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जप चर्चा, 9 जुलाई 2021, पंढरपुर धाम. हरे कृष्ण, आप सभी का स्वागत है। 902 स्थानों से भक्त के लिए जुड़ गए हैं। गुरु महाराज कांफ्रेंस में एक भक्तों को संबोधित करते हुए "आप लिख रहे हो" 902 स्थानों से भक्त हर जगह जप कर रहे हैं। भक्त सर्वत्र प्रचार कर रहे हैं। इस समय जप भी कर रहे हैं। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। महामंत्र का प और कीर्तन और यह यज्ञ है। संकीर्तन यज्ञ हो रहा है। और उसमें आप भी उपस्थित और सम्मिलित हो रहे हैं। वह भी हररोज यह अच्छा समाचार है। और इसीसे हम श्रील भक्तिविनोद ठाकुर को भी प्रसन्न कर पाएंगे और गदाधर पंडित को भी। आज श्रील भक्तिविनोद ठाकुर का तिरोभाव महोत्सव है। श्रील भक्तिविनोद ठाकुर तिरोभाव महोत्सव की जय! और गदाधर पंडित का भी तिरोभाव महोत्सव है। गदाधर पंडित का तिरोभाव हुआ 1534 में श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु तोटा गोपीनाथ के विग्रह में प्रवेश किए और अंतर्धान हुए। और उसके कुछ समय उपरांत ही गदाधर पंडित प्रभु भी नहीं रहे। वह भी अंतर्धान हुए आज के दिन। यह बात 1534 के बाद की है, श्रील गदाधर पंडित का तिरोभाव। श्रील भक्तिविनोद ठाकुर 1914 में उनका तिरोभाव हुआ। नवद्वीप मायापुर में गोद्रुम में जालांगी जालांग्री कहना चाहिए था जालांगी कहते हैं जालांगी के तट पर स्वानंद सुखद कुंज नामक स्थान पर जहां भक्तिविनोद ठाकुर का निवास स्थान भी है। वहीं पर उनकी समाधि भी है। आज के दिन वहां पर श्रील भक्तिविनोद ठाकुरा समाधिस्थ हुए। हरि हरि, तो पहले हम श्रील भक्तिविनोद ठाकुर का संस्मरण करते हैं और फिर श्री गदाधर पंडित का। थोड़ा ही समय हमारे पास है, और बाद में कुछ घोषणा भी होने वाली है। हरि हरि, एक तो हम गौड़िय वैष्णवो के साथ जोडकर हम गौड़िय वैष्णव के परंपरा या परिवार भी कह सकते हैं उसका अंग बने हैं। और यह गौरव और अभिमान की बात है कि हम भक्तिविनोद ठाकुर के कुछ लगते हैं। भक्तिविनोद ठाकुर के साथ हमारा कुछ संबंध है। हम संबंध स्थापित कर रहे हैं और साथ ही साथ गदाधर पंडित के साथ भी। भक्तिविनोद ठाकुर तो भक्त रहे। गौड़िय आचार्य रहे और गदाधर पंडित तो भगवान या भगवान की शक्ति में राधारानी ही थे। एक होता है विष्णु तत्व राधारानी को आप जानते हो। वह राधारानी ही थे गदाधर पंडित। इतना कहने से बहुत कुछ समझ में आना चाहिए। गदाधर पंडित का महिमा महात्म्य। एक आचार्य भक्तिविनोद ठाकुर लेकिन वह भी एक मंजिरी थे, ऐसी मान्यता है। मंजिरी समझते हो गोपियों का एक प्रकार है। छोटी गोपिया जो और भी भोलेभाली होती हैं। ऐसी अनेक लीलाएं हैं जिन लीलाओं में सिर्फ कृष्ण ही है। गोपियों को उन्होंने कहा कि, आप जा सकते हो। लेकिन मंजिरीया तो रहेगी वहां। निकुंज में बिराजो घनश्याम राधे राधे। ऐसी कई लीलाए संपन्न होती है, जहां सिर्फ किशोर किशोरी रहते हैं और मंजिरीया रहती है। श्रील भक्तिविनोद ठाकुर एक मंजिरी थे। कमल मंजिरी