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जप चर्चा, पंढरपुर धाम से, 12 जूलाई 2021 हरे कृष्ण! आशा है कि इसमें से एक लोकेशन जगन्नाथ पुरी धाम भी हैं,जगन्नाथ पुरी धाम की जय! जय जय श्रीचैतन्य जय नित्यानन्द।जय अद्वैत चन्द्र जय गौरभक्तवृन्द।। "जगन्नाथ स्वामी नयनपथगामी,नयनपथगामी भवतु मे।" जगन्नाथ बलदेव सुभद्रा महारानी कि जय...! जगन्नाथ पुरी धाम कि जय...! जगन्नाथ रथयात्रा महोत्सव कि जय...! आप तैयार हो? हां! हां!कल मंदिर मार्जन किया? हां!अगर मंदिर मार्जन ही नहीं हुआ होता तो आप कैसे तैयार होते! गुंडींचा मंदिर मार्जन की जय..! तो मंदिर मार्जन भी हो गया जगन्नाथपुरी में, गुंडींचा मंदिर जगन्नाथ के आगमन के लिए तैयार हैं और रथ तो कब से तैयार हो रहे थे।क्या आपको पता हैं कि जगन्नाथ,बलदेव,सुभद्रा के लिए अलग-अलग तीन प्रतिवर्ष नए रथ बनाए जाते हैं और ईनका उपयोग केवल एक ही बार होता हैं। एक ही रथयात्रा में।अगले साल नया रथ बनता हैं। ऐसे रथ भी जगन्नाथपुरी में तैयार हैं,और उसकी सजावट वगैरह हो गयी हैं।इन रथो को मेरु पर्वत जैसे कहा हैं, इतने उचें हैं यह रथ,यह रथ शोभायमान हैं। हरि हरि! सभी स्थानों से भक्त भी पहुँच चुके हैं , बंगाल से शिवानंद सेन बंगाल के भक्तों को ले आते थें।शिवानंद सेन का आज तिरोभाव तिथि महोत्सव भीं हैं।रथयात्रा के दिन ही, और स्वरूप दामोदर गोस्वामी इनका भी आज तिरोभाव तिथि महोत्सव हैं। यह दोनों तिरोभाव अलग-अलग साल अलग-अलग स्थानों पर लेकिन रथयात्रा के दिन संपन्न हुए।शिवानंद सेन बहुत बड़ी संख्या में भक्तों को रथ यात्रा के लिए जगन्नाथपुरी ले आतें,जिसमें अद्वैताचार्य भी रहा करते थे। नित्यानंद प्रभु,श्रीवास और कई अन्य महानुभाव,सभी उनकी खूब सेवा करते थे। रास्ते में उनके आवास निवास,लॉजिंग- बोर्डिंग यह सब शिवानंद की जिम्मेदारी रहा करती थीं। हरि हरि! एक वर्ष वैसे एक कुत्ते ने भी इस यात्रा में भाग लिया।हरि हरि! श्रील प्रभुपाद कहा करते थें कृष्णभावना में कोई भी भाग ले सकता हैं। एक साल इस रथयात्रा में एक कुत्ते ने भाग लिया तो एक दिन कि बात हैं,शिवानंद सेन को यात्रियों के साथ पहुंचने में देरी हो गयी। वह चिंतित रहा करते थे कि उनकी अनुपस्थिति में वहा कैसी व्यवस्था हो रही हैं या हो ही नही रही हैं। उनको उस दिन कुत्ते कि याद आई। उन्होंने पूछा कि कुत्ते को प्रसाद खिलाया या नही?औरों कों तो खिलाया ही होगा, किसी ने जवाब नहीं दिया। वैसे कुत्ता उस दिन वहा नहीं था।हरि हरि! सभी ने कुत्ते को सर्वत्र खोजा कुत्ता नहीं मिला। शिवानंद सेन बहुत दुखी थें कि मैंने अपराध किया मैने कुत्ते को नहीं खिलाया और कुत्ता मिल भी नहीं रहा।उनके चरित्र के संबंध में यह विशेष घटना बतायीं जाती हैं। यात्रा जब जगन्नाथ पुरी में पहुँच गयी तो शिवानंद सेन ने देखा कि वह कुत्ता चैतन्य महाप्रभु के साथ था, और चैतन्य महाप्रभु स्वयं अपने हाथों से उस कुत्ते को प्रसाद खिला रहे थे और शिवानंद सेन ने वहां आकर कुत्ते को देखा और कुत्ते को दंडवत प्रणाम करके क्षमा याचना मांगी कि उस दिन मैंने तुमको प्रसाद नहीं खिलाया और तब शिवानंद सेन ने और सभी ने देखा कि कुत्ता चतुर्भुज रूप धारण करके वैकुंठ धाम के लिए प्रस्थान कर रहा हैं। हरि हरि! तो ऐसे थे शिवानंद सेन और ऐसा था उनका कुत्ता यात्री,जिन पर