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*जप चर्चा* *13 अक्टूबर 2021* *मायापुर धाम से* हरे कृष्ण ! हरे कृष्ण आज 896 भक्त हमारे साथ जपा टॉक में सम्मिलित हैं जिसमें से 50 मायापुर से हैं। इष्ट देव आगे क्या प्रोग्राम है। कल इस समय मैं यह नहीं जानता था कि मुझे किस तरफ जाना है वृंदावन या मायापुर लेकिन अब मैं यहां हूं। मायापुर धाम की जय ! मायापुर धाम इज मर्सीफुल, मायापुर धाम को औदार्य धाम भी कहा जाता है हरि हरि ! हम लोग जप करने वाले लोग हैं या हम लोग कीर्तन करने वाले लोग हैं। हरे कृष्ण पीपल राइट ! हरे कृष्ण पीपल हरे कृष्ण लोग और जूम कॉन्फ्रेंस में भी हम लोग जप या कीर्तन ही करते हैं। अधिकतर तो जप ही करते हैं *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।* जप एंड क्लोज टॉक और जप के साथ-साथ थोड़ा टॉक भी होता है या वॉक द टॉक। हरे कृष्ण महामंत्र का ओरिजन मायापुर धाम में हुआ यह नाम का धाम है। नाम से धाम तक, नाम से धाम तक ,नाम से धाम तक, यह नाम ही हमको यहां तक ले आया है। गौरंगा ! श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु *गोलोकेर प्रेमधन, हरिनाम संकीर्तन, रति ना जन्मिल केने ताय। संसार-विषानले, दिवानिशि हिया ज्वले, जुडाइते ना कैनु उपाय॥2॥* (2) गोलोकधाम का ‘प्रेमधन’ हरिनाम संकीर्तन के रूप में इस संसार में उतरा है, किन्तु फिर भी मुझमें इसके प्रति रति उत्पन्न क्यों नहीं हुई? मेरा हृदय दिन-रात संसाराग्नि में जलता है, और इससे मुक्त होने का कोई उपाय मुझे नहीं सूझता। यह दोनों हैं जहां हम हैं। *परस्तस्मात्तु भावोऽन्योऽव्यक्तोऽव्यक्तात्सनातनः | यः स सर्वेषु भूतेषु नश्यत्सु न विनश्यति ||* (श्रीमद्भगवद्गीता 8.20) अनुवाद- इसके अतिरिक्त एक अन्य अव्यय प्रकृति है, जो शाश्र्वत है और इस व्यक्त तथा अव्यक्त पदार्थ से परे है | यह परा (श्रेष्ठ) और कभी न नाश होने वाली है | जब इस संसार का सब कुछ लय हो जाता है, तब भी उसका नाश नहीं होता | ऊपर भी गोलोक है। उस गोलोक से इस गोलोक तक श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु एक प्रेम धन ले आए । वैसे स्वयं प्रकट होने के पहले ही नाम रूपी धन पहले पहुंचा, हरि से बड़ा हरि का नाम ! हरि से भी अधिक दयालु हरि का नाम, पहले पहुंचा। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु सायँकाल में पहुंचे, चंद्रोदय मायापुर, चंद्रोदय मंदिर की जय हो ! चंद्रोदय होने वाला था उस समय चैतन्य महाप्रभु प्रकट होने वाले थे किंतु उस दिन फाल्गुन पूर्णिमा को जिसका बाद में नाम हुआ है "गौर पूर्णिमा" गौरांग महाप्रभु की पूर्णिमा जैसे अष्टमी का नाम हो चुका है "जन्माष्टमी" अष्टमी कहलाती है श्रीकृष्ण जन्माष्टमी और यह पूर्णिमा कहलाती है गौर पूर्णिमा। पूर्णिमा के दिन में यह हरिनाम पहुंचा, चंद्रग्रहण था असंख्य लोग यहां ना जाने कहां कहां से पहुंचे थे। कोलकाता से पहुंचे होंगे या श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु की अहेतु की कृपा का फल ऐसे लोग वहां पहुंचाए गए थे कि गंगा के तट पर लोग स्नान कर रहे थे। ऐसे लोग जो धार्मिक नहीं थे, जो नास्तिक थे ऐसे लोगों को भी गौरांग ने उस दिन यहां पहुंचाया और सभी लोग उस दिन पुकार रहे थे *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे* "हर हर गंगे" यह भी कहते होंगे कीर्तन करते हुए वे लोग डुबकी लगा रहे थे। टेकन होली डिप हेयर, इस प्रकार दिन में चैतन्य महाप्रभु के स्वयं के प्राकट्य के पहले हरी नाम ने अवतार लिया। *कलि काले नाम रूपे कृष्ण अवतार।