Hindi

जप चर्चा 24 अगस्त 2020 आज 816 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। जय राधे जय कृष्ण जय वृंदावन श्री गोविंद गोपीनाथ मदन मोहन *(जय) राधा माधव (जय) कुंजबिहारी। (जय) गोपीजन वल्लभ (जय) गिरिवरधारी॥ (जय) यशोदा नंदन (जय) ब्रजजनरंजन। (जय) यमुनातीर वनचारी॥* *अनुवाद:- वृन्दावन की कुंजों में क्रीड़ा करने वाले राधामाधव की जय! कृष्ण गोपियों के प्रियतम हैं तथा गोवर्धन गिरि को धारण करने वाले हैं। कृष्ण यशोदा के पुत्र तथा समस्त व्रजवासियों के प्रिय हैं और वे यमुना तट पर स्थित वनों में विचरण करते है* ब्रज में तो प्रचार है पर किय भाव का राधा कृष्ण लीला का गोपी कृष्ण लीला का गोपी और कृष्ण जब एकत्रित होते हैं, कृष्ण रस की खान है और जब गोपियों के साथ वह एकत्रित होते हैं तो फिर उस रस का क्या कहना इतना रस इतना रस उसको रास क्रीड़ा कहते हैं , इस रस के सागर में फिर वह गोते लगाते हैं , नृत्य करते है रास क्रीड़ा सर्वोपरि आनंद तो कृष्ण को उस रास क्रीड़ा में है रास क्रीडा से ऊंची कोई क्रीड़ा नही हो सकती । श्रीमद्भागवत के 10 स्कंध के 29 से 33 अध्याय तक यह पांच जो अध्याय हैं यह पंच अध्याय कहलाते हैं और यह श्रीमद्भागवत का प्राण भी कहलाता है श्रीमद् भागवत का सार है पाच अध्याय श्री कृष्ण के रास का वर्णन श्री कृष्ण की रासक्रीड़ा का वर्णन हुआ है , तो राधा कृष्ण की लीला या गोपी कृष्ण लीला अस्ट कालों में वैसे दो काल निर्धारित है एक मध्यान काल की लीला राधा कुंड के तट पर संपन्न होती है प्रतिदिन और फिर मध्य रात्रि पुनः राधा कृष्ण लीला संपन्न होती है निर्धारित किए हुए वनों में गोपिया एकत्र होती है , फिर रास क्रीड़ा संपन्न होती है , श्रीबादरांयणिरुवाच भगवानपि ता रात्री शारदोरफुल्लमक्लिका: वीक्ष्य रन्तु मनश्चक्रै योगमायापुषाश्रित: श्रीमद्भागवत 10.29.1 अनुवाद:- श्रीबादरायणि ने कहा श्रीकृष्ण समस्त ऐश्नर्यों से पूर्ण भगवान् हैं फिर भी खिलते हुए चमेली के फूलों से महकती उन शरदकालीन रातों को देखकर उन्होंने अपने मन को प्रेम व्यापार की और मोड़ा । अपने उद्देश्य की पुर्ति के लिए उन्होंने अपनी अन्तरंगा शक्ति का उपयोग किया मतलब वह रात्रि आ गई उस रात्रि को वह शरद कालीन रात्रि थी मल्लिका इत्यादि फूल खिले है चीर घाट पर कृष्ण वस्त्र हरण किए उस समय कहते कि हम मिलेंगे भविष्य में हम मिलेंगे किसी रात्रि को मिलेंगे हम कौन सी रात्रि जिस रात्रि का कृष्ण उल्लेख किए थे चीर घाट पर हम एक रात्रि को मिलेंगे तो वह शरद कालीन रात्रि है , कार्तिक पूर्णिमा जिसको हम कहते हैं अश्विन पूर्णिमा के बाद कार्तिक मास आरंभ होता है तो उस पूर्णिमा का चर्चा है पूर्णिमा की रात्रि को फिर भगवान मुरली बजाते हैं और उसी के साथ संदेशा भेजते हैं तो मुरली की ध्वनि उनको वहां पर खींच के ले आती है। जिस वन कृष्ण मुरली बजा रहे हैं सारे ब्रजमंडल की गोपियां वह पहुंच जाती है कृष्ण कहते हैं स्वागत है आपका स्वागत है,, हम क्या कर सकते हैं आप के लिए इतना कहने पर भगवान कहते हैं क्यों आई हो या भयानक रात्रि है यहा भयानक पशु है नहीं घर लोटो तो सभी गोपियां नाराज हो जाती है, वैसे रासलीला का शुभारंभ होने जा रहा था तैयारी हो रही थी स्वागतम है कुछ सवाद प्रारंभ हो रहा था तो उसी के मध्य में कृष्ण फिर कहे अपने-अपने घर लोटो और अच्छा तुम वन को देखने आए हो मुझे मिलने नहीं आए हो तुम वन को देखने आई हो तो देख लो वन को देख लो रात्रि का समय है या घनघोर वन है लौटो लौटो तो फिर गोपिया निराश हो जाती है हताश उदास हो जाती है और फिर वह सभी मिलकर गीत गाती है श्रीमद्भागवत के दसवें स्कंध में पांच अलग-अलग गीत प्रसिद्ध है उसमें तो यह एक गीत है भ्रमण गीत है वेणु गीत है यह सब गोपिया मिलकर भ्रमण गीत वेणु गीत गोपी गीत गाती है , वैसे रास पंचाध्याई के एक अध्याय तो गोपी गीत वाला ही है उसके पहले रास पंचाध्याई से अध्याय में ही यह दो प्रसिद्ध गीत गोपियों ने गाए हैं साथ में राधा भी राधा गोपियों ने गाए हुए गीत इन पांच अध्याय ओं के अंतर्गत ही है गोपियों ने गीत गाया है प्रार्थना की है हमको ठुकराव नहीं हमको दूर नहीं भेजो और अपने सारे भाव व्यक्त किए है । गोप्य ऊचु: जयति तेऽधिकं जन्मना व्रज श्रयत इन्दिरा शश्वदत्र हि । दयित द‍ृश्यतां दिक्षु तावका- स्त्वयि धृतासवस्त्वां विचिन्वते ॥ अनुवाद:-गोपियों ने कहा : हे प्रियतम, ब्रजभूमि में तुम्हारा जन्म होने से ही यह भूमि अत्यधिक महिमावान हो उठि है और इसीलिए इन्दिरां ( लक्ष्मी ) यहां सदैव निवास करती हैँ।