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हरे कृष्ण! जप चर्चा, पंढरपुर धाम से, 25 फरवरी 2021 आज 811 स्थानो सें अविभावक उपस्थित हैं। हरि बोल...! नित्यानंद प्रभुने आपको आकृष्ट किया है आज।अधिक जीव आज उपस्थित हुए हैं। नित्यानंद राम कि जय...! जय जय श्रीचैतन्य जय नित्यानन्द। जयाद्वैतचन्द्र जय गौरभक्तवृन्द॥ आज के दिन का क्या कहना। कौन कह सकता है महिमा?अनंतशेष ही कुछ प्रयास कर सकते हैं; वे भी सफल नहीं हो सकते। अनंतशेष वैसे बलराम ही हैं। अनंत शेष है बलराम या संकर्षण है बलराम। संकर्षण ही बनते हैं महाविष्णु। महाविष्णु से गर्भोदकशायी विष्णु से गर्भोदकशायी से क्षीरोदकशायी विष्णु से अनंत शेष। यह सब बलराम है, और वही बलराम बलराम होइले निताई नंदनंदन जई शचीसुत हुईले सई और बलराम होईले निताई जो बलराम संकर्षण है, जो बलराम महाविष्णु है, जो बलराम गर्भोदकशायी विष्णु हैं। ऐसे चैतन्य चरितामृतकार कृष्णदास कविराज गोस्वामी लिखते हैं। महिमा तो लिख रहे हैं नित्यानंद प्रभु का किंतु ये महिमा बलराम का ही हैं; किंतु बलराम और नित्यानंद प्रभु एक ही है, तो बलराम का महीमा नित्यानंद प्रभु का भी महीमा है ही। हरि हरि! मैं वैसे कह रहा था कौन लिख सकता है? नित्यानंद प्रभु का महीमा तो लिखने के लिए स्वयं व्यासदेव प्रकट हुए हैं। क्या लिखते हैं भागवते कृष्ण-लीला वर्णिला वेदव्यास। चैतन्य-लीलाते व्यास --वृंदावन दास।। (श्री चैतन्य चरितामृत आदिलीला 11.55) अनुवाद: - श्रील वेदव्यास ने श्रीमद् भागवत में कृष्ण लीलाओं का वर्णन किया और श्री चैतन्य महाप्रभु कि लीलाओं के व्यास हुए वृंदावन दास। कृष्ण-बलराम लीला का वर्णन श्रील व्यासदेव ने किया वही कृष्ण बलराम जब गौर-नित्यानंद बने तो उनके लीलाओं का वर्णन करने वाले हैं वृंदावन दास। वे थे व्यास अब व्यास बने हैं वृंदावन दास और लिखते हैं चैतन्य भागवत श्री चैतन्य भागवत में ही यह चैतन्य भागवत है आप को दिखा तो देते हैं दर्शन तो करो (जपा टौक में उपस्थित भक्तो को प. पु. लोकनाथ स्वामी महाराज किताब दिखाते हुए कह रहे हैं)एक है श्रीमद् भागवत और यह है चैतन्य भागवत और वैसे चैतन्य-नित्यानंद के लीलाओं का वर्णन चैतन्य चरितामृत, चैतन्य मंगल, चैतन्य चरित् इत्यादि इत्यादि ग्रंथों में है किंतु थोड़ा अधिक वर्णन नित्यानंद प्रभु का चैतन्य भागवत में भी हैं। चेतन भागवत कि शुरुआत करते हैं। अजानुलम्बितभुजौ कनकावदातौ, संकीर्तनैकपितरौ कमलायताक्षौ। विशवम्भरौ व्दिजवरौ युगधर्मपालौ, वन्दे जगत्प्रियकरौ करुणावतारौ।। (श्रीचैतन्य भागवत आदिखंड 1.1) अनुवाद: -करुणाअवतार श्री गौरांग देव एवं नित्यानंद प्रभु कि मैं वंदना करता हूं, जिनकी भुजाएं घुटनों तक लंबी है, जिनके शरीर कि कांति स्वर्ण कि भांति पीली एवं मनोरम हैं, जो संकीर्तन के सृष्टिकर्ता अथवा प्रवर्तक हैं, जिनके नेत्र कमल की भांति विशाल हैं, जो विश्व के पोषणकर्ता हैं, जो श्रेष्ठ ब्राह्मण- कुल में अविर्भूत हुए हैं, जो युग धर्म के पालनकर्ता है तथा जगत- वासियों का परम कल्याण करने वाले हैं। कोई अनाड़ी ही सोच सकता है कि कोई एक व्यक्ति का उल्लेख हो रहा हैं। एक व्यक्ति का वर्णन यहां हो रहा है या गुणगान हो रहा है लेकिन ऐसी बात नहीं है थोड़ा सा हल्का सा संस्कृत वगैरह जानते हैं तो पता चल ही जाएगा अजानुलम्बितभुजौ कहा है अजानुलम्बितभुजौ मतलब दो व्यक्ति की बात है या हो सकता है कि एक ही व्यक्ति कि दो भुजाएं हो सकती है या दो व्यक्तियों की दोनों भुजाएं *अजानुलम्बितभुजौ कनकावदातौ, आगे स्पष्ट होता हैं। संकीर्तनैकपितरौ दो पिता विशवम्भरौ व्दिजवरौ दो वर यह दो है गौरांग-नित्यानंद! गौरंग -नित्यानंद...!गौरांग नित्यानंद...! यह दोनों हैं संकीर्तनैकपितरौ। संकीर्तन आंदोलन के पिताश्री है गौरांग और नित्यानंद मतलब कृष्ण और बलराम या मतलब कि राम और लक्ष्मण। त्रेता युग के लक्ष्मण द्वापर में बलराम बनते हैं तो कलयुग में वही नित्यानंद प्रभु वे भी तत्व है ऐसी पहचान नित्यानंद प्रभु कि।ऐसे नित्यानंद प्रभु का आज आविर्भाव तिथि महोत्सव की जय...! नित्यानंद त्रयोदशी हर दिन हम देख ही रहे हैं वामन द्वादशी, आज नित्यानंद त्रयोदशी, नर्सिंग चतुर्दशी, गौरपूर्णिमा कल कहा था ना हर दिन कोई न कोई अवतार प्राकट्य है ही तो आज के दिन नित्यानंद प्रभु के लिए रिजर्व दी है नित्यानंद त्रयोदशी के दिन 500 वर्ष पूर्व चैतन्य महाप्रभु के भी प्राकट्य के पहिले कुछ 12 वर्ष पूर्व नित्यानंद प्रभु एकचक्र ग्राम धाम की जय...! एकचक्र नामक ग्राम या धाम में प्रकट हुए जो राड देश में एकचक्र ग्राम है जो राड देश वह देश कहलाता है जो गंगा जहासे बहती है उससे थोड़ा हटके उस राड देश में एकचक्र ग्राम में नित्यानंद प्रभु प्रकट हुए। अढाई पंडित और पद्मावती के पुत्र रहे नित्यानंद। उन्हें नित्यानंद राम भी कहते हैं,और ये नित्यानंद है जब पता चलता है तो हम प्रार्थना भी करते हैं। हा हा प्रभु नित्यानंद, प्रेमानंद सुखी कृपावलोकन करो आमि बड़ो दुखी। सावरण श्री गौर-पाद-पद्मेश प्रार्थना से अनुवाद: -हे नित्यानंद प्रभु तुम तो प्रेमानंद में सदा सुखी रहते हो। तनिक मेरे ऊपर भी कृपाविलोकन करो, क्योंकि मैं बहुत दु:खी हूंँ। यह तो अच्छा नहीं है ना आप सुखी और हम दुखी अच्छा नहीं हैं। कृपा कीजिए आज के दिन भी हम हमारी प्रार्थना नित्यानंद प्रभु के चरण कमलों में हमपर वे कृपा करें वैसे वे कृपा कर चुके हैं क्या कृपा हुई है? *ब्रह्माण्ड भ्रमिते कोन भाग्यवान जीव। गुरु- कृष्ण- प्रसादे पाय भक्ति-लता-बीज।। (चैतन्य चरितामृत मध्य लीला १९.१५१) अनुवाद:- सारे जीव अपने- अपने कर्मों के अनुसार समूचे ब्रह्माण्ड में घूम रहे हैं। इनमें से कुछ उच्च ग्रह-मंडलों को जाते हैं और कुछ निम्न ग्रह- मंडलों को। यह नित्यानंद प्रभु के कृपा का फल है कि हमें वे श्रील प्रभुपाद कि जय...! श्रील प्रभुपाद के चरणों में श्रील प्रभुपाद के शिष्यो के चरणों में उनके संपर्क में हमें लाए हैं। हमको गुरु प्राप्त कराएं हैं। वैसे नित्यानंद प्रभु ही आदिगुरु हैं,तो भी वे शिष्य बने पंढरपुर में।