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*जप चर्चा* *पंढरपुर धाम से* *दिनांक 11 मई 2021* 850 स्थानों से भक्त जुड़े है । गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल । आज गदाधर पंडित आविर्भाव दिवस है । गदाधर पंडित की जय । *जय जय श्री चैतन्य जय नित्यानंद जय अद्वैत चंद्र जय गौर भक्त वृन्द।* हरि हरि । गदाधर पंडित पंचतत्व में से एक है । गदाधर पंडित पंचतत्व के एक सदस्य है । पंचतत्व , पांच तत्व हर एक का अपना एक तत्व है और गदाधर पंडित का भी अपना तत्व है । गौर भगवान कहते हैं या कृष्ण कहते है , *जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः |* *त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन ||* (भगवद्गीता 4.9) *अनुवाद* हे अर्जुन! जो मेरे अविर्भाव तथा कर्मों की दिव्य प्रकृति को जानता है, वह इस शरीर को छोड़ने पर इस भौतिक संसार में पुनः जन्म नहीं लेता, अपितु मेरे सनातन धाम को प्राप्त होता है | मुझे और फिर मेरी लीलाओं को जो तत्वता जानता है उसका कल्याण निश्चित है उसका उद्धार निश्चित है । *त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति* पुनः जन्म नहीं होगा तुम मेरे धाम लोटोगे । पंचतत्व में एक गदाधर पंडित तत्व भी है जिन को जानना या उनका तत्व समझना कोई मामूली बात नहीं है। फिर भी हम उनको समझने की कोशिश करेंगे । उनके संबंध में शास्त्रों में वर्णन है , उल्लेख है आचार्य ने वर्णन किया है। एक गदाधर पंडित कौन है ? कहां है ? इस को नोंद कीजिएगा । अगर आपकी समझ में नहीं आ रहा है , यह गदाधर पंडित कौन है? दक्षिने निताईचंद बामे गदाधर , जब पंचतत्व का हम दर्शन करते हैं तब मध्य में श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु होते हैं और उनके दाहिने बगल में नित्यानंद प्रभु रहते हैं और बाही बगल में जो व्यक्तित्व होता है , जिनका हम दर्शन करते हैं वह गदाधर पंडित है । हरि हरि । गदाधर पंडित , राधारानी ही गदाधर पंडित कर रूप में प्रकट हुई है । यह जब कहते हैं तब यह भी कहना होगा , यह सब कहते कहते गदाधर पंडित की चर्चा कुछ कम होगी लेकिन विचार आ गया है तो सुन लो , एक राधा रानी चैतन्य महाप्रभु के साथ है ही। *श्री कृष्ण चैतन्य राधा कृष्ण नाही अन्य* कृष्ण और राधा चैतन्य महाप्रभु के रूप में प्रकट हुए हैं ही लेकिन गदाधर के रूप में भी राधारानी प्रकट हुई है। और आपको यह बता दें कि एक श्री गदाधर भी है , एक है गदाधर पंडित और गौर लीला मे दूसरा व्यक्तित्व श्री गदाधर है । वह राधा रानी ही है या गदाधर के रूप में राधा रानी की कांति प्रकट हुई थी । श्री गदाधर परिकेरों में रहा करते थे , और यह गदाधर पंडित है । आप जानते हो कि भगवान की नित्य लीला में , वृंदावन में या गोलोक में भी जो वृंदावन है , वहां राधा और कृष्णा मिल नहीं सकते थे या कुछ समय के लिए ही मिलना होता था या छिप छिप के मिलना पड़ता था । एक दूसरे को देखना भी है तो तिरछी नजरों से देखना पड़ता था , वहां कई सारे बंधन है रुकावटें है लोक व्यवहार है या कहां जा रहे हो ऐसे रोक है इसको करना पड़ता है और करते हैं इसलिए राधा और कृष्ण सब समय साथ में नहीं रह सकते । जब कृष्ण श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के रूप में प्रकट हो रहे थे तब राधा ने सोचा कि यह अवसर अच्छा है, मैं भी प्रकट हो जाऊंगी किंतु स्त्री बनके नहीं मैं