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जप चर्चा
4 सितंबर 2019
हरे कृष्ण!
(आज की जप चर्चा, कल की जप चर्चा का अग्रिम भाग है। कल की जप चर्चा में गुरु महाराज ग्रामीण जीवन शैली के विषय में बता रहा थे कि जिनका जन्म तथा पालन-पोषण ग्रामीण शैली में हुआ है, उन्होनें उसका अनुभव किया है और वे भगवान के जन्म और लीलाओं को अच्छे से समझ सकते है। इस प्रकार गुरु महाराज बता रहे थे कि किस प्रकार उनकी माँ सुबह दही बिलो कर मक्खन निकाल कर रख देती थी। गुरु महाराज भी कभी कभी खेत में गायें आदि चराने के लिए जाया करते थे। )
आज निरतंरता है (अब आगे).......
इस प्रकार से जो लोग ग्रामीण जीवन शैली में पले बढ़े हैं अर्थात जिनका पालन पोषण ग्रामीण जीवन शैली में हुआ है,वे गोकुल में हुई भगवान श्रीकृष्ण, नंद बाबा, यशोदा मैया, ग्रामवासियों की उन लीलाओं का अत्यन्त आसानी के साथ चिंतन और स्मरण कर सकते हैं और उन गतिविधियों के साथ संबंधित कर सकते हैं। जब मैं एक बच्चा था, उस समय मैं भी एक ग्वाला था और स्कूल और बाद में हाई स्कूल जाने से पहले मैं गाय चराने के लिए जाता था। मुझे याद है कि जब मैं बच्चा था तब मैं भी अपने मित्रों के साथ गाय, भैंस, बकरी आदि चराने के लिए जाता था और जब वहां पर हम उन्हें चराते थे अर्थात गाय आदि वहां चर रही होती थी तब हम उस समय खेल खेलते थे। जब भगवान श्री कृष्ण भी गायों को चराने के लिए जाते थे, वे भी वहां अपने मित्रों के साथ खेलते थे। भगवान कभी भी अकेले गाय चराने के लिए नहीं जाते थे, वे सदैव अपने मित्रों के साथ दल बनाकर जाते थे। उसी प्रकार हम भी अपने मित्रों के साथ दल अथवा एक टोली में जाते थे।
हमारी माँ हमारे साथ हमारा लंच अर्थात कलेवा बांध कर देती थी। दिन का सादा भोजन होता था। यशोदा मैया भी भगवान कृष्ण को उनका लंच या कलेवा बांध कर देती थी और भगवान अपने सभी मित्रों के साथ एक समूह में बैठकर भोजन करते थे। हम भी उसी प्रकार समूह में बैठ कर भोजन करते । यद्यपि जब भगवान कृष्ण भोजन करते उस समय मध्य में होते और उनके आस पास सभी मित्र होते परंतु हमारे साथ में कृष्ण मध्य में नहीं होते थे। हम मित्र मंडली ही बैठ कर भोजन किया करते थे। उस समय हम इतने अधिक कृष्ण भावना भावित भी नहीं थे अर्थात भगवान कृष्ण की लीलाओं का स्मरण नहीं करते थे अपितु हम भोजन करते हुए प्रह्लाद, ध्रुव, पुण्डरीक कथा की चर्चा किया करते थे। इसके साथ ही साथ हम वहां पर क्रीड़ा करते थे, नहाते भी थे। बेशक हमारे पास वहां पर यमुना और राधाकुंड नहीं थे लेकिन वहां कुछ छोटे छोटे तालाब और कुछ छोटी-छोटी नदियां थी जहां पर हम नहाते हुए जल में खेलते थे। इस प्रकार यह संस्कृति अर्थात ग्रामीण जीवन शैली अत्यंत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि यहाँ पर गायों की पूजा और रक्षा होती है।
यही कारण है कि भगवान कृष्ण कहते हैं कि
नमो ब्राह्मण देवाय
गो ब्राह्मण हिताय च
जगत हिताय कृष्णाय
गोविन्दाय नमो नमः।।
भगवान, ब्राह्मण के द्वारा पूजित हैं अर्थात ब्राह्मण, भगवान की पूजा करते हैं। और इसका अर्थ यह भी है कि भगवान गायों और ब्राह्मणों की रक्षा करते हैं। भगवान के समय से ही यह संस्कृति प्रारंभ हुई है अर्थात भगवान कृष्ण ने इस संस्कृति को स्थापित किया है। हमें भी उस संस्कृति का अंश होना चाहिए और उसे प्रयोग में लेना चाहिए। जिस प्रकार से प्रसाद में भगवान की झूठन होती है, उसी प्रकार से संस्कृति भी भगवान की झूठन है। उसे हमें प्रसाद के रूप में प्रयोग में लेना चाहिए। कुछ ५०-६० वर्ष पहले भी इस प्रकार की संस्कृति थी। तब ब्राह्मण, गाय केंद्र में होती थी परंतु पिछले कुछ वर्षों से इसमें अत्यंत तेजी से परिवर्तन आया है और यह अत्यंत दुखद है। ग्रामीण जीवन शैली और संस्कृति एक प्रकार से अब नष्ट प्रायः हो गयी है।