कितनी सारी बातें याद आ रही हैं। इस धाम में हम बैठे हैं, आपसे बात कर रहे हैं। यहां पर भी आए नित्यानंद प्रभु। पंढरपुर में भी नित्यानंद प्रभु और यहा पर उन्होंने दिक्षा ली। ये बड़े गजब कि बात है भगवान बनते हैं शिष्य और नित्यानंद प्रभु एकचक्र ग्राम मे जब बालक ही थे तो बाल सुलभ लीलाएं खेलते थें। बालक जैसे खेलते हैं।बाल अवस्था क्रीडा अवस्था। बाल अवस्था में क्या होता है? खेलते हैं। खेलेंगे!खेलेंगे!पाठशाला भी जाते थें, पढ़ते थें। पढ़ने की कोई आवश्यकता तो भगवान को...क्या पढ़ना है? क्या सीखना है? यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:। से यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते।। (श्रीमद्भगवद्गीता 3.21) अनुवाद: -महापुरुष जो जो आचरण करता हैं,सामान्य व्यक्ति उसी का अनुसरण करते हैं। वह अपने अनुकरणीय कार्यों से जो आदर्श प्रस्तुत करता है, संपूर्ण विश्व उसका अनुसरण करता हैं। वे सभी के समक्ष आदर्श रखते हैं। देखो मैं भी स्कूल जा रहा हूंँ, तुमको भी स्कूल जाना होगा हां! मैं पढ़ रहा हूंँ, तुम भी पढ़ो! जब स्कूल में पढ़ते थे तो अपने मित्रों के साथ खेलते थें। नित्यानंद प्रभु के सारे खेल वृंदावन कि लीलाएं हुआ करती थीं। कृष्ण-बलराम जो लीला किया करते थें। गोचारणलीला है या फिर उन्होंने उन्होंने धेनु का सुर का वध किया, ऐसी अपने स्वयं कि भी जो लिलाएं है, कभी प्रलंबासुर का वध करते थे, और कोई मित्र प्रलंबासुर बनता तो नित्यानंद प्रभु बलराम के आवेश में उसके पीठ पर चढ़ते और फिर आसमान में उड़ान भरते और फिर उसका वध होता। ऐसे भिन्न भिन्न मधुर लीलाएं खेलते। औरों के लिए तो नाटक लेकिन नित्यानंद प्रभु के लिए यह नाटक नहीं था उनके लिए तो लीलाएं ही खेलते थें। कभी-कभी रामलीला खेलते थें राम- लक्ष्मण लीला खेलते थें। लंका में पहुंच गए राम और लक्ष्मण और रावण के साथ लड़ रहे हैं, कुंभकरण भी हैं। जय हनुमान...!,जय श्री राम...! वहां रामायण के युद्ध कांड में लक्ष्मण घायल हो जाते हैं मेघनाथ के बाद से लक्ष्मण घायल हो जाते हैं मूर्छित हो जाते हैं तो वही लीला वहां एकचक्र ग्राम के पाठशाला के प्रांगण में बालक खेल रहे थे और नित्यानंद प्रभु बने हैं लक्ष्मण और फिर कोई राम है,तो कोई वानर है, कोई हनुमान हैं। जय हनुमान...! कई सारे पात्र हैं। खेलते खेलते वहा युध्द हो रहा था नित्यानंद प्रभु घायल हुए, मेघनाथ ने घायल किया उनको बाण के प्रहार से, नित्यानंद प्रभु पड़े रहे। सभी इकट्ठे हुए क्या उपाय है? कैसे? क्या औषधि होगी?