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*जप चर्चा,* *18 अप्रैल 2021,* *पंढरपुर धाम* 807 स्थानों से भक्त हमारे साथ जुड़ गए हैं। हरि हरि। आप सब ठीक हो? आशा है, प्रार्थना है कि आप सब ठीक रहो। हरि हरि।आज पूरा संसार कोरोना वायरस के संकट में है और भी कई प्रकार के संकट तो है ही किंतु कोरोना वायरस का प्राधान्य चल रहा है। हरि हरि। सावधान रहो। सभी सावधानियां बरतते रहो। हरि हरि। । मैं सोच रहा था कि कुंती महारानी ने कया प्रार्थना की। आप जानते हो कि कुंती महारानी प्रार्थना प्रसिद्ध है? श्रीमद्भागवत की पहली प्रार्थना कुंती महारानी की है। उस प्रार्थना में कुंती महारानी ने कहा है। *विपदः सन्तु ताः शश्वत्तत्र तत्र जगद्गुरो । भवतो दर्शनं यत्स्यादपुनर्भवदर्शनम् ॥* *(श्रीमद्भागवत 1.8.25)* *अनुवाद:- मैं चाहती हूँ कि ये सारी विपत्तियाँ बारम्बार आयें , जिससे हम आपका दर्शन पुनः पुनः कर सकें , क्योंकि आपके दर्शन का अर्थ यह है कि हमें बारम्बार होने वाले जन्म तथा मृत्यु को नहीं देखना पड़ेगा ।* इसको याद भी कर सकते हो। कुंती महारानी तो बड़ी होशियार भी हैं और चालाक भी है। वह तो कह रही है कि हे प्रभु! क्या करो? मुझ पर विपद संकट भेजते रहो। दोनों स्थिति में हमें सम होना चाहिए। विपद संपत, संपत तो जानते ही हो संपत्ति और विपद मतलब संकट। *विपदः सन्तु* हमारी ओर आने दो संकट। *शश्वत्तत्र* पुनः पुनः आने दो। *तत्र तत्र* जिसको कहते हैं पुनः पुनः आने दो। यत्र तत्र कुत्र सर्वत्र आने दो संकट। *भवतो दर्शनं यत्स्यादपुनर्भवदर्शनम्* संकट जब भी आएगा तो हम क्या करेंगे? आपकी ओर दौड़ेंगे, आपको पुकारेंगे। *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे*। मेरे भगवान कृष्ण! जब कोई समस्या उत्पन्न होती है तो कृष्ण नाम मुख से निकलता है। हम भगवान की ओर दौड़ते हैं। मैं भी दौडूंगी। हम पता नहीं दौड़ेंगे या नहीं। लेकिन कुंती महारानी तो कह रही हैं कि मैं दौडुगी। कोरोना वायरस है तो हम कृष्ण की ओर दौड़ेंगे या केवल अस्पताल की ओर दौड़ेंगे। दोनों की ओर दौड़ना चाहिए। पहले भगवान की ओर दौड़ो, दौड़ पडो। डॉक्टर को भी याद करो और अस्पताल को भी याद करो। भगवान को की गई प्रार्थना और डॉक्टर की देखभाल,दोनों की मदद से हम ठीक हो जाएंगे। *भवतो दर्शनं यत्स्यादपुनर्भवदर्शनम्* जब भी संकट आएगा,मैं आपके दर्शन करूंगी। आप के मंदिर में जाकर दर्शन करूगी, प्रार्थना करूगी।पूरे संसार में या जहां-जहां भी आप हैं,आप तो सर्वत्र हैं। मंदिर जाना संभव भी नहीं होगा। हम आजकल जहां भी है वही से पुकारो।कलीयुग में तो जहां भी हो वहीं से पुकारो *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे*। *नाहं तिष्ठामि वैकुण्ठे योगिनां हृदयेषु वा । मद्भक्ताः यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद ॥* (पद्म पुराण) *अनुवाद:- न मैं वैकुण्ठ में हूँ , न योगियों के हृदय में । मैं वहाँ रहता हूँ , जहाँ मेरे भक्त मेरी लीलाओं की महिमा का गान करते हैं ।