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जप चर्चा, पंढरपुर धाम से, श्रीमान धर्मराज प्रभु जी व्दारा, 8 फरवरी 2022 हरे कृष्ण! गंगाजी और शांतनु जी का विवाह हुआ गंगा जी ने शर्त रखी की मै विवाह करुंगी लेकिन यह मेरी शर्त है की जैसे ही मेरे पुत्र होंगे तो मैं उनका जो कुछ भी करूंगी आप मुझे कुछ नही पूछेंगे, जैसे ही आप मुझ से कुछ पूछेंगे या मुझे रोकेंगे उसी क्षण मै चली जाऊंगी,रुकूँगी नहीं। शांतनु जी इतने मोहित हो गए थे गंगा जी के सौंदर्य पर उन्होंने कहा कि ठीक है! जो तुम कहोगी,उसे मै स्वीकार करता हूंँ। सबसे पहले पुत्र का जन्म हुआ तो गंगा जी ने गंगा जी में ही,अपने ही जल में बहा दिया। शांतनु कुछ बोल नहीं पाए क्योंकि शर्त जो रखी थीं। इसी तरह पहला,दूसरा,तीसरा,सात के सातों पुत्र गंगा जी ने पानी में बहा दिए शांतनु ने कुछ नहीं कहा लेकिन जो आठवां पुत्र था उस वक्त शांतनु ने उन्हें कहा रुको! यह क्या कर रही हो तुम? एक मां होकर अपने पुत्रों को इस तरह नदी में बहा देती हो?उन्होंने कहा कि ठीक हैं!, और शर्त के अनुसार गंगा जी चली गई और उस पुत्र को वहा रख दिया लेकिन बाद में कुछ परिस्थितियां ऐसी हो गई, गंगा जी तो चली गई थीं। शांतनु जी ने भ्रमण करते हुए वहां पर सत्यवती को देखा और सत्यवती को देखते ही उन्हें उस से प्रेम हो गया और उसने सोचा कि अब मैं विवाह इसी से करूंगा लेकिन उनके पिताजी ने शर्त यह रखी कि आपका विवाह तो होगा लेकिन मेरे पुत्री का ही पुत्र राजा बनेगा ऐसा सुनते ही शांतनु वापस आ गए और उन्होंने यह सोचा कि यह तो संभव नहीं है यह कैसे हो सकता है?क्योंकि एक तो मेरा पुत्र बड़ा है और नियम के अनुसार वही राजा बनेगा।आप ऐसे कैसे कह सकते हैं?और वे वापस आ गए। उन्होंने किसी को अपनी बात नहीं बताई लेकिन वह बहुत दुखी रहने लगे और जो गंगा जी का पुत्र था जिसे गंगा लेकर नहीं गयी थी, पानी में नहीं फेंका था,उसका नाम देवव्रत था। देवव्रत ने सोचा कि मेरे पिता जी आजकल गुमसुम क्यों रह रहे हैं? कुछ बात नहीं कर रहे क्यों क्या कारण है? ऐसा सोच रहे थे जब उन्हें पता चला कि उनके पिता की इच्छा सत्यवती से विवाह करने की हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें विवाह करना है तो मेरा जो सत्यवती से पुत्र होगा वही राजा बनेगा,ऐसी शर्त रखी हैं। देवव्रत ने कहा कोई बात नहीं है आप बता दीजिए कि उनका ही पुत्र राजा बनेगा। उन्होंने कहा कि आप ऐसा आज कह रहे हो लेकिन बाद में क्या होगा किसे पता है? जैसे ही इस बात को देवव्रत ने कहा तो उन्होंने कहा कि ठीक है!मैं विवाह नहीं करूंगा, मैं आजीवन ब्रह्मचारी रहूंगा। जैसे ही उनके मुख से वह शब्द निकले तो सारे देवता संतुष्ट हो गए और ऊपर से पुष्पवृष्टि करने लगे, नगाड़े बजने लगे, शंख बजने लगे और क्या उच्चारण करने लगे।भीष्म..!भीष्म..!