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19th December 2019 हरे कृष्ण! अभी यह कॉन्फ्रेंस पुनः प्रारंभ होगी जिससे जप चर्चा का हिंदी से अंग्रेजी में अनुवाद करने वाले भक्त इसका अनुवाद कर सकेंगे। अभी इस कॉन्फ्रेंस में चैटिंग ऑप्शन निष्क्रिय किया हुआ है जिसे हम पुनः अब प्रारंभ करेंगे। जिन भक्तों को हिंदी से अंग्रेजी में अनुवाद की सेवा है केवल वही अभी चैट ऑप्शन का प्रयोग करें अन्य भक्त ध्यानपूर्वक श्रवण करें। नमो महा वदन्याय, कृष्ण प्रेम प्रदायते। कृष्णाय कृष्ण चैतन्य नाम्ने ग़ौरतविशे नमः। यहां रूप गोस्वामी यह प्रार्थना करते हैं जहां वे कहते हैं कि मैं उन भगवान श्रीकृष्ण को नमस्कार करता हूं जो अब श्री कृष्ण चैतन्य नाम धारण करके अवतरित हुए हैं। भगवान श्री कृष्ण , श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के रूप में प्रकट होते हैं यह दोनों अभिन्न है । कृष्ण व चैतन्य महाप्रभु एक ही है। केवल कृष्ण तथा श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ही अभिन्न नहीं है अपितु नवद्वीप वासी भी वृंदावन वासियों से अभिन्न है। वृंदावन में कृष्ण के सखा बृजवासी महाप्रभु की लीला में नवद्वीप वासियों के रूप में अवतरित होते हैं। साथ ही साथ भगवान श्री कृष्ण, चैतन्य महाप्रभु के रूप में अवतरित होते हैं। अतः ऐसा नहीं है कि कृष्ण अकेले अवतार लेते हैं अपितु उनके सभी पार्षद तथा सहयोगी भी नवदीप वासियों के रूप में अवतरित होते हैं। इस प्रकार वृंदावन के सभी गोप गोपियाँ महाप्रभु की प्रकट लीला के समय नवद्वीप वासियों के रूप में अवतरित हुए। जो भक्त वृंदावन की श्री कृष्ण लीला में भगवान की सहायता करते हैं वही भक्त नवद्वीप लीला में पुनः प्रकट होकर श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की सहायता करते हैं और उनके परिकर तथा पार्षद बनते हैं। यहां अभिनत्त्वात यह शब्द अत्यंत महत्वपूर्ण है जिसका अर्थ है कि बृजवासी तथा नवद्वीप वासी दोनों अभिन्न है। इस संबंध का ज्ञान हमें श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के पार्षद कवि कर्णपुर करवाते हैं। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की लीला में शिवानंद सेन नामक एक पार्षद अत्यंत विशेष थे उनकी एक विशेष सेवा थी जिसके विषय में हम कभी विस्तार से चर्चा करेंगे। इन्हीं शिवानंद सेन के पुत्र कवि कर्णपुर थे जिन्होंने एक अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखा और उस ग्रंथ का नाम है गौर गणोंदेश दीपिका। जब कर्णपुर एक छोटे बालक थे उस समय उन्हें श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु का सानिध्य मिला तथा उन्हें महाप्रभु का चरण आश्रय प्राप्त हुआ । जब वे एक छोटे बालक थे उस समय कर्णपुर चैतन्य महाप्रभु के चरणों को चाटते और उनके चरणामृत का आस्वादन करते। इस प्रकार कवि कर्णपुर पर श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने विशेष कृपा की। जिसके परिणाम स्वरूप उनमे दिव्य ज्ञान ह्रदय प्रकाशित हुआ और यही बालक कर्णपुर जब बड़े हुए तो उन्होंने गौर गणोंदेश दीपिका नामक ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ में उन्होंने चैतन्य महाप्रभु के गण अर्थात महाप्रभु के पार्षदों