Hindi

जप चर्चा, पंढरपुर धाम, 11 जुलाई 2021 हमारे साथ 782 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। जय जय श्री चैतन्य जय नित्यानंद जय अद्वैत चंद्र जय गौर भक्त वृंद। कुछ इंटरनेट समस्या हो गया था। अभी ज्यादा भक्त नहीं जुड़ पाए हैं। मैं शुरू करता हूं। आज दो बातें महत्वपूर्ण है, 2 उत्सव है। आज एक नहीं दो उत्सव हैं। गुंडिचा मार्जन महोत्सव की जय। इतना तो आपने सोच कर रखा ही होगा। लेकिन उसके साथ ही साथ आज एक और भी उत्सव है और उसका नाम है नेत्र उत्सव। कल रथ उत्सव होगा। रथयात्रा महोत्सव की जय। कल रथ यात्रा होगी। उसके 1 दिन पहले यह नेत्र उत्सव और गुंडिचा मार्जन महोत्सव होता है। आप जानते ही हो या जगन्नाथ भावनामृत हो या कब से आपको जगन्नाथ भावनामृत बनाया जा रहा है। जगन्नाथ की स्नान यात्रा हुई। भगवान अस्वस्थ थे और उनका आराम चल रहा था। उनका विशेष आहार योजना, भगवान एलोपैथिक गोली नहीं खाते। भगवान जूस वगैरा पी रहे थे। भगवान के विग्रह का निर्माण कहो या सुधार कहो या पेंटिंग भी कहो, यह सब किया जाता है। उसको अनावसर उत्सव कहते हैं। स्नान यात्रा से आज नेत्र उत्सव के दिन तक यानी अनावसर उत्सव के दिन तक मनाया जाता है। यह नाम अनावसर सुनने में और समझने में कठिन है। कल भगवान को नव यौवन वेश पहनाया गया। भगवान को पुनः नवीन और जवान बनाया गया। जगन्नाथ बलदेव सुभद्रा की जय हो। आज वह तैयार हैं। कई सारे भक्त वहां पर लाखों की संख्या में पहुंच चुके हैं। हम अभागी हैं और हमारा दुर्देव है कि हम यहीं बैठे रहे। ऑस्ट्रेलिया में, मॉरीशस में, बेंगलुरु में और हम नहीं पहुंच पाए। जगन्नाथ पुरी धाम की जय। तो मैं वैसे पहुंचा था। पूरी कहानी तो नहीं बताऊंगा। 1977 में आज के दिन, नेत्र उत्सव के दिन जीवन में पहली बार जगन्नाथ पुरी पहुंचा था और मैं जगन्नाथ स्वामी के दर्शन के लिए इतना उत्कंठतित था। सिंह द्वार से मैंने प्रवेश किया और मेरे साथ कुछ भक्त वृंद भी थे। वह जो दिन था, मेरे लिए अस्मरणीय था। 1977 में वह नेत्रों उत्सव का दिन, ऐसा दिन रहा जिसको मै भूल नहीं सकता। आप पहले सुन चुके हो या यह सब बताने के लिए समय नहीं है। पंडाओ ने मुझको और हमारे दल को रोका और कहा कि तुम इस्कॉन के हो? हमने कहा हां। तो वह पंडा मुझे कहे कि तुम ईसाई थे और इस्कॉन वालो ने तुम्हारा धर्मांतर किया है। तुम जन्म से हिंदू नहीं हो। तुम यहां से निकल जाओ। हम आसानी से नहीं निकल रहे थे, संघर्ष खूब चलता रहा। लेकिन उसमे पंडा ही जीत गए। बड़े मोटे पंडा थे और हम लोग तपस्वी पतले दुबले, थोड़े कमजोर ही थे। तो उन्होंने हमको वस्तुत: उठाकर मंदिर के बाहर या सिंह द्वार के बाहर पटक तो नहीं दिया लेकिन वह रख तो दिया था। हरि हरि। फिर नौ दर्शन नेत्र उत्सव के दिन जीवन में पहली बार हम दर्शन के