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26th अगस्त 2019
इस भारत देश में श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने जो जिक्र किया था, वो भविष्यवाणी सत्य हुई, और आज के ही दिन भगवान गौरांग श्रील प्रभुपाद को इस धरा पर लाये
श्रील प्रभुपाद की जय!
कृष्ण के जन्मदिन के ठीक एक दिन बाद……. कृष्ण प्रकट हुए और उन्होंने अगले दिन ही श्रील प्रभुपाद को इस धरती पर भेजा, मुझे लगता है यह मात्र कोई संयोग नहीं हो सकता, अपितु यह भगवान की व्यवस्था है। वे(श्रील प्रभुपाद) श्री कृष्ण चैतन्य या श्री कृष्ण के बहुत प्रिय हैं। भगवान के जन्मदिन के तुरंत बाद, प्रभुपाद का जन्मदिन हुआ। जिस दिन, श्रील प्रभुपाद पैदा हुए थे, उसे नंदोत्सव भी कहा जाता है। जिस दिन नंद महाराज ने कृष्ण जन्माष्टमी मनाई। इसलिए, श्रील प्रभुपाद का आना और उनको सेनापति भक्त बनाना, यह सब भगवान की ही व्यवस्था थी, वह संकीर्तन के सेना प्रमुख बन गये। जैसा कि मैंने कहा कि सेनापति भक्त, श्रील प्रभुपाद सेनापति की भांति जलदूत पर सवार हो गये, दूत का अर्थ है संदेशवाहक। मैं कहता हूं कि वह कृष्णदूत, श्रीकृष्ण के दूत या गौरांग के दूत की तरह नाव पर सवार थे और यह सेनापति भक्त का एक लक्ष्य था, उन्होंने न्यूयॉर्क को अपना निशाना बनाया, जो कि कलयुग की राजधानी है या कली की राजधानी - न्यूयॉर्क। जब वह पहुंचे तो रास्ते में कई चीजें हुईं।
मुझे यह(महाराज जी अपने माला की ओर इशारा करते हुए ) माला आज ही मिली। लेकिन जब प्रभुपाद न्यूयॉर्क पहुंचे तो कोई भी उन्हें लेने वाला नहीं था। वो नहीं जानते थे कि दाएं मुड़ना है या बाएं, होटल की कोई बुकिंग नहीं थी। ज्यादा पैसा हाथ में नहीं था, केवल पाँच डॉलर, जो न्यूयॉर्क में केवल पाँच मिनट तक गुजारा करने के लिए पर्याप्त हैं। सत्तर साल की उम्र में, वह बिना पैसे के (वो एक गरीब इंसान थे) लेकिन मैं कहता हूं कि वह सबसे अमीर व्यक्ति थे, क्योंकि वह पवित्र भगवान के नाम का धन ले कर आये थे।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
हरिनाम धन और ऐसा भी नही की उनका कोई दोस्त नही था, उनके साथ उनके सबसे अच्छे दोस्त श्री कृष्ण साथ थे, प्रभुपाद एक सेनापति भक्त है इसका मतलब है कि उनके पास बम भी होने चाहिए, इसलिए उनकी किताबें टाइम बम बन गईं, और उनके पास मंदिर थे, उनके पास मंदिर कमांडर थे और गोलियां भी थीं। इस्कॉन की गोलियां अस्तित्व में आईं सेना, सेनापति, गोलियां ये सब सुनकर ऐसा लगता है किसी जंग की बाते हो रही हैं।
प्रभुपाद ने कहा कि श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु पूरे भारत में पवित्र हरिनाम लाये और अब पूरी दुनिया के बचे हुए हिस्से मे यह पवित्र भगवान का नाम, हरे कृष्ण महामंत्र का प्रचार अंतर्राष्ट्रीय कृष्ण भावना मृत संघ के लिए छोडा है। वे इस्कॉन के संस्थापक आचार्य बने। उन्होंने चैतन्य महाप्रभु की भविष्यवाणी को सच करने के लिए यात्रा की।
यदि गौर न होइते.... दुनिया को पवित्र नाम नहीं मिला होता यदि प्रभुपाद न होइते, अगर प्रभुपाद इस दिन प्रकट नहीं होते, तो पवित्र नाम दुनिया के बाकी हिस्सों में नहीं पहुंचा होता।
