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आज २५० प्रतियोगी इस कांफ्रेंस में सम्मिलित हुए हैं। हम आप सभी का स्वागत करते हैं। इस जप सत्र के माध्यम से हम सभी एक साथ आते हैं। श्यामसुंदर प्रभु यहाँ नागपुर में हैं और उनका पुत्र ऑस्ट्रेलिया में जप कर रहा हैं , परन्तु मैं इन दोनों को यहाँ स्क्रीन पर पास पास देख रहा हूँ।
हरिनाम स्वयं कृष्ण हैं। यहाँ भगवान् कृष्ण केंद्र मैं हैं और हम सभी उनके चारों ओर बैठे हैं , ऐसा मेरा अनुभव हैं। इसी प्रकार एक दिन आप सभी को जप करते हुए देखकर मुझे विराट रूप का स्मरण हुआ। सम्पूर्ण विश्व के अलग अलग भागों से भक्तों को मैं यहाँ एक ही स्क्रीन पर एक साथ देख सकता हूँ। कहीं कहीं अभी वातावरण उष्ण (गर्म ) हैं और कहीं शीत हैं , भक्त पूर्ण रूप से गरम कपड़े पहने हुए हैं और उनके पास कमरे को गर्म रखने के लिए हीटर भी लगा हैं। मौसम की परवाह किये बिना शीत या उष्ण में भी भक्त जप कर रहे हैं। सभी भक्त - बालक और बालिकायें , युवा और वृद्ध , पुरुष और स्त्रियां इस कांफ्रेंस में जप कर रहे हैं। सांगली स्थित विश्राम बाग़ गुरुकुल से नन्हे विद्यार्थी भी जप कर रहे हैं। इस प्रकार इस कांफ्रेंस में सभी व्यक्ति भाग ले सकते हैं। श्रील प्रभुपाद कहते थे कि यहाँ तक कि इसमें एक श्वान भी भाग ले सकता हैं। भारतीय और तथाकथित विदेशी एक साथ जप कर रहे हैं, परन्तु हमें इस बात का स्मरण रखना चाहिए कि यहाँ हम सभी विदेशी हैं। हमें सदैव स्मरण रखना चाहिए कि हरिनाम स्वयं कृष्ण हैं। यह हरिनाम कोई मत , या अनिश्चित तत्व नहीं हैं न ही यह कोई प्रकाश या निराकार ध्वनि हैं , यह हरिनाम स्वयं कृष्ण हैं। इस प्रकार कृष्ण हमें एक साथ ला रहे हैं और एक संग में बाँध के रख रहे हैं। वैराग्य रूपिणी माताजी वृन्दावन से जप कर रही हैं और उनकी माताजी पुणे से इस कांफ्रेंस के माध्यम से जप कर रही हैं। जो परिवार एक साथ प्रार्थना करता हैं वह सदैव एक साथ रहता हैं।
मॉरिशियस में अभी चक्रवाती तूफ़ान आया हुआ हैं , परन्तु भक्त अभी भी जप कर रहे हैं। हम प्रार्थना करते हैं कि मॉरिशियस द्वीप में यह तूफ़ान शीघ्र ही शांत हो जाए और किसी को कोई हानी न हो। भक्त चक्रवाती तूफ़ान में भी दिव्य बने रहते हैं। जैसा कि मैं देख सकता हूँ लगभग १५ - २० भक्त अभी मॉरिशियस से हमारे साथ प्रसन्नता पूर्वक जप कर रहे हैं। सामान्य वातावरण या चक्रवाती तूफ़ान , भक्त इससे विचलित नहीं होते। आप सभी सांसारिक विचारों , परीक्षणों , और भौतिक प्रकृति के क्लेशों से परे दिव्य प्रकृति में स्थित हैं। जैसा कि मैं बता रहा था - उष्ण या शीत , बालक या बालिका , युवा अथवा वृद्ध इससे फर्क नहीं पड़ता हैं क्योंकि अंततः हरिनाम तो आत्मा द्वारा लिया जाता हैं। वास्तव में आत्मा ही जप करती हैं अतः हम किस शरीर में हैं उससे कोई फर्क नहीं पड़ता हैं। अभी हम सभी दिव्य आत्माएं हैं। हमें निरंतर जप करते हुए इस बात का एहसास होना चाहिए कि हम यह शरीर नहीं अपितु दिव्य आत्मा हैं , हम भगवान कृष्ण के दास हैं। जब हम हरे कृष्ण का जप करते हैं तो हम कृष्ण के साथ रहते हैं , उनके समीप रहते हैं और यही वह सत्य हैं जिसे हम भूल चुके हैं।
