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जप चर्चा- 23-06-2021 पंढरपुर धाम से हरे कृष्ण ! आज 884 स्थानों की जय ! कुछ दिन पहले ही हमने निर्जला महोत्सव मनाया और आज दही चिवड़ा महोत्सव की जय ! करि बारे जिब्हा जाए अर्थात जिब्हा पर विजय प्राप्त करना है। जितेंद्रिय बनना है, जीत इंद्रिय बनना है। एक दिन जल का पान भी नहीं किया और जिह्वा पर विजय प्राप्त किया और आज दही चिवड़ा या दुग्ध चिवड़ा भी हो सकता है, खूब ग्रहण करेंगे। अभी तो कथा होगी और दिन में आप इसे प्रैक्टिकली भी मना सकते हो आज यह इस्कॉन के सभी मंदिरों में मनाया जाता है। आप सभी अपने अपने घरों में भी यह उत्सव मनाओ। आपको यह बताया जाएगा कि यह "दही चिवड़ा महोत्सव"क्या होता है, जो आज के दिन ही 500 वर्ष पूर्व संपन्न हुआ पानी हाटी नामक ग्राम में, जो बंगाल में है कोलकाता से लगभग दस मील की दूरी पर जहां नित्यानंद प्रभु आज के दिन उपस्थित थे। वैसे इस दही चिवड़ा महोत्सव का वर्णन कृष्ण दास कविराज गोस्वामी ने चैतन्य चरितामृत अंतिम लीला षष्ठ परिच्छेद, अध्याय को परिच्छेद भी बांग्ला भाषा में कहते हैं और उसमें लगभग चालीस एक श्लोक वहां से दही चिवड़ा महोत्सव का वर्णन शुरू होता है। आप नोट करो, आप पढ़ सकते हो, आपको भी यह कथा सुनानी होगी आप प्रचारक हो आप यारे देखो तारे कहो कृष्ण उपदेश करने वाले भक्त हो तो ध्यान से सुनो या प्रेम पूर्वक सुनो श्रद्धावान लभते ज्ञानम् श्रद्धा से सुनो तो ज्ञान प्राप्त होगा ज्ञानार्जन होगा और फिर हरि हरि इसको विज्ञान भी बनाना है, इसको प्रैक्टिकल रूप भी देना है। इस विज्ञान को, उत्सव को, जो दिन में दे सकते हो या उसका अनुभव करना है वह भी ज्ञान ही है। इस ज्ञान को स्टोर करके नहीं रखना है। नॉट जस्ट अक्यूमुलेशन बट अस्स्मिलेशन आप हो? अक्यूमुलेशन नहीं अस्स्मिलेशन , यही हुआ ज्ञान का विज्ञान या केवल इंफॉर्मेशन के रूप में नहीं रखना है ट्रांसफॉर्मेशन चाहिए हरि हरि ! केवल जानकारी के रूप में उसको संग्रहित नहीं करना है। हम परिवर्तन देखना चाहेंगे, क्रांति हो, जो भी ज्ञान, जो भी सुनी हुई बातें हैं उससे हमारे जीवन में क्रांति हो या रिवॉल्यूशन इन कॉन्शसनेस भाव में, विचारों में क्रांति हो ,एनी वे यह बताते बताते समय बीतता जा रहा है भूमिका बनाते बनाते। चैतन्य महाप्रभु ने ही नित्यानंद प्रभु भेजा था कि जाओ बंगाल में प्रचार करो। तब नित्यानंद प्रभु ने कुछ विशेष, जिनको द्वादश गोपाल भी कहते हैं उन भक्तों को साथ में लिया और बंगाल गए और सीधे पानी हाटी गए। वह पहला गंतव्य स्थान रहा और वहां रहने के उपरांत कई सारी लीलाएं संपन्न हुई। बहुत समय तक नित्यानंद प्रभु वहां रहे, आज के दिन एक विशेष घटना घटी वहां दही चिवड़ा महोत्सव संपन्न हुआ पानी हाटी में, जो गंगा के तट पर ही