कल हमारे पास बहुत सारे भक्त थे, कृष्ण के भक्त.... लेकिन मुझे लगता है कि जो लोग प्रभुपाद के व्यास पूजा महोत्सव को मनाने के लिए यहां पहुंच रहे हैं, वे असली भक्त हैं।
अगर कोई अपना परिचय ऐसे देता है कि भगवान मैं आपका भक्त हूँ। यह अच्छा है!!...लेकिन अगर हम अपना परिचय दे सकें, कि हे भगवन! मैं आपके भक्त का भक्त हूँ , तब भगवान कहते हैं कि तुम मेरे असली भक्त हो। कल जो कृष्ण के भक्त थे वो आज कृष्ण के भक्त के भक्त हैं। प्रभुपाद प्राकट्य दिवस के उपलक्ष में जो लोग मौजूद हैं और भाग ले रहे हैं, वे असली भक्त हैं। वे कृष्ण के प्रिय हैं। श्रील प्रभुपाद से एक बार रिपोर्टर ने पूछा था, स्वामीजी, आप हमारे देश इंग्लैंड क्यों आए हैं? प्रभुपाद ने उत्तर दिया, ‘आप भी हमारे देश भारत आए और आपने और आपके वायसराय ने जो भी मूल्यवान समझा था, वो सभी चोरी कर रहे थे और इंग्लैंड ला रहे थे। चाहे वह रेशम या मसाले हो या कोहिनूर का हीरा, कोहिनूर नामक हीरा जो लंदन संग्रहालय मे रखा है, आपने इसे चुरा लिया। लेकिन इन सबके बीच आप वास्तव में भारत की सबसे मूल्यवान वस्तुओं को भूल गए , वो क्या है? भारत की संस्कृति। और क्या? - भगवद-गीता और भागवतम की शिक्षाएँ। और क्या? भगवान का पवित्र नाम.....कुछ ऐसा जो आपके वाइसराय ने पीछे छोड़ दिया है, उसी की होम डिलीवरी देने आया हूँ।
1977 के कुंभ-मेले में भक्त बात कर रहे थे कि कैसे ब्रिटिश साम्राज्य चारों तरफ फैल गया था और अब यह कहाँ है?
एक प्रसिद्ध कथन है, कि ब्रिटिश साम्राज्य में कभी सूर्य अस्त नहीं होता 'और प्रभुपाद ने कहा,' लेकिन इंग्लैंड में सूरज कभी नहीं उगता है। 'लेकिन अब इस्कॉन साम्राज्य में सूरज कभी अस्त नहीं होता है। सुबह की आरती, शाम की आरती, पुस्तक वितरण, और हर तरफ प्रसाद वितरण किया जा रहा है, इसलिए अब इस्कॉन साम्राज्य में सूर्य कभी अस्त नहीं होता। पश्चिम और उत्तरी अमेरिका को जीतने(अर्थात प्रचार करने ) के बाद श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में आये। बॉम्बे प्रभुपाद का कार्यालय था और जैसा कि अधिकारी अपना बहुत समय कार्यालय में बिताते हैं, उसी प्रकार प्रभुपाद भी अपना बहुत समय बॉम्बे में बिताते थे।
हम बॉम्बे के मंदिर के ब्रह्मचारी थे। हमें सैकड़ो बार हवाईअड्डे पर प्रभुपाद को रिसीव करने का अवसर मिला था। मैंने एक पुस्तक लिखी है “बॉम्बे इज माई ऑफिस”, उस पुस्तक में मैने लिखा है कि, प्रभुपाद कितनी बार बॉम्बे पहुंचे और बंबई में एक साथ कितने हफ्तों और महीनों का समय बिताया। प्रभुपाद जहाँ से भी पहुँचते थे, हम एयरपोर्ट टर्मिनल में जाते थे और आपस मे बातें करते थे, कि प्रभुपाद ब्रिटिश एयरवेज द्वारा आ रहे हैं, वे उतरते हुए हवाई जहाजों को देख कर अनुमान लगाते थे कि प्रभुपाद इस हवाई जहाज में हैं, हमने अनुमान करने की कोशिश की, वह अब किस हवाई जहाज में है? तब प्रभुपाद एक हवाई जहाज से बाहर आते थे और हम उन्हें सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए देखते थे, और अपने हाथ में छड़ी लेकर टर्मिनल भवन तक आते थे। मुझे लगता था कि प्रभुपाद कुछ जीत के बाद वापस आए हैं, वह सेनापति भक्त भी हैं, इसलिए उन्होंने दुनिया को जीत लिया है, मुझे लगता था कि वह विजयी जनरल की तरह चल रहे हैं।
श्रील प्रभुपाद की जय!
