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09 जनवरी 2020 हरि बोल हरे कृष्ण हरि हरि क्या आप तैयार हैं? काफी ठंड हैं।सब ठंडे पड़ गए हैं।हरे कृष्ण।आप जप करिए।कीर्तन करिए और तैयार रहिए।हरे कृष्ण।हर स्थिती में जप करो। गृहे ठको, वाने ठको, सदा 'हरि' बोले डको, सुखे दुहखे भूलो ना'को, वडाने हरि-नाम कोरो रे" कुछ ब्रह्मचारी भी जप कर रहे हैं।अमरावती के,नागपुर के,भुवनेश्वर से भी,कई सारे मंदिरों के भक्त जप कर रहे हैं।यह हैं वन मे रहना,वह वन में रहते हैं या आश्रम में रहते हैं,मंदिर मे रहते हैं।वन में रहे,चाहे मंदिर में,चाहे आश्रम में रहे और आप में से कुछ भक्त घर में रहते हैं,आप गृहस्थ हो, आप जहाँ भी हो हर परिस्थिति में आप जप करिए। हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे गृहे ठको, वाने ठको, सदा 'हरि' बोले डको, सुखे दुहखे भूलो ना'को, वडाने हरि-नाम कोरो रे" इतना ही नहीं आगे भक्ति विनोद ठाकुर कहते हैं सुखे दुखे भूलो नको, वडाने हरि-नाम कोरो रे सुख में,दुख में तो थोड़ा करते ही है, दुख में तो याद आ ही जाती हैं, सुख में करे न कोय दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय। हरि हरि किंतु सुख में भी अगर हम दुख के समान भगवान को याद करेंगे तो दुख काहे का होए, दुख आएगा कहा से। जब सुख का समय आ जाता हैं तो प्रभु को भूल जाते हैं। हरि हरि और फिर उस तथा कथित सुख का परिणाम तो दुख में परिणत हो ही जाता हैं। हरि हरि। शीत आतप वात वरिषण ए दिन जामिनी जागि रे (भजहु रे मन भजन) तो उसी तरह मैं जब देख रहा था जगजीवन प्रभु नोएडा में और अधिकतर नार्थ इंडिया में,मैं तो यहाँ सोलापुर में पहुँच गया, नोएडा में हिटर चल रहे हैं, या कही कूलर, एसी चल रहा हैं,या पंखे चल रहे हैं। हरि हरि तो जप को तो छोड़ना नहीं हैं,जप का पीछा नहीं छोड़ना।पीछा नहीं छोड़ना मतलब जप भगवान हैं,तो जहाँ भी जप करेंगे वहाँ भगवान आ जाते हैं,भगवान ठंडी या गर्मी से डरते नहीं हैं। हरि हरि तो ये ठंडी या गर्मी, सुख या दुख, 2 दिन का मेला हैं।...ऐसा करके कुछ गीत हैं। ये ज्यादा समय टिकने वाला नहीं हैं।भगवद्धाम तो जाना ही हैं। कुछ दिन बाकी हैं या कुछ साल बाकी हैं। बस निश्चय कर लो कि जीवन के अंत में तो भगवद्धाम लौटना हैं। यहाँ वापस नहीं आना हैं।संसार बहुत हो गया।ऐसा ही प्रचार करो। श्रीमद्भागवत के पंचम स्कंध प्रथम अध्याय भवाटरी... भव अटरी,भव मतलब भव सागर और अटरी मतलब जंगल भवसागर मतलब फॉरेस्ट ऑफ एन्जॉयमेंट,अंग्रेजी में इस अध्याय को शीर्षक दिया गया हैं, फॉरेस्ट ऑफ एंज्वायमैंट या सांसारिक भोग।तो इस संसार में जीव भटकता हैं, भ्रमण करता हैं और परेशान ही होता हैं।जंगल में भटक रहा हैं, जंगल में हिंसक पशु भी होते हैं। भयानक पशु।हो सकता हैं हम सोलापुर को भी कहें,फॉरेस्ट ऑफ एन्जॉयमेंट, परंतु हर शहर ही फॉरेस्ट ऑफ एन्जॉयमेंट ही हैं।शहरो को कह सकते हैं कि यह कंक्रीट का जंगल हैं और यहाँ रहने वाले मनुष्य भी पशुवत ही हैं। भूखे भी रहते हैं और मांगते रहते हैं और भौंकने लगते हैं। जैसे हम अगर रास्ते से जा रहे हैं तो कुत्ता भोकने लगता है हमने उसका क्या बिगाड़े हमने उसका कुछ बिगाड़ा तो नहीं है वैसे ही मनुष्य भी हैं।