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हरे कृष्ण ! जप चर्चा आरवड़े धाम से 08 जुलाई 2021 873 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं । उसमें आज हरे कृष्ण ग्राम लोगों की संख्या बढ़ चुका है । यहां पर मेरा स्वागत भी हो रहा है । मेरे ही गांव में मेरा ही स्वागत । हरि हरि !! लेकिन अब यह गांव मेरा नहीं रहा । अब यह राधा गोपाल का हो गया । जय जय श्री चैतन्य जय नित्यानंद । जय अद्वैत चंद्र जय गोर भक्त वृंद ॥ आज जब मैं आरती कर रहा था , यहां पर तो ऑल्टर पर कई सारे विग्रह है । जय ! राधा गोपाल की जय ! श्री श्री विट्ठल रुक्मिणी की जय ! श्री श्री सीता राम लक्ष्मण हनुमान जी की जय ! गौर निताई की जय ! नरसिम्ह देव भगवान की जय ! श्री श्री पंचतत्व की जय ! इत्यादि इत्यादि । वैसे अच्छा लग रहा था और विचार हो रहा था कि कुछ क्यों ना हम यही रहते हैं । दुनिया में क्यों जाएं हम । दुनिया में क्यों फंसे हम । जिस दुनिया को , आज गाया भी भक्त जब मंगल आरती का गान कर रहे थे दारुब्रह्म प्रभु जी मंगल आरती की गाए तो पहला शब्द उन्होंने गाया ... "संसार-दावानल-लीढ-लोक" संसार कैसा है ? संसार दावानल है । यह लोक तो बहुत परेशान है । तो जब मैं ऑल्टर पर था यह सब विग्रह के साथ प्रातः काल गौर कृष्ण प्रभु पूछ रहे थे क्या आप श्रील प्रभुपाद से मिलने की इच्छा रखते हो ? एक दिन आप श्रील प्रभुपाद से मिलोगे ? तो फिर ऑल्टर पर प्रभुपाद भी है तो मैं सोच रहा था यहां प्रभुपाद हीं तो है या और आचार्य भी है । जय हनुमान ! यहां राम भक्त हनुमान है । कुछ प्रकट है ऑल्टर पर । और कई सारे अप्रकट भी है तो वह तो है ही वहां । क्यों ना हम ऐसे ही जगत में रहे । यह आइडिया अच्छी है ? यह वास्तविक में क्या अच्छे विचार है ? हरि हरि ! "जेई गौर सेई कृष्ण सेई जगन्नाथ" इसका में विचार कर रहा था । कई सारी बिक रहा ऑल्टर पर तो है लेकिन वह अलग-अलग भी नहीं है । वह सब एक ही है । गोरांग महाप्रभु ने षडभूज दर्शन भी दिया । और वह षडभूज दर्शन में ; जय श्री राम ! राम भी थे धनुष और बाण धारण किए हुए । और वहां कृष्ण भी थे मुरली वादन करने वाले तो वहां गौरांग महाप्रभु भी थे जिनके हाथ में सन्यास लिया कमंडलु और दंड लेके । ऑल्टर में तो अलग-अलग रुप या विग्रह बनके भगवान उपस्थित है या लीला खेलते भी हैं अपने जगत में । गोलक है तो फिर द्वारिका है श्री श्री विट्ठल रुक्मिणी की जय ! तो विट्ठल तो द्वारिकाधीश है । तो वृंदावन से गए भगवान द्वारिका गए तो वे वहां द्वारिकाधीश हुए । गोलक में भी , या वृंदावन में । एक है वृंदावन जहां राधा कृष्ण है । और दूसरा एक है जो श्वेतद्वीप है नवद्वीप है वहां पर गौरांग और नित्यानंद प्रभु है । तो मैं ऐसा कुछ मुझे आभास हो रहा था कि यह सारे विग्रह राधा गोपाल की ओर दौड़ रहे हैं । और राधा गोपाल बन रहे हैं । हम अलग अलग नहीं है हम एक ही हैं । और फिर श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु है तो वे गौर भगवान या तो है वे "श्रीकृष्ण