* कुंती महारानी ने तो कहा ही था। यत्र यत्र सर्वत्र। हम जहां भी भगवान को पुकारेंगे। वहां भगवान हमारे लिए उपस्थित होंगे, प्रकट होंगे। हरि हरि। *यत्स्यादपुनर्भवदर्शनम्* कुंती महारानी कहती हैं और हम समझ सकते हैं कि क्या कह रही है। थोड़ा या कुछ संस्कृत के शब्दार्थ, उनके शब्द और अर्थ समझना आसान है। किंतु कुंती महारानी का इस प्रार्थना के पीछे का जो भाव है, भक्ति भाव या कृष्ण भाव, कृष्ण भावना इसको जानना है, अगर जान सके तो। जान तो सकते हैं पर अगर हम गंभीर है। *वैष्णवेर क्रिया मुद्रा विज्ञे न भुजाय* ऐसा कहा गया हैं कि वैष्णव के या वैष्णवी कुंती महारानी के क्रिया, मुद्रा का भाव समझना कठिन होता है। हरि हरि। तो भी प्रयास करना चाहिए और फिर हमारा भी कुंती महारानी के भाव जैसा भक्ति भाव होना चाहिए। वह कह रही है कि संकट भेजो या संकट तो आते रहते हैं। हम प्रार्थना करें या ना करें संकट आते रहते हैं। यह हमारे लिए विकल्प नहीं है। लेकिन कुंती महारानी यह कह रही है कि संकट आएंगे तो फिर हम आपकी ओर आएंगे। आपको पुकारेंगे, आपके साथ मुलाकात करना चाहेंगे। ताकि अपने दिल की बात कह सकें। *गुह्य अख्याती प्रछति*।अगर हम हमारे दिल की बात, दिल को चूबने वाली बात या आनंद की बात भगवान से कहेंगे तो फिर इसका परिणाम या फल क्या होगा? *पुनर्भवदर्शनम्* यह कुंती महारानी की चालाकी है। अंततोगत्वा क्या हासिल होगा? संकट आएंगे तो हम आपकी ओर आएंगे, आप के दर्शन के लिए आएंगे, आपका दर्शन करेंगे और जब आपका दर्शन होगा तब *यत्स्यादपुनर्भवदर्शनम्*। आपका दर्शन होगा तो फिर भवदर्शन मतलब भवसागर या भव रोग से छुट जाएंगे। इस संसार का पुनः दर्शन नहीं करना पड़ेगा। हरि हरि। तो इन दिनों में इस प्रार्थना को याद कीजिए। यह समय काफी मुश्किल है। कठिन समय आधमका है। हरि हरि। यह बात नई तो नहीं है। यह सब इस संसार में चलता ही रहता है। *पुनरपि जननं पुनरपि मरणं* *पुनरपि जननं पुनरपि मरणं पुनरपि* *जननीजठरे शयनम्। इह संसारे* *बहुदुस्तारे कृपयापारे पाहि मुरारे ॥21॥* *- शंकराचार्यजी द्वारा* *रचित भज गोविन्दम् – श्लोक सं.-21* *हिंदी अर्थ:-* *हे परम पूज्य परमात्मा! मुझे अपनी शरण में ले लो। मैं इस जन्म और मृत्यु के चक्कर से मुक्ति प्राप्त करना चाहता हूँ। मुझे इस संसार रूपी विशाल समुद्र को पार करने की शक्ति दो ईश्वर।* तो यह बात तो प्रसिद्ध हैं। हमने सोचा कि आपको थोड़ा स्मरण दिला दें। हरि हरि। वैसे यह तो राम का स्मरण करने का समय है। ऐसी बात नहीं है कि हम यह सब बोलते हुए राम को भूल चुके थे या हमने ऐसी कोई विपरीत बात कही। जो भी हमने कहा यह कृष्ण और राम ने कहलवाया। इसका संबंध राम के साथ भी हैं, रामलीलाओं के साथ है। राम नवमी महोत्सव की जय। जहां राम-राम हो जाए मरा मरा से बचना है। यह तो बात है, मरा मरा से बचना है। आपको करमरकर याद है? करो, फिर मरो, मर के फिर जन्म लेकर पुनः करो। यह करमरकर की भूमि है और हम सभी करमरकर हैं। यह मरने की माला जपना हमको छोड़ना है और हम को राम-राम राम-राम कहना है, पुकारना है। फिर राम का नाम