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जप चर्चा, 25 फरवरी 2022, पंढरपुर धाम. हरे कृष्ण, आप सभी जप करते रहते हो। जप करने का अभ्यास कर रहे हैं। अधिक समय नहीं लेते हुए परिचय में, आपके साथ एक रिकॉर्डिंग साझा करना चाहता हूं। मैं नहीं बोलूंगा यह रिकॉर्डिंग ही बोलेगा। जप हमको ध्यान भी कहते हैं। ध्यानपूर्वक जप करो। मुझे एक रिकॉर्डिंग प्राप्त हुआ, योग निद्रा करने के लिए योग के लिए। मुझे पसंद आया फिर सोचा कि आप के साथ इसे साझा करूं। जप करते हैं तो हम प्रार्थना करते हैं कि, नाम दर्शये नाम हमे दर्शन दीजिए। मांगी क्रत्य अपना अंग संग दीजिए। मास्वीकरोतू मेरा स्वीकार कीजिए। यह भाव तो महामंत्र के जप के साथ जुड़े हैं ही। कृष्ण इनका ध्यान और इनका सानिध्य। हरि हरि, तो आप सुन ही लीजिए इसको। यह कुछ समय चलेगा ध्यानपूर्वक सुनना है। देखिए कैसे ध्यान का भी उपयोग हम जप के लिए कर सकते हैं या जप के समय कर सकते हैं। मेरे सन्मुख मेरे जुगल सरकार विराजमान है कपिलदेव विधा को ध्यान की विधि बता रहे हैं। हम भी थोड़ी देर ह्रदय को स्थित करके इस ध्यान की विधि का अनुशिलन करे यह भावना करो। वृंदावन में यमुना तट पर युगल सरकार विराजमान है। दिव्य यमुना बह रही है। वंशीवट के नीचे प्रिया प्रियतम गलधिन है यह देखकर अष्टसखीयोंसे प्रेरित होकर दिव्य कमल पर सुशोभित हो रहे हैं। श्यामसुंदर के सुंदर चरणकमलो का ध्यान करो। सबसे पहले अपने नाम जप को प्रबंध करो। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। श्रीकृष्ण के चरणकमलों मे जो चिन्ह है उनका ध्यान करो। सचिन्ह का यह भगवत चरणारविंदम वज्र अंकुश ध्वज सरोरद लांछन ..... सनाधि आहत महत्त ह्रदय अंधकारम उन चरण कमलों का ध्यान करो। जब यह चरणकमल आपके ह्रदय में उदय होंगे तो आहत ह्रदय महत्त्व अंधकार हम वहां आपके ह्रदय के अंधकार का नाश कर देंगे। ऐसे चरत चिन्हों का ध्यान करो। श्रीकृष्ण के चरणों में 24 चिन्ह है और जो श्यामसुंदर के बाये चरण चिन्ह है वह राधारानी के दाहिने चरणचिन्ह है। और दूसरे दाहिने चरण में है वहां राधारानी के बाये चरण में है। और 24 चिन्हों में 5 चिन्ह है। पहला चिन्ह वज्र का है वज्र अंकुश। वज्र अंकुश ध्वजा सरोरदा वज्र चिन्ह का ध्यान करो। यह वज्र यह आयुध है। जिसको इंद्र अपने हाथ में लिए रहते हैं। यह वज्र चिन्ह भगवान के चरणों में हैं। जिससे वज्र के द्वारा बड़े-बड़े राक्षस समूह का निर्मूलन होता है। ऐसे भगवान के चरणों में वज्र का चिन्ह ध्यान लगाने से आश्रित के पाप समूह का नाश होता है। दूसरा चिन्ह अंकुश, यह अंकुश ऐसा चिन्ह है हाथी चलाने वाला महावत अपने हाथ में एक नोकदार छोटी छड़ी लिए हुए हैं। जिसको अंकुश कहते हैं। वह हाथी के कान के पास 1 स्थान पर खिंचता रहता है। जिससे इतना बड़ा मदमत्त हाथी उस महावत के वश में हो जाता है। प्रभु के चरणों में अंकुश के चिन्ह का ध्यान करो। जैसे अंकुश से हाथी वश में हो जाता है। ऐसे भगवान के चरणों में अंकुश का ध्यान करने