है। गंगा के तट पर ही पानी हाटी में नित्यानंद प्रभु , आज के दिन एक वृक्ष के नीचे अपने अंतरंग भक्तों के साथ बैठे थे और उस मंडली में रघुनाथ दास गोस्वामी, अभी तक वह गोस्वामी नहीं बने थे या गोस्वामी के रूप में उनकी ख्याति नहीं थी। वह एक जमीदार के सप्तग्राम के पुत्र थे और वे भी वहां पानी हाटी में पहुंचकर नित्यानंद प्रभु के सत्संग में बैठे थे। तभी कुछ भक्तों ने नित्यानंद प्रभु को कहा प्रभु ! प्रभु ! रघुनाथ आया है और फिर नित्यानंद प्रभु ने इशारा किया रघुनाथ आगे आओ, आगे आओ रघुनाथ ! किन्तु वह आगे नहीं आ रहे थे हरि हरि ! तब नित्यानंद प्रभु ने कहा, चोर कहीं का, पीछे छुप कर बैठे हो, मैं तुमको दंड देता हूं। तभी नित्यानंद प्रभु उठे और जहां रघुनाथ दास थे वहां पहुंच कर उन्होंने अपने चरण कमलों को रघुनाथ के सिर पर धारण किया। यह भी एक दंड हुआ या वरदान हुआ आप सोचो और नित्यानंद प्रभु ने कहा दंड के रूप में आप को क्या करना होगा , हमारे सारे भक्तों को दही चिवड़ा खिलाओ। अब तो थोड़ा वर्षा के दिन हैं लेकिन अधिकतर उस वर्ष गर्मी के दिन थे। आज के दिन 500 वर्ष पूर्व, गर्मी के दिनों में ठंडक उत्पन्न हो, दही ठंडा होता है इसलिए दही चिवड़ा खिलाओ, हम गर्मी से परेशान हैं। रघुनाथ, अभी तो रघुनाथ दास गोस्वामी ही कहेंगे, वह बड़े हर्षित हुए, तैयार हुए और उन्होंने सारी व्यवस्था भी कर ली। उन्होंने खूब सारा दही और चिवड़ा, दूध, घी खरीद लिया, इकट्ठा किया। पानी हाटी में जितना भी दूध था जितना दही था जितना चिवड़ा था। चिवड़ा , समझते हैं मराठी में इसे पोहा भी कहते हैं, सुदामा की कथा भी सुनाई थी चिवड़ा अर्थात इसे चिप राईस कहते हैं। राईस के तीन प्रकार हैं एक राइस या तंदूल भी कहते हैं। राइस को कभी-कभी पफ्फड़ राईस भी कहते हैं उसको फुलाते हैं तो पफ्फड़ राईस बनता है और कभी-कभी उसको फ्लैट बनाते हैं तब उसको फ्लैट राइस कहते हैं। यह फ्लैट राइस था और नित्यानंद प्रभु और कई भक्त भी जुड़ गए और वे परोस रहे थे। प्रसाद वितरण हो रहा था। धीरे-धीरे जब ये समाचार, और गंध पहुंचा गांव में, तब, सारे पानी हाटी के लोग दौड़ पड़े और उनको भी यह चिवड़ा खिलाया जा रहा था। जहां नित्यानंद प्रभु बैठे थे नित्यानंद प्रभु की जय ! नित्यानंद प्रभु की लीला का श्रवण करने का उद्देश, दर्शन करना भी होता है। अतः आप सभी नित्यानंद प्रभु का दर्शन कीजिए। अब नित्यानंद प्रभु दही चिवड़ा ग्रहण कर रहे हैं उनके सभी संगी साथी खूब दही चिवड़ा जी भर के खा रहे हैं, ग्रहण कर रहे हैं। वह जो स्थान था, वृक्ष के नीचे, वह भी भर गया और फिर अन्य जो लोग आ रहे हैं वह गंगा के तट पर जाकर खड़े-खड़े ही दही चिवड़ा ग्रहण कर रहे हैं। वैसे उनके पास दो कुल्लड़ हैं एक में दही चिवड़ा है और एक में दुग्ध चिवड़ा है। सारा गंगा का तट भी