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जप चर्चा – 2 अगस्त, 2020 805 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। मोरिशस में आज कृष्ण बलराम मंदिर का आज 22 वा स्थापना महोत्सव मना रहे हैं। कल बलराम पूर्णिमा है तथा कुछ दिनों में कृष्ण जन्माष्टमी है। धीरे धीरे हम कृष्ण बलराम की और मुड़ेंगे, ऐसा नहीं हैं की हम उनकी और नहीं मुड़े थे लेकिन लीला की दृष्टि से मैं सोच रहा था कि हम जप चर्चा के अंतर्गत हम कृष्ण बलराम की कथाएँ, लीलाएँ, बातें, चर्चा करेंगे। कृष्ण बलराम का नामकरण समारोह संपन्न हुआ। गर्गाचार्य को वसुदेव ने भेजा था। कृष्ण बलराम वसुदेव के पुत्र थे। वे चाहते थे कि उनके पुत्रों का नामकरण हो इसलिए उन्होंने गर्गाचार्य को मथुरा से गोकुल भेजा। गोकुल में गर्गाचार्य का विशेष स्वागत हुआ। श्रीशुक उवाच गर्गः पुरोहितो राजन्यदूनां सुमहातपाः । व्रजं जगाम नन्दस्य वसुदेवप्रचोदितः ।। (SB 10.8.1) अर्थ - शुकदेव गोस्वामी ने कहा : हे महाराज परीक्षित, तब यदुकुल के पुरोहित एवं तपस्या में बढ़ें चढ़ें गर्ग मुनि को वसुदेव ने प्रेरित किया कि वे नन्द महाराज के घर जाकर उन्हें मिलें। भागवत सप्ताह तो नहीं है इसलिए ये श्लोक वापस कहकर नहीं सुना पाएंगे। गर्गाचार्य यदुवंशियों, वसुदेव के पुरोहित थे। तं दृष्ट्वा परमप्रीतः प्रत्युत्थाय कृतान्जलिः । आनर्चाधोक्षजधिया प्रणिपातपुरःसरम् ।। (SB 10.8.2) अर्थ – जब नन्द महाराज ने गर्ग मुनि को अपने घर में उपस्थित देखा तो वे इतने प्रसन्न हुए कि उनके स्वागत में दोनों हाथ जोड़े उठ खड़े हुए। यद्यपि गर्ग मुनि को नन्द महाराज अपनी आँखों से देख रहे थे किन्तु वे उन्हें अधोक्षज मन रहे थे अर्थात वे भौतिक इन्द्रियों से दिखाई पड़ने वाले सामान्य पुरुष न थे। गर्गाचार्य जब वृंदावन गए नंद महाराज उन्हें देखकर अति प्रसन्न हुए उठकर आगे बढ़े, अगुवानी की, उनका स्वागत किया। आप हम जैसे चेतना के गरीब, विचारों के गरीब, कृष्ण भावना के गरीब है, संसार में सभी गरीब है। अमेरिका भी गरीब है तथा कई धनी व्यक्ति भी अति गरीब है। वह नंद महाराज से सीख सकते हैं। नन्द महाराज शायद उन्हें स्मरण दिला रहे हैं हे धनवानों, हे करोड़पतियों आप गरीब हो , कैसे गरीब हैं वे लोग? चेतना के गरीब हैं। अच्छा हैं आप हुआ कि आप आज हमें धनवान बनाओगे। धन्य हैं हमारा जीवन, आप यहाँ पधारे उससे हम धन्य हो गए, इससे हम धनी हो गए। हमारी चेतना की गरीबी को हटाओ तथा हमें धनवान, भाग्यवान बनाओ। नंद महाराज ने गर्गाचार्य को निवेदन किया कि त्वं हि ब्रहमविदां श्रेष्ठः संस्कारान्कर्तुमर्हसि । बालयोरनयोर्नृणां जन्मना ब्रहणों गुरुः । । (SB 10.8.6) अर्थ – हे प्रभु, आप ब्राह्मणों में श्रेष्ठ हैं विशेषतया, क्योंकि आप ज्योतिष शास्त्र से भलीभांति अवगत हैं । अतएव आप सहज ही हर व्यक्ति