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जप चर्चा, पंढरपुर धाम से, 7 फरवरी 2022 *ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया।* *चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरुवे नम : ।।* आप सभी की प्रार्थनाओं के लिए धन्यवाद आप सभी की प्रार्थनाओं का ही यह फल हैं कि मैं लगभग ठीक हो चुका हूं। आप सभी का धन्यवाद। और एक और कारण से मैं आपका धन्यवाद करना चाहता हूं कि आप सब जुड़े रहे। मुझे यह चिंता थी कि मेरी अनुपस्थिति के कारण हो सकता हैं कि आप सब तितर-बितर हो जाएगे, आप सब पथभ्रष्ट हो जाएगे, मुझे लग रहा था कि आप लोग इस जप चर्चा को ज्वाइन नहीं करोगे या संख्या में कमी हो सकती हैं, परंतु ऐसा तो बिल्कुल नहीं हुआ हैं। संख्या घटने की बजाय संख्या बढ़ गई हैं। मैं इस बात से प्रसन्न हूं कि आपकी हरि नाम में श्रद्धा,रुचि या आसक्ति बढ़ चुकी होगी,इसी का ही तो यह परिणाम हैं कि आप हरि नाम को नहीं छोड़ रहे हो या इस जप चर्चा को नहीं छोड़ रहे हो।लगे रहि। भगवान ने स्वयं को इस हरि नाम में प्रकट किया हैं और जो गोडिय वैष्णव परंपरा से जुड़ रहे हैं, उनको यह M 17.133 नाम चिन्तामणिः कृष्णश्चैतन्य - रस - विग्रहः । पूर्णः शुद्धो नित्य - मुक्तोऽभिन्नत्वान्नाम - नामिनोः ।। 133 ।। अनुवाद " कृष्ण का पवित्र नाम दिव्य रूप से आनन्दमय है । यह सभी प्रकार के आध्यात्मिक वर देने वाला है , क्योंकि यह समस्त आनन्द के आगार , स्वयं कृष्ण है । कृष्ण का नाम पूर्ण है और यह सभी दिव्य रसों का स्वरूप है । यह किसी भी स्थिति में भौतिक नाम नहीं है और यह स्वयं कृष्ण से किसी तरह कम शक्तिशाली नहीं है । चूँकि कृष्ण का नाम भौतिक गुणों से कलुषित नहीं होता , अतएव इसका माया में लिप्त होने का प्रश्न ही नहीं उठता । कृष्ण का नाम सदैव मुक्त तथा आध्यात्मिक है , यह कभी भी भौतिक प्रकृति के नियमों द्वारा बद्ध नहीं होता । ऐसा इसीलिए है , क्योंकि कृष्ण नाम तथा स्वयं कृष्ण अभिन्न हैं । यह नाम प्राप्त हो रहा हैं। आप सभी को यह नाम प्राप्त हो चुका हैं। हरि हरि। इस हरि नाम के साथ जो कि स्वयं हरि ही हैं, अपना संबंध स्थापित करते जाइए और अधिकाधिक अनुभव कीजिए कि हरि नाम ही स्वयं हरि हैं, जिन्होंने हमें यह हरि नाम दिया उन चैतन्य महाप्रभु की जय।लेकिन चैतन्य महाप्रभु को भी हमें देने वाले अद्वैत आचार्य प्रभु की जय। चैतन्य महाप्रभु को देने वाले अद्वैत आचार्य रहे हैं। सीतापति अद्वेता झारे गोसाई तब कृपा बल्ले पाए चेतन( वैष्णव भजन) अद्वैत आचार्य का एक नाम सीतापति भी हैं, क्योंकि उनकी भार्या का नाम सीता ठकुरानी हैं, इसलिए उन्हें सीतापति भी कहा जाता हैं। हमें चैतन्य महाप्रभु को प्रदान करने वाले ऐसे अद्वैत आचार्य प्रभु का आज आविर्भाव दिवस हैं। संसार ऐसी रहस्यमई बातें नहीं जानता हैं। इस रहस्य का उद्घाटन करने वाला भी हमारा अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावना भावित संग ही रहा या फिर हमारी गोडिय वैष्णव परंपरा यह कर रही हैं। अद्वैत आचार्य स्वयं भी भगवान हैं, इसीलिए उनका नाम हैं- अद्वैत, अर्थात