Hindi

जप चर्चा पुणे 12 अक्टूबर 2021 912 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। जप कर्ताओं की संख्या बढ़ती जा रही हैं। हरिकीर्तन और गौरांगी आगये आप ठीक है आपका स्वागत है। हरि हरि ठीक है अभी आप जप आपके लिए और आपके पुत्र के लिए जप कर रहे हो ठीक है इसके बारे में हम बाद में अधिक चर्चा करेंगे। कृष्णवर्ण त्विषाकृष्णं साङ्गोपाङ्गास्त्रपार्षदम् । यज्ञैः सङ्कीर्तनप्रायैर्यजन्ति हि सुमेधसः।। श्रीमद्भागवत 11.5.32 कलियुग में , बुद्धिमान व्यक्ति ईश्वर के उस अवतार की पूजा करने के लिए सामूहिक कीर्तन ( संकीर्तन ) करते हैं , जो निरन्तर कृष्ण के नाम का गायन करता है । यद्यपि उसका वर्ण श्यामल ( कृष्ण ) नहीं है किन्तु वह साक्षात् कृष्ण है । वह अपने संगियों , सेवकों , आयुधों तथा विश्वासपात्र साथियों की संगत मंव रहता है । भागवत कहता है ग्यारह वा स्कन्द अध्याय 5 वा करभजन मुनि और निमि महाराज जी का संवाद हो रहा हैं। और इस संवाद के अंतर्गत करदम्ब मुनि जो नवयोगेन्द्रों मेसे एक योगेंद्र है उनका कहना है और कई यो का कहना है वैसे नारद मुनि कह रहे हैं वसुदेव जी से वैसे वसुदेव और देवकी उसमे वसुदेव के साथ नारद मुनि का संवाद हो रहा है। नारद मुनि कुछ उपदेश कर रहे किसको वासुदेव के पिता श्री वासुदेव को उपदेश हो रहा है। नारद मुनि द्वारा तो उस समय कई बातें करभाजन मुनि ने कही है कौन से युग में कौन से रूप में और क्या नाम होगा उस अवतार का और कौन सी लीला संपन्न करेंगे इसका उत्तर दे रहे हैं। करभाजन मुनि अलग-अलग युगों के उपरांत जब कलयुग का कलयुग की बारी आ गई तो उन्होंने कहा वैसे कृष्णवर्ण त्विषाकृष्णं साङ्गोपाङ्गास्त्रपार्षदम् इसको पूरा नही समझाए गे लेकिन ये वचन प्रसिद्ध वचन या चैतन्य महाप्रभु के सम्बंध में भागवत में कहा गया हैं। की चैतन्य महाप्रभु भगवान है ऐसे अगर कोई हमको कहे तो हम कह सकते हैं कि हा है इसका उत्तर इस श्लोक में है इसका उल्लेख भागवत में है। कलयुग में भगवान श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की रूप में प्रकट होते हैं कृष्ण वर्णन वह क्या करते हैं कृष्ण का वर्णन करते हैं कृष्ण वर्णन कृष्ण विष्णु वर्णम हरि हरि तृषा मतलब कांति कांति समझते हो इपलजन्स तृषा कृष्णन्म कृष्ण प्रकट होंगे विष्णु तो होने चाहिए ऐसा गर्गाचार्य ने कहा था द्वापर युग में कृष्ण प्रकट होते हैं और कृष्ण काले साँवले होते हैं। लेकिन वही कृष्ण कलयुग में जब प्रकट होते हैं तब कृष्ण काले साँवले नहीं होते तो कैसे होते हैं गोरे होते हैं। गौरंगा कौन होंगे गौरंग उनके साथ संगी साथियों के साथ प्रकट होते हैं। और उन्हीं को हथियार बनाते हैं या उन्हीं के साथ धर्म की स्थापना करते हैं। भगवद्गीता 4.8 “परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् | धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे || ८ ||” अनुवाद:- भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ | धर्म की स्थापना के लिए उसका उपयोग करते हैं यहां एक प्रकार से वह अस्त्र बन जाते है और उसी का प्रचार करते हैं या हरे कृष्ण महामंत्र का वह प्रचार करते हैं। हरि हरि श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की परिकर हरिदास ठाकुर और नाम आचार्य श्री हरिदास ठाकुर और नित्यानंद प्रभु का हम जब विचार करते हैं जैसे 1 दिन उन्होंने जगाई और मदाई के साथ उनका परिचय हुआ हरि हरि और वह बदमाश थे असुर थे तो भगवान परित्राणाय साधुनाम विनाशाय च दृश्यता दुष्टों का संहार करने के लिए भगवान प्रकट होते हैं। श्रीमद्भागवत 1.3.28 एते चांशकलाः पुंसः कृष्णस्तु भगवान् स्वयम् । इन्द्रारिव्याकुलं लोकं मृडयन्ति युगे युगे ॥ २८ ॥ अनुवाद:- उपर्युक्त सारे अवतार या तो भगवान् के पूर्ण अंश या पूर्णांश के अंश ( कलाएं ) हैं , लेकिन श्रीकृष्ण तो आदि पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् हैं । वे सब विभिन्न लोकों में नास्तिकों द्वारा उपद्रव किये जाने पर प्रकट होते हैं । भगवान् आस्तिकों की रक्षा करने के लिए अवतरित होते हैं । इन्द्रारिव्याकुलं लोकं मृडयन्ति युगे युगे जो इंद्रियों के भोग में लिप्त हैं मतलब वह असुर हैं। वह व्याकुल करते हैं जो कष्ट देते हैं भक्तो को तब भगवान उनकी रक्षा करते हैं। असुरों से वैष्णवो की रक्षा करते हैं असुरों का संहार करते हैं ठीक है यहां जगाई मधाई ने अपराध किया नित्यानंद प्रभु के चरणों में अपराध किया उसके सिर पर बाल पर पत्थर फेंके प्रहार किया हरी हरी तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु को वही तभी पता चला किसने बताया तो नहीं मैसेज संदेश भेजकर या भगवान जानते हैं भगवान प्रकट हुए और उन्होंने सुदर्शन को आव्हान किया। औए वह सुदर्शन के साथ प्रकट हुए। तब नित्यानंद प्रभु ने कहा नही नही प्रभु इस कलयुग में ऐसे हथियार का उपयोग नहीं होगा तो कौनसा हथियार तो सांगो पांगात पार्षद भगवान के परिकर सांगो पांगात पार्षद यह वही अस्त्र शस्त्र बनते हैं और साथ मे वो यही हरिनाम का वितरण करते हैं। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे इसी को हथियार अपनाते हैं और उस व्यक्ति को जो दृष्ट प्रवृत्ति है या इस हरिनाम अस्त्र या हरिनाम बॉम्ब को डालते हैं। यह शरीर को तो तोड़ता फोड़ता या काटता नहीं यह शरीर का नाश नहीं करता इस व्यक्ति की जो दृष्टि प्रवृत्ति है आसुरी भाव है। भगवद्गीता 7.15 ” न मां दुष्कृतिनो मूढाः प्रपद्यन्ते नराधमाः | माययापहृतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिताः || १५ ||” अनुवाद:- जो निपट मुर्ख है, जो मनुष्यों में अधम हैं, जिनका ज्ञान माया द्वारा हर लिया गया है तथा जो असुरों की नास्तिक प्रकृति को धारण करने वाले हैं, ऐसे दुष्ट मेरी शरण ग्रहण नहीं करते | ” न मां दुष्कृतिनो मूढाः प्रपद्यन्ते नराधमाः इस प्रकार के अवगुण से भरे हुए जो लोग हैं यह हरिनाम इस दुष्ट प्रवृत्ति का विनाश करता है। श्रीमद्भागवत 12.3.51 कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति ह्येको महान्गुणः । कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसङ्गः परं व्रजेत् ॥५१ ॥ अनुवाद:- हे राजन् , यद्यपि कलियुग दोषों का सागर है फिर भी इस युग में एक अच्छा गुण है केवल हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन करने से मनुष्य भवबन्धन से मुक्त हो जाता है और दिव्य धाम को प्राप्त होता है । उस व्यक्ति के या इस कलयुग में कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति ह्येको महान्गुणः तो दोष जिसमे में उसको दोषी कहते हैं यह दोषी है या दोषों से भरा हुआ है तब अगर इस कलीयुग के दोषों का नाश कैसे होगा कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसङ्गः परं व्रजेत् और जब श्रीमद्भागवत 11.5.32 कृष्णवर्ण त्विषाकृष्णं साङ्गोपाङ्गास्त्रपार्षदम् । यज्ञैः सङ्कीर्तनप्रायैर्यजन्ति हि सुमेधसः ॥