के आध्यात्मिक गुरु हैं । ऐसा होते हुए चूँकि आप कृपा करके मेरे घर आये हैं अतएव आप मेरे दोनों पुत्रों का संस्कार संपन्न करें । आप हमारे बालक कृष्ण बलराम का नामकरण संस्कार करिए। कई प्रकार के संस्कार होते हैं जैसे – गर्भाधान संस्कार, जन्म के समय के कई संस्कार, कुछ 16 या 10 संस्कार होते हैं। उनमें से विशेष है नामकरण संस्कार। जब गर्गाचार्य ने ये सुना तो उन्होंने कहा नहीं नहीं, वे उन्हें सावधान कर रहे हैं। नन्द बाबा जी यदि मैं ऐसा करूंगा तो उसमें खतरा है। श्रीगर्ग उवाच यदूनामहमाचार्यः ख्यात्श्च भुवि सर्वदा । सुतं मया संस्कृतं ते मन्यते देवकीसुतम् । । (SB 10.8.7) अर्थ – गर्ग मुनि ने कहा : हे नन्द महाराज , मैं यदुकुल का पुरोहित हूँ । यह सर्वविदित हैं अतः यदि मैं आपके पुत्रों का संस्कार संपन्न कराता हूँ तो कंस समझेगा कि वे देवकी के पुत्र हैं । मैं यदुवों/ यादवों का पुरोहित या आचार्य हूं, प्रसिद्ध आचार्य हूं। यदि मैंने आपके बालकों का नामकरण संस्कार किया तो यह समाचार सर्वत्र पहुंच जाएगा। मथुरा तक तो पहुँच सकता ही हैं। ये बात कंस को भी पता चल सकती है और यदि यह बात कंस को पता चलती है तो वह समझ जाएगा कि ये दो बालक हैं उनमे से एक आँठवा है। सातवें का क्या हुआ उसे पता नहीं चला। यही वह बालक होगा जिसका नामकरण संस्कार गर्गाचार्य ने किया इसका अर्थ हैं की वह बालक वसुदेव का पुत्र हैं वह ऐसा मान लेगा। इसके बाद वह क्या कर सकता है वह हम सोच भी नहीं सकते। कंसः पापमतिः सख्यं तव चानकदुन्दुभेः । देवक्या अष्टमो गर्भो न स्त्री भवितुमर्हति । । इति सन्चिनत्यन्छुत्वा देवक्या दारिकावचः । अपि हन्ता गताशड्कस्तर्हि तन्नोऽनयो भवेत् । । (SB 10.8.8-9) अर्थ – कंस बहुत बड़ा कूटनीतिज्ञ होने के साथ ही अत्यंत पापी है । अतः देवकी की पुत्री योगमाया से यह सुनने के बाद कि उसे मारने वाला बालक अन्यत्र कहीं जन्म ले चूका है और यह सुन चुकने पर कि देवकी के आठवें गर्भ से पुत्री उत्पन्न नहीं हो सकती और यह जानते हुए कि वसुदेव से आपकी मित्रता है जब कंस यह सुनेगा कि यदुकुल के पुरोहित मेरे द्वारा संस्कार कराया गया है, तो इन सब बातों से उसे निश्चय रूप से संदेह हो जाएगा कि कृष्ण देवकी तथा वसुदेव का पुत्र है तब वह कृष्ण को मार डालने के उपाय करेगा और यह महँ विपत्ति सिद्ध होगी । कंस पाप बुद्धि वाला व्यक्ति है तथा उसने पुत्री के वध का प्रयास किया था परन्तु वह उसके हाथ से छूटकर गई तथा कहा कि तुम्हारा वध करने वाला और कहीं पंहुचा है, और कहीं जन्म ले चुका है। कंस ने सोचा की आँठवा तो पुत्र होना चाहिए था। हे पुत्री तुम सच कह रही हो वह पुत्र होना चाहिए था। इस प्रकार वह पापा बुद्धि कंस सम्बन्ध जोड़ेगा तथा समझेगा कि जिसका नामकरण मैंने गोकुल में किया वह बालक वसुदेव पुत्र है। नंद महाराज ये सभी