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हरे कृष्ण
3rd अक्टूबर 2019
जप चर्चा
आज सुबह का सुप्रभात समाचार यह है कि हमारे जयतीर्थ प्रभु जो रायचूर से हैं वह प्रतिदिन लगभग 10000 लोगों को यह जूम जपा टॉक का लिंक भेजते हैं जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग जूम जपा कॉन्फ्रेंस पर जप कर सके। आज की भक्तों की संख्या 496 है जो कि लगभग 500 भक्त हैं। जिस प्रकार से जयतीर्थ प्रभु यह सेवा कर रहे हैं उसी प्रकार आप सभी भी यह सेवा कर सकते हैं ज्यादा से ज्यादा लोगों को यह लिंक भेज कर जिससे आप सभी के भाई-बहन आदि भी इस जप कॉन्फ्रेंस में जुड़ सकें, इस प्रकार आप सब भी यह प्रयास कर सकते हैं। मैं बहुत प्रसन्न हूं यह देखकर कि मेरे बड़े व छोटे दोनों भाई भी इस जप कॉन्फ्रेंस में जप कर रहे हैं और जो मेरी बहन है सीता रानी माताजी वह भी मेरे साथ यहां पंढरपुर में जप कर रही है। इस प्रकार मैंने अपने परिवार के सभी सदस्यों को भक्त बना दिया है और परिवार ही नहीं जो मेरे रिश्तेदार व भाई बंधु मित्र आदि हैं उन सभी को मैंने भगवान से जोड़ दिया है आपको भी इसी प्रकार से करना है। कल यहां पंढरपुर में दोपहर के बाद में हमने यहां एक गुरुकुल का शुभारंभ किया जिसका नाम भक्तिवेदांत गुरुकुल रखा गया जिसका हमने कल उद्घाटन किया। इसमें लगभग 20 विद्यार्थी हैं कल उनके माता-पिता भी यहां आए थे और कुछ मंदिर के भक्त भी उपस्थित थे।
मैं उन सभी को यह बता रहा था कि जैसे भागवतम में कहा गया है हम किसी के रिश्तेदार या स्वजन नहीं बन सकते हैं जब तक कि हम उन्हें कृष्ण भावनामृत में नहीं जोड़ देते हैं, अन्यथा आपको किसी का स्वजन या रिश्तेदार नहीं बनना चाहिए। उसी श्लोक में यह भी बताया गया है कि जननी न शिष्यात पिता न शिष्यात अर्थात आप माता पिता या बेटी बेटा मत बनिए, यदि आप अपने आश्रित परिवार जनों को कृष्ण भावना भावित नहीं बना सकते हैं। इस प्रकार आपको कोई अधिकार नहीं है माता-पिता बनने का अगर आप अपने आश्रितों को कृष्ण भावना भावित नहीं बना सकते। हम उन्हें संसार में क्यों लाए हैं जो कि सारा संसार बड़े-बड़े कष्टों से भरा है तो हम उन्हें यहां क्यों लाए हैं क्या हम यह चाहते हैं कि जो हमारे आश्रित स्वजन हैं वे संसार में कष्ट भोगे।
यदि हमने उन्हें जन्म दिया है तो हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि वह इस संसार में कष्ट ना भोगे। इस प्रकार हमें कुछ ऐसा करना होगा कि जिससे वे जन्म-मृत्यु के चक्र से निकलकर एक शाश्वत जीवन जी सकें। हमें कृष्ण से उनका परिचय कराना होगा हमें उन्हें हरिनाम जप के लिए प्रेरित करना होगा, उन्हें भगवत गीता, भागवतम पढ़ने के लिए प्रेरित करना होगा, कृष्ण प्रसाद पाने के लिए प्रेरित करना होगा। इस प्रकार हम कल माता-पिताओं को यह समझा रहे थे कि किस प्रकार आपको अपने आश्रितों को भगवान से जोड़ना होगा। जिससे वह भगवान की भक्ति में लग सके। उसी श्लोक में सबसे पहले आया है गुरु न शष्यात अतः आप गुरु भी मत बनिए यदि आप अपने शिष्यों को कृष्ण नहीं दे सकते हो या उन्हें जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त नहीं कर सकते हो। मैं यह सोच रहा था कि क्या यह केवल दीक्षा गुरु के लिए है लेकिन ऐसा नहीं है जब इसके विस्तार में जाते हैं तो सभी शिक्षा गुरु व पथ प्रदर्शक गुरु का भी यही दायित्व है। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने तो यहां तक कहा है "यारे देखो तारे कहो कृष्ण उपदेश, आमर आज्ञा हया तार एय देश" अर्थात जो चैतन्य महाप्रभु के आंदोलन में जुड़े लोग हैं जो इस गौड़ीय वैष्णव परंपरा के अनुयाई हैं उन्हें अपने आश्रित व स्वजनों के लिए दायित्व है जिनको भी वे प्रचार करते हैं उन्हें कृष्ण दे। अब जब आपके पास कृष्ण हैं तो आप उन सभी को कृष्ण दीजिए जो आपके आश्रित हैं या जिनको आप भक्ति के लिए प्रेरित कर रहे हैं या आप जिनके काउंसलर हैं।
एक राम लीला माताजी हैं जो वर्ल्ड होली नेम फेस्टिवल में बढ़-चढ़कर भाग ले रही हैं। वह भी कल उस प्रोग्राम में उपस्थित थी। वह माताजी सोलापुर में सत्संग चलाती हैं। जिन्होने विश्व हरिनाम सप्ताह में बहुत लोगों से माला जप भी करवाया था। वह माताजी नगर कीर्तन करना चाहती हैं। वह कह रही थी कि विश्व हरि नाम के बाद वह माह में एक बार एक बड़ा नगर संकीर्तन आयोजित करना चाहती हैं। इसके लिए मेरी आज्ञा व आशीर्वाद मांग रही थी। तो मैंने उनसे कहा कि मैं आशीर्वाद क्यों नहीं दूंगा, जब आप इतना सुंदर काम कर रही हो , जो कि भक्तों को कृष्ण से जोड़ना चाहती हैं।
मुझे अभी-अभी एक भक्त का संकल्प और प्राप्त हुआ है जो बांग्लादेश में रहते हैं उन्होने बताया कि इस समय बांग्लादेश में नवरात्र उत्सव मनाया जा रहा है। बांग्लादेश में दुर्गा पूजा बड़े-बड़े पंडालों में मनाई जा रही है। मैंने व मेरे मित्र ने एक संकल्प लिया है कि हम श्रील प्रभुपाद की पुस्तके वहां पंडालों में जा जा कर वितरित करेगें। जहां बड़ी संख्या में लोग आ रहे हैं। यह बहुत ही सुंदर है यह बहुत ही प्रेरणादायक है कि वे सभी को कृष्ण देना चाहते हैं। दुर्गा पूजा सभी स्थानों में, भारत में और विदेशों में भी मनायी जा रही है। वहां जो जनसमूह है उनकी काफी धार्मिक भावनाएं रहती हैं आप सभी भी वहां जाकर कीर्तन करिए और प्रभुपाद की पुस्तकों का वितरण कीजिए। आप सभी यह देखिए कि आप क्या कर सकते हैं यह जो जनसमूह एकत्रित हो रहे हैं इन दिनों उनकी भावना भी धार्मिक रहती है आप देखिए कि किस प्रकार से आप उन्हें कृष्ण दे सकते हैं।
सभी अपने-अपने क्षेत्रों में योजना बनाकर आपस में मिलजुल कर यह कर सकते हैं। मौका मिलने पर आप शक्ति तत्व के बारे में समझा भी सकते हैं। जैसे कि ब्रह्म संहिता में आता है। "छायेव यश्य भुवनानी विभृति दुर्गा, इच्छानुरूपमपि यस्य च चेष्टते सा, गोविंदम आदि पुरुषम तमहम भजामि" अर्थात दुर्गा देवी भगवान की छाया है वह श्रीमती राधारानी का विस्तार है। जिस प्रकार गोलोक में श्रीमती राधारानी भगवान की सेवा करती है उसी प्रकार दुर्गा देवी इस दुर्ग भवन में यानी इस संसार में आकर वह भगवान कृष्ण की इच्छा अनुरूप कार्य करती है। वे भगवान से स्वतंत्र नहीं है, भगवान की इच्छा अनुसार कार्य करती है। इस प्रकार से सेवा करती हैं श्रीमती राधारानी एक प्रकार से सेवा करती हैं गोलोकधाम में वहां उन्हें योग माया कहा जाता है। परंतु दुर्गा देवी जो शक्ति है वह महामाया कहलाती है और इस संसार में भगवान की इच्छा अनुरूप कार्य करती है। इस प्रकार श्रील प्रभुपाद ने इस शक्ति तत्व को बहुत अच्छी तरह से हमें समझाया है। इस गौड़ीय वैष्णव परंपरा में भी इस शक्ति तत्व को बहुत अच्छी तरह समझाया जाता है। जिस प्रकार राधा रानी है गोलोक में उसी प्रकार उनका विस्तार दुर्गा देवी है इस संसार में।