दो नहीं हैं, एक ही हैं या ऐसा कहा जा सकता हैं कि श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु या अद्वैत आचार्य प्रभु यह दो अलग अलग नहीं हैं, एक ही हैं। तो इसलिए अद्वैत आचार्य भी भगवान हैं या भगवान के अवतार हैं। वह भगवान के अवतारों का एक प्रकार हैं। उनको पुरुषाअवतार कहते हैं। और यह तीन विष्णु हैं। जो पुरुष अवतार हैं। उनमें एक हैं, महाविष्णु जो सभी ब्रह्मांडो के स्त्रोत हैं। उन्हें अनंत कोटी ब्रह्मांड नायक कहते हैं। वैसे अद्वैत आचार्य महा विष्णु हैं।तो यही महाविष्णु आज के दिन अद्वैत आचार्य के रूप में प्रकट हुए। तो यह आज से 500 वर्ष पूर्व चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य के पहले प्रकट हुए। अगर अद्वैत आचार्य प्रकट नहीं होते तो चैतन्य महाप्रभु कहां प्रकट होने वाले हैं, अद्वैत आचार्य ही चैतन्य महाप्रभु को प्रकट कराएंगे। चेतनय महाप्रभु के प्राकट्य के 50 वर्ष पूर्व अद्वैत आचार्य प्रकट हुए।अद्वैत आचार्य प्रभु चैतन्य महाप्रभु के पिताजी जगन्नाथ मिश्र के समकालीन रहे और माधवेंद्र पुरी ईश्वर पुरी,अद्वैत आचार्य और हरिदास ठाकुर, यह सब समकालीन रहे। क्योंकि यह चैतन्य महाप्रभु से भिन्न नहीं हैं, इसलिए इनका अद्वैत नाम हैं और आचार्य अर्थात अपने आचरण से स्वयं सिखाते हैं। M 1.22 अष्टादश - वर्ष केवल नीलाचले स्थिति । आपनि आचरि ' जीवे शिखाइला भक्ति ॥२२ ॥ अनुवाद -श्री चैतन्य महाप्रभु अठारह वर्षों तक लगातार जगन्नाथ पुरी में रहे और उन्होंने अपने खुद के आचरण से सारे जीवों को भक्तियोग का उपदेश दिया । वह आचार्य थे,उन्होंने आचार्य की भूमिका निभाई और शास्त्रों का अध्ययन और अध्यापन भी खूब किया करते थे। वह अध्यात्म विद्या पढ़ाते थे BG 10.32 “सर्गाणामादिरन्तश्र्च मध्यं चैवाहमर्जुन | अध्यात्मविद्या विद्यानां वादः प्रवदतामहम् || ३२ ||” अनुवाद हे अर्जुन! मैं समस्त सृष्टियों का आदि, मध्य और अन्त हूँ | मैं समस्त विद्याओं में अध्यात्म विद्या हूँ और तर्कशास्त्रियों में मैं निर्णायक सत्य हूँ | इनका प्राकट्य तो आजकल के बांग्लादेश में हुआ,किंतु जैसे चैतन्य महाप्रभु के बाकी परिकर जन्में तो बांग्लादेश में थे, लेकिन स्थानांतरित हुए।वैसे ही अद्वैत आचार्य प्रभु शांतिपुर में स्थानांतरित हुए।शांतिपुर धाम की जय।शांतिपुर गंगा के तट पर हैं।जब हम कोलकाता से मायापुर नवदीप जाते हैं, तो रास्ते में शांतिपुर आता हैं और जब शांतिपुर से आगे बढ़ते है, तो मायापुर पहुंच जाते हैं। अद्वैत आचार्य वहां के निवासी बने और जब वह प्रकट हुए तो उन्होंने अनुभव किया,क्या अनुभव किया? BG 4.7 “यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत | अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् || ७ ||” अनुवाद हे भरतवंशी! जब भी और जहाँ भी धर्म का पतन होता है और अधर्म की प्रधानता होने लगती है, तब तब मैं अवतार लेता हूँ | कि संसार में धर्म की ग्लानि हुई हैं और अधर्म फैल रहा हैं।