Hindi
*हरे कृष्ण,*
*16 अक्टूबर 2020,*
*पंढरपुर धाम से*
767 स्थानों से भक्त जप के लिए जुड़ गए हैं। आप सभी का स्वागत है । सुप्रभातम।
*सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी,*
*कर कटावरी ठेवोनिया।*
*तुळसीहार गळा कासे पितांबर,*
*आवडे निरंतर तेची रूप।*
*मकर कुंडले तळपती श्रवणी,*
*कंठी कौस्तुभ मणी विराजित।*
*तुका म्हणे माझे हेची सर्व सुख,*
*पाहीन श्रीमुख आवडीने।*
*सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी*
*(तुकाराम महाराज अभंग संग्रह)*
*जय श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद।*
*श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादि गौर भक्त वृंद।।*
*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।*
*हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।*
हरे कृष्ण, मैंने सुप्रभातम या अंग्रेजी में गुड मॉर्निंग कहा। वैसे आप इस्कॉन पंढरपुर के भक्तों के लिए प्रार्थना कीजिए। सुप्रभातम कहिए, गुड मॉर्निंग की प्रार्थना कीजिएगा। करोगे? कर रहे हो ना? आप शायद सोचते होंगे, मैंने तो पहले कभी नहीं कहा ऐसे प्रार्थना करो। गुड मॉर्निंग कहो, सुप्रभातम कहो, इस्कॉन पंढरपुर के भक्तों के लिए। आज ही क्यों वैसे हर रोज ऐसी प्रार्थना कर सकते हो किंतु यह समय ,
*विपद: सन्तु ता: शश्वतत्र तत्र जगद् गुरो।*
*भवतो दर्शनं यत्स्यादपुनर्भवदर्शनम् ।।*
(श्रीमद्भागवत 1.8.25)
अनुवाद: ऐसी विपदा हम पर हमेशा आती रहे ऐसी मेरी इच्छा है, क्योंकि इसी वजह से पुनः पुनः हमें आपका दर्शन प्राप्त होता रहेगा। और आपका दर्शन प्राप्त होना है। हमें पुनः जन्म मृत्युरूपी संसार का दर्शन नहीं होना है।
पंढरपुर के भक्त और भगवान भी कुछ विपदा में फंसे हैं। चंद्रभागा मैया की जय! कुछ विशेष कृपा हो रही है। यहां चंद्रभागा का जल उमड़ आ रहा है। सर्वत्र फेल रहा है। और क्या कहा जाए बाढ़ सदृश्य परिस्थिति, नहीं सच में यहां पर बाढ़ आ चुकी है। पंढरपुर मंदिर चंद्रभागा के जल के पास हुआ करता था और अब वहां जल मंदिर में पहुंच चुका है। जल में मंदिर हो ना तो ठीक है पर मंदिर में जल ऐसी स्थिति है। और फिर राधा पंढरीनाथ के मूल विग्रह को आपकी भाषा में सुलाना कहते हैं या निद्रा में रखा गया है। और उत्सव मूर्तियों को लेकर बगल वाले आवास निवास तक पहुंचे थे , यह सोच कर कि यहां सुरक्षित स्थान है लेकिन यहां तक भी जल पहुंच गया है और अब हम एक द्वीप में ही रह रहे हैं। यहां के 50 गाये सुरक्षित स्थान पर पहुंचायी गई हैं और यहां पर विद्युत भी नहीं है। यह इनवर्टर काम कर रहा है , देखते हैं अभी कितना समय यह काम करेगा। स्थिति कुछ बिकट है।
*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।*
*हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।*
किंतु हम सब स्मरण करे , यहां के भक्त भी भगवान का स्मरण कर रहे हैं । और राधा पंढरीनाथ का भी जो सोये हैं योगनिद्रा में है। जैसे महाविष्णु वे सदैव ही योगनिद्रा में होते हैं। वैसे वह सदैव के लिए ही योगनिद्रा में लेटे रहते हैं। महाविष्णु क्षीर सागर में लेटे रहते हैं। महाविष्णु, वैसे हमारे पंढरीनाथ अपनी आपत्तियों के चलते लेटे हैं। यहां की ऐसी स्थिति को देखकर मुझे स्मरण हो रहा था कि कैसे वह भी ऐसी स्थिति में पहुंच गए थे। हरि हरि। यह नाम मैं हमेशा भुलते रहता हूं। आज भी मुझे याद नहीं। हरि हरि, मार्कंडेय मुनि। मार्कंडेय मुनि ने सोचा होगा कि मुझे वरदान मिला है। आयुष्मान भव! कितना आयुष मिला