वह भी भौंकने लगते हैं। हरि हरि। अच्छा वर्णन किया हैं।भागवत में भवाटरी का। आप लोग भी अनुभव करते ही हो।पढ़ोगे तो खुद ही अनुभव करोगे अरे!यही तो हैं, भवाटरी।हरि हरि। तो समाज को आप मानव तो कहते हो लेकिन अब दानव हो गया हैं।मानव नहीं रहे अब सब दानव ही हो गए हैं दानव ही है आसुरी प्रवृत्ति तो दानव की ही होती हैं। परेशान तो दानव करते ही हैं।परेशान करने वाला कोई भी हो सकता हैं।हो सकता हैं, घर वाले ही परेशान करते हो, बेटा भी परेशान कर सकता हैं, पत्नी कर सकती हैं, पति कर सकते हैं, कोई पड़ोसी कर सकता हैं। या हमारे साथ कार्य करने वाले लोग भी परेशान करते हैं।सरकार भी करती हैं,टैक्स के ऊपर टैक्स और फिर ये सब हमको रूलाते रहते हैं या रावण बन जाते हैं।राम के जमाने के रावण या मंदोदरी के रावण।उसको रावण ही इसलिए कहा क्योंकि उसके कारण लोग रोते थे,रावण बहुत परेशान करता था,सभी को रूलाता था इसलिए उसका नाम रावण पड़ा।एक जमाने में ऐसे मोटे मोटे रावणो कि संख्या कुछ कम हुआ करती थी,लेकिन साइज़ में बहुत बड़े थे। संख्या में कम थे। आज कल तो रावणों का आकार थोड़ा कम हुआ हैं, लेकिन संख्या बढ़ गई। घर घर में रावण हो गए। अब गलियों में भटक रहे हैं। हरि हरि।महात्मा गाँधी चाहते तो थे कि रामराज्य की स्थापना हो, लेकिन रावण राज्य की स्थापना स्थापना हुई।सभी लोग परेशान हैं, तो परेशानी का क्या कहना ŚB 12.3.51 कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति ह्येको महान् गुण: । कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसङ्ग: परं व्रजेत् ॥ ५१ ॥ तो इस संसार की जो परेशानियां हैं,दिक्कतें हैं,उलझने हैं,इसका वर्णन होता ही रहता हैं।मैं यह कहने ही जा रहा था कि अब एक और पुराण आएगा,कलि पुराण।वैसे तो 18 पुराण हैं।उसमें से भागवत एक पुराण हैं। इसी प्रकार कलि पुराण हैं। तो आजकल के जो अखबार हैं, यह भी एक पुराण हैं। कलि पुराण।कली का सारा कलह,कली के सारे झगड़े, दोष इसमे हैं और यह डेली बेसिस पर आपके घर पहुंच जाता हैं।आज की ताजा खबर।यह पुरान आपके सामने आपके द्वार पर आ जाता हैं। आज की ताजा खबर। विमान का आघात हुआ। ट्रंप ने क्या किया। किसी ने किसी की जान ली या आतंकवाद या हार्ट अटैक से कोई मर गया। इसी प्रकार के समाचार आते हैं।आत्महत्या भी,हाँ, हर दिन 300 लोग भारत में आत्महत्या करते हैं और कितने ही लोग एक्सीडेंट से मर जाते हैं।ऐसे ऐसे समाचार मिलते हैं। इस पूरे संसार का कचरा समाचार पत्र मे हम पढ़ते है और चाय पीते समय इस अखबार को पढ़ते हैं। ये सारी बैड मॉर्निंग न्यूस हैं।कहते तो गुड मॉर्निंग हैं,पर बैड न्यूज़ पढते हैं।आजकल तो ब्रेकिंग न्यूस, ब्रेकिंग न्यूस कहते रहते हैं।पहले दो दिन में एक ही बार अखबार आता था। समाचार एक ही बार मिलता था।