ऐसा कहने लगे। भीष्म मतलब भीषण प्रतिज्ञा, साधारण प्रतिज्ञा नहीं है यह भीष्म प्रतिज्ञा है भीषण प्रतिज्ञा हैं। इसलिए उन्होंने भीष्म कहाऔर कितनी विशेष बात है एक तो ब्रह्मचारी के रूप में और एक तो द्वादश महाजनों में से एक है और राजकुल में रह रहे हैं और वहां से भी विवाह नहीं करेंगे ऐसी शपथ भी ली है और आगे ऐसा भी हुआ कि सत्यवती से विवाह हुवा शांतनु का और उनसे जो पुत्र हुए विचित्र वीर्य और चित्रांकन उनके भी विवाह के समय उन्होंने स्वयं जाकर अंबा, अंबिका,अंबालिका इन तीनों राजकुमारियों का हरण करके उन्हें लेकर आए थे और इन दोनों का विवाह करवाया और अंबालिका ने कहा आप मुझे लेकर आए हो आपने मुझे स्पर्श किया हैं। पहले किसी स्त्री और पुरुष का स्पर्श करना भी विवाह जैसे होता था।अगर स्त्री का किसी पुरुष से स्पर्श होता था तो वह किसी और दुसरे पुरुष से विवाह नहीं कर सकती थी उन्होंने कहा कि अब मैं क्या करूं? भीष्म ने कहा कि मैंने तो ब्रह्मचारी व्रत धारण किया हैं।अंबालिका ने कहा कि आप मुझे फिर कैसे लेकर आए?आप ने मुझे स्पर्श क्यों किया? देखिए आप समझ सकते हैं कि जो भीष्म है वह भीष्म पितामह हैं वह इतने सॉलिड ब्रह्मचारी थे की वह राजकन्याओं को लेकर आने के बावजूद भी वह बिल्कुल उन पर आसक्त नहीं थे वह इतने अविचलित थे और भगवान के प्रति उनकी इतनी अनन्य भक्ति थी वैसे देखा जाए तो उन्होंने अपनी भक्ति का प्रदर्शन कभी बाह्य रूप से सभी के सामने नहीं दर्शाया क्योंकि वह कौरवों के साथ रहते थें, धृतराष्ट्र वगैरा उनके साथ रहते थे फिर भी उन्होंने अपनी भक्ति को कभी कम नहीं किया।वे सदैव अनन्य भक्ति मे रत रहें। उनका जीवन चरित्र बहुत विशेष हैं,केवल जीवन ही नहीं है, केवल आर्ट ऑफ लिविंग नहीं है बल्कि आर्ट आफ डाईंग भी है कैसे जीना सिखना है उसके साथ कैसे मारना है यह भी सीखना हैं। मरना सीखना है,कैसे मारना? मतलब खुद खुशी, आत्महत्या करना यह नही सिखाते कैसे मरना है भगवान का स्मरण करते मरना चाहिए। मराठी में कहावत है "मरावे परी कीर्ति रुपें उरावें" मतलब मृत्यु के बाद भी वह व्यक्ति वहां पर नहीं रहता लेकिन उसकी कीर्ति इतनी फैल जाती है कि आप समझ सकते हैं कि यह व्यक्ति अभी भी जीवित हैं, उसके कीर्ति के माध्यम से। भीष्म देव के बारे में हमने सुना है कि वशिष्ठ मुनि ने कहा था कि इन को इच्छा मृत्यु प्राप्त होगी तो इच्छा मृत्यु मतलब वे कभी भी मर सकते हैं जब तक उनकी इच्छा ना मरने की हो,वैसा भी कर सकते थे लेकिन उन्होंने अपने जीवन में यह आदर्श स्थापित किया की मृत्यु के समय ऐसे घड़ी का इंतजार कर रहे थे एक तो बाह्यरूप से उत्तरायण की प्रतीक्षा कर रहे थें। उत्तरायण मतलब सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करता है तब मकर संक्रांति शुरू होती है और वहां से उत्तरायण का प्रारंभ होता हैं। वे उत्तरायण की प्रतीक्षा कर रहे थें। वह बाणों की शय्या पर लेटे थे ऐसा नहीं था कि जैसे हम अपने घर में शय्या के ऊपर आराम से लेटे हैं। ऐसे आराम से नहीं वहा कोई सुखासन नहीं था कि ऊपर से बढ़िया स्पंज लगाया ऐसा नही था जैसे धारावाहिक में दिखाते है उनको पहले क्या किया था फाइबर