पुरुष रूप धारण करूंगी और फीर श्री कृष्ण के साथ मे जितना जी चाहे , मैं उनका अंग संग कर सकती हूं इस विचार के साथ यह प्राकट्य हुआ ऐसे हमें समझ में आता है राधा रानी का गोलोक में यह विचार है । वह प्रकट हो गए आज के दिन आज गदर पंडित का आविर्भाव दिन है। वह मायापुर में प्रकट हुए हैं जहां चैतन्य महाप्रभु प्रकट हुए थे । वह एक ही गांव में प्रकट हुए थे , और पंच तत्व के जो सदस्य है वह कोई बांग्लादेश में कोई बंगाल में प्रकट हुए थे । वह दूसरे पीढ़ी के थे , बुजुर्ग थे ,चैतन्य महाप्रभु के पहले ही प्रकट हुए थे । गदाधर पंडित चैतन्य महाप्रभु के समकालीन रहे। लगभग एक ही उम्र वाले और एक ही गांव में प्रगट हुए जन्मे है और बचपन से ही वह साथ में रहे और खेला करते थे उनकी पढ़ाई भी साथ में हुई जिसको हम लंगोटी यार कहते हैं वैसे वह यार थे मित्र थे। हरि हरि । 1 दिन की बात है , चैतन्य महाप्रभु खोज रहे थे कहां है ? कहां है? कृष्ण कहां है ? मेरे कृष्ण कहां है? *हे राधे व्रजदेविके च ललिते हे नन्दसूनो कुतः श्रीगोवर्धन - कल्पपादप - तले कालिन्दीवन्ये कुतः घोषन्ताविति सर्वतो व्रजपुरे खेदैर्महाविह्वली वन्दे रूप - सनातनौ रघुयुगौ श्रीजीव - गोपालको* *अनुवाद:- वृन्दावन के छः गोस्वामी , श्री रूप गोस्वामी , श्री सनातन गोस्वामी , श्री रघुनाथ भट्ट गोस्वामी , श्री रघुनाथ दास गोस्वामी , श्री जीव गोस्वामी तथा श्री गोपाल भट्ट गोस्वामी के प्रति मैं अपने आदरयुक्त प्रणाम अर्पण करता हूँ , जो वृन्दावन में अति उच्च स्वर में घोष करते हुए सर्वत्र विचरण करते थे , " हे वृन्दावनेश्वरी , हे राधारानी ! हे ललिता ! हे नन्द महाराज के पुत्र ! आप सभी अब कहाँ हो ? क्या आप गोवर्धन की पहाड़ी पर हो ? अथवा यमुना के तट पर स्थित वृक्षों के तले हो ? कहाँ हो आप ? ' ' इस प्रकार की भावनाओं से प्रेरित होकर उन्होंने कृष्णभावनामृत का आचरण किया । ऐसी बात षठ गोस्वामी वृन्द कृष्ण की तलाश में सर्वत्र दौड़ते हैं और पूछते हैं , कहां है ? कहां है? कहां मिलेंगे ? श्रीकृष्ण तब निमाई ही थे । एक समय वैसे पूछ रहे थे कहां है? कहां है? तब उनको बताया गया कि तुम्हारे भगवान या तुम्हारे कृष्ण तुमसे दूर थोड़ी है , वह तुम्हारे साथ है , तुम्हारे अंदर है ,तुम्हारे ह्रदय में है ऐसे सुनते ही निमाई ने क्या किया ? अपने उंगलियों से , नाखूनों से अपने वक्षस्थल की खुदाई शुरू की , चीरफाड़ कियजैसे हनुमान ने किया था , वैसा ही प्रयास जब हो रहा था तब गदाधर पंडित वही थे उन्होंने बड़ी युक्ती पूर्वक निमाई को रोका , जो स्वयं को हानि पहुंचा रहे थे , खून खराबा हो रहा था । यह बात वैसे दूर से ही सचिमाता देख रही थी , जिस प्रकार से निमाई को सचिनन्दन को गदाधर पंडित ने समझाया बुझाया था । सची माता गदाधर पंडित से बहुत प्रसन्न हुई और कहा कि तुम सब समय साथ में रहा करो , निमाई के उपर नजर रखो , उसकी रक्षा किया करो और यह गदाधर पंडित तो चाहते ही थे । कृष्ण का जो अब श्रीकृष्ण चैतन्य बने हैं उनका अंग संग चाहते थे , वह नवदीप लीला में वह साथ में रहे फिर जब श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु का निमाई संन्यास हुआ , चैतन्य महाप्रभु अब जगन्नाथपुरी में रहने लगे तब गदाधर पंडित भी वहां आ गए और चैतन्य महाप्रभु ने वैसे उनसे संकल्प करवाया , "तुम जगन्नाथपुरी में ही रहना" उनको धाम सन्यास दिया । औपचारिक दृष्टि से सन्यास