लिए गए। इन पंडाओं ने हमको दर्शन नहीं करने दिया। हरि हरि। लेकिन जब हम इन पांडाओ के साथ लड़ रहे थे, खींचातानी हो रही थी। तो एक भक्त तो रिक्षराज उनका नाम था। मेरे गुरु भ्राता थे और वह अमेरिका से थे। वह भी हमारे साथ थे। लेकिन वह लड़ाई झगडे में नहीं फंसे। सारे पंडाओ की टीम हमारे साथ व्यस्त थी। हम को रोकने के लिए, हमको बाहर भेजने के लिए व्यस्त थे। रिक्षराज ने उसका फायदा उठाया और रिक्षराज प्रभु जगन्नाथ के दर्शन के लिए गए। वह जन्म से हिंदू नहीं थे। वह जन्म से ईसाई थे। उन्होंने बढ़िया से दर्शन किया। जब हमको पंडाओ ने बाहर रख दिया था। तो हम गिन रहे थे कि सब तो आ गए। लेकिन रिक्षराज को खोज रहे थे, रिक्षराज कहां है? हम जब उनको खोज रहे थे, इधर उधर देख रहे थे। इतने में रिक्षराज प्रभु मंदिर की ओर से बाहर आए और उन्होंने कहा कि उन्हें बहुत अच्छा दर्शन हुआ। उनको तो जगन्नाथ बलदेव सुभद्रा का बहुत बढ़िया दर्शन हुआ। फिर हमने उन्हीं को गले लगाया क्योंकि वह दर्शन करके आए थे। रिक्षराज प्रभु ने कहा महाराज आपके लिए चरण तुलसी है। उनको जगन्नाथ के चरण की तुलसी भी मिली थी। अंदर वाले पंडाओ ने, इस ईसाई को दर्शन के साथ तुलसी पत्र दिया। लेकिन वह कौन होते हैं? जगन्नाथ ने उन पर उस वक्त कृपा की और अपने चरण की तुलसी उनको दी। हमने सोचा कि जगन्नाथ ने ही चरण की तुलसी रिक्षराज के साथ हमारे लिए भेजी। वह चरण तुलसी का स्पर्श भी और उसको हमने ग्रहण भी किया। उसे हम अपना समाधान मान लिए कि यही हमारे लिए आज जगन्नाथ का दर्शन या जगन्नाथ इसी रूप में, चरण तुलसी के रूप में हमको दर्शन दे रहे हैं। जब चरण तुलसी को ग्रहण किया, तब ऐसा समझे कि जगन्नाथ ने हम में प्रवेश किया और समाधान कर लिया। तो नेत्र उत्सव के साथ-साथ आज गुंडीचा मार्जन का उत्सव भी है। जगन्नाथ मंदिर से गुंडीचा मंदिर 2 मील दूरी पर है और कल जगन्नाथ रथ में आरूढ़ होकर गुंडिचा मंदिर जाएंगे और वहीं पर एक सप्ताह के लिए रहेंगे। उस मंदिर को तैयार करना होता है और उसको सफाई करनी होती है। सफाई का कार्य आज होता है। गुंडीचा मार्जन वैसे गुंडिचा मंदिर ही कहिए, वही स्थान है जहां पर राजा इंद्रदुम्य जिन्होंने जगन्नाथ और जगन्नाथ मंदिर की स्थापना की थी और उनकी प्राण प्रतिष्ठा की थी। जब राजा इंद्रदुम्य ने सर्वप्रथम जगन्नाथपुरी पूरी आए थे, अब जहां गुंडिचा मंदिर है, उन्होंने वही पर अपना तंबू या डेरा डालकर रुके थे। वही उनका निवास स्थान बना था और फिर वही रहते थे। तो गुंडीचा राजा इंद्रदुम्य की रानी का नाम था इसीलिए मंदिर का नाम गुंडीचा मंदिर रखा गया। वहीं पर राजा के नाम से जगन्नाथपुरी में प्रसिद्ध नरेंद्र सरोवर है। सरोवर एक तालाब है। नरेंद्र मतलब नरो में इंद्र कौन? राजा इंद्रद्युम्न उनके नाम से ही प्रसिद्ध है