श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने विशेष कृपा की हरि हरि! और शिवानंद सेन के साथ श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु का घनिष्ठ संबंध था, पारिवारिक संबंध था। उनके घर वालों के ऊपर भी श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु विशेष कृपा किया करते थे। शिवानंद सेन के तीन पुत्र थे। उसमें से एक कविकर्णपुर नामक पुत्र पर चैतन्य महाप्रभु की विशेष कृपा थी और इसी कविकर्णपुर ने कई ग्रंथ लिखे हैं। गौरगणोदेशदीपिका नामक ग्रंथ कविकर्णपुर की ही रचना हैं। हरि हरि! ठीक हैं! समय बहुत कम हैं और श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के कुछ विशेष परिकरो का आज तिरोभाव तिथि महोत्सव हैं। शिवानंद सेन का तो आज स्मरण करना अनिवार्य हैं। ऐसा मैंने सोचा था आज कुछ कहूंगा लेकिन समय बीत रहा हैं। हरि हरि! लेकिन हम समय का सही उपयोग तो कर रहे हैं, और अब स्वरूप दामोदर गोस्वामी के बारे मे बता रहा हूं।इनका जन्म नवदीप मे हुआ था और यह चैतन्य महाप्रभु के बचपन के संगी-साथी थें। चैतन्य महाप्रभु ने जब सन्यास लिया तब स्वरूप दामोदर ने भी घर को त्याग दिया, वाराणसी गए और स्वयं सन्यासी बने।उनका नाम पुरुषोत्तम आचार्य था और श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु जब दक्षिण भारत कि यात्रा करके पून: जगन्नाथपुरी लौटे तो उस समय यह पुरुषोत्तम आचार्य,जिनका नाम अब स्वरूप दामोदर होने वाला हैं,उनका स्वरूप नाम तो वाराणसी में पडा,उनका एक नाम स्वरूप हुआ करता था और चैतन्य महाप्रभु इनको दामोदर कहते थे,इस प्रकार उनका नाम हुआ स्वरूप दामोदर।तो यह वाराणसी से आकर चैतन्य महाप्रभु से जगन्नाथपुरी में मिले और फिर आज के दिन तक उन्हीं के साथ रहे। आज तिरोभाव तिथि महोत्सव हैं। वैसे यह चैतन्य महाप्रभु के अंतरंग भक्त थें। यह स्वयं ललिता थे और यह प्रसिद्ध गायक थें, मानो गंधर्व थें और ये विद्वान भी थे मानो बृहस्पति जैसे विद्वान थें। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के सचिव के रूप में वह कई प्रकार से चैतन्य महाप्रभु कि व्यक्तिगत सेवा और विशेष सेवा किया करते थे।यह श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु को चंडीदास इत्यादि जो कवि रहे या गीत गोविंद के जयदेव गोस्वामी का गीत यह स्वयं सुनाया करते थें और श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के भावों कि पुष्टि भी किया करते थे। हरि हरि!जब श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु को विरह कि व्यथा हो जाती थी तो उनको सांत्वना देने के लिए वहां स्वरूप दामोदर ही हुआ करते थें,और कई प्रकार कि सेवा, सांत्वना करते थें।फिर चैतन्य महाप्रभु के पास रहने के लिए रघुनाथ दास आ गए थे, तो चैतन्य महाप्रभु ने कहा रघुनाथ दास का खयाल रखना। उनका मार्गदर्शन करो और वह वैसा ही कर रहे थे।तो इस तरह रघुनाथ दास प्रसिद्ध हुए।उनका दूसरा एक नाम हुआ, स्वरूपेर रघु। यह रघुनाथ कोन से हैं? स्वरूपेर रघु, स्वरूप दामोदर के रघुनाथ बन गए स्वरुपेर रघु। हरि हरि! तो जब रथयात्रा में भी श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु विशेष नृत्य करने के इच्छुक रहते तो स्वरूप दामोदर को कहते तुम गांँओ और भी कुछ भक्तों को जोड़ देते और स्वरूप दामोदर गोस्वामी गां रहे हैं।गायन हो रहा हैं और चैतन्य महाप्रभु का उदंड नृत्य हो रहा हैं। हरि हरि! या फिर रथ यात्रा के समय ही चैतन्य महाप्रभु ऐसे कुछ वचन कह रहे हैं। रथ यात्रा के समय चैतन्य महाप्रभु राधा भाव में जगन्नाथ जी को कह रहे हैं,जो स्वय कृष्ण हैं। उनके साथ संवाद चल रहा हैं। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ऐसी कुछ गोपनीय बातें कह तो रहे हैं लेकिन किसी को समझ में नहीं आ रहा हैं। समझने वाले कुछ ही हैं। एक तो स्वरूप दामोदर गोस्वामी ही हैं और कभी-कभी रूप गोस्वामी। वह रथ यात्रा में सब समय नहीं रहा करते थे।वह तो वृंदावन में षट् गोस्वामी थे। लेकिन स्वरूप दामोदर तो हर रथ यात्रा में चैतन्य महाप्रभु के साथ रहा करते थे।केवल रथ यात्रा के समय ही नहीं, सभी समय । वैसे अहर्निश रात और दिन खासतौर पर रात भर श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु का साथ देने वाले यह स्वरूप दामोदर ही थें। संगीदामोदर ऐसा संगीत के शास्त्र कि रचना भी स्वरूप दामोदर ने की या कोई और भक्त भी कुछ अपनी कविता या कुछ अपना गद्य पद्य चैतन्य महाप्रभु को प्रस्तुत करना चाहते थें तो चैतन्य महाप्रभु का स्वरूप दामोदर को आदेश था कि पहले तुम देखो! यह लोग कविता लिखते हैं और निबंध लिखते हैं और मुझे दिखाना चाहते हैं परंतु पहले तुम देखो।अगर यह सिद्धांत की दृष्टि से सही है तब मैं देखूंगा। तो यह स्वरूप दामोदर स्वामी सावधानी से देखते और पढ़ते थे और फिर सही होता तो श्री चैतन्य महाप्रभु तक उस कविता या निबंध को या लेख को पहुंचा देते थे नहीं तो वह कूड़ा करकट के डिब्बे में फेंक देते थे।तो यह स्वरूप दामोदर मानो दूसरे महाप्रभु ही थे,ऐसा भी इन के संबंध में कहा जाता हैं।शिव आनंद सेन बंगाल भर के भक्तों को ले आए हैं। रथ भी तैयार हैं।गुंडींचा मार्जन भी हो चुका हैं और आज के दिन रथ यात्रा हैं। आज की बात कर रहे हैं तो संसार भर के भक्त, भारत भर के भक्त रथ यात्रा के लिए पहुंच चुके हैं। जगन्नाथ पुरी धाम की जय!और चैतन्य महाप्रभु के समय तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु भी पहुंच जाते थे ऐसे उत्सव सभी को प्रिय होते हैं और यह जगन्नाथ रथ यात्रा महोत्सव श्री चैतन्य महाप्रभु को भी प्रिय या अधिक प्रिय था ।और श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने यह कभी नहीं छोड़ा या ऐसा कभी नही हुआ कि रथयात्रा महोत्सव में चैतन्य महाप्रभु सम्मिलित ना हो। वैसे भी श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु तो उस रथ यात्रा के केंद्र में थे। और चैतन्य महाप्रभु ने इस रथ यात्रा में सम्मिलित होकर इस रथयात्रा की महिमा को बढ़ाया हैं। और रथ यात्रा उत्सव के पीछे जो भाव हैं उसे भली-भांति समझने वाले गोडिय वैष्णव ही हैं। किस कारण से रथयात्रा महोत्सव का आयोजन होता हैं?इसके आयोजक,परयोजक या सम्मिलित होने वाले भक्त बृजवासी होते हैं या उनको ब्रज भाव में होना चाहिए। यह जो नजरिया हैं, यह तो चैतन्य महाप्रभु और उनके अनुयाइयो या गोडिय वैष्णव संप्रदा के भक्तों का ही हैं।यह जो रहस्य हैं इसे वह ही समझ सकते हैं।या इसको जानते हैं।रथ यात्रा का प्रारंभ तो कुरुक्षेत्र से होता हैं। कुरुक्षेत्र में द्वारका वासी और द्वारकाधीश और बृजवासी और श्रीमती राधारानी का मिलन हुआ।उनका जो मिलन हुआ और ब्रज वासियों का प्रयास कृष्ण को ब्रज धाम ले आने का था।