और राम की लीला प्रकट होंगी। हरि हरि। यशोदा भी राम की लीला कहती और सुनाया करती थी। शुकदेव गोस्वामी ने भी रामलीला सुनाई। महाराज परीक्षित ने या श्रील व्यासदेव ने भी रामलीला सुनाई हैं। महाभारत में भी एक रामायण हैं। स्कंद पुराण में भी रामायण महात्मय लिखा है। तो यशोदा भी बाल कृष्ण को राम की कथा सुनाती रहती थी। हमने कहा था कि जो भी माता हैं,पिताश्री है, भ्राताश्री है, उनको अपने पुत्र पुत्रियों को, भाई बहनों को राम की कथा सुनानी चाहिए ताकि वह सभी चरित्रवान बने। सारा संसार चरित्रहीन बन रहा है। यशोदा भी अपने बालक को राम की कथा सुनाया करती थी। इस भारत भूमि में ऐसी परंपरा है। राम की कथा सब सुनते और सुनाते आए हैं। हम जब छोटे थे तो हमको भी राम की कथा सुनाई जाती थी। हरि हरि। फिर चाहे हमारे बड़े भैया हो या माता-पिता हो, सगे संबंधी हो या विद्यालय में शिक्षक हो,सभी राम कथा सुनाते थे। लेकिन अब विद्यालय में राम की कथा मना है।आप विद्यालय में कृष्ण की कथा नहीं सुना सकते। ऐसा संविधान बन गया है। धर्मनिरपेक्ष प्रदेश बन गया हैं। सभी धर्मों में संबंध हो गया है। प्रभुपाद कहते थे डेमोक्रेसी(जनतंत्र) का अर्थ है डेमन क्रेजी(पागल दानव)। ऐसे लोगों ने संविधान बनाया हैं। इस देश को सेक्युलर स्टेट बना दिया गया हैं। भगवान को बाहर कर दिया गया हैं। राम बाहर, कृष्ण बाहर, माया अंदर। हरि हरि। रावण को अंदर, राम को बाहर कर दिया गया हैं। यशोदा भी बाल कृष्ण को राम की कथा सुनाती थी। बेटा एक था राजा राम और एक थी रानी सीता महारानी। जब वह वनवास गये तो चित्रकूट से रामटेक होते हुए पंचवटी पहुंचे। बेटा वहां एक राक्षस आया । इस तरह कृष्ण बड़े ध्यान से सुन रहे थे । हरि हरि। विस्तार से सुनाया होगा। उस राक्षस ने भिक्षाम देही कहकर पुकारा और उसके पहले मरीची भी हिरण का रूप धारण करके आया। बहरूपी कोई भी रूप धारण कर सकता था। हिरण सीता को पसंद आया और उनहोने कहा कि मुझे वह हिरण चाहिए। मेरे प्रिय राम उस हिरण को मेरे लिए लाइए। तो फिर राम गए, हिरण को पकड़ने के लिए या लाने के लिए। हरि हरि। तो फिर सीता ने लक्ष्मण को भेजा। जाओ जाओ। तो फिर रावण आया भिक्षाम देही। सीता महारानी जैसे ही आगे बढ़ी,ब्राह्मण का रूप धारण करके बदमाश रावण उनको पकडने लगा,औरों को रुलाने वाला राक्षस मेकअप करके आया था। वह ब्राह्मण की वेशभूषा धारण करके, हाथ में कमंडल लेकर या भिक्षा पात्र लेकर आया था। भिक्षाम देही जैसे ही सीता आगे बढ़ी, तो उस राक्षस ने सीता का अपहरण कर लिया। यशोदा कृषण को सुना रही थी और जैसे ही उनहोंने यह बात बताई कि राक्षस ने सीता महारानी का अपरहण कर लिया हैं, तो कृष्ण जो गोद में लेटे हुए थे और गाय का दूध पी रहे थे कहने लगे, नहीं नहीं मैं तब तक दूध नहीं पिऊंगा जब तक आप मेरे को कहानी नहीं सुनाओगे। यशोदा कहानी सुना रही है और बीच-बीच में दूध भी पिला रही है। कृष्ण दूध भी पी रहे हैं और इस लीला का रसास्वादन भी कर रहे हैं। इतने में यशोदा ने सुनाया कि राक्षस आया हैं और उसने सीता का