से यह मनरूपी हाथी जो अनंत जन्मों से जीव को दुख दे रहा है, धीरे धीरे यह मनरूपी हाथी वश में होने लगता है। तीसरा चिन्ह श्रीकृष्ण के चरणों में कमल का है। इस कमल के चिन्ह का ध्यान करो। प्रभु को कमल बहुत प्रिय है। नमो पंकजनाभाय, नमः पंकज मालिने। नमः नेत्राय, मस्ते पंकजांग्रे।। भगवान के नेत्र कमल जैसे हैं। भगवान के चरणों में कमल का चिन्ह है। भगवान गले में भी कमल की माला धारण करते हैं। प्रभु अपने हाथ में कमल ही लेते हैं। प्रभु के सब अंगों की उपमा कमल से की जाती है। भगवान को कमल इतना क्यों प्रिय है, इसीलिए एक कमल पैदा कीचड़ में होता है लेकिन कीचड़ में सढ़ता नहीं है। 1 दिन कोई माली आता है और उस कमल को प्रभु के चरणों में चढ़ा देता है। श्रीकृष्ण के चरणों में कमल का ध्यान करने से, एक दिन यह मन भी कमल के जैसा निष्पाप हो जाता है। वह साधक जो रहता है इस संसार के कीचड़ में पर, कमल के समान उसका मन इस संसार के कीचड़ में लिप्त नहीं होता है। और फिर नंदनंदन के चरणकमलों को पाकर वह धन्य हो जाता है। चौथा चिन्ह ध्वजा का है। ध्वजा का ध्यान करने से जैसे ध्वजा मंदिर के महल के सबसे ऊपर के शिखर पर लहराता ऐसे भगवान के चरणों में ध्वजा का ध्यान करने से उस साधक की भक्ति ध्वजा जगत में सबसे ऊपर लहराती है। कलयुग में दिव्य हवा जी उस ध्वजा को गिरा नहीं पाती है। आगे भगवान के चरणों में मछली का चिन्ह है। मत्स्य के चिन्ह का ध्यान करो। मछली के चिन्ह ध्यान करने से क्या होगा, जैसे मछली की जल में आसक्ति होती है, जल के बिना मछली जी नहीं पाती है, ऐसे भगवान के चरणों में मत्स ध्यान करने से वह धीरे-धीरे श्रीकृष्ण के नाम रूप पर लीला धाम के ऊपर साधक की इतनी आसक्ति हो जाती है कि, वह नाम, रूप, लीला, धाम के बिना रह नहीं पाता है। भगवान के चरणों में स्वास्तिक का चिन्ह है। उस स्वास्तिक के चरणों का ध्यान करो। स्वास्तिक संतुलन का प्रतीक है। स्वास्तिक का ध्यान करने से धीरे-धीरे चित्त के भीतर संतुलन आएगा। तो फिर जो चित्त अभी जगत विषयों के ओर आकृष्ट हो रहा है, वह धीरे-धीरे नंद नंदन के चरणों की ओर आसक्त होगा। उन दिव्य चरणचिन्हों का ध्यान करो। अब धीरे-धीरे अपने मन को ऊपर ले जाओ कैसे श्रीकृष्ण के वो दोनों चरण कमल है। श्रीकृष्ण के सांवले रंग के चरण है और श्री राधा के गौर वर्ण के चरण है लेकिन, दोनों तलुआ लाल है। नंदनंदन के चरणों का ध्यान करो कैसे सुंदर नक्ष सुशोभित हो रहे हैं। उतंग रक्तविलसंग नखचक्रवाल जुसुवाधिन आहत महत हृदय अंधकाराम, भगवान के श्रीचरणों से अलगसे जो प्रकाश निकल रहा है, उसका अनुभव करो। श्यामसुंदर के चरणकमलों के नखोंके प्रकाश हमको प्रकाशित करें। उन नखों के प्रकाश का ध्यान करो। उन नखों में बड़े-बड़े योगी और ज्ञानी विलय प्राप्त हो जाते हैं। कैसे सुंदर प्रभु के चरणकमल हैं। जिनमें दिव्य नूपुर विराजमान है। उस दिव्य पायल को देखो। यह पायल कोई और नहीं। पायल में घुंघरू कोई और नहीं। जितने भी भगवान की दास्य रस के भक्त हैं वह