प्रभुपाद को इंग्लैंड में प्रचार के दौरान कुछ प्रसिद्ध गृहस्थ, तमाल कृष्ण और गुरुदास, मुकुंद और श्यामसुंदर मिले। वे सभी शादीशुदा थे, अपनी पत्नियों के साथ उन सभी मे लंदन सहित पूरे इंग्लैंड में जोरदार प्रचार किया था।
तब प्रभुपाद ने कहा कि जो काम गौड़ीय संन्यासी नहीं कर पाए हैं, मेरे गृहस्थ शिष्यों ने किया है या विजय प्राप्त की है। वे इंग्लैंड या लंदन में कृष्ण चेतना फैलाने में सफल रहे हैं। इस पहले भक्तो के समूह के वहां पहुंचने और कीर्तन करने उस पर उन्हें बहुत गर्व था
(महाराज जी आज का जपा कॉन्फ्रेंस भक्ति वेदांत मैनर में कर रहे है ) यह (भ.वे. मैं.) संपत्ति जॉर्ज हैरिसन की थी।
जॉर्ज हैरिसन की जय!
प्रभुपाद और उनके अनुयायी संपत्ति, बड़े बड़े चर्च, महल आदि खरीद रहे थे, लेकिन इस परिमाण की संपत्ति, जिसे भक्तिवेदांत जागीर के रूप में जाना जाता है, जो सत्रह एकड़ थी, यह जॉर्ज हैरिसन का उदार दान था।
जॉर्ज हैरिसन की जय!
उन्होंने (श्रील प्रभुपाद ने ) उसे आध्यात्मिक नाम क्यों नहीं दिया? - वह पहले से एक हरिपुत्र था। वह हरि (भगवान)का पुत्र है। उसका पहले से ही आध्यात्मिक नाम था। जॉर्ज हैरिसन ने पवित्र नाम फैलाने में बड़ी भूमिका निभाई, न केवल संपत्ति का योगदान देकर, अपितु आज हम जिस स्थान पर हम बैठे हैं, वह इंग्लैंड की आध्यात्मिक राजधानी बन गया, जो कि जॉर्ज हैरिसन द्वारा दी गयी, जॉर्ज हैरिसन ने कृष्ण पुस्तकों के मुद्रण के लिए भी भुगतान (धन दिया) किया।
उनका रिकॉर्ड एल्बम जो पूरी दुनिया में बेचा गया था। 'हरे कृष्ण' पूरी दुनिया में हिट हो गया। वह एक बड़ी मदद थी।
इससे पहले कि श्रील प्रभुपाद पहुंचते, कई देशों में तो हरिनाम पहले ही पहुँच चुका था। हरे कृष्ण केंद्र या मंदिर में पहुंचने से पहले ही लोग 'हरे कृष्ण ’ तक पहुंच चुके थे। मुझे लगता है कि हमें जॉर्ज हैरिसन को याद करना चाहिए क्योंकि उनका नाम अनंत काल से कृष्ण चेतना के प्रसार में जुड़ा हुआ है। श्रील प्रभुपाद की झलकियों में जॉर्ज हैरिसन की झलकियाँ भी शामिल हैं।
अंतिम जन्माष्टमी त्योहार, प्रभुपाद ने यहां(भ.वे. मैं.) मनाया। केवल जन्माष्टमी ही नहीं बल्कि श्रील प्रभुपाद की अंतिम व्यास पूजा , उनके इस ग्रह पर रहते हुए , यहाँ भक्तिवेदांत मैनर में मनाया गया था।
मुझे यकीन है, कि इंग्लैंड में, लंदन में, और अन्य जगहों पर प्रभुपाद की बहुत सारी यादें है। राधा-लंदेश्वर की जय!
आज से पचास वर्ष पूर्व स्थापित किए गए पहले विग्रह हैं और यह घोषित किया गया कि यही ईश्वर है, मालिक है, ये ही है लंदनेश्वर.... हम सभी इसका इंतजार कर रहे थे। ऐसे थे प्रभुपाद और उनका प्रचार कौशल.....
१९७७ में वह ऋषिकेश से वापस आ गये थे। (महाराज प्रभुपाद के वाक्य को यथा रूप दोहराते हुए )नहीं! नहीं!! नहीं!!! मुझे वापस वृंदावन ले चलो...