३२ ॥ अनुवाद:-कलियुग में , बुद्धिमान व्यक्ति ईश्वर के उस अवतार की पूजा करने के लिए सामूहिक कीर्तन ( संकीर्तन ) करते हैं , जो निरन्तर कृष्ण के नाम का गायन करता है । यद्यपि उसका वर्ण श्यामल ( कृष्ण ) नहीं है किन्तु वह साक्षात् कृष्ण है । वह अपने संगियों , सेवकों , आयुधों तथा विश्वासपात्र साथियों की संगत में रहता है । यज्ञैः सङ्कीर्तनप्रायैर्यजन्ति हि सुमेधसः कलयुग के जो बुद्धिमान लोग हैं यह बात मैं आपको थोड़ा सुनाना चाहता था हम लोग प्रतिदिन उठते ही यहां एकत्रित होते हैं और हम जप करते हैं या जपा ज़ूम सेशन जॉइन करते हैं जो भी करते हैं यह सही करते हैं हम इसको शास्त्र का आधार है भागवत शास्त्र ही आधार हैं और भागवत में इस बात की पुष्टि हुई है। या श्रीमद्भागवत हमको प्रोत्साहित करता है जप करने के लिए कीर्तन करने के लिए के तब ईसी वचन में करभाजन मुनि राजा निमि को कहे उसमे एक ति कहा है कि श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु स्वयम भगवानलिए तो ऐसी भाषा में है। श्रीकृष्णचैतन्य ही कृष्ण है एक बात वह हुई या आधे श्लोक में उसको सिद्ध किया श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु कृष्ण है। कृष्ण वर्णनम तृषा अकृष्णम वह कैसे दिखते हैं और क्या करते हैं। तो उसी का जो दूसरा भाग है उसमें समझाया है श्रीकृष्ण महाप्रभु ने समझाया या कलयुग की धर्म की स्थापना की और जो भी अपने धर्म को अपनाते हैं जो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने सिखाया चैतन्य चरितामृत अंत्य लीला 7.11 *कलि-कालेर धर्म ---कृष्ण-नाम-सड़्कीर्तन।* *कृष्ण- शक्ति विना नहे तार प्रवर्तन।।* (श्रीचैतन्य चरितामृत अन्त्य लीला 7.11) अनुवाद: - कलयुग में मूलभूत धार्मिक प्रणाली कृष्ण के पवित्र नाम का कीर्तन करने की है। कृष्ण द्वारा शक्ति प्राप्त किए बिना संकीर्तन आंदोलन का प्रसार कोई नहीं कर सकता। फिर ऐसे भी कहां चैतन्य चरितामृत में और एक शास्त्र का उल्लेख है और शास्त्र प्रमाण हुआ भागवत प्रमाण हुआ चैतन्य चरितामृत प्रमाण हुआ तो हम जो कहते यह प्रामाणिक बात हुई यह शास्त्रोक्त बात है शास्त्र उक्त शास्त्रोक्त उक्त मतलब कहि हुई यह शास्त्रों की बात है यह कोई मनो धर्म नहीं हैं।यह भागवत धर्म है यज्ञैः सङ्कीर्तनप्रायैर्यजन्ति हि सुमेधसः कलयुग के लोग क्या करते हैं यज्ञ करते हैं और तुरंत ही यज्ञ करते हैं ऐसा कह कर छोड़ नहीं दिया फिर हम लोग कई सारे यज्ञ करना प्रारंभ करेंगे तुरंत उसको नाम दे दिया यज्ञ संकीर्तन प्राय संकीर्तन यज्ञ करेंगे नहीं तो कई सारे यज्ञ चलते रहते हैं। संकीर्तन यज्ञ करने के लिए कहा है और जो संकीर्तन यज्ञ करते हैं उनको यह प्रमाण पत्र भी दे दिया उनको कहा कि वो सब बुद्धिमान है वह लोग जो संकीर्तन यज्ञ करेंगे या इसको पुन्हा भगवत गीता के 10 अध्याय में श्री कृष्ण ने कहा है या इस महामंत्र के साथ महामंत्र का कीर्तन करते हैं और दूसरा जप