श्रीकृष्ण के चरणों की पायल के नूपुर बन गए हैं। धीरे धीरे अपने चित्त को उन चरणों से जोड़ो। अब अपने मन को ऊपर ले जाओ। देखो प्रभु ने कितनी सुंदर पितांबरी पहनी है। कितनी सुंदर कमर में काचंनी धोती बनी है। पीले रंग की चमचमाती हुई धोती विराजमान है। जिसकी केसरिया किनारी है। उस पितांबरीसे कैसा प्रकाश निकल रहा है। उसका दर्शन करो। मदल मदल हवा के झोंकों से भगवान के वस्त्र उड़ रहे हैं। दर्शन करो। अब धीरे-धीरे मन को ऊपर लेकर जाओ। श्रीकृष्ण के चरणों में कितने सुंदर करधनी बंधी हुई है। आहाहा! यह करधनी कौन है और बाजू के बाजूबंद। भगवान के जितने साख्य रस के भक्त हैं, वह ठाकुरजी के कमर के करधनी के घुंघरू बन गए हैं। बाजू के बाजूबंद बन गए हैं। उस करधनी को निहारो। कैसे सुंदर लग रहे हैं। कैसे सुंदर घुंगरू सुशोभित हो रहे हैं। निहारो। अब धीरे-धीरे अपने नेत्रो को ऊपर ले जाओ। कैसे सुंदर भगवान के लंबी नाभि है। कभी इसी नाभि से कमल उत्पन्न हुआ था। उत नाभि का दर्शन करो। उदर का दर्शन करो। अब भगवान के दिव्य विशाल वक्षस्थल का दर्शन करो। आहाहा! कैसा सुंदर वक्षसल वक्षस्थल है। जिसके ऊपर भृगुलता का चिन्ह है। यह हम भृगुलता का चिन्ह और यह वत्सचिन्ह रेखा कोई और नहीं। जो स्वर्णिम रोमावली के रेखा है यह इसी वत्स चिन्ह है। इस स्वर्णिम रोमावली के रूप में साक्षात श्रीजी ही श्यामसुंदर की वक्षविलासिनी होकर विराजमान होकर विराजमान है। दर्शन करो। प्रभु के गले में बड़े-बड़े हार है। यह हार कौन हैं, यह जो बड़े-बड़े हार हैं जो कभी हिलते दुलते नहीं यह सब भगवान के शांत रस के भक्त हैं। जो भगवान के ह्रदय देश में रहते हैं। उन दिव्य हारो को निहारो। प्रभु के गले में सुंदर वनमाल विराजमान है। जरा इस वनमाल को देखो, इस वनमाल में पांच प्रकार के पुष्प गुथे है तुलसी, कुंद, मंदार, पारिजात, सरोरूही। पंचभिल ग्रंथामाला वनमाला प्रकिर्तितान इसमें तुलसी, कुंद, मंदार, पारिजात और कमल पांच रंग के पुष्प है। इन पांच रंगों के पुष्पों में भी पांच प्रकार के भक्तों की भावना हैं। जो श्वेत रंग के पुष्प है, वह शांत रस के भक्त हैं। जो सुंदर पीले रंग के पुष्प है वह वात्सल्य रस के भक्त हैं। जो नीले रंग के पुष्प है वह दास्य रस के भक्त हैं, क्योंकि उनकी आंखों में हमेशा नील रंग श्याम सुंदर समाए रहते हैं। जो हरे रंग के पुष्प है वह सख्य रस के भक्त हैं क्योंकि इन सख्य रस के भक्तों को तो निरंतर हरा ही हरा दिखता है। और जो लाल रंग के पुष्प है, जो सबसे गहरे रंग के पुष्प है यही मधुर रस के भक्त हैं। जिस रंग में सारे रंग समाहित होते हैं। इस विदग्ध वनमाला का दर्शन करो, इन में विराजमान भक्तों को निहारो। अब धीरे-धीरे अपने मन को ऊपर ले जाओ। कैसी भगवान की दिव्य ग्रीव्हा है और भगवान की दिव्य लंबी-लंबी भुजाओं का ध्यान करो। आ हा हा... प्रभु के बाजू में बाजूबंद सुशोभित है। इन भुजाओं का दर्शन करो, जिसमें दिव्य करोला कंगन विराजमान है। यह वही भुजाएं है, जिन्होंने गिरिराज जी