है सात कल्पों तक तुम जी सकते हो। कल्प मतलब ब्रह्मा जी के 1 दिन को कल्प कहते हैं और हर कल्प के अंत में आंशिक पहले होता है। उस प्रलय में मार्कंडेय मुनि फस गए हैं , मार्कंडेय मुनि का ऐसा बुरा हाल हो रहा था , फस गए हैं । जब वहां प्रलय की स्थिति में फंसे थे किंतु फिर वह एक स्थान में पहुंच गए और वह स्थान जगन्नाथपुरी था। मायापुर भी ऐसा वर्णन आता है। और वहां पर उन्होंने देखा , उनको एक विशेष दर्शन हुआ । उन्होंने एक वटवृक्ष के , एक शाखा के, एक पत्ते पर एक बालक लेटा हुआ है ऐसा दर्शन उन्होंने किया।
*करारविंदेन पदारविंदं मुखारविंदे विनिवेशयंतम् ।*
*वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालं मुकुंदं मनसा स्मरामि ॥*
ऐसा भी उस दर्शन का वर्णन है । वह देखते हैं कि बालक लेटा हुआ है। मुकुंद यह बालक क्या कर रहा था, कैसा बालक था? *करारविंदेन पदारविंदं* अपने ही करकमल को हस्तकमल से पकड़ा था। इस बालक के हास्तकमल में उसका करकमल था। *मुखारविंदे विनिवेशयंतम्* अपने चरण कमल को अपने मुख में डालकर उसे चूस रहा था। *वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं* और यह बालक पत्र पर लेटा हुआ है और ऐसा बालक *बालकमस्मरामि* मैं स्मरण करता हूं। *बालं मुकुंदं मनसा स्मरामि* मार्कंडेय मुनि स्मरण कर रहे थे , ऐसा चित्र आपने देखा होगा , जरूर देखा होगा। देखते हैं तो मिलता है। मैं जब जगन्नाथपुरी में गया था पिछली बार, वैकुंठनाथ प्रभु पहली बार मै उधर दर्शन देखा। जगन्नाथ मंदिर के प्रांगण में ही एक वटवृक्ष है। उस वटवृक्ष के नीचे ही जैसे यह बालक , यही भगवान का दर्शन उस वटवृक्ष के नीचे हैं। एक पत्ते पर भगवान के छोटे विग्रह है उसका भी मैंने दर्शन किया। कोई भी कर सकता है। आप भी जा सकतेे हो। आपका भी स्वागत है। अभीभी जाकर दर्शन कर सकते हो। वहां पर मुझे इस लीला का स्मरण हुआ था , जिसका अभी वर्णन कर रहे हैं। महा प्रलय की स्थिति में मार्कंडेय मुनि दर्शन कर ही रहे थे। भगवान समक्ष है और भगवान के बाहर है। मार्कंडेय मुनि ऐसा दर्शन कर रहे थे , इतने में भगवान ने मार्कंडेय मुनि को अंदर ले लिया। और फिर वहां मार्कंडेय मुनि दर्शन करने लगे। जो बाहर भी हैं वह अंदर भी हैं ऐसा अनुभव मार्कंडेय मुनि करने लगे और फिर ऐसे भगवान है। अचिंत्य भगवान है। भगवान को समझना अचिंत्य , कठिन है। हमारे चिंतन से परे हैं।
*तदेजति तन्नैजति तद्दूरे तद्वन्तिके ।*
*तदन्तरस्य सर्वस्य तदु सर्वस्यास्य बाह्यतः ।।५ ।।*
(श्रीइशोपनिषद् 5)
अनुवाद: वह गतिहीन वही गतिदाता रचता और चलाता है। अज्ञानी से दूर सदा ज्ञानी के हिय में बसता है। जड़ – चेतन सबके अन्तर में एक उसी की आभा है। बाह्य जगत में मात्र चमकती उसी ब्रह्म की प्रतिभा है।
*तदेजति तन्नैजति* भगवान चलते हैं। भगवान नहीं चलते हैं। *तद्दूरे तद्वन्तिके* भगवान दूर है, भगवान निकट भी है। *तदन्तरस्य सर्वस्य* सब कुछ उनके अंदर भी है। *तदु सर्वस्यास्य बाह्यतः* और वह बाहर भी है। एक तो मार्कंडेय मुनि को आयुष्मान भव, जीते रहो बेटा जीते रहो यह चाहते थे। वह चाहते थे कि मैं आयुष्मान बनु। लेकिन क्या फायदा है, आयु लंबी है लेकिन उसका फायदा नहीं उठा रहे हैं , ऐसे ही जी रहे हैं। भागवत में कहां है
*तरव: किं जीवन्ति भस्त्रा: किं न श्वसन्त्युत।*
*न खादन्ति न मेहन्ति किं ग्रामे पशवो परे।।*
(SB 2.3.18)
अनुवाद: क्या वृक्ष जीते नहीं है? क्या लोहार की धाँकनी सांस नहीं लेती? हमारे चारों और क्या पशुगन भोजन नहीं करते या वीर्यपात नहीं करते?