बाते सुन तो रहे है परन्तु समझ नहीं रहे थे, क्योंकि कृष्ण बलराम के प्रति उनका वात्सल्य, स्नेह बहुत प्रगाढ़ हैं। अत्यंत वात्सल्य भाव के कारण योग माया नंद महाराज को समझने नहीं देती हैं कि गर्गाचार्य क्या कहना चाह रहे हैं, क्या संकेत कर रहे हैं। वे मन गए कि प्रचार नहीं होगा। हम गौशाला में एक छोटा उत्सव मनाते हैं। गाएँ चरने गई हुई हैं। गोशाला खाली हैं। हम किसी को आमंत्रित नहीं करेंगे। मैं, बालक तथा बालकों की माता ही वहां रहेंगी। हम शांति पूर्वक नामकरण संस्कार कर देंगे। श्रीनन्द उवाच अलाक्षितोऽस्मिन्रहसि मामकैरपि गोव्रजे । कुरु द्विजातिसंस्कारं स्वस्तिवाचनपूर्वकम् ।। (SB 10..8.10) अर्थ – नन्द महाराज ने कहा : हे महामुनि, यदि आप सोचते हैं कि आपके द्वारा संस्कार विधि संपन्न कराये जाने से कंस संशकित होगा तो चुपके से वैदिक मंत्रोच्चार करें और मेरे घर की इस गोशाला में ही यह द्विज संस्कार पूरा करें जिससे और तो और मेरे सम्बन्धी तक न जन पायें क्योंकि यह संस्कार अत्यावश्यक हैं। ज्यादा विधि-विधान नहीं होगा, यज्ञ नहीं होगा, भंडारा नहीं होगा केवल स्वस्तिवाचन कर आप नामकरण संस्कार संपन्न करें। एकांत में गौशाला में सभी पहुंचे पहले बलराम का नामकरण हुआ। बलराम को तीन नाम दिए गए - (1) बल (2) राम (3) संकर्षण बलराम में दो नाम हैं बल तथा दूसरा राम। इनमें बल होगा अतः बल तथा ये सभी को हर्ष देंगे इनके कारण सभी जीवों को आराम मिलेगा इसलिए इनका नाम होगा राम, तथा तीसरा नाम होगा संकर्षण। वैसे गर्ग आचार्य नाम रख तो नहीं रहे है। "बलराम" ये नाम तो पहले से ही है। ये नाम पहले से ही शाश्वत है। ये अजन्मा है ये कोई पहेली बार अवतार नहीं लिए है पहले भी कई बार आ चुके है अलग रूप और नाम से। इनका नाम और रूप दोनों ही शाश्वत है। बलराम के नाम करण के उपरांत कृष्ण की और मुड़ते है। और कहते है :- आसनवर्णास्त्र्यों हास्य गृहीतो नुयुगम तनूः । शुक्लो रक्तस्था पीत इदानीं कृषन्तां गतः।। भावार्थ (आपका यह पुत्र हर युग में अवतार के रूप में प्रकट होता है। भूतकाल में उसने तीन विभिन रंग - गौर, लाल तथा पीला - धारण किये और अब वह श्याम ( काले ) रंग में उतपन हुआ है [ अन्य द्वापर युग में वह शुक ( तोता ) के रंग में ( भगवान् रामचंद्र के रूप में ) उत्पन्न हुआ। अब ऐसे सारे अवतार कृष्ण में एकत्र हो गए है ] । ) तुम्हरे इस बालक के वर्ण के अनुसार अलग अलग नाम हुए है। ये बालक अलग अलग युगो में जनम ले चूका है। पहले श्री कृष्ण अलग अलग वर्णो या रंगो में जन्मे थे और उसके अनुसार श्री कृष्ण के अलग अलग नाम है। शुक्लो रकतस तथा पितो। पहले ये सतयुग में शुकल वर्ण में कंस भगवान् और त्रेता युग में रक्त वर्ण का वराह के रूप में और पीतम कलयुग में पीत वर्ण का बन जाता है इसलिए इनका नाम गौरंगा होता है। गर्ग आचार्य कलयुग