इस प्रकार हमें यह समझना है और अधिक से अधिक लोगों को हमें समझाना है दुर्गा देवी का इस संसार में जो नाम है, वह पार्वती है तो शिव व पार्वती दोनों ही एक प्रकार से एक टीम बनाते हैं। जैसा शिव के लिए कहा भी जाता है "वैष्णव नाम यथा शम्भू" अर्थात सभी वैष्णव में शिवजी अग्रणी है। जो माता पार्वती हैं वह भी गौरांग भगवान की बहुत बड़ी भक्त हैं। एक बार शिव व पार्वती तपस्या कर रहे थे और भगवान की बहुत सुंदर लीलाओं का जप व कीर्तन कर रहे थे। जिस प्रकार कहते हैं ब्रह्मा बोले चतुर्मुखी, कृष्ण कृष्ण हरे हरे। महादेव पंचमुखी राम राम हरे हरे, इस प्रकार ब्रह्माजी शिवजी व पार्वती भगवान नाम का जप करते हैं इस प्रकार जब एक बार वे जप कर रहे थे, कीर्तन कर रहे थे मायापुर में तो भगवान उनके सामने प्रकट हो गए, महाप्रभु प्रकट हो गए तो माता पार्वती ने उन्हें प्रणाम किया और उनके चरणों से रज लेकर उन्होंने अपनी मांग में धारण की, जहां महिलाएं सिंदूर लगाती हैं, इस प्रकार उनका नाम सीमान्तनी पड़ा। जैसे सीमान्तक का मतलब मांग से जुड़ा है क्योंकि उन्होंने अपनी मांग में रज को धारण किया था, इस प्रकार उनका नाम सीमान्तनी पड़ा। उस द्वीप का नाम सीमांतद्वीप पड़ा जहां पर हमारा इस्कॉन का एक मंदिर है। जहां पर भगवान जगन्नाथ बलदेव सुभद्रा के विग्रहों की सेवा की जाती है। उन्हीं के साथ साथ उन्होंने एक सीमान्तनी देवी का मंदिर भी बनाया है। इस प्रकार हम भी पार्वती मां की पूजा अर्चना करते हैं लेकिन भगवान महाप्रभु के संबंध में हम उनकी पूजा अर्चना करते हैं।
नवद्वीप जो 9 द्वीप हैं जो नवधा भक्ति के अंगों के रूप में जाने जाते हैं। उनमें से सीमांतद्वीप श्रवण भक्ति के लिए जाना जाता है। क्योंकि सीमान्तनी देवी यानी पार्वती देवी, जो है वह निरंतर भगवान की कथाओं का श्रवण करती रहती हैं। हमें भी शिव पार्वती जी से प्रेरणा लेनी चाहिए, कि किस प्रकार से वह भगवान की लीलाओं का श्रवण करते रहते हैं विशेष रूप से गौर कथा को सुनने मे वे सीमांत द्वीप में गौर मंडल में इस प्रकार से रहते हैं। एक अन्य स्थान वहां नवद्वीप में नैमिषारण्य भी है भगवान शिव नैमिषारण्य में एक बार गौर कथा सुन रहे थे और पूरी कथा सुनने के बाद उन्होंने माता पार्वती को भी बताया। इस प्रकार वे दोनों श्रीमद भगवतम, श्रीमद गौरकथा का श्रवण करते हैं और आपस में एक दूसरे से चर्चा करते रहते हैं। यह वास्तव में वह "बोधयंता परस्परम" है। शिवजी व पार्वती गौर कथा, भागवत कथा सुनते हैं और उसी में आनंदित होते रहते हैं। इस प्रकार शिवजी व पार्वती जी सभी ग्रहों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं कि किस प्रकार से गृहस्थों का जीवन पूरी तरह से भगवान पर केंद्रित होना चाहिए। भगवान की लीलाओं और कथा को सुनने की इतनी उत्सुकता होनी चाहिए। माता पार्वती व शिवजी के चरित्र से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए। आज हम यही अपनी वाणी को विराम देंगे।
साधना माताजी जो ऑस्ट्रेलिया से है वह वापिस हिंदुस्तान आ गई हैं वे मायापुर धाम में गई हैं तो हम उनका मायापुर धाम में आने पर स्वागत करते हैं।
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