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10 सितंबर 2019 जप चर्चा आज की जप चर्चा कल की जप चर्चा के आगे का भाग है कल गुरु महाराज जी बता रहे थे कि किस प्रकार से यदि हम जप करते हुए इधर-उधर चलते हैं तो शरीर के साथ-साथ हमारा मन भी उस समय चलता है और मन इधर-उधर भटकता है। वो बता रहे थे कि यदि आप चलते हुए जप करते हैं वह तमोगुण है, आप खड़े होकर के जप करते हैं वह रजोगुण है और यदि आप एक स्थान पर बैठकर जप करते हो तो वह सतोगुण है। इसके साथ ही साथ गुरु महाराज जी बता रहे थे कि किस प्रकार हम हमारे घर को धाम बना सकते हैं यदि वहां पर भगवान के श्री विग्रह हो ,वहां तुलसी हो, हमारे घर में भगवान की तस्वीर हो और यदि हम वहां पर प्रतिदिन हरिनाम का जप करें। इस प्रकार से हमारा घर धाम में परिवर्तित हो सकता है और हमें प्रतिदिन धाम में जप करने का लाभ प्राप्त होता है। आज की जपा टॉक वहां से आगे कि इस प्रकार आप प्रात: काल के समय जप करके इस हरिनाम का अधिक मात्रा में लाभ ले सकते हैं क्योंकि प्रातः काल में सतोगुण प्रभावी होता है , दिन के समय रजोगुण प्रभावी होता है और रात्रि के समय में तमोगुण प्रभावी होता है। इसके साथ ही साथ यदि हम देखें तो यदि ग्रामीण क्षेत्र है वहां पर प्राकृतिक वातावरण है वह सतोगुण है, जो महानगर है वहां रजोगुण है और जो दुर्गंध युक्त अथवा अंधकारमय स्थान है वहां पर तमोगुण है। यदि हम वहां रहते हैं तो वह तमोगुण है उस समय जप करने के लिए एक प्रकार से सतोगुण में स्थित होना चाहिए परंतु यदि हम धाम में जप करते हैं तो धाम इन तीनों गुणों से परे है तो आप अपने घरों को भी धाम बना सकते हैं। यदि आपके घर में भगवान के श्री विग्रह हैं, यदि आपके घर की दीवारों पर भगवान की, उनके भक्तों की ,उनकी लीलाओं की तस्वीरें है यदि आपके घर के आंगन में गाय बंधी हुई है अथवा आप जप कर रहे हैं वहां समीप में तुलसी महारानी है या आपके घर में भक्त हैं जो जप कर रहे हैं यदि यह सब हो रहा है आपका घर वास्तव में धाम है। और धाम में जप करने का फल प्राप्त होता है और ऐसा कहते हैं कि हम धाम में जप करते हैं और धाम में जप करने का फल प्राप्त होता है। हमारे पास एक उत्तम अवसर होता है भगवान के साथ डील करने का हम भगवान को आसानी से समझ सकते हैं। इस प्रकार यदि आपका घर धाम में परिवर्तित हो चुका है, भगवान को प्रतिदिन आसानी से समझ सकते हैं। जिस प्रकार से भगवान जहां रहते हैं और आप वहां जप करते हैं आप आसानी से भगवान के निकट रह सकते हैं। जहां भगवान का धाम है यदि आप वहां पर जप करते हैं आप भगवान के निकट हैं जब हम हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। इस महामंत्र का जप करते हैं हम वास्तव में भगवान का नंबर मिलाते हैं, जिस प्रकार हम टेलीफोन में नंबर मिलाते हैं उसी प्रकार ही है भगवान का नम्बर जो कि 16 अंकों का है जब आप धाम में बैठकर जप करते हैं तो इसका अर्थ है कि आप एक लोकल कॉल कर रहे हैं। आप उसी क्षेत्र में हैं आप वहीं से एक कॉल लगा रहे हैं तो प्रकार की कॉल होती है। एक होती है लोकल कॉल जो कि आप उसी क्षेत्र से अपने ही क्षेत्र में लगाते हैं, और दूसरी होती है long-distance कॉल जहां पर आप कहीं दूर विदेश में, दूसरे देश में कंही कॉल लगा रहे हैं। सामान्यता दूर की काॅल में आवाज ठीक से नहीं आती है और जबकि लोकल कॉल उसकी अपेक्षा बहुत अधिक क्लियर होती है । अभी तो फोन में सुधार हो रहा है तो पहले कई बार 30- 40 वर्ष पूर्व जो long-distance कॉल होती थी उसमें कुछ सुनाई नहीं देता था वहां जोर-जोर से चिल्लाते थे आप जोर से बोलिए-आप जोर से बोलिए। इसी प्रकार से जब हम धाम में रहकर कॉल करते हैं भगवान को, तो वह अत्यंत ही क्लियर होती है साथ ही साथ जो long-distance कॉल है वह