चैतन्य राधाकृष्ण नही अन्य" और राधा कृष्ण से भीन्न नहीं है । किंतु वह बन जाते हैं भक्त । भगवान बन जाते हैं भक्त । हम तो भक्ति ही हैं या अभी नहीं है बनना चाह रहे हैं पुन्हा जो हम हैं । यह भूल चुके थे हम कि हम विभक्त हैं । तो भक्त बनने का प्रयास चल रहा है । या हम हैं तो भक्त किंतु यहां भगवान बनने का प्रयास कर रहे हैं । फिर अहम् ब्रह्मास्मि भी कहते हैं । मैं ब्रह्म हूं , मैं भगवान हूं । या फिर अहम् भोक्ता , भोगी , बलवान , सुखी ऐसा यह सब आसुरी भाव के साथ हम स्वयं भगवान होने का दावा करते हैं । या फिर कई लोग तो घोषित भी करते हैं हम भगवान हैं । बन गए अब रजनीश भगवान । या और कोई भगवान । आंध्र प्रदेश में कोई कल्की भगवान बन चुका है । उसको इतना भी पता नहीं है कि कल्कि का अवतार कब होता है ? कल्कि कलियुग के अंत में होता है । वह कल की इतना अनाड़ी है । तो क लियुग के प्रारंभ में ही अवतार ले चुका है वह । तो इस प्रकार कई सारे प्रयास/भगवान बनने का प्रयास इस संसार में जीवात्मा भगवान बनने का प्रयास करता है अपने अहम और ममेती के साथ । ब्रह्मस्मि मैं ब्राह्म हूं । या फिर मम जहां मेरा है वह मेरा है हरि हरि !! तो जीव प्रयास करता है भगवान बनने का । किंतु प्रयास भगवान स्वयं भक्त बन रहे हैं श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के रूप में । भक्तिका आस्वादन करने हेतु । तो उल्टा है । हम भगवान नहीं हैं । मैं भगवान नहीं हूं, तुम भगवान नहीं हो प्रभुपाद कहां करते थे । हम सब भगवान के नित्य शाश्वत सेवक है । हम तो नित्य दास है । लेकिन यह भ्रमित दास ... माया-मुग्ध जीवेर नाहि स्वतः कृष्ण-ज्ञान । जीवेरे कृपाय कैला कृष्ण वेद-पुराण ॥ ( चैतन्य चरितामृत मध्य-लीला 20.122 ) अनुवाद:- बद्धजीव अपने खुद के प्रयत्न से अपनी कृष्णभावना को जाग्रत नहीं कर सकता । किन्तु भगवान् कृष्ण ने अहैतुकी कृपावश वैदिक साहित्य तथा इसके पूरक पुराणों का सूजन किया । तो ऐसा भ्रमित बद्ध जीव भगवान बनने का प्रयास करता है । लेकिन भगवान स्वयं श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु भक्त बनना चाहते हैं या भक्त बन गए । तो भक्तों की पदवी बहुत मोटी है । भक्तों का जो स्तर है ऊंचा है । की भगवान भी उसको प्राप्त करना चाहते हैं । भगवान भी दास या भक्त बनना चाहते हैं । तो वह गौर जब भक्त बने और गए जगन्नाथ पुरी, जगन्नाथ पुरी धाम की जय ! आजकल जगन्नाथ स्वामी का दर्शन नहीं तो होता है तो दर्शन बंद है पता है ना । आपको बता चुके हैं । स्नान यात्रा जब हुई उसी दिन से जगन्नाथ का दर्शन बंद है । कोरोना वायरस है इसलिए नहीं । आप के मंदिर में तो कोरोनावायरस है इसलिए लॉकडाउन । मंदिर पर ताले लग गए इसलिए बंद है किंतु जगन्नाथ मंदिर बंद है क्योंकि भगवान के स्वास्थ्य ठीक नहीं है । यहां भी एक भक्त का स्वास्थ्य ठीक नहीं था तो उसको भी निकाल कर एक अलग कमरे में रख दिया । यह थोड़ा बंद करके रख दिए । और फिर स्पेशल डाइट बगैरा, कोई डॉक्टर आए नाड़ी परीक्षा हुई । तो वैसा हो रहा है जगन्नाथपुरी में जगन्नाथ भगवान बीमार है । बुखार है भगवान को । भगवान को बुखार थोड़ी हो सकता है ऐसे आप कहते ही रहते हो भगवान बीमार है भगवान को बुखार है । ऐसे ही कुछ हरे कृष्ण भक्त जगन्नाथपुरी गए थे ऐसे कैसे बुखार है तो फिर पुजारी ने कहा आप में से कोई डॉक्टर वगैरा है ? तो एक भक्त कहा मैं डॉक्टर हूं ! थर्मामीटर है ? हां है ! दे दो मुझे । तो फिर पुजारी गया , पुरोहित पंडा था वहां का और जगन्नाथ के ( बांह के नीचे ) वहां पर थर्मामीटर या मुख में फिर रखा कुछ क्षणों के लिए और बाहर निकाला तो ; अरे 104 ताप मात्रा यह तथ्य है । तो उन लोगों को दिखाया । जय जगन्नाथ ! जगन्नाथ स्वामी का दर्शन श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु जब मंदिर या अनशर उत्सव चल रहा है अब । भगवान का मंदिर अब बंद है । लेकिन जब मंदिर बंद नहीं होता था तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु दर्शन के लिए जाते थे । जब पहली बार आए दर्शन के लिए सन्यास लिया और जगन्नाथ पुरी गए , जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश करते ही सामने जगन्नाथ जी को देखा तो जग ,जग ,जग जगन्नाथ कहना भी मुश्किल था । गौरांग महाप्रभु का गला अवरुद्ध हुआ । यह भी एक भक्ति का लक्षण है । " किवा शिव-शुक-नारद प्रेमे गदगद " " भकतिविनोद देखे गोरार संपद " ( गौर आरती पंक्ति 7 ) जब हम गाते हैं तब फिर पता नहीं चलता कोई 'गद' की बात चल रही है । या कुछ गड़बड़ी हो रही है । तो वहां गदगद है । शिव शुक नारद जब भगवान की आरती होती है वहां जाते हैं और ब्रह्मा आरती उतारते हैं । " बोसियाछे गोराचांद रत्न-सिंहासने आरति कोरॆन् ब्रह्मा-आदि देव-गणे " ( गौर आरती पंक्ति 3 ) स्वयं ब्रह्मा आरती उतारते हैं । और देवता वहां उपस्थित थे । तो वहां नारद मुनि पहुंच जाते हैं , शुकदेव गोस्वामी , शिवजी भी है तो जब वह गान करते हैं नृत्य होता है तो उनका गला गदगद उठता है । फिर गाना कठिन होता है । तो अवरुद्ध होता है । श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ऐसा भक्त बने हैं तो फिर बन गए उच्च कोटि के भक्त बन गए । कनिष्ठ अधिकारी के नहीं बने । तृतीय श्रेणी के भक्त नहीं बने या मध्यम अधिकारी नहीं रहे । प्रथम श्रेणी बने और फिर कई हायर क्लास है । ऐसे भक्त बने श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु । और राधा भी बन गए । चैतन्य महाप्रभु कौन बन गए ? राधा ही बन गए । राधा भक्त है कि नहीं ? अनयाराधितो नूनं भगवान्हरिरीश्वरः । यत्रो विहाय गोविन्दः प्रीतो यामनयद्रहः ॥ ( श्रीमद् भगवतम् 10.30.28 ) इस विशिष्ट गोपी ने निश्चित ही सर्वशक्तिमान भगवान् गोविन्द की पूरी तरह पूजा की होगी क्योंकि वे उससे इतने प्रसन्न हो गये कि उन्होंने हम सबों को छोड़ दिया और उसे एकान्त स्थान में ले आये । भागवत् में कहा है । यही तो है यही तो है ! "अनयाराधितो नूनं" जो भगवान की आराधना करती है । इसलिए राधा का नाम आराधना हुआ । " आराधती " आराधना करने वाली राधा । तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु बने हैं राधा ही बने हैं । राधा कृष्ण - प्रणय - विकृति दिनी शक्तिरस्माद् एकात्मानावपि भुवि पुरा देह - भेदं गतौ तौ । चैतन्याख्यं प्रकटमधुना तद्वयं चैक्यमाप्तं ब - द्युति - सुवलितं नौमि कृष्ण - स्वरूपम् ॥ ( चैतन्य चरित्रामृत आदि-लीला 1.5 ) अनुवाद:- " श्री राधा और कृष्ण के प्रेम - व्यापार भगवान् की अन्तरंगा ह्लादिनी शक्ति की दिव्य अभिव्यक्तियाँ हैं । यद्यपि राधा तथा कृष्ण अपने स्वरूपों में एक हैं , किन्तु उन्होंने अपने आपको शाश्वत रूप से पृथक् कर लिया है । अब ये दोनों दिव्य स्वरूप पुनः श्रीकृष्ण चैतन्य के रूप में संयुक्त हुए हैं । मैं उनको नमस्कार करता हूँ , क्योंकि वे स्वयं कृष्ण होकर भी श्रीमती राधारानी के भाव तथा अंगकान्ति को लेकर प्रकट हुए हैं । " तो फिर राधा भाव में जा राधा के दृष्टिकोण से । राधा की दृष्टि है जब अब यहां चैतन्य महाप्रभु जगन्नाथ स्वामी का दर्शन कर रहे हैं तो दर्शन करने वाली कौन है ? राधा है । तो राधा रानी ने दर्शन किया । राधा रानी के भाव है, दर्शन करते ही सारे भाव उदित हुए । महाभाव ; महाभावा राधा ठाकुरानी का क्या महिमा है ? महाभाव-स्वरूपा श्री-राधा-ठाकुराणी । सर्व-गुण-खनि कृष्ण-कान्ता-शिरोमणि ॥ ( चैतन्य चरितामृत आदि-लीला 4.69 ) अनुवाद:- श्री राधा ठाकुराणी महाभाव की मूर्त रूप हैं । वे समस्त सदृणों की खान हैं और भगवान् कृष्ण की सारी प्रियतमाओं में शिरोमणि हैं । महाभावा राधा ठाकुरानी ! हरि हरि !! बाद में वैसे सर्वभोम भट्टाचार्य थोड़ा परीक्षा किए । यह थोड़े आगे की बातें हैं । अपने घर पर ले गए । और उन्होंने घोषित किया कि ... वैसे कई सारी बातें हैं । हरि हरि !! जग जग कहते हुए वे धड़ाम कर गिर गई वहां फर्श पर दर्शन मंडप में और वहां लौट रहे हैं और क्या-क्या हो रहा है ! तो कुछ लोगों ने सोचा एइ; ढोंगी कहीं का , चौकीदार ... गार्ड वगैरह को बुला रहे थे इसको बाहर करो ! यहां से निकालो तमाशा कर रहा है । हमने कई सारे देखे हैं पहले भी । लेकिन चौकीदार आने से पहले ही सार्वभौम भट्टाचार्य जो बड़े आचार्य थे जगन्नाथ पुरी के , उस समय के । तो उन्होंने श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु को वह अपने निवास स्थान पर ले गए और उन्होंने परीक्षा की । और निष्कर्ष यह निकाला यह भाव नकली नहीं है असली है । और यह केवल भाव ही नहीं है यह महाभाव है । तो वह श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु तो फिर भविष्य में जब जब श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु जगन्नाथ जी के दर्शन के लिए जाते थे तो फिर सार्वभौम भट्टाचार्य ऐसी व्यवस्था की साथ में किसी को जाना चाहिए उनको अकेले नहीं भेजना दर्शन के लिए ! और पीछे गरुड़ स्तंभ है ना वहीं से दर्शन कर सकते हैं । क्योंकि आगे बढ़ेंगे तो तो फिर गए काम से । फिर वही ... "महाप्रभोः कीर्तन-नृत्य-गीत वादित्र-माद्यन्-मनसो रसेन रोमान्च-कंपाश्रु-तरंग-भाजो