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जप चर्चा, 5 मार्च 2021, पंढरपुर धाम. हरे कृष्ण, 76० स्थानों से भक्तगण जप कर रहे हैं । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। *गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल! * श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर आविर्भाव तिथि महोत्सव की जय! आविर्भाव तो कुछ दिन पहले हुआ था पंरतु हम यह कह सकते हैं कि जब भी हम उनका गुणगान गाते हैं, बोलते हैं या स्मरण करते हैं तो उनका आविर्भाव हो जाता है। हमारी प्रार्थना हैं कि हमारे जीवन में वह अर्विभूत हो, एक दिन के लिए नहीं बल्कि प्रतिदिन, प्रातः स्मरणीय रहें और फिर मेरे लिए तो श्रील प्रभुपाद आध्यात्मिक गुरु तो श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर आध्यात्मिक गुरु के गुरु। पहले पिता और फिर कौन होते हैं? दादा। grand मतलब बड़ा, महान। मेरे लिए श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर grand spiritual master, और आपके लिए great grand spiritual master। ऐसा स्थान है श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर का। मैं भी अभी कुछ कहना, श्रवण कीर्तन करना, उसके साथ स्मरण करना प्रारंभ कर रहा हूं। वह थोड़े समय के लिए चलेगा, फिर आपकी बारी। आप में से जो उत्कंठित है, उत्साही है,अधिकारी हैं, श्रील भक्तिसिद्धांता सरस्वती ठाकुर के गुणगान गाने के अधिकारी है। आप भी तैयार रहो। हमने कहा था आप तैयारी करके आना। आशा है आपने गृहपाठ किया होगा आप लोग बोलोगे। इस्कॉन पंढरपुर के भक्त भी सुन रहे हैं। उसमें से जो मंदिर में रहने वाले भक्त हैं, वैसे भी सुना सकते हैं, बोल सकते हैं। और हमारे जो गृहस्थ भक्त समुदाय है उनका भी स्वागत है बोलने के लिए। संक्षिप्त में बोलना है। श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर क्या कहना है, मतलब बहुत कुछ कहना है या फिर कहने के लिए हम समर्थ ही नहीं है। वैसे भक्त कभी कभी कहते रहते हैं, सूर्य को अगर एक दीयेसे आरती दी जाए, तो क्या मूल्य है, कीमत है उस दीपक के प्रकाश की सूर्य प्रकाश के समक्ष। वैसी ही कुछ तो बात है। हरि हरि, कहां श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर और कहां हम। अच्छा होता कि हम भी उच्च होते। वैसे यह अभी कहां है "serving great you become great" महान व्यक्ति की सेवा या संग या उनके विचारों को समझना उस के साथ हमारी भी महत्ता महिमा कुछ बढ़ जाती है। हरि हरि और फिर श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर सारा भारत और भारत के देशवासी कहो या देश के नेता कहो, अंग्रेज का जमाना था ब्रिटिशराज था। और भारत छोड़ो के नारे लग रहे थे पूरे भारतवर्ष में। देश को मुक्त करना है। किंतु श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर उसमे ज्यादा रुचि नहीं ले रहे थे। अभय बाबू भी जब मिले 1922 में श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर से तो उन्होंने कहा पहले देश को स्वतंत्र करना होगा। तो श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर ने कहा यह महत्वपूर्ण नहीं है। इससे भी और महत्वपूर्ण है, अधिक महत्वपूर्ण है जीव को माया के चंगुल से मुक्त करना। यह राजनेता आएंगे और जाएंगे। राजनीति की पद्धति में परिवर्तन होते ही रहेंगे। कभी ब्रिटिश राज और फिर कभी इंदिरा