महंगी होती है और लोकल कॉल उसकी अपेक्षा सस्ती होती है और क्लियर होती है। इस प्रकार हम यह बताना चाह रहे हैं कि धाम में रहना अथवा धाम के समान वातावरण बनाकर उसमें जप करने से हमारे जप कि गुणवत्ता में सुधार होता है। यदि आप सभी का वातावरण धाम के समान है तो आप सभी ध्यान पूर्वक जप कर पाएंगे और हम जो जप करेंगे उसे सुन पाएंगे। तो मन की ऐसी स्थिति होनी चाहिए जहां मन फ्री हो जहां मन पहले से अन्य विचारों से मुक्त हो, यदि ऐसा है तो आप ध्यान पूर्वक जप कर पाएंगे अन्यथा क्या होगा कि हमारा मन कई सारे विचारों से पहले से ही भरा हुआ है तो उसमें और कई नए विचार आएंगे और आप ध्यान पूर्वक जप नहीं कर पाएंगे। जब आप जप करने लगेंगे तो वे नए विचार पुनः आपके मन में उत्पन्न होंगे। इस प्रकार से हमें इस हरिनाम का श्रवण करना चाहिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है, कई बार हमने देखा है कि कई भक्त मानसिक जप करते हैं, हरे कृष्ण महामंत्र का मानसिक जप करना, इसकी अनुमति नहीं है आपको हरे कृष्ण महामंत्र को स्पष्ट रूप से बोलना चाहिए। इस प्रकार कई भक्त मन में जप करते हैं जैसे कि जो ब्राह्मण दीक्षित भक्त हैं वह जब गायत्री का जप करते हैं, वे अपनी गायत्री मन में करते हैं, वे बोलते नहीं हैं उस जप को, उसकी परमिशन है क्योंकि आप गायत्री मंत्र का जप मन में करते हुए उसके अर्थ का मनन कर सकते हैं। परंतु हरे कृष्ण महामंत्र का जप स्पष्ट रूप से होना चाहिए वहां पर श्रवण और कीर्तन होना चाहिए, उसके पश्चात विष्णु स्मरण हो सकता है, हमें ध्यान पूर्वक इस हरे कृष्ण महामंत्र को सुनना चाहिए। यदि हम जप नहीं करेंगे और स्पष्ट रूप से उच्चारण नहीं करेंगे तो श्रवण नहीं हो सकता है। श्रवण के लिए सर्वप्रथम कीर्तन होना चाहिए जहां हम स्पष्ट रूप से इस महामंत्र को कहें प्रभुपाद जी कहते थे कि जप करते समय आपकी जिव्हा में वाइब्रेशन होना चाहिए, वहां कंपन होना चाहिए अपने होठों का हमें प्रयोग करना चाहिए जब हम हरे कृष्ण महामंत्र बोलते हैं तो ऐसा ना हो कि आप केवल होंठ हिलाकर, परंतु आपके होंठ तो हिलते हैं परंतु मुंह से आवाज नहीं निकलती है। इस प्रकार का जप नहीं करना चाहिए यदि आपका जप स्पष्ट नहीं होगा, क्लियर नहीं होगा आप उसका श्रवण नहीं कर पाएंगे और यदि आप हरे कृष्ण महामंत्र का श्रवण नहीं करेंगे तो और ही किसी बाहरी आवाज़ का श्रवण करेंगे। हमारे आस पास कई प्रकार की ध्वनि तरंगे होती हैं तो हम हरे कृष्ण महामंत्र की ध्वनि नहीं सुनेंगे, किसी बाहरी ध्वनि को ही सुनेंगे। यदि हम मन में जप करेंगे तो हमारे कान इधर-उधर की आवाज सुनेंगे। जप करते समय हमें विशेष रूप से यह ध्यान रखना चाहिए कि हम किसी बाहरी आवाज को ना सुने, और हम केवल हरे कृष्ण महामंत्र की ध्वनि स्पष्ट रूप से सुने, तो उसमें हमें अपनी जीभ का प्रयोग करना चाहिए। मतलब स्पष्ट रूप से हमें हरे कृष्ण महामंत्र का उच्चारण करना चाहिए जिससे हमारे कान उस उच्चारण का स्पष्ट रूप से श्रवण कर सके। इस प्रकार से बाहर बहुत सारी आवाज होती है, कई प्रकार की ध्वनियां होती हैं जो आपके ऊपर थोप दी जाती हैं और हम उसे सुनने के लिए बाध्य हो जाते हैं। परंतु हम यह दृढ़ निश्चय कर ले कि मैं केवल हरे कृष्ण महामंत्र की ध्वनि को ही सुनूंगा और कुछ भी नहीं सुनूंगा। यदि हम बाहर की आवाज नहीं सुनेंगे तो कई बार ऐसा भी होता है कि हमारे मन में भी कई प्रकार की ध्वनियां उत्पन्न होती हैं, कई प्रकार की आवाज होती है तो हमारा मन अस्थिर होता है, वह कई प्रकार के विचारों को उत्पन्न करता है और यह विचार एक प्रकार की ध्वनि होती है। मन सोचता है कि कल क्या हुआ था उसने मेरे साथ में ऐसा किया था तो इस प्रकार से यह सभी विचार हमारे मन में उठते रहते हैं और वह भी एक प्रकार से