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जप चर्चा 8 सितंबर 2020 पंढरपूर धाम 834 स्थानों से जप हो रहा है । जयभद्रा ! हरि हरि । जप करते रहो और जप कैसे करना है ? ध्यान पूर्वक करना है । ध्यान पूर्वक ! ध्यान पूर्वक ! या ध्यानस्त होकर , जैसे कहा है योगस्थ: , योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय | सिद्धयसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते || (भगवद् गीता 2.48) अनुवाद: हे अर्जुन! जय अथवा पराजय की समस्त आसक्ति त्याग कर समभाव से अपना कर्म करो | ऐसी समता योग कहलाती है | योग में स्थित हो जाओ और फिर कुरु कर्माणि फिर सारे कार्य करो । कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा । बुद्ध्यात्मना वा प्रकृतिस्वभावात् ।। करोमि यद्यत्सकलं परस्मै । नारायणयेति समर्पयामि ॥ जो भी कार्य है , कैसे करें ? योगस्थ: कुरु कर्माणि योग में स्थित होकर करे , योगस्थ: कहो या ध्यानस्थ कहो एक ही बात है । योग में स्थित होना योगी बनाना , योगी ! भगवान के साथ संबंध स्थापित करने की जो विधि है उसीको योगी कहा है । हरि हरि । भूले भटके हम जो जीव हैं उन्हे पुनः भगवान का स्मरण करना है । भक्ति पूर्वक , प्रेम पूर्वक उनका स्मरण करना यही तो ध्यान अवस्था है , और यही योग है या यह भक्ति योग है । सभी योगो में श्रेष्ठ योग , योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना | श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः || (भगवद् गीता 6.47) अनुवाद: और समस्त योगियों में से जो योगी अत्यन्त श्रद्धापूर्वक मेरे परायण है, अपने अन्तःकरण में मेरे विषय में सोचता है और मेरी दिव्य प्रेमाभक्ति करता है वह योग में मुझसे परम अन्तरंग रूप में युक्त रहता है और सबों में सर्वोच्च है | यही मेरा मत है | सभी योगियों में और सभी साधक या धार्मिक लोगोका भगवान के साथ संबंध स्थापित करने का उनका प्रयत्न जारी रहता है , जिव का भगवान के साथ संबंध को पुनः और समीप प्रकार से स्थापित करणे मे सिर्फ भक्ति योगी ही सफल होते हैं । वह संबंध स्थापित भक्ति योगी ही कर पाता है । हरी हरी । हम भक्त योगी भी है और हम जप योगी भी है । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। का जप कर रहे हैं , ध्यान कर रहे हैं , याद कर रहे हैं , भक्ति पूर्वक भगवान का स्मरण कर रहे हैं । फिर हम जप योगी बन जाते हैं । ध्यान अवस्था को प्राप्त करने की हेतु हम भक्ति करते हैं , कैसे करते हैं ? जप करके भक्ति करते हैं । भक्ति योगी बनते हैं , जप योगी भी बनते हैं । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। कई दिन या महिने पहले आपको हमने गोपाल गुरु गोस्वामी जो श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के 500 वर्ष पूर्व परीकर रहे थे वह धरातल पर जगन्नाथपुरी में थे , उनका लिखा हुआ भाष्य है । हरे कृष्णा महामंत्र पर लिखा हुआ उनका भाष्य है , उन्होंने समझाया है कि हम हरे कहते हैं , तब क्या कहते हैं ? यह क्या विचार है ? हरे कहते समय हमारा क्या विचार होना