केवल तुम्हारे लिए ही तुम्हारी भक्त दासियाँ हम अपना जीवन पाल रही हैँ । हम तुम्हें सर्वत्र ढुढ़ती रही हैँ अत: कृपा करके हमे अपना दर्शन दीजिये फिर इतने में कृष्ण केवल अकेली राधा को लेकर अदृश्य हो जाते हैं। तासां तत् सौभगमदं वीक्ष्य मानं च केशव:। प्रशमाय प्रसादाय तत्रैवान्तरधीयत ॥ ४८ ॥ श्रीमद्भागवत 10.29.48 अनुवाद:-गोपियों को अपने सौभाग्य पर अत्यधिक गर्वित देखकर भगवान केशव ने उनके इस गर्व से उबारना चाहा और उनपर और अधिक अनुग्रह करना चाहा अत: वे तुरन्त अन्तर्धान हो गये* ऐसे भगवान गोपियों से मिले थे रासक्रीड़ा की तैयारियां हो रही थी इससे गोपियों को अभिमान गर्व हो रहा था की गोपियां कुछ विशेष व्यक्ति है ऐसा उनके मन में भाव उत्पन्न होता है तो उस भाव का दमन करने के लिए वह भाव ठीक नहीं है गर्व था हमें राज खेड़ा के लिए बुलाया हमारा चयन हुआ रासक्रीड़ा के लिए हम कुछ विशेष होंगी इसीलिए तो ऐसे गोपियों के गर्व को या जूठे अभिमान को दमन करने हेतु भगवान वहां से निकल पड़े और क्या उद्देश्य था प्रसादाय तो गोपियों को प्रशमय और राधा को प्रसादाय और राधा पर विशेष कृपा करने हेतु राधा भी सोच रही थी कि देखो करोड़ों गोपिया है उसमें से एक मैं भी गोपी हूं मेरे साथ कुछ अलग से आदान-प्रदान तो नहीं हो रहा है यह ठीक नहीं है तो राधा रानी नाराज है तो उसको प्रसन्ना करने के लिए तो चलते हैं तो राधा और कृष्ण वहां से अदृश्य हो गए दूर चले जाते हैं और फिर वह सारी बेचारी हो गोपिया कृष्ण को खोजने लगती है तो फिर 30 वां अध्याय जो है रास पंचाध्याई में से उसमें गोपिया एक बन में से दूसरे बन में जा रही है, और खोज रही है कृष्ण को और सभी से पूछ रही है हिरण से पूछ रही है वृक्षों से पूछ रही है तुलसी से पूछ रही है जो भी रास्ते में आता है सजीव निर्जीव जैसे वृंदावन में कुछ भी निर्जीव नहीं है सभी सजीव वही है जीव के साथ ही है है उन सब को पूछ रही है क्या आपने हमारे कृष्ण को देखा है इधर से गए ही होंगे तो खोजती हुई गोपियां उनको फिर जरा देखो देखो यह तो कृष्ण के चरण दिख रहे हैं , और ताजे ही है लगता है कि अभी अभी यहां से चल कर आगे बढ़े हैं और चरण चिन्ह में अलग-अलग चिन्ह है । भगवान के तलवे में अलग-अलग चिन्ह है, चक्र है पद्म है मछली है ऐसे चिन्ह अंकित चरणों को देखती हुई आगे जब वह बढ़ जाती है तो इतने में उनको और एक व्यक्ति के चरणों के चिह्न दिखते हैं लगता है कि दो व्यक्ति अगल-बगल में साथ में चलकर यहां से आगे बढ़ते हुए गए हैं तो फिर गोपिया पूछती है यह किसके चिन्ह है । अनयाराधितो नूनं भगवान् हरिरीश्वर: । यन्नो विहाय गोविन्द: प्रीतो यामनयद् रह: ॥ २८ ॥ श्रीमद्भागवत 10.30.28 अनुवाद:-इसे विशिष्ट गोपी ने निश्चित हो सर्वशक्तिमान भगवान् गोविन्द की पुरी तरह पूजा की होगी क्योकि वे उससे इतने प्रसन्न हो गये कि उन्होंने हम सबो को छोड़ दिया और उसे एकान्त स्थान में ले आये* यह चरण चिन्ह और किसके हो सकते हैं , उस राधिका के ही तो सकते हैं । कैसी है राधिका भगवान की आराधना करने वाली इसलिए उसका नाम भी राधिका है , यह बात पता नहीं थी आपको कि यही एक स्थान है पूरे भागवत में या पूरे दसवें स्कंध में या पूरे रास पंचाध्याई में शुकदेव गोस्वामी राधा रानी का उल्लेख केवल एक ही स्थान पर किए हैं और वह ये है ,, तीसवां अध्याय तो यहां कृष्ण राधा का उल्लेख किए हैं राधा के नाम को कहे हैं गाए हैं शुकदेव गोस्वामी यह सीधा नाम नहीं कहे हैं अगर कहते तो बड़ा मुश्किल हो जाता शुकदेव गोस्वामी भाव विभोर हो जाते हम तो कहते रहते हैं जय राधे जय राधे, जय कृष्ण जय राधे, जय कृष्ण, जय वृन्दावन श्रीगोविन्द, गोपीनाथ, मदन-मोहन ।।1।। श्यामकुण्ड, राधाकुण्ड, गिरि-गोवर्धन कालिन्दी यमुना जय, जय महावन ।।2।। केशी घाट, वंशीवट, द्वादश कानन याहा सब लीला कोइलो श्रीनन्दनन्दन ।।3।। श्रीनन्द-यशोदा जय, जय गोपगण श्रीदामादि जय, जय धेनुवत्स-गण ।।4।। जय वृषभानु, जय कीर्तिदा सुन्दरी जय पौर्णमासी, जय आभीर-नागरी ।।5।। जय जय गोपीश्वर, वृन्दावन माझ जय जय कृष्ण सखा, बटु द्विज-राज ।।6।। जय रामघाट, जय रोहिणीनन्दन जय जय वृन्दावनवासी यत जन ।।7।। जय द्विज पत्नी जय नाग कन्या-गण भक्तिते जाहार पाइलो, गोविन्द-चरण ।।8।। श्रीरास-मण्डल जय जय राधा-श्याम जय जय रास लीला सर्व मनोरम ।।9।। जय जयोज्ज्वल-रस सर्व रससार परकीया भावे याहा, व्रजेते प्रचार ।।10।। श्रीजाह्नवी-पादपद्म करिया स्मरण दीन कृष्णदास कहे, नाम-संकीर्तन ।।11।।