नामक मंजिरी थी। जो मंजिरीया राधारानी की सेवा करती है। सहायता करते हैं। राधाकृष्ण की सेवा करती है। लेकिन राधा के पक्ष की रहती है। राधा के पक्ष में रहती है। यह भी देखा जाता है कि, श्रील भक्तिविनोद ठाकुर का जहां निवासस्थान है और जहां समाधि भी है, वहा श्रील भक्तिविनोद ठाकुर आराधना करते थे गौर गदाधर की। हम लोग भी ज्यादातर गौर और निताई की आराधना करते हैं। गौरा निताई गौर निताई किंतु श्रील भक्तिविनोद ठाकुर के आराध्य देव या आराध्य विग्रह है गौर गदाधर। आज भी उधर गौर गदाधर है। उनकी आराधना होती है। गदाधर की आराधना किया करते थे, पूजा अर्चना किया करते थे, गौरांग के साथ। गदाधर मतलब क्या राधारनी। गौर निताई मतलब कृष्ण बलराम। गौर गदाधर मतलब राधाकृष्ण ही मान लो। गौर है कृष्ण और गदाधर है राधारानी। तो इनका यह जो भक्तिविनोद ठाकुर के स्वरूप काम है इसमें संकेत होता है। इन दोनों के आज हम तिरोभाव उत्सव मना रहे हैं गदाधर पंडित और श्रील भक्तिविनोद ठाकुर का साल तो अलग अलग है। आपने ध्यान में रखा होगा ना, वह तो चैतन्य महाप्रभु के समय के हैं गदाधर पंडित। पञ्च - तत्त्वात्मकं कृष्णं भक्त - रूप - स्वरूपकम् । भक्तावतारं भक्ताख्यं नमामि भक्त - शक्तिकम् मैं नमस्कार करता हूं। मैं नमस्कार सभी को करता हूं सभी को। जो पांच तत्व को नमस्कार करता हूं। उसमें से गदाधर जो भक्तशक्तिकम, भक्तावतारं भक्ताख्यं नमामि भक्त - शक्तिकम् गदाधर पंडित जो राधारानी है। पंचातत्व में राधारानी है गदाधर के रूप में। बामें गदाधर जब पंचतत्व की स्थापना होती है। प्राणप्रतिष्ठा होती हैं। हमारे मायापुर मंदिर में मध्य में है भक्तरूप गौर भगवान और बामें गदाधर बाए हाथ मे गदाधर है, जो राधारानी। ऐसा ही स्थान होता है ना राधाकृष्ण होते हैं। राधा बाय हाथ में होती हैं। तो यहां भी पंचतत्व हम देख सकते हैं, वही स्थान गदाधर पंडित वहीं उपस्थित रहते हैं। वहां गदाधर जहां चैतन्य महाप्रभु का निवास स्थान है। योगपीठ गौर गदाधर की आराधना होती है। वहां पर भी गौर गदाधर के विग्रह है। वहां पर यह दोनों साथ रहा करते थे, मित्र थे गौरांग महाप्रभु और गदाधर पंडित। पंडित भी थे या मित्र पंडित है और सबसे अधिक समय तो वे गदाधर पंडित के साथ ही बिताया करते थे। स्कूल में भी साथ में जाते थे, खेलते भी साथ में, रहते भी साथ में। हरि हरि। राधा कृष्ण तो ऐसे साथ में नहीं रह सकते थे वृंदावन में। सिर्फ एकांत में ही वे साथ रह सकते थे। समाज में तो एक दूसरों के साथ नहीं रह सकते हैं। राधा और कृष्ण दोनों की युवक और युवती है, किशोर किशोरी है। तो समाज के कई सारे बंधन है। थोड़ा ही समय बिताते हैं साथ में और कोई विघ्न आ जाता है। फिर अलग हो जाते हैं और विरह की व्यथा से व्यथित हो जाते। ताकि जितना चाहे उतना समय गदाधर पंडित राधा रानी अब गदाधर पंडित के रूप में कृष्ण के साथ जो गौरांग है उनके साथ अपना समय बिता सकती हैं और कोई रोक टोंक नहीं है। वैसे इस बात को पसंद भी करती थी सची माता। तुम साथ में रहा