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*जप चर्चा* *पंढरपुर धाम से* *22 जून 2021* हरे कृष्ण । गौरांग जगन्नाथ स्वामी सुन रहे हो ? हरि हरि । 918 स्थानों से जप हो रहा है । पांडव निर्जला एकादशी महोत्सव की जय । और केवल निर्जला एकादशी की ही जय नहीं है , जिन्होंने भी पांडव निर्जला एकादशी को मनाया उन सभी की भी जय हो । आप ने मनाया निर्जला ? प्रवीण भोसले निर्जला की क्या ? निर्जला ! जल भी नहीं । आपका अनुभव कैसा रहा ?यह एक जीत हुई । जिन्होंने भी कल की निर्जला एकादशी मनाई उनकी जय हो । ऐसा तो कहा ही, कह ही चुका हूं । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। का श्रवण , कीर्तन हो रहा था । और फिर हरिकथा यानी हरी के वचन , हरि के कुछ सूत्र या सुक्त स्थिति को पढ़ रहा था , पढ़ना भी श्रवण ही है । मैंने उसका आनंद लिया । सुनील आपने उसका आनंद लिया ? सुनील यूएसए से है । अमेरिका में बैठे हैं । मैंने आनंद लिया , मुझे नहीं लगता कि किसीको परेशानी हुई होगी । कुछ परेशानी हुई ? कष्ट हुआ ?दुख हुआ ? नहीं । वैसे आप लिख भी रहे हो । आनंद ही आनंद गड़े । कैवल्य नरकायले त्रिदशपूराकाश पुष्पायते दुन्तेिन्द्रियकालसर्पपटली प्रोत्सातदष्टापते । विषं पूर्णसुखायते विधिमहेन्द्रादिक्ष कोटायते यत्कारुष्पकटाक्षवैभववतां तं गौरमेव स्तुमः ।। यह सारा जगत ही सुखमय ऐसा अनुभव कर रहा था । यह अनुभव की बात है , जब हम अभ्यास करते हैं तो हम भी अनुभव करते हैं । जो सुनी हुई बातें हैं उस पर अमल करते हैं फिर ध्यान का विज्ञान हो जाता है । उसको प्रैक्टिकली करते हैं तो प्रेक्टिकल अनुभव , व्यक्तिगत अनुभव भी हमे होता है । श्रील प्रभुपाद कहा करते थे कि जो भोजन कर रहा है , बढ़िया से भोजन कर रहा है , उसको अलग से पूछने की आवश्यकता नहीं है कि , "तुम सुखी होंगे तुम भोजन कर रहे हो ?" पूछने की आवश्यकता नही होती । तूम आनंद ले रहे हो , तुम बड़े प्रसन्न और सुखी होंगे भोजन कर रहे हो , किसी को बताने की आवश्यकता नहीं होती भोजन करने वाले को कि हम हमारे भोजन का आनंद ले रहे हैं । वैसे ही जिन्होंने भी कल के पर्व को मनाया , पांडव निर्जला एकादशी महोत्सव को मनाया , मुझे विश्वास है , पूरे विश्वास के साथ कह सकते हैं की आपका अनुभव सुखद ही हुआ होगा । वैसे तपस्या तो होती ही है , एकादशी मतलब तपस्या का दिन होता है और कल के एकादशी में तपस्या का क्या कहना ? (हँसते हुए) जल भी नहीं पीना , केवल हवा खाना और केवल हवा ही नहीं वैसे आप अमृत पी रहे थे । आपने तपस्या की , मैं सोच रहा था वैसे जो तपस्या करते रहते हैं तब समय बितता नहीं । शायद आपमे से कई साधक घंटे गिन रहे थे । यह शाम का बित जाएंगी ? यह रात कब भी जाएंगी? दूसरे दिन के 6:00 कब बजेंगे? ताकि ठीक 6:00 बजे मैं खा लूंगा पी लूंगा । ऐसे हम कुछ दिन पहले कह रहे थे । हरि हरि। राजपुत्र सिरंजीव, मुनिपुत्र मा जीव । मुनि पुत्र तपस्या करते रहते हैं तो ऐसा जीवन कब बितेगा? कब समाप्त होगा ? तपस्या जब करते है तो उसका फल आनंद ही है , सुख ही है । तस्मात् कहा । ऋषभदेव ने कहा पुत्रों तपस्या करो , तपस्या करो । ऋषभ उवाच नायं देहो देहभाजां नृलोके कष्टान्कामानहते विड्भुजां ये । तपो दिव्यं पुत्रका येन सत्त्वं शुद्धयेद्यस्माद्ब्रह्मसौख्यं त्वनन्तम् ॥ (श्रीमद भागवत 5.5.1) अनुवाद:- भगवान् ऋषभदेव ने अपने पुत्रों से कहा - हे पुत्रों , इस संसार के समस्त देहधारियों में जिसे मनुष्य देह प्राप्त हुई है उसे इन्द्रियतृप्ति के लिए ही दिन- -रात कठिन श्रम नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा तो मल खाने वाले कूकर - सूकर भी कर लेते हैं । मनुष्य को चाहिए कि भक्ति का दिव्य पद प्राप्त करने के लिए वह अपने को तपस्या में लगाये । ऐसा करने से उसका हृदय शुद्ध हो जाता है और जब वह इस पद को प्राप्त कर लेता है , तो उसे शाश्वत जीवन का आनन्द मिलता है , जो भौतिक आनंद से परे है और अनवरत चलने वाला है । तपस्या करो ताकि शुद्धिकरण होगा और फिर क्या होगा ? ब्रह्मसौख्यं त्वनन्तम् , तुम परम ब्रह्म सुख या अनुभव करोगे । हरि हरि । भगवत गीता में भी आठवें अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है । जितात्मनः प्रशान्तस्य परमात्मा समाहितः | शीतोष्णसुखदु:खेषु तथा मानापमानयो: || (भगवद्गीता 6.7) अनुवाद:- जिसने मन को जीत लिया है, उसने पहले ही परमात्मा को प्राप्त कर लिया है, क्योंकि उसने शान्ति प्राप्त कर ली है | ऐसे पुरुष के लिए सुख-दुख, सर्दी-गर्मी एवं मान-अपमान एक से हैं | पूरा नहीं समझाएंगे । जितात्मनः , इंद्रियों पर निग्रह जो करेंगे और इंद्रियों पर निग्रह करने का एकादशी का दिन होता है । कल तो पूरा ही निग्रह रहा । वाचो वेगं मनसः क्रोधवेगं जिह्वावेगमुदरोपस्थवेगम्। एतान्वेगान्यो विषहेत धीरः सर्वामपीमां पृथिवीं स* शिष्यात् ॥ (उपदेशामृत १) अनुवाद - वह धीर व्यक्ति जो वाणी के वेग को, मन की मांगों को, क्रोध की क्रियाओं को तथा जीभ, उदर एवं जननेंद्रियो के वेगो को सहन कर सकता है, वह सारे संसार में शिष्य बनाने के लिए योग्य है। हमारी इंद्रियां हमको ढकेलती रहती हैं । कल जीव्हा वेगम नहीं हुआ (हंसते हुए) खिलाने पिलाने की , खाने पीने की याद दिलाती रहती हैं । ऐसे हमको ढकेलती रहती है फिर खाना या पीना पड़ता ही है अन्यच्छन्ति । लेकिन कल आप सभी ने अभ्यास किया जो जीवा की मांग है उसके और आपने बिल्कुल ध्यान नहीं दिया । तो आप कैसे हो गए जीतात्मनः , अपने इंद्रियों को जीता और प्रशांत से , इसी से व्यक्ति शांति को प्राप्त करते हैं । ओम शांतिः , जितात्मानः होने से इंद्रिय निग्रह फिर , बुद्धि निग्रह , शम: दम: तप: तपस्या करने से , शम से , दम से फिर प्रशांतस्य परमात्मा समाहित , ऐसे व्यक्ति के लिए परमात्मा दूर नहीं है । कल और आज प्रातः काल हम भगवान के अधिक निकट पहुंचे हैं । हरि हरि । कृष्ण ने हम सभी को अपने ओर और अधिक आकृष्ट किया है । कल की एकादशी की साधना जो आपने संपन्न की , उसकी तपस्या भी की । 