* लेकिन हममें वह भाव भक्ति नहीं है किंतु शुकदेव गोस्वामी जब राधा का नाम कहते राधे कहते यह जो कथा सुना रहे हैं राजा परीक्षित को वह कथा वहीं रुक जाती हो जाते है । शुकदेव गोस्वामी राधा रानी के तोते हैं राधा रानी का एक नाम है शुकइष्ट मतलब शुक् की इष्ट उस तोते की शुकइष्ट तो शुकदेव गोस्वामी की शुकइष्ट शुकदेव गोस्वामी राधारानी की आराधना करते हैं । तो राधा रानी का उल्लेख हुआ है अनाड़ी या जो भागवत का मर्म नहीं जानने वाले वे कहते हैं कि राधा है ही नहीं अगर होती तो राधा का उल्लेख होता शुकदेव गोस्वामी जरूर कहते हैं राधा क्यों नहीं कहे हैं यहां भी कहे हैं और भी स्थानों पर रहे हैं या संकेत हुआ है उससे स्पष्ट हुआ हैकी शुकदेव गोस्वामी राधा रानी का ही उल्लेख कर रहे है तो उसको देखते हुई अभी दोनों के चरण चिन्ह देख रही है राधा के और कृष्ण के भी और आगे बढ़ जाती है तो देखती है कि यहा तो केवल कृष्ण के चरण चिन्न दिख रहे हैं और लगता है कि वह ब्रज की रज में अधिक धस चुके हैं थोड़ा ज्यादा गड्ढा बन चुका है उनके चरणों का तो राधा कहां गई होंगी इस समय कृष्ण ने राधा को अपने कंधों पर उठाया होगा क्योंकि उसके चरण चिह्न यहां नहीं दिख रहे हैं और वह बोझ उठाकर यहां से चल रहे होंगे इसलिए चरण जमीन में ज्यादा धस गए होंगे । तो फिर आगे बढ़ते हैं तो वह देखते है कि भगवान का आगे का जो पंजा है और उंगली है वह ज्यादा धंस चुकी है ब्रज की रज में उसीको देखती है गोपिया तो फिर आपस में चर्चा करके सोचती है कि यहां पर कृष्ण राधा के लिए पुष्प का चयन किए होंगे पुष्प तोड़े होंगे वह पहुंचने के लिए कूदे होंगे इसीलिए यहां उनका पंजा ही है और यह देखो जरा बगल में उन्होंने यह देखा कि दो व्यक्ति एक दूसरों के आमने-सामने बैठे हैंतो उन्होंने फिर सोचा या कृष्ण पीछे बैठे हैं या राधा को आगे बिठाया है। और उन्होंने पुष्पों का चयन किया या राधा रानी का श्रृंगार किया है पुष्पों से यह राधा रानी की शोभा बढ़ाई है और फिर वहां से आगे बढ़ती है तो। देखती है कि वहां कोई चिन्ह नहीं है और आगे बढ़ती है तो वहां उनको राधा ही मिल जाती है केवल राधा ही मिलती है तब राधा ने कहा होगा मैं बहुत थक गई हूं मुझे उठा कर पुनः कंधे पर ले लो तो वैसे राधा ने कृष्ण से कहा और राधा बैठने वाली थी तब कृष्णा अंतर्धान हो गया और बिचारी राधा अकेली वहां रह जाती है तब उस राधा को गोपियां मिल जाती है तब राधा कृष्ण को पुकारती हुई गोपियों ने सुना और देखा भी राधारानी क्या कह रही है... *हा नाथ रमण प्रेष्ठ क्वासि क्वासि महाभुज । दास्यास्ते कृपणाया मे सखे दर्शय सन्निधिम।। श्रीमद्भागवत 10.30.39* अनुवाद:- वह चिल्ला उठी: हे स्वामी, हे प्रेमी, हे प्रियतम, तुम कहाँ हो ? तुम कहाँ हो ? हे बलिष्ट भुजाओं वाले, हे मित्र, अपनी दासी बेचारी को अपना दर्शन दो ये राधा के वचन है जो गोपियों ने भी सुने हा नाथ रमण हे रमन प्रेष्ठ हे प्रिय महाभुज हे बलवान महाभुज वाले क्वासि क्वासि कहा हो कहा हो हे रमण हे प्रिय हे महाभुज दास्यास्ते राधारानी ने कहा मैं तुम्हारी दासी हूं कृपया कृपा करो सन्निधिम और जहां भी तुम हो वहां मुझे ले चलो या मैं जहा हु वहां तुम पुनः लौट आओ मुझे अपना सानिध्य प्रदान करो ऐसी प्रार्थना श्रीमती राधा रानी बड़ी व्याकुल होकर करती हुई गोपियों ने देखा राधा रानी को और सुना भी तभी कृष्ण और लौट नहीं रहे हैं पहले तो गोपियां खोज हि रही थी तब गोपियों को खोजते खोजते राधा तो मिल ही गई राधा खोजने लगी क्वासि कहां हो कहां हो अब राधा और गोपियां दोनों ही मिल गए फिर दोनों मिलकर कृष्ण को खोजना प्रारंभ करती है खूब खोजने पर भी कृष्ण गोपियों को और राधा को नहीं मिलते हैं तब वो सब सोचती है कि अरे अरे यमुना के तट पर जहां रासलीला शुरू होने जा रही थीं वही हमने कृष्ण को खो दिया था फिर जहां कृष्ण को खो दिया था वहीं ढूंढ़ना चाहिए वन में तो नही खोया था हमने कृष्ण को वैसे वन में राधा ने खोया था कृष्ण को ऐसे गोपिया सोच रही है कि हम यमुना के तट पर खोया था कृष्ण को तो वो वन में कैसे मिलेंगे उदाहरण:- यदि हमने घर की चाबी दफ्तर में खोयी तो वह चाबी घर पर नहीं मिलेंगी जहां हमने चाबी को खोया था वही जाकर हमें ढूंढना होगा। ऐसा सोचकर सारी गोपियां राधारानी के साथ यमुना के तट पर पहुंच जाती है वहां राधा और गोपियां मिलकर कृष्ण को पुकारती है और गोपी गीत यह उनकी पुकार ही है जो गीत प्रसिद्ध है। ये हैं 31वां अध्याय उन पाँच अध्यायों में से तृतीय अध्याय हैं गोपी गीत..... गोप्य ऊचु: जयति तेघिकं जन्मना व्रज: श्नयत्त इन्दिरा शश्वदत्र हि दयित्त दृश्यतां दिंक्षु तावकास्त्वयि धृतासवस्त्वा विचिन्वते श्रीमद्भागवत 10.31.1 अनुवाद:-गोपियों ने कहा : हे प्रियतम, ब्रजभूमि में तुम्हारा जन्म होने से ही यह भूमि अत्यधिक महिमावान हो उठि है और इसीलिए इन्दिरां ( लक्ष्मी ) यहां सदैव निवास करती हैँ।