ध्वनियां ही हैं, आवाज है जिसका हम श्रवण करते हैं हमें ध्यान रखना चाहिए कि जप करते समय हम कृष्ण विहीन ध्वनि को ना सुने। हमें हमारे मन की आवाज को भी नहीं सुनना चाहिए यदि वह कृष्णमय ना हो, और बाहर की आवाज को भी नहीं सुनना चाहिए। हमारे मन में कई बार सतोगुण, रजोगुण, तमोगुण के विचार उत्पन्न होते हैं, हमें उन विचारों को भी श्रवण नहीं करना चाहिए, उन पर भी ध्यान नहीं देना चाहिए अपितु हमें हमारे मन में नए आध्यात्मिक विचारों को उत्पन्न करना चाहिए। इस प्रकार से हम बाहरी विचार अथवा जो हमारे मन के विचार हैं तब उनका भी श्रवण नहीं करते हैं। परंतु जब हम स्वयं कृष्णमय विचार उत्पन्न करते हैं, जब हम भगवान के विषय में चिंतन करते हैं, हम ध्यान पूर्वक जप कर सकते हैं, तब हम उसका श्रवण करते हैं और स्मरण करते हैं। हरे कृष्ण महामंत्र का जप, हमारे हृदय में भगवान का नाम सुप्त अवस्था में है, उसे पुनः जागृत करता है जैसा कि कहते हैं *श्रवणम, कीर्तनम, विष्णुस्मरनम जब आप ध्यान पूर्वक हरे कृष्ण महामंत्र का स्पष्ट रूप से उच्चारण करेंगे तब आप उस हरे कृष्ण महामंत्र को सुन पाएंगे। तब आप उसका श्रवण कर पाएंगे और इसका परिणाम होगा तब आप हरे कृष्ण महामंत्र के विषय में चिंतन कर पाएंगे उसका स्मरण कर पायेंगे। इस प्रकार श्रवण, कीर्तन का जो परिणाम है वह विष्णु स्मरणम होता है। इस प्रकार से हमें जप करते समय ठीक प्रकार से बैठना चाहिए। प्रभुपाद जी के एक रिकॉर्डिंग जपा टॉक में है उसमें प्रभुपाद जी जपा टाॅक के दौरान कहते हैं, ठीक से बैठिए। उन्होंने उसमे यह नहीं बताया कि किस प्रकार ठीक से बैठना चाहिए परंतु उन्होंने ऐसा कहा ठीक से बैठिए। हमें शास्त्रों से और भगवत गीता के छठे अध्याय से पता चलता है कि ठीक प्रकार से बैठना वास्तव में क्या होता है। ठीक प्रकार से बैठना यह भी एक आसन है, और आसन अत्यंत महत्वपूर्ण है यह हमारे ध्यान का एक अंग है यम, नियम ,आसन ,प्रत्याहार, ध्यान ,धारणा, समाधि। जो समाधि है वह हमारा अंतिम लक्ष्य होता है। समाधि अर्थात जहां हम निरंतर भगवान का स्मरण करते हैं। भगवान के जो भक्त हैं जो भक्ति योगी हैं उन्हें भी इसका पालन करना चाहिए, ये आसन अष्टांग का एक अंग है जिसमें कि हमारा जप मंत्र भी एक आसन होता है। हम किस प्रकार से बैठते हैं यह अत्यंत ही महत्वपूर्ण है परंतु जो सोना है हम नींद ले रहे हैं कोई आसन नहीं होता है उसे स्वासन कहते हैं। एक प्रकार का आसन यह भी है स्वासन जैसे एक मृत शरीर पड़ा रहता है, उसी प्रकार से सोते समय व्यक्ति वैसा ही दिखता है ये अष्टांग योग में सहायक नहीं होता है। एक आसन होता है ताड़आसन जिसमें कि हम अपने शरीर को ऊपर की ओर खींचते हैं जिस प्रकार से हिरण्यकशिपु करता है। इस प्रकार से ठीक से बैठना एक प्रकार से आसन है इसमें कई प्रकार के आसन हैं जिसमें हम ठीक से बैठ सकते हैं जैसा कि सुखासन ( सुख +आसन) इसमें आलथी- पालथी मार कर बहुत सुख से बैठते हैं, वह सुखासन है इसके अलावा एक पद्मासन होता है सुखासन की अपेक्षा थोड़ा कठिन होता है। यहां हमारे एक पैर को दूसरे पैर में से निकाल कर और हमारी जो पसली है उसको हम जांघ पर टिकाते हैं यह पद्मासन होता है। एक वज्रासन होता है जिसमें हम दोनों पावों को पीछे की ओर ले जा कर बैठते हैं जिस प्रकार से हनुमान बैठते हैं कुछ प्रभु जी इस आसन में बैठकर जप करते हैं। जैसे सुखासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठकर जप करते हैं तो वह उचित आसन है। जप करने के लिए ठीक प्रकार से बैठिए प्रभुपाद जी कहते थे हम इन तीन प्रकार के आसनों में बैठकर जप कर सकते हैं। अभी हम यहां रूस में साधु संग उत्सव में है हम यहां Black Sea अथवा जो काला समुद्र है उसके तट पर हैं और यहां पर कई रूसी ऋषि आए हैं। जो