चाहिए ? कृष्णा कहते समय ? इसे पहले समझाएं हैं । उसी भाष्य का हमने थोड़ा प्रेजेंटेशन बनाया है जिसको आप देख रहे थे , मैं आपके साथ स्क्रीन शेयर कर रहा था । यह पूरा नहीं बना है , यह बनाना चालू है इसलिए आपको दिखा रहे हैं ताकि आप भी आपको पसंद आया , नहीं आया , आपके ध्यान मैं मदद कर रहा था , अनुकूल था या प्रतिकूल था आपके ध्यान के लिये , आपके जप मे विघ्न डाल रहा था इसकी प्रतिक्रिया हम सुनना चाहते हैं । अगर आपको कुछ सुधारना चाहिए , हो सकता है , आप सुझाव दे सकते हो कि कैसे इसको टेक्निकली , टेक्नोलॉजिकली या बाकी अन्य प्रकारों से सुधारा जा सकता है । जिनके दिमाग ऐसे काम करते हैं पीपीटी , प्रेजेंटेशन बनाने के लिए या ऐसा प्रस्तुतीकरण करने के लिए तो आप आपके बुद्धि का उपयोग करे या फिर आपका कोई अनुभव है वह अंत में हमे बता सकते हैं । आपको यह दोबारा दिखाएंगे तब आप हमें सुझाव दे सकते हैं । हरे कृष्ण । हरि हरि । आपने की हुई है लेकिन दोबारा आपके सुझाव का स्वागत है । जैसे ही एडिट किया हुआ है । हम हरे अक्षर भी देखते हैं , यह हरि नाम है । 16 शब्दों वाला नाम वाला और 32 अक्षर वाला यह महामंत्र है । यह हम शब्द भी देखते हैं जो एक-एक नाम है ,16 नाम है । एक महामंत्र का हम जप करते हैं तब 16 नामों का उच्चारण होता है । जब हम कहते हैं कि नामाचार्य श्री हरिदास ठाकुर 300000 नामों का जप करते थे , तो उसका ऐसा हिसाब है । एक मंत्र का जप किया तो 16 नामों का जप किया , इस प्रकार 300000 नाम का जप करते थे । चैतन्य महाप्रभु उन्हीं के घर में दीक्षा या भोजन ग्रहण करते थे जो लखपति हुआ करते थे , एक लाख नाम का जप करने वाले भक्तों के घर में ही चैतन्य महाप्रभु भिक्षा लेते थे , उनसे ही प्रसाद स्वीकार करते थे , अन्यो से स्विकार नही करते थे । हरे , माधुर्य का भाषांतर लिखा हुआ है कि , हे राधे अपने माधुर्य से मेरे चित्त को हर लो। जप के समय हमारा संवाद होता है । वैसे भी हम कहते हैं कि जप का समय मतलब आपको भगवान ने संवाद करने का समय दिया है , आप भगवान से मिल सकते हो या आप जब पुकारते हो , हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। आप भगवान को पुकारते हो तब भगवान पधारते हैं और फिर भगवान के साथ आपका वार्तालाप , संवाद शुरू होता है । इस महामंत्र से बोलना है , आप बोल सकते हो और यह संवाद भी है और नाम का उच्चारण करते समय हम हरे बोल सकते हैं । हरे मतलब राधे , हे राधे तुम्हारे प्रियतम के साथ संपन्न होने वाली है प्रिय गोपनीय लीला मुझे सुनाओ । हे राधे ! यह प्रार्थना भी है । हरे से प्रार्थना है ,मतलब राधे से प्रार्थना है हम नाम को पुकार रहे हैं तो नाम के रूप में भगवान है । कलि-काले नाम-रूपे कृष्ण-अवतार। नाम हैते हय सर्व-जगनिस्तार ॥ (चैतन्य चरितामृत आदी लिला 17.22) अनुवाद: इस कलियुग में भगवान् के पवित्र नाम अर्थात् हरे कृष्ण महामन्त्र भगवान् कृष्ण का अवतार है। केवल पवित्र नाम के कीर्तन से मनुष्य भगवान् की प्रत्यक्ष संगति कर सकता है। जो कोई भी ऐसा करता है, उसका निश्चित रूप से उद्धार हो जाता है। नाम के रूप में कृष्ण अवतार लेते हैं या फिर वह अवतार भी तभी लेंगे जब हम नाम लेते है । लोग कहते हैं कि भगवान नहीं आते , क्यों नहीं आते ?