केवल तुम्हारे लिए ही तुम्हारी भक्त दासियाँ हम अपना जीवन पाल रही हैँ । हम तुम्हें सर्वत्र ढुढ़ती रही हैँ अत: कृपा करके हमे अपना दर्शन दीजिये यह पूरा अध्याय गोपी गीत कहलाता है यह विशेष गीत है श्रीमती राधा के वचन है गोपियों के वचन है इसमें कृष्ण का संस्मरण है और फिर.... *नाहं वसामि वैकुंठे योगिनां हृदये न च | मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद* अनुवाद:- हे देवर्षि ! मैं न तो वैकुण्ठ में निवास करता हूँ और न ही योगीजनो के ह्रदय में मेरा निवास होता है | मैं तो उन भक्तों के पास सदैव रहता हूँ जहाँ मेरे भक्त मुझको चित्त से लीं और तन्मय होकर मुझको भजते है | और मेरे मधुर नामों का संकीर्तन करते है। यह भगवान का वचन भी है जहां मेरे भक्तों एकत्र होकर गीत गाते हैं तत्र तिष्ठामि नारद मैं वहां प्रकट होता हूं। ऐसे ही हुआ जब गोपियों ने यह गीत गाया कृष्ण का संस्मरण किया उसके बाद कृष्ण प्रकट हुए जब यह गीत प्रकट हुआ तो उसी के साथ में कृष्ण भी प्रकट हुए इस गीत से भगवान के स्मरण से भगवान अलग नहीं है भगवान का स्मरण हो रहा है मतलब वहां भगवान है गोपियों ने गीत गाया और भगवान का स्मरण किया तब कृष्ण प्रकट हुए उनके मध्य में और अगले अध्याय में राधा कृष्ण और गोपियों के मध्य का सवांद हैं उनका मिलना जुलना है और रासक्रीडा की भी तैयारी अभी होने वाली है अभी यहां थोड़ा बीच में विघ्न आया था जैसे कि कृष्ण अंतर्धान हो गए थे लेकिन पुनः वो प्रकट हुए। जब यह संवाद हो रहा है तब भगवान 32वें अध्याय में भगवान का विश्व प्रसिद्ध वचन है... न पारयेहं निरवद्यसंयुजां स्वसाधुकृत्यं विबुधायुषापि व: या माभजन्दुर्जरगेहशुखला: संवृचष्य तद्व: प्रतियातु साधुना श्रीमद्भागवत ।।10.32.22।। अनुवाद:- मैं आपलोगों की निस्मृह सेवा के ऋण को ब्रह्मा के जीवनकाल की अवधि में भी चुका नहीं पाऊँगा । मेरे साथ तुमलोगों का सम्बन्थ कलंक से परे है । तुमने उन समस्त गृह बन्थनों को तोडते हुए मेरी पूजा की है जिन्हें तोड़ पाना कठिन होता है । अतएव तुम्हारे अपने यशस्वी कार्यं ही इसकी क्षतिपूर्ति कर सकते हैं कृष्णा ने कहा हे राधे और गोपियों न पारयेहं मैं तुम्हारा परीनी हूं ओप जो मेरी सेवा और मुझ पर उपकार करती रहती हो या जो भी कुछ मेरे लिए आपने किया है मैं उसके लिए कृतज्ञ तो हूं तुम सभी ने किए हुए उपकार मैं भूल नहीं सकता लेकिन वह हो ऋण भी नहीं हो सकता उस ऋण से मैं मुक्त भी नही हो सकता इतना ऋणी मैं हूं न पारयेहं ऐसा भाव और ऐसा विचार कृष्णा ने व्यक्त किया है आप और हम तो कल्पना ही कर सकते हैं राधा और गोपियों का कृष्ण से प्रेम और प्रेम केवल आई लव यू बोलने की भाषा ही नहीं है जो गोपियां प्रेममई सेवाएं अर्पण करते रहती है कृष्ण कहते हैं उन ऋण से मुक्त नहीं हो सकता इतना मैं ऋणी हूं ऐसा कृष्ण ने कहा और उसके उपरांत पांचवा जो अध्याय हैं उस अध्याय में रासक्रीड़ा का वर्णन है। और फिर कृष्ण जितने भी गोपिया है उनके लिए अलग-अलग कृष्ण बन जाते हैं और ये सब संगीत से होता है क्योंकि अगर संगीत नहीं है तो नृत्य भी नहीं हो सकता और वैसे भी संगीत की परिभाषा भी हैं आप संगीत कह सकते हैं या संकीर्तन भी कह सकते हैं एक तो गान होना चाहिए और फिर नाद होना चाहिए और साथ में सुर और ताल होना चाहिए सुर मतलब कहना या फिर गाना और ताल मतलब वाद्य होने चाहिए। (गुरु महाराज जी ने अपने करकमलों से जोर-जोर से तालियां बजाकर ताल कैसे होता है यह बताया) गायन और वाद्य यह साथ में होते हैं... *महाप्रभोः कीर्तन-नृत्यगीत वादित्रमाद्यन्‌-मनसो-रसेन। रोमाञ्च-कम्पाश्रु-तरंग-भाजो वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्॥* अनुवाद:- श्रीभगवान्‌ के दिवय नाम का कीर्तन करते हुए, आनन्दविभोर होकर नृत्य करते हुए, गाते हुए तथा वाद्ययन्त्र बजाते हुए, श्रीगुरुदेव सदैव भगवान्‌ श्रीचैतन्य महाप्रभु के संकीर्तन आन्दोलन से हर्षित होते हैं। वे अपने मन में विशुद्ध भक्ति के रसों का आस्वादन कर रहे हैं, अतएव कभी-कभी वे अपनी देह में रोमाञ्च व कम्पन का अनुभव करते हैं तथा उनके नेत्रों में तरंगों के सदृश अश्रुधारा बहती है। ऐसे श्री गुरुदेव के चरणकमलों में मैं सादर वन्दना करता हूँ वादित्र मतलब वाद्य,गायन भी हो रहा है और वाद्य भी बज रहे हैं उसके उपरांत वह सब मुड़ में आते हैं और नृत्य शुरू होता है। अभी यह सभी उपकरण हैं गायन,नाट्य और वाद्य ऐसे रासक्रीडा में हो रहा है कई गोपिया वाद्य बजा रही है कई गोपिया गान कर रही है और फिर सभी गोपिया नृत्य पी कर रही है और हर एक गोपी के साथ में कृष्ण उपस्थित हैं रासक्रीड़ा जब प्रारंभ हुई तब ब्रह्मा की पूरी एक रात भर यह रासलीला चलती रही ब्रम्हा की रात जो हजार महायुग जब बित जाते हैं ब्रम्हमनु विदुः एक हजार महायुग ऐसे यह रासलीला कृष्ण की नित्य लीला हैं। और फिर