वहीं पर श्रीमद्भागवतम में कहां है , *तरव: किं जीवन्ति न खादन्ति न मेहन्ति किं ग्रामे पशवो परे।।* क्या तुम्हारे ग्राम में न *खादन्ति न मेहन्ति किं ग्रामे पशव:* पहले तो तरव: कि बात की , क्या वृक्ष लंबी आयु नहीं जीते ? फिर आगे कहां है पशव: क्या पशु तुम्हारे ग्राम में नहीं है ? क्या करने वाले पशुन खादन्ति न मेहन्ति? बस वे केवल खाने के लिए जी रहे हैं। मेहन्ति और मैथुन करने वाले , कुत्ते बिल्लियां मैथुन में व्यस्त रहते हैं। उसमें भी कबूतर , वह तो 50 बार दिन में मैथुन का आनंद भोगता या लूटता है। क्या तुम्हारे ग्राम में, या नगर में, गली में कुत्तों को शास्त्रोंं में ग्रामसिंह कहां है। गांव का शेर सिंह कुत्ता। कुत्तेे बिल्ली कबूतर यह जीते रहते हैं। तुुम भी कुत्ते बिल्ली जैसा तुम्हारा जीवन तुम जी रहेे हो तो क्या अंतर है? *धर्मेनहीन पशुभिर समान* धर्महीन या कृष्णभावनाहीन जीवन तो पशुुुवत है,। या पक्षीवत है। या कृमी कीड़े जैसा ही जीवन है। तरु लता जैसा ही जीवन है। वह जीवन जिसमें कृष्णभावना नहीं है। वैसे जब खटवांंग मुनि को पता चला, मेरी आयु कितनी बाकी है? ऐसी जिज्ञासा उनकी रही तो उत्तर में उन्होंने सुना।
एक मुहूर्त, कितना समय बाकी बस एक मुहूर्त , तुम्हारी मृत्यु बस एक मुहूर्त दूर है। तो खटवांग मुनि ने क्या किया वैसे यह चर्चा भागवत में प्रारंभ में ही आती है। जब राजा परीक्षित थोड़ा शोक कर रहे हैं यह सोच कर कि अब मेरे पास बहुत कम समय है, कितना समय? सात दिवस ही बाकी है। उनको शाप मिला था सात दिनों के अंदर अंदर या सात दिन के पूरा होते ही वैसे तक्षक नामक पक्षी आएगा और डसेगा और उसी के साथ तुम निष्प्राण होंगे ऐसा शाप मिला था। तब राजा परीक्षित सोच रहे थे, मेरे पास सिर्फ एक सप्ताह की अवधि बची है, बहुत समय कम है तो कैसे होगा ? क्या कैसे होगा? *अन्ते नारायण स्मृतिः* उनको यह भी सलाह दी जा रही थी कि *अन्ते नारायण स्मृतिः* अंत में नारायण का स्मरण हुआ तो जीवन सफल , या जीवन का लक्ष्य ही है अंत में नारायण का स्मरण हो। तब राजा परीक्षित सोच रहे थे कैसे सात दिनों के अंदर अंदर में मेरी साधना करूंगा, उसमे में सिद्ध हो जाऊंगा। साधन सिद्ध मतलब भगवान का स्मरण होना ही साधना की सिद्धि है। ऐसे सोचने वाले राजा परीक्षित को कहां जा रहा था या कहां गया यह सात दिन तो बहुत होते हैं, खटवांग मुनि के पास तो एक मुहूर्त था , एक मुहूर्त। एक मुहूर्त में ही उन्होंने स्वयं को पूर्ण कृष्ण भावना भावित बनाया। अपनी साधना के सिद्धि के लिए उनके पास केवल एक मुहूर्त था मतलब हम कल्पना कर भी सकते हैं और कर भी नहीं सकते कि कैसे उन्होंने एक मुहूर्त मतलब 24 मिनट या 48 मिनट होते हैं ऐसा सुनते हैं।