का विस्तृत वर्णन किया है तथा यह बताया है कि वे पार्षद वृंदावन लीला में कौन थे। श्री कृष्ण के दादा पर्जन्य महाराज थे उनके 5 पुत्र थे जिन्हें हम पांच नंद के नाम से जानते हैं यथा नंद, उपनंद, अभिनंद आदि। यही पर्जन्य महाराज चैतन्य महाप्रभु की लीला के समय पूर्वी बंगाल अर्थात वर्तमान बांग्लादेश में प्रकट हुए तथा वे नवद्वीप में आ गए। महाप्रभु के कई पार्षद पूर्वी बंगाल, पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा आदि स्थानों पर अवतरित हुए परंतु चैतन्य महाप्रभु के अवतार लेने के पश्चात अथवा उससे पहले वह सभी नवद्वीप आकर निवास करने लगे। यही पर्जन्य महाराज उपेंद्र मिश्र के रूप में पुनः गौर लीला में प्रकट हो गए। उपेंद्र मिश्र के 7 पुत्र थे उनमें से एक पुत्र का नाम था जगन्नाथ मिश्र। इन्हीं जगन्नाथ मिश्र के घर भगवान श्री कृष्ण, श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के रूप में अवतरित हुए। बलराम होइलो निताई अर्थात बलराम नित्यानंद प्रभु के रूप में प्रकट हुए। इसी प्रकार प्रद्युम्न संकर्षण अनिरुद्ध वासुदेव यह सभी भी गौर लीला में प्रकट होते हैं। राधा रानी के पिता राजा वृषभानु भी नवद्वीप में पुनः प्रकट होते हैं। कृष्ण लीला के कंस गौर लीला में चांद काजी के रूप में प्रकट होते हैं। व्यास देव , वृंदावन दास ठाकुर के रूप में अवतरित होते हैं। जिस प्रकार व्यास देव ने भगवतम नामक ग्रंथ की रचना की उसी प्रकार गौर लीला में वही व्यास देव वृंदावन दास ठाकुर के रूप में अवतरित होकर चैतन्य भागवत की रचना करते हैं। जय तथा विजय गौर लीला में जगाई मधाई के रूप में प्रकट होते हैं। श्री कृष्ण के ग्वाल बाल सखा यथा श्रीदाम,सुदाम, सुबल आदि द्वादश गोपाल गौरलीला में पुनः प्रकट होते हैं। सुबल सखा गौरी दास पंडित के रूप में प्रकट होते हैं। इसी प्रकार वृंदावन की गोपियां तथा मंजरिया भी गौर लीला में प्रकट होती है यथा रूपमंजरी रूप गोस्वामी के रूप में अवतरित होते हैं। यह गोपियां तथा मंजरिया वृंदावन में स्त्री के स्वरूप में होती है परंतु वह गौर लीला में पुरुष रूप में विशेष रूप से षड गोस्वामी के रूप में अवतरित होते हैं। निस्संदेह यशोदा मैया शची माता के रूप में अवतरित होती हैं। इस प्रकार गौर गणोंदेश दीपिका नामक ग्रंथ में कवि कर्णपुर विस्तारपूर्वक महाप्रभु के सभी पार्षदों का वर्णन करते हैं। वृंदावन के सभी भक्त नवदीप वासी बनते हैं और श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के इस संकीर्तन आंदोलन में सहयोग करते हैं। वृंदावन की सर्वश्रेष्ठ लीला जो रासलीला है वही रासलीला नवद्वीप में संकीर्तन लीला है। जिस प्रकार वृंदावन की गोपियां तथा मंजरिया श्रीकृष्ण को रासलीला में सहयोग करती है उसी प्रकार श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के पार्षद उन्हें संकीर्तन लीला में सहयोग करते हैं। श्रीवास ठाकुर के आंगन में संपूर्ण रात्रि यह संकीर्तन होता और उसमें यह सभी पार्षद सम्मिलित होकर महाप्रभु के साथ कीर्तन तथा नृत्य करते। महाप्रभु कीर्तन नृत्य गीत वादित्र माध्यन मनसो रसेन। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने इस संकीर्तन की स्थापना की जो इस कलयुग का धर्म है तथा वे अपने नित्य पार्षदों की सहायता से प्रतिदिन संकीर्तन करते थे। उदिलो अरुण पुरब भागे द्विज मणि गौर अमनी जागे। भकत समूह लैया साथे, गेला नगर बाजे ।। इसी भजन में आगे आता है प्रेमे ढुल ढुल सोनार अंग , चरण नूपुर बाजे। वृंदावन के त्रिभंग ललित श्री कृष्णा मुरली बजाते हैं वहीं श्री कृष्ण संकीर्तन लीला में चैतन्य महाप्रभु के रूप में अपनी आजानुलम्बित भुजाओं को ऊपर उठाकर नृत्य करते हैं। चरणे नूपुर बाजे अर्थात श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के चरणों में नूपुर बंधे हुए होते हैं । यह नूपुर रासलीला में भी भगवान श्री कृष्ण बांधते हैं तथा श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु भी संकीर्तन लीला में संकीर्तन करते समय नूपुर पहनते हैं। अतः नूपुर दोनों स्थानों पर समान है। हमें भी श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की संकीर्तन लीला में सम्मिलित होना चाहिए। अंतर्राष्ट्रीय श्री कृष्णाभावनामृत संघ हम सभी को महाप्रभु के चरणों में तथा नवद्वीप धाम में पहुंचाता है। श्रील प्रभुपाद ने हमारे लिए नवद्वीप धाम को प्रकट किया तथा मायापुर उत्सव प्रारंभ किए। श्रील प्रभुपाद ने संपूर्ण विश्व को चैतन्य महाप्रभु का परिचय दिया जिससे हम सभी भी श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के आंदोलन में सम्मिलित हो सके। नवद्वीप तथा मायापुर धाम की सहायता से हम वृंदावन पहुंच सकते हैं। संकीर्तन आंदोलन में सम्मिलित होकर जप, कीर्तन, तथा नृत्य करते हुए हम पुनः भगवत धाम वृंदावन जा सकते हैं । इस प्रकार हम नवद्वीप धाम से संकीर्तन में सम्मिलित होकर वृंदावन धाम में प्रवेश करने में सक्षम बन सकते हैं। आप इसका का स्मरण कीजिए यह आपके विचारों के लिए आहार है जिस पर आपको चिंतन करना चाहिए। आप इस ग्रंथ को पढ़ सकते हैं, हमने यहां केवल इसका कुछ संकेत किया है। धाम तत्व है, नाम तत्व है तथा भगवान के पार्षद भी तत्व है हमें इन्हें समझना चाहिए। भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं जन्म कर्म च मे दिव्यम अतः यदि कोई भगवान के जन्म तथा कर्म को समझ लेता है तो वह पुनः भगवत धाम जा सकता है। जब हम भी इस तत्व तथा सिद्धांत को समझ जाएंगे, जिसे समझना हमारे लिए अनिवार्य है, तो हमें जप सिद्धि तथा नाम सिद्धि की प्राप्ति हो जाएगी। हम इस कॉन्फ्रेंस को यहीं विराम देते हैं परंतु आपको एक विशेष निर्देश भी देना चाहेंगे कि आप सभी अधिक से अधिक मात्रा में पुस्तक वितरण कीजिए। जप करते समय हम भगवान से प्रार्थना करते हैं कि आप हमें अपनी सेवा के योग्य बनाइए सेवा योग्यम कुरु। अभी कौन सी सेवा चल रही है? अभी पुस्तक वितरण की सेवा चल रही है , अतः आप सभी को अधिक से अधिक मात्रा में पुस्तक वितरण करना चाहिए । आप सभी श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु से प्रार्थना कीजिए और उनकी कृपा प्राप्त कीजिए और इस प्रकार जब आप उनकी कृपा प्राप्त करके पुस्तक वितरण में जाएंगे तब आप जारे देखो तारे कहो कृष्ण उपदेश कर सकेंगे। कृष्ण उपदेश ही भगवद गीता है। इस महीने के अंत में हम आप सभी से विस्तृत रूप में पुस्तक वितरण की रिपोर्ट लेंगे। अतः आप सभी अधिक से अधिक मात्रा में पुस्तक वितरण कीजिए। हरे कृष्ण..