उसके पांचवें अध्याय के अंतिम श्लोक जैसे 29,30,31,32,33 उस अध्याय के अंत मे शुकदेव गोस्वामी श्रुति फल भी कहो इन 5 अध्यायों का हम श्रवण करेंगे उसे रासपंच अध्याय का तब श्रुति फल क्या है तो शुकदेव गोस्वामी कहते हैं। *विक्रीडितं व्रजवधुभिरिदं च विष्णो: श्नद्घान्वितोनुशूणुयादथ वर्णयेद्य: । भक्ति परां भगवति प्रतिलभ्य कामं हृद्रोगमाश्वपहिनोत्यचिरेण धीर:* श्रीमद्भागवत 10.33.39 *अनुवाद:- जो कोई वृन्दावन की युवा गोपिकाओं के साथ भगवान् की क्रीड़ाओ को श्रद्धापूर्वक सुनता हैं या उसका वर्णन करता है, वह भगवान की शुद्ध भक्ति प्राप्त करेंगा। इस तरह वह शीघ्र ही धीर बन जाएगा और हदय रोग रूपी कामवासना को जीत लेगा* इसकी पूरी व्याख्या तो नही कर सकते संशिप्त में यहां कहा हैं कि रासक्रीड़ा हैं जो भगवान की माधुर्य लीला हैं। श्नद्घान्वितोनुशूणुयादथ वर्णयेद्य: रासक्रीड़ा के सम्बंध में जो सुनता हैं और साथ ही कहता भी हैं भक्ति परां भगवति ऐसे व्यक्ति को शुद्ध भक्ति प्राप्त होगी और उसी के साथ कामं हृद्रोगमा हृदय का रोग आप तो कई सारे हृदय के रोगों के बारे में जानते हो या आपने सुना होंगा हॄदय विकार,हृदय ब्लॉकेज अन्य ईसी प्रकार के कई लेकीन शुकदेव गोस्वामी कह रहे है कामं हृद्रोगमा ये काम रोग जो हैं कामवासना का जो रोग या भव रोग हैं वो अपहिनोत्य इस रोग से इस काम रोग से व्यक्ति मुक्त होगा क्योंकि भक्ति परां भगवति प्रतिलभ्य ये सारे भगवान के माधुर्य लीलावो का श्रवण करने से क्या होगा प्रेम प्राप्त होगा कृष्ण प्रेम या फिर वही होता है हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे यह महामंत्र कहने से भी और फिर लीलाओं का श्रवण करने से भी जब प्रेम प्राप्त होता है तब उसी के साथ यह काम रोग से व्यक्ति मुक्त होता है जैसे प्रेम से आसक्त और काम से अनासक्त देखिए यह अभी औषधी हुई श्रवण और कीर्तन यदि काम रोग है तो श्रवण और कीर्तन यह औषधि हैं। तो ठीक है हरे कृष्ण। हम यहां रुकते हैं और हम आपको कुछ समय देते हैं ताकि आप अपने जितने जिज्ञासा या अपने प्रश्न पूछ सकते हैं। प्रश्नों तथा जिज्ञासाओं का स्वागत है। कुछ मिनटों के लिए आपके विचार आपके साक्षात्कार या कोई प्रश्नों आप पूछ सकते हैं बाकी जप करते रहो। (पद्ममाली प्रभु जी से गुरु महाराज पूछते हैं क्या आप इंग्लिश ट्रांसक्रिप्शन को पढ़ सकते हो) यहां सभी स्थानों के भक्त हैं जो विदेशों से जुड़े हुए हैं जैसे रशिया अमेरिका अफ्रीका यूक्रेनियन अन्य कई जगह से (गुरु महाराज एक भक्त से पूछते हैं क्या आप अंग्रेजी जानते हो) अभी एक ही दिन बीच में है हमारे और राधाष्टमी के 1 दिन के उपरांत राधाअष्टमी है राधाअष्टमी की जय यह जब चर्चा एक प्रकार से हमारी तैयारी ही है समझिये हम खुद को तैयार कर रहे हैं और आज दिन भर आप कुछ पुस्तकें पढ़ सकते हो संक्षिप्त में श्रीमद् भागवत भागवतम के 5 अध्याय का सार आपको आज घटनाक्रम सुनाया या बताया आपको अभी क्रम तो पता ही है तो आज दिन भर में आप वह 5 अध्याय पूरे तो नहीं लेकिन जो समझ में नहीं आया होगा वह पढ़ सकते हो इसके लिए आपके पास फिर भागवत भी होना चाहिए आप सभी के घर में आपकी संपत्ति भगवतम का पूर्ण सेट होना चाहिए साथ ही में प्रभुपाद जी के सारे ग्रंथ होने चाहिए और अभी नर्सों से मतलब 27 तारीख से राधाअष्टमी के दूसरे दिन नवमी होगी उस दिन क्या होगा शुकदेव गोस्वामी जी की भागवत कथा प्रारंभ हुई थी नवमी को और पुर्णाहुति कब हुई भाद्रपद मास के पूर्णिमा के दिन श्रीमद भगवतम के कथा का समापन हुआ शुकदेव गोस्वामी जी के द्वारा वहा कहा गया हैं कि भागवतम का वितरण करना चाहिए या भेट देना चाहिए उसकि बडी महिमा हैं आध्यात्मिक लाभ होगा बीबीटी चाहती है कि आप अधिकाअधिक ग्रंथों का वितरण करें यह आप निश्चित कर लीजिए कि आपके पास भागवतम का सेट है और औरों को भी आप उसे भेंट स्वरूप दे सकते हैं अपने लिए तो भगवतम होना ही चाहिए नहीं तो आज जो कथा सुनाई आप फिर कई प्रश्न पूछा होंगे लेकिन आपको पहले पढ़ना चाहिए। आप पढ़ते नहीं हो इसलिए आप कई सारे प्रश्न पूछते रहते हो परेशान करते रहते हो अपना होमवर्क करिए(ऑल इंडिया पदयात्रा को संबोधित करते हुए गुरु महाराजजी ने कहा पदयात्रियों आप पढ़ते हो कि नहीं) ठीक है पदयात्री सब पढ़ रहे हैं आजकल पदयात्रा नहीं हो पा रही है इस लॉक डाउन की वजह से पर वो सब अपनी अपनी साधना में जुटे हुए हैं श्रवण कीर्तन को बढ़ाइए जैसे अभी चातुर्मास शुरू है यह श्रवण कीर्तन का समय है अध्ययन औऱ पठन-पाठन का समय है। बोध यन्ता परस्परं का समय हैं । ठीक है आपको जो भी जिज्ञासा एवम प्रश्न होंगे वो सब आपने लिखे होंगे आपसे पुनः मिलेंगे बोलो श्री राधे श्याम........