क्या उपाय कर सकते हैं?,तो यह तय हुआ कि हनुमान हिमालय से कई जड़ी बूटी लेकर आ सकते हैं। वैसे इसका उपयोग किया जा सकता हैं। हनुमान को भेजा गया। हनुमान जब गए हिमालय कि ओर नित्यानंद प्रभु तो मूर्छित पड़े हैं और सभी वहां पर हैं, इतने में पाठशाला बंद होने का समय हुआ, घंटी बजी, सारे बालक जो यह नाटक देख भी रहे थे, और नाटक में अलग-अलग पात्र निभा भी रहे थे वह सारे के सारे दौड़ पड़े दौड़ पड़े, अपना पाठशाला का थैला या किताबें लेकर, अपने अपने घर कि ओर प्रस्थान किए। बस केवल एक बालक वह बच गया, क्रीड़ांगण में अभी तक लेटा है और वे थे नित्यानंद भी नहीं थे वे अब लक्ष्मण थें। सभी बालक अपने अपने घर लौटे थे लेकिन नित्यानंद प्रभु नहीं लौटे तो उनके पिताश्री ढूंढते हुए गए, कहां है? नित्यानंद....! अंत में पाठशाला गए उनको वहां नित्यानंद दिखे, बेहोश पड़े हुए, पूछताछ करने पर पता चला यह नाटक हो रहा था लंका का युद्ध का खेल या नाटक कर रहे थे और हनुमान को भेजा गया। हनुमान तो लौटे ही नहीं,हनुमान अपने घर लौटे (हंसते हुए) तो फिर नित्यानंद प्रभु को पुनः बाह्य ज्ञान कि ओर लाना है, और मूर्छा से मुक्त करना है, तो ये सोचा कि सारे बच्चों को बुलाया जाए और उनका श्रृंगार हुआ, सारे वस्त्र पहने और अपने-अपने स्थान ग्रहण कर लिये और हनुमान को भेजा गया और पुनः हनुमान आ गए, जड़ी-बूटी लेकर और संजीवनी जड़ी-बूटी का उपयोग हुआ। लक्ष्मण मूर्छा से मुक्त हुए। इस लीला से, और कई सारी लीलाओं से पता चलता है, कि यह स्वयं बलराम है, या स्वयं लक्ष्मण हैं। नित्यानंद प्रभु छोटे ही थे एक समय साधु आए ।राय पंडित अढाई पंडित बन गये यजमान और कुछ और साधु का संघ और सेवा शुरू हो गई प्रस्थान करना था साधु को तो हम आपकी कुछ सहायता कर सकते हैं?हां हां सहायता कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि आपके बालक को मुझे दीजिए, तो फिर क्या कहना यह बात ऐसे ही थी जैसे कौन थे? राम और लक्ष्मण को मांगने के लिए विश्वामित्र आए थे।मुझे आपके पुत्र चाहिए और फिर उस समय जो दशरथ थें, नहीं नहीं यह कैसे संभव हैं। उन षौडीषीय वर्षीय बालक हैं। षौडीषीय वर्षीय बालक मतलब 15 साल के बालक है। ऐसे दशरथ बता रहे थे, विश्वामित्र मुनि को और ये राजीव लोचन राजीवलोचन मतलब कमल सूर्यास्त के समय मुर्झा जाता है, बंद होता हैं। यह बालक यज्ञशाला कि रक्षा कैसे करेंगे। आप तो कह रहे हो कि यज्ञ की रक्षा करेंगे रात में जो राक्षस आते हैं उससे बचाएंगे यज्ञशाला को पूरे रातभर जागेंगे, नहीं-नहीं कैसे संभव है राजीव लोचन जब कली मुरझा गई तो अगले दिन सुबह ही कली खिलती है तो रात भर जगे रहेंगे। नहीं नहीं यह कैसे हो सकता है ऐसा ही कुछ ऐसा तो नहीं कहा अढाई पंडित स्वीकार किए इस बात को और तथास्तु! वैसे ही वो दे दिए नित्यानंद प्रभु को साधु के साथ। उन्होंने सारे भारत का भ्रमण किया लेकिन नित्यानंद प्रभु को भ्रमण करना ही था क्योंकि* बलराम होइले निताई बलराम तो बने थे निताई बलराम भी तो पूरे भारत का दर्शन, भ्रमण किया ही था और नित्यानंद प्रभु क्यों नहीं करते तो फिर