से कुछ बनाकर नीचे से लगा लिया था और अंदर से स्पंज और वे आराम से लेटे थे शायद उनको नींद भी आई होंगी उस शय्या पर लेकिन पितामह भीष्म ऐसे नहीं थे उन को वेदनाए, तकलीफ हो रही थी फिर भी उन्होंने उसे सहते हुए उस क्षण की प्रतीक्षा की, जब कृष्ण उनके सामने आएंगे। उनका दर्शन करते हुए, उनका गुणगान करते हुए ,उनकी स्तुति करते हुए, उन्हें इस देह का त्याग करना था। आर्ट ऑफ डायिंग इसी तरहा का उदाहरण श्रील प्रभुपाद के जीवन मे भी दिखता है। श्रील प्रभुपाद जादा समय भी रह सकते थें, लेकिन उन्होंने देखा की अब उचित समय आ गया है वह निरंतर नियमित स्मरण भगवान का कर रहे थे लेकिन वृंदावन में आए थे और कृष्ण बलराम का निरंतर स्मरण करते हुए, और साथ ही साथ भागवान के भागवतम् का भाषांतरण भी जारी था भागवतम् का भाषांतरण या उच्चारण या पठन मतलब भगवान का दर्शन, भगवान की स्तुति वह पूरा भगवान के भक्तों द्वारा भगवान की स्तुतियों से भरा हुआ हैं। ऐसे करते-करते ही श्रील प्रभुपाद ने अपने देह को विराम दिया। वैसे तो वृंदावन आध्यात्मिक जगत है साधारण स्थान नही है लेकिन बाह्यरूप से भौतिक जगत ,उन्होंने अपनी सांसो को वही रोका और वही से भगवान की नित्य लीला में उन्होंने प्रवेश किया। हम समझ सकते है की श्रील प्रभुपाद ने हमें शिक्षा प्रदान की कि हमें ना केवल जब हम जीवित हैं तभी भगवान का नाम स्मरण करना चाहिए बल्कि मृत्यु के समय भी हमें भगवान का नाम स्मरण करना चाहिए। ” अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम् | यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः ||” (श्रीमद्भगवद्गीता 8.5) अनुवाद: - और जीवन के अन्त में जो केवल मेरा स्मरण करते हुए शरीर का त्याग करता है, वह तुरन्त मेरे स्वभाव को प्राप्त करता है | इसमें रंचमात्र भी सन्देह नहीं है | क्योंकि भगवान जानते हैं कि भौतिक जगत के सभी लोग क्या करते है बडे संशयी हैं।हर पल संशय मे रहते है।भगवान कहते है की संशय मत करो ऐसे बहुत सारे उदाहरण है, जिन्होंने मृत्यु के समय मेरा स्मरण करते हुए इस शरीर को त्याग दिया है और मेरे पास वापस आ गए। भीष्म पितामह तो इसका विशेष उदाहरण है और उनके ब्रह्मचारी जीवन मे भी देखा जाता है की एक तो अंबा, अंबिका,अंबालिका का और बाद मे जब उनकी सौतेली माँ सत्यवती उनकी सेवा इतने प्रेम भाव से करते थे लेकिन एक बार उनके सौतेले भ्राता विचित्र वीर्य वे दूर खिडकी से देख रहे थे की भीष्म-देवव्रत ने जो ब्रम्हचर्य का व्रत लिया है तो देख तो लू माँ कि कैसे सेवा करता है तो उसने दूर से खिड़की से देखा कि उन्होंने सत्यवती को कभी स्पर्श नही किया तो समझिये की वे कोई साधारण मनुष्य नही है। इतने कढ़ाई से ब्रम्हचर्य का पालन करते है वह भी एक राजमहल मे रहते हुए, वे एक योध्दा भी है ऐसे नही के वह हसकर तलवार चलाते थें, उन मे क्रोध हैं। ऐसे परिस्थिति मे भी वे ब्रम्हचर्य का पालन करते है उनका नाम पितामह भिष्म जो भिषम प्रतिज्ञा करते वही पितामह भिष्म आश्यर्यचकित