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17 September 2019 जप टॉक हरे कृष्ण मैं अभी पश्चिम की यात्रा पर हूं और इस यात्रा के दौरान हम अमेरिका यूरोप और रूस में प्रचार के लिए गए थे। यह वह देश है जिनका वर्णन भागवतम के इस श्लोक में किरात हुणान्ध्र पुलिंद पुल्कशा (SB 2.4.18 ) पुलिंद आंध्रा में आता है और श्रील प्रभुपाद इस श्लोक को कई बार उल्लेख करते थे । एक बार कुछ दिन पहले मैं एक फ्लाइट में था जहां मैंने सुना कि 1968 में जब श्रील प्रभुपाद दीक्षा दे रहे थे उस समय जय पताका दास की दीक्षा हो रही थी, जो उस समय जय पताका स्वामी नहीं थे क्योंकि उस समय उनकी दीक्षा हो रही थी दीक्षा समारोह का जो प्रवचन था वहां पर उस श्लोक का श्रील प्रभुपाद ने उद्धरण दिया । मैं इतना आश्चर्यचकित था कि प्रभुपाद अमेरिका में कहीं दीक्षा दे रहे हैं और इस श्लोक को वहां पर बता रहे हैं तो इसका एक कारण यह हो सकता है कि उस समय इन देशों से भी कोई दीक्षा ले रहा था। इस श्लोक के तात्पर्य में श्रील प्रभुपाद महाभारत का संदर्भ देते हैं जहां पर बिहार पश्चिम के देश भारत के भी कई देशों के नाम हैं जैसे किरात कहा गया है छोटा नागपुर है कुर्द है ,आंध्रा, पुणे, जर्मनी, ग्रीक, चाइना इन सभी के नाम हैं।श्रील प्रभुपाद बताते हैं कि इसका अर्थ ग्रीक है इसका अर्थ चाइना है महाभारत का जो विष्णु पर्व है वहां से फिर प्रभुपाद संदर्भ दे रहे थे महाभारत का अर्थ है महान भारत का इतिहास तो इसमें संपूर्ण विश्व भारत का अंश था तो प्रभुपाद ने इसलिए कहा कि इसमें कई देशों का नाम आने के पश्चात आता है। जहां यवन अर्थात मुस्लिम तथा मलेच्छ रहते हैं वे स्थान शूद्रों से भी निम्न कैटेगरी के है वहां के लोग, वहां निवास करते हैं तो पहले जो किरात आंध्रा यह जो स्थान बताएं हैं यहां पर शुद्र लोग रहते हैं बाकी के जो स्थान हैं वहां पर शुद्र से भी निम्न कैटेगरी के लोग रहते हैं तो भागवतम कहती है कि आप कहीं भी रहे चाहे कोई भी जगह हो या आपकी जाति कोई भी हो चाहे आप शूद्र हो या शूद्र से भी नीचे हो परंतु आज अब आप भगवान हरि के भक्तों की शरण लेते हैं (हरि भक्त वे हैं जिन्होंने भगवान की शरण ली है और यदि आप उन भक्तों की शरण लेते हैं) तो आप शुद्ध हो जाते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि भगवान विष्णु अत्यंत शक्तिशाली हैं तो यहां भगवान विष्णु को प्रभु विष्णु कहकर संबोधित किया गया है। प्रभु विष्णु अर्थात अत्यंत शक्तिशाली भगवान विष्णु। अतः इस प्रकार से यदि आप शक्तिशाली भगवान विष्णु के भक्तों के संपर्क में आते हैं जिससे आपकी शुद्धि होती है और भक्त आपको भगवान के चरणों की ओर अधिक निकट ले जाते हैं भगवान श्री कृष्ण भगवत गीता में कहते हैं सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज । अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ।। भगवान कहते हैं तुम सभी प्रकार के धर्मों का परित्याग करके मेरी शरण में आ जाओ तब मैं तुम्हें सभी प्रकार के पापों से मुक्त कर दूंगा तुम डरो मत। जो भगवान के भक्तों की शरण लेता है वह एक प्रकार से भगवान की शरण लेता है श्रील प्रभुपाद ने 14 बार संपूर्ण पृथ्वी का भ्रमण किया तो पुलिंद आंध्रा आदि जो इन देशों के नाम है प्रभुपाद इन सभी देशों की भी यात्रा कर रहे थे और वहां के जो लोग हैं वहां के जो निवासी हैं वह प्रभुपाद की शरण ले रहे थे और जब वे प्रभुपाद की शरण ले रहे थे तब प्रभुपाद उन भक्तों को भगवत गीता यथारूप प्रस्तुत कर रहे थे और इसके साथ ही साथ यथारूप प्रभुपाद यह श्लोक भी उन्हें बता रहे थे कि यहां कृष्ण सर्वधर्माण परित्यज्य कहते हैं। वे कहते हैं सभी प्रकार के धर्मों का त्याग करके ऐसे नहीं आपने कुछ धर्म का त्याग कर