नाम हइते हय सर्व जगत निस्तार ।।* (चैतन्य चरितामृत 17.22) अनुवाद:- मनुष्य उसका निश्चित रूप से उद्धार हो जाता है । इस कलियुग में भगवान् के पवित्र नाम अर्थात् हरे कृष्ण महामन्त्र भगवान् कृष्ण का अवतार है । केवल पवित्र नाम के कीर्तन से भगवान् की प्रत्यक्ष संगति कर सकता है । जो कोई भी ऐसा करता है , इस प्रकार गौर पूर्णिमा के दिन दो अवतार हुए जिनमें यह हरि नाम का अवतार हुआ और सांयकाल को चंद्रोदय के समय गौरंगा प्रकट हुए हरि हरि और फिर इस धाम में जो श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के कीर्तन का धाम है औदार्य धाम है। वैसे भी श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु उदार हैं। श्रीकृष्ण से भी अधिक वे उदार बन गए। यह दूसरे कृष्ण हैं। वैसे एक ही हैं लेकिन कहो कि दूसरे कृष्ण, कृष्ण से एक और कृष्ण बने और *नमो महा - वदान्याय कृष्ण - प्रेम - प्रदाय ते । कृष्णाय कृष्ण - चैतन्य - नाम्ने गौर - त्विषे नमः ।।* (चैतन्य चरितामृत 19. 53) अनुवाद " हे परम दयालु अवतार ! आप स्वयं कृष्ण हैं , जो श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के रूप में प्रकट हुए हैं । आपने श्रीमती राधारानी का गौरवर्ण धारण किया है और आप कृष्ण के शुद्ध प्रेम का उदारता से वितरण कर रहे हैं । हम आपको सादर नमस्कार करते हैं । महा - वदान्याय, मतलब दयालु, श्रीकृष्ण दयालु हैं भगवान राम दयालु हैं भगवान दयालु हैं। *अद्वैतमच्युतमनादिमनन्तरूप माद्यं पुराणपुरुषं नवयौवनञ्च । वेदेषु दुर्लभमदुर्लभमात्मभक्ती गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि ॥* (ब्रह्म संहिता 5.33) अनुवाद - जो अद्वैत, अच्युत , अनादि , अनन्तरूप , आद्य , पुराण - पुरुष होकर भी सदैव नवयौवन - सम्पन्न सुन्दर पुरुष हैं , जो वेदोंके भी अगम्य हैं , परन्तु शुद्धप्रेमरूप आत्म - भक्तिके द्वारा सुलभ हैं , ऐसे आदिपुरुष गोविन्द का मैं भजन करता हूँ । अद्वैतमच्युतमनादिमनन्तरूप यह सभी दयालु हैं किंतु श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु कैसे हैं महादयालु हैं। महा - वदान्याय हैं। *श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभु दया करो मोरे* नरोत्तम दास ठाकुर का यह साक्षात्कार है। मुझ पर दया करो, मर्सी अपॉन मी मुझ पर दया करो ! आप चाहते हो दया? आप मांग नहीं रहे दया, दया मांगो ! दया मांगोगे तो नाम मिलेगा तुम बिन के दयालु जगत संसारे, इस संसार में आप जैसा दयालु और कौन हो सकता है? है ही नहीं तो कैसे मिलेगा। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु इस धाम में कीर्तन करते रहे, छोटे बालक ही थे पालने में लेट जाते थे *जय शची नंदन जय शची नंदन, जय शची नंदन गौर हरी नदिया बिहारी गौर हरी शचीमाता प्राण धन गौर हरी* वैसे उन्होंने कीर्तन प्रारंभ किया जब चैतन्य महाप्रभु पालने में थे चैंटिंग हरे कृष्ण मंत्र और वन्स ही क्राय , शचीमाता थिंक्स व्हाट कुद आई डु ? हे राम हे कृष्ण क्या कर सकती हूं। व्हाट शुड आई डू ? स्टार्ट चैंटिंग *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे* तभी बच्चे का रोना स्टॉप हो गया और बच्चा भी हाथ पैर हिलाने लगा ताली बजाता हुआ कीर्तन सुन रहा है कीर्तन कर रहा है। पालने में ही पता चलता है छोटा बालक भविष्य में कौन बनेगा, क्या करेगा जब चैतन्य महाप्रभु भविष्य में क्या करने वाले हैं ? उसका पता चला जब चैतन्य महाप्रभु डोलने लगे कीर्तन के साथ , चैतन्य महाप्रभु की अष्टकालीय लीला कभी वृंदावन में है तो कभी मायापुर में, और महाप्रभु कीर्तन ही कीर्तन करते रहते हैं। वृंदावन में वे रास क्रीड़ा करते हैं और यहां पर, कौन सी क्रीड़ा, संकीर्तन लीला प्रातः काल में ही प्रारंभ करते थे। फिर बगल में ही श्रीवास ठाकुर के आंगन में रात भर यह सारा कीर्तन होता था। कितनी बार बताता हूं श्रीवास आंगन श्रीवासांग नहीं , श्रीवास आंगन, आंगन बंगला में चलता है। यह शब्द आंगन क्रीड़ांगन, कोर्टयार्ड आंगन को कहते हैं। श्रीवास ठाकुर के कोर्ट यार्ड में कीर्तन हो रहा था। श्रीवास आंगन, अंग में नहीं, अंग मतलब पार्ट ऑफ द बॉडी, बॉडी को भी अंग कहते हैं। कितने अंग या अवयव कहते हैं यह अंग है यह कई सारे अंग हैं वैसे श्रीवास ठाकुर के अंग अंग में रोम रोम में हरी नाम तो होता ही होगा किंतु यहां साइन बोर्ड भी लगा हुआ है हम लोग जब जाते हैं, बांग्ला भाषा में अंग्रेजी में हिंदी में वहां लिखा है, आंगन, वहां श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने कीर्तन प्रारंभ किया और एक प्रकार से चैतन्य महाप्रभु का जन्म भूमि तो योग पीठ और श्रीवास ठाकुर का आंगन कर्मभूमि, श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के कर्म, कर्म भगवान के कर्म को एक्टिविटीज को हम लोग कर्म नहीं कहते हैं उनको लीला कहते हैं। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु का कर्मभूमि या लीला भूमि या हेड क्वार्टर कहो वह श्रीवास ठाकुर का आंगन रहा। वहां कीर्तन प्रारंभ हुआ जब श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु गया से लौटे जहां ईश्वर पुरी महाशय से मिले दीक्षा हुई तो श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने वैसे ही कीर्तन प्रारंभ करते ही, ऑन द स्पॉट इंस्टेंटली ही बिकम फुल्ली कृष्ण कॉन्सियस, कृष्ण भावना भावित हुए ओर वृन्दावन की और दौड़ रहे थे, बहुत प्रयास करके उनको रोका गया, नहीं नहीं इस वक्त वृंदावन नहीं चलो मायापुर चलते हैं। मायापुर भी तो वृंदावन ही है मायापुर को गुप्त वृंदावन कहते हैं। वृंदावन भी है गोलोक , मायापुर नवद्वीप भी है गोलोक और शास्त्रों की भाषा में चैतन्य भागवत की भाषा में चैतन्य चरितामृत की भाषा में वृंदावन को गोलोक कहा है और मायापुर को श्वेत दीप भी कहा है या गुप्त वृंदावन कहा है या जहाँ नवदीप भी है लेकिन यह गोलोक के दो विभाग हैं गोलोक के और भी विभाग हैं गोलोक में ही द्वारिका है गोलोक में ही है मथुरा और गोलोक में ही है वृंदावन लेकिन उस वृंदावन में भी एक है वृंदावन और दूसरा है यह नवद्वीप अतः यह दोनों अभिन्न हैं। एक में राधा कृष्ण हैं *राधा कृष्ण - प्रणय - विकृति दिनी शक्तिरस्माद् एकात्मानावपि भुवि पुरा देह - भेदं गतौ तौ । चैतन्याख्यं प्रकटमधुना तद्वयं चैक्यमाप्तं ब - द्युति - सुवलितं नौमि कृष्ण - स्वरूपम् ॥