कैसे-कैसे वे बलराम। वे भ्रमण करते करते पंढरपुर भी आए थे वह सारे दक्षिण भारत कि यात्रा कि थी और नित्यानंद प्रभु जब वृंदावन पहुंचे और वृंदावन में जब राधा कुंड के तट पर पहुंचे तो उनको यह ज्ञात हुआ कि स्वयं भगवान वैसे नित्यानंद प्रभु भी स्वयं रूप है या स्वयं प्रकाश है या स्वयं भगवान के स्वयं प्रकाश है नित्यानंद प्रभु या बलराम मैं तो केवल स्वयं प्रकाश ही हूँ। स्वयं भगवान नही हूँ स्वयं भगवान प्रकट हुए हैं और वे इस समय मायापुर धाम कि जय... मायापुर धाम में प्रकट हुए हैं,विद्यमान हैं।नित्यानंद प्रभु के यात्रा का वही समापन हुआ राधा कुंड के तट पर और नवव्दीप मायापुर के लिए दौड़ पड़े। हरि हरि! संकेत हुआ कि, नित्यानंद प्रभु पहुंचे हैं प्रवेश किये है नवव्दीप मायापुर में। चैतन्य महाप्रभु ने कहा जावो ढूढो़! नित्यानंद महाप्रभु को ढूंढो तो सभी गए उन्हें ढूंढने सभी दिशाओं में खोजने लगे किंतु वे नहीं मिले छुप गए थे और भगवान जब छुप जाएंगे तो कौन ढूंढ सकता है? कोई ढूंढ नहीं सकता। सभी वापस आए और बताएं कि हमने सभी जगह देखा लेकिन कहीं पय नहीं मिले नित्यानंद प्रभु तो फिर स्वयं चैतन्य महाप्रभु निकल पड़े और उनको पूछना नहीं पड़ा कि किसने देखा है कहां होंगे, कहां है? वे सीधे चैतन्य महाप्रभु जो भक्ति सिद्धांत रोड जो हैनित्यानंद महाप्रभु ने कहा कि नित्यानंद महाप्रभु को ढूंढो तो सभी गए उन्हें ढूंढने सभी दिशाओं में खोजने लगे किंतु वे नहीं मिले छुप गए थे और भगवान जब छुप जाएंगे तो कौन ढूंढ सकता है कोई ढूंढ नहीं सकता फिर वापस आए और बताएं कि हमने सभी जगह देखा लेकिन कहीं नहीं है तो फिर स्वयं चैतन्य महाप्रभु निकल पड़े और उनको पूछना नहीं पड़ा कि किसने देखा है, कहां होंगे, कहा है?वे सीधे चैतन्य महाप्रभु जो भक्ति सिद्धांत मार्ग जो है। भक्ति सिद्धांत मार्ग से ही आएंगे ना! नंदनाचार्य के घर कि ओर योगपीठ से अपने निवास स्थान से आगे बढ़े और नंदन आचार्य, चैतन्य महाप्रभु तो सर्वज्ञ अभिग्य है वहा जब आए तो फिर इन दोनों का, चैतन्य महाप्रभु ने देखा है नित्यानंद प्रभु ,तो नित्यानंद प्रभु ने प्रथम बार इस लीला में प्रथम मिलन है और प्रथम दर्शन भी है तो एक दूसरे का भी वे दर्शन कर रहे हैं। एक करे नितांई-निताई और दूसरे कह रहे निमाई- निमाई ऐसे कहते कहते वे एक दूसरे कि तरफ दौड़ पड़े निमाई- निताई ,निमाई-निताई,निमाई..निमाई..रथ.!,निताई...निताई...!दोनों वहां मिले एक दूसरे कि ओर भागे दौड़े आए और बाहुपाश में एक दूसरे को धारण किए। गाढ़ आलिंगन हो रहा हैं। दोनों भाताश्री उस वक्त सिर्फ शरीर का ही नहीं हृदय का मिलन हो रहा है, तब उसी अवस्था में कुछ समय के लिए रहे और दोनों आंसू बहा रहे हैं अश्रु धाराएं बह रही है। इसी प्रकार श्री चैतन्य महाप्रभु अश्रु धारा के साथ नित्यानंद महाप्रभु का गाड़ आलिंगन कर रहे हैं। नित्यानंद महाप्रभु अपने अश्रु धाराओं के साथ गौरांग महाप्रभु