English

24 August 2020 Day 5 - Ras-lila is the topmost pastime Hare Krishna. Today we have participants from 816 locations. jaya rādhe, jaya kṛṣṇa, jaya vṛndāvan śrī govinda, gopīnātha, madana-mohan Translation All glories to Radha and Krsna and the divine forest of Vrndavana. All glories to the three presiding Deities of Vrndavana--Sri Govinda, Gopinatha, and Madana-mohana. ( Verse 1 , Sri Viraj Dham mahatmya by Krishna dasa) Govind Shyam, are you listening? Hare Krishna! (1) jaya rādhā-mādhava kuñja-bihārī jaya rādhā-mādhava jaya kuñja-bihārī jaya gopī-jana-vallabha jaya giri-vara-dhārī (2) yaśodā-nandana braja-jana-rañjana yāmuna-tīra-vana-cārī jaya rādhā-mādhava kuñja-bihārī Translation 1) Krsna is the lover of Radha. He displays many amorous pastimes in the groves of Vrndavana, He is the lover of the cowherd maidens of Vraja, and the holder of the great hill named Govardhana. 2) He is the beloved son of mother Yasoda, the delighter of the inhabitants of Vraja, and He wanders in the forests along the banks of the River Yamuna! Wanderer of the banks of river Yamuna and the Forests (forests on the banks of river Yamuna) Srila Prabhupada always sang this song. This song is sung before every class at ISKCON. It is the topmost pastime. This song begins with jaya rādhā-mādhava kuñja-bihārī. How is Radha Madhav? They are always roaming in different meadows (Kunj biharis). They are givers of pleasure to all the Gopis. Bhagavan Krsna is the reservoir of pleasure and bliss. He lifted Govardhan hill. He gives pleasure to all the people of Braja. Krsna gives pleasure and satisfaction to you, all souls also. On the banks of Yamuna They are wandering. In all these pastimes, Radha Krsna pastimes are prominent. In Braja Krsna propagates parkiya bhav ( paramour love ). The main importance is of Radha Krsna pastimes and Gopi and Radha Krsna pastimes. Whenever Krsna unites with the Gopis the nectar multiplies. raso vai sah Translation Krsna, the supreme Lord is reservoir of all the pleasures. ( Taittariya Upanishad)) Krsna is the reservoir of all rasas. Those who immerse themselves in this rasa, experience nectar which goes on increasing so much that it becomes Rasa. It is beyond explanation. They float in an ocean of this nectar. They dance the Rasa Dance. Krsna gets complete pleasure from this Rasa Dance. Rasa Dance is the top most and highest pastime. There is nothing higher than Rasa pastime of Krsna. In Srimad-Bhagawatam’s 10 canto, from chapter 29 to chapter 33 these Rasa pastimes are explained so they are called Rasa Panchadhyayi. This is also called the heart of Srimad-Bhagawatam. These five chapters are the abstract of Srimad-Bhagawatam. In these five chapters Krsna’s Rasa pastimes are described. Of course it is a small description. Radha Krsna pastime or Gopi Krsna pastime or Madhurya pastime took place all the time. Mainly two times are fixed. The afternoon pastime takes place at Radha-Kunda everyday. And then again at midnight Radha Krsna pastime takes place in different meadows which are designated for this. Gopis assemble to meet Krsna at midnight and they perform Rasa pastime throughout the entire night. These five chapters begin with this shloka. śrī-bādarāyaṇir uvāca bhagavān api tā rātṛīḥ śāradotphulla-mallikāḥ vīkṣya rantuṁ manaś cakre yoga-māyām upāśritaḥ Translation Śrī Bādarāyaṇi said: Śrī Kṛṣṇa is the Supreme Personality of Godhead, full in all opulences, yet upon seeing those autumn nights scented with blossoming jasmine flowers, He turned His mind toward loving affairs. To fulfil His purposes He employed His internal potency. ( SB 10.29.1) That night has come when the moon is a full moon. It is night in the autumn season. Fragrant flowers like Mallika are blooming. At a place called Chirghat Krsna performed the Vstra-haran pastime. At that time Krsna had promised, “We will meet again in future at night.” The night which is mentioned in the shloka is the night Krsna had promised at Chirghat. That night is a night in autumn. It is actually Ashwin month. From the next day of this full moon night , is the beginning of Kartik. Here is the discussion of that full moon night. Krsna plays flute and sends a message that You are welcome. The melody of the flute brings all the Gopis towards the meadow where Krsna is playing His flute. All Gopis from the Braj reach there. śrī-bhagavān uvāca svāgataṁ vo mahā-bhāgāḥ priyaṁ kiṁ karavāṇi vaḥ vrajasyānāmayaṁ kaccid brūtāgamana-kāraṇam Translation Lord Kṛṣṇa said: O most fortunate ladies, welcome. What may I do to please you? Is everything well in Vraja? (S.B. 10.29.18) Lord Krsna welcomes them all and inquired. “What can I do to please you?” Then suddenly Krsna chastised them, “Why you have come here leaving your homes on such a dangerous and dark night? It is so late. Here are dangerous animals around. No, no! You must return to your homes.” Then the Gopis were disheartened and became sad. Actually it was the beginning of the Rasa pastime. The preparation was going on. At first the Lord welcomed them and suddenly Krsna again advised them to return to their respective homes. Then Krsna sarcastically said, “Oh! You have come to see the meadows and not to meet Me. Then go and see the forest. It is so late now and this is a dangerous forest. Go back! Go back !” The Gopis were disappointed and felt helpless and were very sad. Then all together they sang a song. In the 10th canto of Srimad-Bhagawatam five different songs are mentioned, like Yugala-geet, Venu-geet, Bhramar-geet. This Gopi-geet is one of those five songs. Gopis have expressed their emotions and feelings in this. Gopis started feeling that, tāsāṁ tat-saubhaga-madaṁ vīkṣya mānaṁ ca keśavaḥ praśamāya prasādāya tatraivāntaradhīyata Translation Lord Keśava, seeing the gopīs too proud of their good fortune, wanted to relieve them of this pride and show them further mercy. Thus He immediately disappeared.