English

19 DECEMBER 2019 The oneness of Krsna-Lila and Gaur-Lila Hare Krsna! namo maha-vadanyaya krsna-prema-pradaya te krsnaya krsna-caitanya- namne gaura-tvishe namah Sri Krsna Caitanya namne - I offer my respectful obeisances unto Lord Krsna. Krsnaya namaha - to which Krsna obeisances are being offered? krsnaya krsna-caitanya-namne -that Krsna whose name now has become Krsna Caitanya, or the one who has accepted the name as Krsna Caitanya. Unto such Krsna I offer my obeisances. We offer such prayers unto Him. Srila Rupa Goswami has offered such prayers. krsnaya krsna-caitanya- namne. Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu is Himself Krsna. We talk of non-difference, 'abhinnatva'. Krsna and Sri Krsna Caitanya are non different. So there is oneness between Krsna and Sri Krsna Caitanya. We have to understand that not only are Krsna and Krsna Caitanya one, but even all the residents of Navadvip are non different from the Vrajavasis. Sri Krsna of Vrndavana is Sri Krsna Caitanya of Navadvip. Similarly Vrajavasis become Navadvip-vasis. Krsna incarnated as Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu. So it is not that only Krsna incarnates and becomes Sri Krsna Caitanya, but all the Vrajavasis appear in the manifested pastimes of Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu. So the way Krsna incarnates as Krsna Caitanya Mahaprabhu I can almost say, that almost all the residents of Vraja appear in the pastimes of Caitanya Mahaprabhu and become residents of Navadvip. Those Vrajavasis appear in Krsna Lila and they help Krsna in those pastimes and all those who appear in Gaur Lila help Caitanya Mahaprabhu in His manifest pastimes. They become associates (parikar and parshad) of Mahaprabhu. So this non-difference should be understood properly. Residents of Navadvip and Vrajavasis are non different. Vrajavasis only become residents of Navadvip. There was one associate of Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu named Kavi Karnapur. You must have heard the name of Sivananda Sen. He was a special personality. Kavi Karnapur was his son and he has written a book named Gaura-ganoddesa-dipika. Kavi Karnapur received close association of Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu when he was a small child to the extent that sometimes he used to lick the feet and toes of Caitanya Mahaprabhu. Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu bestowed special mercy on Kavi Karnapur. divya jnan hrde prokasito When he grew up he wrote this book called Gaura-ganoddesa-dipika. Gaur gan means associates of Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu. Who are they? Or what is their identity in the Vrindavan pastimes of the Lord? Which role were they playing in those pastimes and now which role have they have taken in Gaura Lila. All the explanation about this is in his Gaura-ganoddesa-dipika. There was Parjanya Maharaja who was the grandfather of Krsna. He had five sons (Nand, Upanand Abhinanad etc. ) and all of them were known as Nanda. Out of those Nandas one was Nandababa. Parjanya Maharaja appeared in Bangladesh. Later after the appearance of Caitanya Mahaprabhu they migrated to East Bengal and West Bengal and then towards Navadvip. This Parjanya Maharaja appeared as Upendra Misra who had seven sons. One of them was Jagannatha Misra and Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu was his son. So this is for your information as to how Parjanya Maharaja of Vrindavan appeared as Upendra Mishra in Navadvip and his five sons in Vrindavan appeared as the 7 sons in Navadvip. Son of Nand became Nanda-Nandan. Similarly the son of Jagannatha Misra was Sri Krsna Caitanya. Then Balarama also appeared. Balarama hoila Nitai. You must have heard about the Chaturvyuha of Vasudev, Sankarsana, Pradyumna so they all appear in Navadvip. Even King Vrsabhanu of Barsana, who was the father of Radharani appeared in Navadvip. Kamsa of Mathura appeared as the Chand Kazi of Navadvip. Vyasadev who was there at the time of Krsna Lila becomes Vrindavan Das Thakur in Gaur-Lila. As Vyasadev he compiled Srimad-Bhagavatam and when he became Vrindavan Das Thakur he compiled Caitanya Bhagavat. Jay and Vijay also appeared as Jagai and Madhai. The whole team of so many cowherd boys including Sudama, Sridama, Subala