतवंशी! जब भी और जहाँ भी धर्म का पतन होता है और अधर्म की प्रधानता होने लगती है, तब तब मैं अवतार लेता हूँ |
धर्म की स्थापना हेतु विचार विनिमय किया करते थे। फिर श्रील भक्तिविनोद ठाकुर महाराज जी के बारे में कितना और क्या-क्या बताएं और वैसे हम कह भी सकते हैं क्योंकि भक्तिविनोद ठाकुर महाराज जी के कारण ही यदि भक्तिविनोद ठाकुर न होइते यह जो गौड़ीय परंपरा का जो रास हो रहा था अप सिद्धांत फैल रहे थे या फिर इसमें सब उल्टा पुल्टा सब बता रहे थे लेकिन उन्होंने इस पर रोकथाम लगाया और उन्होंने पुनः इसमें परिवर्तन या क्रांति कहो या सही विचारों की स्थापना या सिद्धांतों की स्थापना की और फिर....
नमस्ते गौर – वाणी – श्रीमूर्तये – दीन – तारिणे
रूपानुग – विरुद्धाऽपसिद्धान्त – ध्वान्त – हारिणे
(श्रील भक्तिसिद्धान्त सरस्वती प्रणति)
विरुद्धाऽपसिद्धान्त वान्त हारिणे भी आगये श्रील भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर महाराज भी आगये अप सिद्धांतों का विनाश करते गए खंडन करते गए और सिद्धांतों की स्थापना करते गए और फिर श्रील भक्ति विनोद ठाकुर महाराज जी ने बहुत कुछ किया मायापुर नवद्वीप धाम के लिए और यह भी अप सिद्धांतों के अंतर्गत आता है कि श्री चैतन्य महाप्रभु की जन्मस्थली कौन सी है कहां है इस पर भी बहुत सारे मत मतआंतर फैल चुके थे कोई कहता था गंगा के तट पर है कोई कहता था नहीं नहीं इधर नहीं उधर हैं केवल एक मात्र भक्ति विनोद ठाकुर महाराज जी हैं जिन्होंने यह जो मतमतांतर और वाद विवाद हो रहा था और साथ में जगन्नाथ दास बाबाजी महाराज के साथ मिलकर इसे पूर्ण रूप से बंद कर दिया।
जिसे हम योगपीठ कहते हैं वही चैतन्य महाप्रभु जी का जन्म स्थान है उसको ढूंढ निकाला और जो सदा के लिए मतमतांतर चल रहा था और वाद विवाद चल रहा था उसको रोक लिया साथी नवद्वीप धाम महात्म नाम का ग्रंथ भी लिखा और उनकी अंतिम इच्छा उन्होंने व्यक्त की उन्होंने भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर महाराज जी को निवेदन या आदेश दिया नवद्वीप मंडल परिक्रमा करो, यदि हम नवद्वीप मंडल परिक्रमा करते हैं तो पूर्ण विश्व इस कार्य से लाभान्वित हो सकता है ऐसे भक्त विनोद ठाकुर महाराज समझते थे और यह सत्य भी है यह बात उन्होंने कही है।
उसके बाद श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर महाराज जी ने 8 बार नवद्विप परिक्रमा अपने शिष्यों के साथ पूर्ण की और साथ ही भक्ति विनोद ठाकुर महाराज जी ने अपना एक ग्रंथ लाइफ एंड प्रिसेप्ट्स चैतन्य महाप्रभु नामक अंग्रेजी भाषा में उन्होंने छोटा सा ग्रंथ संसार के या कई देशों में शहरों में पहुंचाया और उसी वर्ष श्रील भक्ति विनोद ठाकुर जीने वो ग्रंथ को पूरे विश्व भर में भेजा जिस वर्ष श्रील प्रभुपाद ए सी भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद की जय.... उनका जन्म जीस वर्ष हुआ उसी वर्ष भक्तिविनोद ठाकुर महाराज जी ने इस ग्रंथों का वितरण संसार भर में शुरू किया। उसी के साथ श्रील भक्तिविनोद ठाकुर महाराज जी ने भविष्यवाणी भी की थी कि ऐसा दिव्य पुरुष आएगा जो प्रचार करेगा सर्वत्र उनके प्रचार के प्रभाव से संसार भर के लोग इंग्लैंड,जर्मनी,अमेरिका,चाइना यहां वहां से सभी नवद्वीप,मायापुर आएंगे और क्या करेंगे.....
जय सचिनन्दन जय सचिनन्दन गौर हरि...