श्रील प्रभुपाद जी उस संस्कृति को पुनर्जीवित कर पुनः संस्थापित करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने इस्कॉन कम्युनिटीज को आरंभ किया ताकि कृष्णभावनामृत का पूरे संसार में विस्तार हो सके। चैतन्य महाप्रभु ने यह भविष्यवाणी की थी कि प्रत्येक गांव और शहर में मेरे नाम का जप होगा। श्रील प्रभुपाद ने इस भविष्यवाणी को स्वीकार किया और वे इसके लिए निरंतर कार्य करते रहे। श्रील प्रभुपाद द्वारा जो यह कार्य किया गया है, हमें इसे कभी भी नहीं भूलना चाहिए। हमें न केवल श्रील प्रभुपाद अपितु अपने गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय के आचार्यों को भी कभी भूलना नहीं चाहिए जिन्होंने चैतन्य महाप्रभु की इस भविष्यवाणी को सहेज कर रखा अथवा उन्होंने इसे हमेशा अपने हृदय के भीतर जीवित रखा। यह भविष्यवाणी एक गुरु से दूसरे गुरु के बीच स्थानांतरित की गई है अंततः श्रील प्रभुपाद को यह प्राप्त हुई।
अतः हम देखते हैं कि श्रील जगन्नाथ दास बाबा जी से श्रील भक्ति विनोद ठाकुर जी, श्रील गौर किशोर दस बाबा जी, श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुरप्रभुपाद जी ने जब अंततः श्रील प्रभुपाद को यह आज्ञा दी तब उन्होंने चैतन्य महाप्रभु की भविष्यवाणी को पूरा करने के लिए प्रयास किया। ऐसा नही है कि श्रील प्रभुपाद जी ने यह अकेले ही किया हो, इसमें सभी आचार्यों की कृपा थी, उन्होंने ही श्रील प्रभुपाद को कहा था।
इस प्रकार से श्रील प्रभुपाद जी के पूर्ववर्ती आचार्यों ने उस भविष्यवाणी को जीवित रखने के लिए अत्यंत प्रयास किया, अंततः श्रील प्रभुपाद ने इसे स्वीकार किया। श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर ने ए. सी़. भक्तिवेदांत प्रभुपाद को यह निर्देश दिया कि आप पश्चिम के देशों में इस कॄष्णभावनामृत का अंग्रेजी भाषा में प्रचार कीजिए। अंग्रेजी एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा है, इसलिए श्रील प्रभुपाद ने सर्वप्रथम अंग्रेजी भाषा में इस कृष्णभावनामृत का प्रचार प्रसार करना आरंभ किया। उन्होंने अंग्रेजी भाषा में कई पुस्तकों का अनुवाद किया अथवा उन्होंने अंग्रेजी भाषा में कई पुस्तकें लिखी। श्रील प्रभुपाद जी के सम्पूर्ण विश्व से अनुयायी थे।इसलिए श्रील प्रभुपाद जी ने अपने अनुयायियों से इन पुस्तकों का अनुवाद उन्हें अपनी मातृभाषाओं अर्थात अधिक से अधिक भाषाओं में करने को कहा अर्थात श्रील प्रभुपाद जी ने अपने अनुयायियों से अधिक से अधिक भाषाओं में अनुवाद करके प्रकाशित कर और इसका वितरण करने के लिए कहा। यह चैतन्य महाप्रभु की जो भविष्यवाणी है वास्तव में कृष्ण और राधा की भविष्यवाणी थी। श्रील प्रभुपाद जी ने उस भविष्यवाणी को पूर्ण करने के लिए संघर्ष और प्रयास किया। इस प्रकार प्रभुपाद उस संस्कृति को पुनः जीवित करना चाहते थे। कुछ रोल मॉडल समुदाय या गाँव बनाना चाहते थे अथवा कुछ ग्रामीण शैली का स्थापना करना चाहते थे।ताकि यहाँ पर अन्य लोग आए और वे इसे देखे। यह कृष्ण भावना भावित जीवन शैली 'सादा जीवन और उच्च विचार' पर आधारित है।
