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9th सितंबर 2019 हरे कृष्ण! अभी हम जप के विषय में कुछ कहेंगे अर्थात चर्चा करेंगे। क्या आप सभी तैयार हैं? आज हम आपके साथ जप करके अत्यंत प्रसन्न हैं अथवा यह भी हो सकता है कि आप सभी भी हमारे साथ जप करके अत्यंत प्रसन्न हो। हरे कृष्ण का जप कीजिए और प्रसन्न रहिए। इसलिए आप सदैव जप करते रहिए। आप जितना अधिक मात्रा में जप करेंगे उतनी ही अधिक मात्रा में आपको प्रसन्नता मिलेगी अर्थात आप जितना अधिक गुणवत्ता पूर्वक जप करेंगे उतनी अधिक प्रसन्नता आपको मिलेगी। इस जपा कॉन्फ्रेंस का उद्देश्य यही है कि आप ध्यानपूर्वक जप करें। हम इस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से एक साथ में जप करते हैं और हम एक साथ जप करके अपनी जप की गुणवत्ता को सुधारना चाहते हैं अर्थात हम अपने जप को बेहतर बनाना चाहते हैं। हमें इस कॉन्फ्रेंस से जप में सुधार करने के लिए कुछ टिप्स मिलते हैं अथवा कुछ बातें बताई जाती हैं कि किस प्रकार हम अपना जप सुधार सकते हैं। हम इस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से भक्तों के संग में जप करते हैं अर्थात उस समय हम अकेले नहीं होते हैं। जप को सुधारने के लिए विशेष रूप से भक्तों के संग में जप करना हमारे लिए लाभदायक है। इसलिए जब हम भक्तों के संग में जप करते हैं तो धीरे धीरे हमारे जप की गुणवत्ता में सुधार होता है। हम इस कॉन्फ्रेंस में जप करने वाले अकेले ही नहीं होते। हमारे साथ में जप करने वाले अन्य भी कई भक्त होते हैं और जब हमें यह पता चलता है कि कई भक्त इस समय जप कर रहे हैं,मैं अकेला ही जप नहीं कर रहा हूँ, आपको यह लगता है कि मैं अकेला ही मूर्ख नहीं हूं जो जप कर रहा हूँ, ऐसे अन्य कई भक्त हैं जो जप करते हैं। यदि इस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से आप जप करते हो तब आप इतने अधिक भक्तों को जप करते हुए देखते हो, तब आपका मन आश्वस्त हो जाता है और वह यह समझता है कि जप करना सबसे उत्कृष्ट कार्य है। यदि कुछ सर्वोत्तम कार्य है तो वह है सदैव जप करना। ऐसा नहीं है कि आप खड़े अथवा चल कर जप नहीं कर सकते। आप ऐसा अवश्य ही कर सकते हैं और कई बार कई भक्त ऐसा करते भी हैं परंतु यह सर्वश्रेष्ठ नहीं है। सर्वश्रेष्ठ और आदर्श स्थिति वही है जब आप एक स्थान पर बैठ कर ध्यानपूर्वक जप करते हो। जब हमारा शरीर चलायमान होता है, उस समय हमारा मन भी चलायमान हो जाता है। हम इस बारे में अधिक विस्तार से नहीं बताएंगे। आप स्वयं यह समझ सकते हैं कि जब हमारा शरीर चलता है तो हमारा मन भी उसके साथ में विचरण करता है अथवा मन भी उस समय चलायमान होता है। आप इस प्रकार से समझ सकते हैं कि जब यह शरीर चलता है, उस समय हम विभिन्न प्रकार के चीजों रूप, गंध, स्पर्श, ध्वनि आदि के सम्पर्क में आते हैं। यदि हमारा शरीर चलता है, उस समय, हमारा शरीर इन्द्रियों से सुसज्जित होता है अर्थात जब यह शरीर चलायमान होता है। हमारे शरीर की इंद्रियां, भोग की वस्तुओं से आकर्षित होने लगती है। जब इंद्रियाँ उन भोग की वस्तुओं से आकर्षित होती हैं तो वे उनका सम्पर्क करना चाहती है , उनका सम्पर्क कर उनका भोग करना चाहती है। इस प्रकार से इंद्रियाँ इस संदेश को हमारे मन तक पहुँचाती है। मन: षष्ठानीन्द्रियाणि मन इन सभी इन्द्रियों को नियंत्रण में रखता है और सभी इंद्रियां मन को रिपोर्ट करती हैं। इंद्रियां मन को बताती हैं कि यह एक भोग की वस्तु है और मैं इसका सम्पर्क करना चाहती हूँ। इस प्रकार से मन फिर इस पर विचार करता है। यदि