दिया कुछ नहीं कर पा रहे है नहीं। वह कहते नहीं सभी प्रकार के धर्मों का त्याग करके कृष्ण शरणागत बनो और जब कोई ऐसा करेगा तो उसका क्या परिणाम होगा उसे क्या फल मिलेगा तो भगवान कहते हैं, अहं त्वां सर्वपापेभ्यो अतः दोनों स्थानों पर सर्व है- सर्व धर्मा ,सर्व पापेभ्यो। अतः जब हम सभी प्रकार के धर्मों का त्याग करते हैं, यदि हम श्रीकृष्ण की शरण लेते हैं तो वे हमें सभी प्रकार के पापों से मुक्त करते हैं। भागवतम के श्लोक में आता है यह अन्य च पापः तो प्रभुपाद कहते हैं ना केवल विदेश जिनका वर्णन इस श्लोक में हुआ है अपितु जिनका वर्णन नहीं भी हुआ है अभी अन्य भी किसी स्थान से और अधिक पापी व्यक्ति हैं और यदि वे पापी व्यक्ति जब भगवान के इन शुद्ध भक्तों की शरण ग्रहण करते हैं तो क्या होता है शुद्धयंती तो ऐसा करने से वह शुद्ध हो जाते हैं ऐसा करने से जब वे शक्तिशाली भगवान विष्णु के भक्तों की शरण ग्रहण करते हैं तो ना केवल इन देशों के व्यक्ति अपितु किसी भी स्थान का व्यक्ति हो जिसके देश का नाम इस श्लोक में नहीं आया है। श्रील प्रभुपाद इस श्लोक की विस्तृत व्याख्या करते हैं और इस बात पर जोर देते हैं और बताते हैं किस प्रकार से भगवान के भक्तों की शरण लेनी चाहिए तो हमारे यहां पर शिक्षा गुरु होते हैं दीक्षा गुरु होते हैं इस प्रकार से यह एक चेन होती है जहां सर्वप्रथम पथ प्रदर्शक गुरु होते हैं जो हमें शिक्षा गुरु से परिचित कराते हैं शिक्षा गुरु हमें दीक्षा गुरु तक लेकर जाते हैं और जो दीक्षा गुरु होते हैं वह हमारा संबंध आचार्य से तथा संपूर्ण गुरु परंपरा से कराते हैं। जय पताका स्वामी महाराज जो उस समय जय पताका प्रभु थे तो उनके दीक्षा समारोह के समय श्रील प्रभुपाद इस श्लोक का वर्णन कर रहे थे तो प्रभुपाद कह रहे थे कि जो वैदिक विधि होती है उसके अनुसार यदि कोई ब्राह्मण परिवार में अथवा क्षत्रिय परिवार में ना जन्मा हो तो वह दीक्षा लेने के अधिकार में नहीं होता है उसे दीक्षा नहीं दी जा सकती बताते हैं कि स्त्रियों ना वैश्य ना शूद्रों शुद्धि गोचरा जो स्त्री है जो शूद्र है तथा जो वैश्य है उन्हें वैदिक विधि के अनुसार यह मंत्र प्रदान नहीं किए जा सकते । उन्हें दीक्षा नहीं दी जा सकती, परंतु श्रील प्रभुपाद कहते हैं एक यह है वैदिक विधि और दूसरी विधि होती है भागवत विधि अथवा पंचरात्रिक विधि। हम इन विधियों का पालन करते हैं । हम इन भागवत विधि और पंचरात्रिक विधियों का अनुसरण करते हैं वैदिक विधियों में स्त्रियों वैश्य तथा शूद्रों को यह मंत्र नहीं दिए जा सकते कई बार यह जो ब्राह्मण थे जो वैदिक विधि को फॉलो करते थे वह श्रील प्रभुपाद की आलोचना करते थे उनकी बुराई करते थे कि यह स्वामी जी किस प्रकार से यवनों को तथा मलेच्छ् को दीक्षा दे रहे हैं । उन्हें हरि नाम दीक्षा ब्राह्मण दीक्षा तथा सन्यास दीक्षा भी दे रहे हैं यह तो निषिद्ध है लेकिन यह निषिद्ध होता है वैदिक विधि से परंतु हम भागवत की अथवा पंचरात्रिकी विधि का पालन करते हैं और इसके अनुसार यह दीक्षा दी जा सकती है और इसके अनुसार यह प्रचार कार्य चल रहा है जो श्रील प्रभुपाद ने किया वह अभी चल रहा है। यह चैतन्य महाप्रभु की भविष्यवाणी थी "पृथ्वीते आछे यत नगर आदि ग्राम सर्वत्र प्रचारे होइबे मेरा नाम" चैतन्य महाप्रभु इस हरि नाम का प्रचार करने के विषय में कह रहे हैं कि इस संपूर्ण पृथ्वी पर जितने भी नगर और ग्राम हैं वहां मेरे इन पवित्र नामों का प्रचार होगा यह चैतन्य महाप्रभु की भविष्यवाणी थी जिसके लिए श्रील प्रभुपाद ने कार्य किया और यह प्रचार कार्य भी निरंतर चल रहा है तो यह जो प्रक्रिया है वह भागवत विधि थी तथा पंचरात्रिकी विधि के अनुसार संपन्न हो रही है। श्रील प्रभुपाद ने इस भागवत विधि के अनुसार क्या किया और उन्होंने संपूर्ण विश्व में इस हरि नाम का प्रचार किया।