में प्रकट होने वाले भगवान् श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु का उल्लेख कर रहे है पीत कहके। एक युग में जो तीसरा युग है बचा हुआ वह है कलियुग। यहाँ पर भागवत में बड़ा स्पष्ट है श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु का उल्लेख हुआ है और कलियुग में प्रकट होते है गौर वर्ण के होते है और ये गर्ग आचार्य की वाणी है झूठ नहीं हो सकती। तीन युगो में तीन वर्ण का बनता है ये बालक । इदानीम मतलब अब क्या हुआ है। काले नीले श्याम वर्ण का ये बना हुआ है तो इसका नाम वर्ण के अनुसार कृष्ण होगा। और नाम करण हुआ कृष्ण का जय श्री कृष्ण। आगे गर्ग आचार्य ने कहा है प्रवचन दे रहे है लेकिन नन्द महाराज समझ नहीं पा रहे है या समझना नहीं चाहते है। गर्ग आचार्य कहते है की तुम्हारे इस बालक का जिसका नाम मेने अभी कृष्ण रखा। वैसे इनके कई सारे नाम है विष्णु सहस्त्र नाम और बहूनि रुपानी कई सरे रूप भी है अद्वैतं अच्चुतम अनादि अनंत रूपम। गर्ग आचार्य कह रहे है की उन् सारे नामो को रूपों को एहम वेद मै जानता हु लेकिन दुनिया नहीं जानती है और शायद तुम भी नहीं जानते हो। तोह इस तरह से कृष्ण की गाथा ये दो पुरोहित गा रहे है , और जो गर्ग आचार्य जी ने ये उपदेश कहे है ये हमारे लिए भी हो सकते है। हे नन्द महाराज तुम तो भाग्यवान हो ही साथ में जो मनुष्य तुम्हरे बालक की सेवा करेंगे वह भी भाग्यवान होंगे। जो भी इस कृष्ण से प्रेम करेंगे सेवा करेंगे , भगवान् के नाम का जप करेंगे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे प्रीति पूर्वक करेंगे तोह उनका कोई शत्रु नहीं होगा। उनके शत्रुओं को भगवन परास्त करेंगे। काम क्रोध मोह लोभ मध् मात्सर्य इनका भी उल्लेख हुआ है यह बह बड़े बड़े शत्रु है इन सबको कृष्ण परास्त करेंगे। कृष्ण कन्हैया लाल की जय। हे नन्द महाराज यदि आपके जीवन में कोई संकट आजाता है तोह ये जो गोप गोपू नंदन है यह तुमाहरी रक्षा करेगा , कोई कठिन समस्या है जटिल समस्या है तोह बस कृष्ण का आश्रय लो , कृष्ण से मदद मांगो तुम तर जाओगे , तुमाहरी रक्षा होगी। हरी हरी। यह जो बाते गर्ग आचार्य ने कृष्ण के नाम करण के वक़्त कही वह सभी बातें नन्द महाराज ने गोवेर्धन लीला के बाद सभी ब्रजवासियों को सुनाई। यह बालक है कौन देवता है क्या। भागवतम में श्रीला प्रभुपाद ने लिखा है कृष्ण बुक में "the summum bonum" . यह जो गोपनीय बातें नन्द महाराज सुने थे गर्ग आचार्य जी से यह सारी की सारी बात सुनाई। वैसे नन्द महाराज पूरा तोह नहीं समझे थे पर कैसे भी करके उन्होंने पूरी बात सुनाई ताकि ब्रजवासी समझ सके की ये बालक है कौन। ठीक है तोह हम अभी विराम देंगे। कृष्ण बलराम की जय। कल बलराम पूर्णिमा है तोह याद रखियेगा जप करियेगा हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। जब