भी है एक महाजन भी है, महान भक्त भी है भगवान का स्मरण चिंतन करते है फिर भी ये कौरवों के पक्ष मे क्यों है? वह पांडवों के पक्ष मे भी रह सकते थे और साथ-साथ उन्होंने युध्द किया पांडवों पर आक्रमण भी किया ऐसा नही की बाह्य रूप से युद्ध मे थे बल्कि उन्होंने आक्रमण भी किया यहा तक की उन्होंने कृष्ण पर भी आक्रमण किया कृष्ण पर बाणों की वर्षा की कृष्ण का शरिर लहुलुहान हो गया, शरीर से खुन बह रहा था। आखिर उन्होंने ऐसा क्यों किया? और इतना होने के बाद युध्द के पश्चात कृष्ण चाहते थे की भिष्म देव से सांत्वना मिले युधिष्ठिर महाराज को, क्योकि युधिष्ठिर बड़े दुखी थे वे सोच रहे थे कि इतना कुछ हो जाने पर इतना युद्ध होने पर मैं राजा बनूंगा इसके बदले मैंने इतने हजारों लाखों लोगों का क्या किया है? उनका कत्ल किया है उनकी हत्या की है। खून की नदियां बह रही है बहुत सारे सैनिकों के हाथ कटे हुए सिर कटे हुए कान के टुकड़े एक इदर गिरा एक उधर गिरा हैं। यह सब देख कर इतने दुखी हो गए थे युधिष्ठिर महाराज उन्होंने सोचा कि मुझे भी कुछ प्रायश्चित करना होगा। कृष्ण ने उन्हें समझाया कि ऐसी बात नहीं है फिर भी वह मान नहीं रहे थें। कृष्ण की इच्छा थी कि भीष्मदेव उन्हें उपदेश दे वे ही उन्हें समझाएं, सांत्वना दे। कृष्ण ने ऐसा आखिर क्यों किया? भीष्मदेव ने हमला किया है कृष्ण पर इतना बड़ा हमला किया फिर भी वे उनको बोल रहे हैं सांत्वना देने के लिए ऐसा क्यों कर रहे हैं? इस का बहुत विशेष कारण हैं क्योंकि हमें समझना चाहिए भीष्म देव जो है एक तो वे द्वादश महाजनों में से एक है और उनकी विशेषता यह है कि अन्य महाजनों की तुलना मे अन्य महाजन भक्ति करते हैं हुए दिखते है।लेकिन पितामह भीष्म भक्ति करते हुए दिखाई नहीं देते और वह साथ ही साथ भगवान और भक्तों के साथ भी युद्ध करते है, यह तो अभक्तों का लक्षण हो गया। यह तो अभक्तो का लक्षण है, अभक्त क्या करते हैं? भगवान से लड़ते हैं और भक्तों से लड़ते हैं हर समय जैसे कौरव कर रहे थे हर समय ऐसा लगता है कि यह कैसे भक्त है? गोपनीय बात यह है कि जिस प्रकार सभी भक्तों का भगवान से अलग-अलग प्रकार से रस के व्दारा भगवान से आदान-प्रदान होता है वैसे हर रस मे होता हैं। दास्य, शांत, सख्य, वात्सल्य, माधुर्य यह सभी रस है तो जो भीष्म पितामह है वे वीर रस के द्वारा उनका आदान-प्रदान हो रहा हैं। वीर रस का आस्वादन ऐसा नहीं की केवल भक्त ही कर सकता है भगवान भी उसे रिस्पांस देते हैं। “ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् | मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ||” ( श्रीमद्भगवद्गीता 4.11) अनुवाद: -जिस भाव से सारे लोग मेरी शरण ग्रहण करते हैं, उसी के अनुरूप मैं उन्हें फल देता हूँ | हे पार्थ! प्रत्येक व्यक्ति सभी प्रकार से मेरे पथ का अनुगमन करता है | सामने वाला भक्त अगर वीर रस के व्दारा भगवान से आदान-प्रदान करना चाहता है तो भगवान भी वैसा ही करेंगे उसके साथ।