इन स्थानों के संपूर्ण विश्व के कई देशों के लोग जब श्रील प्रभुपाद के संपर्क में आए तो श्रील प्रभुपाद ने उन्हें हरिनाम और श्रीकृष्ण के संपर्क में लाये। पहले वे प्रभुपाद के पास आए श्रील प्रभुपाद उन्हें भगवान श्री कृष्ण के पास लेकर गए तो ऐसा कहते हैं ब्रह्मांड भ्रमिते कौन भाग्यवान जीव। गुरु कृष्ण प्रसादे पाय भक्ति लता बीज ।। तो इस ब्रह्मांड में वही व्यक्ति भाग्यवान होता है जिसे गुरु और कृष्ण की कृपा से भक्ति रूपी लता बीज की प्राप्ति होती है । इस प्रकार से भगवान इस विश्व में कई लोगों को भाग्यवान बना रहे थे, वे उन्हें कृष्ण भक्त बना रहे थे और वे जो व्यक्ति हैं नए व्यक्ति हैं वे भगवान की शुद्ध भक्तों से आकृष्ट होते थे और वे जो भगवान के भक्त हैं वे उन आकृष्ट होने वाले व्यक्तियों को हरिनाम, भगवान भागवत कथा, भगवत गीता यथारूप, भगवान के विग्रह मायापुर तथा वृंदावन तथा रामायण कृष्ण लीला एवं गौरांग महाप्रभु की लीला आदि कई भक्तों के संपर्क में ला रहे थे । इस प्रकार से जो नए व्यक्ति जुड़े रहे थे वे इन भक्तों के संपर्क में आ रहे थे। इस प्रकार से यह सब प्रचार कार्य चल रहा था जिसका वर्णन भागवत में आता है और प्रभुपाद कहते थे बुक्स आर द बेसिस । पुस्तकें ही आधार है, भागवतम आधार है तो हमें श्रीमद भगवतम की शरण लेनी चाहिए। भक्त बताते हैं कि आपने भगवान श्रीकृष्ण की शरण ली थी, जब आप ऐसे शक्तिशाली भगवान श्रीकृष्ण की शरण लेते हैं तो क्या होता है शुद्धयंती अर्थात हम पवित्र होते हैं। अतः चैतन्य महाप्रभु शिक्षाष्टकम् में बताते हैं - नाम्ना कारी बहुधा निज सर्वशक्ति स्त्तरार्पिता। अर्थात भगवान के नाम में पूरी शक्ति समाहित है साथ ही साथ ऐसा भी कहा जाता है "पूर्ण शुद्धो नित्य मुक्तो अभिन्नतवाम नाम नामिनो" अतः यह जो भगवान का नाम है वह पूर्ण है, वह शुद्ध है, मुक्त है और नित्य है और इसके साथ ही साथ इस नाम में और नामी में अर्थात भगवान के नाम और भगवान में स्वयं इन दोनों में कोई भेद नहीं है यह दोनों अभिन्नत्वाम यह दोनों एक ही हैं। इस प्रकार से आप इस हरीनाम की शरण लीजिए आप शुद्ध बनिए आप कृष्ण भावना भावित बनिए और इस जीवन को सफल बनाइए और इस प्रकार से पुनः भगवान श्री कृष्ण के पास जाइए यही आपसे निवेदन है। हरे कृष्ण।।

English

17 SEPTEMBER TAKE SHELTER OF THE DEVOTEE OF THE LORD I have been on tour of the Western countries and we had gone to America , Europe and Russia. kirata-hunandhra-pulinda-pulkasa abhira-sumbha yavanah khasadayah ye 'nye ca papa yad-apasrayasrayah sudhyanti tasmai prabhavisnave namah I was reading this a few days ago during the flight. I came across an initiation class by Srila Prabhupada in 1968 somewhere in America. That time Jayapataka Dasa who was not a swami that time was getting initiated. During that initiation lecture Prabhupada quoted this verse. I was surprised as wealth could be the reason why Prabhupada was saying this while giving initiation in America. kirata-hunandhra-pulinda-pulkasa …. The reason could be that some must have taken initiation who were from one of these countries. Then Prabhupada quoted this verse from Srimad-Bhagavatam, that refers to Mahabharata. It explains this is a kirata, the country is mentioned, far beyond Bihar and some countries from India also, Western countries. You know India is also included in chota Nagpur from Central India, that is Kirata, and Andhra is in India. Then