द्रोपदी जैसे पुकारते नहीं इसलिए नहीं आते , या गजेंद्र जैसे पुकारते नहीं । गजेंद्र ने , हाथी ने पुकारा कुछ पुष्प भगवान को अर्पित किये तब भगवान चले आए । हमारी पुकार में वह आर्त भाव है ।हरि हरि । यह भाव है । हे प्रभु मैं आपका किनकर हूं इस भवसागर से मुझे उठाइए ।आपके चरण की धूली बनाईये ,आपके चरणों की सेवा दीजिए । यह सारी प्रार्थनाएं है , राम को भी प्रार्थना है , पहले राधा से प्रार्थना की कि आपकी कृष्ण के साथ होने वाली लिला हमको सुनाइए और राम से प्रार्थना कि है , जो रमते हैं रमाते हैं , वह राम और श्रीकृष्ण आपकी लीला राधा के साथ हमको सुनाएं। फिर हे राम आपकी लीला सीता के साथ ( हंसते हुए ) या हे नरसिंह आपकी लीला लक्ष्मी के साथ या फिर आप की लीला प्रल्हाद महाराज के साथ , यह लीला ही है ना ? प्रह्लाद और नरसिंह । नरसिंह भगवान प्रकट हुए प्रह्लाद की रक्षा के लिए । बोलो , नरसिंह देव की जय। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। उनकी जोड़ी है , यहा देखीये (प्रेझेन्टेशन दिखाते हुये) समझेंगे मैं जीव हूं कृष्ण दास कर लो तो आर दुख नाय *कृष्णदास ऐई विश्वास करले तो आर दुःख नाय । राधा कृष्ण बोल बोल बोलो रे सबाय* दुःख समाप्त हुआ हम सुखी होंगे सेवा योग्यम कुरु मुझे सेवा के लिए योग्य बनाओ या फिर जप भी एक सेवा है जब मे श्रवण,कीर्तन, स्मरण भी हैं ...... श्रीप्रह्वाव उ्वच श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम् अर्चनं बन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥ इति पुंसार्पिता विष्णी भक्तिश्चेत्रवलक्षणा । क्रियेत भगवत्यद्धा तन्मन्येऽधीतमुत्तमम् ॥ (श्रीमद भागवद् 7.5.23-24) अनुवाद: *प्रह्लाद महाराज ने कहा : भगवान् विष्णु के दिव्य पवित्र नाम, रूप, साज-सामान तथालीलाओं के विषय में सुनना तथा कीर्तन करना, उनका स्मरण करना, भगवान् के चरणकमलोंकी सेवा करना, घोडशोपचार विधि द्वारा भगवान् की सादर पूजा करना, भगवान् से प्रार्थना करना, उनका दास बनना,भगवान् को सर्वश्रेष्ठ मित्र के रूप में मानना तथा उन्हें अपना सर्वस्व न्योछावर करना ( अर्थात् मनसा, वाचा, कर्मणा उनकी सेवा करना)-शुद्ध भक्ति की ये नौ विधियाँ स्वीकार की गई हैं। जिस किसी ने इन नौ विधियों द्वारा कृष्ण की सेवा में अपना जीवन अर्पित कर दिया है उसे ही सर्वाधिक विद्वान व्यक्ति मानना चाहिए, क्योंकि उसने पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया है।