हरे राम हरे राम कहेंगे तोह ये राम बलराम ही है। ऐसा समझा जा सकता है कृष्ण ही बलराम है , ये हरे राम में राम बलराम ही है। जब हम हरे कृष्णा महा मंत्र का कीर्तन करते है तोह हम दोनों कृष्ण और बलराम का गुणगान करते है। जा जब कृष्ण के नाम का उच्चारण करते है तो दोनों के नाम का उच्चारण हो जाता है एक में ही दोनों है। आप सभी ऐसे ही कृष्ण का कीर्तन श्रवण पठन करते रहिये लीलाओ को। श्रीला प्रभुपाद ने लीला पुरषोतम कृष्ण पुस्तक लिखी है जिसको हम कृष्ण बुक कहते थे। जो श्रीमद भागवतम के १० वे स्कंध का सारांश है कृष्ण की सारी जनम से लेकर तिरोभाव तक। तिरोभाव की कथा वैसे ११वे स्कंध में है। प्रभुपाद ने पूरा कृष्ण का चरित्र कृष्ण बुक के माध्यम से प्रस्तुत किया है। तोह आप सभी कृष्ण बुक को पढ़ सकते हो इन् दिनों में। कृष्ण बलराम का जनम उत्सव हम बना रहे है। तोह ये पुस्तक हमे पढ़नी चाहिए। श्री श्री कृष्ण बलराम की जय गौर प्रेमानन्दे हरी हरी बोल परम पूज्य लोकनाथ स्वामी महाराज की जय।English
2nd August 2020
Namakarana Samskara of Krsna and Balarama
Hare Krishna! Chanting is taking place from 805 locations Sri Krsna Balarama ki Jai!
Today, the Krsna Balarāma temple in Mauritius is celebrating its 20th anniversary. Tomorrow is Balarāma Purnima and soon we'll be celebrating Sri Krsna Janmastami. We will surely be discussing the pastimes of Sri Krsna and Balarāma. We will discuss the name-giving ceremony of Krsna and Balarāma. Since they were the children of Vasudeva, their family priest, Sri Gargacarya came to Gokul from Mathura. There was a special ceremony to welcome Sri Gargacarya.
śrī-śuka uvāca gargaḥ purohito rājan yadūnāṁ sumahā-tapāḥ vrajaṁ jagāma nandasya vasudeva-pracoditaḥ
Translation: Śukadeva Gosvāmī said: O Mahārāja Parīkṣit, the priest of the Yadu dynasty, namely Garga Muni, who was highly elevated in austerity and penance, was then inspired by Vasudeva to go see Nanda Mahārāja at his home.[SB 10.8.1]
He was the priest of Yaduvamsha. he went to Vrindavan (Gokul).
taṁ dṛṣṭvā parama-prītaḥ pratyutthāya kṛtāñjaliḥ ānarcādhokṣaja-dhiyā praṇipāta-puraḥsaram
Translation: When Nanda Mahārāja saw Garga Muni present at his home, Nanda was so pleased that he stood up to receive him with folded hands. Although seeing Garga Muni with his eyes, Nanda Mahārāja could appreciate that Garga Muni was adhokṣaja; that is, he was not an ordinary person seen by material senses.[ SB 10.8.2]
Nanda Maharaja was extremely pleased to see him and welcomed him happily.