अब तो हर क्षण, हर कुछ 5-10 मिनट के बाद में,ब्रेकिंग न्यूस,24 घंटे ब्रेकिंग न्यूस और उस न्यूज़ में से एक भी न्यूस स्फूर्ति देने वाली या उत्साह देने वाली उत्साहवर्धक या गुड न्यूस या शुभ समाचार तो होता ही नहीं हैं। हरि हरि। तो इसलिए शुकदेव गोस्वामी ने कहा हैं, ŚB 12.3.51 कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति ह्येको महान् गुण: । कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसङ्ग: परं व्रजेत् ॥ ५१ ॥ कलियुग मे संसार में कलह होंगे,दोष का खजाना होगा,भंडार होगा। तो सारे दोष अखबार के माध्यम से या दूरदर्शन के माध्यम से या मीडिया से आ जांएगे।मीडिया फीवर।जैसे लोगों को यह अखबार पढ़ पढ़ कर बुखार आ जाता हैं और परेशान होते हैं। कईयों को ऐसे विचार भी आ जाते हैं। जैसे हम सिनेमा देखते हैं,सिनेमा देखना भी एक माध्यम हैं। उसमें कलियुग के सारे दोष दिखते हैं,हम जैसी सिनेमा देखते हैं, वैसे ही विचार हमें आते हैं*** और यह चलता रहता हैं, यही बिज़नेस होता हैं,यह व्यापार होता हैं। काम और क्रोध का व्यापार। हीरो काम और क्रोध ही तो दिखाता हैं। ध्यायतो विषयान्पुंस: सङ्गस्तेषूपजायते | सङ्गात्सञ्जायते काम: कामात्क्रोधोऽभिजायते || 62|| (भगवद्गीता 2.62) हम वही देखते हैं और फिर उस हीरो के फैन बन जाते हैं और फिर बोलते हैं कि मैं उसका फैन हूँ या कोई खिलाड़ी हैं,तो कोई उसका फैन बन जाता हैं, तो कोई उसको हीरो समझता हैं। फैन बन जाता हैं।और फिर वैसी नकल करते हैं। हरि हरि फ़िल्म में भी वही सेक्स एनड वायलेंस*** काम और क्रोध। इसी प्रकार बलात्कार का कार्य भी चलता हैं। इतनी सारे बलात्कार हो रहे हैं। लोगों को फिर अचरज होता है कि इतने क्यों बलात्कार हो रहे हैं बलात्कार नहीं होने चाहिए।यह तो मूर्खता हैं। सरकार, बॉलीवुड ,इंटरनेट सब लोग मिलकर के इसका प्रचार कर रहे हैं। बढ़िया कैमरे आ गए हैं। टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके, तकनीक का इस्तेमाल करके, यह सब जो दिखाते रहते हैं,इसका असर ही तो हैं यह बलात्कार होना, तो नियम तो सीधा सा हैं। ध्यायतो विषयान्पुंस: सङ्गस्तेषूपजायते | सङ्गात्सञ्जायते काम: कामात्क्रोधोऽभिजायते || 62|| (भगवद्गीता 2.62) ऐसा नियम है और नियम के अनुसार ही सब कुछ होता है जो यह बलात्कार बढ़ रहे हैं। तो फिर कहते रहते हैं कि उनको फांसी दो, उनको फांसी दो। किस-किस को फांसी दें? सभी को फांसी देनी चाहिए। तो इतना बढ़ावा इन काम और क्रोध के लिए हो रहा हैं।काम के जो बीज हैं, काम के जो विचार हैं, उसका इतना ज्यादा प्रचार और प्रसार हो रहा हैं। तो यह जो बैड न्यूज़ हैं, इसका प्रचार प्रसार करने की क्या आवश्यकता हैं? हम संसार भर की अशुभ खबरें या समाचारों को देखते सुनते रहते हैं और अपने मन को कचरा पेटी बनाते रहते हैं। जैसे कचरे का डिब्बा होता हैं। उसमें सारे घर का या घर के बाहर आंगन का कचरा डाला जाता हैं और रास्ते का भी कचरा डाला जाता हैं। उसको डस्टबिन कहते हैं और हम भी संसार भर का कचरा, सारे अशुभ समाचारों को अपने मन की पेटी खोलकर उसमें डाल देते हैं।