64 मालाये तो कइयों ने किए है लेकिन कुछ भक्त तो जब करते ही रहे । प्रल्हाद महाराज हिमाचल प्रदेश से , उन्होंने 112 माला का जप किया । सोलापुर के परमहंस , उन्होंने 128 माला की । और कई बता रहे हैं रात भर जगते रहे , कीर्तन किया , जप किया , अध्ययन किया । खाया नहीं , सोये नही और मीटिंग का तो कोई प्रश्न ही नहीं है (हंसते हुए) कृष्ण से आप मिल रहे थे । कृष्ण के साथ थे । उपवास का मतलब वही होता है ना ?उपवास मतलब , भगवान के पास । कल हम कृष्ण के अधिक पास पहुंचे । कृष्ण! कृष्ण यह जो नाम है , एक तो कृष है और फिर ण है । कृष्ण क्या करते हैं ? कृष मतलब हमको आकृष्ट करते हैं , पास में लाते हैं और फिर ण उस व्यक्ति को आनंद देते हैं । ऐसा बढ़िया नाम भी है और उनका बढ़िया काम भी है । य: आकर्षिती कृष्ण: यह तो परिभाषा है ही , कृष्ण नाम की , भगवान की । हे कृष्ण या जो सभी को आकृष्ट करें वह कृष्ण। कृष्ण हमको आकृष्ट करते हैं और आनंद देते हैं । ऐसे आनंद का आनंद आप सभी ने लूटा है । लूट सके तो लूट राम नाम के हीरे मोती बिखराऊ में गली गली । यह उसका भी आनंद है और आनंदित होते हैं । हम भी कीर्तन करते हैं , हम भी जप करते हैं और फिर यह कृष्ण को हम औरों को देते हैं । यह बढ़िया कृष्ण है , ऐसे कृष्ण है , वैसे कृष्ण है , अपने अनुभव की बात हम औरोके बताते हैं और फिर उनके साथ हम हरे कृष्ण महामंत्र बाटतें हैं मतलब हम क्या करते हैं ? कृष्ण से तोमार कृष्ण दिते पार, तोमार शकति आछे। आमि त’ कांगाल, ‘कृष्ण’ ‘कृष्ण’ बलि’, धाइ तव पाछे पाछे॥ (ओह वैष्णव ठाकुर दोहरा सागर , भक्तिविनोद ठाकुर) अनुवाद:- कृष्ण आपके हृदय के धन हैं, अतः आप कृष्णभक्ति प्रदान करने में समर्थ हैं। मैं तो कंगाल, (दीन-हीन) पतितात्मा हूँ। मैं कृष्ण-कृष्ण कह कर रोते हुये आपके पीछे-पीछे दौड़ रहा हूँ। यह हो सकता है कि कुछ लोग हमसे मिलते हैं और कहते हैं , आपके पास कृष्ण है । आप इतना आनंदित क्यों होते हो? हरे कृष्ण के लोगो के चेहरे पर हास्य होता है और यह दुनिया वालों के चेहरे तो दुखी होते हैं । हरे कृष्ण वालों के चेहरे हंसमुख होते हैं । जप करते हैं और आनंदित रहते हैं । वह आनंद चेहरे पर झलकता है तब वह आनंद देखकर कुछ लोग पूछते हैं कि उस कृष्ण को मुझे भी दीजिए । कृष्ण से तोमार कृष्ण दिते पार, तोमार शकति आछे। आमि त’ कांगाल, ‘कृष्ण’ ‘कृष्ण’ बलि’, धाइ तव पाछे पाछे॥ उस कृष्ण को मुझे देने की क्षमता आप रखते हो , मुझे भी कृष्णा दो , फिर वैष्णव का यह धर्म ही है , मैं फर्ज कहने जा रहा था , फर्ज ऐसा ही शब्द है । कर्तव्य कहो , सर्वोत्तम शब्द तो धर्म ही है । यही हमारा धर्म है , जीव का धर्म है कि हम औरों को भी कृष्ण को दें । कृष्ण नाम के रूप में कृष्ण को दें या भगवत गीता , भागवतम के रूप में औरों को कृष्ण दे या कृष्ण प्रसाद के रूप में कृष्ण को दें या किसी उत्सव में आमंत्रित करें और जगन्नाथ का दर्शन दे । जगन्नाथ रथयात्रा महोत्सव की जय । उत्सव प्रिय मानव: मनुष्य को उत्सव प्रिय होते हैं । किसी उत्सव में बुला लिया इस प्रकार हम औरों को कृष्ण का परिचय देते हैं ताकि वह भी सुखी हो जाए । कोई दूसरा