नरेंद्र सरोवर। जगन्नाथ पुरी के तीर्थ यात्री नरेंद्र सरोवर में स्नान करते हैं। जो कि जगन्नाथ पुरी का विशेष तीर्थ है और फिर जगन्नाथ का दर्शन करते हैं। ऐसी परिपार्टी है। जगन्नाथ के लिए मंदिर को तैयार करना है, सफाई करनी है। तो 500 वर्ष पूर्व स्वयं श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु इस सफाई का कार्य करते थे और ऐसी चैतन्य महाप्रभु की तीव्र इच्छा रहती ही थी कि मैं सफाई करना चाहता हूं, मैं मंदिर साफ करूंगा। वहां के जो अधीक्षक सोचते थे कि यह आपके लिए नहीं है और मंदिर की सफाई, आप झाड़ू लगाओगे, नहीं नहीं। हरि हरि। लेकिन चैतन्य महाप्रभु वहां की सफाई करते थे। वहां के मंदिर के अधीक्षक सारी व्यवस्था करते थे। राजा प्रताप रुद्र का आदेश होता था। चैतन्य महाप्रभु सफाई करना चाहते हैं। तो सारी सुविधा उपलब्ध करो। चैतन्य महाप्रभु असंख्य परीकरो के साथ गुंडीचा मंदिर में जाकर आज के दिन सफाई करते हैं। वह पहले जगन्नाथ के दर्शन करते होंगे। नेत्र उत्सव हुआ यानी नेत्रों के लिए उत्सव हुआ। भगवान का दर्शन, जगन्नाथ स्वामी नयन पथ गामी भवतु में अपने नैयनो को, नैयनो से श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु जगन्नाथ का दर्शन करते थे और नेत्र उत्सव होता था। फिर गुंडिचा मंदिर के लिए प्रस्थान करते और वहां के सफाई का कार्य शुरू होता। सफाई का कार्य दिन भर चल रहा है। पहले झाड़ू से सफाई कर रहे हैं। सारा धूल कूड़ा करकट इकट्ठा किया जा रहा है । श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु इस सफाई के कार्य के संचालक बन जाते हैं और अलग-अलग स्थान, अलग-अलग भक्तों को, अपने परिकारो को देते है। तुम यहां पर तुम सफाई करो, तुम यहां पर तुम सफाई करो , तुम मंदिर के परिसर की सफाई करो, तुम यह कमरा साफ करो, तुम रसोई साफ करो। जहां पर कल भगवान का आगमन होगा और गुंडीचा मंदिर में जहां विराजमान होंगे वहां की वेदी, वहां ऑल्टर की सफाई का कार्य स्वयं श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु किया करते थे। हरि हरि ! श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु देखरेख भी करते थे। कौन कैसी सफाई कर रहा है। ऐसा थोड़ी करना होता है तुम मुझे झाड़ू दे दो। स्वयं चैतन्य महाप्रभु उनको सिखाते थे। ऐसे झाड़ू लगाना होता है। वह कहते थे कि अपना-अपना कचरा इकट्ठा करो। श्री चैतन्य महाप्रभु देखते किसने कितना किया। इसने कितना किया, उसने किसने किया। जिसने अधिक कूड़ा करकट का ढेर तैयार किया है उसको शाबाश कहते थे और जिसने कम करा, इसको दंड मिलना चाहिए। आज सब भक्तों को गुलाब जामुन खिलाओ। यह तुम्हारी सजा है। तुमने धूल कूड़ा करकट थोड़ा ही इकट्ठा किया है, ज्यादा परिश्रम नहीं किया इसलिए तुम को दंड मिलेगा। झाड़ू से सफाई के