* यह भी सेवा है स्मरण सेवा,कीर्तन सेवा,श्रवण सेवा हैं। इन सेवा के लिए मुझे योग्य बना दो मुझे जप करने के लिए योग्य बना दो। (गुरु महाराज जी अपनी लैपटॉप स्क्रीन पर देखते हुए कहते है देखिये यहां राधा दामोदर जी की आराधना हो रही हैं) राधाश्याम सुंदर की जय.... देखिए ऐसे कई प्रकार की सेवाओ को हम छोड़ कर खाली फोकट घूमते हैं.... *विफले सेविनु कृपण दुर्जन, चपल सुख-लव लागि’रे* अनुवाद:-मैं दिन-रात जागकर सर्दी-गर्मी, आँधी-तूफान, वर्षा में पीड़ित होता रहा। क्षणभर के सुख हेतु मैंने वयर्थ ही दुष्ट तथा कृपण लोगों की सेवा की हम दुर्जनों की सेवा करते रहते हैं और वे दुर्जन हमारे स्वजन भी हो सकते हैं हमारे स्वजन ही दुर्जन हो सकते हैं अधिकतर होते ही है वह कृपण होते हैं एक होता है ब्राह्मण जो उधार होता है और ब्राम्हण के विपरीत है कृपण कंजूस तो हम देखते हैं कि कृपन और दुर्जनों कि हम सेवा कर रहे हैं किंतु यदि हम भगवान और भगवान के भक्तों की सेवा करें या जो घर वाले,पड़ोसी,तथा मित्र हैं इन सभी की आत्मा की सेवा हम करें ये वैसे हमारा कर्तव्य है सारी दुनिया कहती है हां हम हमारे काम कर रहे हम हमारे काम कर रहे हैं वह अपने काम नहीं कर रहे हैं। वह रोटी कपड़ा मकान की व्यवस्था कर रहे हैं यह हमारा काम नहीं है यह तो पशु पक्षियों के समाज में भी होता ही है। आपके जो आपत्य पत्नी और स्वजन है उनकी आत्मा के लिए कुछ करिए इसके साथ उनकी भी सेवा होंगी और आप कृष्ण की भी सेवा करोगे उनको भक्ति का मार्ग दिखाओ निवेदन करो हाथ पैर पकड़ो उनके.... *तर्कोऽप्रतिष्ठः श्रुतयो विभिन्ना नासावृषिर्यस्य मतं न भिन्नम् ।* *धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायां महाजनो येन गतः स पन्थाः ॥* चैतन्य चरितामृत मध्य लिला 17.186) अनुवाद: श्री चैतन्य महाप्रभु ने आगे कहा, "शुष्क तर्क में निर्णय का अभाव होता है। जिस महापुरुष का मत अन्यो से भिन्न नहीं होता, उसे महान् ऋषि नहीं माना जाता। केवल विभिन्न वेदों के अध्ययन से कोई सही मार्ग पर नहीं आ सकता, जिससे धार्मिक सिद्धान्तों को समझा जाता है। धार्मिक सिद्धान्तों का ठोस सत्य शुद्ध स्वरूपसिद्ध व्यक्ति के हृदय में छिपा रहता है।फलस्वरूप, जैसाकि सारे शासखत्र पुष्टि करते हैं, मनुष्य को महाजनों द्वारा बतलाये गयेप्रगतिशील पथ पर ही चलना चाहिए।"* महाजनो येन गतः स पन्थाः महाजन जिस मार्ग पर आगे बढ़े हैं उस मार्ग पर उन्हें ले आओ दुनिया वालों को संसार वालों को देश वालों को नगरवासियों वालों को जितनी आपकी क्षमता है आपका प्रभाव जहां तक पहुंचा हुआ है वहां तक जितना आपका सर्कल है जितना आपका कार्यक्षेत्र है देखो उनको कैसे भगवान की सेवा में लगा सकते हो साथि आप देखिए कि उन्हें कैसे प्रेरित कर सकते हो ताकि वह भी जप,कीर्तन करें ये विश्व हरिनाम उत्सव यह विशेष अवसर उन्हें प्राप्त हुआ है हो सकता है आपके परिवार के लोग ही जप नहीं कर रहे हैं हो सकता है आपका पड़ोसी जप नहीं कर रहा है देख लीजिए। उनकी श्रद्धा और उनका विश्वास यदि जब करने तक आ चुका है तब उनको आप निवेदन कर सकते हो या प्रभुपाद जी के ग्रंथ दे सकते हो पढ़ने के लिए या श्रीमद भगवतम का सेट उन्हें दान दे सकते हो या उन्हें भेज भी सकते हो या कहीं ना कहीं से शुरुआत हो गई है तो उन्हें प्रसाद खिलाओ कई लोगों की आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत प्रसाद ग्रहण करने से होती है कई लोगों के आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत ग्रंथ पढ़ने से होती है साथी उसके