को धारण किया हैं। इन्हीं भुजाओं ने डूबते गजराज को उभारा है। इन्हीं भुजाओ ने डूबते हुए को संभाला है। इन भुजाओं का दर्शन करो। यह भुजाएं ही भक्तों को आश्रय देने वाली है। धीरे धीरे दिव्य भुजाओं का दर्शन करते हुए अब प्रभु के दिव्य हस्तकमल का दर्शन करो। आ हा हा... कितने सुंदर हस्तकमल है। कैसे सुंदर हस्तकमल में चिन्ह हैं। इन हस्तकमल का ध्यान करो। यह हस्तकमल तो चरण कमलों से भी ज्यादा दयालु है। चुंकि चरणों के पास तो साधक को जाना पड़ता है, पर यह हस्तकमल तो स्वयं उठकर के आश्रित के शीश पर विराजमान हो जाते हैं। इन हस्त कमल का ध्यान करो। देखो इन हस्त कमल में सुंदर वंशी विराजमान है। श्यामसुंदर के अधर कमलों पर यह वंशी कैसी शोभा दे रही है। मानो इस वंशी महारानी की श्यामसुंदर सेवा कर रहे हो। मानो हाथों का पलंग बिछाया हो, अधरों का तकिया लगाया हो। उंगलियों से इस वंशी महारानी के चरण दबा रहे हो। मानो भगवान के माथे का मोर पंख इस वंशी देवी को बीजना कर रहा हो। इस वंशी के ध्वनी को सुनो, जगत के शब्दों से उदासीन हो जाओ। श्यामसुंदर की वंशी बज रही है उसमें अपने चित्त को तन्मय करो। और कोई शब्द जीवन में ना रह पाए एकमात्र श्याम सुंदर की वंशी है। इस चित्त को मगन करो। आ हा ... हस्त कमल में वंशी लिए गोविंद कैसे लग रहे हैं ओहो..। मुरली कौन है तप तु कियो। रेहत गिरीधर मुख तु लागी अधर को रस पियो। नंदनंदन पानी परस के तोये सबरस दियो। सुरश्री गोपाल वशभरे जगत मे यश लियो। वंशी कौन तप तु कियो। इस वंशी का ध्यान करो और धीरे-धीरे अपने मन को ऊपर ले जाओ। कैसी सुंदर भगवान की ग्रीव्हा है, कैसी सुंदर भगवान के चिबुक है। आ हा हा.. जिस थोरी पर हीरा दमक रहा है। कैसे सुंदर कमल के पंखुड़ी के समान अधर कमल है। और कैसी भगवान की दिव्य उन्नत नासिका है। ओ हो... कैसी सुंदर कपोल और कैसी सुंदर नासिका में वह गुलाक विराजमान है। कानों में कुंडल विराजमान है यह गुलाक और यह कुंडल कोई और नहीं श्यामसुंदर के जो मधुर रस के भक्त हैं वही श्रीकृष्ण के नासिका के गुलाक और कानों के कुंडल बन गए हैं। जो श्याम सुंदर के अधरों का और कपोलो का चुंबन करते हैं। उस गुलाक को निहारो, उन कुंडलो को निहारो। आ हा..कैसे सुंदर कपोल, कैसी सुंदर नासिका। अब धीरे धीरे धीरे अपने मन को उपर ले जाओ, भगवान के कैसे सुंदर दोनों नेत्र कमल है। आ हा... कमल जैसे बड़े-बड़े नेत्रों को निहारो, जो नेत्र सजल है। यह जो नेत्रों में जल भरा है यह कोई और नहीं, यही करुणा का समुद्र है। श्यामसुंदर में अपने मन को लगाओ, प्रार्थना करो। हे कमलनयन एक बार मेरी ओर निहारलो। हे श्यामसुंदर मैं तुमको प्राप्त करना चाहता हूं लेकिन मेरे में कोई बल नहीं। मुझमें कोई साधन नहीं। तुम्हारी माया बार-बार मेरी चित्त को भ्रमित कर देती है। मैं बार-बार उद्विग्न हो जाता हूं। हे गोविंद यह कृतार्थ की ज्वाला मुझे जला रही है, ना ना प्रकार के दुख मुझे सता रहे हैं। मैं दुखों का पार नहीं पा सक रहा हूं। हे नंदनंदन आसक्ति