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*जप चर्चा* *पंढरपुर धाम से* *दिनांक 19 अप्रैल 2021* *हरे कृष्ण!* *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे* *हरे।।* ८३३ स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं।जप करते रहो। यह हरि नाम रामबाण औषधि हैं।जब हम हरि नाम का जप करेंगे या शुद्ध नाम जप करेंगे तब हमें कोई रोग नहीं सताएगा।क्या आप सभी रोगों से मुक्त होना चाहते हो? उसकी यही हरि नाम औषधि हैं। इससे क्या होगा? इससे ये बीमार शरीर ही प्राप्त नहीं होगा। *जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः |* *त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन || ९ ||* *अनुवाद:- हे अर्जुन! जो मेरे अविर्भाव तथा कर्मों की दिव्य प्रकृति* *को जानता है, वह इस शरीर को छोड़ने पर इस भौतिक संसार में* *पुनः जन्म नहीं लेता, अपितु मेरे सनातन धाम को प्राप्त होता है |* शरीर तो बीमार होता ही हैं। शरीर के मिलने का मतलब ही है कि बीमारी का साथ में मिलना। हरि हरि। यह मैंने आपको हरि नाम की महिमा के बारे में बताया।आप इसको एक ही बारी में समझ लो।हरि नाम की महिमा समझकर हरि का नाम लेते रहो। हरि नामामृत का पान करते रहो।ऐसा बताया गया हैं कि राम से बड़ा राम का नाम, हरि से बढ़कर हरि का नाम हैं।अब राम जी की ओर मुड़ते हैं। वैसे अलग से मुड़ने की जरूरत नहीं हैं,जब हम जप कर रहे थे तब राम की ओर ही हमारी नजर थी,हमारा मुख था।हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। हमें अंतर मुख होकर जप करना चाहिए। अंतर्मुखी यानी अंदर की ओर। मतलब कि अपनी ओर। क्योंकि भगवान सर्वत्र हैं। इसलिए भगवान अंदर भी हैं। हमारे हृदय प्रांगण में भी भगवान हैं। इसलिए जब हम अंतर मुख होकर जप करते हैं तो ह्रदय में विराजमान भगवान की ओर मुख करके जप करते हैं। हरि हरि।। *प्रेमाञ्जनच्छुरितभक्तिविलोचनेन सन्तः सदैव हृदयेषु विलोकयन्ति।* *यं श्यामसुन्दरमचिन्त्यगुणस्वरूपं गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि ।।* *(ब्रम्हसंहिता ५.३८)* *अनुवाद :* *जिनके नेत्रों में भगवत प्रेम रूपी अंजन लगा हुआ है* *ऐसे भक्त अपने भक्ति पूर्ण नेत्रों से अपने ह्रदय में सदैव उन श्याम* *सुंदर का दर्शन करते हैं जो अचिंत्य है तथा समस्त गुणों के स्वरूप* *है । ऐसे गोविंद जो आदि पुरुष है मैं उनका भजन करता हूं ।* संत महात्मा सदैव हृदय में विराजमान राम या श्याम सुंदर जो कि सभी अवतारों के स्रोत हैं,(अगर वह विराजमान है तो फिर सभी विराजमान हैं, राम भी,नरसिंह भी)की ओर मुख करके जप करते हैं। मुझे कहना था कि अब राम की मुख करते हैं लेकिन उन्ही की तरफ मेरी नजर थी।नामों का जप करते हुए,मैं उन्हीं का संस्मरण कर रहा था और अब उनकी कथा होगी।