* राधा - भाव -55 अनुवाद " श्रीराधा और कृष्ण के प्रेम - व्यापार भगवान् की अन्तरंगा ह्लादिनी शक्ति की दिव्य अभिव्यक्तियाँ हैं । यद्यपि राधा तथा कृष्ण अपने स्वरूपों में एक हैं, किन्तु उन्होंने अपने आपको शाश्वत रूप से पृथक् कर लिया है । अब ये दोनों दिव्य स्वरूप पुनः श्रीकृष्ण चैतन्य के रूप में संयुक्त हुए हैं । मैं उनको नमस्कार करता हूँ क्योंकि वे स्वयं कृष्ण होकर भी श्रीमती राधारानी के भाव तथा अंगकान्ति को लेकर प्रकट हुए हैं । यह दोनों एक हैं एक हो जाते हैं तब हो गया नवदीप और तद्वयं और जब दो होते हैं तब होता है वृंदावन, कृष्ण दास कविराज गोस्वामी बिल्कुल प्रारंभ में ही हमें समझाते हैं भुवि पुरा या बहुत समय पहले की बात है लेकिन यह पूछना कितने सौ साल पहले की बात है अनादि काल से एक आत्मा है वे दो हो जाते हैं दो हैं तो राधा कृष्ण और एक हैं। *अन्तः कृष्णं बहिरं दर्शिताङ्गादि - वैभवम् । कलौ सङ्कीर्तनाद्यैः स्म कृष्ण - चैतन्यमाश्रिताः ॥* अनुवाद " मैं भगवान् श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु का आश्रय ग्रहण करता हूँ , जो बाहर से गौर वर्ण के हैं , किन्तु भीतर से स्वयं कृष्ण हैं। इस कलियुग में वे भगवान् के पवित्र नाम का संकीर्तन करके अपने विस्तारों अर्थात् अपने अंगों तथा उपागों का प्रदर्शन करते हैं । श्रीकृष्ण चैतन्य जहां दो हैं वहां होती है रास क्रीड़ा और कीर्तन गान भी होता है और जहां *महाप्रभोः कीर्तन-नृत्यगीत वादित्रमाद्यन्-मनसो-रसेन।रोमाञ्च-कम्पाश्रु-तरंग-भाजो वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्॥* अर्थ--श्रीभगवान् के दिव्य नाम का कीर्तन करते हुए, आनन्दविभोर होकर नृत्य करते हुए, गाते हुए तथा वाद्ययन्त्र बजाते हुए, श्रीगुरुदेव सदैव भगवान् श्रीचैतन्य महाप्रभु के संकीर्तन आन्दोलन से हर्षित होते हैं। वे अपने मन में विशुद्ध भक्ति के रसों का आस्वादन कर रहे हैं, अतएव कभी-कभी वे अपनी देह में रोमाञ्च व कम्पन का अनुभव करते हैं तथा उनके नेत्रों में तरंगों के सदृश अश्रुधारा बहती है। ऐसे श्री गुरुदेव के चरणकमलों में मैं सादर वन्दना करता हूँ। यहां महाप्रभु कीर्तन और नृत्य करते हैं *सुन्दर - बाला शचीर - दुलाल नाचत श्रीहरिकीर्तन में । भाले चन्दन तिलक मनोहर अलका शोभे कपोलन में ||* ( सुंदर बाला भजन ) अनुवाद : - श्रीहरि के नाम - कीर्तन पर नृत्य करता यह सुन्दर बालक शचीमाता का दुलारा पुत्र है । उसके कपाल पर चन्दन का मनोहारी तिलक लगा है और उसके घुघराले बालों की लटें उसके गालों पर लटकती हुईं अत्यन्त शोभायमान हैं । *उदिलो अरुण पूरब-भागे द्विजमणि गोरा अमनि जागे भकत समूह लोइया साथे गेला नगर-ब्राजे* *‘ताथै ताथै’ बाजलॊ खोल् घन घन ताहॆ झाजेर रोल् प्रेमे ढलढल सोणार अंग चरणॆ नूपुर बाजे* *मुकुंद माधव यादव हरि बोलेन बोलोरॆ वदन भोरि मिछे निद-बशे गेलो रॆ राति दिवस शरीर साजे* *एमन दुर्लभ मानव देहो पाइया कि कोरो भाव ना केहॊ एबॆ ना भजिलॆ यशोदा सुत चरमॆ पोरिबॆ लाजे* *उदित तपन हॊइलॆ अस्त दिन गॆलो बोलि हॊइबॆ ब्यस्त तबॆ कॆनॊ एबे अलस होय् ना भज हृदॊय राजे* *जीवन अनित्य जानह सार् ताहॆ नाना विध विपद-भार् नामाश्रय कोरि जतनॆ तुमि थाकह आपन काजे* *जीवेर कल्याण साधन काम् जगतॆ आसि’ए मधुर नाम् अविद्या तिमिर तपन रूपॆ हृद् गगनॆ बिराजे* *कृष्ण-नाम-सुधा कोरिया पान् जुड़ाऒ भकति विनोद-प्राण् नाम बिना किछु नाहिकॊ आरॊ चौद्द-भुवन माझे* भगवान की मुरली बन जाती है मृदंग और फिर प्रेमे ढलढल सोणार अंग चरणॆ नूपुर बाजे तो श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु वहां रास क्रीडा हो रही है और गोपियां और सखियां और मंजरियाँ हैं उन्हीं को पुरुष का रूप दिया है। कोई रूपमंजरी तो कोई रति मंजरी बनी है। *वंदे रूप - सनातनौ रघु - युगौ श्री - जीव - गोपालको ।