का अभिषेक कर रहे हैं और फिर उनको कुछ बाह्य ज्ञान भी नहीं रहा कि हम खड़े हैं या कहां हैं दोनों भी धड़ाम करके गिर जाते हैं। नंदनाचार्य के प्रांगण में और फिर दोनों लौटने लगते हैं और बहुत समय के उपरांत फिर पुनः बाह्य ज्ञान होता है, फिर पुनः मिलते हैं और बातें करते हैं। अब वो दोनों साथ में रहेंगे रामलीला में राम और लक्ष्मण सदैव साथ में रहे हैं कृष्ण बलराम लीला में कृष्ण बलराम सदैव साथ में रहे हैं उसी प्रकार यह दोनों राम लक्ष्मण कृष्ण बलराम जन्म में भी थे एक ही स्थान पर और उम्र में तो कोई अंतर नहीं था वैसे लक्ष्मण और राम का एक ही दिन में जन्म हुआ था रामनवमी केवल राम नवमी ही नहीं वह लक्ष्मण नवमी भी हैं। और कृष्ण बलराम में बलराम लगभग 1 वर्ष पहले जन्मे थे गोकुल में जन्म हुआ था बलराम का और कृष्ण ने जन्म लेते ही बलराम ही उन्हें मिलने के लिये आगए। जब वसुदेव वासुदेव नंदन को कारागार से बाहर निकलते ही वहां बलराम ने स्वागत किया अनंतशेष के रूप में और इस लीला में जन्म भी दो अलग-अलग स्थानों में हुआ है और आयु में भी अंतर है, नित्यानंद महाप्रभु लगभग 12 साल पहले जन्मे हैं और उनका मिलन भी यहां मायापुर में हुआ और अब से वह दोनों साथ में रहेंगे और अभी वह दोनों साथ में आए हैं तो फिर..... चैतन्य भागवत १.१ आजानुलम्बित - भुजौ कनकावदातौ सङ्कीर्तनैक - पितरौ कमलायताक्षौ । विश्वम्भरौ द्विजवरौ युगधर्मपालौ वन्दे जगत्प्रियकरौ करुणावतारौ ॥ अनुवाद:- मैं भगवान् श्री चैतन्य महाप्रभु और भगवान् श्री नित्यानन्द प्रभु की आराधना करता हूँ , जिनकी लम्बी भुजाएं उनके घुटनों तक पहुँचती हैं , जिनकी सुन्दर अंगकान्ती पिघले हुए स्वर्ण की तरह चमकीले पीत वर्ण की है , जिनके लम्बाकार नेत्र रक्तवर्ण के कमलपुष्पों के समान हैं । वे सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण , इस युग के धर्मतत्त्वों के रक्षक , सभी जीवात्माओं के लिए दानशील हितैषी और भगवान् के सर्वदयालु अवतार हैं । उन्होंने भगवान् कृष्ण के पवित्र नामों के सामूहिक कीर्तन का शुभारम्भ किया संकीर्तन आंदोलन अब शुरू होगा नित्यानंद और गौरांग महाप्रभु की बहुत सारी लीलाएं हुई है अब तक गोरा महाप्रभु की उम्र 20 साल की हैं ऐसा कहते तो नहीं लेकिन हमें कहना पड़ता है भगवान कभी 20साल के हो ही नहीं सकते। वह तो हम पूछते हैं अरे आपकी उम्र क्या है वह हमारे लिए है भगवान तो सच्चिदानंद है शाश्वत है इस प्रकट लीला में जब वह 20 साल के थे तब यह मिलन हुआ है और तब से फिर श्रीवास आंगन में संकीर्तन प्रारंभ होगा जो पंचतत्व में सदस्य हैं वह भी सब मिलेंगे जो संकीर्तन की भूमिका है अब वह दोनों गौर नित्यानंद बोल हरि बोल हरि बोल यह सब अब प्रारंभ होगा कई लीलाएं संपन्न होगी और फिर निमाई सन्यास भी होगा जब कटवा में हो रहा था तब वहां भी नित्यानंद महाप्रभु उपस्थित थे और जगन्नाथपुरी में सचिमाता के आदेशानुसार तब वह