लोगों से भर गया। फूड फॉर लाइफ चल रहा है। भंडारा हो रहा है लोगों की भीड़ उमड़ आई है। जब गंगा का तट प्रसाद ग्रहण करने वालों से खचाखच भर चुका है, अब लोग गंगा में प्रवेश कर रहे हैं और गंगा के जल में घुटने तक पानी है या कमर तक पानी है वहां खड़े होकर दही चिवड़ा का आनंद लूट रहे हैं। ये समाचार अब धीरे-धीरे अन्य गांवों तक पहुंच गया, अन्य गांव के लोग पहुंच गए। वैसे कृष्ण दास कविराज गोस्वामी जैसे यह घटना घटी वैसा ही वर्णन कर रहे हैं। उसमें केला भी मिला रहे थे और कुछ मिश्री और शक्कर भी मिलाई जा रही थी। कुछ स्पेशल दही चिवड़ा चाहिए उसमे कपूर भी मिलाया जा रहा था। स्पेशल प्रिपरेशन, यह सादा दही चिवड़ा नहीं था वेरी स्पेशल था। अब और दही और चिवड़े की आवश्यकता थी। गांव के दुकानदार अपना अपना दुकान खोल रहे थे और रघुनाथ दास गोस्वामी जमीदार के पुत्र जो बड़े अमीर थे और अपने धन का उपयोग (अन्न दान महादान भी कहते हैं) अन्नदान फूड फॉर लाइफ प्रसाद वितरण के लिए सारा इवेंट स्पॉन्सर किया। अन्नामृत कार्यक्रम के स्पॉन्सर रघुनाथ दास अकेले है। ही वाज स्पॉन्सरिंग द प्रोग्राम , हजारों लाखों लोग जो नए-नए दुकानदार आ रहे थे अपनी सामग्री बेच रहे थे दही दूध चिवड़ा केले इत्यादि बिका पदार्थ या व्यंजन बेच रहे थे और जब उनका सारा माल बिका , उन्हीं दुकानदारों ने कुछ धनराशि तो ले ही ली थी। यह क्रय विक्रय हो रहा था। फोकट का माल नहीं था, मुफ्त में नहीं दे रहे थे। वह चिवड़ा और दही बेच रहे थे, उन्होंने जब दुकान का सारा दही चिवड़ा बेच दिया और वह समाप्त हुआ इतने में उनको भूख लग गई और उन दुकानदारों को फ्री में दिया। आपने तो ये चिवड़ानहीं छोड़ा, हमें बेच दिया किंतु हमारा यह प्रसाद कृष्ण का प्रसाद है, वह सभी के लिए फ्री (मुफ्त) है। उन लोगों को भी रघुनाथ दास वह प्रसाद खिला रहे थे और जब यह नित्यानंद प्रभु दही चिवड़े का आनंद लूट रहे थे तभी बीच में राघव पंडित आ गए। यह राघव पंडित भी एक विशेष व्यक्तित्व हैं एक स्पेशल पर्सनैलिटी हैं जो इसी पानी हाटी के थे और दमयंती नामक उनकी बहन भी थी। यह दोनों ही वैसे श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के लिए कई सारे भोग प्रतिवर्ष बनाया करते थे और यह सारे भोग, सूखा भोजन मिष्ठान, जो बहुत समय के लिए टिकने वाले पदार्थ, बनाकर यह अपनी झोली भर के जगन्नाथ पुरी ले जाते थे। चैतन्य चरितामृत में राघवेंद्र झोली ऐसी बात है राघवेंद्र झोली मतलब राघव गोस्वामी की झोली, यह भर के ले जाते थे और श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु सालभर राघव पंडित का वह थोड़ा-थोड़ा प्रसाद ग्रहण करते थे। यह राघव पंडित जी इसी पानी हाटी के थे वे अब नित्यानंद प्रभु के पास आए और उन्होंने कहा, आपके लिए हमने विशेष भोजन बनाकर तैयार रखा