* *नाना - शास्त्र - विचारणैक - निपुणौ सद् - धर्म संस्थापकौ लोकानां हित - कारिणौ त्रि - भुवने मान्यौ शरण्याकरौ राधा - कृष्ण - पदारविंद - भजनानंदेन मत्तालिकौ वंदे रूप - सनातनौ रघु - युगौ श्री - जीव - गोपालकौ।।* (श्री श्री षड् गोस्वामी अष्टक) अनुवाद : - मै , श्रीरुप सनातन आदि उन छ : गोस्वामियो की वंदना करता हूँ की , जो अनेक शास्त्रो के गूढ तात्पर्य विचार करने मे परमनिपुण थे , भक्तीरुप परंधर्म के संस्थापक थे , जनमात्र के परम हितैषी थे , तीनो लोकों में माननीय थे , श्रृंगारवत्सल थे , एवं श्रीराधाकृष्ण के पदारविंद के भजनरुप आनंद से मतमधूप के समान थे । यह सभी मंजरिया हैं हरि हरि ! कौन-कौन हैं ? आपको पढ़ना पड़ेगा गौर गणों देश दीपिका में इसका उद्घाटन किया है अर्थात जो वृंदावन में है वह मायापुर में भी है भूमिका अलग अलग है या फिर वह भी है नंदनंदन होय सचिनंदन, बलराम होइले निताई शची माता और इस तरह यहां तक कि कंस मामा भी पहुंच गए, कौन बन गए चांद काजी, इस प्रकार हम समझते हैं नॉन डिफरेंट या वहां का यह द्वीप बेलवन वृन्दावन का भी का भी बेलवन ही है। यहां भी राधा कुंड है और वहां भी राधाकुंड है वहां की जमुना भी यहां है। यहां गंगा और जमुना दोनों साथ में रहती हैं चैतन्य महाप्रभु संन्यास के बाद जब शांतिपुर में पहुंच गए तब उन्होंने नदी को देखा और कहा जमुना मैया की जय! ऐसा कह के श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु नदी में कूद पड़े , नित्यानंद प्रभु से पूछा वृंदावन जाना चाहता हूं, आप पहुंच गए नित्यानंद प्रभु ? देखो मैं पहुंच गया फिर यह नदी जमुना होनी चाहिए और जमुना है। यहां श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु कीर्तन करते रहते हैं सदैव हरि हरि ! कीर्तन करवा के फिर हमको वृंदावन पहुंचा देते हैं। यहां पर मायापुर में वे औदार्य बनते हैं। यहाँ थोड़ा डेमोंसट्रेशन हो गया श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के समय वह जो संसार भर में पापी तापी है उसमें से जगाई मधाई का उद्धार करके दिखाया जैसे अर्जुन को भगवत गीता सुनाई ,सुनने के उपरांत क्या हुआ अर्जुन ने क्या कहा - “अर्जुन उवाच | *नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत | स्थितोऽस्मि गतसन्देहः करिष्ये वचनं तव ||* (श्रीमद्भगवद्गीता 18.73) अनुवाद- अर्जुन ने कहा – हे कृष्ण, हे अच्युत! अब मेरा मोह दूर हो गया | आपके अनुग्रह से मुझे मेरी स्मरण शक्ति वापस मिल गई | अब मैं संशयरहित तथा दृढ़ हूँ और आपके आदेशानुसार कर्म करने के लिए उद्यत हूँ | भगवत गीता अर्जुन को सुना कर, पहले अर्जुन ऐसे थे *कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः | यच्छ्रेयः स्यान्निश्र्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् ||* ( श्रीमद