अपहरण कर लिया है , इस बात को सुनते ही कृष्ण जो यशोदा की गोद में लेटे थे, एक दम से छलांग मारकर खड़े हो गये, कहा है मेरा धनुष बाण । अब दिखाता हूं, मैं अपना पराक्रम और विनाश करता हु इस राक्षस का। बाल कृष्ण राम लक्ष्मण सीता की कहानी सुन रहे थे और सुनते सुनते आवेश में आ गए, बाल कृष्ण राम ही बन गए। कभी कभी राम और श्याम बनके वे आ जाते है। लेकिन साई बाबा बनके नहीं आते। सावधान। मैं जैसे की आजकल राम कथा सुनाता हूँ जपा टॉक के अंदर तो मुझे सोचना पड़ता है की कौनसी कथा सुनाई जाए। कई सारी लीलाएं सामने आ जाती है।कौनसी कथा सुनाई जाए। लक्ष्मण,सीता बहुत भक्त है रामायण मैं, कौशल्या के संबंध में सुनाऊ या हनुमान के बारे। हनुमान के बारे में कुछ कहो , हनुमान लीला सुनाओ। ये इतनी सारी लीलाएं है, पता है कितनी सारी लीलाएं है। शास्त्रों में कहा है की जैसे समुद्र की लहरों की तरंगों को कोई गिन नही सकता है , यह गणना असंख्य है। ऐसे ही इतनी सारी लीलाएं है। और यह भी कह सकते है की एक एक अवतार की असंख्य लीलाएं है।और अवतार भी बहुत हैं, यह भी कहा गया है की अवतारों की संख्या वैसी ही है जैसे समुद्र की तरंगे, लहरों की गणना नही है, की कितनी लहरे है , ऐसे ही कितने अवतार है * ना ना अवतार करो भुवनेश किंतु * ब्रह्मा ने भी कह दिया हैं कि ना ना अवतार है। ब्रह्मा भी नही कह पाए ईतनी असंखय लीलाए हैं।ऐसा नही है कि एक करोड़, एक हजार अवतार है ,अवतार भी असंख्य है। और हर अवतार की लीलाएं भी असंख्य है। वैसे एक व्यक्ति ही, लीला सुनाने में कुछ हल्के से सफल हो पाते है और वे है अनंत शेष। इनको सहस्त्र वदन भी कहते है।यह एक हजार मुख वाले है । और एक हजार मुखों से वे हरी कथा करते रहते है और हजार मुखों से हजार प्रकार की कथा हो रही है। ये नही की जैसे आज कल के कथाकार बोलते है तो स्पीकर लगाते है, कथा दूर दूर तक सुनाने के लिए। चाहे 550 स्पीकर हो या 1000 स्पीकर हो, यह स्पीकर एक ही कथा सुनाते रहते है। एक स्पीकर से एक ही कथा निकलती है। किंतु जब अनंत शेष कथा करते है तो हजार कथा या हजार अवतारों की कथा एक ही साथ सुनाते है। श्रृष्टि के प्रारंभ में जब श्रृष्टि होती है तो जो ग्रह नक्षत्र होते है इसको कोई धारण करने वाला भी तो होना चाहिए। अपने ऑर्बिट में रखने वाला भी तो कोई चाहिए। ऐसी कोई शक्ति, ऐसी कोई युक्ति कौन रखता है ग्रहों का अपना मंडल होता है। इन सभी ग्रहों को अनंत शेष धारण करते है अपने फण के ऊपर, और अपने फन्नो को घुमाते रहते है। सारा संसार भगवान के फण के ऊपर स्तिथ है। ये भगवान ही कह रहे थे , सारे श्रृष्टि, भ्रह्मण्डो को अपने सर पर धारण करने वाले। मुझे कब तक ये बोझ ढोना पड़ेगा। वैसे उनके लिए कोई बोझ नहीं है, ना के बराबर है ।