mahad-vicalanaṁ nṝṇāṁ gṛhiṇāṁ dīna-cetasām niḥśreyasāya bhagavan kalpate nānyathā kvacit
Translation: O my lord, O great devotee, persons like you move from one place to another not for their own interests but for the sake of poor-hearted gṛhasthas [householders]. Otherwise they have no interest in going from one place to another.[ SB 10.8.4]
Nanda Maharaja said, “You are welcome to this place of poor people, who are poor in the sense of consciousness, Krsna consciousness. This poverty is the worst poverty. In this sense, the world is very poor. America is poor. They are very poor folks. We can learn from Nanda Maharaja. He is reminding the crorepatis who are poor. dīna-cetasām. Nanda Maharaja says that in this sense we are poor, and by coming here you will remove this poverty and make us rich in Krsna consciousness. Nanda Maharaja pleads to Gargacarya to perform the ceremony of giving names to the boys.
tvaṁ hi brahma-vidāṁ śreṣṭhaḥ saṁskārān kartum arhasi bālayor anayor nṝṇāṁ janmanā brāhmaṇo guruḥ
Translation: My Lord, you are the best of the brāhmaṇas, especially because you are fully aware of the jyotiḥ-śāstra, the astrological science. Therefore you are naturally the spiritual master of every human being. This being so, since you have kindlyKrsna to my house, kindly execute the reformatory activities for my two sons.[ SB 10.8.6]
There are 16 different ceremonies to be performed during one's lifetime. There is the Garbhādhāna saṃskāras and many others. Out of them, there is a special saṃskāra called Namakarana Samskara.
śrī-garga uvāca yadūnām aham ācāryaḥ khyātaś ca bhuvi sarvadā sutaṁ mayā saṁskṛtaṁ te manyate devakī-sutam
Translation: Garga Muni said: “My dear Nanda Mahārāja, I am the priestly guide of the Yadu dynasty. This is known everywhere. Therefore, if I perform the purificatory process for your sons, Kaṁsa will consider Them the sons of Devakī.[ SB 10.8.7]
When Gargacarya heard this, he was hesitant. He said that he was the priest of the Yadu dynasty and was quite famous with this identity. “If I name your children then this news will spread very fast. It will reach Mathura and soon to Kamsa.”
sutaṁ mayā saṁskṛtaṁ te manyate devakī-sutam
He surely will doubt that any one of these boys is the son of Devaki, as Gargacarya performed the name-giving ceremony.
kaṁsaḥ pāpa-matiḥ sakhyaṁ
He will surely believe this. He has a sinful intelligence. He tried to kill the daughter, but she slipped out of his hands and went to the sky, she announced that the killer of Kamsa has already appeared elsewhere. “He will certainly doubt that since I am performing this name-giving ceremony. It’s surely one of these two children.” But Nanda Maharaja was not overly affected. He had a deep loving relationship with Krsna and Balarama. Gargacarya was saying something, but Krsna's Yoga Maya did not allow Nanda Baba to accept this. He said, “Then let's not celebrate it on a grand level. Let's not make this a big event, we shall secretly celebrate on a small level in the Gaushala, as all the cows have gone for Gau charan. There will be an empty place. He said, ”Only I, Nanda Maharaja, the boys, their mothers will present. Quietly you do the Namakarana Samskara.”
śrī-nanda uvāca alakṣito ’smin rahasi māmakair api go-vraje kuru dvijāti-saṁskāraṁ svasti-vācana-pūrvakam
Translation: Nanda Mahārāja said: My dear great sage, if you think that your performing this process of purification will make Kaṁsa suspicious, then secretly chant the Vedic hymns and perform the purifying process of second birth here in the cow shed of my house, without the knowledge of anyone else, even my relatives, for this process of purification is essential.[ SB 10.8.10]
There will be no major sacrifice or feast. He said just chant the Vedic hymns and do Namakarana Samskara. Such an arrangement was done.