उपरांत, पोछा लगाया जाता है। पूरे मंदिर में सर्वत्र पोछा लगाते हैं और फिर धीरे-धीरे सरोवर से जल लाया जा रहा है और जल सर्वत्र छिड़काया जा रहा है। मंदिर के फर्श पर, दीवार के ऊपर, छत के ऊपर, सर्वत्र और बाहर प्रांगण में जहां तहां पर जल छिड़काया जा रहा है। जल लाने के लिए कई भक्त जुटे हुए हैं। मंदिर के अधीक्षक ने मिट्टी के घड़े दिए हैं। जो तालाब में कोई घड़े को भरता है और बगल वाले भक्त को दे देता है और वह फिर अपने बगल वाले भक्त को और ऐसे करते करते, जो मंदिर में है या मंदिर के प्रांगण में है, वहां पर उस भक्त या परिकर को जल देते हैं। फिर उस जल का उपयोग किया जा रहा है। मंदिर मार्जन के लिए, सफाई के लिए, घिस के सफाई हो रही है। जल का उपयोग हो रहा है। यह सब जब जल लाने का कार्य हो रहा है और सफाई का भी कार्य हो रहा है। तब एक दूसरे के साथ कुछ बात करनी है, तो अधिक बोलते नहीं थे। चैतन्य चरितामृत में कृष्णदास कविराज गोस्वामी लिखते हैं कि बस कृष्ण कृष्ण। एक घड़ा ले लिया तो कृष्ण कृष्ण कहते हैं। घड़ा देना है तब कृष्ण कृष्ण बगल वाले को कहता हैं। कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण। यहां पर बोलने की आवश्यकता ही नहीं है। सारे संकेत या संपर्क केवल कृष्ण कृष्ण से हो रहा है। कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण। आप भी कह रहे हो? आप भी मानसिक धरातल पर कल्पना करो। आप भी सोचिए कि आप भी सफाई कर रहे हैं। इस वर्ष के पूर्व में भी आज के दिन जगन्नाथ पुरी में था । और नेत्रों उत्सव मैंने भी जगन्नाथ का दर्शन किया । कुछ साल पहले जब मैं गया था । नव कलेवर का वर्ष था । समझते हो नव कलेवर ? हर 12 वर्षों के उपरांत जगन्नाथ का कलेवर मतलब विग्रह , नई मूर्ति तो नव कलेवर 'कलेवर' मतलब विग्रह रूप । तो मैं था । तो उस वर्ष तो मुझे पंडा ने कुछ बाहर फेंक नहीं दिया । बढ़िया से जगन्नाथ का दर्शन हुआ और हम गुंडिचा मंदिर भी गए थे और हमने भी गुंदीचा मार्जन किया । तो ऐसा सौभाग्य प्राप्त होता है जब जगन्नाथ पुरी पहुंचते हैं आज के दिन । तो वे तो दर्शन करते ही हैं , नेत्र उत्सव भी होता है और साथ ही साथ जो चाहते हैं सिर्फ हिंदू लोग वह गुंडिचा मंदिर में सफाई का कार्य भी करते हैं । विशेषतः जो गोड़िया वैष्णव है और भी लेकिन गोड़िया वैष्णव इस गुंडिचा मार्जन का महिमा कुछ अधिक जानते हैं । इसका अधिक आस्वादन करते हैं । क्योंकि श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु कि प्रतिवर्ष यह लीला रही । वर्णन तो एक ही बार हुआ है मध्य-लीला में गुंदीचा मार्जन एक अध्याय है, परिच्छेद है । श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु जब दक्षिण भारत के यात्रा करके जब चैतन्य महाप्रभु पहुंचे और वह जगन्नाथपुरी में है तो रथ यात्रा संपन्न हुई । चैतन्य महाप्रभु पहली बार रथयात्रा में भी थे और रथ यात्रा के 1 दिन पहले फिर गुंडिचा मार्जिन भी किए । वर्णन तो एक ही बार हुआ है लेकिन हमें समझना चाहिए कि चैतन्य महाप्रभु जितने वर्ष थे उन्होंने बिताए जगन्नाथपुरी में ,कितने वर्ष बिताए ? 