अगर वीर रस का आस्वादन भीष्म देव को करना है तो अगर वे पांडवों के पक्ष मे रहते तो वीर रस का कैसे आस्वादन करते भगवान के साथ कैसे युद्ध करते।युद्ध करना है तो प्रतिपक्ष में नही रहना पड़ेगा सामने वाला जो विरोधी पक्ष है वहां रहना होगा तभी तो संभव है और फिर अगर युद्ध करना है उन्होंने कैसे किया उन्होंने अलग तरीका अपनाया है भीष्म देव को जब पता लगा की कृष्ण युद्ध में है लेकिन युद्ध नहीं करने वाले, युद्ध में है लेकिन कोई अस्त्र शस्त्र नहीं उठाने वाले है, उनकी जो नारायणी सेना है वह युद्ध करेगी लेकिन वह तो दुर्योधन के पास है अगर कृष्ण को युद्ध के लिए प्रेरित करना है तो क्या करना होगा? मुझे अर्जुन को पहले कुछ करना होगा अर्जुन को तो कृष्ण जरूर बचाएंगे और अपनी प्रतिज्ञा जरूर तोड़ेंगे और मैं देखना चाहता हूंँ की कृष्ण अपनी प्रतिज्ञा जरूर तोड़ेंगे और मै चाहता हूँ की कृष्ण अपनी प्रतिज्ञा तोड दे फिर भीष्म देव ने ऐसी युक्ति की, वे अर्जुन पर इतने बाण छोड़ने लगे कि कृष्ण को लगा कि अर्जुन मर ही जायेगा और मैं यहां हूंँ और मेरे होते हुए अगर मेरा भक्त मर जाएगा तो मैं कैसे सह सकता हूंँ तो कृष्ण ने क्या किया अंदर से तो भगवान समझ रहे थे कि भीष्म देव आदान-प्रदान करना चाहते भगवान भी बड़े लालायीत थें, इस रस का आदान-प्रदान करने मे रसास्वादन करने के लिए फिर उन्होंने क्या किया उन्होंने भीष्म देव को रोकने के लिए क्या किया? वहां एक रथ का पहिया था जिस रथ में थे उस रथ का नहीं निकाला पहिया आप लोग सोचो गे तो गड़बड़ हो जाएगा। उसका नहीं निकाला था एक रथ गिर गया था उसका पहिया था। भगवान का नाम क्या रखा "रथांगपानी" बाद में भीष्म देव नाम देते हैं। भिष्मदेव जब स्तुति करते हैं भगवान की तब, वे कहते है आपने क्या किया था मुझे स्मरण हो रहा है वह समय जब आपने रथ का पहिया उठाया और मेरे पास आ रहे थें। कृष्ण कह रहे थे की,भीष्म अर्जुन को मार रहा है यह हो ही नहीं सकता मेरे होते हुए उन्होंने तुरंत उस रथ का पहिया उठाया और भागने लगे किन की और भीष्म की ओर मैंने मायापुर में एक बार श्रीमान जगन्निवास प्रभु का प्रवचन सुना था कृष्ण ने रथ का पहिया उठाया और भगवान कहने लगे भीष्म मैं तुम्हें नहीं छोडूंगा..!मै तुम्हे जान से मार डालूंगा..! ऐसे जगन्निवास प्रभु जी हमें बता रहे थे कृष्ण को रोकने के लिए बीच में इतने बान मारे इतने बान मारे कि पूरे शरीर से खून निकल रहा है और फिर भी जब देखा उन्होंने की कृष्ण ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी है, खुन निकल रहा है और रथ का पहिया उठाकर भगवान मेरी ओर आ रहे हैं बस यही तो मैं चाहता था। वैसे देखा जाए तो भगवान के शरीर में खून नहीं होता है धमनिया और नसे नहीं होती है फिर भी भगवान लीला कर रहे हैं,यौध्दा के रुप मे,खून बह रहा है और फिर भीष्म देव बानो के प्रहार कर रहे हैं मानों वे कैसे कर रहे है भिष्म देव को लग रहा है कि वह भगवान को फूलों की माला दे रहे हैं। उनका वह तरीका है उनके ऊपर फूलों की वर्षा कर रहे