हमारा शरीर चलायमान होता है तो हमारा मन भी उसके साथ साथ में विचरण करता है, और इन इंद्रिय भोग की वस्तुएँ देखकर सर्वप्रथम मन इन पर विचार करता है। विचार के पश्चात वह अनुभव करने लगता है अर्थात यह किस प्रकार का भोग होगा या मैं इसको देखूंगा। इस प्रकार से वह फीलिंग(अनुभूति) करने लगता है। सबसे पहले वह थिंकिंग (सोच-विचार) करता है। फिर फीलिंग (अनुभूति) होती है। और अंत में willing (इच्छा) अर्थात वह उस वस्तु को प्राप्त करने की इच्छा से फिर कार्य करने लगता है। इस प्रकार से शरीर के साथ साथ मन भी उस वस्तु का उपभोग करने के लिए थिंकिंग, फीलिंग, और् विल्लिंग करने लगता है। यदि आप नींद में हैं, तो आपको नींद को दूर भगाने के लिए खड़ा होना चाहिए। यदि जप करते समय आपको नींद आ रही है तो आप खड़े हो सकते हैं अथवा आप थोड़ा आगे पीछे टहल कर अपना जप कर सकते हैं। निद्रा तमोगुण का प्रभाव है, खड़े होना रजो गुण है और एक स्थान पर बैठना सतोगुण है और खड़े हो कर इधर उधर भागना रजोगुण है और सो जाना और नींद लेना तमोगुण है। जप करना सतोगुण है। आपको जप के समय विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए कि आप सोए नहीं। यदि आप जप करते समय सो जाते हैं तो आप तमोगुण में होते हैं। यदि आप अपने पड़ोसी से कह सकते हैं, "यदि मैं सो जाऊं तो कृपया मुझे जगा दे'। फिर भी यदि आपको ज़्यादा नींद आ रही हो तब आप उठ कर अपना मुंह धो सकते हो और शरीर के मस्तिष्क के ललाट के दोनों तरफ के हिस्सों को धो सकते है। उस पर आप बर्फ भी लगा सकते हैं जिससे कि नींद ना आए। यदि आपके आस पास की वस्तुएँ बदल नहीं रही है, वह स्थिर है। यह आपके ध्यानपूर्वक जप करने में सहायक हो सकती हैं। यह भी अच्छा है कि आप हर दिन एक ही स्थान पर बैठकर जप करें। यदि आप प्रत्येक दिन एक सुनिश्चित समय पर सुनिश्चित स्थान पर बैठकर जप करेंगे तो आप ध्यानपूर्वक जप कर पाएंगे। इसलिए हम कहते हैं कि आप प्रत्येक दिन आप एक सुनिश्चित समय व स्थान पर बैठकर जप कीजिए और वह निश्चित समय सुबह का समय होना चाहिए। प्रातःकाल का समय सतोगुण, दिन का समय रजोगुण और रात्रि का समय तमोगुण का होता है। इसलिए यदि आप अपना जप प्रातःकाल के समय करते हैं, आपका जप सतोगुण में होता है और दिन में किया गया जप रजोगुणी एवं रात्रि में जप करना तमोगुणी जप कहलाता है। ग्रामीण क्षेत्र , प्रकृति के निकट होने के कारण वहां सतोगुण होता है। महानगरों में निवास करना रजोगुण हैं। अंधकारमय स्थान या अत्यंत दुर्गंधयुक्त क्षेत्र में रहना तमोगुण कहलाता है परंतु जब आप धाम में जप करते हैं तब आप तीनों गुणों से परे हो जाते हैं। आप इन तीनों गुणों से ऊपर उठ जाते हैं। एक प्रकार से यदि आप चाहे,आप किसी भी स्थान पर हो, आप उस स्थान को गोलोक या वैकुण्ठ बना सकते हो। आप अपने घर को धाम बना सकते हो। यदि आपके घर में भगवान के श्री विग्रह हैं अथवा आपके घर की दीवारों पर भगवान, भगवान की लीला करती हुई या भगवान के भक्तों की तस्वीरें लगी हुई हो या आपके घर के आंगन में तुलसी और गाय बंधी हुई हो और यदि आपके घर में प्रभुपाद जी की पुस्तकें हैं तो आपका घर धाम से कम नही है। इस प्रकार कई ऐसे भक्त हैं जिन्होंने जप करके अपने घर को धाम बना लिया है और वे प्रतिदिन उस धाम में जप करते हैं। ऐसा कहते हैं कि आप धाम में जप करके भगवान का अधिक मात्रा में संग कर सकते हो। अतःआप अपने घर को धाम बना कर भगवान का अधिक मात्रा में संग लीजिए। इससे आगे की जप चर्चा कल पुनः भारतीय समयानुसार प्रातः ६.०० बजे आरंभ होगी । हरे कृष्ण!