ऐसे भक्तिविनोद ठाकुर महाराज जी ने कहा था। प्रभुपाद जी जन्म लेंगे या प्रकट होंगे और सारे विश्व भर में प्रचार करेंगे और उनके अनुयायी यो को लेकर आएंगे ऐसी भक्ति विनोद ठाकुर महाराज जी ने भविष्यवाणी की थी।
तो यह सब भक्ति में नोट ठाकुर महाराज जो त्रिकालग्य थे उन्होंने यह सब देखा था और वैसा ही हो रहा है उसी के साथ भक्ति विनोद ठाकुर महाराज जी के भविष्यवाणी और स्वप्न साकार हुआ है उनका सपना साकार किया भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर और श्रील भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभपाद जी ने और फिर वह कार्य जारी है भी यह कार्य हम सभी को करते रहना है इस हरिणाम को सर्वत्र फैलाने का कार्य उसी के साथ कलियुग के धर्म की स्थापना का कार्य की जिम्मेदारी हम सभी पर हैं और हमें इस जिम्मेदारी को निभाना है हम भी यह जिम्मेदारी निभाएंगे प्रचार प्रसार करेंगे तो यही होगी हमारी श्रद्धांजलि श्रील भक्ति विनोद ठाकुर जी के चरण कमलों में साथ ही हम उनके रूनी भी हैं और उन्होंने प्रारंभ किय हुआ कार्य या उन्होंने की हुई भविष्यवाणी या उनके स्वप्न को साकार करने का हम भी योगदान देंगे।
उसी के साथ हम कुछ हद तक उस ऋण से मुक्त हो सकते हैं हम जो यह विश्व हरिराम सप्ताह मना रहे हैं यह भी श्रील भक्ति विनोद ठाकुर महाराज जी का ही कार्य है उन्होंने साथ ही नामहट भी शुरू किए थे नामहट के संबंध में उन्होंने सारी नियमावली गोद्रुम में लिखी हुई है नामहट समझते हो ना जैसे बाजार हाट होता है वैसे ही नामहट जिस बाजार में केवल एक ही हरि नाम ही मिलता है......
बृहन्नार्दीय पुराण में आता है–
*हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलं|
कलौ नास्त्यैव नास्त्यैव नास्त्यैव गतिरन्यथा||*
*अनुवाद:-
कलियुग में केवल हरिनाम, हरिनाम और हरिनाम से ही उद्धार हो सकता है| हरिनाम के अलावा कलियुग में उद्धार का अन्य कोई भी उपाय नहीं है! नहीं है! नहीं है!*
उस नामहट के बाजार में सुपर बाजार में बिग बाजार में बस बस एक वस्तु मिलती है वह है हरीनाम केवलम यह सब भक्ति विनोद ठाकुर महाराज जी ने अपने ग्रंथ में लिखा भी है और यह नामहट योजना उन्हीं की देन है हम जो विश्व हरिनाम उत्सव मना रहे हैं ये श्रील भक्ति विनोद ठाकुर महाराज जी की योजना है नाम हटा का ही प्रचार है।
*नदिया-गोद्रुमे नित्यानन्द महाजन
पातियाछे नाम-हट्ट जीवेर कारण॥1॥
(श्रद्धावान जन हे, श्रद्धावान जन हे)
प्रभुर अज्ञाय, भाइ, मागि एइ भिक्षा
बोलो ‘कृष्ण, ‘भजकृष्ण, कर कृष्ण-शिक्षा॥2॥*
(नदिया-गोद्रुमे गीत)
*अनुवाद:-(1) भगवान् नित्यानंद, जो भगवान् कृष्ण के पवित्र नाम का वितरण करने के अधिकारी हैं, उन्होंने नदीया में, गोद्रुम द्वीप पर, जीवों के लाभ हेतु भगवान् के पवित्र नाम लेने का स्थान, नाम हाट का प्रबन्ध किया है।
(2) हे सच्चे, वफादार वयक्तियों, हे श्रद्धावान, विश्वसनीय लोगों, हे भाइयों! भगवान् के आदेश पर, मैं आपसे यह भिक्षा माँगता हूँ, “कृपया कृष्ण के नाम का उच्चारण कीजिए, कृष्ण की आराधना कीजिए और कृष्ण की शिक्षाओं का अनुसरण कीजिए।*