वंदे गुरोः श्री चरणारविंदं " ( श्री श्री गुर्वष्टक दूसरी पंक्ति ) इनके शरीर में रोमांच होने वाला है यह वहां लौटने वाले हैं क्रंदन करने वाले हैं तो दूर से दर्शन करवाओ । तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु को गरुड़ स्तंभ के बगल में खड़ा कर देते और चैतन्य महाप्रभु वहीं से दर्शन करते हैं । आगे बढ़ना मना है । दर्शन करते समय श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु गरुड़ स्तंभ पर अपना हाथ रखते । और जहां हाथ रखते थे वह गरुड़ स्तंभ पिघल गया उनके उंगली के स्पर्श से । और वहां गरुड़ स्तंभ में कुछ चिन्ह बने हैं । थोड़ा गड्ढा बना है चैतन्य महाप्रभु के उंगली स्पर्श के कारण । जगन्नाथ पुरी मंदिर में तो मैं कई बार गया हूं । लेकिन कुछ साल पहले जब गया में तो हमारे साथ पंडा थे जो हमें मार्गदर्शन कर रहे थे । तो उन्होंने मुझे उस स्तंभ के पास खड़ा कर दिए । महाराज जी आप यहां खड़े हो जाइए । ठीक है खड़ा हो गया । उन्होंने मेरे हाथ को पकड़ लिया यहां यहां हाथ रखो और यह जो स्तंभ में कुछ , लग रहा है आपको कुछ गड्ढा चिन्ह बना हुआ है ? हां बना तो है । तो उन्होंने कहां यह श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की उंगली के स्पर्श से यह चिह्न निशान गड्ढा बना हुआ । और ऐसा मुझे खड़ा किए और कहे भी दर्शन करो दर्शन करो तो मेरे लिए वह दर्शन कुछ रोमांचकारी दर्शन था । जब सुना कि चैतन्य महाप्रभु यहीं पर खड़े होते थे , यही हाथ रखते थे , यहीं से दर्शन करते थे वैसा तो निश्चित मैंने दर्शन नहीं किया जेसे चैतन्य महाप्रभु करते थे । किंतु वह दर्शन कुछ विशेष तो रहा ही । साधारण नहीं था कुछ वशिष्ठ था उस दर्शन में । तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु जब वहां खड़े होते दर्शन करते जगन्नाथ के दर्शन करते तो ... "जेई गौर सेई कृष्ण सेई जगन्नाथ" यह जो बात है जो गौरांग महाप्रभु है जेई गौर सेई कृष्ण ; सेई मतलब वही तो है सेई,जेई जो है गोरांग वही है कृष्णा और वही है जगन्नाथ । और भी लिस्ट आगे पड़ी है लेकिन उस गीत में नहीं लिखा है वही है श्री राम वही है नरसिंह है , वही है पांडुरंग-पांडुरंग-पांडुरंग । वैसे और एक वक्त यहां पर भी श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु यहां से कोल्हापुर से या हरे कृष्ण ग्राम होते हुए पंढरपुर गए । तो पंढरपुर में भी दर्शन किए । जो गरुड़ स्तंभ है पंढरपुर मंदिर में वहां चैतन्य महाप्रभु ने पांडुरंग का दर्शन और शायद एक पेंटिंग(चित्र) में शायद आत्म निवेदन ने वह पेंटिंग बनाया .. I चैतन्य महाप्रभु जगन्नाथ पुरी में उनको प्रवेश नहीं था । जगन्नाथपुरी में तो ऐसा दर्शन नहीं कर सकते थे । लेकिन विट्ठल मंदिर में तो दूर से दर्शन करने से कुछ दिल खुश नहीं होता । चरण दर्शन से या मुख दर्शन से कोई प्रसन्न नहीं होता । केसा दर्शन चाहते हैं 'चरण दर्शन' केवल चरण दर्शन नहीं चरण स्पर्श और इतना ही नहीं एक समय की बात है । अब जमाना बदल गया । वैसा दर्शन नहीं हो रहा है लेकिन 150/200 साल पहले या निश्चित ही श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के समय 500 वर्ष पूर्व विट्ठल का दर्शन कैसे करते थे ? विट्ठल भगवान विग्रह का आलिंगन । 