हम बैड न्यूज़ को देखते हैं या सुनते हैं या पढ़ते हैं और मन में रख लेते हैं। हरि हरिस्वच्छ भारत स्वच्छ भारत करते तो रहते हैं लेकिन स्वच्छ मन नही हैं और होगा भी तो कैसे जब इस प्रकार के सारे समाचार हम सुनते भी हैं, सुनाते भी हैं, दिखाते भी हैं।यह ख़बरें तो बच्चे भी, छोटे बच्चे भी सुनते रहते हैं। यहां तो छोटे बच्चे भी यह जप चर्चा सुन रहे हैं, शुभ समाचार सुन रहे हैं।लेकिन आजकल संसार में बच्चों के लिए कितने सारे गेम्स हो गए हैं,कितने सारे कंप्यूटर गेम्स हैं। हरि हरि। इसलिए सारा संसार बिगड़ रहा हैं। परेशान हैं।तो आप सबको ऐसे संसार को सुधारना होगा।यहा सोलापुर का एक बच्चा बिगड़ा हुआ था। दुनिया ने बिगाड़ा। कौन बिगाड़ देता हैं? घरवाले बिगाड़ते हैं। पड़ोसी बिगाड़ते हैं।सरकार बिगड़ती हैं। बॉलीवुड बिगाड़ता हैं।आज कल के साइंटिस्ट, वैज्ञानिक ये हम सब को बिगाड़ते हैं।यह हम सबको बिगाड़ रहे हैं। वैसे ही एक बालक को समाज ने बिगाड़ा था। कोई आतंकवादी बनता हैं, तो समाज ने ही तो उसको बनाया हैं या जिसने भी बनाया हैं,इसी समाज का हिस्सा हैं। हरि हरि तो एक बालक की कहानी बता रहा हूं। बालक तो नहीं रहा, बड़ा हो गया।सुदर्शन चक्र प्रभु हो गये।वह एक समय बिगड़ा हुआ बालक था। कुछ गलत कार्य करके जब वह घर पहुंचा यह प्रभु खुद ही अपनी कहानी बता रहे थे कि जब वह बचपन में एक गलत कार्य कर के घर पहुंचे तो जब उनकी मम्मी को पता चला तो, यह सुदर्शन प्रभु अभी-अभी हमारे शिष्य बने हैं कल तो उनका सादर सत्कार हुआ और उनका सम्मान हुआ अब वह न्यायाधीश बन गए हैं हरे कृष्णा न्यायाधीश और वह कह रहे थे कि मैं न्यायाधीश की कुर्सी पर तिलक पहनकर न्याय दूंगा तो उनको जब हमने कहा कि 2 शब्द कहिए तब उन्होंने बताया कि मैं तो एक बिगड़ा हुआ बच्चा था मैं ही अन्याय करता था। अब तो न्यायाधीश बन गया।पहले अन्याय करता था, मैं पाप करता था।तो वह जब एक दिन गलत काम करके घर पहुंचे और जब मम्मी को पता चला तो मम्मी ने उन्हें खूब डांटा फटकारा और पीटा भी और फिर अगले चार-पांच दिन मम्मी ने उनसे कोई बात ही नहीं की, तो वो कह रहे थे कि उस वक्त उम्र में छोटे ही थे ,तो छोटे बालक का मम्मी के बिना, जीना तो क्या जीना। हर समय यही रहता है बालकों को की मम्मी चाहिए मम्मी चाहिए लेकिन मम्मी तो बात ही नहीं कर रही थी तो फिर उन्होंने सोचा कि मैं कैसे सुधर सकता हूँ, ताकि फिर मम्मी मुझ से प्रसन्न हो तो फिर वो बच्चे, जो भी नाम था उनका उस समय सोच रहे थे कि क्या करा जाए, क्या करा जाए।तो हरे कृष्ण भक्त के संग में आए ।हरे कृष्णा मंदिर में भी गए,खोजते खोजते ,सोचते सोचते कि कैसे मैं सुधर सकता हूँ।उस समय मैं छोटा ही था,नटखट प्रवृत्ति थी तो कैसे अच्छा बन सकता हूँ।हरि हरि। मैं समाज का कुछ शोषण कर रहा था,पर अब समाज का कैसे पोषण कर सकता हूँ।तो हरे कृष्ण भक्तों ने फिर उनको समझाया बुझाया और वो समझ गए।तो हरे कृष्ण भक्तों ने यह भी कहा कि चार नियम का पालन करना होता हैं। चार नियम का पालन करो। इससे पाप छूट जाता हैं।भक्त पाप नहीं करते हैं, फिर बताया उनको कि चार कौन से महापाप हैं। मांस भक्षण ,नशापान,परस्त्रीगमन और जुआ खेलना।