एक बार जब वो घर (वृन्दावन)वापस आ गए, तो उनकी तबियत में थोड़ा सुधार हुआ और फिर तुरंत वह बाहर जाकर प्रचार करना चाहते थे। हम उन्हें गीता-नगरी, अमेरिका लाने की योजना बना रहे थे। गीता-नगरी, अमेरिका जाते हुए , प्रभुपाद रास्ते में इंग्लैंड में जन्माष्टमी, और व्यासपूजा मनाने के लिए रुक गए।
जब प्रभुपाद वृंदावन से हवाई अड्डे के लिए प्रस्थान कर रहे थे, तो कार के पीछे की सीट पर उनके लेटने के लिए गद्दे लगाए गए थे क्योंकि वह ठीक से बैठने में असमर्थ थे, लेकिन उस हालत में भी प्रभुपाद अभी भी बाहर जाना चाहते थे और प्रवचन दे रहे थे।
इसी तरह प्रचार की मनोस्थिति में सदैव प्रभुपाद रहते थे, जिसे हम सभी को याद रखना चाहिए, और उसी मनोभाव से प्रचार करना चाहिए।
स्वास्थ खराब होने के कारण प्रभुपाद को इंग्लैंड से ही वापस आना पड़ा, वह अमेरिका नही जा पाये और भारत वापस लौट आए। हम उन्हें मुंबई एयरपोर्ट पर रिसीव करने के लिए गए थे। इस बार वह एयरपोर्ट पर बहुत अलग दिख रहे थे, छड़ी के सहारे भी वह ज्यादा चल नही पा रहे थे, वह एयरपोर्ट से एक कार में आये। प्रभुपाद के पास तीन अम्बेसडर कारें थीं। एक कोलकाता में, एक मुंबई में और एक दिल्ली में। प्रभुपाद को एक निजी कार हरिदास(उनके एक शिष्य) द्वारा दी गई थी और उस समय यह एक अलग तरह का अभिवादन था। प्रभुपाद हरे कृष्ण लैंड पर पहुँचे। प्रभुपाद ने बड़े काले चश्मे पहने हुए थे। हमने प्रभुपाद के बैठने के लिए पालकी बनाई थी। फिर उन्हें पाँचवी मंजिल पर उनके अपार्टमेंट में ले जाया गया। हम वहाँ श्रील प्रभुपाद के साथ थे, वह बिस्तर पर थे।
अब कोई सुबह की सैर नहीं हुई। एक समय प्रभुपाद बंबई में तीन महीने तक रहे थे। उस समय, हर सुबह, सुबह की सैर हुआ करती थी। वे सैकडों मॉर्निंग वॉक पर गये, सैकडों बार वे मॉर्निंग वॉक से लौटे, सैकड़ो बार उन्होंने श्री श्री राधा-रासबिहारी का अभिवादन किया, सैकडों बार हमने गुरु पूजा की, सैकडों बार हमने भागवतम का प्रवचन सुना। अब वो दिन चले गए थे और आज प्रभुपाद सिर्फ बिस्तर पर थे और हम कीर्तन कर रहे थे। कीर्तन के बीच में मैंने प्रभुपाद से पूछा, कि आप हमें बताइये जो आपके लिए हम कुछ कर सके, जिससे आप ठीक हो सकें,'' उन्होंने कहा, '' जप करो ''। मैंने और जप करना जारी रखा। ये कुछ यादें हैं। प्रभुपाद तब राधा-रासबिहारी मंदिर में ज्यादा दिन रुके नहीं थे, वे वृंदावन चले गए।
वृंदावन मेरा घर है
बंबई मेरा कार्यालय है
मायापुर मेरा तीर्थस्थल है
तो ये वो जगह है जहाँ जहाँ हम उनके साथ गए या उनका अनुसरण किया। हमने अपने हरिनाम यात्रा वाहनों में यात्रा की। मैं नारद मुनि संकीर्तन पार्टी और पुस्तक वितरण पार्टी का नेता था। हमने यात्रा की और वहां पहुंचे।