उस समय उनके जो भाव रहे या उनका जो उद्देश्य रहा वह पूरा नही हुआ।फिर मिलेंगे ऐसा कहा तो था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सभी बृजवासी कृष्ण को छोड़ने वाले नहीं थे।वह सब कृष्ण को वृंदावन ले आने वाले थे। हरि हरि!लेकिन इतिहास साक्षी हैं। किसी ने मुझे प्रश्न पूछा था कि क्या बृजवासी, वृंदावन वासी भक्त कृष्ण को या द्वारकाधीश को जब कुरुक्षेत्र में मिले तो क्या कृष्ण उनके साथ गए? क्या वह बृजवासी उनको वृंदावन ले जाने में सफल हुए? तो उत्तर तो है कि वह उस समय नहीं गए,इसे चेतनयचरितामृत में दिया गया हैं।रथयात्रा का विवरण या चैतन्य महाप्रभु का रथ यात्रा के समक्ष आना और नृत्य करना श्री चैतन्य लीला में मध्य लीला का तेरवा अध्याय हैं।चेतनयचरितामृत मे रथ यात्रा का वर्णन हैं। तो वहां पर यह संवाद दिया हैं। श्रीमती राधा रानी और कृष्ण के मध्य का संवाद,जो संपन्न हुआ कुरुक्षेत्र में और श्रीमती राधारानी ने यह प्रस्ताव रखा था कि हम आपको ब्रज धाम मे देखना चाहते हैं। ब्रज धाम में हम लीला खेलना चाहते हैं। ऐसे यह संवाद यह घटना और यह लीला संपन्न हुई। द्वारका वासियो का और बृजवासियो के कुरुक्षेत्र में मिलन का विवरण श्रीमद्भागवत में भी है।श्री सुखदेव गोस्वामी ने इसे सुनाया हैं। लेकिन यह जो श्रीमती राधा रानी और कृष्ण के मध्य का संवाद हैं यह अति गोपनीय हैं और इसे श्री चैतन्यचरितामृत में हम पढ़ सकते हैं और इसी के साथ यह चैतन्यचरित्रमितामृत बन जाता हैं पोस्ट ग्रेजुएशन कोर्स। यह एडवांस स्टडी हैं। तो इस शिक्षा के अनुसार हम समझते हैं की कुरुक्षेत्र से कृष्ण वृंदावन नहीं गए।उन्हें एक आश्वासन देकर पुनः द्वारका ही गए थे और एक वचन कि हां हां मैं वृंदावन धाम आऊंगा।बस अब कुछ ही दुष्ट बचे हैं जिनका मुझे संघार करना है और यह काम होते ही मैं आप लोगों के साथ ब्रज में रहूंगा। आपको मिलूंगा और मैं वृंदावन आऊंगा। यह जो जगन्नाथ पुरी का मंदिर है यह द्वारिका है या यह कुरुक्षेत्र है और वहां पर रथ यात्रा में रथ को खींचने वाले जो भक्त है वह बृजवासी हैं या बृजवासी भक्तों जैसी भूमिका निभाने वाले हैं तो जो लीला पहले संपन्न नहीं हुई कुरुक्षेत्र से पहले भगवान वृंदावन नहीं गए आज के दिन कृष्ण बलदेव सुभद्रा वह तीनों जाएंगे आज ब्रजवासी वहां इकट्ठे हुए हैं सभी बृजवासी कृष्ण बलदेव सुभद्रा को रथ में विराजमान कराएंगे और ब्रजवासी रथ के घोड़े बनेंगे और रथ को खींचते हुए वह गुडींचा ले जाएंगे।यह गुंडीचा वृंदावन हैं और जगन्नाथ द्वारका हैं या कुरुक्षेत्र हैं।तो आज वह यात्रा या प्रवास या कृष्ण का वृंदावन में पुनरागमन हैं। ऐसे संकल्प के साथ आज वृंदावन वासी कह रहे हैं कि आज हम कृष्ण को ले आएंगे। ऐसे संकल्प के साथ आप भी पहुंच चुके हैं ठीक हैं। तो अब 7:00 बज गये हैं और अब इसके आगे वाली बातें कि रथ यात्रा के मार्ग में क्या-क्या होगा इसका वर्णन भी हम आपको आज 8:00 बजे की भागवत कक्षा में सुनाएंगे।1 घंटे के बाद हम लोग पुनः मिलेंगे और पुनः पहुंच जाएंगे फिर जगन्नाथ पुरी धाम इस श्रवण कीर्तन और स्मरण के माध्यम से श्री जगन्नाथ बलदेव सुभद्रा की जय! श्री जगन्नाथ पुरी धाम की जय! श्री जगन्नाथ रथयात्रा महोत्सव की जय! गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!

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