18 साल रहे । हर साल आज के दिन चैतन्य महाप्रभु जरूर यह गुंडिचा मार्जन लीला खेले हैं तो गोड़िया वैष्णव इस लीला को बहुत पसंद करते हैं । तो चल रहा है कृष्ण कृष्ण ! कृष्ण कृष्ण ! यह जो जल का उपयोग किया जा रहा है मंदिर मार्जन के लिए ,तो कुछ भक्त क्या कर रहे हैं ? चैतन्य महाप्रभु की भी सहायता कर रहे हैं । चैतन्य महाप्रभु को भी जल चाहिए , ऑल्टर पर सफाई हो रही है । चैतन्य महाप्रभु स्वयं अपने हाथों से ... श्री विग्रहाराधन नित्य नाना शृंगार-तन्मंदिर मार्जनादौ । युक्तस्य भक्तांश्च नियुंजतोऽपि वंदे गुरोः श्री चरणारविंदं ॥ 3 ॥ अनुवाद:- श्री गुरुदेव मंदिर में श्री श्रीराधा-कृष्ण के अर्चाविग्रहों के पूजन में पोयम रत रहते हैं एवं अपने शिष्यों को भी पूजन, श्रृंगार तथा मंदिर के मार्जन में संलग्न करते हैं, ऐसे श्रीगुरुदेव के चरणकमलों में मैं सादर वंदना करता हूं । जगत्गुरु , श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु 'कृष्णम वंदे जगदगुरुम' । श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु .. अष्टादश-वर्ष केवल नीलाचले स्थिति । आपनि आचरि' जीवे शिखाइला भक्ति ॥ ( श्री चैतन्य चरितामृत मध्य-लीला 1.22 ) अनुवाद:- श्री चैतन्य महाप्रभु अठारह वर्षों तक लगातार जगन्नाथ पुरी में रहे और उन्होंने अपने खुद के आचरण से सारे जीवों को भक्तियोग का उपदेश दिया। अपने आचरण से सारे संसार को सिखाते हैं, शिक्षा देते हैं । मंदिर मार्जन, विग्रह आराधना "युक्तस्य भक्तांश्च" अपने भक्तों के साथ गुरुजन करते हैं । यहां श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु आदि गुरु की भूमिका निभा रहे हैं । तो उनकी सहायता कर रहे हैं भक्त जल लाके । चैतन्य महाप्रभु ऑल्टर साफ कर रहे हैं ! और चैतन्य महाप्रभु साफ सफाई भी कर रहे हैं ऑल्टर पर भी , और स्थानों पर भी कर रहे हैं देखरेख भी कर रहे हैं और उनके द्वारा इतना सफाई का कार्य या क्षेत्र कहो और इतनी लगन से वह कर रहे हैं मंदिर का मार्जन मानो उस 100 भक्तों का कार्य अकेले कर रहे हैं । तो उनके कुछ भगवता का प्रदर्शन हो रहा है । तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु का मंदिर मार्जन अतुलनीय है । गुणवत्ता के दृष्टि से भी और परी माणिक दृष्टि से भी उनके साथ कोई भी तुल्य नहीं हो सकता । चैतन्य महाप्रभु की कोई भी बराबरी नहीं कर पा रहा है । चैतन्य महाप्रभु यहां भी है वहां भी है देखरेख भी कर रहे हैं सफाई भी कर रहे हैं कितना सारा