भगवद्गीता 2.7) अनुवाद- अब मैं अपनी कृपण-दुर्बलता के कारण अपना कर्तव्य भूल गया हूँ और सारा धैर्य खो चूका हूँ | ऐसी अवस्था में मैं आपसे पूछ रहा हूँ कि जो मेरे लिए श्रेयस्कर हो उसे निश्चित रूप से बताएँ | अब मैं आपका शिष्य हूँ और शरणागत हूँ | कृप्या मुझे उपदेश दें | मैं तो सम्ब्रह्मित हो रहा हूं डामाडोल हो रहा हूं। ऐसे अर्जुन ने जब गीता सुनी तब क्या कहा स्थितोस्मि, स्थिर हो गया। ऐसा ही डेमोंसट्रेशन श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने भगवत गीता सुना के लोग भगवत गीता सुनेंगे उन सभी पर ऐसा ही परिणाम होगा ऐसा ही श्रुति फल होगा। जैसे भगवान ने कहा करिष्ये वचनं वैसा ही। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने इस धाम में यहां हरि नाम का प्रभाव दिखा दिया हरि नाम का महत्व हरि नाम की महात्म्य , हरि नाम की शक्ति, अतः जगाई मधाई का उद्धार हो सकता है हरी नाम से तो फिर और सभी का भी हो सकता है। क्योंकि जगाई और मधाई मैचलेस पापी तापी, उनकी बराबरी करने वाला कोई था ही नहीं। *मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय | मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव ||* (श्रीमद भगवद्गीता 7.7) अनुवाद- हे धनञ्जय! मुझसे श्रेष्ठ कोई सत्य नहीं है | जिस प्रकार मोती धागे में गुँथे रहते हैं, उसी प्रकार सब कुछ मुझ पर ही आश्रित है | उनके जैसा पापी या उनसे ज्यादा और बढ़िया पापी वह पापीयन में नामी थे पापियों में उनका नाम था इसीलिए भी हरिदास ठाकुर और नित्यानंद प्रभु इसका प्रयोग करते हैं। इस हरि नाम का, यह सुधरेंगे तो हमारे महा प्रभु का नाम होगा प्रसिद्धि होगी और श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने अपनी लीला में दिखा दिया फिर श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने कहा *पृथ्वीते अछे यता नगरदि ग्राम सर्वत्र प्रचार हैबे मोर नाम* मेरे नाम का होगा प्रचार होगा और आपका नाम क्या है *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे* मतलब मैं केवल कृष्ण नहीं हूं मैं राधा भी हूं इसलिए मेरा नाम "हरे कृष्ण" है मेरे नाम का प्रचार होगा मतलब हरे कृष्ण हरे कृष्ण का प्रचार होगा सर्वत्र पृथ्वी पर प्रचार होगा मेरे नाम का , श्रील प्रभुपाद ने चैतन्य महाप्रभु की भविष्यवाणी को सच करके दिखाया कोई उड़ीसा से है तो कोई महाराष्ट्र से है कोई कहां-कहां से और कोई देश, यह कर्नाटक से है वर्मा से हो कहां से हो? कोलकाता से हो, माता जी चाइना से हो हरि बोल ! ब्राजील रशिया से है यह प्रूफ है। आप कहां से कहां तक आ गए हैं। नाम से धाम तक, आपने नाम लिया आप जहां जहां से भी हो और यू आर कम बैक होम। आप भगवाद धाम लौटे अर्थात जो कहा था श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने वैसा ही हो रहा है और वैसा ही होता है जो ख़ुदा मंजूर होता है। खुदा श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ही है हरि हरि ! जप और कीर्तन करते जाइए और इसका प्रचार बताइए , नित्यानंद प्रभु की ड्यूटी लगाई तुम यहां क्या कर रहे हो जगन्नाथपुरी में ? प्रभुपाद के कमरे में भी यदि कोई बेकार का व्यक्ति आकर बैठ जाता था तो कहते थे गेट आउट गो एंड डू समथिंग प्रैक्टिकल, मैं दर्शन करना चाहता हूं और