करते हैं तब भागवत में तो कहा है यज्ञ संकीर्तना प्राय यह संकेत है यह संकीर्तन को यज्ञ कहा है। भगवत गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है BG 10.25 “महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम् | यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः || २५ ||” अनुवाद मैं महर्षियों में भृगु हूँ, वाणी में दिव्य ओंकार हूँ, समस्त यज्ञों में पवित्र नाम का कीर्तन (जप) तथा समस्त अचलों में हिमालय हूँ | यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि सभी यज्ञों में जो जप यज्ञ हैं वो मैं हु विशेष उल्लेख हुआ है लेकिन उसमें से भी जो जप यज्ञ कहा हैं वह जप यज्ञ मैं हू। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे इसका जो जप करते हैं वह जप यज्ञ मै हु ऐसे कहा भगवान ने कहा और एक कृष्ण की ओर से सिक्का हां यही सही बात है संकीर्तन करो संकीर्तन यज्ञ जप यज्ञ दोनों को भी यज्ञ कहां है हम मृदंग करताल के साथ कीर्तन करते हैं नृत्य करते हैं वह भी है यज्ञ और फिर प्रातकाल में हम एकत्रित हो के इस ज़ूम जपा सेशन में हम जो जप करते हैं यह भी यज्ञ है और यह करने वालो को भगवान ने बुद्धिमान कहां है। यज्ञैः सङ्कीर्तनप्रायैर्यजन्ति हि सुमेधसः बुद्धिमान हो वैसे आप सब को प्रमाणपत्र मिलना चाहिए बुद्धिमान लोग यह बुद्धिमान वह बुद्धिमान और अनग मंजिरी बुद्धिमान और हरीहर दास फ्रॉम मॉरीशस पद्ममालि बुद्धिमान उनकी धर्मपत्नी भी बुद्धिमान हां आप लोग बुद्धिमान हो ऐसा भगवान कहते हैं। आपके बारे में अगर आप जप कर रहे हो तो नहीं तो इस संसार में वैसे इंटेलेक्चुअल जीव जिनको बुद्धिजीवी कहते हैं यह अपने बुद्धि का उपयोग अपनी जीविका के लिए करते हैं। बुद्धिजीवी क्या करते हैं अपने बुद्धि का उपयोग जीविका लिए के लिए करते हैं धन कमाने के लिए और फिर बहुत कुछ बकते रहते हैं। फ्रीडम ऑफ स्पीच के नाम से बहुत कुछ लिखते रहते हैं बोलते रहते हैं इमेज मेकर भी कहा जाता है किसी की इमेज बनाते हैं या सरकार की इमेज और हो सकता है कि वह वैदिक जो भी पद्धति है अनुष्ठान है मंत्र तंत्र है शास्त्र है उनके विरोध में क्यों ना बात करते होंगे थोड़ी शराब पीना आपके हॄदय के लिए अच्छा है दूध मत पियो ऐसी भी बकवास करते रहते हैं। तो उसको इंटेलेक्चुअल कहते हैं दूध नहीं पीना दूध हानिकारक है शराब पियो ऐसे कई सारे बकवास बकबक बकासुर के परंपरा के होते हैं। बकासुर बकबक करते रहते हैं और उनको यह संसार में कहा जाता है यह बुद्धिमान है तो वह है बुद्धू और आप हो बुद्धिमान तो उनको प्रमाण पत्र जाना चाहिए यह कम बुद्धिमान है और हरे कृष्ण का जप करने वाले बुद्धिमान है तो भगवान ऐसा प्रमाण पत्र देंगे मैं कौन हूं देने वाला यह कहने वाला इस प्रकार से भी सेटिस्फाइड अपने बुद्धि को भी थोड़ा हरि हरि तो प्रसन्न होके अपना कार्य करते रहना है दुनिया वाले क्या क्या कहते रहते हैं कल एक व्यक्ति ने कहा भागवत पढ़ने की क्या जरूरत है आप धोती क्यों पहनते हो इसकी क्या जरूरत है ऐसी लड़ाई चल रही थी हमारे भक्त बता रहे थे यह करने की क्या जरूरत है ये हरे कृष्ण हरे कृष्ण क्यों करते रहते हैं पागल हो क्या तो भक्तों ने कहा तुम भी पागल हम भी पागल कौन पागल नहीं है कोई कृष्ण के लिए पागल और कोई