रसिया नाम है वह ऋषि का बहुवचन है इस प्रकार से मुनि शब्द का बहुवचन होता है मुनया। इसी प्रकार से ऋषि का बहुवचन ऋषिया होता है, रसिया भी उस ऋषि का बहुवचन है। यह ऋषियों की भूमि है, इसलिए इसे रसिया कहा गया है और इसकी जो राजधानी है वह मॉस्को है। मॉस्को शब्द मोक्ष से आता है इसी प्रकार यहां के जो ऋषि है उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है और इस साधु संग उत्सव में लगभग 7000 रशियन ऋषि आए हैं और इनके इस उत्सव का नाम ही है साधु संग, साधु का वह संग करते हैं हम इस उत्सव मेआए हुए हमारे कुछ अनुयायियों को, कुछ भक्तों को जपा कांफ्रेंस के माध्यम से यंहा संबोधित कर रहे हैं। अभी हम अपनी वाणी को यहीं विराम देंगे हरे कृष्ण परम पूज्य लोकनाथ स्वामी महाराज की जय।

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10TH SEPTEMBER CONCENTRATE ONLY ON SOUND OF MAHAMANTRA! PART 2 Summary of previous class. - If we chant while walking then our mind also moves along with the body because of that our mind can't concentrate on chanting. Guru maharaj was saying running around or walking is tamogun the mode of ignorance, standing is mode of passion and sitting down and chanting is mode of goodness. Guru maharaj also said we all can make our home into Goloka or Vaikuntha. If there are deities in the home, we can chant our rounds properly, if there is Tulasi and there photographs of the Lord, then your home gets converted into the dham, and everyday you are chanting in the dham. ---------------------****----------------- Time factor is also important, morning time is the best time. There is a predominance of goodness in the morning, daytime is passion, and night time is ignorance. Countryside is in mode of goodness, living in the cities is in passion, and residing in in dirty places, dark, not well lit, bad smell is all in the mode of ignorance. So we should select properly. If we chant in the holy dham, we could chant in the holy dham then that is above the mode of ignorance and passion. More than that you could create dham like situation wherever you are. You can make your home into a dham, Vaikuntha or Goloka. One may have deities at home, photographs on the wall of devotees and deities, of past times of the Lord, there is a cow in the courtyard, there is tulasi plant in the courtyard or room, big pile of Prabhupada books are there, then that makes home into a holy place or Vaikuntha. If there are some devotees also chanting at home, then we could create dham like situation at home and chant. Then you could say that you are chanting in the dham. By chanting in the dham you have better access to the Lord. Chanting in the dham means, Lord resides there, so you are not very far from the Lord. You have a very easy access to the Lord. Lord is just in close proximity with you. Or chanting of Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare This chanting is called or when we are chanting, we are dialling Krishna's number. There are 16 digits. This is a telephone number of the Lord. So, we are calling Hare Krishna, if you are calling in the dham then that becomes like a local call. Local call versus long distance international call. Long distance call sometimes we cannot hear properly, hello …. hello... hello, are you hearing? Can you hear me? Now the phones are improving thirty years ago, there used to be a struggle to hear what the other person is saying. Calling or telephoning in the dhama is a local call. Calling from same town not long distance so you can hear properly. Also, local calls are cheap sometimes free, long distance calls are very expensive. So we could & we should be in the dhama or create a situation like dhama wherever we are chanting everyday could be made like a dhama. So, these various things that we are talking is for we have to improve our chanting. Chant with meaning. We have to do more attentive chanting, attentive, or we should hear what we are chanting. Whether mind is in that situation or mind is free, more free, and not preoccupied or engaged, already mind is engaged, in so many thoughts and new thoughts are also coming. So we are wherever we are, we are running, talking doing so many things, and if you are sleeping then you are chanting is off. Then we have to be observant. We have to hear, hear the holy name. And not do mental japa. There is something called as mansik japa. Chant in the mind. Gaytri Mantra that we chant, the brahmins chant, should be chanted in the mind. That is allowed, gaytri mantra has to be chanted in the mind. Within the mind you chant and hear, imbibe the, meaning & spirit within. But chanting of Hare Krishna, there is a sravanam Kirtanam and smaran. We have to hear, sravanam. If there is no chanting then how could we hear? In order to hear- sravanam we have to do kirtanam. Srila Prabhupada used to say that tongue must vibrate. We have to use our lips. I don't know how you chant. Sometimes there is no chanting and because you are not chanting there is no hearing. Or instead you are not hearing Hare Krishna Hare Krishna, you hear some other sounds as atmosphere is filled with the sounds. There are so many sounds all around. So, if we do not make any sound, Hare Krishna sound vibration and if we don't hear that, they are just quietly chanting then our ears are going to be hearing some other sounds which are there coming in your direction. During chanting we don't want to hear anything else, but hear the Hare Krishna sound. So, we have to create the sound, vibrate the tongue. Say Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare. We hear while we are chanting. there are so many other sounds, which are forced upon you, imposed upon you and you fall prey to that, you are forced to hear those sounds. But our decision and determination should be, that I want to hear the Hare Krishna sound now and nothing else. If we don't chant & hear Hare Krishna sound, then not only we will end up in hearing other sounds but we also will end up hearing so many sounds of our mind. Mind is making so many sounds within & is always busy. Weather sounds or, sounds from within the mind bla bla bla…. Our mind is thinking all the time, what happened last night and what happened yesterday, he did this to me and he did that to me, I have got hurt. All these thoughts sounds are bombarded. Thoughts, thought is a sound. So, during chanting we don't want to