उन्होंने इसका अनुभव किया और इसका निरीक्षण परीक्षण किया और ऐसी परिस्थिति में ही तो भगवान प्रकट होते हैं। ऐसा भगवान ने भगवद्गीता में वादा किया हैं। ऐसी परिस्थिति में अद्वैत आचार्य विचार करने लगे,वैसे तो वह स्वयं ही महाविष्णु हैं, लेकिन व सोच रहे थे कि ऐसी परिस्थिति में तो 1.3.28 एते चांशकलाः पुंसः कृष्णस्तु भगवान् स्वयम् । इन्द्रारिव्याकुलं लोकं मृडयन्ति युगे युगे ॥ २८ ॥ उपर्युक्त सारे अवतार या तो भगवान् के पूर्ण अंश या पूर्णांश के अंश ( कलाएं ) हैं , लेकिन श्रीकृष्ण तो आदि पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् हैं । वे सब विभिन्न लोकों में नास्तिकों द्वारा उपद्रव किये जाने पर प्रकट होते हैं । भगवान् आस्तिकों की रक्षा करने के लिए अवतरित होते हैं । स्वयं भगवान को प्रकट होना होगा,तभी इस संसार का कुछ कल्याण होगा,तभी धर्म की स्थापना होगी। अद्वैत आचार्य शांतिपुर में गंगा के तट पर अपने शालिग्राम शिला की तुलसीदल से और गंगाजल से पूजा आराधना करने लगे और बड़े हुंकार और पुकार के साथ वह निवेदन करने लगे कि प्रभु आपको तो आना ही होगा। हरि हरि और यह महा विष्णु की पुकार भगवान ने सुनी और वैसे यह पुकार तो पृथ्वी की भी पुकार थी। पृथ्वी माता भी परेशान थी। तो सब दुनिया वालों की पुकार और धरती वालों की सबकी पुकार अद्वैत आचार्य ने भगवान तक पहुंचाई और उनकी पुकार ब्रह्मांड का भेदन छेदन करते हुए गोलोक तक पहुंच गई।और चैतन्य महाप्रभु को प्रकट होना पड़ा। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की जय।अभी चैतन्य महाप्रभु शचि माता के गर्भ में ही थे, जब अद्वैत आचार्य मायापुर आया करते थे और शचि माता की प्रदक्षिणा करते थे और माता को साक्षात दंडवत करते थे और उनका लक्ष्य तो उनके गर्भ में जो हरि हैं या चैतन्य चंद्र जो माता के गर्भ में प्रकट हुए हैं उनहे प्रणाम करना था।जब अद्वैत आचार्य इस बात से अवगत हुए तो गर्भस्थ शचि पुत्र को वह दंडवत किया करते थे और जब गौरांग गौर पूर्णिमा के दिन प्रकट हुए तो सबसे पहले इस बात को जानने वाले अद्वैत आचार्य ही थे। नाम आचार्य श्री हरिदास ठाकुर,यह दोनों एक नाम के आचार्य और एक अद्वैत आचार्य दोनों शांतिपुर में कीर्तन के साथ हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे से उनका स्वागत कर रहे थे। वैसे उस दिन गंगा के तट पर भी लोग एकत्रित होकर हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन कर रहे थे ।लेकिन जब चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य का अद्वैत आचार्य को पता चला तो वह शांतिपुर में नाम आचार्य श्रील हरिदास ठाकुर के साथ नाचते हुए,हर्ष उल्लास के साथ स्वागत कर रहे थे। स्वागतम निमाई सुस्वागतम निमाई और अपना आभार व्यक्त कर रहे थे कि आपने मेरी पुकार को सुना और अब आप प्रकट हो चुके हो तो आपका बहुत-बहुत स्वागत हैं। धन्यवाद। तो चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य के कारण अद्वैत आचार्य ही बने ।उनकी और भी कई सारी महिमा की बातें हैं। लेकिन यह सबसे बड़ी महिमा हैं यह अद्वैत आचार्य का वैशिष्ठय हैं। हरे कृष्ण आंदोलन का नेतृत्व करने वाले पांच व्यक्तित्व रहे या पांच तत्व रहे जिन्हें पंचतत्व कहते हैं। Ad 1.14 पञ्च-तत्त्वात्मकं कृष्णं भक्त - रूप - स्वरूपकम् । भक्तावतारं भक्ताख्यं नमामि भक्त -शक्तिकम् ॥ 