all appeared in Gaur Lila. Subala became Gauradas Pandit. So many Gopal friends who used to play with Krsna and Balarama appear in Gaur Lila. There were a team of Dvadas Gopala of Balarama and they all became associates of Nityananda. Gopis and manjaris of Vrindavan also join Krsna Caitanya Mahaprabhu. Rupa manjari becomes Rupa Goswami. In Vrindavan they were gopis or manjaris or women, and all the sad-goswamis are different gopis and manjaris. Someone is Rasa manjari and there is Manjulali manjari and like that there were many manjaris. And Yasoda maiya you can think. She becomes Saci Mata. Kavi Karnapur has very descriptively explained all these in his book called Gaura-ganoddesa-dipika. He explains as I explained to you earlier how Vrajavasis become residents of Navadvip. They all join in the sankirtana moment of Caitanya Mahaprabhu. Very unique and sweet pastime of Vrindavan is Rasa Lila. So all those gopis who participated in Rasa Lila participate in the sankirtana which includes singing and dancing with Krsna Caitanya Mahaprabhu. the whole night there would be kirtana and dance of Caitanya Mahaprabhu in Srivas Angana. mahapraboh kirtana-nrtya-gita- vaditra-madyan-manaso rasena romanca-kampasru-taranga-bhajo vande guroh sri-caranaravindam TRANSLATION Chanting the holy name, dancing in ecstasy, singing, and playing musical instruments, the spiritual master is always glad dened by the sankirtana movement of Lord Caitanya Mahaprabhu. Because he is relishing the mellows of pure devotion within his mind, sometimes his hair stands on end, he feels quivering in his body, and tears flow from his eyes like waves. I offer my respectful obeisances unto the lotus feet of such a spiritual master. So all join in the sankirtana movement of Mahaprabhu which is the religion for Kali Yuga. This way Caitanya mahaprabhu established sankirtana movement with the help of his eternal associates. udilo aruna puraba-bhage, dwija-mani gora amani jage, bhakata-samuha loiya sathe, gela nagara-braje ( Arunodaya kirtana by BVT in Gitavali) Tribhanga Lalit Sri Krsna of Vrndavana used to play flute there and same Krsna in the form of Caitanya Mahaprabhu with ajanu-lambita-bhujau kanakavadhatau sankirtanaika-pitarau kamalayataksau visvambharau dvija-varau yuga-dharma palau vande jagat-priyakaro karunavatarau He used to raise his hands. Carane nupur baje. There are anklets on His feet. He used to wear anklets in Vrndavana during Rasa pastime and in Navadvip also carane nupur baje. He wears anklets. Preme dhala dhala sonar anga carane nupur baje. There was the bliss of kirtana. So we all also have to join the kirtana of Mahaprabhu. This International Society of Krishna Consciousness lets us all reach the feet of Caitanya Mahaprabhu. For this reason Prabhupada revealed Navadvipa dhama to us and started Mayapur festival. He introduced Caitanya Mahaprabhu to the whole world. So now we are joining the sankirtana movement of Caitanya Mahaprabhu. Navadvipa is like an entrance and we will reach Vrndavana via Navadvipa. We join the sankirtana pastimes of Navadvipa of Mahaprabhu and we keep chanting and dancing and go back home to Vrndavana. This way we will return to Vrndavana. Remember this much. I have given some glimpses of this book, but you can also read this book. This way we try to understand dhama-tattva, nama-tattva, or parshad-tattva. janma karma ca me divyam evam yo vetti tattvatah tyaktva deham punar janma naiti mam eti so ’rjuna Translation One who knows the transcendental nature of My appearance and activities does not, upon leaving the body, take his birth again in this material world, but attains My eternal abode, O Arjuna. (BG 4.9) This tattva is to be remembered always . We must understand this, because we should achieve perfection of our chanting. During the day you all distribute books. While chanting we pray to the Lord seva yogyam kuru! Seva yogyam kuru - Make me eligible for seva. So nowadays which seva is going on? - Marathon. It's the month of Gita-Jayanti. So there is seva of book distribution. So all of you while chanting pray to Caitanya Mahaprabhu to give you strength and intelligence so that you can do jare dakho tare kaho krsna upadesa . Bhagavad-Gita is Krsna Upadesh. So we have to distribute Gita. Gaur Premanande Hari Haribol!