नहीं था , संकल्प करवाया तुम जगन्नाथपुरी में रहोगे , जगन्नाथपुरी को छोड़कर कहीं नही जाओगे , जिसको क्षेत्र संन्यास कहते हैं । जगन्नाथपुरी श्री क्षेत्र भी कहलाता है , श्री क्षेत्र मतलब राधा रानी का उल्लेख होता है , लक्ष्मी कहो या राधा रानी कहो । जगन्नाथपुरी को पुरुषोत्तमक्षेत्र भी कहते हैं , पुरुषोत्तम के नाम से भी प्रसिद्ध है और श्री क्षेत्र भी कहते हैं , राधा रानी श्री है , राधा का क्षेत्र है , तुम यही रहो कहा । गदाधर पंडित जगन्नाथ पुरी में रहने लगे और वह पंडित थे उनके पांडित्य का क्या कहना ? यह गदाधर पंडित प्रकांड विद्वान थे , खास करके श्रीमद्भागवत के मर्मज्ञ थे । गदाधर पंडित जगन्नाथ पुरी में टोटा गोपीनाथ , एक टोटा गोपीनाथ है , गोपीनाथ के विग्रह प्राप्त हुए वहां जहाँ टोटा गोपीनाथ मंदिर है । गदाधर पंडित गोपीनाथ की आराधना के पुरोहित या पुजारी बने । देखिए गदाधर पंडित स्वयं राधा रानी है और वहां आराधना कर रहे हैं । *आश्विष्य वा पाद - रता पिनष्टु माम् अदर्शनान्मर्म - हता करोतु वा ।* *यथा तथा वा विदधातु लम्पटो मत्प्राण नाथस्तु स एव नापरः ।।* (चैतन्य चरितामृत अन्त्य 20।47 ) अनुवाद “ अपने चरणकमलों पर पड़ी हुई इस दासी का कृष्ण गाढ़ आलिंगन करें या अपने पांवों तले कुचल डालें अथवा कभी अपना दर्शन न देकर मेरा हृदय तोड़ दें । आखिर वे लम्पट हैं और जो चाहें सो कर सकते हैं , तो भी वे मेरे हृदय के परम आराध्य प्रभु हैं । ' राधारानी के प्राणनाथ, गोपीनाथ, राधानाथ कि वह गोपीनाथ मंदिर में आराधना करने लगे और वह श्रीमद्भागवत की कथा भी सुनाया करते थे । हरि हरि । शुकदेव गोस्वामी ने कथा सुनाई लेकिन यह श्रीमद्भागवत के कथा का श्रवण शुकदेव गोस्वामी , राधारानी के भक्त , शुकदेव गोस्वामी का एक नाम शुकेष्ट है , शुक इष्ट , जिनकी इष्टा स्त्री लिंग में इष्टा कहते है , राधा रानी है। राधा रानी जिनकी इष्टा है वह शुकदेव गोस्वामी ने राजा परीक्षित को भागवत कथा सुनाई और वहां वैसे कहा भी है । *चारि वेद दधि भागवत मथुलेना सुके खाइलेनु परिक्षिता* चार वेद दही है और भागवत नवनीत है , माखन है , और यह नवनीत भागवत बन गया तब फिर क्या किया ? शुकदेव मतीलेन शुके , शुकदेव गोस्वामी ने इस इस भागवत अमृत का और आगे मंथन किया है और राजा परीक्षित को भागवद का पान कराया । यहा अभी जगन्नाथपुरी में क्या हो रहा है ? टोटा गोपीनाथ मंदिर में स्वयं राधा रानी गदाधर पंडित के रूप में भागवत की कथा सुनाया करती थी या करते थे। गदाधर पंडित के रूप में भागवत की कथा सुनाया करती थी या करते थे और फिर जो वक्ता है गदाधर पंडित और श्रोता बन जाते थे श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु तो प्रतिदिन गंभीरा से जहां श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु रहा करते थे वहां से टोटा गोपीनाथ मंदिर आते थे गदाधर को मिलने के लिए और गदाधर से कुछ गुह्यम आख्याति... *ददाति प्रतिगृह्णाति गुह्ममाख्याति पृष्छति ।* *भुड.कते भोजयते चैब पडविरं प्रीति-लकषणम् ॥४॥* *अनुवाद :- दान में उपहार देना, दान-स्वरूप उपहार स्वीकार करना, विश्वास में आकर अपने मन की बातें प्रकट करना, गोपनीय ढंग से पूछना, प्रसाद ग्रहण करना तथा प्रसाद अर्पित करना -भक्तों के आपस में प्रेमपूर्ण व्यवहार के ये छह लक्षण हैं।