रामनवमी महोत्सव की जय। कुछ ही दिनों में राम प्रकट होने वाले हैं। अब वह दिन,वह क्षण दूर नहीं हैं। २ दिन की अवधि हैं और फिर( जय श्री राम)हमारे प्राणनाथ श्री राम प्रकट होंगे। तब हम उनके प्राकट्य का उत्सव मनाएंगे। २ दिन बाद भगवान प्रकट होंगे ही क्योंकि यह उनकी नित्य लीला हैं। कल हम सुन रहे थे कि भगवान हंपा सरोवर पहुंचे हैं।जिन्होंने भी कल इस्कॉन नागपुर की ओर से आयोजित भक्ति रसामृत महाराज के द्वारा राम कथा सुनी होगी जो कल ८:०० से ९:३० के बीच हुई।मैं भी कल सुन रहा था। पहले जटायु की कथा हुई,फिर कबंध की कथा, शबरी की कथा हुई।उन्होंने बड़ी सुंदर कथा सुनाई क्योंकि राम भी सुंदर है तो उनकी कथा भी सुंदर ही होती हैं और फिर उनके सुंदर भक्त सुंदर कथा ही सुनाते हैं। हंपा सरोवर के तट पर श्री राम आगे बढ़ रहे थे, तब शबरी ने संकेत किया कि वह देखिए ऋषि मुख पर्वत।उस ऋषि मुख पर्वत पर सुग्रीव रहते हैं। वह तुम्हारी सहायता करेंगे। राम और लक्ष्मण आगे बढ़े। सीता तो उनके साथ नहीं हैं,क्योंकि सीता की ही खोज हो रही हैं। शबरी ने कहा कि सीता की खोज में सुग्रीव आपकी मदद कर सकते हैं।जब राम और लक्ष्मण ऋषिमुख पर्वत की ओर जा रहे थे तब पर्वत के शिखर से सुग्रीव ने देखा कि कोई दो व्यक्ति उस पहाड़ की ओर आ रहे हैं और यह देखते ही वह भयभीत हो गए। क्योंकि बाली का पक्ष उनका शत्रु पक्ष हैं बाली। उनके स्वयं के भ्राता बाली ही उनके शत्रु बने हुए हैं। इसलिए उनको हर समय भय बना ही रहता था।जब भी कोई अनजान व्यक्ति उन्हें उस पहाड़ पर दिखता था तो उन्हे लगता था कि उन्होंने ही भेजा होगा। देखते ही वह भयभीत हो जाते थे और अपनी रक्षा के लिए उपाय ढूंढने लगते थे, उस उपाय में उन्होंने हनुमान को भेजा कि हनुमान जी आप जाओ और पता लगाओ कि यह लोग कौन हैं? उनको वापस भेजो।उनसे पूछो कि यहां क्यों आ रहे हैं। हनुमान गए और उनसे मुलाकात हुई और एक दूसरे से परिचय हुआ। राम ने उन्हें अपनी समस्या भी बताई। हरि हरि।।हनुमान जी ने उन्हें कहा कि मेरे स्वामी भी कुछ ऐसी ही समस्या में फंसे हुए हैं। हनुमानजी सुग्रीव के मंत्री हैं। आप दोनों की स्थिति एक जैसी ही हैं। सुग्रीव की पत्नी का भी अपहरण बाली ने कर लिया हैं और अभी मैं आपसे सुन रहा हूं कि आपकी पत्नी का अपहरण भी रावण ने कर लिया हैं। तो आप दोनों मिलकर एक दूसरे की सहायता कर सकते हैं। आप दोनों मित्र बन सकते हैं। जो मित्र विपरीत परिस्थितियों में साथ हो वही वास्तविक मित्र हैं। यहां पर रामायण में राम और हनुमान की पहली मुलाकात हो रही हैं। भगवान राम किष्किंधा शेत्र में पहुंचे ही हैं।हंपा सरोवर किष्किंधा क्षेत्र में हैं।रामायण के २-३ कांड पूरे हो चुके हैं। लेकिन अभी तक हनुमान का कोई नाम नहीं आया हैं और क्यों नाम आता क्योंकि अभी तो राम जी की स्वयं हनुमान से मुलाकात नहीं हुई थी। यह पहली मुलाकात हैं, राम और हनुमान की। हनुमान जनमें भी इसी क्षेत्र में थे।भौगोलिक भाषा में इसे हंपी कहते हैं।किष्किंधा छेत्र में हंपी नाम का स्थान हैं, जहा हनुमान का जन्म हुआ हैं।