hunandhra, that is Russia that is being mentioned. Then there is Germany and China. These countries are also mentioned in the Bhishma-parva of Mahabharata. Mahabharata is the history of Greater India. That time the whole world was Bharat and the names mentioned were the countries or provinces spread all over the world. The reason why Prabhupada had quoted that verse during that initiation ceremony was that in this verse after mentioning the different countries, the Yavanas or Muslims, mlecchas I mean these races are the lower classes, lower than the sudras, in comparison . These are Kirata and Hunan, Andhra and Pulinda and Pulkasa , Yavanas and Khasad also. They are sudras, but Bhagavatam says wherever you are from, no matter how low class you are, you should take shelter of the devotees of the Lord. One who has taken shelter of the Lord that is a devotee and if you take shelter of the devotee, such a devotee who has always taken shelter of the Lord then suddyanti - you will be purified. By prabha visnave namaha. Visnu is addressed here as Prabha-Visnu which means powerful Visnu. The Lord is powerful. You should come in contact with devotees of the powerful Lord, then that devotee will bring you to the shelter of Lord’s lotus feet. Then the devotees will explain also that, sarva-dharman parityajya mam ekam saranam vraja aham tvam sarva-papebhyo moksayisyami ma sucah Translation: Abandon all varieties of religion and just surrender unto Me. I shall deliver you from all sinful reactions. Do not fear.( BG. 18.66) Lord has made that promise if one takes shelter of the devotees of the Lord. That's why Prabhupada was also travelling fourteen times around the world, to this Hunan and Andhra also, to all these countries around the world, and people there were taking shelter of Prabhupada. They got some alternative. They came in contact with Srila Prabhupada, and Prabhupada presented Bhagavat-gita As It Is to them. Then he had explained this verse, as it is. We have a variety of religions or so called obligations, but surrender unto Krsna - mam ekam saranam vraja. And if you do that what does Krsna say, aham tvam sarva papebhyo moksayisyami ma sucah. Surrender is complete when we do sarva-dharman parityajya. Not that you have given up some false dharmas, only so called dharmas, but all dharmas. Just take note of the word sarva, Lord has said, sarva- dharman parityajya and if you do that, if you leave all varieties of religions, then aham tvam sarva papebhyo. sarva-dharman parityajya. sarva-papebhyo moksayishyami ma sucah. Then you will become free from reactions, of all the sins that you have committed. So this Bhagavatam verse does say this. Srila Prabhupada explained not just sinful people of this country and that verse of Kirata, Pulinda ye anye ca papaha..... and if there are any others which are not mentioned in this verse they also, everybody. There may be some more sinful people of some other country , which are not mentioned in this verse, they also will get purified. vimuchayate nama tasmai, vishnave prabha namah Srila Prabhupada was preaching on the strength of this