* हम तो कल्पना भी नहीं कर सकते जब गदाधर पंडित जी तो राधा रानी है वहा पर भागवत को सुना रहे हैं तो कितना रस आ रहा है और कितना रस उससे निकालते होंगे उस रस का मंथन करके हरी हरी और उसका पान करते थे श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु हम पढ़ते, सुनते हैं कि जब गदाधर पंडित भागवत कथा सुनाते थे तो उनके भाव का क्या कहना यह सब राधा की भाव है और उनकी व्याकुलता का क्या कहना और आगे *नयनें गलदश्रु-धारया* *वदने गद्गद-रुद्धया गिरा।* *पुलकैर्निचितं वपुः कदा* *तव नाम-ग्रहणे भविष्यति ॥ 36॥* *अनुवाद :- हे प्रभु, कब आपके पवित्र नाम का कीर्तन करते हुए मेरे नेत्र प्रवहमान अश्रुओं से पूरित होकर सुशोभित होंगे? कब आपके पवित्र नाम का कीर्तन करते हुए दिव्य आनन्द में मेरी वाणी अवरूद्ध होगी और मेरे शरीर में रोमांच उत्पन्न होगा?'* इस भाव का क्या कहना गदगद रुद्धया गिरा उनका गला गदगद हो उठना शरीर में रोमांच होना इसी के साथ वह कथा सुनाया करते थे और जो जो बातें सुखदेव गोस्वामी कहने के लिए टालते थे और इसलिए हम जानते हैं कि राधा का नाम भी *अनयाराधितो नूनं भगवान्हरिरीश्वरः । यन्नो विहाय गोविन्दः प्रीतो यामनयद्रहः ॥२८ ॥* *श्रीमद्भागवत 10.30.28* *अनुवाद:- इस विशिष्ट गोपी ने निश्चित ही सर्वशक्तिमान भगवान् गोविन्द की पूरी तरह पूजा की होगी क्योंकि वे उससे इतने प्रसन्न हो गये कि उन्होंने हम सबों को छोड़ दिया और उसे एकान्त स्थान में ले आये ।* ऐसा ही कह कर सुखदेव गोस्वामी चुप हो गए पंच अध्याय में और जहां पर कहीं भी राधा रानी का नाम लेना भी कठिन था उनके लिए अगर राधा का नाम लेते तो वह भाव विभोर होते और कथा भी ठप हो जाती यहां तो कोई राधारानी के लिए समस्या नहीं है राधारानी गदाधर पंडित के रूप में सारी गोपनीय बातें सुनाते और भागवत लेकर बैठे वह तो अपनी सारी अश्रुधारा से वह ग्रंथ भीग जाता पृष्ठ खराब हो जाते थे समय-समय पर उसका नवीनीकरण या नया ग्रंथ का उनको उपयोग करना पड़ता था हरि हरि और भी यह सब बातें हैं या कथा श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु सुनते गदाधर पंडित के मुखारविंद से इस प्रकार दोनों का राधा कृष्ण और राधा का मिलन यहां हुआ करता था टोटा गोपीनाथ मंदिर में फिर श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु मध्य लीला में वैसे समय-समय जगन्नाथ पुरी से प्रस्थान करते गए दक्षिण भारत, बंगाल गए तो जब उनको वृन्दावन जाना था गदाधर पंडित साथ में जाना चाहते थे तब चैतन्य महाप्रभु रोक लेते थे नही तुमने क्षेत्र सन्यास दिया है तुम यहीं रहो चैतन्य महाप्रभु वृन्दावन के लिए प्रस्थान कर रहे थे वृंदावन के लिए श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु प्रस्थान कर रहे थे तो मतलब अपने धाम लौट रहे थे या अपने धाम को भेट देना चाहते थे तो गदाधर पंडित भी साथ में पीछे पीछे जा रहे हैं समय-समय पर श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु नोट करते थे गदाधर पंडित रुक जाओ वापस जाओ जगन्नाथपुरी जाओ फिर चैतन्य महाप्रभु आगे बढ़ रहे हैं। भाव विभोर होकर कीर्तन के साथ फिर देखते हैं गदाधर पंडित अभी भी पीछा नहीं छोड़ रहे वो कटक तक महाप्रभु के पीछे पीछे क्योंकि इस समय तो चैतन्य महाप्रभु वृंदावन जा रहे हैं तो राधा रानी नहीं जाना चाहेंगे क्या कटक से भी आगे बड़े चैतन्य महाप्रभु और एक नदी आ गई मार्ग में तो बोट से उसको पार करना था तब चैतन्य महाप्रभु चढ़े उस बोट में और गदाधर