हनुमान जी वही रहा करते थे और अब सुग्रीव के साथ रह रहें हैं। हनुमान जी ने कहा कि चलो चलते हैं, लेकिन अब गिरी आरोहण करने की आवश्यकता नहीं हैं। गिर्यारोहण मतलब पैदल चलने की आवश्यकता नहीं है।आप दोनों मेरे कंधे पर बैठ जाओ। राम और लक्ष्मण ने वैसे ही किया और हनुमान ने उड़ान भरी और उन्हें पर्वत के ऊपर पहुंचा दिया। आपने इसकी वीडियो नहीं परंतु चित्र तो देखा ही होगा। हनुमान ने राम और लक्ष्मण को अपने कंधे पर बिठा रखा हैं। यह प्रसंग इसी समय का हैं। वहां पहुंचकर उनकी मुलाकात सुग्रीव के साथ होती हैं। वहां पहुंचकर वह एक दूसरे को समझते हैं और एक दूसरे की समस्या को समझते हैं। वह केवल हाथ मिलाकर ही मैत्री को स्थापित नहीं करना चाहते या फिर केवल साथ में खाना खा लो और बन गए मित्र।नहीं।अपनी मित्रता की स्थापना के लिए उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया। सुग्रीव ने यज्ञ का आयोजन किया और उस यज्ञ के साथ इन दोनों की मित्रता को स्थापित किया। ऐसी औपचारिकता के साथ दोनों मित्र हो गए।अब हम एक दूसरे की मदद करेंगे। हरि हरि।।यही समय है जब सुग्रीव ने कुछ अनुभव किया था। राम के वहां पहुंचने से कुछ समय पहले की बात है आकाश मार्ग से एक वायुयान जा रहा था और उस पर बैठी हुई एक महिला विलाप कर रही थी। राम राम राम कह कर पुकार रही थी। ऐसी पुकार को सुग्रीव, हनुमान आदि जो लोग भी वहां मौजूद थे उन सब ने सुना।वह स्त्री जो भी थी उनको पता तो नहीं था कि वह कौन थी,लेकिन ध्वनि से इतना तो पता चल रहा था कि किसी स्त्री की आवाज हैं। उसने ऊपर से एक पोटली फैकी।उस स्त्री न जाते-जाते अपने वस्त्र में कुछ अलंकार बांधकर उसे नीचे ऋषिमुख पर्वत पर फेंक दिया।विमान आकाश मार्ग से जा रहा था।जब सुग्रीव ने सुना कि रावण ने सीता का अपहरण किया हैं,तब वह पोटली लेने गए।जटायु ने भी राम जी को बताया था कि रावन दक्षिण दिशा में सीता को लेकर गया हैं और उसने उसको रोकने का प्रयास भी किया था। जटायु ने इसका संकेत दिया था इसलिए राम और लक्ष्मण उसी दिशा से जा रहे थे,तो उस वक्त वहां सुग्रीव वह पोटली लेकर आते हैं और बताते हैं कि पोटली में कुछ गहने बांधकर एक स्त्री ने फेंके थे। उनको लगा कि इस पोटली का इस प्रसंग से कोई संबंध हो सकता हैं। राम जो बता रहे हैं कि उनकी धर्मपत्नी को रावण हरण करके ले गया हैं,और आकाश मार्ग से गया हैं,तो हो सकता हैं कि वह स्त्री सीता ही हो।इसलिए वो वह वस्त्र राम के पास लेकर आए। सुग्रीव ने सुनाया भी कि कैसे उनको इस पोटली में अलंकार मिले हैं,इस बात सुनते ही और उस पोटली को छूते ही राम के विग्रह में रोमांच उत्पन्न हो गया। वह उसे खोल कर देखना चाहते थे कि उसमें सीता के ही अलंकार हैं या नहीं? उन्होंने उस पोटली को खोला तो लेकिन उनके लिए उन अलंकारों को पहचानना कठिन था। क्योंकि उनकी आंखों में आंसू भर आए थे। उनके नेत्र अश्रु से डब डब आए हुए थे।