Russian

Джапа сессия 19.12.2019 Я предлагаю свои смиренные поклоны Кришне, которого зовут Шри Кришна Чайтанья Махапрабху. Так мы молимся и так говорил Шрила Рупа Госвами. Чайтанья Махапрабху это Сам Господь Кришна. Они не отличны. Нет различия между Ними, Они одинаковы. Жители Навадвипы не отличны от жителей VV. Кришна это Сам Чайтанья Махапрабху точно также Враджаваси становятся Навадвипваси. Тогда те Враджаваси, которые присутствовали в Кришна Лиле они также присутствуют в играх Чайтаньи Махапрабху. Они становятся помощниками Господа. Мы должны понять , что нет различий. Этот секрет показал Кави Карнапур. Вы могли слышать это в отношении Шивананды Сены. Кави Карнапур его сын. Он написал книгу названую как Гаура Ганодеш Дипика. У него было близкое общение с Господом Чайтаньи Махапрабху. Он лизал палец на ноге Господа Чайтаньи. Когда он вырос он написал эту книгу и поделился выявленными знаниями. Он описал в деталях кто с Враджаваси пришёл как Навадвипваси. Вы могли слышать, что Parjanya Maharaj был великим дедом Кришны. У него было 5 сыновей, Нанда, Упананда, Абхинанда. Тот же Parjanya Maharaj явился в Бенгалии. Они сначала явились в Бенгалии потом пошли в Навадвип. Он явился как Упендра Мишра и его сином был Джаганатх Мишра. Упендра Мишра имел 7 сыновей. Баларам также явился как Нитай. Вся Чатурвьюха явилась. Царь Вришабхану также явился. Все явились в Навадвипе. Матхура Камса также пришёл как Чанд Кази. Шрила Вьясадев пришёл как Вриндаван Дас Тхакур. Он написал Чайтанья Бхагават. Джай и Виджай пришли как Джагай и Матхай. Все друзья пастушки Кришны пришли как Гауридас Пандит и другие. Есть группа известная как Dvadasha Gopal 12 из VV. Гопи и Манджари присоединились к Чайтаньи Махапрабху. Рупа Манджари пришла как Шрила Рупа Госвами. Эти девушки которые явились как Госвами. Яшода явилась как Шичимата. Таким образом Кави Карнапур описывает это в своей книге. Он поясняет как Враджаваси стали Навадвипваси и приняли участие в движении Шри Чайтаньи Махапрабху. В VV найболее знаменитая игра - это Танец Раса. Таким образом все гопи присоединились к Чайтаньи Махапрабху в Санкиртане в Шривас Анган на всю ночь. Все присоединились к Махапрабху в Его мисии Санкиртаны, которая является Юга Дхармой в век Кали. Таким образом Чайтанья Махапрабху совершал Санкиртану в век Кали. Изогнут в трёх местах Кришна явился как Шри Чайтанья Махапрабху имея длинные руки достигающие колен. Он также имел ножные колокольчики. Имея ножные колокольчики Он танцевал. Так мы должны присоединится к Шри Кришне Чайтаньи Махапрабху. Это то, что делаем в ИСККОН и доставить каждого к лотосным стопам Господа Чайтаньи Махапрабху. Шрила Прабхупада проявил это в Майапуре и перенёс это целому миру. Навадвип подобен входу и пути благодаря которому мы достигнем Вриндавана. Когда достигнем Навадвип, тогда воспевая и танцуя мы достигнем Вриндавана. Так, чтобы помнить это сильнее вы можете читать эту книгу. Таким образом есть Дхама Таттва, Нама Таттва, Паршад Таттва. Так мы пытаемся понять эту Таттву или Сидханту. Поэтому стоит помнить об этом. Нам следует помнить об этом. Я говорил немного больше, мы встретимся завтра. Когда мы воспеваем, мы просим занять нас служением. Какое служение происходить сейчас? Распространение книг. Так мы просим, чтобы мы могли иметь разум распространять книги. (Перевод матаджи Оджасвини Гопи) (Перевод от 18.12.2019 бхн Мехрибан Набиева)