बाद वह कई सेवा भी कर सकते हैं एक होता हैं सुकृति और एक होता हैं अज्ञात सुकृति इन सब चीजों से उनकी अज्ञात सुकृति बढ़ती है। श्रील प्रभुपाद जी जब न्यूयॉर्क में पहुंचे थे शुरुआत में जो लोग मिलने आते थे वह हिप्पी थे वह अलग-अलग प्रकार की भेंट लेकर आते हैं किसी ने एक बार टॉयलेट पेपर लेकर आया स्वामी जी को टॉयलेट पेपर दे दिया उन्होंने सेवा की स्वामी जी की ऐसे ही कोई कुछ लेकर आता कोई कुछ लेकर आता था। प्रभुपाद जी के एक शिष्य थे जयानंद नाम के वो रथयात्रा के समय जो लोग रथ के आजू-बाजू खड़े रहते थे यह क्या चल रहा है यह क्या चल रहा है इसे देखते हुए जयानंद प्रभु बहुत ही होशियार थे उनसे सेवा करवाते थे वह अन्य लोगों से कहते थे यह उठाओ उसको यहां लाओ यह करो वह करो ऐसे उन्हें वो बडी होशियारी से सेवा में लगा ते थे लोगों को यह पता तो नहीं चलता था कि वह क्या कर रहे है लेकिन वह क्या कर रहे हैं जगन्नाथ जी की भगवान की सेवा कर रहे हैं वह यह जानबूझकर तो नहीं कर रहा है लेकिन उन्होंने क्या किया सेवा की तो हमें हमेशा ऐसे युक्ति पूर्वक लोगों को सेवा में जोड़ना चाहिए। हम हैं से भगवान के लिए उनसे ऐसी कुछ सेवाएं करवा सकते हैं इनमें से कुछ घरवाले कुछ पड़ोसी भी हो सकते हैं एक बार एक व्यक्ति के पिताजी मरण अवस्था में थे तो वह ऑस्ट्रेलिया में चरणामृत लेकर गए और उन्होंने बड़ी होशियारी से चरणामृत को किसी अन्य चीज में मिलाकर उन्हें पिला दिया क्योंकि यदि उनको पूरा चरणामृत का महिमा बताते हैं तो शायद वह पीते नहीं पर उन्होंने उन्हें युक्ति पूर्वक चरणामृत पिलाया इसे ही अज्ञात सुकृति कहते हैं भक्ति में सेवा में आने से पहले कई लोग ऐसी अज्ञात सुकृति या सेवा कर देते हैं साथी इस अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावना मृत संघ में ऐसी कई सारे सेवाएं होती रहती है। अगर आप किसी को बोलोगे कि आप जप करो तो शायद वो नही करेंगा पर अन्य कई मार्गो से आप उनसे हरिनाम करवा सकते हैं उनसे कुछ डोनेशन ले सकते हैं पर अर्चविग्रह सेवा नही,और साथ ही आप जो अन्नमृत फाउंडेशन या फूड फॉर लाइफ़ प्रोग्राम चलाते हो लोग उसके लिए कुछ सेवा या दान अर्पण कर सकते हैं यह सब बात तो ठीक है ये पीपीटी जो दिखाई गई आप सब को यह ध्यान पूर्वक जप कैसे करे इस के लिए दिखाई गई थी। शुरुआत में इंग्लिश में था पर बाद में हिंदी में भी आपको दिखाया और सुनाया है क्या आपने इसे पसंद किया क्या और इसमें कुछ सुधार हो सकते हैं इस संदर्भ में आप अपने विचार लिख सकते हो। और साथ ही विश्व हरिनाम उत्सव की तैयारियां आपकी कहां तक पहुंची है उसके भी विचार आप व्यक्त कर सकते हैं आप के मंदिर की तैयारियां कहां तक पहुंची है जैसे भक्ति वृक्ष है इस्कॉन यूथ फोरम या आप जैसी टीम से जुड़े हुए हो उनकी कैसी तैयारियां चल रही है कल आपको कुछ विशेष यश मिला (महाराज जी तुलसी मंजिरी माताजी को संबोधित करते हुए कहा) विश्व हरिनाम उत्सव के बारे में सुन रही हो ना। आप सभी ऐसे ही लिखते रहिए हम उसकी टिप्पणियां निकालेंगे पदयात्री भक्तों को संबोधित करते हुए