इसलिए वह पहचान नहीं पा रह थे। वह तो उन अलंकारों को स्पष्ट देख भी नहीं पा रहे थे। उनकी मन की स्थिति और भाव ऐसे हो गए थे कि उनके लिए पहचानना मुश्किल था। इसलिए उन्होंने लक्ष्मण को बुलाया और एक एक अलंकार उठा कर दिखाया और पूछा कि क्या यह सीता का हो सकता हैं?सबसे पहले उन्होंने कुंडल दिखाया तो लक्ष्मण ने कहा कि नाहं जानामि कुण्डल।मैं कुण्डल को नहीं पहचान सकता क्योंकिकुंडल की तरफ मैंने कभी देखा ही नहीं एवमुक्तस्तु रामेण लक्ष्मणो वाक्यमब्रवीत्। नाहं जानामि केयूरे नाहं जानामि कुण्डले4.6.22।। केयूरे यानी बाजूबंद,इसे भी मैं नहीं पहचान सकता। किंतु जब राम ने नूपुर दिखाएं तब लक्ष्मण ने तुरंत कहा कि हां हां यह सीता के ही नूपुर हैं।मैंने जब-जब सीता के चरणों की वंदना की हैं,तब तब मैंने इन्हीं नूपुरो को देखा हैं।मुझे अच्छी तरह से याद है कि यह सीता के ही नूपुर हैं। इससे यह बात पक्की हुई कि रावण पंचवटी से यहां तक तो पहुंचा ही हैं और इसी मार्ग से मां सीता को आगे लेकर गया हैं। यह जो प्रसंग है जिसमें लक्ष्मण कहते हैं कि मैं कुंडलो को नहीं पहचान सकता,मैं बाजूबंद को नहीं पहचान सकता। बाकी के अलंकारों को भी नहीं पहचाना उन्होंने क्योंकि वह उस तरफ देखते ही नहीं थे। अलंकारों की ओर क्या सीता के उस अंग की ओर उनके कानों में या गले में या बाजू में या कमर में जो अलग-अलग अलंकार पहने जाते हैं उनकी ओर उनकी नजर कभी गई ही नहीं।यह लक्ष्मण का ब्रह्मचर्य हैं। लक्ष्मण ब्रह्मचारीयों के पुजारी हैं। *चाणक्य - नीति* *मातृवत् परदारेषु परद्रव्येषु लोष्ट्रवत् आत्मवत् सर्वभूतेषु यः पश्यति* *स पण्डितः ॥* *जो कोई पराई स्त्री को अपनी माता की तरह , पराये धन को धूल के* *समान तथा सारे जीवों को अपने समान मानता है , वह पण्डित माना* *जाता है ।* *चाणक्य पण्डित* वह व्यक्ति पंडित हैं, जिसके लिए ओरों की स्त्रियां माता के समान हैं। हमारे लक्ष्मण भैया पराई स्त्रियों को माता के समान देखते हैं। लक्ष्मण भैया दाऊजी के भैया, कृष्ण कन्हैया। वही कृष्ण और बलराम ही अब राम और लक्ष्मण बने हैं। क्योंकि यह किष्किंधा क्षेत्र है इसलिए रामायण में जो किष्किंधा कांड है वह यहीं से प्रारंभ होता हैं। किष्किंधा कांड की लीलाएं राम ने चातुर्मास में संपन्न की। अब दोनों एक दूसरे की सहायता करेंगे।राम मदद करेंगे सुग्रीव की और सुग्रीव मदद करेंगे राम की।तो चलो शुरुआत करते हैं। पहले तो राम ही मदद करेंगे सुग्रीव की। सुग्रीव की धर्मपत्नी का अपहरण करने वाले तथाकथित बाली भैया का वध करेंगें। पहले प्रयास तो किया होगा उन्हें मारने का साम, दाम,भेद से।यह बाली साम,दाम से तो नहीं मानने वाले थे।उन्हें दंडित करने की आवश्यकता थी। पर स्त्री गमन या स्त्री का अपहरण करने वाले को कौन सा दंड मिलना चाहिए?मृत्युदंड। शास्त्रों में ऐसे व्यक्ति के लिए मृत्युदंड बताया गया हैं। इसलिए राम बाली को ऐसा ही दंड देना चाहते हैं। यह कोई अन्याय नहीं हैं। बल्कि यही उचित कृत्य हैं। ऐसा ही दंड शास्त्रों में उल्लेखित हैं। राम ने अपना पराक्रम वहां दिखाया। पराक्रमी तो है ही हमारे राम। उनका अयोध्या में धनुष बान की विद्या में परीक्षण हुआ था। वह इस विद्या में परांगत तो हैं ही और वैसे भी क्योंकि वह भगवान हैं तो सभी कला कौशल में निपुण हैं। जब राम ने बाण चलाया तो वह ७ वृक्षों को १ साथ बेधकर बाहर निकला।