इतने मिनटों में उनको कृष्ण भावना भावित होना था और वह हो भी गए। कैसे किया होगा उन्होंने? हर क्षण और अनुक्षण, क्षण अनुक्षण एक क्षण फिर उसके बाद वाला क्षण, क्षण अनुक्षण, एक क्षण अनुक्षण। खटवांग मुनि ने कितना सदुपयोग किया होगा कि वे एक मुहूर्त में कृष्ण भावनाभावित हुए। पूरी भावना , कृष्णभावना को विकसित किया और श्रद्धा से प्रेम तक सारे सोपान वह चढ़े। इसीलिए कहा है समय बलवान है और समय मूल्यवान भी है। चाणक्य पंडित कहते है बीता हुआ जो समय है या क्षण है कोटि-कोटि मुद्रा चुकाने पर या बदले में देने पर उस क्षण को हम वापस नहीं ला सकते। *सुवर्ण कोटिभिः* मेरे पास यह कोटि मुद्राएं है और स्वर्ण मुद्राएं है यह ले लो और उसके बदले में मुझे बीता हुआ एक क्षण दे दो नहीं मिलेगा, वह क्षण जो गवाया वह हमेशा के लिए गया, समय के मूल्य को भी समझना होगा। राजा परीक्षित को पता था कि सात दिन बचे हैं, भाग्यवान थे राजा परीक्षित जिनको चेतावनी मिली और पता था कि सात दिन बाकी है। लेकिन हमारी क्या स्थिति है हमको पता नहीं हैं, सात दिन या कितने क्षण या कितने दिन बाकी है ऐसे हम अभागी हैं ।
*अहन्यहनि भूतानि गच्छन्तीह यमालयम् ।*
*शेषाः स्थावरमिच्छन्ति किमाश्चर्यमतः परम् ॥*
( महाभारत, वनपर्व )
अनुवाद - यहां इस लोक से जीवधारी प्रतिदिन यमलोक को प्रस्थान करते हैं, यानी एक-एक कर सभी की मृत्यु देखी जाती है । फिर भी जो यहां बचे रह जाते हैं वे सदा के लिए यहीं टिके रहने की आशा करते हैं । इससे बड़ा आश्चर्य भला क्या हो सकता है ?
यह युधिष्ठिर महाराज के वचन हैं । हम सोचते नहीं हां औरों को मरने दो, हम भी देख रहे हैं हर रोज खबर आ रही है, यह मरा, वह मरा, वह मरा दुनिया वाले मरते ही है और हमारे हरे कृष्ण वाले भक्त भी मृत्यु को प्राप्त कर रहे हैं। कल के दिन ही रूस के परम पूज्य निताई चैतन्य गोस्वामी महाराज 1980 से जुड़े थे इस्कॉन के साथ , फिर प्रशिक्षित और दीक्षित भी हो गए और सन्यास भी लिया , इतना सारा प्रचार और प्रसार भी कर रहे थे , फिर परसों की ही बात है नर्सों हमारे साथ थे फिर परसों वह हमारा साथ छोड़ कर चले गए , प्रस्थान कर चुके। वैसे भक्तों का निधन और असंसारिक लोगों के मरण में अंतर है, किंतु मरण तो है ही मृत्यु को हर व्यक्ति प्राप्त करता है ही। हमको भी प्राप्त करना है लेकिन हम ज्यादा गंभीरता से सोचते नहीं फिर हमारी तुलना पुनः पशुओं के साथ हो जाती है, जिन पशुओं को या कुछ पशुओं को कभी-कभी कत्लखाने में ले आते हैं तो क्रम से एक बैच के गर्दन काटे तो दूसरी बैच प्रतीक्षा में रहती है। फिर वह भेड़ी , बकरी है या अन्य पशु है या जो भी है तो जो प्रतीक्षा में है उनको पता भी नहीं होता कि अगले क्षण उनकी बारी है। इसीलिए वह क्या करते? उनका चलता रहता है , आखरी सांस तक उसमें से कोई पशु लेटे हैं या कोई चुगाली कर रहे हैं और बकरी और बकरे का व्यवसाय चल रहा है । बकरा बकरी के पीछे भाग रहा है यह अंतिम मौका है मैथुन के लिए। आहार, निद्रा, भय, मैथुन चल रहा है दूसरे शब्दों में कहां जाए , दूसरे ही क्षण जो वरदान मिला है कौन सा वरदान *दुर्लभ मानव जन्म* मिला है यह वरदान है। और कौन सा वरदान मनुष्य जीवन में प्राप्त कर सकते हो? वह कौन सा है *वैकुंठ प्रिय दर्शनं* वैकुंठ प्रिय मतलब भगवान का भक्त, साधु, संत, महात्मा भागवत में उनको वैकुंठ प्रिय कहां है। हां भगवान का भी एक नाम है वैकुंठ या वैकुंठ पति। उनके प्रिय जो भक्त हैं,