भी उपस्थित थे वैसे जगन्नाथ पुरी से चैतन्य महाप्रभु अकेले ही आगे बढ़ते हैं और नित्यानंद प्रभु जगन्नाथपुरी में रुक जाते हैं। चैतन्य महाप्रभु की अंतिम लीलाये जब प्रारंभ होती है, जगन्नाथपुरी में चैतन्य महाप्रभु राधा भाव में रहेंगे राधा भाव और राधा कृष्ण का मिलन होगा राधा कृष्ण की लीलाएं संपन्न होंगी तब जहां राधा और कृष्ण होते हैं तो वहां बलराम नहीं होते तो 1 दिन चैतन्य महाप्रभु ने बलराम को नित्यानंद महाप्रभु को बुलाया है। उनको आदेश दिया कि आप यहां क्यों मर रहे हो जाओ बंगाल जाओ प्रचार करो। सुनो सुनो नित्यानंद सुनो हरिदास सर्वत्र आमार आज्ञा कोरोहो प्रकाश प्रति घरे घरे गिया कोरो एई भिक्षा बोलो कृष्ण भज कृष्ण करो कृष्ण शिक्षा तुम बलराम हो अभी नित्यानंद बने हो गुरु तत्त्व हो जाओ प्रचार करो ऐसा कुछ बहाना बनाकर नित्यानंद प्रभु को वहां से भेज दिया है वृंदावन के द्वादश गोपों के साथ जो जो चैतन्य और नित्यानंद की लीलाओं में अलग अलग व्यक्तित्व है उनके साथ बंगाल के लिए प्रकट हुए हैं और दही चिड़ा महोत्सव संपन्न हुआ कहां पर पानी हाटी जगन्नाथ पुरी से सीधा गए पानीहाटी और वह जो नित्यानंद महाप्रभु और उनका दल जब कीर्तन कर रहा था अखंड कीर्तन सुबह और रात में अद्भुत वर्णन कीर्तन का है कीर्तन करते करते वह पेड़ पर ही चलते थे पेड़ की शाखाओं पर भी नाचते थे वहीं पर कृपा हुई रघुनाथ दास गोस्वामी के ऊपर........ निताइ-पदकमल, कोटिचन्द्र-सुशीतल, जे छायाय जगत्‌ जुडाय़। हेन निताइ बिने भाइ, राधाकृष्ण पाइते नाइ, दृढ करि’ धर निताइर पाय़ अनुवाद:- श्री नित्यानंद प्रभु के चरणकमल कोटि चंद्रमाओं के समान सुशीतल हैं, जो अपनी छाया-कान्ति से समस्त जगत्‌ को शीतलता प्रदान करते हैं। ऐसे निताई चाँद के चरणकमलों का आश्रय ग्रहण किये बिना श्रीश्री राधा-कृष्ण की प्राप्ति नहीं हो सकती। अरे भाई! इसलिए उनके श्रीचरणों को दृढ़ता से पकड़ो। नित्यानंद प्रभु की कृपा के बिना राधा कृष्ण पायते नाय श्री कृष्ण चैतन्यराधा कृष्ण नाही अन्य यदि हम को भी राधा कृष्ण की कृपा को प्राप्त करना है तो नित्यानंद महा प्रभु की कृपा के बिना गुरु की कृपा के बिना आदि गुरु की कृपा के बिना संभव नहीं है। नित्यानंद महाप्रभु बंगाल देश में प्रचार करेंगे ऐसे भी जब चैतन्य महाप्रभु के सन्यास के पहले प्रचार कर ही रहे थे उस दौरान उन्होंने जगाई मथाई का उद्धार किया हरिनाम का प्रचार किया जगाई मधाई का उद्धार किया और फिर जीव गोस्वामी भी आएंगे मायापुर वहां वह नित्यानंद प्रभु से मिलेंगे नित्यानंद प्रभु जी गोस्वामी को योगपीठ ले जाएंगे सचिव माता से परिचय कराएंगे जीव गोस्वामी का वहां सचि माता और विष्णु प्रिया भोजन बनाएगी नित्यानंद प्रभु और जीव गोस्वामी को भोजन खिलाएंगे और नित्यानंद प्रभु गोस्वामी को लेकर गए नवद्वीप मंडल परिक्रमा की जय सर्वप्रथम इस परिक्रमा के संचालक जो पहने वह नित्यानंद प्रभु ही थे