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जप चर्चा : 7 दिसंबर 2021 स्थान : श्री पंढरपुर धाम आज १००० स्थानों से भक्त हमारे साथ जप कर रहे हैं. आप सभी का स्वागत हैं. सम्पूर्ण विश्व से भक्त हमारे साथ जप कर रहे हैं। आप सभी जप योगियों का इस कांफ्रेंस में स्वागत हैं। भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं : योगी भव। इसे हम यह कह सकते हैं कि जप योगी भव। भगवान् कहते हैं योगी भव , परन्तु यह दुनिया कहती हैं : भोगी भव। अब तक आप यह समझ चुके होंगे कि आपको योगी बनना हैं अथवा भोगी। हम समझते हैं कि जैसा भगवान श्री कृष्ण चाहते हैं आप सभी जप योगी हैं इसीलिए जप करने के लिए उपस्थित हैं। व्यास पूजा अथवा सन्यास दीक्षा की वर्षगाँठ में आप सभी अलग अलग गुण बताते हो, जैसे आप सहनशील हो , दयालु हो आदि। कल भी इसी प्रकार मुझे बिठा दिया गया और कहा गया कि हम जो आपका गुणगान करते हैं आप उसे सुनिए। मेरे पास और कोई विकल्प नहीं था इसलिए मुझे स्वयं का गुणगान सुनना पड़ा। भक्त बता रहे थे कि आप गुणवान हो, सौंदर्यवान हो , धनवान हो आदि। उस समय मैं सोच रहा था कि जो भक्त इन गुणों का वर्णन कर रहे हैं शायद वे यह भूल चुके हैं कि यह सरे गुण सर्वप्रथम तो भगवान् में हैं, वहीँ से यह गन हम जीवों में प्रकट होते हैं। अतः हमें सदैव भगवान् का स्मरण रखना चाहिए जो इन समस्त गुणों के स्त्रोत हैं। इस प्रकार बोलने वाले में भी यह सारे गुण होते हैं। आत्मा में परमात्मा के गुण होते हैं। यस्यास्ति भक्तिर्भगवत्यकिञ्चना सर्वैर्गुणैस्तत्र समासते सुरा: । हरावभक्तस्य कुतो महद्गुणा मनोरथेनासति धावतो बहि: ॥ श्रीमद भागवत : 5.18.12 ॥ जो भगवान की अकिंचन भक्ति करते हैं , उनमे देवताओं वाले गुण आ जाते हैं। अन्याभिलाषिता शून्यं , ज्ञान कर्म अनावृतम। अनुकूलेन कृष्णानुशीलनं , भक्तिर उत्तमा।। भक्तिरसामृत सिंधु 1.1.11 ऐसी उत्तम भक्ति करने वाले व्यक्ति के व्यक्तित्व में देवताओं के गुण प्रकट हो जाते हैं। हमें स्वयं को पहचानना हैं कि हम वास्तव में कौन हैं। यह वैष्णवों का गुण हैं कि वह दूसरों में गुण देखते हैं तथा स्वयं में अवगुण। जब जीव इस भौतिक प्रकृति के संसर्ग में आता हैं तो उसमे यह दुर्गुण आ जाते हैं , अन्यथा जीव अथवा आत्मा तो शाश्वत रूप से शुद्ध हैं। उसमें इस प्रकार के दुर्गुण नहीं होते। संसार के संपर्क में आने से जीव दुर्गुणी बनता हैं अन्यथा वह सद्गुणी होता हैं। हमारी आत्मा गुणों की खान हैं। यह आत्म साक्षात्कार होना चाहिए। अंग्रेज़ी में कहावत हैं कि बाप जैसा बेटा होता हैं। भगवान हमारे पिता हैं। भगवान् स्वयं ऐसी घोषणा करते हैं : सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तय: सम्भवन्ति या: । तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रद: पिता ॥ श्रीमद भगवद्गीता : 14.4 ॥ इस प्रकार कृष्ण हमारे माता तथा पिता हैं। हम सभी भगवान् के बालक बालिकाएं हैं। हम सभी के पिता हैं : विठोबा , पाण्डुरंग या भगवान् श्री कृष्ण। अतः हमारे में भी भगवान् श्री कृष्ण के गुण विद्यमान होते हैं। परन्तु दुर्भाग्यवश जीव बहिर्मुखी होता हैं जिसके कारण वह इस जगत में आकर यहाँ के दुर्गुणों से स्वयं को आच्छादित कर लेता हैं। इसके लिए उदाहरण दिया जाता हैं कि वर्षा का जल जब तक धरती को स्पर्श नहीं करता तब तक वह शुद्ध रहता हैं परन्तु जैसे ही वह जल धरती को स्पर्श करता हैं वह मलीन हो जाता हैं और पृथ्वी पर पड़ी हुई गन्दगी उसमे समा जाती हैं। हमें इस प्रकार यह सिद्धांत समझना होगा। हम सभी आत्माएं हैं , आत्मा शाश्वत होती हैं , इसे वर्ण , देश अथवा शरीर के रूप में विभाजित नहीं कर सकते यथा यह स्त्री की आत्मा हैं , यह पुरुष की आत्मा हैं , यह अमेरिकन आत्मा हैं या यह भारतीय आत्मा हैं। आत्मा शाश्वत हैं तथा यह परम भगवान् का अंश हैं। यह अचिन्त्य भेदाभेद तत्त्व कहलाता हैं। इसका अर्थ हैं कि आत्मा तथा परमात्मा में भेद हैं भी और नहीं भी हैं। दोनों एक भी हैं तथा अलग भी हैं। भगवान के अंश होने के कारण हमारे में भी भगवान् के गुण हैं , परन्तु वह काम मात्रा में हैं। इस कारन हम भगवान् से भिन्न भी हैं तथा अभिन्न भी हैं। इस प्रकार हमें यह समझना होगा कि भगवान के ऐसे दिव्य गुण केवल हमारे गुरु महाराज , श्रील प्रभुपाद अथवा केवल आचार्यों में ही नहीं हैं अपितु हम सभी में भी हैं। ऐसा भाव हमारा होना चाहिए। इसलिए यदि कोई भगवान श्री कृष्ण की निष्किंचन भक्ति करता हैं तो उसमें यह सभी गुण प्रकट हो जाते हैं। अतः हम सभी को स्वयं को भगवान् श्री कृष्ण की भक्ति में लगाना चाहिए तथा यह भक्ति निष्किंचन होनी चाहिए। वास्तव में यदि हम कहें तो भगवान् की भक्ति करने में सबसे प्रधान भक्ति हैं : हरेर नाम इव केवलम। हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम। कलौ नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा ।। इस प्रकार जब हम भगवान् के पवित्र नामों के जप तथा कीर्तन में स्वयं को लगाते हैं , अपराध रहित होकर ध्यान पूर्वक जप करते हैं तब हम भी भगवान् श्री कृष्ण की निष्किंचन भक्ति कर सकते हैं और ऐसा करने से हमारे में भी भगवन के गुण प्रकट होते हैं तथा धीरे धीरे हम भी गुणवान बनते हैं। हमें भक्ति संपन्न होकर जप करना चाहिए। हमारे में भगवान् की भक्ति हैं उसे प्रकट करना हैं। इस प्रकार आपका आज का गृह कार्य हैं कि आप इस विषय पर चिंतन मनन कीजिए तथा गुण संपन्न बनिए। हम आज की जप चर्चा को यहीं विराम देते हैं , आगे पद्ममाली प्रभु आप सभी भक्तों को कुछ शब्दांजली पढ़कर सुनाएंगे।

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