क्षेत्र उन्होंने आवरण कर लिये । तो कुछ भक्त जो जल ला रहे हैं और यह भी कहा है कि जल की भी इतनी जरूरत है कि कुछ तो तालाब से जल भर रहे थे उस घड़ो में । कुछ तो कुआं से , कुछ दूर गए थे एक कुआं मिला उनको कुआं से वह जल निकाल रहे थे । क्योंकि तालाब के तट पर किनारे इतने सारे भीड़ जल भरने, घड़े भरने वाले तो कुआं तक गए । जो भी पानी का स्रोत है वहां पहुंचकर वहां वहां से जल लाया जा रहा है । जो भक्त चैतन्य महाप्रभु तक जल पहुंचा रहे हैं उसमें से क्या करते हैं भक्त ? कुछ भक्त तो उनके चरणों पर ही धूल डाल रहा है । कोई सफाई हो रहा है वहां दे रहा तो कोई उनके सर्वांग पर जल का अभिषेक कर रहा है । वे इतने कृष्ण भावनामृत या गौरंग महाप्रभु भावनामृत है ... 'जेइ गोर सेइ कृष्ण सेइ जगन्नाथ' यह भी उनका साक्षात्कार है । या सफाई करने वाले जो है यह गौरंग महाप्रभु तो जगन्नाथ ही है । जगन्नाथ हीं अपने खुद की सेवा में यह सफाई का कार्य कर रहे हैं । कल आने वाले हैं जगन्नाथ लेकिन आ गए जगन्नाथ । जगन्नाथ चैतन्य महाप्रभु है । तो कई सारे चतुर भक्त क्या कर रहे थे ? चैतन्य महाप्रभु के ऊपर ही जल डाल रहे थे । चैतन्य महाप्रभु के चरणों पर उनका पाद प्रक्षालन कर रहे थे । यह किसी ने देखा तो कोई आगे बढ़ा और उस जल को अपने अंजलि में इकट्ठा कर रहे हैं और भी थें थोड़ा दूर जाके उसका पान कर रहे हैं । इतने में दूसरा भाग आ गया एइ ! मुझे भी दो , मुझे भी चाहिए मुझे भी चाहिए तो भिक्षा मांग रहा है वह जल मुझे भी दे दो, मुझे भी चरणामृत दे दो । ऐसे भी कार्य हो रहे हैं । चैतन्य महाप्रभु ने एक समय दृष्टि दी की कोई ऐसा कार्य कर रहा है, उनके चरणों के ऊपर ही जल डाल रहा है तो अपने एक विशेष परीकरो को उन्होंने देखा , इस बात से चैतन्य महाप्रभु नाराज हुए क्या ? जगन्नाथ के ऑल्टर पर मेरा चरणों का जल ! मेरे चरणों को धो रहे हो ! तो चैतन्य महाप्रभु ने स्वरूप दामोदर उनके जो सचिव है उनको बुलाया यह जो कौन है ? बदमाश ! कितना घोर अपराध कर रहा है ! इसको डांटों, पीटो ! तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु अपने भगवता को छुपाना चाहते हैं । पंच-तत्त्वात्मकं कृष्णं भक्तरूप स्वरूपकं । भक्तावतारं भक्ताख्यं नमामि भक्तशक्तिकं ॥ ( श्री चैतन्य चरितामृत आदि-लीला 7.6 ) अनुवाद:- मैं उन भगवान् श्री कृष्ण को नमस्कार करता हूं जो भक्त, भक्तों के भक्त के विस्तार, भक्त के अवतार, शुद्ध भक्त और भक्त- शक्ति - इन पाँच रूपों में प्रकट हुए हैं । वह तो भक्त का रूप या भक्त बन के जगन्नाथ की आराधना कर रहे हैं । इसका प्रदर्शन करना वो करना चाहते हैं , इसको दर्शना चाहते हैं । लेकिन भक्त तो उनको पहचान ही लेते हैं । वह हे कौन ? वह है पूर्ण पुरुषोत्तम श्री भगवान । " श्री कृष्ण चैतन्य राधा कृष्ण