के बंधन मुझे जकड़े हैं, मैं चाह कर भी तुम्हारी और एक पैर नहीं बढा पा रहा। हे करुणामाय एक बार सिर्फ एक बार नेत्रों से मेरी ओर देख लो, मेरी दुर्दशा को निहार लो। तुम्हारे निहारने मात्र से मेरा कल्याण हो जाएगा। हे नाथ एक बार करुणा भरी दृष्टि से मुझे देख लो। हे श्यामसुंदर मैं तुम्हारी हूं, मैं तुम्हारी हूं। इन नेत्रों को निहारो। कैसे कमल जैसे यह दिव्य नेत्र है। आ हा.. इनका ध्यान करो, धन्य है। धीरे धीरे धीरे अपने चित्त को ऊपर लेकर जाओ। कैसा सुंदर भृकुटि के बीच तिलक विराजमान है, कैसी सुंदर ललाट कि शोभा है। प्रभु के शीश पर सुंदर मोर मुकुट विराजमान है, शीरपेच विराजमान है। उस शीश के आभूषण को निहारो। यह शीश के आभूषण भी कोई और नहीं जितने प्रभु के वात्सल्य रस के भक्त हैं, वह भगवान के शीश के आभूषण बन गए हैं। इनको निहारो। मोरपंख, मोर मुकुट, शीरपेच, सेज फूल सब कुछ कितना दिव्य है उसको निहारो। आ हा.. जहा जितनी देर तक चित्त अटका है अटकाए रखो, उलझाए रखो। जगत की आसक्ति ही बंधन है। यह आसक्ति जब श्री कृष्ण के नाम और रूप में हो जाती है तो वहीं सर्वश्रेष्ठ भक्ति है। श्री कृष्ण के श्री अंग में रूप में अपने चित्त को लगाना। जितनी देर चित्त स्थिर रहे तीव्रेण भक्तियोगेन मनो मय्यर्पितं स्थिरम् मुझ में मन को स्थिर करो। आ हां हां..। अब चढ़े तो श्रीकृष्ण की ओर से थे अब उतरना श्रीजी की ओर से है। श्यामसुंदर के मुकुट से अब श्रीजी के चंद्रिका तक आ जाओ आ हा ..। राधा रानी के मस्तक पर कैसी चंद्रिका सुशोभित हो रही है। प्रिया प्रीतम के सिर आपस में मिले हैं। मुकुट चंद्रिका एक दूसरे का मानो चुंबन कर रहे हैं। तो यह प्रिया प्रीतम कैसी मौज से विराजमान है। उन श्रीजी के अब दिव्य मुखारविंद को निहारो चंद्रिका, मांगपट्टी, शीशफूल, सिंदूर टीका माथे पर दिव्य सिंदूर की बिंदी विराजमान है। ओ हो... ललाट के ऊपर सखियों ने कैसी केसर चंदन से चित्रावली की है, पत्रावली की है। उसको निहारो। अब करुणामई के नेत्रों की ओर देखो आ हा.. हे करुणामई, हे मेरी स्वामिनी, हे मेरी भजन की धन, हे बरसाने वाली, हे वृषभानु दुलारी निहार लो हे करुणामई निहार लो। मुझ को निहार लो एक बार बस निहार लो। करुणामई की नेत्रों की ओर निहारो। यह करुणा की देवी जिसे देख लेगी, उसका उद्धार हो जाएगा, वह भागवत प्रेम में डूब जाएगा। एक क्षण में अत्यंत्यिक दुख निवृत्ति हो जाएगी। परम सेवा, सुख की प्राप्ति हो जाएगी। निहारो इन करुणामई की नेत्रों की ओर निहारो। जो सदा प्रेम में डबडबाए रहते हैं आ हां..। यह कैसे नेत्र कमल है। दिव्य नासिका दिव्य कर्ण कमल, कपोल, चिबुक। श्री अंग का दर्शन करते हुए श्री जी की हस्त कमल की और देख लो। एक हाथ में श्रीजी कमल लिए, एक हाथ में वरद मुद्रा धारण किए विराजमान है। आ हा.. निहारो प्रार्थना करो है प्रिया जी एक बार मेरी शीश पर अपना हस्त कमल विराजमान कर दिजिए। तभी यह मेरी कुबुद्धि सुबुद्धि हो पाएगी। मैं आपको विसार के बहुत दुख पा रहा हूं। लेकिन