इससे सुग्रीव को पूर्णतया विश्वास हो गया कि मेरे मित्र श्री राम बड़े पराक्रमी हैं। राम ने कहा कि तुम आगे बढ़ो। तुम बाली के साथ लड़ो। मैं तो तुम्हारे साथ हूं ही। मैं तुम्हारी सहायता करूंगा। मैं छुप कर देखता रहूंगा। तुम अगर संभाल नहीं पाओगे तो मैं तुम्हारी मदद करूंगा। दोनों के मध्य में द्वंद युद्ध हो रहा था और वह दोनों एक दूसरे को अपने मुट्ठी के प्रहार से गिरा रहे थे।घमासान युद्ध हो रहा था। यह युद्ध बहुत समय के लिए चलता रहा, क्योंकि बालि बलवान था, इसलिए सुग्रीव सफल नहीं हो रहे था।सुग्रीव प्रतीक्षा कर रहे था कि कब राम बाण चलाएं। किंतु ऐसा हुआ ही नहीं।सुग्रीव स्वयं ही पराजित हो रहे थे।पराजित ही नहीं हुए बल्कि उनकी जान भी जा सकती थी।सुग्रीव किसी तरह वहां से अपनी जान बचाकर भाग आए और तब उन्होंने राम से कहा कि आपने कहा था कि आप अपना बान चलाओगे, लेकिन आप तो देखते ही रहे। आपने वचन दिया था कि आप सहायता करोगे फिर आपने कुछ किया क्यों नहीं?आपने अपना वादा नहीं निभाया। राम ने कहा कि नहीं ऐसी बात नहीं हैं। मैं तो तैयार था।अभी भी तैयार हूं, तब भी था। लेकिन आप दोनों भाई, तुम और बाली दोनों एक जैसे ही दिखते हो।आप दोनों जब लड़ रहे थे तो मुझे पता ही नहीं चल रहा था कि आप दोनों में से बाली कौन सा है और तुम कौन से हो और मैं गलती से तुम्हारा वध नहीं करना चाहता था। मेरे समक्ष यह दुविधा उत्पन्न हुई। मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि आप दोनों में से कौन कौन हैं। अब तुम यह हार पहन लो।सुग्रीव ने कहा कि यह किस लिए? मैं जीता थोड़ी हूं। मैं तो हार गया हूं। राम ने कहा कि नहीं अब जब तुम दोनों लड़ोगे तो मुझे पता चलेगा कि कौन-कौन हैं। जिसके गले में हार हैं वह तुम हो।जिसके गले में हार हैं, वह हारेगा नहीं और वह सुग्रीव हैं और फिर वही हुआ। दोनों जब लड़ रहे थे तब राम ने अपनी भूमिका निभाई और बाली के वक्षस्थल में अपने बानो का प्रहार किया और उसी के साथ उसकी जान जा ही रही थी कि राम आगे बढ़े।ऐसा कथाकार बताते हैं कि पहले तो उन्होंने राम से कहा कि मुझ पर अन्याय हुआ हैं। तुम्हें ऐसे छुप कर बान नहीं चलाना चाहिए था।राम ने स्पष्टीकरण दिया कि पर स्त्री के अपहरण करने का यही दंड हैं। मृत्युदंड। परंतु फिर राम आगे बढ़े और उसे कहा कि ठीक हैं, अगर तुम यह समझते हो कि अन्याय हैं तो मैं बान को निकाल देता हूं।तब बाली सोचकर निवेदन करने लगा कि नहीं नहीं इसे मत निकालिए। बान को मत निकालना। इसे रहने दो। मुझे मरने दो। मैं आपके हाथ से मर रहा हूं और इतना ही नहीं आपकी उपस्थिति मैं मर रहा हूं।ऐसा अवसर मुझे पहले कभी ना तो मिला था ना कभी मिलेगा। ना भूतो ना भविष्यति।