है और आप केवल दही चिवड़ा ही खा रहे हैं। नित्यानंद प्रभु ने कहा कि हां हां ठीक है तुमने बनाया है पर अभी तो मैं भोजन कर ही रहा हूं तुम्हारे घर में लंच प्रसाद या डिनर प्रसाद में आ जाऊंगा। तब नित्यानंद प्रभु कहे कि यह मेरी आदत ही है मेरा ऐसा स्वभाव ही है मेरे परिकरों के साथ ,मित्रों के साथ ग्वाल वालों के साथ यमुना के तट पर वन भोजन करने का मेरा अभ्यास नित्य लीला है, उसी नित्य लीला में मैं आनंद लूट रहा हूं। अतः मुझे इनके साथ भोजन करने दो और इतना कहकर नित्यानंद प्रभु ने राघव पंडित से कहा तुम बैठ जाओ और उनको भी दही और चिवड़ा खूब खिलाया। एक विशेष घटना घटती है नित्यानंद प्रभु चाहते थे कितना बढ़िया होता स्वयं श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु इस उत्सव में होते और वह भी दही चिवड़ा का आनंद लूटते। ऐसे याद कर रहे थे चैतन्य महाप्रभु को ध्यान अवस्था में आवाहन कर रहे थे। प्लीज कम !प्लीज कम !आमंत्रित कर रहे थे और इसका परिणाम यह हुआ कि चैतन्य महाप्रभु वहां पहुँच गए और यह दोनों प्रभु, गौरांग और नित्यानंद अब टीम कंपलीट हुई। यही तो वृंदावन के ,कृष्ण बलराम हैं, नवदीप के गौर नित्यानंद, अब भोजन हो ही रहा था नित्यानंद प्रभु, बलराम होयले निताई, नित्यानंद प्रभु अपने मित्रों के साथ भोजन कर ही रहे थे। अब बस कमी थी कृष्ण की, फिर कृष्ण को भी बुलाये ,चैतन्य महाप्रभु भी वहां पधार गए। अब दोनों प्रभु या एक प्रभु और एक महाप्रभु चैतन्य महाप्रभु और नित्यानंद प्रभु वह दृश्य देख रहे थे। यह वैसी ही लीला संपन्न हो रही थी जैसे वृन्दावन में असंख्य ग्वाल बालों के साथ कृष्ण बलराम भोजन किया करते थे या सभी के मध्य में वह भोजन करते थे। यह दोनों प्रभु ऐसे ही दृश्य देख रहे हैं और बड़े हर्षित हैं, फिर क्या होता है यह दोनों अब भीड़ के मध्य में घूम रहे हैं और नित्यानंद प्रभु क्या करते हैं ? ऐसा होता ही था, जब ग्वाल बाल भोजन करने बैठते हैं और अपने घर का या अपनी मैया का बनाया विशेष भोजन कृष्ण बलराम को वह खिलाया करते थे वही अब यहां पानी हाटी में आज के दिन हो रहा था। दोनों प्रभु जा रहे हैं, घूम फिर रहे हैं, देख रहे हैं। नित्यानंद प्रभु हर प्रसाद ग्रहण कर्ता के (थाली नहीं थी कुल्लड़ से) मिट्टी के पात्र से कुछ लेते और चैतन्य महाप्रभु के मुख में डाल देते और चैतन्य महाप्रभु उसको ग्रहण करते और नित्यानंद प्रभु फिर नेक्स्ट पर्सन उनके पात्र से वे दही चिवड़ा या दुग्ध चिवड़ा उठाते और चैतन्य महाप्रभु को खिलाते। वहां के सभी लोग जो प्रसाद ग्रहण कर रहे थे या करने वाले थे, वह नित्यानंद प्रभु को देख रहे हैं। यह भी समझना होगा चैतन्य महाप्रभु उपस्थित हैं किंतु सभी नहीं देख पा रहे हैं ऐसा कृष्ण दास कविराज गोस्वामी ने लिखा है अद्यापिह सेई लीला करे गौर राय ।