नाही अन्य " यह भक्तों की समझ है । और गौरांग महाप्रभु तो और ही कुछ समझना चाहते हैं । ऐसा समाज शिक्षा देना चाहते हैं लेकिन वह भक्त वह पाठ उनको समझ में नहीं आता है । आता भी है नहीं भी आता है । इस प्रकार यह गुंडिचा मार्जन महोत्सव आज के दिन संपन्न होता है । और फिर यह भी कहा ही है कि; भक्त अनुभव करते हैं की मार्जन तो हुआ मंदिर का अपने हाथों से या सारे सर्वांग से/शरीर से , फिर भी है हाथ भी है मन भी है इस सबका उपयोग किया मंदिर मार्जन के लिए । इस का परिणाम फल क्या हुआ ? कृष्ण दास कविराज गोस्वामी लिखते हैं कि जैसे मंदिर शीतल हुआ,स्वच्छ हुआ,चमक रहा था वैसे ही हुए सभी के मन भी । जो जो मंदिर मार्जन कर रहे थे करते हैं उनका मन भी स्वच्छ या चेतना भी ... चेतो - दर्पण - मार्जन भव - महा - दावाग्नि - निर्वापणं श्रेयः कैरव - चन्द्रिका - वितरणं विद्या - वधू - जीवनम् । आनन्दाम्बुधि - वर्धन प्रति - पद पूर्णामृतास्वादन सर्वात्म - स्नपन पर विजयते श्री - कृष्ण - सङ्कीर्तनम् ॥ (श्री चैतन्य चरितामृत अंत्य-लीला 20.12 ) अनुवाद:- भगवान् कृष्ण के पवित्र नाम के संकीर्तन की परम विजय हो , जो हृदय रूपी दर्पण को स्वच्छ बना सकता है और भवसागर रूपी प्रज्वलित अग्नि के दुःखों का शमन कर सकता है । यह संकीर्तन उस वर्धमान चन्द्रमा के समान है , जो समस्त जीवों के लिए सौभाग्य रूपी श्वेत कमल का वितरण करता है । यह समस्त विद्या का जीवन है । कृष्ण के पवित्र नाम का कीर्तन दिव्य जीवन के आनन्दमय सागर विस्तार करता है । यह सबों को शीतल और मनुष्य को प्रति पग पर पूर्ण अमृत का आस्वादन करने में समर्थ बना । वहां पर हम मार्जन शब्द को सुनते हैं । चेतना के दर्पण का मार्जन , मन का मार्जन , "मन चंगा तो कठौती में गंगा" जो कहते हैं । तो मन भी स्वच्छ । मन भी शांत और शीतल, ठंडा दिमाग ठंडा जैसे मंदिर शीतल स्वच्छ साफ सुथरा मार्जन जो हुआ तो उसी के साथ ये सभी के दिल , मन , चेतना भी स्वच्छ हुई , साफ-सुथरी हुई । तो आप भी; आप जगन्नाथपुरी तो नहीं पहुंच रहे हो ! या पहुंचे तो होगे परंतु आप में से कुछ जगन्नाथ पुरी से भी जुड़े हुए हैं यह एक संभावना है । लेकिन आप जहां भी हो जगन्नाथपुरी में हो या जगन्नाथपुरी में है तो जगन्नाथ के दर्शन भी करो । नेत्रों उत्सव हुआ और गुंडिचा मार्जन करो । लेकिन जो वहां नहीं है वह अपने अपने मंदिरों का मार्जन करो । इस्कॉन के मंदिर मार्जन या फिर आपका घर एक मंदिर है । या अपने घर को एक मंदिर बनाओ ऐसा कई बार कहा जाता है तो बनाया होगा आपने अपने घर को एक मंदिर । बनाया है कि नहीं ? हां ? परम पूज्य लोकनाथ स्वामी महाराज भक्तों को संबोधित करते हुए मुंडी तो हिला रहे हो, उस मंदिर का मार्जन करो आज । और केवल मंदिर का ही मार्जन नहीं हुआ जैसे हम सुने हैं और पढ़ते