मार्ग नहीं है , यहां सुखी बनने का एक ही मार्ग है जिव का कृष्ण के साथ संबंध स्थापित होते ही जीव सुखी होता है । कृष्ण आनंद की मूर्ति है , आनंद की खान है । शांताकारम भुजगशयनम पद्मनाभम सुरेशम । (विष्णु सहस्रनाम) शांत , शांत आकार के भगवान है , भगवान आनंद की मूर्ति है । ऐसे भगवान के साथ संबंध स्थापित होते ही क्या होता है? वह आनंद जीव को भी प्राप्त होता है और फिर आनंद के सागर में गोते लगाता है और वह शांति भी प्राप्त करता है। शांति का जो स्रोत है वह भगवान ही है । उनके साथ योग होने से , योग मतलब लिंक , और वह भी भक्ति योग की लिंक , दूसरे लिंक में थोड़ा शॉर्ट सर्किट होता है । कर्मयोग , ध्यानयोग , अष्टांगयोग लेकिन कृष्ण ने कहा है , योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना | श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः || (भगवद्गीता 6.47) अनुवाद:- योगी पुरुष तपस्वी से, ज्ञानी से तथा सकामकर्मी से बढ़कर होता है | अतः हे अर्जुन! तुम सभी प्रकार से योगी बनो सभी योगियों में भक्ति योगी श्रेष्ठ है । भक्ति योग में 100% जीव और भगवान के बीच में आदान-प्रदान प्रारंभ होता है । हरि हरि । एकादशी के दिन और कल के विशेष एकादशी के दिन एक सुअवसर हमको प्राप्त हुआ और उस अवसर ने हम सभी को और सुखी और शांत बना दिया । परमात्मा समाहित: बता दिया । भगवान के अधिक निकट पहुंच जाते हैं । उसने परमात्मा को प्राप्त कर लिया है ऐसा अनुवाद में प्रभुपाद ने लिखा है । परमात्मा समाहित , भगवान को वह प्राप्त करता है या अधिक अधिक प्राप्त करता है । परमात्मा भगवान प्राप्त है तो जीवन सफल है । भगवान को जान लिया है तो फिर आपने सब कुछ जान लिया , वही बात है । गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल । आप में से कई भक्त अपने अनुभव लिख ही रहे थे , एकादशी महोत्सव का अनुभव लिख रहे थे । हमारी चिरडोंन कि महालक्ष्मी माताजी की सास 96 वर्ष की थी , वह भी जप वैगेरे किया करती थी उन्होंने अपने शरीर को इस पवित्र पर्व के दिन त्यागा है । आप सब प्रार्थना कीजिए , पद्मावली ने नोंद ली होगी शायद नही ली होंगी , हम आपको याद दिलाते है । हरे कृष्ण महामंत्र एक बार सब कहिए और उनकी आत्मा को भगवान शांति दें , अपने चरणों का आश्रय दे ऐसी प्रार्थना करते हुए हम , हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्णा कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। मैं भी उनको भली-भांति जानता था , वैसे वह हमारे रक्त संबंध में आते हैं , मैं उनको बचपन से जानता था । वह अभी हमारे बीच नहीं है । एकादशी के दिन भगवान की ओर लौटने का मन बना लिया और वैसा ही हुआ । उनकी भी जय हो । ठीक है । आपके कल के कोई अनुभव है , एकादशी महोत्सव जो आपने संपन्न किया , इतना सारा जप किया , तप किया तो आपकी एकादशी कैसी रही ? कोई कहना चाहते हैं या लिखना चाहते हैं , आप बता सकते हो हम आप को समय देते हैं । हरे कृष्ण ।

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