माया के लिए पागल दोनों में से कोई एक कौन सा पागलपन आप पसंद करोगे पागल तो सभी हैं पागल पागल पागल दुनिया कहते हैं और बुरी दुनिया कहते हैं वैसे श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु भी पागल बने थे पगला बाबा उन्होंने कहा भी और चैतन्य महाप्रभु स्वयं कहते थे जब से मैंने यह हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे जब से मैं इसका जो कर रहा हूं तब से लोग मुझे पागल कह रहे हैं या मैं पागल हो गया हूं वह स्वयं कह रहे हैं कि मैं पागल हो गया हूं। ऐसे पागलपन का स्वागत है आपका स्वागत है अगर आप पागल हुए हो कृष्ण के लिए या कृष्ण के नाम के लिए या कृष्ण के नाम लेते लेते अगर पागल हो रहे हो तो आपका स्वागत है। जप करते जाइए यह कलयुग है कलयुग में जप करना होता है या कीर्तन करना होता है। चैतन्य चरितामृत आदिलीला 17.21 हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम् । कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा ॥२१ ॥ अनुवाद " इस कलियुग में आत्म - साक्षात्कार के लिए भगवान् के पवित्र नाम के कीर्तन , भगवान् के पवित्र नाम के कीर्तन , भगवान् के पवित्र नाम के कीर्तन के अतिरिक्त अन्य कोई उपाय नहीं है , अन्य कोई उपाय नहीं है , अन्य कोई उपाय नहीं है । " कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव तीन बार कहा गया है तब भगवान कर्म से योग से ज्ञान से प्राप्त नहीं होगी एक होता हैं कर्म और कर्मकांड होता है। और ज्ञान से फिर ज्ञानकांड होता है और योग से योग सिद्धियां होती है अष्टसिद्धिया होती हैं तो इसीलिए तीन बार कहा गया है। कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव कर्म से ज्ञान से नही योग से नही हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम् नाम से प्राप्त हो सकते है। और प्रातःकाल का ब्रह्म मुहूर्त भी उचित समय है इस दुनिया में कोई प्रातःकाल में उठना पसंद नहीं करता किंतु यही उचित है यही परंपरा है सृष्टि जब से प्रारंभ हुई है तब से साधक अपनी साधना प्रात:काल में करते हैं यह प्रात:काल सत्व गुण से या सत्व गुण से भरा हुआ होता है दिन में राजसिकता और रात में तामसिक था ऐसा विभाजन भी है इस बात को समझ कर भी हम फायदा उठाते हैं सत्व गुण की प्राधान्यता जब होती है तब हम साधना करते हैं ध्यान धारणा करते हैं जप तप करते हैं यह समय सही है । हरि हरि यह करते रहिए अगर आप जहां से भी हो सभी लोगों के लिए है सभी स्त्री पुरुषों के लिए एक ही धर्म है वैसे कोई स्त्री के लिए अलग से कोई धर्म हो सकता है स्त्री धर्म फिर वर्णाश्रम धर्म ग्रहस्त के लिए कोई विशेष धर्म होता है ब्रह्मचारी का अपना अलग धर्म होता है ब्राह्मण क्षत्रिय इनके लिए कोई अलग धर्म यह अलग-अलग धर्मों के नाम ही है। किंतु एक धर्म सामान्य है इसीलिए कहा भी है। इसी लिए कहा भी है गाय गोरा मधुर स्वरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥धृ॥ गृहे थाको वने थाको, सदा हरि बले डाको, सुखे दुःखे भुल नाको। वदने हरिनाम कर रे॥1॥ अनुवाद:- भगवान गौरांग बहुत ही मधुर स्वर में गाते हैं- हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हरे॥