फिर उस बालक ने स्वीकार कर लिया की मैं भी नियमों का पालन करूँगा।फिर हरे कृष्ण के भक्तों ने उनके गले में कंठी माला बांध दी और कंठी माला पहन के जब वे घर लौटे तो मम्मी बहुत खुश हो गई,उन्हे गले लगाया और फिर बात करना तो क्या, खूब बातें करी।पहले तो बात ही छोड़ दी थी। बोल भी नहीं रही थी। लेकिन अब समझ गई कि मेरा बच्चा सुधार गया हैं और फिर उस बालक कि मम्मी पथ प्रदर्शक गुरु बन गई,मार्गदर्शन किया। उनकी जो अपेक्षा थी वह पूरी हुई।मम्मी जो चाहती थी कि तुम ऐसे बनो,इस नाव पर मत चलो, इस मार्ग पर मत चलो, इस मार्ग पर चलो। सदाचारी बनो।तो वो पथप्रदर्शक गुरु बन गई।जो मंदिर के भक्त थे, वह गृहस्थ भी हो सकते हैं या फुल टाइम तो वो बन गए उसके शिक्षा गुरु।उन्होंने उसको शिक्षा दी। उसको प्रभुपाद के ग्रंथ पढने के लिए मार्गदर्शन दिया और फिर उन्होंने एक और कदम उठाया। मेरे से दीक्षा भी ग्रहण कर ली,तो मैं उनका दीक्षा गुरु बन गया। इस प्रकार अलग अलग गुरुओं ने अपना फर्ज निभाया।वैसे धुव्र महाराज के लिए भी सुनीति पथ प्रदर्शक गुरु बनीं जब वो बालक थे जो परेशान थे ।क्योंकि उनकी सौतेली मां ने उन्हें कहा था कि तुम पिता की गोद में नहीं बैठ सकते। तुम्हें बैठने का अधिकार नहीं हैं, ऐसा कहा तो धुव्र बहुत दुखी थे, परेशान थे। तो ध्रुव महाराज ने विचार किया कि मैं अपने पिता से भी ऊंचा राज्य प्राप्त करना चाहता हूं, कौन मुझे देगा। उसकी मम्मी ने कहा था की भगवान ही दे सकते हैं। ऊपर वाला ही दे सकता हैं। तो फिर ध्रुव महाराज ने पूछा कि कहाँ मिलते हैं भगवान ?उनकी मां ने कहा कि ऋषि मुनि तो भगवान को ढूंढने वन में जाते हैं और वन में रहकर भगवान को खोजने के लिए तपस्या करते हैं, इतना सुनते ही बालक ध्रुव ने महल छोड़ दिया। वन का रास्ता पकड़ा और वो फिर वृंदावन पहुँच गए और जब वो भगवान की खोज में थे,तो जब व्यक्ति भगवान की खोज में होता हैं,तो उसकी सहायता के लिए भगवान व्यवस्था करते हैं ।मार्गदर्शक को भेजते हैं ।उन्होंने नारद मुनि को भेजा।नारद मुनि को भेजने वाले भगवान ही हैं । नारद मुनि ने फिर उनको आदेश और उपदेश सुनाए और वन में धुव्र महाराज को भगवद प्राप्ति हुई।उन्होंने केवल छह महीनों में भगवान को प्राप्त कर लिया। ओम नमो भगवते वासुदेवायः इस मंत्र का ध्यान, इसका जप करते हुए वह तपस्या कर रहे थे। तो भगवान आ गए। हरि आ गए।तो ये जो कली का जो ज़माना हैं,इसमें दोष भरे पड़े हैं। इसके कारण सारा संसार परेशान हैं।सारा संसार चिल्ला रहा हैं।हाहाकार मचा हुआ हैं। लोग पीसे जा रहे हैं। ये जन्म, मृत्यु या व्याधि तो हैं ही।आदि देविक, आदी भौतिक,आदि आत्मिक और भी कष्ट हैं।आदि आत्मिक हैं मानसिक दुख,मानसिक रोग भी आदि आत्मिक दुख हैं।मतलब शरीर और मन से। मतलब बीमारियां बढ़ रही है मतलब आदि आत्मिक।