तब प्रभुपाद ने मुझे इलाहाबाद भेजा, जाओ मेरे डॉक्टर मित्र, घोष को ले आओ। तमाल कृष्ण महाराज ने मुझे पैसे दिए और कहा कि तुम जाकर जल्दी से डॉक्टर को लेकर आओ,यह इलाहाबाद के लिए मेरी पहली यात्रा थी। इलाहाबाद में उनके ( डॉक्टर घोष की) घर पहुंचने पर मुझे पता चला कि वह दार्जिलिंग, असम में अपनी पोतियों के घर पर हैं। मुझे असम के लिए एक और उड़ान पकड़ने के लिए हवाई अड्डे पर आना पड़ा। रास्ते में मैंने बड़े हनुमानजी को देखा। मैं हनुमान के बारे में सोच रहा था, वो भी ऐसे ही मिशन पर थे जब लक्ष्मणजी , जो आदि गुरु हैं, ठीक नहीं थे युद्ध के बीच में उन पर हमला किया गया था और वे बेहोश थे और उन्हें कुछ इलाज की जरूरत थी इसलिए हनुमानजी को हिमालय भेजा गया। मुझे भी हिमालय जाना था, ऐसा सब कुछ सोच कर स्थिति को मैं रिलेट कर रहा था। हनुमानजी दवा लाने गए थे न कि डॉक्टर और मुझे भी हिमालय जाना था (दार्जिलिंग हिमालय की चोटी पर है), डॉक्टर के पास न कि दवा लेने। आप (हनुमानजी ) अपने मिशन में सफल रहे अब कृपया मुझे इस डॉक्टर को खोजने के लिए आशीर्वाद दें। मैं हनुमान की तरह प्रार्थना कर रहा था और सफल रहा था। मुझे डॉक्टर मिला। मैने उनसे कहा कि आपको चलना है प्रभुपाद आपको चाहते हैं। डॉक्टर घोष तुरंत चलने को तैयार हुए और वृंदावन आये, वहाँ आकर उन्होंने वही किया जो उन्हें करना था।
हम भी प्रचार के लिए यात्राओं पर निकल गए थे। हम बद्रीकाश्रम में थे, हम जानते थे कि प्रभुपाद का स्वास्थ ठीक नहीं हैं लेकिन उनकी तबियत का पता लगाने का कोई तरीका नहीं था, इसलिए हमें यह जानने के लिए वापस वृंदावन आना पड़ा कि प्रभुपाद कैसे हैं। वृन्दावन आकर हमने प्रभुपाद के दर्शन किये, प्रभुपाद हम दर्शनार्थियों को बहुत दयालुता के साथ मिले। प्रभुपाद बिस्तर पर पड़े थे और मैं उनके बगल में बैठा था। जब वह बात करते थे तो हम उनको पास से ही सुन पा रहे थे, क्योंकि जब वह बोलते थे तो दूर से बहुत मुश्किल से सुनाई देता था। उन्होंने पूछताछ की, पुस्तक वितरण कैसे हुआ? कौन सी किताबें कितनी बेची गईं और कौन सी सबसे ज्यादा बिकीं? प्रभुपाद हमेशा संकीर्तन रिपोर्टों को सुनना पसंद करते थे क्योंकि आज सुबह भी उन्हें संकीर्तन रिपोर्ट दी गई थी।
प्रभुपाद बोले कि लॉस एंजिल्स से आयी मेल को खोलें, कुछ किताबो की बिक्री का स्कोर आया है, उसे बताओ मुझे .....
हमने उनसे कहा कि प्रभुपाद हम बद्रीकाश्रम से आए हैं। वहाँ हमने व्यास देव को आपकी भगवद् गीता दिखाई। बद्रीकाश्रम में एक गुफा है जिसमें व्यास देव रहते हैं। इसे व्यास गुफ़ा कहा जाता है। हम प्रभुपाद की पुस्तकों को अपने साथ ले गए थे, वहां निश्चित रूप से हमने व्यासदेव को नहीं देखा था, लेकिन व्यासदेव ने हमें और प्रभुपाद की भगवद गीता को देखा होगा। जब मैंने प्रभुपाद से कहा, कि हमने आपके भगवद-गीता को व्यासदेव को दिखाया, तब प्रभुपाद बहुत खुश हुए। यह उनके चेहरे से साफ साफ देखा जा सकता था। जब हम प्रभुपाद के कमरे से बाहर निकल रहे थे, मेरी पार्टी के सभी लोग बाहर जा चुके थे मैं आखिरी था वहां पर, मैंने प्रभुपाद पर एक नज़र डाली, जैसे ही मैंने उनकी तरफ देखा, उन्होंने मुझे वापस आने का इशारा किया। वे कुछ कहना चाहते थे, जैसे ही मैं उनके पास गया उन्होंने कहा, मैं आपसे मिलना चाहता हूं और आपसे बात करना चाहता हूं। आपके लिए कौन सा समय ठीक रहेगा? यह मेरे लिए चौंकाने वाला था क्योंकि उस हालत में भी उन्होंने मुझसे पूछा था कि मेरे लिए क्या समय उपयुक्त है.....