महाराज जी कहे कुछ आप कुछ करोगे विश्व हरिनाम उत्सव के लिए और साथ ही कहां की आप जो पुराने गांवो में गए थे उन लोगों से कुछ संपर्क करिए पदयात्री भक्तों को संबोधित करते हुए महाराज जी के हैं कि कुछ यादी तैयार की हुई है ना हमारे पदयात्री भक्त 10,20 हजार गांव में जाकर आए हुए हैं वह सब का रिकॉर्ड रखते हैं जो हरे कृष्ण महामंत्र का स्टीकर है वह सभी लोगों को दिखाकर उनसे जप करवा दीजिए जो जप करते हैं उनका भी आप कांटेक्ट नंबर रख सकते हो ताकि आगे भविष्य में आप उनसे संपर्क में रहोगे अभी 7 दिन या 8 दिन ही बाकी हैं। जो सभी इस्कॉन मंदिरों के अध्यक्ष हैं उन्हें आई.सी. सी. के अंतर्गत आते हैं उनसे हमारी कॉन्फ्रेंस हुई ऑनलाइन उस कॉन्फ्रेंस में 100 से अधिक इस्कॉन मंदिरों के अध्यक्ष उपस्थित थे उन सभी के समक्ष विश्व हरिनाम उत्सव की सारी योजनाएं प्रस्तुत की है और वह सभी इस प्रस्तुति को देखकर बहुत ही उत्साहित हुए। वह सभी अपनी अपनी तैयारियों में लग चुके हैं यह विश्व हरिनाम उत्सव सारे भारत देश में जहां जहां भी इस्कॉन के सेंटर या मंदिर है वहां वहां यह उत्सव मनाया जाएगा बहुत बड़ी मात्रा में यह उत्सव मनाया जाएगा और जहां तक ये लोगों को भाग्यवान बनाने की योजना है आप कैसे लोगो को भाग्यवान बनावोगे उनसे महामंत्र बुलवाव उसका रेकॉर्डिंग करो तो कल हमारे चर्चा में हमने तो कहा था कि भारत मे 100000 वीडियो बनने चाहिए ऐसा हमने प्रस्ताव रखा था कल के चर्चा में लेकिन हुआ क्या 70 और 40 कितने होते हैं 110 110000 वीडियो बनाने का संकल्प सभी मंदिरों ने लिया अपनी वीडियो बनेंगे 110000 उस चर्चा में एक मंदिर ऐसा भी निकला कि इस्कॉन पंजाबी बाग उन्होंने संकल्प लिया कि हम 11,000 वीडियो बनाएंगे ओ साथी किसी का भी 500 से कम का संकल्प नहीं था सभी का संकल्प 500 था 1000 था 2500 था 5000 था पंजाबी बाग मंदिर ने तो रिकॉर्ड ही तोड़ दिया 11,000 वीडियो बनाने का संकल्प लिया साथ ही आप सभी भी इस अभियान के अंग हो उसमें वह वीडियो बनाना तो एक ही कार्यक्रम हुआ इसके साथ ही कई कार्यक्रम है जपा थॉन भी हैं, कीर्तन मेला भी हैं यथा संभव नगर संकीर्तन भी करने हैं बगीचों में जाकर लोगों से जप भी करवाना है ऐसे कई सारी हमारी योजनाएं बन चुकी है। माधवी गौरी माताजी इसे लोकसंघ में प्रकाशित करती रहती है उन सभी संदेशों को पढ़ते चाहिए और साक्षी हमारी वेबसाइट है कीर्तन मिनिस्ट्री डॉट कॉम वहां भी आपको सूचनाएं प्राप्त हो सकती हैं ठीक है अगर आपको किसी को और कुछ लिखना है विश्व हरिनाम संकीर्तन के विषय में आप लिख सकते हैं गोपाल गुरु गोस्वामी जी का जो भाष्य है उसकी जब पीपीटी तैयार हो जाएगी तो हम आपको दिखाएंगे वो पीपीटी में हरे कृष्ण महामंत्र के ऊपर गोपाल गुरु गोस्वामी जी का भाष्य हैं और फिर आप उस पीपीटी को देखते-देखते थी जप या ध्यान कर सकते हैं यह आपको काफी मददगार साबित होंगी जप पर ध्यान लगाने के लिए तो ठीक है हम यहां रुकते है। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल

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