आपका संग चाहता हूं, तब नॉट ओनली सेंटीमेंट कुछ प्रैक्टिकल करके दिखाओ, चैतन्य महाप्रभु ने नित्यानंद प्रभु को बंगाल भेजा वहां का जीबीसी बनाया प्रचार ,महाप्रभु ने दिया प्रदेश, यहां प्रचार करो और फिर एक समय नित्यानंद प्रभु के प्रीचिंग पार्टनर कौन थे हरिदास ठाकुर , प्रीचिंग पार्टनर या कम से कम दो होने चाहिए श्रील प्रभुपाद ने हमको भी जब हम मुंबई में प्रचार करते थे तब किसी अकेले को नहीं जाने देते थे। हैव सम वन विद यू, और एक भक्त चाहिए इन दोनों ने टीम बनाई नित्यानंद प्रभु ने और नाम आचार्य श्रील हरिदास ठाकुर ने , हरिदास ब्रह्मा और नित्यानंद बलराम, ब्रह्मा और बलराम की टीम हो गई और ऐसा जबरदस्त प्रचार किया उनका आदेश भी था प्रति घरे गिया, हर घर में जाओ और क्या करो आमार आज्ञा प्रकाश हमारी आज्ञा का प्रकाश करो, बोलो कृष्ण भजो कृष्ण करो कृष्ण शिक्षा यह आदेश चैतन्य महाप्रभु ने हम सब को दिया है। माय आर्डर हमार आज्ञा *यारे देख , तारे कह ' कृष्ण ' - उपदेश । आमार आज्ञाय गुरु हञा तार ' एइ देश ॥* चैतन्य चरितामृत अनुवाद:- " हर एक को उपदेश दो कि वह भगवद्गीता तथा श्रीमद्भागवत में दिये गये भगवान् श्रीकृष्ण के आदेशों का पालन करे । इस तरह गुरु बनो और इस देश के हर व्यक्ति का उद्धार करने का प्रयास करो । " जो भी आपको प्राप्त हुआ है कृष्ण प्राप्ति हुई, जहां हरि नाम प्राप्ति या गीता भागवत ग्रंथ प्राप्ति हुई है या प्रसाद प्राप्त हो रहा है या धाम यात्रा में आप जाते हो यह सब शेयर करो, दुनिया के साथ औरों के साथ महाप्रभु का आदेश है। इट्स ऑर्डर हरी हरी! अद्वैत आचार्य ने देखा था उस समय की दुनिया या बंगाल, उड़ीसा , क्या देखा? *यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत | अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ||* (श्रीमद भगवद्गीता 4.7) अनुवाद- हे भरतवंशी! जब भी और जहाँ भी धर्म का पतन होता है और अधर्म की प्रधानता होने लगती है, तब तब मैं अवतार लेता हूँ | धर्म की ग्लानि हुई है। भगवान के प्राकट्य का समय हुआ है। भगवान अनिवार्य है इज़ मोस्ट एसेंशियल, संसार को क्या चाहिए ? कृष्ण चाहिए। संसार को शराब नहीं चाहिए, लॉकडाउन के समय सारी दुकानें लॉक थी लेकिन सरकार ने शराब की दुकानें खोल दी, लोग सोच रहे थे जीना तो क्या जीना शराब के बिना, अतः दुकानें खोल दी कितनी सारी भीड़ वहां इकट्ठे हो रही थी मारामारी धक्का-मुक्की चल रही थी। सरकार ने कहा आप घर में रहो, नहीं! नहीं !आप घर में रहो, शराब की होम डिलीवरी होगी, मतलब यह सारा कलयुग है। जैसे अद्वैत आचार्य ने देखा संसार का अवलोकन किया थोड़ा नाड़ी परीक्षा हुई, डायग्नोसिस, प्रिसक्रिप्शन क्या था? संसार को क्या चाहिए ? भगवान चाहिए। इस संसार को चाहिए कृष्ण नाम तो महाप्रभु को पुकारा और महाप्रभु चले आए। अभी स्थिति वैसी ही है थोड़ा हम लोग सुधरे हैं वरना अधिकतर, इतनी दुर्गा पूजा और क्या-क्या सो मच टू मच, थोड़ा ठीक है लेकिन हरि नाम चाहिए। संसार को कृष्ण चाहिए। संसार को श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु चाहिए। तो दे दो संसार को कृष्ण, श्री कृष्ण चैतन्य ठीक है। मैं अब यही विराम देता हूं पुनः मिलेंगे। गौर प्रेमानंदे ! हरि हरि बोल!

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