करो, तुम साथ में रहा करो। तो मानो गौरांग महाप्रभु की छाया, व्यक्ति की छाया जैसे व्यक्ति जहां-जहां जाता है तो उसकी छाया भी जाती है। वैसे ही गदाधर पंडित साथ में ही रहा करते थे तो इस प्रकट लीला में। जो नित्य लीला में संभव नहीं है। राधा कृष्ण का सदैव साथ रहना, उठना बैठना, खेलना, यह सारी लीलाएं संपन्न करना। तो यहां प्रकट लीला में नवदीप मायापुर में साथ में रहने का उनको अवसर प्राप्त हुआ है। हरि हरि। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु जब सन्यास ले कर पूरी गए थे तो वहां पर भी गदाधर पंडित पहुंच जाते हैं। चैतन्य महाप्रभु तो वहां रहने वाले थे ही जगन्नाथपुरी में ही अपने मध्य लीला के उपरांत। तो गदाधर पंडित भी वहां पहुंचे हैं और उनको क्षेत्र सन्यास भी दिया है। मतलब तुम छोड़ना नहीं इस पुरुषोत्तम क्षेत्र से बाहर तुम कही नहीं जाना। तुम यहीं रहो तो वे वही रहे सदा के लिए। चैतन्य महाप्रभु भी थे और गदाधर पंडित भी उसी धाम मे। चैतन्य महाप्रभु गंभीरा में हैं और गदाधर पंडित और टोटा गोपीनाथ मंदिर में। टोटा एक गार्डन और वहां के गोपीनाथ उनकी आराधना। चैतन्य महाप्रभु को यह विग्रह प्राप्त हुए गोपीनाथ के और चैतन्य महाप्रभु ने गदाधर पंडित को गोपीनाथ के विग्रह दिए। और कहां की इनकी आराधना करो। टोटा गोपीनाथ कि आराधना करते रहे गदाधर पंडित। फिर वहां पर भी श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु पहुंच जाते थे प्रतिदिन गदाधर पंडित को मिलने जाते थे। और क्या करते हैं गदाधर पंडित से कथा सुनते। श्रीमद् भागवत की कथा सुनाते गदाधर पंडित। तो राधा रानी ही सुना रही है और सवांद हो रहा है गदाधर पंडित और श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के मध्य में टोटा गोपीनाथ मंदिर में। हरि हरि। तो फिर अब श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु अंतर्धान हुए। तो कहां अंतर्धान हुए? उनके आराध्य विग्रह गोपीनाथ मे ही प्रवेश किए श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु 1534 में। उसके उपरांत फिर गदाधर पंडित को जीना कठिन हुआ गौरांग महाप्रभु के बिना। तो क्रंदन करते रहे गदाधर पंडित। वैसे राधा रानी क्रंदन करती रहती है विरह में। तो वृद्धावस्था से और कमजोर हो रहे थे गदाधर पंडित। और गोपीनाथ... वैसे भी मैं भक्ति विनोद ठाकुर के संबंध में नहीं कह पाऊंगा। गदाधर पंडित की कथा हो रही है उनका संस्मरण हो रहा है। गोपीनाथ के विग्रह काफी ऊंचे थे और गदाधर पंडित वैसे भी बूढ़े हो रहे थे और उनका शरीर झुक रहा था कुछ इंद्रधनुष जैसा कहो। तो उनके लिए मुश्किल हो रहा था भगवान को मुकुट पहनाना उनके गले में माला अर्पित करना। गोपीनाथ जान गए गदाधर पंडित जो कठिनाई महसूस कर रहे थे उन्हीं के सेवा में। तो गोपीनाथ एक दिन या एक रात बैठ गए पद्मासन में बैठ गए, बैठ गए तो बैठ ही गए। अभी जो हम दर्शन करते हैं खड़े नहीं यह गोपीनाथ बैठे हुए हैं गोपीनाथ। श्रृंगार इस तरह से होता है शायद आपने