जीव गोस्वामी को वहां की सभी लीलाएं बता रहे थे नित्यानंद महाप्रभु और उसी समय यह गोस्वामी से कहे थे क्या होगा यहीं पर होगा अद्भुत मंदिर का निर्माण और इसी मंदिर से गौरांग महाप्रभु की सेवा होगी जैसे श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की भविष्यवाणी थी.. पृथ्वीते आछे यत नगर आदी ग्राम । सर्वत्र प्रचार होइबे मोर नाम।। (चैतन्य चरितामृत मध्यलीला 25.264) अनुवाद : इस पृथ्वी के प्रत्येक नगर तथा ग्राम में मेरे नाम का प्रचार होगा । मेरे नाम का प्रचार सर्वत्र होगा नगर और ग्राम में होगा नित्यानंद प्रभु की भविष्यवाणी थी की जब लोगो को नाम प्राप्त होंगा तब नाम से धाम तक लोग नाम लेंगे फिर धाम आएंगे तब वहा मंदिर होना चाहिए।नित्यानंद प्रभु की भविष्यवाणी है यहां मंदिर बनेगा एक अद्भुत मन्दिर बनेगा। और फिर अंततः 500 वर्षों के बाद मंदिर बन रहा है प्रभूपादजी ने कई सारी योजनाएं बनाई है और फिर इतना ही नहीं 1972 में जब मायापुर का पहला उत्सव संपन्न हो रहा था उसी समय श्रील प्रभुपाद जी ने उसके निव उसकी भूमि पूजा उनके कर कमलों से किया है। हम भी मायापुर उत्सव में कई बार जाते थे कि मंदिर ऐसा होगा वैसा होगा इस प्रकार इसका डिजाइन होगा और फिर इसकी जगह भी बदली है 1977 में और बदल हुए थे जैसे-जैसे अधिक अधिक भूमि मंदिर को प्राप्त होने लगी तो स्थान भी बदल रहे थे तो अंततः जहां अब बन रहा है यह वैसे वही स्थान है जहां श्रील प्रभुपाद जी ने भूमि पूजन किया था वहां मंदिर का निर्माण हो रहा है और नित्यानंद महाप्रभु की भविष्यवाणी सच हो रही है नित्यानंद प्रभु की प्रसन्नता के लिए भविष्यवाणी सच होगी कि नहीं हरि बोल तो उसके लिए आपको भी कुछ करना होगा की होंगी यह कहने से हो जाएगा जमीन भी है डिजाइन भी हैं और हमारे अमरीश प्रभु भी है उन्होंने भी बहुत सारे धनराशि खर्च किया है अब हमारी बारी है आप सब की बारी है हम तो सन्यासी हैं हम खाली जेब लेकर हैं हम तो भिक्षुक हैं आप धनी हो गृहस्थ का धर्म है धन अर्जन करना बालिका गोपी वहां पाश्यात्य देश में धन अर्जन कर रही है अबू धाबी में यदि आपने अब तक संकल्प नहीं लिया है नित्यानंद प्रभु की आविर्भाव की चर्चा भी हो रही है मंदिर बन भी रहा है तो आप भी निमित्त बनिये इस संकल्प को पूरा करना है। समय ज्यादा बचा नहीं है पर और भी तो धनराशि की आवश्यकता है यदि आपने अब तक संकल्प नहीं लिया है तो संकल्प लीजिए और किस को सूचित करें अभी तो सारी बात नहीं बताएंगे यदि संकल्प लिया है तो संकल्प को पूरा करो धनराशि को भेजो मायापुर यदि संकल्प नहीं लिया है तो आज संकल्प लो मन ही मन में और सूचना दूर कि आप का संकल्प इतना है इतनी सारी योजनाएं हैं ऐसे सेवा ऐसे श्रद्धांजलि उचित होंगी आज के दिन नित्यानंद त्रयोदशी महोत्सव की नित्यानंद प्रभु के आविर्भाव के दिन संकल्प ले सकते हैं।

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