पंडित भी साथ में चढ़ना चाहते थे लेकिन चैतन्य महाप्रभु ने साफ मना कर दिया नही वही रुको बिलकुल हिलना नही और फिर नौका आगे बढ़ी और उसी के साथ गदाधर पंडित धड़ाम करके गिर जाते हैं। विरह की व्यथा से प्रसिद्ध होते हैं और वह दृश्य मानो लगभग वैसा ही रहा जैसे सोडूनिया गोपी ना कृष्ण मथुरे सी गेला कृष्ण को जब या अक्रूर ले जा रहे थे कृष्ण बलराम को वृंदावन तब ऐसे लगता होगा वाटे जावे त्यांच्या बरोबरी तो गोपी और राधारानी सभी जाने की इच्छा तो रखते थे लेकिन संभव नहीं था कृष्ण ने भी रोकने का हर प्रयास किया था वह सफल नहीं हुई कृष्ण जब रथ में आरूढ़ होकर मथुरा के लिए प्रस्थान किया तब जैसे उनकी मन की स्थिति हुई राधारानी और गोपियों की वैसे ही वह भाव हो गई यहां गदाधर पंडित का हो रहा था और बेचारे लौट गए और फिर उसके बाद काफि लीलाए हैं हमने जो कहा चैतन्य महाप्रभु टोटा गोपीनाथ मंदिर जाना होता था गदाधर पंडित से भागवत कथा श्रवण करने तब अंतिम लीलाओं में या 6 साल तक चैतन्य महाप्रभु ने प्रवास किया चैतन्य लीला के मध्य लीला के 12 वर्ष 18 वर्ष और फिर 24 वर्ष 6 साल प्रचार किया और फिर वापस आए जगन्नाथपुरी में और फिर चैतन्य महाप्रभु लौटते हैं आने के बाद वहां चैतन्य महाप्रभु 12 साल रहे। उन्होंने 18 साल चैतन्य महाप्रभु जगन्नाथ पुरी में रहे गदाधर पंडित और चैतन्य महाप्रभु का सदैव मिलन होता रहा टोटा गोपीनाथ मंदिर में और स्थानों में भी और हम जानते हैं आप भी जानते हो गदाधर पंडित के विग्रह उनकी सेवा करते थे गदाधर पंडित गोपीनाथ के विग्रह में ही श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने प्रवेश किया या तो आप सभी लोग जानते हैं गदाधर के गोपीनाथ में प्रवेश किया अंतर्धान हुए लीलाओं का समापन कराए गोपीनाथ हरि हरि और जब श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने प्रस्थान किया ज्यादा समय के लिए गदाधर पंडित रह नहीं पाए तो वह भी पीछे से उन्होंने प्रस्थान किया जगन्नाथ पुरी हरि हरि गदाधर पंडित आविर्भाव महोत्सव की जय चैतन्य महाप्रभु की जय एक छोटी सी बात है वैसे बात तो कहते ही है हम यह गौड़ीय वैष्णव एक कई कई पर तो केवल गौरांग महाप्रभु की ही केवल आराधना होती है भक्ति सिद्धांतों सरस्वती ठाकुर राधा कृष्ण के विग्रह के साथ केवल चैतन्य महाप्रभु की स्थापना करते हैं और फिर पंचतत्व के विग्रहों की भी आराधना होती है। जैसे आज पंचतत्व मायापुर में है। मायापुर चंद्रोदय मंदिर में आप देखते हो और भी वीग्रह की आराधना होती है गौर गौरांग और गौर नित्यानंद आराधना वैसे गौर निताई की आराधना काही प्रचलित हैं लेकिन गौर गदाधर की भी आराधना होती है वैसे भक्तिविनोद महाराज जी का जो स्वानंद सुखदा कुंज गोदरूम द्वीप में हैं और उनकी समाधि भी हैं जहां वहां पर गौर गदाधर हैं और वैसे योगपीठ में भी जो चैतन्य महाप्रभु का जन्म स्थान हैं वहां पर भी हैं। क्योंकि वही गौर गदाधर साथ मे ही रहा करते थे वहां उनकी बाल लीलायें किशोर लीलाए सम्पन्न हुई हैं। यहां थोड़ा भाव अलग है एक कृष्ण और गदाधर हैं मतलब राधारानी हैं एक प्रकार से ये राधा कृष्ण की आराधना ही हैं गौर गदाधर और गौर नित्यानंद ये कृष्ण बलराम हैं और वैसे गौरांग महाप्रभु भी हैं तो श्री कृष्ण चैतन्य राधा कृष्ण की आराधना पंचतत्व की आराधना भी हैं। हरि हरि हरि बोल🙏🏻

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