English

JAPA-TALK/ 9TH SEPTEMBER (Part 1) RIGHT CIRCUMSTANCES WHILE CHANTING. We are going to say a few words about chanting. You can come forward as we don't have a microphone system. We are happy to chant with you this morning. I don’t know whether you are happy to chant with us. You are. Okay, so chant Hare Krishna and be happy. Keep chanting. The more we chant, the more we become happy and the better we chant. This japa conference is aimed at bettering your chanting. Let us chant together and let us chant better. Now let us improve our chanting. We take more lessons in chanting. We want to get some tips and hints to improve our chanting. Chanting in the association of other devotees in itself is an improvement point and this is an additional point to improve our chanting. You know when we are chanting on this conference, you are not the only one. There are others who are also chanting and then you are kind of convinced that this must be the right thing to do. I am not the only fool chanting this Hare Krishna Hare Krishna. In that way our mind gets convinced that to chant Hare Krishna must be the right thing to do. I was going to make some correlations. Anyway let’s make some observations. It is not that you cannot chant when you are standing or walking. You could and sometimes you have to chant while walking or standing, but the ideal situation or the right thing to do is to sit and chant. When our bodies move, our minds also move. We will not elaborate on this, but try to understand and accept the point that when the body moves, the mind also moves. When a body moves it comes across more objects. We encounter more forms, more sounds, more different kinds of smells, more different things to touch. When the body moves it is equipped with the senses and they are the openings to our body, our existence to perceive, to know, to understand and to evaluate the things around. When we move or change the situation or circumstances around us then immediately the senses come in contact with different objects of the senses and all the senses feed the mind - manaha sasthani indriyani. All the senses are wired or connected to the mind. They kind of report to the mind and in agitation the mind will be thinking and from thinking comes feeling, and from feeling comes willing to do this or to do that, to eat or to smell or touch. If you are sleepy, you have to stand up to drive away the sleep. While chanting if you are feeling sleepy then stand up and pace back and forth, walk a little bit. Sleeping is ignorance. Passion comes when you are growing above the ignorance. Standing, running or going around is passion while sleeping is ignorance. Understand these different positions. Sleeping is ignorance, sitting is goodness, goodness is sitting, standing up or moving around is passion. Go to the higher channel from a sleepy, ignorant state, stand up and arrive at a little passion. We have to transcended ignorance. Then you could sit again which is in goodness and chant. That’s how work it out. We should not sleep. The moment that you are feeling sleepy, you could tell your neighbour ‘Please wake me up if I am sleeping’. Try to wash your face especially the part here around the temples. Cool it down. Put some ice there. When we are sitting and chanting then that situation is kind of steady. Things around you are not changing. Objects are fixed and steady. You don’t have to think conditionally. It is also best that you chant in the same place every day. Then you don’t have to think more about the place. It is not a new place. You know all about it so there is no additional thought. We could chant at the same time everyday. We will have the advantage of the morning time as morning time is the best time. In the morning goodness is predominant. Day time is passion, night time is ignorance. Country side is goodness. The natural setting is goodness while living in cities is passion and residing in dirty, smelly places, dark, not well lit etc is ignorance. So if you are chanting the holy name select a situation where ignorance, passion goes away and goodness stays. Or you could create a dhama-like situation wherever you are in your home. You can make into Vaikuntha or Golok. There are Deities at home. Have the photographs on the wall of the Deities and the devotees, the pastimes of the Lord. A cow in the courtyard or Tulasi next to you in a room, big piles of Prabhupad books. That makes your home into Vaikuntha or a holy place. There are some devotees also chanting to create Vaikuntha or Dhama-like situation. You could sit chanting in this dhama and you will have greater access to the Lord.

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