ध्यान नहीं दिया होगा कभी आप गए हो तो। लेकिन बैठे हैं गोपीनाथ गदाधर पंडित के लिए वे बैठ गए। ताकि आराम से वे गोपीनाथ की आराधना, अभिषेक श्रृंगार, सेवा कर सकते थे। ठीक है, तो उन दिनों में श्रीनिवास आचार्य नाम सुने होंगे पूरा नाम है श्रीनिवास आचार्य। चैतन्य महाप्रभु की वैसे अब लीला संपन्न हो रही थी, विद्यमान थे चैतन्य महाप्रभु। तो जाजीग्राम से बंगाल में एक स्थान है वहां से श्रीनिवास आचार्य प्रस्थान किए जगन्नाथ पुरी के लिए। और वे श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु से मिलना चाहते थे दर्शन करना चाहते थे। लेकिन वे रास्ते में ही थे तब उनको समाचार मिला कि चैतन्य महाप्रभु गदाधर पंडित के विग्रह टोटा गोपीनाथ में प्रवेश करके अंतर्धान हो चुके हैं। बस यह समाचार इतना दुखद समाचार रहा श्रीनिवास आचार्य के लिए। अब तो वे सोच रहे थे जीने से अब कोई मतलब नहीं है, तो जान ही लेते हैं। फिर गौरांग महाप्रभु ने उनको आदेश दिया स्वप्न आदेश। नहीं नहीं आगे बढ़ो जाओ जगन्नाथ पुरी जाओ और गदाधर पंडित से मिलना। गदाधर पंडित और मुझ में कोई अंतर नहीं है। मैं गदाधर पंडित के रूप में, राधा रानी के रूप में आज भी वहां हू। फिर श्रीनिवास आचार्य स्वयं को संभाले आए जगन्नाथ पुरी, मिले गदाधर पंडित से, उनका स्वागत हुआ, आलिंगन हुआ इत्यादि इत्यादि। मिलन उत्सव हुआ कहो। तो श्रीनिवास आचार्य गदाधर पंडित से भागवत श्रवण करना चाहते थे. गदाधर पंडित कहे ठीक है मैं तैयार हूं मैं सुना सकता हूं भागवत। लेकिन समस्या यह है भागवत का जो पोथी है ग्रंथ है वह लगभग नष्ट हो चुका है। क्योंकि गदाधर पंडित जब भागवत की कथा सुनाते तब ग्रंथ को हाथ में रखते और अश्रु धाराएं बहती थी और वह भीग जाता था। फिर भीग भीग कर उसके पन्ने खोलना या कागज टूट रहे थे तो वह स्थिति ठीक नहीं थी उस ग्रंथ की। तो गदाधर पंडित कहे श्रीनिवास आचार्य से जाओ बंगाल जाओ और दूसरी भागवत की प्रतिलिपि ले आना। फिर हम सुनाएंगे तुमको भागवत कथा, भागवत का रहस्य, भागवत का मर्म। तो गए श्रीनिवास आचार्य उन्होंने प्रबंधन किया भागवत का एक ग्रंथ लेकर लौट रहे थे। जगन्नाथ पुरी के पास में ही पहुंच चुके थे तो पूछताछ करने लगे कैसे हैं गदाधर पंडित कैसे हैं? ऐसी पूछताछ करने पर उनको जब पता चला कि गदाधर पंडित नहीं रहे। आज के दिन की बात है, आज तिरोभाव तिथी महोत्सव है तो आज के दिन अंतर्धान हो चुके थे। यह समाचार जब श्रीनिवास आचार्य को मिला पता नहीं, हम कल्पना कर सकते हैं कि नहीं, उनके मन की स्थिति कैसी हुई होगी। पहले तो महाप्रभु से मिलना नहीं हुआ, दर्शन नहीं हुआ। और यहां गदाधर पंडित जी मिले तो थे लेकिन उनके साथ और समय बिताना था, भागवत का श्रवण करना था। तो वह भी चल बसे आज के दिन। हरि हरि। गदाधर पंडित तिरोभाव तिथि महोत्सव की जय। श्रील भक्ति विनोद ठाकुर तिरोभाव तिथि महोत्सव की जय। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल।

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