बड़ी मुश्किल से मुझे यह अवसर प्राप्त हो रहा हैं। मैं इसे गंवाना नहीं चाहता हूं। मुझे मरने दो। मैं आपका दर्शन करते हुए मर रहा हूं और आपके हाथों से मर रहा हूं। इसी में मेरे भाग्य का उदय हैं। इसी के साथ सुग्रीव जीत गए और सुग्रीव किष्किंधा के पुनः राजा बन गए और राज्य उपभोग करने लगे। किष्किंधा के राजा बन कर उन्होंने अपनी धर्मपत्नी को पुनः प्राप्त किया।वह किष्किंधा का कारोबार चलाने लगे।उपभोग करने लगे। समय बीतता गया और खुशियां मनाने में ४ महीने बीत गए।या सुखउपभोग करने में सुग्रीव इतने तल्लीन हो गए कि वह भूल गए कि मुझे राम की सहायता भी करनी हैं। मेरी तो सहायता उन्होंने कर दी लेकिन अब मेरी बारी हैं। सीता को खोजना हैं और पुन: राम के साथ उनका मिलन कराना हैं। उनको इन बातों का ध्यान नहीं रहा। इसलिए उनको इसका स्मरण दिलाया गया और आगे की तैयारियां होने लगी। एक सभा बुलाई गई और कई लोगों को बुलाया गया और उस सभा में सारे लोग या तो वानर लोग थे या भालू थे। उन्होंने कईयों को अलग-अलग दिशाओं के लिए नियुक्त किया कि तुम दक्षिण में, तुम पूर्व में जाओ, तुम उत्तर में जाओ। ऐसे उन्होंने १० दिशाओं में अपने दूतों को भेज दिया। कोई ऊपर भी गया हो कोई नीचे भी गया होगा। सभी दिशाओं में बंदर और भालू को भेजा गया। ऐसे खोज प्रारंभ हुई। हरि हरि।। परंतु एक ही दल को यश मिला, जिस दल में हनुमान थे। और यह दल दक्षिण की ओर गया था। वहां पर उनकी मुलाकात संपत्ति से हुई जो कि जटायु के भाई थे।क्योंकि वह गिद्ध योनि के थे और गिद्धो की दृष्टि दूर तक होती हैं इसलिए उन्होंने रावण के विमान को लंका की ओर जाते देखा था। और दूर तक देखकर बताया कि सीता लंका में हैं। अभी सुंदरकांड की शुरुआत हुई हैं। हनुमान का एक नाम सुंदर हैं। सुंदरकांड मतलब हनुमान का कांड।हनुमान का सीता को खोजने का सारा जो घटनाक्रम हैं, जितने भी सारे प्रयास हैं वह सुंदरकांड के अंतर्गत आते हैं। हनुमान गए और विभीषण की मदद से अशोक वन पहुंचे। हनुमान ने सीता को खोजा और सीता मैया से कहा कि सीता मैया चलो,इस समय राम और लक्ष्मण किष्किंधा में हैं। सीता मैया ने पूछा कि कैसे जाएंगे? तो हनुमान ने कहा कि मेरे कंधे पर बैठ जाओ। सीता ने साफ मना कर दिया कि ऐसा संभव नहीं हैं। मैं पर पुरुष को स्पर्श भी नहीं कर सकती। हनुमान लौट आए और किष्किंधा में राम के पास पहुंच कर यह खुशखबरी सुनाई तो उसी समय राम ने हनुमान को गले लगाया। आलिंगन किया। आपने वह तस्वीर भी देखी होगी जिसमें राम- हनुमान एक दूसरे को आलिंगन कर रहे हैं। यह प्रसंग किष्किंधा में हुआ। राम हनुमान से प्रसन्न थे और क्यों ना हो क्योंकि उन्होंने माता सीता की खोज की थी और अपने साथ सीता की अंगूठी भी लेकर आए थे। वह सबूत था। हरि हरि।। आप स्वयं भी रामायण पढ़ो और सुनो। *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे* *हरे।*

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