(SB 10.29.48) One chapter of this Rasa Panchadhyayi is based on Gopi Geet. Before the Gopi Geet the Gopis sung these two famous songs. Radharani is also there with these Gopis. The two songs sung by Radha and Gopis are included in Rasa Panchadhyayi. The Gopis prayed to Krsna by singing the song. They are praying, “Please do not part us from You.” They are expressing their desire and mood. Suddenly Krsna took only Radha with Him and alone with Radha He disappeared and went to some other place deep inside the forest. At the end of the 29th chapter Sukhadev Goswami has said. tāsāṁ tat-saubhaga-madaṁ vīkṣya mānaṁ ca keśavaḥ praśamāya prasādāya tatraivāntaradhīyata Translation Lord Keśava, seeing the gopīs too proud of good fortune, wanted to relieve them of this pride and show them further mercy. Thus He immediately disappeared. (ŚB 10.29.48) As Krsna met all the Gopis and preparations for the Rasa dance were being made, this made the Gopis feel special and develop subtle pride in them. They developed the mood that they were some special personalities. There was pride in that mood and so it was not acceptable. It made them think that they were special as they were selected to be a part of the Rasa pastime. Here Sukhadev Goswami said that to remove the mood of pride of the Gopis of being special , Bhagavan Krsna disappeared. One more purpose was to give special treatment to Radharani as She was also thinking that She had been treated as just one of the crores of Gopis and nothing special and there is no different behaviour and treatment towards Her. This is not correct and therefore Radharani is upset. Then to please Her and assure Her that She is special Radha and Krsna left from there and went far away. Then the Gopis were looking for Radha and Krsna everywhere. In the 30th chapter of Rasa Panchadyayi it is mentioned how Gopis went from one forest to another in search of Krsna. And asking everyone to the trees, tulsi whoever came in their way they were asking living and non living things about Krsna. Actually in Vrindavan there is nothing non living. Everything is living thing over there. They are asking everyone,“Have you seen Krsna? He must have gone from here.” While searching for Krsna suddenly a few Gopis saw the fresh footprints on the land. They came to know that these belonged to Krsna. The footprints were like Krsna has just walked on the that land. There are various symbols on the feet of Lord. Like chakra, Padma, fish, flag, etc. Then they started moving forward by tracing the footprints with different symbols. Then at some distance , again they saw another pair of footprints of one more person. It looked like two persons have walked from there with each other. They started wondering whose footprints were these. To answer this Sukadev Goswami mentions anayārādhito nūnaṁ bhagavān harir īśvaraḥ yan no vihāya govindaḥ prīto yām anayad rahaḥ Translation Certainly this particular gopī has perfectly worshiped the all-powerful Personality of Godhead, Govinda, since He was so pleased with Her that He abandoned the rest of us and brought Her to a secluded place. ( SB 10.30.21) One Gopi said, “Don’t you understand that these footprints are of Radhika who is always worshiping Lord Krsna. That’s why Her name is Radhika. I want to tell you that this is the only place in the entire Srimad-Bhagawatam, in the 10th chapter or in Rasa Panchadhayi where Srila Sukadev Goswami mentioned Radharani. This is only once. He has mentioned Radha and called Radha’s name, but Sukadev Goswami has not mentioned the complete name or direct name of Radha. If he had said Her name, then it would have been very difficult for him. He would have lost external consciousness. We always chant Radhe Radhe, but nothing happens to us. We do not have that intensity of Bhakti. But if Sukadev Goswami says, ‘Radhe' then he is finished and so the story he is narrating to King Parikshit would have stopped there. So very carefully he says anaya radhito nuenam. Sukadev Goswami is Radharani’s pet parrot. That is why Radharani is also called as Suka-Ishta. That means worship of parrot. Like ishtadev, it is ishata. Ishata of Sukadev Goswami means that Sukadev Goswami worships Radharani. Here Radharani is mentioned in Srimad-Bhagawatam, but many less intelligent persons who are not aware of Srimad-Bhagawatam properly, claim that Radharani is not mentioned in Bhagawatam. They say if it had been mentioned, then Sukadev Goswami would have surely have said, “Radha, Radha.” But why not? It is said here and also in other places in Bhagawatam. So it is clear that Sukadev Goswami has mentioned Radharani. The Gopis now move forward by tracing the footprints. Now they saw footprints of Krsna only. It looked like that they are more deeply immersed in the soil of Braja. A big hole is formed due to the footprints of Krsna. They understood that Krsna must have lifted Radharani on His shoulders. That is why Radharani’s footprints were not visible. Krsna has lifted Radharani so His footprints are gone deep in the soil. Then moving forward they saw only the toes print embossed in soil. Then they inferred that Krsna must have raised Himself to pluck selected flowers for Radharani. Or He must have jumped, so only the toe print is embossed. Moving further they saw footprint pairs of two persons facing each other. Then they thought that Krsna is sitting behind Radharani and He decorated Radharani’s hairs with specially selected flowers. Thus He has increased Radharani’s beauty. As they move forward they found Radharani there. Only Radha was there. What happened ? Radha must have said, “I am very tired. Please lift Me again on Your shoulder.” As Radha was trying to sit on His shoulder, suddenly Krsna had disappeared. Radharani is left alone there. She met the Gopis there. The Gopis saw that Radharani was praying to Krsna. hā nātha ramaṇa preṣṭha kvāsi kvāsi mahā-bhuja dāsyās te kṛpaṇāyā me sakhe darśaya sannidhim Translation She cried out: O master! My lover! O dear most, where are You? Where are You? Please, O mighty-armed one, O friend, show Yourself to Me, Your poor servant! (SB10.30.39) Gopis said, “Hey dear! Hey strongest one, with long arms, where are You ? Where are you?” Radharani is saying, “I am Your servant. Please be merciful and take Me where ever You are or please come here. Please give Me Your association.” Radharani very desperately prays to Krsna. Gopis saw Radharani and listened to what She was praying. Now Krsna was not returning. Initially the Gopis were searching for Krsna. While searching they met Radha. Now Radha is also searching for Krsna. “Where are You ?” Now Radha and the Gopis start looking for Krsna together. As they were looking for Krsna they realised that they had lost Krsna on the banks of Yamuna, then they could possibly find Krsna where they had lost Him. “We have not lost Him in the forest.” Actually Radha had lost Him in the forest. If we lost our home key in the office then we will not get it at home. We will get it where we lost it. Thus they thought that they should go there and search for Krsna. All the Gopis with Radharani reached the banks of Yamuna. There they all together started calling for Krsna. It is popularly known as Gopi Geet. It is in the 31st chapter. This is the third chapter of the five chapters of Rasa Panchadhyayi. Chapter 31, 1 to 19 gopya ūcuḥ jayati te 'dhikaṁ janmanā vrajaḥ śrayata indirā śaśvad atra hi dayita dṛśyatāṁ dikṣu tāvakās tvayi dhṛtāsavas tvāṁ vicinvate Translation The gopīs said: O beloved, Your birth in the land of Vraja has made it exceedingly glorious, and thus Indirā, the goddess of fortune, always resides here. It is only for Your sake that we, Your devoted servants, maintain our lives. We have been searching everywhere for You, so please show Yourself to us.