हैं और जब भगवान के शरीर से खून निकल रहा है तो भिष्म इतना प्रसन्न हो रहे हैं। क्या सुंदर लग रहे है भगवान, क्या सुंदरता है भगवान की इतना खून बह रहा है भगवान के शरीर से और भगवान क्या कर रहे हैं हाथ में रथ का पहिया लेकर आ रहे हैं और आते आते क्या हुआ है उन्होंने जो उत्तरिय लिया है, वह आतें- आतें उत्तरिय नीचे गिर गया, उनको पता भी नहीं कि उत्तरिय नीचे गिर गया इतने भाव में आवेश में आए भगवान और फिर उनको लगा की इसी दृश्य का इंतजार या प्रतीक्षा कर रहा था बस मेरा जीवन सफल हो गया है भगवान ने मेरे लिए अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी। कुछ लोग कहते हैं कैसे भगवान है ये अपनी प्रतिज्ञा तोड़ते हैं अपनी तो फिर हमारी जो प्रतिज्ञा है उसका क्या होगा? भगवान जानते हैं इस बात को वे अर्जुन से कहते हैं अर्जुन तुम घोषणा करो!अर्जुन ने कहा क्यों, क्यों? मैं क्यों कहूं आपकी बात सुनेंगे मेरी क्यों सुनेंगे? भगवान कहते हैं नहीं अर्जुन मैं प्रतिज्ञा करता हूं तो लोग कहते हैं कि यह बदल सकता है गड़बड़ कर सकता है अपने भक्तों के लिए यह बदल सकता हैं भगवान भक्तवत्सल हैं। अपने भक्तों के लिए प्रतिज्ञा तोड़ सकते हैं। भगवान क्या है भक्तवत्सल। भगवान कहते हैं “क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्र्वच्छान्तिं निगच्छति | कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति ||” (श्रीमद्भगवद्गिता9.31) अनुवाद: -वह तुरन्त धर्मात्मा बन जाता है और स्थायी शान्ति को प्राप्त होता है | हे कुन्तीपुत्र! निडर होकर घोषणा कर दो कि मेरे भक्त का कभी विनाश नहीं होता है | मेरे भक्तों का कभी नाश नहीं होता चाहे मैं मेरे भक्तों के लिए अपनी प्रतिज्ञा तोड़ सकता हूं लेकिन मेरे भक्तों कि मैं रक्षा करता हूंँ। इसीलिए भिष्म देव बड़े प्रसन्न हो गए कि मेरे लिए भगवान ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ी और भगवान का जो सुंदर रूप था पार्थसारथी रुप। भिष्म देव भगवान को पार्थसारथी रूप में देखना चाहते थें। उस रूप में उनका दर्शन करना चाहते थे और इसलिए वे प्रसन्न हो गए। हरे कृष्ण! समय हो गया है यहीं पर विराम देंगे अगली चर्चा बाद में करेंगे जैसा श्रीमान पद्ममाली प्रभु जी बताएंगे। पद्ममाली प्रभु का भी धन्यवाद जो उन्होंने मुझे अवसर प्रदान किया और विशेष रूप से गुरु महाराज जी का विशेष धन्यवाद देना चाहता हूंँ उन्हें कितनी बार करोड़ों बार धन्यवाद दूंगा तो भी कमी पढ़ेंगे क्योंकी पूरे जीवन भर का मेरे लिए वही सब कुछ है उनकी कृपा से मैं मेरा भक्तिमय जीवन बिता रहा हूंँ और भगवत धाम में भी जाऊंगा तो उन्हीं की कृपा से उनके चरणों में दंडवत प्रणाम अर्पित करता हूंँ और फिर भक्तों का भी बहुत-बहुत धन्यवाद आपने गंभीरता से सुना और कुछ त्रुटि हो गई होंगी तो आप जरूर क्षमा करेंगे ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास हैं। हरे कृष्ण!

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