हैं तो मंदिर का जो प्रांगण है उसका भी सर्वत्र जब मंदिर का जो परिसर है मंदिर के और जो कक्ष है जो भाग है रसोईघर के सहित उसकी भी सफाई तो आज थोड़ा कुछ महा मार्जन, मंदिर मार्जन योजना बनाओ । विशेष सफाई दिन, तो घर में या मंदिर में जितने भक्त हैं , ब्रह्मचारी, गृहस्थ, मंदिर के जो पूर्णकालिक भक्त वह मंदिर को साफ करें । जहां रहते हैं वहां भी आश्रम को साफ करें । प्रांगण को साफ करें । और गृहस्थ भी वैसा ही कुछ कर सकते हैं , हां ? ( परम पूज्य लोकनाथ स्वामी महाराज एक गृहस्थ भक्त को संबोधित करते हुए ) - गणेश एंड राखी और उनके सहित । तो यह आपके लिए घर के पाठ है । और यह सब करते समय कृष्ण कृष्ण ! कहो कृष्ण कृष्ण ! क्या कहोगे ? कृष्ण कृष्ण ! अब नहीं कह रहे हो तो उस वक्त क्या कहोगे ? कृष्ण कृष्ण ! कृष्ण कृष्ण कहो या ... हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥ कहो या जय जय जगन्नाथ शचीर नंदन त्रिभुवने करे जार चरण वंदन ।।१ ।। नीलाचले शंख - चक्र - गदा - पद्म - धर नदिया नगरे दण्ड - कमण्डलु - कर ।।२ ।। केह बोले पूरबे रावण बधिला गोलोकेर वैभव लीला प्रकाश करिला ।।३ ।। श्री - राधार भावे एवे गोरा अवतार हरे कृष्ण नाम गौर करिला प्रचार ।।४ ।। वासुदेव घोष बोले करि जोड हाथ जेइ गौर सेइ कृष्ण सेइ जगन्नाथ ।।५ ।। १. श्रीजगन्नाथ मिश्र और श्रीमती शचीदेवी के प्रिय पुत्र की जय हो ! सम्पूर्ण त्रिभुवन उनके चरणकमलों की वन्दना करता है । २. नीलाचल क्षेत्र में वे शंख , चक्र , गदा और कमलपुष्प धारण करते हैं , जबकि नदिया नगर में उन्होंने संन्यासी का त्रिदण्ड और कमण्डलु धारण किया हुआ है । ३. कहा जाता है कि पूर्वकाल में श्रीरामचन्द्र भगवान् ने रावण का वध किया था और बाद में श्रीकृष्ण रूप में उन्होंने अपनी गोलोक लीलाओं के वैभव को प्रकट किया । ४. अब वही भगवान् श्रीकृष्ण राधारानी के दिव्य भाव एवं अंगकान्ति के साथ श्रीगौरांग महाप्रभु के रूप में पुनः अवतीर्ण हुए हैं और उन्होंने चारों दिशाओं में “ हरे कृष्ण " नाम का प्रचार किया है । ५. अपने दोनों हाथों को जोड़ते हुए वासुदेव घोष कहते हैं , " श्रीगौरांग महाप्रभु ही कृष्ण हैं और वे ही जगन्नाथ हैं । " ऐसे गीत भी गा सकते हो । "जेइ गौर सेइ कृष्ण सेइ जगन्नाथ" तो हाथ में काम सफाई का और मुख में नाम । भगवान का नाम लेते हुए नाम और काम फिर हमारा काम कृष्ण भावनामृत हो जाएगा । मुख में भी और मन में भी भगवान है । तिरुपुर सफाई मन भी साफ होगा, चेतना साफ होगी । और कृष्ण भावनामृत , जगन्नाथ भावनामृत बनने का आज हमें अवसर है । और इस प्रकार हम दूर होते हुए भी हम निकट पहुंच जाएंगे जगन्नाथ के निकट पहुंच जाएंगे या आपके सेवा भाव देखके जगन्नाथ आपको देखने आएंगे । हरि हरि !! ठीक है । ॥हरे कृष्ण ॥

English

Russian