प्रभुपाद चाहते हैं कि लोग हमारी फार्म समुदाय या गांव समुदाय से आकर कुछ सीखे। प्रभुपाद कहते थे कि यदि आपके पास गाय है और यदि आपके पास खेती करने के लिए जमीन है तो आप अत्यंत आसानी से अपना जीवन यापन कर सकते हो।
प्रभुपाद जी ने न्यू वृंदावन नगरी, गीता नगरी की स्थापना की। श्रील प्रभुपाद ने फ्रांस के पेरिस में न्यू मायापुर की स्थापना की। इसके साथ साथ दक्षिण भारत में हैदराबाद के पास न्यू नैमिषारण्य की भी स्थापना की। श्रील प्रभुपाद इन फार्म समुदायों (कम्युनिटीज) की स्थापना के लिए वहाँ पर जाते थे और एक वृक्ष के नीचे बैठकर अपने शिष्यों/अनुयायियों को अपने मिशन के बारे में सम्बोधित करते थे। यह फार्म समुदाय (कम्युनिटीज) भी श्रील प्रभुपाद की इच्छा को और मिशन को पूरा करने के लिए अपना पूरा प्रयास कर रही है। यह इतना आसान भी नहीं है। इसमें कई कठिनाई भी आती है। ये फार्म कम्युनिटीज श्रील प्रभुपाद की इच्छा की पूर्ति करने के लिए 'सादा जीवन उच्च विचार' को मध्य में रखकर कृष्ण भावनामृत का प्रचार करने का प्रयास कर रही है।
इस प्रकार श्रील प्रभुपाद जी कहते हैं कि यदि आपके पास गाय है और यदि आपके पास खेती करने के लिए कृषि योग्य जमीन है तो एक प्रकार से आप आत्मनिर्भर हैं। गोकुल के निवासी वैश्य होने के कारण गाय और खेती दोनों पर आश्रित थे। विशेष रूप से वैश्य का कर्तव्य और धर्म कृषि, गोरक्षा, वाणिज्यिक है। इसका अर्थ है कि उन्हें खेती से जो लाभ अर्थात उत्पाद प्राप्त होते थे, उनको वो एक दूसरे को प्रदान करते थे। उनके माध्यम से वो व्यापार / वस्तु विनिमय किया करते थे । मेरे पास अतिरिक्त दूध है, आप यह ले लीजिए और आपके पास सब्जियों का अधिशेष है, इसलिए आप मुझे सब्जियां दे दीजिए। वह प्रसङ्ग आपको पता होगा कि एक महिला फल बेचने के लिए नंदभवन के बाहर आती थी। वह एक दिन नंद भवन के बाहर अपना टोकरी भर के फल लाई और नंद भवन के बाहर बैठ कर आवाज लगाने लगी 'केले ले लो, अमरूद ले लो, फल ले लो'। इस प्रकार उसकी टोकरी में कई तरह के फल थे।
कृष्ण उन सभी फलों को प्राप्त करना चाहते थे। कृष्ण उस दिन 'फलार्थी' बने। जब उन्होंने ये आवाज सुनी,'फल ले लो, फल ले लो!'कृष्ण ने उसे सुना और नंद भवन से बाहर गए। क्या वह कुछ पैसे लेकर जा रहे थे? नहीं! उनके हाथ में कुछ अनाज के दाने थे। कृष्ण ने उस महिला को अन्न के दाने दिए और उस महिला ने वह फल कृष्ण को दे दिए। यह बार्टरिंग है। गोकुल के अन्य लोग भी अन्न का आदान प्रदान इसी प्रकार करते। उस समय किसी मुद्रा के माध्यम से विनिमय नहीं होता था अपितु अन्न या खाद्य वस्तुएं अर्थात जिनकी हमें आवश्यकता होती है, उसके माध्यम से होती थी। अन्न या कृषि उत्पाद, दुग्ध उत्पाद से ही आपस में आदान प्रदान किया जाता था। अन्न, सब्जियां और दुग्ध उत्पाद भी हमारा भोजन है यह तीन चीज़े हमें हमारी माता से प्राप्त होती है- धरती माँ और गौ माता। दोनों ही मनुष्यों को जीवित रखने के लिए, अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए दूध तथा सब्जी देती है। ये खाद्य प्राकतिक तत्व है।
अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः ।
यज्ञाद्भवति पर्जन्यो
यज्ञः कर्मसमुद्भवः।।
(भगवतगीता ३.१४)
अर्थात
सारे प्राणी अन्न पर आश्रित हैं, जो वर्षा से उत्पन्न होता है।वर्षा यज्ञ सम्पन्न करने से होती है और यज्ञ नियत कर्मों से उत्पन्न होता है।
अन्नाद्भवन्ति भूतानि अर्थात
इस पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीव अन्न पर आश्रित हैं।