14 अनुवाद मैं उन परमेश्वर कृष्ण को सादर नमस्कार करता हूँ , जो अपने भक्तरूप ,भक्तस्वरूप ,भक्तावतार , शुद्ध भक्त और भक्तशक्ति रूपी लक्षण से अभिन्न हैं श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद श्री अद्वैत गदाधर श्रीवास आदि गोर भक्त वृंद इसमें जो अद्वैत आचार्य हैं, *जय-जय श्री चैतन्या जय नित्यानंद जय अद्वेत चंद्र जय गोर भक्त* *वृंद* कृष्ण दास कविराज गोस्वामी तो अपने हर अध्याय को इसी प्रकार से प्रारंभ करते हैं। पंच तत्वों में से यह एक तत्व हैं। अद्वैत आचार्य तत्व जो कि स्वयं महाविष्णु हैं ।जो कि इस हरे कृष्ण आंदोलन या परम विजयते श्री कृष्ण संकीर्तनम, संकीर्तन आंदोलन का नेतृत्व करने वाले चैतन्य नित्यानंद और आप जानते हो कि चैतन्य श्री कृष्ण हैं और नित्यानंद बलराम है, अद्वैत आचार्य महाविष्णु हैं और श्रीवास नारद मुनि हैं और गदाधर राधा रानी के अंश हैं या राधारानी ही गदाधर के रूप में हैं ,तो इस प्रकार की टीम रही और इन सभी ने मिलकर हम सबको या सभी को ही पूरी दुनिया को हरे कृष्ण आंदोलन दिया हैं या हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे या इन गौर भक्त वृंद ने मिलकर या चैतन्य महाप्रभु के समय तो सारा दिव्य जगत ही प्रकट हो चुका था सारे ही गोलोक के निवासी यहां धरती पर प्रकट हुए थे और वैसे नवद्वीप मायापुर वृंदावन से अभिन्न हैं या गोलोक के निवासी स्वयं भगवान के अलावा और भी निवासी प्रकट हुए हैं। उसमें यह महा विष्णु के अवतार अद्वैत आचार्य भी रहे और इन्हीं की कृपा से हमको चैतन्य महाप्रभु मिले। चेतनय चरित्र्मृत के आदि लीला के षष्ठ परीक्षित अर्थात छठवां अध्याय जिसमें अद्वैत आचार्य का निरूपण हुआ हैं, अद्वैत आचार्य पंचतत्व में से एक तत्व हैं, आदि लीला छठवां अध्याय आप पढ़ सकते हैं। इसमें अधिक विवरण दिया गया हैं। इसे आप स्वयं पढिएगा और चेतनय भागवत में और कई सारे ग्रंथों में उनकी लीलाएं, उनके कार्यकलाप और उनके नेतृत्व और चैतन्य महाप्रभु के साथ इनका योगदान का वर्णन हैं। संकीर्तन आंदोलन प्रारंभ ही श्रीवास ठाकुर के प्रांगण में ,श्रीवास आंगन में हुआ हैं। ऐसा भी एक समय आता हैं, जब अद्वैत आचार्य ने अपना एक भवन मायापुर में भी बनाया, जिसको अद्वैत भवन कहते हैं। यह श्रीवास आंगन के पास में ही हैं। तो उनका एक निवास स्थान शांतिपुर में हैं, फिर शांतिपुर से स्थानांतरित होकर मायापुर में रहने लगे।शांतिपुर से स्थानांतरित होकर मायापुर में अद्वैत भवन में रहने लगे, आप वहां गए होंगे या नहीं गए तो जरूर जाइए।श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु श्रीवास आंगन में पंच तत्वों के साथ हैं, जिसमें अद्वैत आचार्य का कीर्तन विशेष हैं और एक हुंकार के साथ या चपलता के साथ वह कीर्तन किया करते थे,उसके लिए वह प्रसिद्ध हैं। हरि हरि। चांद काजी की कुटी पर जब नित्यानंद प्रभु ने नॉन कोऑपरेशन मूवमेंट किया तो उसमें भी अद्वैत आचार्य चैतन्य महाप्रभु के साथ रहे। ऐसे कई सारी लीलाएं हैं और फिर जब चैतन्य महाप्रभु सन्यास लेने के बाद जब जगन्नाथपुरी गए तो अद्वैत आचार्य उनको मिलने जरूर जाया करते थे और पूरे चतुर्मास में वह नवद्वीप में रहा करते थे।