( S.B. 10.31.1) This complete chapter is called as Gopi Geet. This is a very special song.These are the words of Radha and the Gopis. In this remembrance of Krsna is there. nāhaṁ tiṣṭhāmi vaikuṇṭhe yogināṁ hṛdayeṣu vā tatra tiṣṭhāmi nārada yatra gāyanti mad-bhaktāḥ Translation Although the Supreme Personality of Godhead, Ananta, eats through the fire sacrifices offered in the names of the different demigods, He does not take as much pleasure in eating through fire as He does in accepting offerings through the mouths of learned sages and devotees, for then He does not leave the association of devotee This is a promise by the Lord that wherever My devotees come together and sing, I will reach there. Same thing happened as the Gopis sung this song and remembered Krsna then Krsna appeared in front of them. As this song appeared Krsna also appeared. Lord is non different from this song or His remembrance. If the Lord is being remembered it means the Lord is there. In next chapter there is a conversation between Radha, the Gopis and Krsna. There is the meeting and now again arrangements for Rasa Dance begins. In-between there was some interval as Krsna disappeared and then returned. As the conversation goes on it is mentioned at the end of chapter 32 the most popular promise by Krsna na pāraye ’haṁ niravadya-saṁyujāṁ sva-sādhu-kṛtyaṁ vibudhāyuṣāpi vaḥ yā mābhajan durjara-geha-śṛṅkhalāḥ saṁvṛścya tad vaḥ pratiyātu sādhunā Translation I am not able to repay My debt for your spotless service, even within a lifetime of Brahmā. Your connection with Me is beyond reproach. You have worshiped Me, cutting off all domestic ties, which are difficult to break. Therefore please let your own glorious deeds be your com (S.B.10.32.22) Krsna said ‘Hey Radhe and Gopis I am eternally indebted to you.I am extremely grateful to you. You always serve Me with devotion. I can never forget the favours done by you. I am immersed in this debt that I am not able to clear.’ Krsna expressed these thoughts and mood. We can only imagine Radha’s love towards Krsna, Gopis’ love towards Krsna. This love is not only saying, “I love you.” It is not just lip service. It is transcendental, loving service offered by the Gopis and Krsna to each other. Krsna is saying that this is too much of a debt on Him that He can never clear. In the fifth chapter (ie chapter 33) there is a description of the Rasa pastime. Krsna takes as many forms as the number of Gopis present. There was music and dance. Without music, dance is not possible. We can call it music or sankirtana. We should have singing , playing of instrument in rhythm with each other. There must be singing, beating of instruments together and then the dance begin. Mahaprabhu kirtan Nitya gita These three elements - singing, playing instruments and dance is all happening in Rasa Dance. Some Gopis were singing. Few were playing instruments and all were dancing. Krsna was with each one of them. It is said that this Rasa Dance lasted for the complete night of Brahma. Brahma’s night consists of 1000 Divya yugas. This Rasa dance pastime is aneternal pastime. It is also stated in the last shloka of the fifth chapter - which means at the end of 33 chapter. Sukadev Goswami has mentioned the benefits of hearing and explaining this Rasa Panchadhayi as vikrīḍitaṁ vraja-vadhūbhir idaṁ ca viṣṇoḥ śraddhānvito ’nuśṛṇuyād atha varṇayed yaḥ bhaktiṁ parāṁ bhagavati pratilabhya kāmaṁ hṛd-rogam āśv apahinoty acireṇa dhīra Translation Anyone who faithfully hears or describes the Lord’s playful affairs with the young gopīs of Vṛndāvana will attain the Lord’s pure devotional service. Thus he will quickly become sober and conquer lust, the disease of the heart. ( SB 10.33.39) Sukadev Goswami says that one who hears this Rasa dance pastime or conjugal love with full faith, or one who shares or describes it to others then he attains the highest level of devotion and becomes free from disease of heart known as lust. You must have heard of heart attacks, or artery blockages, but he is talking about the disease of lust. Such a person will be free from this dangerous disease of Lust. Chanting Hare Krishna maha-mantra also gives the same result. One is attached to true love and free from lust. This hearing and speaking is the medicine to get freed from this disease. We will stop here. I think we will give you a few minutes. We will open the chat and you can send your questions, comments. Send your thoughts, realisations, and comments or any questions. You can write it, others can chant as you wish. If you are in hurry then you may leave the meeting. We do not mind. Padmavati are you reading the transcription in English ? Are you able to understand what they type or write.? Other English speaking devotees also from Russia, Ukraine? They are sharing the Japa talk. And now only one day is remaining for Radhasatami. Only tomorrow and then day after tomorrow is Radhasatami. Radhasatami mahotsav ki Jai! This Japa talk is preparation. We are preparing ourselves. During the day you may read more about this. I have explained a short description of those five chapters. You know from where we began. Try to read those five chapters not complete, but at least the thing which you do not understand or if you want to know more about something. For this you must have Bhagawatam with you. All of you must have Bhagawatam as your property. A complete set of Bhagawatam or you should have all the books by Srila Prabhupada. The day after Radhasatami Bhagawat katha by Sukadev Goswami had begun. That was completed on full moon day. This is Bhadrapad month, so on full moon day Srimad-Bhagawatam was completed by Sukadev Goswami. We should distribute Bhagawatam or we should gift it. It has very high spiritual benefits. BBT wants you to distribute maximum number of books. Make sure that you have a Bhagawatam set. You can gift it to others. Or sell it? Why not ? But you must have a Bhagawatam set, otherwise you will not be able to study the 10th canto which is explained today. Then you will keep on asking questions. Instead you must read. You keep on asking so many questions because you do not hear or read properly and then keep on troubling. Do your homework. Read books. Padayatris, are you reading ? Ok they are reading. They are not able to continue Padayatra due to lock down. Have you increased hearing and reading? This is caturmasa going on so this time is for study. mac-citta mad-gata-prana bodhayantah parasparam kathayantas ca mam nityam tusyanti ca ramanti cha Translation The thoughts of My pure devotees dwell in Me, their lives are surrendered to Me, and they derive great satisfaction and bliss enlightening one another and conversing about Me. ( BG 10.9) You must have written whatever you wished to write. We will meet again. Gaur Premanande Hari Haribol. Jai Jai Sri Radhe Shyam. Haribol.

Russian