यह भगवान की व्यवस्था है, इस जीवन शैली को स्वीकार करना चाहिए। यदि हम अपने शरीर के साथ में हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हैं, तो इस प्रकार से हम यज्ञ संपन्न करते हैं। जब हम अपनी सभी क्रियाओं को भगवान को समर्पित करते हैं वहीं वास्तव में यज्ञ होता है। केवल हरे कृष्ण महामंत्र का जप करना ही यज्ञ नही है। हरे कृष्ण का जप करना संकीर्तन यज्ञ है परंतु यदि हम सभी क्रियाएँ और कार्यकलाप को भगवान श्री कृष्ण को अर्पित कर देते हैं वह भी यज्ञ है।
यत्करोषि यदश्नासि
यज्जुहोषि ददासि यत् ।
यत्तपस्यसि कौन्तेय
तत्कुरुष्व मदर्पणम् ।।
( भगवत गीता 9.27)
हे कुन्तीपुत्र! तुम जो कुछ करते हो, जो कुछ खाते हो, जो कुछ अर्पित करते हो या दान देते हो और जो भी तपस्या करते हो, उसे मुझे अर्पित करते हुए करो |
यज्ञार्थ ही कर्मणा- भगवान कहते हैं कि यज्ञ ही कर्म है, यज्ञ भगवान है। भगवान का नाम यज्ञ पुरुष है। जब हम इस हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हैं अथवा कृष्णभावनामृत संबंधित कार्य करते हैं और उन्हें भगवान को अर्पित करते हैं, इस प्रकार से उन कार्यो के माध्यम से भी हम यज्ञ सम्पन्न करते हैं।
भगवतगीता में भगवान कहते हैं कि यज्ञाद्भवति पर्जन्यो अर्थात यज्ञ करने से यज्ञ पुरुष प्रसन्न होते हैं। जहाँ कहीं भी यज्ञ होता है, उस यज्ञशाला में परम पुरुष/यज्ञ पुरूष उपस्थित होते हैं। उस यज्ञ शाला में देवी देवताओं को भी आमंत्रित किया जाता है। जब यज्ञ सम्पन्न होता है और आहुति दी जाती है, उस समय उस यज्ञ के माध्यम से देवी देवताओं को भी अपना अपना भाग प्राप्त हो जाता है जिससे वे प्रसन्न होते हैं।
भगवान भगवतगीता में बताते हैं कि यज्ञ सम्पन्न करने से देवी देवता प्रसन्न होते हैं और मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए वर्षा करते हैं।
'पर्जन्यादन्नसम्भवः' अर्थात देवी देवता प्रसन्न होकर वर्षा करेंगे जिससे अन्न उत्पन्न होगा। 'अन्नाद्भवन्ति भूतानि' जब अन्न उत्पन्न होगा, अन्न पर सभी जगत के जीव आश्रित हैं। मनुष्य यज्ञ सम्पन्न करता है, यज्ञ सम्पन्न करने से देवताओं को उनका अंश मिलता है जिससे वे प्रसन्न होते हैं और प्रसन्न होकर वर्षा करते हैं। वर्षा होने से अन्न उत्पन्न होता है और अन्न पर सभी जीव आश्रित होते हैं। यह भी पूरा चक्र है जिसमें सभी जीवों का एक दूसरे के मध्य कनेक्शन होता है। प्रायः हम देखते हैं कि इसाई (क्रिस्चियन) चर्च में जा कर भगवान से प्रार्थना करते हैं कि भगवान आप हमें हमारा दैनिक भोजन दीजिए। इस प्रकार हमें अन्न भगवान की कृपा से अन्न की प्राप्ति होती है और वही वास्तव में हमारा वास्तविक भोजन है।
बारिश से हमें अन्न,सब्जियों की प्राप्ति होती है। हम उनको ग्रहण करते हैं, इसके साथ ही साथ बारिश से ही कई प्रकार की घास उत्पन्न होती है, जिसे गाय खाती हैं और हमें दूध देती हैं। उस दूध से कई प्रकार के दुग्ध उत्पाद बनाये जा सकते हैं जिनसे हमारा जीवन यापन अत्यंत आसानी से होता है और हम साथ ही साथ उनका व्यपार भी कर सकते हैं। यह एक अत्यंत ही गहन विषय है, जिस पर हम काफी देर तक चर्चा कर सकते हैं। मैं आपको अपने अनुभव और अपनी जीवन शैली के विषय में बता रहा था। दो दिन पूर्व जब मैं चेक रिपब्लिक में था। वहाँ पर एक कॉन्फ्रेंस आयोजित की गयी थी जिसके माध्यम से मैंने वहाँ उपस्थित भक्तों को कृषि और गौ रक्षा के विषय में सम्बोधित किया था और मैंने अपने अनुभव भी बताए थे। इस प्रकार यह अत्यंत ही वृहद विषय है। हम अपनी वाणी को यही विराम देते हैं।
हरे कृष्ण!