जैसा कि श्री चैतन्य महाप्रभु ने भविष्यवाणी की थी , यह हरिनाम अब सभी नगरों , सभी कस्बों , सभी गावों , सभी घरों और सभी जीवों तक पहुँच रहा हैं। यह भगवान का आदेश हैं कि हमें अधिक से अधिक जीवों तक यह हरिनाम पहुंचाना हैं। जारे देखो तारे कहो कृष्ण उपदेश (चैतन्य चरितामृत मध्य लीला ७. १२८) , यदि आप ऐसा करते हैं तो भगवान अवश्य प्रसन्न होंगे।
मेरे मस्तिष्क में अभी बहुत सारी चीजें आ रही हैं जिनकी हम चर्चा कर सकते हैं। हमारा सम्बन्ध न केवल भगवान कृष्ण से ही हैं अपितु हमारा भक्तों के मध्य भी पारस्परिक सम्बन्ध हैं। कृष्ण केंद्र में हैं और तब हमारा एक दूसरे के साथ पारस्परिक सम्बन्ध हैं। एक जीव का अन्य जीव के साथ सम्बन्ध हैं , और इस प्रकार भगवान कृष्ण से निर्गत होने वाले सभी जीवों के साथ हमारा पारस्परिक सम्बन्ध हैं। हरे कृष्ण का जप करने से हमारा भगवान कृष्ण के साथ और अन्य जीवों के साथ विस्मृत हुआ सम्बन्ध पुनर्जीवित होता हैं। अतः अभी हमारे जो सम्बन्ध हैं यथा पति - पत्नी , पुत्र - पुत्री , माता - पिता ये सम्बन्ध सदा रहने वाले नहीं हैं। ये बनते हैं और फिर टूट जाते हैं , और ऐसा अनेक बार हुआ हैं। हरे कृष्ण का जप करने से हमारा भगवान के साथ और भक्तों के साथ जो दिव्य सम्बन्ध हैं वह पुनर्जीवित होता हैं, और हमें उस सम्बन्ध के विषय में सोचना चाहिए। यह नष्ट होने वाले रिश्ते अत्यंत दुखद होते हैं। पहले हम एक होते हैं और फिर कई कारणों से अलग हो जाते हैं, और जब हम अपना शरीर छोड़ते हैं तब सब कुछ नष्ट हो जाता हैं। हम न तो पति - पत्नी रह जाते हैं , न ही पुत्र - पुत्री और न ही अन्य कोई सम्बन्धी। अस्थायी रूप से हम आते हैं और चले जाते हैं। हम इस जगत में कुछ दिन , कुछ महीने , कुछ वर्ष या एक जीवन काल रहते हैं और फिर एक दिन नष्ट हो जाते हैं। परन्तु , हरे कृष्ण के जप से हम इस भौतिक प्रकृति , दोहरे स्वभाव , और क्षणिक संबंधों को पार कर जाते हैं , और अंत में हमारे दिव्य सम्बन्ध में पूर्णरूपेण स्थिर रहते हैं।
प्रत्येक वस्तु "सम्बन्ध " से प्रारम्भ होती हैं। उसके पश्चात "अभिदेय " अर्थात जब हम सम्बन्ध में घुलते मिलते हैं और व्यावहारिक सम्बन्ध बनाते हैं तत्पश्चात " प्रयोजन " - भगवद प्रेम को प्राप्त करना। हमें यह नहीं भूलना चाहिए की जब हम कृष्ण - प्रेम प्राप्त करते हैं तब हमें भक्त - प्रेम भी प्राप्त होता हैं। अतः आइये हम अन्य भक्तों , अन्य जीवों के साथ प्रेम रुपी सम्बन्ध स्थापित करें जिससे अंततः हमारा भगवान कृष्ण के साथ प्रेम का सम्बन्ध स्थापित हो। ऐसा नहीं हो कि आप केवल कृष्ण के साथ अपने सम्बन्ध के विषय में ही सोचें और अन्य भक्तों के सम्बन्ध के विषय में विचार न करें। नहीं तो हम कनिष्ठ अधिकारी - तृतीय श्रेणी के भक्त , ही बने रहेंगे। कनिष्ठ केवल भगवान की सेवा और उन्हें ही प्रसन्न करना चाहते हैं, जो सर्वोत्तम करणीय कार्य नहीं हैं। केवल ऐसा ही करने से व्यक्ति तृतीय श्रेणी अथवा निम्न श्रेणी में आता हैं। परन्तु भगवान और उनके भक्तों की सेवा करने से व्यक्ति मध्यम अधिकारी बनता हैं और फिर क्रमशः उत्तम अधिकारी की ओर अग्रसर होता हैं , जो हमारा लक्ष्य हैं।
आपको भौतिक जगत के तीनों गुणों के विषय में जानकारी होगी - रजो गुण विभाजन करता हैं ,सतो गुण एक साथ करता हैं और शुद्ध सतो गुण हमें सदा के लिए एक साथ लाता हैं। मैंने अभी जो कहा कृपया उस पर विचार और चिंतन कीजिये।
हरे कृष्ण ……..