राज कुछ ज्यादा फर्क नहीं। वैसे तो ज्यादा फर्क पड़ना चाहिए, लेकिन अधिकतर रामराज नहीं होते रावण राज ही होता है। इसीलिए ज्यादा अंतर नहीं है। श्रील भक्तिसिद्धांता सरस्वती ठाकुर व्यस्त थे श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु के वाणी का प्रचार गौरवाणी का प्रचार करने में। उन्होंने गौड़िया मठ कि स्थापना की। सर्वत्र प्रचार होईबे मोर नाम कि कैसे प्रचार हो प्रभु के नामों का, कैसे प्रचार हो, अधिकाधिक लोगों तक कैसे पहुंचे इसी से वे चिंतित है और इसी में व्यस्त थे। इसकी व्यवस्था वह कर रहे थे। और प्रभु का नाम या भगवान का संदेश छपाई खानों में वगैरा काफी व्यस्त थे। मंदिरों का निर्माण भी हो रहा था। और उन्हीं मंदिरों में कई स्थानों पर छपाई खानों की भी स्थापना हो रही थी। और वहां से समाचार पत्र या ग्रंथ छप रहे थे। श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर एक उत्तम वक्ता तो थे ही लेकिन लेखक भी रहे और भाष्यकार भी रहे। चैतन्य भागवत जो ग्रंथ है उसके ऊपर उन्होंने गौड़िया भाष्य करके भाष्य लिखा। बड़ा प्रसिद्ध भाष्य है आज भी उपलब्ध है। हमारे पास भी हैं। फिर भक्तिविनोद ठाकुर ने भी भाष्य लिखा हैं चैतन्य चरितामृत पर भाष्य लिखे हैं। अमृत प्रवाह करके भाष्य उनका प्रसिद्ध है। तो फिर श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर ने अनुभाष्य लिखा। जैसे अनुमोदन,अनुस्मरण अनु मतलब to follow अनुसरण करना। कई सारे ग्रंथों की रचना उन्होंने की है। और उनका विश्वास था ग्रंथ वितरण में पुस्तक वितरण में। इसीलिए वैसा ही आदेश दिए अभय बाबू को अब वे धीरे-धीरे हिज डिवाइन ग्रेस ए. सी. भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद की जय बनने वाले ही थे। यदि आपको कभी पैसे मिलते हैं तो किताबें को प्रिंट करो ऐसा आदेश उनको मिला था। कोलकाता में एक विशेष मंदिर का निर्माण हो रहा था मंदिर मार्बल से बन रहा था। भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर के कुछ शिष्यों की आपस में लड़ाई हो रही थी कोई बोल रहे थे इसको मैं ऑफिस बनाऊंगा और कोई कह रहे थे यहां से मैं अपना प्रचार कार्य संचालन करूंगा। मंदिर के ऊपर अधिकार जमाने के लिए आपस में लड़ रहे थे। तो भक्तीसिद्धांत सरस्वती ठाकुर कहे जो भी मार्बल है उसे बेच दो और उसी से किताबों को प्रिंट करो। आप समझ रहे हो?.. समझ रहे होंगे.. इन सब बातों में उनको कोई रुचि नहीं थी, इस मंदिर का में अधिकारी, इस मंदिर के इस मंजिल का मैं अधिकारी, मेरा दफ्तर यहां होगा। हरी हरी। तो पुनः श्रील भक्ति विनोद ठाकुर अंततोगत्वा चैतन्य महाप्रभु के जन्मस्थान को ढूंढ निकाले ही। विवाद चल रहे थे उसके ऊपर यहां है कि वहां है, गंगा के पूर्वी तट पर है कि पश्चिमी तट है। जहां नवद्वीप शहर है धाम भी है और धाम में एक नवद्वीप शहर या नगर भी हैं। तो कईयों की मान्यता थी नहीं-नहीं चैतन्य महाप्रभु का आविर्भाव या जन्मस्थली गंगा के इस पार है। तो श्रील भक्ति विनोद ठाकुर ने जगन्नाथ दास बाबाजी की मदद से इस विवाद का या जो भी बातें चल रही थी उसका मुख बंद कर दिया। और सदा के लिए यह निर्देश दिया इस बात की स्थापना हुई की यह योगपीठ है, आज का जो योगपीठ है वही जन्मस्थली है। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु जगन्नाथ दास बाबा जी का प्रणाम मंत्र जो है वह गाते हैं गौराविर्भाव – भूमेस्त्वं निर्देष्टा सज्जन – प्रियः सज्जनों के प्रिय और यही है जगन्नाथ बाबाजी उन्होंने क्या किया गौराविर्भाव गौरांग महाप्रभु के जन्मस्थली का निर्देश किया साफ संकेत किया कहां हुआ जन्म। वैसे जब आखिरकार यह निर्धारित हुआ ही कौन से है कहां है चैतन्य महाप्रभु की जन्म्मस्थली। इसका प्रचार गौड़िय जगत में फैल गया वृंदावन तक यह समाचार पहुंच गया। हम जानते हैं अब निर्धारित हो चुका है, चैतन्य महाप्रभु की जन्मस्थली कहां है। तो गौर किशोर दास बाबाजी महाराज जो पहले वृंदावन में अपना साधन भजन कर रहे थे, वे दीक्षित भी थे। किंतु जब पता चला अब इस बात का निर्णय हो चुका है कहां है जन्ममस्थली चैतन्य महाप्रभु की। तो गौर किशोर दास बाबाजी वृंदावन से मायापुर आए। यह भी एक कारण था और वे श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर और श्रील भक्ति विनोद ठाकुर का संग चाहते थे। उनके सानिध्य में रहना चाहते थे, उनसे कुछ कथा श्रवण करना चाहते थे। तो गौर किशोर दास बाबा जी महाराज फिर पहुंच गए नवद्वीप मायापुर। वैसे जगन्नाथ दास बाबा जी महाराज भी पहले वृंदावन में ही रहा करते थे, तो वेे पहले ही नवद्वीप पहुंचे हुए थे। अभी यह चारों आचार्य एक ही साथ एक ही स्थान नवद्वीप में कुछ समय के लिए तो रहे ही। जगन्नाथ दास बाबाजी महाराज, श्रील भक्ति विनोद ठाकुर, गौर किशोर दास बाबाजी महाराज और श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर यह चारोंं आचार्य श्रील भक्ति विनोद ठाकुर का जो स्वानंद सुखद कुंज नाम का जो स्थान है, आज भी है जिसको हम भक्ति विनोद ठाकुर का समाधि मंदिर कहते हैं, वहांं उनका महासत्संग होने लगा। और धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे तो धर्म की स्थापना के लिए चैतन्य महाप्रभु प्रकट हो चुके ही थे नवद्वीप मायापुर में। इन आचार्यों ने फिर आगेे योजना बनाई कैसे इस धर्म का प्रचार सर्वत्र प्रचार होई बे मोर नाम हो सकता है, वैसे इन चारोंं का योगदान रहा। और फिर कहना होगा पांचवें भी हो गए भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद इन पांचों नेे मायापुर धाम को प्रकाशित किया। हरि हरि। तो भक्ति विनोद ठाकुर नवद्वीप धाम महात्म्य लिखे फिर परिक्रमा खंड लिखें। फिर भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर को आदेश दिए तुम परिक्रमा करो। यह कुुछ अंतिम इच्छा थी भक्ति विनोद ठाकुर की अभी वृद्धावस्था चल रही थी। तभी श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर ने सारी योजना बनाई परिक्रमा की। परिक्रमा का महिमा सब लिखे भक्ति विनोद ठाकुर, उसके विज्ञान को, ज्ञान का विज्ञान बनाना, व्यवहारिक रुप से जाना परिक्रमा में यह कार्य तो भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर किए। और फिर अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ की स्थापना हुई न्यूयॉर्क मे। फिर प्रभुपाद इंडिया लौटे इंडिया मेंं प्रचार प्रारंभ हुआ। 1972 में श्रील प्रभुपाद इस्कॉन की ओर से पहला मायापुर उत्सव मनाए। मतलब अगले साल 2022 मे 50 वा मायापुर उत्सव मनाया जाएगा, इस साल 49 मायापुर उत्सव मनाया जाएगा। तो उस उत्सव के साथ श्रील प्रभुपाद ने 1972 में अपने संसार भर के भक्तों को मायापुर धाम का परिचय करवाया। हरि हरि। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल।

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