श्रद्धावान जन हे, श्रद्धावान जन हे जो जो श्रद्धा वान हैं उनको आपको ढूंढना है और श्रद्धावाण है मतलब वो पात्र है उनके पात्र में फिर आप हरिणाम दे सकते हो वैसे संभाल कर रखेंगे और वह सेवा करेंगे हरिणाम की स्मरण करते रहेंगे और वो श्रद्धा पात्र है यह व्यक्ति पात्र है मतलब वो श्रद्धालु है आदो श्रद्धा यदि श्रद्धा नही हैं मतलब वो पात्र नही है तो अभी आपको देखना हैं कि जप जो पात्र हैं उनको और जो जो श्रद्धालु को ढूंढना है और उन तक यह हरिनाम को पहुंचाना है अभी कई सारी योजनाएं बन चुकी है।
इस बात को हम समय-समय पर कह रहे हैं और साथी आपने जो सुझाव दिए हैं उनका भी स्वागत किया जा रहा है ठीक है फिर अभी आप लिखिए जो आपने कल क्या-क्या किया क्या क्या करने वाले हो हरिनाम उत्सव के संबंध में अभी आप लिखिए उसी के साथ श्रील भक्ति विनोद ठाकुर महाराज जी के प्रसंता के लिए साथी विश्व हरिनाम उत्सव के लिए क्या करने वाले हो आपका क्या विचार है क्या कोई सुझाव है लिखिए..( महाराज जी झूम पर जप करते हुए भक्त को सम्बोधित करते हुए) हा इंद्रनील मनी माताजी लिखना आता हैं और महाराज जी हसने लगे और बोले राधाकुंड को बतादो क्या सोचा हैं।
ठीक है अभी चाट सेशन खोल दिया गया हैं कल भी आपको काफी सारा होम वर्क दिया था ये करो वो करो कुछ टिम बनाओ आप भक्त परिवार में या अपने परिवार से एकत्रित आ कर इष्ट गोष्टि करो मंदिर के अधिकारियों के साथ संपर्क करो रेवती रमन जी ने हमको बता भी दिया कि उन्होंने वैसे वो स्वयं हि इस्कॉन के संचालक हैं उन्होंने मुंबई के जो मंदिर हैं खारघर और चौपाटी मंदिर से संपर्क कर के उन्होंने इस उत्सव के लिये प्रेरित किया है और साथ ही उन्होंने कई सारे विडियो भी बनाए रेवतीरमण प्रभु जी और इस्कॉन ठाणे के भक्तो ने मिल कर और आप ने कल क्या क्या किया और क्या सोच रहे हो वो भी लिखो.....
और वृन्दावन में क्या करने वाले हो वेदान्ती जी मंदिर के भक्त को उनके साथ और अधिकारियों के साथ चर्चा करिये की वृन्दावन में कैसे हरिनाम उत्सव मनाया जाएगा विश्व हरिनाम उत्सव सभी ओर मॉरिशिअस में भी देखिये...
अमरावती में कैसे मनावो गे. एक भक्त को संबोधित करते हुए आप कहा से उड़ीसा से फिर देखो वहां कैसे करोगे तो पद्मावती आपका का प्रकल्प हैं हरिनाम उत्सव को ले कर गौरकिशोर, वीरगोविंद आप न्यूजर्सी वाले कुछ करिये विश्व हरिनाम उत्सव के लिए कुछ करो केवल बैठे नही रहना हैं या फिर घर बैठे बैठे भी आज कल प्रचार होता हैं, झूम से या फिर अन्य उपकरणों से, पद्मजा माताजी आप तो मायापुर में हो वहां कुछ करो विश्व हरिणाम उत्सव सभी भक्त मिलकर कुछ प्रकल्प बनाव और साथ ही मंदिर के भक्तो को भी साथ लो, सुन्दरराधिका आप कुछ कर रही हो हा आप बिड से जो है वो (मराठी में कहा ऐकल का काही करा थोड़ विश्व हरिनाम उत्सवा करिता) नाशिक मधे वंशिवदन ठाकुर नाशिक ला पूर्ण हलवा विश्व हरिनाम सप्ताह मधे मोठ्या उत्साहात साजरा करा ठीक हैं आप सभी ने कुछ करिये
केवल मुंडी नही हिलानी हैं कुछ करिये। स्वरूपानन्द आप कुछ गाओ या गिटार भी बजा सकते हो साथ ही मृदंगा भी और पार्कों में लोगो से जप करवा सकते हो आप के पास बोहोत समय हैं करोगे प्रचार ठीक है
हरे कृष्ण
गौरप्रेमानंदे हरि हरि बोल