आधिभौतिक मतलब और जो लोग हैं, जन्म,मृत्यु जरा व्याधि के अलावा और तीन प्रकार के दुख हैं जिनको तापत्रय कहते हैं, शरीर को होने वाले कष्ट बढ़ रहे हैं। कलयुग में मानसिक रोग भी बढ़ रहे हैं। अगर शरीर में कोई रोग हो तो उसे व्याधि कहते हैं और अगर मन में कोई रोग होता हैं, तो शास्त्रों में उसे आधी कहते हैं, मतलब मानसिक रोग। एक स्थूल हैं, जो शरीर में होता हैं और सूक्ष्म रोग मन में होता हैं और यह मानसिक रोग अधिक परेशान करता हैं। लोग जो आत्महत्या करने के लिए तैयार होते हैं, वह व्याधि के कारण तो बहुत कम होते हैं, आधी के कारण होते हैं। मन में जो कष्ट होता हैं या परेशानी होती हैं उसके कारण लोग आत्महत्या करते हैं।यह रोग हैं, आदि आत्मिक रोग। आदि भौतिक वह हैं, जो आसपास के लोगों के कारण होते हैं। पड़ोसी के कारण भी हो सकते हैं या जिनके साथ व्यापार करते हैं वह हो सकते हैं, सरकार हो सकती हैं और आदि दैविक,देवताओं के कारण होती हैं, क्योंकि अगर हम उनके कोई यज्ञ वगैरह नहीं करते हैं,तो जैसे अकाल पड़ता हैं, आदि दैविक मतलब भगवान को भी अगर प्रसन्न नहीं कर रहे हैं तो यह कष्ट मिलते हैं।भगवान को प्रसन्न करेंगे तो देवता तो स्वयं ही प्रसन्न हो जाएंगे। हम ना तो भगवान कृष्ण को प्रसन्न करते हैं ना ही देवताओं के लिए कुछ करते हैं। भगवान के लिए अगर कुछ नहीं करोगे तो भगवान तो सहन कर लेते हैं ,लेकिन अगर देवताओं के लिए कुछ नहीं करोगे तो रोष का प्रदर्शन होगा। एक समय नंद महाराज ने कृष्ण के कहने पर इंद्र की पूजा बंद कर दी थी, तो हम सब जानते ही हैं कि वह कितना रुष्ट हुए । इतनी सारी वर्षा भेज दी संवर्तक बादल भेजें और बहुत परेशान किया। तो आदि दैविक से कभी अतिवृष्टि होती हैं, तो कभी वृष्टि होती ही नहीं हैं। मौसम में बदलाव होता रहता हैं और पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा हैं, इसीलिए जो बर्फ हैं, वह पिघल रही हैं और उसका सारा जल समुद्र में आ रहा हैं। समुद्र की वाटर लेवल बढ़ रही हैं और जो छोटे छोटे द्वीप हैं, वह डूब रहे हैं। समाचार आ रहा हैं कि धीरे-धीरे मुंबई की जल समाधि होने वाली हैं। जो आईलैंड पर हैं उन्हें आईलैंड छोड़ना पड़ेगा या फिर मरना पड़ेगा। ऐसी स्थिति हम लोगों ने ही निर्माण की हैं। पृथ्वी का जो हम शोषण कर रहे हैं उसी के कारण यह सब हो रहा हैं। हरि हरि। आदि देविक, आदि भौतिक और आदि आत्मिक तीन प्रकार के क्लेश हैं, यह तीनों बढ़ रहे हैं और कलयुग में और भी बढ़ने वाले हैं, इसलिए जल्दी से जल्दी यहां से निकलने की सोचो। भगवान के धाम में जाकर ही हमें आराम मिलेगा। यह दुनिया हमें चैन से जीने नहीं देगी। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे कहां गया है हरेर नाम एव केवलम ŚB 12.3.51 कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति ह्येको महान् गुण: । कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसङ्ग: परं व्रजेत् ॥ ५१ ॥ आज का जप टॉक काफी लंबा भी हो गया हैं। आजकल लंबे हो रहे हैं।मुझे इतना लम्बा नहीं करना चाहिए, लेकिन आप जब मेरे सामने बैठेते हो और भी लोग जब आकर बैठते हैं, तो जपा टाक नही प्रवचन हो जाता हैं।तब छोटी चर्चा नहीं रहती बल्कि लंबी हो जाती हैं। आप लोगो को देख के दया आ जाती हैं। तो हरे कृष्णा हरे कृष्णा ही सोल्यूशन हैं। उपाय हैं। हमारे विचारों में क्रांति होगी, जब हम जप करते करते सदाचारी बनेंगे और औरों को परेशान नहीं करेंगे और भी बहुत कुछ उपाय हैं। हरे कृष्णा हरे कृष्णा भी एक उपाय हैं।