उनहोन पूरा ब्रह्मांड तो धारण करा ही हुआ है। किंतु पूरा ब्रह्मांड एक सरसों के दाने के बराबर का है। आप के सिर पर सरसों का दाना रखा जाए तो आपको याद भी नहीं रहेगा की कुछ रखा हुआ है, ठीक वैसे जैसे एक मच्छर भी आकर बैठ जाता है पर हमे फरक ही नहीं पड़ता। ठीक वैसे ही भगवान के लिए ये माया का खेल है, यह कोई बडा काम नहीं है। तो भगवान पूछ रहे थे की मुझे यह भार कब तक ढोना पड़ेगा? तो उनको बताया गया की आप दो कार्य 1 साथ में करोगे। पहला सारे श्रृष्टि को अपने फन्नों के ऊपर धारण करोगे और दूसरा आपको भगवान के गौरव गाथाओं को भी कहना है। भगवान के गुण, रूप, नाम , लीला का वर्णन करना है। और जैसे ही आपने यह सारा वर्णन पूरा कर लिया तभी आपके कार्यों का समापन होगा । फिर आपको ये ग्रहों को ढोने की अवक्षकता नही रहेगी। तो फिर अनंत शेष सहस्त्र वदन है तो उन्होंने सोचा की मेरे पास तो हजार मुख है फिर मैं हर दिन हजार मुखों से भगवान की नाम, रूप, गुण, लीलाएं धाम की कथाओं को कहता जाऊंगा । तो फिर यह जल समाप्त हो जायेगा। फिर मुझे ढोने की आवश्कता नही होगी। अब अनंत शेष ने भगवान की लीलाओं को कहना प्रारंभ किया और कथा लीला कहने लगे, कहते गए कहते गए। अभी भी कह रहे है लेकिन ये लीला अभी भी समाप्त होने वाली नही है। हम थक गए यह कथा सुन सुन के। हमको भी थोड़ा बोझ लग रहा है कब से महाराज कथा सुना रहे है, कब घर जायेंगे ताकि हमको आराम मिलेगा। ये सहस्त्र वदन थके तो नही है । उनका संकल्प तो था की जल्दी से मैं कथा पूरी कर लूंगा लेकिन उनका संकल्प पूरा नहीं हो रहा है। ये राम की कथा कितनी सारी है। वैसे राम लीला खेलते भी रहते है। राम की लीला शाश्वत है। वही लीला दोराहते नही है भगवान हर समय नई लीला प्रकट करते है। अभिनय इनोवेशन होता रहता है। एक ब्रह्मांड से दूसरे ब्रह्मांड में भी राम की लीला होती रहती है। ये राम हुए , कृष्ण हुए, नरसिंह हुए, वराह हुए, कितने अवतार है , अवतारों का और ना ही उनके लीलाओं का कोई अंत है। ये सिंधु है, सागर है, लीला का सागर है हमारे लिए हम सुक्ष्म जीव है। उस सिंधु का एक बिंदु भी हमारे लिए पर्याप्त है। हम (जीव आत्मा) इतने सुक्ष्म है छोटे है की एक बिंदु में, लीला सागर का बिंदु उसी में हमारा अभिषेक हो जाता है। उसी में हम गोते लगा सकते है। उसी में नहा सकते है ,एक बिंदु में। हम तो एक एक बिंदु ही छिड़कते रहते है आपकी ओर लेकिन ये काफी है। तो आप सभी डूब जाओ, गोते लगाओ इस भगवान के लीला, कथा , नाम में , धाम में , और प्रसाद में । इस प्रकार राम भवनाभावित हो जाओ। नोएडा तक मेरी आवाज़ पहुच रही है,ऐसा पराकर्म है हरी हरी। यह ऑनलाइन का पराक्रम है। उनको भी श्रेय मिलना चाहिए जो साइंटिस्ट है जो इस ऑनलाइन योजना में काम करते है। वैसे इसका दुरुपयोग भी होता है लेकिन, हरे कृष्ण भक्त इसका सदुपयोग करते है ,इस इंटरनेट व्यवस्था का। आजकल प्रचार का माध्यम वर्क फ्रोम होम चल रहा है घर बैठे बैठे काम धंधा करो। ऐसे ही हम हरे कृष्ण भक्तों का भी हम मंदिर में बैठे बैठे आश्रम में बैठे बैठे प्रचार का कार्य कर रहे है। जारे देखो तारे कहो कृष्ण उपदेश का जो कार्य है। तो राम को धन्यवाद। कि घर बैठे बैठे सभी को राम कथा का अस्वदान हो रहा है। निताई गौर प्रेमानंद हरी हरी बोल।

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