तो उनकी लीलाएं मायापुर में जगन्नाथपुरी में भी हैं। उन्होंने वृंदावन को भी एक भेंट थी। अद्वैत आचार्य बट करके भी एक स्थान हैं, वृंदावन में। इस स्थान को अद्वैत आचार्य ने वृंदावन को भेट किया और कई जगहों की परिक्रमा भी की। जैसे चैतन्य महाप्रभु ने वृंदावन की परिक्रमा की वैसे ही अद्वैत आचार्य ने भी परिक्रमा की हैं।वह अद्वैत हैं, भगवान से अभिन्न हैं, इसलिए उनके कई सारे कार्यकलाप चैतन्य महाप्रभु के जैसे ही रहे। हरि हरि।अद्वैत आचार्य तिथि महा महोत्सव की जय और बिल्कुल संक्षिप्त में मैं आपको यह भी कहना चाहता हूं कि अद्वैत आचार्य प्रभु के आविर्भाव तिथि के उपलक्षय में ही 19 साल पहले इस्कॉन बीड की स्थापना हुई। महाराष्ट्र में एक स्थान हैं, सोलापुर और औरंगाबाद के बीच में एक बीड़ नाम का स्थान हैं, 19 साल पहले,अद्वैत आचार्य प्रभु के आविर्भाव तिथि के के दिन ,इस संसार की या महाराष्ट्र की स्थिति को देखते हुए मैंने भी देखा कि वहां धर्म की ग्लानि हो रही हैं और अधर्म बढ़ रहा हैं प्रभुपाद की ओर से आज के दिन मैंने प्रार्थना की और भी कई सारे भक्त थे उस दिन। मेरे गुरु भ्राता राधा कुंड प्रभु भी थे और भी कई सारे भक्त थे। बहुत बड़ा उत्सव संपन्न हुआ। भगवान राधा गोविंद देव की जय। राधा गोविंद के रूप में भगवान बीड़ में प्रकट हुए।तब से राधा गोविंद देव क्या कर रहे हैं? BG 4.8 “परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् | धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे || ८ ||” अनुवाद भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ | बीड प्रदेश में राधा गोविंद देव प्रकट होकर धर्म की स्थापना कर रहे हैं या संकीर्तन आंदोलन की स्थापना कर रहे हैं। बड़े ही सुंदर सुकुमार राधा गोविंद देव प्रकट हुए और वहां खूब प्रचार-प्रसार हो रहा हैं। शुरुआत में मंदिर थोड़ा छोटा था, आज उसे बड़ा आकार दिया जा रहा हैं, इसके लिए मैं शारदा जी का आभारी हूं कि 19 साल पहले उन्होंने पूरा मंदिर बनाकर ही दे दिया और प्राण प्रतिष्ठा का भी जो खर्चा था उन्होंने उठाया और जब देखा कि भक्तों की गतिविधियां बढ़ रही है और मंदिर छोटा पड़ रहा हैंं तो अब इस समय पर मंदिर के दर्शन मंडप को विस्तारित कर रहे हैं और प्रसादम हाल और मल्टी परपज हॉल और गेस्ट हाउस का नवनिर्माण हो रहा हैं और सारा नवनिर्माण राधा गोविंद देव और वहां के भक्तों की प्रसन्नता के लिए किया जा रहा हैं और मैं भी इस्कॉन बीड़ की गतिविधि और प्रचार-प्रसार से प्रसन्न हूं। मंत प्रतिवर्ष वहां जाया करता था, लेकिन अब नहीं जा पा रहा हूं। तो दूर से ही दर्शन करूंगा। देखते हैं दर्शन भी करेंगें और आप सब को भी करवाएंगे। बने रहिए। इस्कॉन बीड़ की जय। राधा गोविंद देव की जय। श्रील प्रभुपाद की जय।

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