क्या 4 बजे ठीक है? हाँ। जिस तरह से वह बात कर रहे थे, वह बहुत गंभीर था,और मैं सोच रहा था, कि वे मुझसे क्या बात करना चाहते हैं। इसलिए, पूरे दिन मैं सोचता रहा और किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुचा। अंत में, 4 बजे मैं श्रील प्रभुपाद के कमरे के द्वार पर था। उनके सचिव ने कहा कि कृष्ण बलराम गेस्ट हाउस के स्वागत कक्ष में जाएँ। जब मैं वहाँ गया, तो देखा श्रील प्रभुपाद के सभी सेवक, सचिव और उनके सभी वरिष्ठ अनुयायी इकट्ठे हुए थे। मुझे एहसास हुआ कि वह मुझसे जो बात करना चाहते थे, उन्होंने पहले से ही उनमें से कुछ से बात की थी।
प्रभुपाद तीर्थयात्रा पर जाना चाहते थे, वह यात्रा करना चाहते थे या यूं कहिये कि प्रभुपाद माया से लड़ते हुए इस दुनिया को छोड़ना चाहते थे। वह बिस्तर में लेटे हुए बेचैनी महसूस कर रहे थे। वे बाहर जाना चाहते थे, और हम आज उनकी जैसी अवस्था मे ऐसी कल्पना भी नहीं कर सकते, प्रभुपाद एक बैलगाड़ी में यात्रा करना चाहते थे। जब उन्होंने मुझे देखा तो उन्हें याद आया कि मैं वही हूँ जिसे उन्होंने बैलगाड़ी में यात्रा करने के लिए कहा था। उन्होंने हमारी बैल गाड़ी यात्रा कार्यक्रम का उद्घाटन किया था। वृंदावन से मायापुर तक की पैदल यात्रा का उद्घाटन श्रील प्रभुपाद द्वारा ही किया गया था। यह बहुत सफल रहा, प्रभुपाद बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा था, हमारे पास पूरी दुनिया में इस तरह की लाखों बैलगाड़ियां होनी चाहिए। जब उन्होंने मुझे देखा, तो उन्हें बैलगाड़ी कार्यक्रम याद आया और उन्होंने खुदको एक बैलगाड़ी में बैठाना चाहा। जो लोग वहां बैठे थे, कृष्ण-बालाराम मंदिर के स्वागत कक्ष में, उन्होंने बताया कि प्रभुपाद चाहते हैं कि आप उनके लिए बैलगाड़ी की व्यवस्था करें। तब हम (त्रिविक्रम स्वामी पंचद्वीप और मैं स्वयं) मथुरा गए थे। यह सब बहुत आसान नहीं था क्योंकि उस समय गोवर्धन पूजा का समय था और आमतौर पर लोग बैलों की पूजा करते हैं, वे बैल को आराम देते हैं किसी प्रकार का उनसे काम नहीं करवाते। लेकिन हमने किसी प्रकार से एक किसान से बात करके बैलों की व्यवस्था की। अब कृष्ण बलराम मंदिर के सामने गाड़ी आ कर खड़ी हो गयी। लेकिन तब सभी चिंतित होकर आपस मे बातचीत करने लगे और अलग अलग मत निकालने लगे,
हमें बस प्रभुपाद की इच्छा के साथ जाना चाहिए।
नहीं! नहीं! वे कैसे जा सकते हैं इन ऊबड़-खाबड़ सड़कों पर?
गोवर्धन को उनकी आज की यात्रा का डेस्टिनेशन बनाया गया था, अगर सब कुछ सही रहता तो आगे की यात्रा भी संभव थी, लेकिन फिर उनके स्वास्थ को ध्यान में रखते हुये बैलगाड़ी यात्रा का विचार छोड़ दिया गया।
हरि! हरि !!