चाहे आप घर में रहे, या वन में रहें, सदा निरन्तर हरि का नाम पुकारें “हरि! हरि!” चाहे आप जीवन की सुखद स्थिति में हों, या आप दुखी हों, हरि के नाम का इस तरह उच्चारण करना मत भूलिए। यह जीवन सुख दुख का मेला है कैसा मिला है यहां यह सुख दुख का मेला है। कभी सुख तो कभी दुख सुखे दुखे भूले नाखो सुख में भी नहीं भूलेंगे तो दुख काहे का होय या दुख है तो फिर इसका भी फायदा उठा सकते हैं दुख में सुमिरन सब करे में सुख में करे न कोय। कोई सुख आ गया तो भूल जाते हैं सुखे दुखे भूले नाको वदने हरिनाम करो रे जीवन होईल शेष ना भजिले ऋषिकेश जीवन तो शेष हो रहा हैं। भागवत ने भी कहा है उदयन हर सूर्योदय और फिर सूर्यास्त के साथ और एक दिन निकल गया हाथ से हमारे सामने ही निकल गया और और एक क्षण भी स्वर्ण कोटिभीही हम कोटि कोटि सुवर्णा भी दे देंगे तो उसमें से बिता हुआ एक क्षण भी हम वापस नही ला सकते। वह चला गया वह चला गया वह हमेशा के लिए चला गया वैसे समय मूल्यवान है। क्योंकि समय भगवान है भगवान के साथ रहो कृष्ण के साथ रहो कृष्ण को पीछे मत छोड़ो जो वैकुंठा जाने वाली फ्लाइट है जो जाती रहती है। उसको पीछे मत छोड़ो जीवन तो शेष हो जाता हैं होता जाता है आलस नही करना सूर्यवंशी आज बड़े उत्साह के साथ उत्साहात निश्चयात धैर्यात, तत तत कर्मप्रवर्तनात। संगत्यागात्सतो वृत्ते:, षड्भिर भक्ति: प्रसिध्यति।। (उपदेशामृत श्लोक ३) यहां प्रसिद्धि की बात नहीं चल रही है। सिद्धि की बात चल रही है प्रसिद्धति वह सिद्ध होगा। उपदेशामृत में श्री रूप गोस्वामी प्रभुपाद हम को समझा रहे हैं। ठीक है स्थिर हो जाओ और आगे बढ़ो और साथ में औरों को भी ले चलो जोत से जोत मिलाते चलो नाम की गंगा कौन सी गंगा प्रेम की गंगा बहाते चलो ऐसा भी कुछ गीत है यह जो प्रेम प्रेम है हरि नाम प्रेम या संकीर्तन गोलोक प्रेमधन हरिनाम संकीर्णतन इसका वितरण करते करते औरों को साथ में लेते हुए आगे बढ़े शुरुआत में तो हम हो सकता है अकेले ही थे धीरे धीरे संख्या बढ़नी चाहिए प्रतिदिन यही हमारा प्रयास होना चाहिए जप करने वाले की कीर्तन करने वाले की संख्या बढे फिर घरवाले हो सकते हैं पड़ोसी हो सकते हैं सगे संबंधी हो सकते हैं आपकी कोई कर्मचारी हो सकते हैं या कोई राजनेता अभीनेता भी हो सकते हैं देख लो किन को किनको साथ मे जोड़ सकते हैं। किन को किन को साथ में जोड़ कर आगे बढ़ो गे भगवत धाम जाना है न हाती है ना घोड़ा है वहां पैदल ही जाना है पदयात्रा करते हुए तो हम थोड़ा प्रयास करेंगे तो भगवान विमान भेज देंगे भगवान देखना चाहते हैं कि हम कितना उथकंटीत है तो वैसे हम एक पग उठाएंगे तो भगवान 1000 पग उठाकर दौड़ कर आते हैं जैसे पांडुरंग आते हैं विठ्ठल तो आला आला मला भेटणन्याला वारकरी गाते हैं और मुझे मिलने के लिए विट्ठल आए तो भगवान अपने नाम के रूप में आही जाते हैं नाम के रूप में आ जाते हैं प्रकट होते हैं अवतार लेते हैं नाम के रूप में आप यह कैसे समझेंगे विठ्ठल तो आला आला मुझे मिलने के लिए विट्ठल आ रहे हैं नाम आ गया नाम लो तो भगवान आ गए नाम भगवान है। आपके घर आ रहे हैं आपके नगर में हर रोज भगवान आ रहे हैं थोड़ा ध्यान पूर्वक जप करो कीर्तन करो और भक्ति के साधन करते रहो तो हम अनुभव करेंगे कि भगवान आए हैं भगवान यही है भगवान यही है ठीक है धन्यवाद अभी 7:30 बज चुके हैं हरे कृष्ण हरि हरो बोल।

English

Russian