हरे कृष्णा जपो और प्रसन्न रहो और इसी जप का आप प्रचार करो जारे देखो तारे कहो कृष्ण उपदेश। आप प्रचार करो। लोगों को अच्छी न्यूज़ बताओ।ये हरी कृष्णा गुड न्यूज हैं। भगवद्गीता में गुड न्यूज़ हैं। भागवत में गुड न्यूज़ हैं। रामायण में भी गुड न्यूज़ हैं। इसमें भगवान का लीला समाचार हैं। ठीक हैं। आपमें से कईयों ने गीता का वितरण किया हैं।कल स्कोर भी पढ़ रहे थे ,आपको सुना भी रहे थे।आप सभी ने जो किया है उससे भी मैं प्रसन्न हूँ ,आपने भगवान को प्रसन्न किया तो मैं भी प्रसन्न हो गया ।इस प्रकार ऑन डेली बेसिस ये गीता का वितरण,हरि नाम का वितरण ,यह शास्त्र का वितरण, या कोई उत्सव हैं तो इस्कॉन मंदिर में जाना हैं।पुस्तक वितरण हैं या नगर संकीर्तन हैं, तो आप इसी में थोड़ा अधिक व्यस्त हो जाइए, परिवार की देखबाल में को सादा जीवन करिए, कम खर्चीला जीवन बनाएँ। समय की थोड़ी बचत करो। ज्यादा धन कमाना चाहते हो फिर तो मरने के लिए समय नहीं हैं। धन कमाने में ही सारा समय बीत रहा हैं। घर को कम्फर्ट ज़ोन बनाना चाहते हैं फिर तो सारी सुख सुविधा चाहिए, इसके लिए धन चाहिए, धन कमाते कमाते फिर जप के लिए समय नहीं हैं। जप भी कर रहे हैं तो दिमाग में व्यापार,धन चलता हैं। उसी मे फंसे रहते हैं और फिर प्रचार करने के लिए समय नहीं हैं, गीता वितरण करने के लिए समय नहीं हैं, नगर संकीर्तन में जाने के लिए समय नहीं हैं, मंदिर में जाने के लिए समय नहीं हैं, क्योंकि हमारा जो जीवन हैं वह उच्च जीवन हो गया हैं। तो लिविंग को थोड़ा सिंपल लिविंग करो। सिम्पली लिविंग के लिए कम धनराशि में काम बनता हैं। काफी कम धनराशि इकट्ठा करने के लिए समय भी कम लगेगा। फिर समय की बचत होगी।और फिर उस समय का उपयोग अपनी साधना के लिए ,साधना भक्ति के लिए और सेवा के लिए करना हैं। प्रचार के लिए, समाज का सुधार करना हैं। देश की सेवा करनी हैं। मानव जाति की सेवा करनी हैं। हरे कृष्ण भक्तों को परमार्थ का कार्य करना हैं। हरि हरि।वासुदेव कुटुम्बकम।हमारा परिवार छोटा नहीं हैं। हम दो हमारे दो नही। या यह नही कि हमारा एक ही हैं या एक ही बच्ची हैं हमारी।फिनिश। औरों से हमें कोई लेना देना नहीं हैं। उनको मरना हैं, तो मरने दो। लेकिन हरे कृष्ण भक्त, भगवान के भक्त ऐसे नहीं होते। उच्च विचार, उच्च विचार इसी को कहा हैं। भगवान जैसी सोच। जैसे भगवान सोचते हैं, ऐसे ही भक्तों को सोचना चाहिए। तो वासुदेव कुटुम्बकम। इस पृथ्वी पे जितने लोग हैं, वह मेरा परिवार हैं। उनके सुख दुख में हमें भी सम्मिलित होना चाहिए। भक्त कैसे हैं? पर दुख: दुखी - करुणा ये भक्तों का लक्ष्णन हैं। साधु के आभूषण हैं। साधु के लक्षण हैं। ये जो गुण हैं। कई सारी बातें हैं। अब यही रुक जाते हैं और बातें कल करेंगे।आप दिन में थोड़ा सा होमवर्क कर लीजिए। जो बताया उस पर थोड़ा अमल करिए। ठीक हैं। धन्यवाद हरे कृष्ण

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