कोन कोन भाग्यवान देखिबारे पाय ।। (चैतन्य चरितामृत मध्य 10.283 ) कोई कोई भाग्यवान चैतन्य महाप्रभु की उपस्थिति को देख रहे हैं लेकिन अधिकतर नहीं देख रहे हैं। उनको समझ में नहीं आ रहा कि नित्यानंद प्रभु क्यों झुकते हैं प्रसाद का कुछ कण उठाते हैं और लगता है वह किसी के मुख में डाल रहे हैं और देखने वाले यह भी देखते हैं कि नित्यानंद प्रभु के हाथ से वह प्रसाद जो उन्होंने मुख् में डाल दिया लेकिन वह गिर नहीं रहा, कहीं वह अदृश्य हो रहा है। सभी को अचरज हो रहा है, यह तो चमत्कार ही हो रहा है जिसको सभी देख रहे हैं हरि हरि! इस प्रकार ऐसी लीला आज के दिन पानी हाटी में दही चिवड़ा महोत्सव के रूप में संपन्न हुई। पानी हाटी, हट मतलब बाजार, मतलब मार्केटप्लेस , यह पानी हाटी - मार्केट प्लेस ऑफ द राइस है। यहां का राइस अर्थात बंगाल का राइस, इंडिया को अधिकतर राइस की सप्लाई बंगाल से ही होटी है उसमें से भी पानी हाटी में राइस के बड़े व्यापार चलते हैं। उसी पानी हाटी में यह दही चिवड़ा महोत्सव भी संपन्न हुआ और जिस पानी हाटी के यह राघव पंडित और दमयंती जो चैतन्य महाप्रभु के लिए कई राइस के पदार्थ, कई प्रकार के मिष्ठान भी, राइस से सब बनता है वो बनाया करते थे, पकाया करते थे और भेजा करते थे या स्वयं चैतन्य महाप्रभु की प्रसन्नता के लिए ले जाते थे। उस पानी हाटी के लिए मशहूर कहा, तो यह कहना होगा ,वर्ल्ड फेमस जगह या उत्सव बन चुका है। आपको यह बता दें कि परम पूज्य भक्ति चारू स्वामी महाराज के प्रयास से पानी हाटी में अब इस्कॉन की स्थापना हो चुकी है। पानी हाटी एक नगर है एक बड़ा ग्राम है वहां इस्कॉन की स्थापना हुई है। इस्कॉन का प्रोजेक्ट धीरे-धीरे आकार ले रहा है। परम पूज्य भक्ति चारू स्वामी महाराज की जय ! उन्होंने यह प्रारंभ किया और यह पानी हाटी बंगाल में हुआ। अब अमेरिका में एक न्यू पानी हाटी बन चुका है। न्यू पानी हाटी जैसे, न्यू वृंदावन है, न्यू जगन्नाथपुरी है, विदेश में अमेरिका में न्यू मायापुर भी है, इसी प्रकार न्यू पानी हाटी, जो अमेरिका का अटलांटा शहर है नाम सुना होगा, अटलांटा का नाम इस्कॉन ने रखा है न्यू पानी हाटी। यहां के गौर निताई के विग्रह बड़े प्रसिद्ध हैं। प्रभुपाद जब अटलांटा गए थे, श्रील प्रभुपाद वहां गौर निताई का दर्शन करके भावविभोर हुए थे। वहां अटलांटा के तो गौर निताई की गौरव गाथा कहना प्रारंभ की थी किंतु श्रील प्रभुपाद का गला गदगद हो उठा। अटलांटा, अब उसका नाम न्यू पानी हाटी है। ऑल इस्कॉन टेंपल ,इस्कॉन पंढरपुर में भी आज बहुत बड़ा उत्सव मनाया जा रहा है। यह इस्कॉन पंढरपुर में भी और विशेष उत्सव न्यू पानी हाटी अटलांटा में भी मनाया जाएगा। यह दही चिवड़ा महोत्सव वैसे हिज होलीनेस जय पताका स्वामी महाराज ने अटलांटा में प्रारंभ किया और कुछ वर्षों पहले 20-25, 30 वर्षों के पहले ही यह प्रारंभ हुआ और बड़े धूमधाम से मनाते हैं। एक बार मैं भी अटलांटा में था आज के दिन तो मैंने वहां की शोभा देखी है और वहां का दही चिवड़ा भी मैंने चख लिया है, मुझे याद है। आप सभी अपने-अपने मंदिरों में अपने अपने घरों में, आपके घर मंदिर हैं। आपके अपने घरों में ऑल टर्स होंगे ही, नहीं तो आपका घर कैसा मंदिर और आप कैसे गौड़ीय वैष्णव ? गौर निताई को या गौर निताई के चित्र तो होंगे ही आपके ऑल्टर में, आप दही चिवड़ा का भोग लगाओ। आज के दिन गौर निताई दही चिवड़ा का भोग करना पसंद करते हैं। मैया मोहे माखन भावे, जैसे कन्हैया को माखन पसंद होता है उनको हर दिन माखन पसंद होता है लेकिन एक तारीख आज के दिन यह दही चिवड़ा पसंद होता है या दूध चिवड़ा पसंद होता है। जाओ आप शॉपिंग करो या स्पॉन्सर करो दही चिवड़ा महोत्सव स्पॉन्सर करो ,अपने अपने घरों में, खरीद लो दही चिवड़ा केले भी खरीदना और देखो, कैसे उसका और भी स्वाद बढ़ा सकते हो फिर भोग लगाओ। इस लीला का स्मरण करो या पुनः इस लीला को आप कह सकते हो। आपके घर में चैतन्य चरितामृत भी होना चाहिए फुल सेट नहीं है तो उसको भी शॉपिंग करो और अंतिम लीला छठे अध्याय में जैसा हमने कहा उसको पुनः पढ़ सकते हो या पढ़ा सकते हो। आप औरों को भी कथा सुनाओ, जो नहीं सुन रहे हैं अभागीजन, उनको भी भाग्यवान बनाओ। औरों को यह कथा सुनाओ , परिवार वालों को सुनाओ या अपने फोन पर ऑनलाइन टीचिंग करते हो उसमें से ऑनलाइन प्रीचिंग करो या फोन पर बताओ। भक्ति वृक्ष के आपके जो मित्र हैं या सदस्य हैं या आप इस्कॉन के सर्वेंट लीडर हो तो अपने सदस्यों को यह लीला सुनाओ। गौर किशोर तुम भी सुनाओ , सभी सुना सकते हैं। ठीक है हरे कृष्ण! यह कथा सुनो और दही चिवड़ा भी खाओ एंड बी हैप्पी , सेइ अन्नामृत पाओ, ऐसा कहते है और फिर क्या? सो जाओ। ऐसा नहीं करना, सेइ अन्नामृत पाओ और फिर राधा-कृष्ण या गौर निताई गुण गाओ। प्रेमे डाको चैतन्य नेताई, प्रेम से कहो गौरंगा ! नित्यानंद! गौरंगा ! नित्यानंद ! गौरंगा ! नित्यानंद ! आप थक गए हो, नहीं , ठीक है अब मैं अपनी वाणी को यहीं पर विराम देता हूं। और आप अपनी वाणी का उपयोग करो। अभी जप करो और यह लीला कथा औरों को सुनाओ और दही चिवड़ा भी ग्रहण करो , यथासंभव वितरण करो , लॉकडाउन की स्थिति है हम जानते हैं। यदि यथासंभव पॉसिबल है इष्ट मित्रों को इकट्ठा करो, नेबर्स एंड फ्रेंड्स एंड बिजनिस सर्कल, आपका लंच ब्रेक में , यदि आप कोई ऑफिसर वगैरह हो तो आप के दफ्तर में, आपकी वर्किंग प्लेस में तो आप दही चिवड़ा बांटो और सभी जीवो को अधिक से अधिक जीवों को जोड़ो इस लीला के साथ। इस लीला का स्मरण दिलाओ दही चिवड़ा खिलाओ। गौर प्रेमानंदे ! हरि हरि बोल!

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