फिर भी यह कपटी मन, यह अहंकारी मन आपके चरणों को छोड़कर बार-बार जगत में चला जाता है। हे बरसाने वाली एक बार जिन दोनों हस्त कमल में मेहंदी रची है, जिन बाजूओ में कोहनी कोहनी तक चूड़ी विराजमान है, जिन हस्त कमल की उंगलियों में दिव्य दिव्य मुद्रिकाए धारण की है। हे स्वामिनी, हे अटल सुहागन किशोरी जी एक बार एक बार मेरे इस शीश पर अपने दोनों हस्त कम धर दो। मैं तुम्हारी शरण में हूं। हस्त कमल को निहारो, श्रीजी के दिव्य वस्त्रों को देखो। कैसी सुंदर नील साड़ी श्रीजी ने पहनी है, पचरंगी ओढ़नी पहनी है। श्याम सुंदर की पितांबरी पीले वस्त्र और श्री जी के नीले वस्त्र ही क्यों है? श्याम सुंदर का वर्ण नील वर्ण है, इसीलिए श्रीजी नीलवर्ण की साड़ी पहनती है। और श्री जी का अंग वर्ण पीत है पीला है तो श्यामसुंदर पितांबर धारण करते हैं। अर्थ क्या है? मानो श्यामसुंदर के पितांबर के रूप में राधारानी ही अपने प्रियतम को आलिंगन दिए रहती है। और राधा रानी की नील साड़ी के रूप में मानो नंदनंदन ही अपने प्राणवल्लभा को अंकमाल दिए रहते हैं। इस दिव्य नील साड़ी को निहारो और धीरे धीरे धीरे अपने चित्त को नीचे लाओ। कैसे सुंदर चरण कमल है। आ हा.. उन चरण कमलों को निहारो। कैसे सुंदर चरण कमल है जिनमें महावर लगी है, सुंदर केसर की रचना हो रही है। सुंदर चरणों में पायल, पांग फूल, आठो उंगलियों में बिछुआ, अंगूठो में अनवट विराजमान है। आ हा.. उन चरणों को निहारो। धन धन राधिका के चरन सुभग शीतल अतिही कोमल कमल के से वरन नन्द सुत मन मोद कारी, विरह कातर तरन दास परमानन्द छिन-छिन श्याम जिनकी शरन धन धन राधिका के चरन आ हा.. इन चरण कमलों को निहारो। यह जो श्रीजी के चरणों की पायल है इसमें जितने नूपुर कोई और नहीं, सखिया ही श्रीजी के चरणों की पायल बन गई है। जितने नूपुर हैं, उन नुपूरो मे ही सब जीवों के भाग्य की कुंजी लगी है। जो श्रीजी के चरण का आश्रय लेते हैं उन्हीं के भाग्य की कुंजीओ को प्राप्त होती है, सौभाग्य प्राप्त होता है, अमंगल का नाश होता है, मंगल भवन अमंगल हारी की प्राप्ति होती है। उन चरणों को निहारो। अब धीरे धीरे धीरे अपने शीश को उन चरणों के ऊपर विराजमान कर दो। आ हा... मेरा सिर युगल सरकार के चरणों पर रखा है, वे मेरे सिर पर हाथ फेर रहे हैं। अब कहना है तो कह लीजिए, रोना है तो रो लीजिए। हां राधे देखत-देखत दिन सब बीते, तुम अटूट अनुराग की दाता ,हम अजहूँ रीते के रीते,, हृदय न प्रेम न नेम नाम कौ,साधन सकल तजे अबहीते, बिनु पद पंकज "भोरी" स्वामिनी कितहूँ ठौर न ठीक सुभीते, हे करुणामई चरणों पर सिर को रखे रहो। युगल मेरे सिर पर हाथ फेरे हैं। अष्ट सखियां युगल सरकार को घेरकर विराजमान है। प्रिया जी के चरणों का चिंतन करो। अपने मन को बार-बार युगल के चरणों में लगाना है। यह एक दिन का अभ्यास नहीं। धीरे धीरे धीरे यह अभ्यास सिद्ध होगा। नाम जपते जपते रूप का, लीला का, ध्यान का ध्यान करना है। हरे कृष्ण।

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