alakṣito ’smin rahasi and secretly all reached the Goshala. Firstly Balarama's name giving ceremony took place. Gargacarya gave him 3 names: First - Bala, since is extremely powerful. Second - Rāma, since he will give pleasure to others. Third - Saṅkarṣaṇa
It is not that Gargacarya gave these new names, these names are already there eternally. Gargacarya wanted to say that the names of this boy are Bala, Rāma, and Saṅkarṣaṇa . I am not giving the names. The names are also eternal like the Lord Himself. Then comes the turn of Sri Krsna. He said,
āsan varṇās trayo hy asya gṛhṇato ’nuyugaṁ tanūḥ śuklo raktas tathā pīta idānīṁ kṛṣṇatāṁ gataḥ
Translation: Your son Kṛṣṇa appears as an incarnation in every millennium. In the past, He assumed three different colors — white, red and yellow — and now He has appeared in a blackish color. [In another Dvāpara-yuga, He appeared (as Lord Rāmacandra) in the color of śuka, a parrot. All such incarnations have now assembled in Kṛṣṇa.][ SB 10.8.13]
There are different names according to his complexions, he has appeared in different colors previously, In Satyuga - White (hamsa avatar), in tretayuga - Red (Varaha avatar) and in Kaliyuga - Yellow (Gauranga Mahaprabhu) In Kaliyuga, His complexion will be yellow/golden Here it has been mentioned in Srimad Bhagavatam that the Lord will appear as Caitanya Mahaprabhu. These are the words of Gargacarya and so it cannot be false.
idānīṁ kṛṣṇatāṁ gataḥ
Now in Dvāpara-yuga, He has appeared in a black-blue complexion so His name is Krsna! Then Gargacarya said...
bahūni santi nāmāni rūpāṇi ca sutasya te guṇa-karmānurūpāṇi tāny ahaṁ veda no janāḥ
Translation: For this son of yours there are many forms and names according to His transcendental qualities and activities. These are known to me, but people in general do not understand them.[ SB 10.8.15]
Gargacarya is giving class, but Nanda Maharaja is not able to understand. He said that He has many names and many forms. Like the 1000 names of Visnu. And I know all of them, but the general public is not aware of it. Even Nanda Maharaja is not aware of it or rather is not willing to be aware of it. In this way, Gargacarya was singing the glorification of the Lord.
ya etasmin mahā-bhāgāḥ prītiṁ kurvanti mānavāḥ nārayo ’bhibhavanty etān viṣṇu-pakṣān ivāsurāḥ
Translation: Demons [asuras] cannot harm the demigods, who always have Lord Viṣṇu on their side. Similarly, any person or group attached to Kṛṣṇa is extremely fortunate. Because such persons are very much affectionate toward Kṛṣṇa, they cannot be defeated by demons like the associates of Kaṁsa [or by the internal enemies, the senses].[ SB 10.8.18]
Gargacarya said, “The beings who will perform the loving service of this Son of yours, will be extremely fortunate.”
nārayo nārayo bhibhavanty etān viṣṇu-pakṣān ivāsurāḥ
Those who will love Him, serve Him, chant His holy names...
Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare
....will not face any enemies. The Lord will defeat all Their enemies. Lust, anger, greed, pride, attachment, jealousy are the 6 main enemies of every entity. They will also be defeated by the Lord.
anena sarva-durgāṇi yūyam añjas tariṣyathaO Nanda Maharaja, if you come across any difficulty in your life, approach this boy for help and you'll be saved. Nanda Maharaja used to do this, we get to know from the further Katha. All this was secret until Nanda Maharaja revealed it to all the Braja vasis after the lifting of the Govardhan hill.
There is a chapter in Srimad Bhagavatam as Wonderful Krsna. Though Nanda Maharaja did not understand the full concept, rather did not want to understand, but still, he revealed it to all the Braja vasis.
Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare
Rama in the maha-mantra is Balarama is also an understanding. Krsna expands as Balarama. We should remember both of them. We chant both Their names or we can say that we are chanting the names of Krsna and Balarama's name is also included automatically. Keep on doing nama kirtana and sravanam, kirtana. This is also a special time to read Prabhupada's Lila Puroshottam Sri Krsna Book. We call it Krsna Book since the time of Srila Prabhupada which is the summary of the 10th canto of Srimad Bhagavatam. You may read that during this time as we are celebrating the Appearance of both Krsna and Balarama.
Krsna Balarama ki Jai! Balarama Purnima Ki Jai!