लेकिन प्रभुपाद ने यात्रा का विचार अभी नहीं छोड़ा था, अगले दिन उनका कमरा उनके सभी सेवको और उनके वरिष्ठ अनुयायियों से भरा हुआ था और हम सभी प्रभुपाद के साथ उनके बिस्तर के चारों ओर बैठे थे। प्रभुपाद ने कहा, मुझे बस से यात्रा करने दो। वे यात्रा का विचार छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे। "चलो ठीक है, अगर बैलगाड़ी नहीं, फिर बस से ही चलते हैं"
और निश्चित रूप से हमने उनके इस विचार का स्वागत किया। उनकी यात्रा की इच्छा से हम यह संकेत ले रहे थे ,कि वे अभी हमे छोड़ कर इस धरा से नही जाएंगे। समय-समय पर हम कह रहे थे, हमें मत छोड़ो। हमें मत छोड़ो, प्रभुपाद हमें शांत करने के लिए कहते थे कि कृष्ण प्रकट हुए और इस धरा को उन्होंने भी छोड़ दिया था।
वहां पर कुछ वैज्ञानिक भी थे जो कि भक्ति स्वरूप दामोदर महाराज के साथ आये थे। उन्होंने पूछा कि
क्या मैं भी चल सकता हूं?
- हाँ आप चल सकते हैं।
तब गिरिराज, (वे तब महाराज नहीं थे) जोकि ब्रह्मचारी थे, ने भी चलने के लिए पूछा।
वहाँ पर कुछ बड़े उद्योगपति और व्यापारी थे, जिन्हें मैने आजीवन सदस्य बनाया था, उन्होंने भी साथ चलने की आज्ञा मांगी
"क्या मैं जा सकता हूँ?
-हाँ। तुम जा सकते हो।
भारत के पंजाब से भक्ति चैतन्य स्वामी थे। उन्होंने कहा कि "
प्रभुपाद मैं एक अच्छा ड्राइवर हूं, क्या मैं जा सकता था?"
- हाँ।
वहाँ पर उपस्थित सभी साथ चलने की आज्ञा प्रभुपाद से ले रहे थे।
क्या मैं जा सकता हूँ?
- हाँ।
क्या मैं जा सकता हूँ?
- हाँ।
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वहाँ पर सभी के बस यात्रा से संबंधित
संवाद को सुनकर और अपने अनुभव (वास्तव में मुझे यह यकीन हो गया था) से मैने यह अनुमान लगाया की प्रभुपाद चाहते हैं कि मैं भी उनके साथ चलूं। फिर मैंने मजाकिया अंदाज में पूछा,
"क्या मैं जा सकता हूं?"
प्रभुपाद ने कहा,
"आप इस बस यात्रा के मुखिया होंगे।"
प्रभुपाद से यह सुनकर तो मेरा जाना पूरी तरह से तय होगया था।
सभी खुश थे कि प्रभुपाद हमारे साथ हैं और वह बस से हमारे साथ यात्रा करने जा रहे हैं। हम तैयारी कर रहे थे की बसें कहाँ से आएंगी, किस रास्ते का चयन होगा....इत्यादि।
तमाल कृष्ण महाराज, भवानंद महाराज और भक्तिचारु महाराज एक भारत का बड़ा नक्शा लाए और यह तय कर रहे थे कि किस रास्ते से जाना है।
हम सभी 14 नवंबर के (दुर्भाग्यपूर्ण) दिन यात्रा की तैयारी कर रहे थे, तभी कविराज,(प्रभुपाद के डॉक्टर,जो कि प्रभुपाद की देख-रेख कर रहे थे) मंदिर, गुरुकुल, गेस्ट हाउस, सभी जगह दौड़ दौड़ कर यह खबर देते हुए दिखे कि प्रभुपाद हमे छोड़कर जा रहे हैं !!!
"Prabhupad is leaving"
"Prabhupad is leaving"
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हम सब कुछ छोड़कर प्रभुपाद के क्वार्टर में पहुंचे, वहाँ पर अब कुछ बाकी नही था अगर कुछ बचा था तो बस रोना......
हर कोई कीर्तन कर रहा था वहां पर कोई एक मुखिया कीर्तनिया नही था, अपितु सभी मुखिया कीर्तनिया की भांति एक साथ कीर्तन कर रहे थे। हम सब गा रहे थे और रो रहे थे। हमें उनकी दिव्य कृपा मिल रही थी।
हरि! हरि!
श्रील प्रभुपाद व्यास पूजा महोत्सव की जय!
निताई गौर प्रेमानन्दे हरि हरि बोल!