verse, which strongly recommends to one and all to take shelter of devotees of the Lord. Devotees who are like acarya, siksa Gurus, diksa Gurus, Vartma pradarsaka gurus who take us to the siksa Gurus, which in turn introduces us to diksa Gurus. Diksa Gurus come in the parampara of the acaryas and connect us to that parampara. So it was proper that Srila Prabhupada was quoting this verse during the initiation ceremony of Jaypataka Prabhu. He was justifying initiation to someone, who was not born in a Brahmin family, or ksatriya family. Prabhupada was also mentioning that according to the vedic vidhi, this initiation cannot take place. Yena sruti gochara ha. striyo vaisya tatha sudraha tryo na sruti gocharaha. They cannot be given initiation. We don't give this mantras to women, vaisya or sudras. But there is vaidik vidhi and there is Bhagavata vidhi. We follow the Bhagavata vidhi. Pancaratra. Pancaratiki vidhi vina bhakti utpat eva ucchyate. So we follow Bhagavata vidhi. We follow Pancharatiki vidhi. But if we stick only to Vedic vidhi, then we cannot extend this initiation. And Prabhupada was also criticised by brahmins as he was giving initiation to Yavanas. He was giving them sannyasa. This all is nishiddha, according to the vedic vidhi. But we follow Bhagavata vidhi or pancaratra vidhi, which Srila Prabhupada preached all over the world. That preaching is continued. Caitanya Mahaprabhu predicted that this holy name will reach every town and village. He predicted pritvite ace yay nagaradi gram sarvatra prachar hoibe more nama. So this was forecasted by Caitanya Mahaprabhu and Prabhupada worked for that. Till now preaching is going on. First they came in contact with Srila Prabhupada and then they came into contact with the holy name. So this is brahmande bhramite kon bhagyawan jiva guru krsna prasade pay bhaktilata bija. In this world, so many souls are becoming bhagyawan, fortunate as Prabhupada was bringing them in contact with devotees of Krsna. These devotees are then , inspiring the souls, introducing them to holy name Bhagavat-gita and Bhagavatam. Introducing them to the Deities, Deity form of the Lord. Introducing them to Mayapur Vrndavan dhams, and introducing them to so many more devotees of Lord. Krsna's servants, Krishna's eternal associates. Gauranga Mahaprabhu's associates. So this way everything is going on as explained in the Bhagavatam. 'Books are the basis', Bhagavatam is the basis, and this is the foundation. Bhagavatam teaches taking shelter of the devotees. These devotees will explain you how to take shelter of Krsna. And when they come in contact with the powerful Lord then - sudhyanti. The holy name is also powerful. Namnam Kari bahudha nija sarva shaktis Lord has introduced all His energies into this holy name. Poorna sudha nithya mukta abhinavat Nama Namino. Take shelter of the holy name of the Lord as there is no difference between nama and nami. They are one. So become Krishna conscious and make your life happy by taking shelter of the Harinama, and go back to Krsna. Hare Krishna!

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