'मीठीमारु' उनको गले लगाते थे । एक चित्र है जिसमें श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु विट्ठल भगवान पांडुरंग को आलिंगन दे रहे हैं । वही पांडुरंग गोरांग महाप्रभु हीं है पांडुरंग पांडुरंग का दर्शन कर रहे हैं और पांडुरंग को आलिंगन दे रहे हैं । केवल वही जाने क्या क्या करते रहते हैं बनते हैं क्या क्या ! तो वे जब देखते थे दूर से दर्शन करते थे जगन्नाथ है वहां उनको कृष्ण का दर्शन होता था चैतन्य महाप्रभु को । उनको जगन्नाथ नहीं दिखते । कभी-कभी जगन्नाथ के स्थान पर त्रिभंग ललितम श्याम ' त्रिभंग ललित और मुरली वादन करते हुए श्याम सुंदर श्री कृष्ण का दर्शन करते चैतन्य महाप्रभु । आपने कृष्ण को देखा है ? आप में से किसी ने कृष्ण को देखा है ? चैतन्य महाप्रभु उस समय बाजार में पूछ रहे थे वहां जो सिंहद्वार के आगे जो बाजार है । तो लोगों को रोक रोक कर पूछते थे आपने कृष्ण को देखा है ? मुझे दिखाओ मुझे दिखाओ यहां कोई है किसी ने देखा है कृष्ण को ? जो मुझे दिखा सकता है ? चेतन महाप्रभु बहुत चिंतित थे । तो एक व्यक्ति ने थोड़ा चालाक था भगवान को देखना चाहती हो ? क्या तुमने देखा है ? हां हां देखा है ! चलो दिखाता हूं । तो यह व्यक्ति आगे आगे जा रहा है और गौरांग महाप्रभु पीछे पीछे जा रहे हैं । तो व्यक्ति सिंहद्वार से अंदर और फिर दर्शन मंडप में ले आए । देखो थोड़ा देखो ; आपने कृष्ण को देखा है आपने कृष्ण को देखा है तो वहां पर जब चैतन्य महाप्रभु जगन्नाथ को देखा तो तो वहां पर जगन्नाथ नहीं थे कौन थे ? कृष्ण का दर्शन । जेई गौर , सेई कृष्ण , सेई जगन्नाथ । और फिर और एक समय की बात है अब थे राजा प्रताप रूद्र वह दर्शन के लिए गए थे राजा प्रताप रूद्र चैतन्य महाप्रभु के समय की बात है वे जगन्नाथ के दर्शन के लिए गए और वे जब जगन्नाथ का दर्शन कर रहे थे ऑल्टर पर देख रहे थे जहां पर जगन्नाथ साधारणतः खड़े होते हैं तो उनको वहां जगन्नाथ के स्थान पर गौरांग महाप्रभु का दर्शन हो रहा था । वहां चैतन्य महाप्रभु खड़े थे । तो राजा प्रताप रूद्र सोच रहे थे यह में क्या देख रहा हूं थोड़ा आंख साफ किए चश्मा को साफ किए तो वही गौरांग महाप्रभु उपस्थित है । उन्होंने पुजारी को ; ए पुजारी थोड़ा जगन्नाथ जी की और देखो जहां जगन्नाथ साधारणतःखड़े होते हैं । क्या देख रहे हो ? क्या देखना होगा ? मैं तो जगन्नाथ को देख रहा हूं । तो पुजारी देख रहा है जगन्नाथ को । और उसी जगन्नाथ को देख रहे हैं राजा प्रताप रूद्र गौरांग महाप्रभु के रूप में । तो हो गया कि नहीं "जेई गौर , सेई कृष्ण , सेई जगन्नाथ" । तो ऐसा ही कुछ लग रहा था यहां पर कई सारे विग्रह है तो वे एक ही है या गोपाल की ओर दौड़ रहे हैं और उन में प्रवेश कर रहे हैं । और ऐसा होता भी है जब श्री कृष्ण प्रकट होते हैं ... परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥ ( भगवत् गीता 4.8 ) अनुवाद:- भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ । तब बैकुंठ जगत में हर बैकुंठ से वहां के बैकुंठ पति अलग-अलग अवतार अलग-अलग बैकुंठ में निवास करते हैं । तो वह सारे गोलक की ओर जाते हैं । उसमें साकेत से या अयोध्या से वहां अयोध्या भी है । लौकिक जगत में बैकुंठ जगत जगत में । तो वह भी , श्रीराम भी जा रहे हैं पूरा रामदरबार जा रहा है गोलक की ओर । तो सारे प्रवेश कर रहे हैं कृष्ण में । ऐसा वर्णन शास्त्र में मिलता है । और फिर जब कृष्ण प्रकट होते हैं तो बैकुंठ के ; हर बैकुंठ के जो भक्त है अपने अपने भगवानों के या अवतारों के वह सभी सोचते हैं औ भगवान नरसिंह हमारे भगवान हैं । कृष्ण लीला चल रही है । ओ हमारे राम है । तो वैसे भी सभी अवतारों के स्रोत , प्रत्येक आत्मा के अवतार है कृष्ण स्वयं भगवान । ऐसा एक अध्याय भी है श्रीमद्भागवत् के प्रथम स्कंध के 3 अध्याय । सभी आत्माओं के मूल स्रोत, उसमें कुछ 22 अवतारों का उल्लेख है । एते चांशकलाः पुंसः कृष्णस्तु भगवान् स्वयम् । इन्द्रारिव्याकुलं लोकं मृडयन्ति युगे युगे ॥ ( श्रीमद् भागवतम् 1.3.28 ) अनुवाद:- उपर्युक्त सारे अवतार या तो भगवान् के पूर्ण अंश या पूर्णांश के अंश ( कलाएं ) हैं , लेकिन श्रीकृष्ण तो आदि पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् हैं । वे सब विभिन्न लोकों में नास्तिकों द्वारा उपद्रव किये जाने पर प्रकट होते हैं । भगवान् आस्तिकों की रक्षा करने के लिए अवतरित होते हैं । बाकी सब अंश है । सभी स्रोत है मूल स्रोत के तो इस प्रकार कृष्ण अवतारी है । और वे अवतार लेते हैं । वही बने हैं नरसिंह है । वही बन जाते हैं राम । बलराम तो बन ही जाते हैं और इतने सारे नाम है । हरि हरि !! हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥ जब हम हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन का जप करते हुए या आराधना करते हुए ... कृष्णवर्ण विधाकृष्ण साङ्गोपाङ्गासपार्षदम् । यज्ञैः सङ्कीर्तनप्रायैर्वजन्ति हि सुमेधसः ॥ ( श्रीमद् भागवतम् 11.5.32 ) कलियुग में , बुद्धिमान व्यक्ति ईश्वर के उस अवतार की पूजा करने के लिए सामूहिक कीर्तन ( संकीर्तन ) करते हैं , जो निरन्तर कृष्ण के नाम का गायन करता है । यद्यपि उसका वर्ण श्यामल ( कृष्ण ) नहीं है किन्तु वह साक्षात् कृष्ण है । वह अपने संगियों , सेवकों , आयुधों तथा विश्वासपात्र साथियों की संगत में रहता है । भगवान की आराधना कैसे होती है ? यज्ञ करने से । संकीर्तन यज्ञ । जितने भी भगवान है लगभग एक ही है उनके विस्तार है अवतार है हम सबकी आराधना हम करते हैं । एक ही साथ करते हैं कोई बचता नहीं है । किसी को नाराज नहीं करते हम । और फिर देवता भी प्रसन्न होते हैं वैसे हम जब कीर्तन करते हैं और वह भी कीर्तन करते हैं । उनके चिंता हमें नहीं करनी चाहिए । ठीक है । ॥ हरे कृष्ण ॥

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