hear any other additional non-Krishna sounds. We don't want to hear our minds sounds, minds thoughts which may be are not Krishna conscious thoughts. They may be ignorant thoughts or passionate thoughts and goodness thoughts but not transcendental thoughts. But we want to create new transcendental thoughts in the mind. Not hearing the outside thoughts and not hearing mind thoughts, but here new thoughts in the mind by chanting of Hare Krishna Hare Krishna. We want this chanting of Hare Krishna Hare Krishna arousing, reviving our dormant love for Krishna. Sravanam kirtanam Vishnuhu smaranam. Hearing and chanting leads to remembering. Say Hare Krishna Hare Krishna, hear Hare Krishna Hare Krishna, and remember Krishna in the mind. Prabhupada also said during one recorded Japa talk, that "sit properly!" So, he didn't elaborate or explained what sitting properly is, but he just said sit properly. So, we know from the sastras and 6th chapter of Bhagavad Gita, the meaning of "sit properly". What's the meaning of sitting properly is explained in the sixth chapter of Bhagavad Gita. So, sitting properly also explains about an asana. That is very important in the process of meditation. Yam ,niyam, aasan ,pranayam ,pratyahara, dhyan, dharana, samadhi. Samadhi is the eighth and ultimate goal of meditation, but it has 7 previous parts of meditation. So, for the Bhakti Yogis also, this process is applicable and useful. Asana is part of the asta-anga, there are eight parts. One of them is asana. For japa or mantra meditation sleeping is not the asana, as that is savasana. Sava means dead. Lying like a dead body so one asana is called savasana. No lying down, that is not the asana. Tadasana is also not the asana for chanting like the Hiranyakashipu who was standing with the arms stretched. But sitting is a right asana or right posture. Sitting like this is called sukhasan. You are relaxing so, it is called sukhasan. Then there is also padmasana, lotus like, take your one feet up from fold of other leg, your soles should be upwards. It's difficult aasan. There is also vajrasan, like this Prabhu is sitting. Hanuman sits like this. So, there are few asanas, like that. Radhanath maharaj sometimes sits & chants in these asanas. Sukhasan or padmasana or vajrasana. That's the sitting properly for chanting. You all are here for Russian festival, Sadhu-Sang festival, near the banks of black sea. Kala Samudra. Kala is black. Lot of rushis have arrived here in Russia. Russia or Rushayaha the name comes from the plural of rushi. Muni - munayaha, rushi - rushyaha. One time this was the land of rishis. There were so many rushis, and that's how the land was called Rusayaha, which became Russia. Moscow, comes from Moksha. Capital where one gets moksha or liberation. Where Rushi - rushyaha were attaining moksha. So how many devotees are here, who are attending? 7000 rishis are here, 7000 devotees have gathered here, for the festival called Sadhu-Sang. Sadhu- sang is the name of the festival. We are addressing some of our followers from various parts. There are devotees from Ukraine and Russia also. Hare Krsna

Russian