*साक्षाद्-धरित्वेन समस्त शास्त्रैः*
*उक्तस्तथा भावयत एव सद्भिः।*
*किन्तु प्रभोर्यः प्रिय एव तस्य*
*वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्॥7॥*
अनुवाद - श्रीभगवान् के अत्यन्त अन्तरंग सेवक होने के कारण, श्री गुरुदेव को स्वयं श्रीभगवान् ही के समान सम्मानित किया जाना चाहिए। इस बात को सभी श्रुति-शास्त्र व प्रामाणिक अधिकारिओं ने स्वीकार किया है। भगवान् श्रीहरि (श्रीकृष्ण) के ऐसे अतिशय प्रिय प्रतिनिधि के चरणकमलों में मैं सादर वन्दना करता हूँ।
वह साक्षात हरि है, गुरुजन, आचार्य, आचार्य वृंद किंतु साथ ही साथ वे भगवान के प्रिय है। *प्रिय एव तस्य* तस्य मतलब कृष्णस्य वह भक्त कृष्ण के प्रिय है । उनका दर्शन यह भी वरदान है, उनका संग प्राप्त होना यह भी एक वरदान है। हे जीव उठो , जागो और प्राप्त हुए वरदानो को समझो। *दुर्लभ मानव जनम सत्संगे* यह दुर्लभ मानव जीवन सत्संग में बिताओ ताकि *भव सिंधुरे* भव सिंधु , भवसागर हम अब देख रहे हैं, हम मानो सागर में ही बैठे हैं। वैसे ही भवसागर है जहां भी है , सागर मतलब जल का स्मरण होता है। कभी-कभी जब बाढ़ आती है तो वह सागर बन ही जाता है। ऐसे भवसागर से अगर बचना है तो इस दुर्लभ मनुष्य जीवन का सदुपयोग करना चाहिए, सत्संग में उसको व्यतीत करना चाहिए फिर हम पांडुरंग पांडुरंग विट्ठल विट्ठल का नामस्मरण गाते हुए , नाम लेते हुए , नाम से धाम तक भी पहुंच सकते हैं और विशेष रूप से जो विट्ठल भगवान के दर्शन के लिए पंढरपुर आते हैं और जब दर्शन करते हैं , विट्ठल भगवान उस दर्शन में जब हम देखेंगे विट्ठल भगवान को *कर कटावरी ठेऊनिया* उनके कर है करकमल या हस्त कमल कटी प्रदेश पर , कमर पर रखे हैं। ऐसा है *सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी* वह इट पर खड़े हैं और उनके हाथ कमर पर रखे हैं। ऐसा दर्शन देकर वह यह संदेश भी देना चाहते है कि तुम मेरे दर्शन के लिए आए हो, अच्छा हुआ मेरे दर्शन कर रहे हो। इस जीवन में दुर्लभ मनुष्य जीवन का लाभ उठाकर जो तुम सत्संग कर रहे हो। हरि हरि। यह सत्संग का ही लाभ है जो तुम मेरा दर्शन कर रहे हो। विट्ठल भगवान का दर्शन तुम कर रहे हो तो भगवान कहते हैं कि हां अब तुम भवसागर से तर गए तुम मेरे समक्ष आ गए हो। अब यहां भवसागर में तुम डूब नहीं सकते हो, तुम किनारे आ गए, तुम्हारा बेड़ा पार हो गया। यहा ज्यादा पानी नहीं है, कितना पानी है ? बस इतना कमर तक, इतने पानी में तो तुम डूब के नहीं मरोगे, तुम बच गए, तुम्हारी रक्षा हुई है तुम मेरा दर्शन कर रहे हो, मुझे प्राप्त किया है, तुम्हारा जीवन सफल हुआ। *तरह ए भव सिन्धु रे* भवसागर को तुमने पार किया , तुम तर गए हो। हरि हरि।
*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।*
*हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।*
प्रार्थना करिए, भक्तों की सहायता करिए, जप करिए, कीर्तन करिए।