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जप चर्चा पंढरपुर धाम से दिनांक ०३.०३.२१ हरे कृष्ण! आज इस जपा कॉन्फ्रेंस में 702 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। हरि बोल! श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर आविर्भाव तिथि महोत्सव की जय! मैं आज श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर आविर्भाव तिथि महोत्सव के उपलक्ष्य में कुछ कहूंगा ही लेकिन मेरे साथ आज हमारे नोएडा मंदिर के सह-अध्यक्ष, श्री वेदान्त चैतन्य प्रभु, सुंदर कृष्ण, मंदिर के अध्यक्ष, अनादि गौर सांगली के प्रबंधक अथवा संचालक अथवा अध्यक्ष भी उपस्थित हैं, वे भी बोलेंगे। वे भी आज एक विशेष मिशन अर्थात हमारे विचार क्षेत्र में आने वाले एक इस्कॉन मंदिर से दूसरे इस्कॉन मंदिर में काउंसलिंग सिस्टम की स्थापना किए जाने के सम्बंध में बोलने जा रहे हैं। हम इसे अनुगतय सिस्टम ऐसा भी कुछ नाम दे रहे हैं। वह अनुगतय सिस्टम क्या है? उसकी क्या उपयोगिता है, इस संबंध में वे संक्षिप्त में कुछ परिचयात्मक बातें बताएंगे लेकिन उससे पहले मैं सुनाऊंगा, श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर महाराज के आविर्भाव दिवस के उपलक्ष्य में । एक काउंसलिंग सिस्टम अथवा अनुगतय कार्यक्रम को पुनः आरंभ अथवा शुभारंभ किया जा रहा है। यह पहले भी चलता रहता है। यह काउंसलिंग सिस्टम अथवा अनुगतय कार्यक्रम नया तो नहीं है। जोश, निश्चय व पूरी तैयारी के साथ इसके स्थापना की योजना बनी है। उसको भी सुनिएगा, श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर महाराज बहुत बड़ा नाम है। वह गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय के एक उत्तम आचार्य हैं। हरि! हरि! हम और क्या कह सकते हैं, हम ऐसे आचार्य को समझने की क्षमता भी नहीं रखते। य़ाँरे चिते कृष्ण- प्रेमा करये उदय। ताँर वाक्य, क्रिया, मुद्रा विज्ञेह ना बुझय।। ( श्री चैतन्य चरितामृत २३.३९) अनुवाद:- जो व्यक्ति भगवतप्रेम को प्राप्त कर चुका है, उसके शब्दों, कार्यों तथा लक्षणों को बड़े से बड़ा विद्वान भी नहीं समझ सकता। हम श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर जैसे वैष्णवों की क्रियाएं तथा मुद्राएं अथवा भाव विचार व महिमा अथवा जो भी टूटी फूटी बातें अथवा शब्दाजंली अर्पित करते है। आज के दिन1874 में विमल प्रसाद का जन्म जगन्नाथपुरी में हुआ। श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर, श्रील भक्ति विनोद ठाकुर तथा श्रीमती भगवती के पुत्र रत्न रहे। पहले तो भक्ति विनोद ठाकुर ने उन्हें विमला प्रसाद ही नाम दिया था। श्रील भक्ति विनोद ठाकुर प्रार्थना कर ही रहे थे जिस प्रकार कर्दम मुनि भी प्रार्थना कर रहे थे कि हमें ऐसा अधिपत्य प्राप्त हो जो धर्म की स्थापना करने वाला हो। परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥ ( श्रीमद् भगवतगीता ५.८) अनुवाद:- भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ। श्रील भक्ति विनोद ठाकुर संसार को देख रहे थे और धर्म की ग्लानि को देखकर वह इस स्थिति को सुधारने के लिए ऐसे पुत्र की प्रार्थना कर रहे थे जो धर्म की स्थापना कर सके। वे ऐसी प्रार्थनाएं जगन्नाथ जी से कर रहे थे। श्रील भक्ति विनोद ठाकुर जगन्नाथपुरी के यमुनापुरी के जिला अधिकारी ( डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट) थे। वह जगन्नाथ मंदिर की सारी व्यवस्था भी देख रहे थे अर्थात वे जगन्नाथ पुरी के व्यवस्थापक थे। उनके कार्यभार के अंतर्गत यह भी उनकी एक सेवा ही थी। जय जगन्नाथ! जय जगन्नाथ! उनको जब पुत्र रत्न प्राप्त हुआ, तब उन्होंने उसे विमला प्रसाद नाम दे दिया। विमला देवी जगन्नाथ जी की सेविका है, जगन्नाथ जी का महाप्रसाद सर्वप्रथम विमला देवी को प्राप्त होता है। उन्होंने इसे जगन्नाथ का प्रसाद प्राप्त करने वाली विमला देवी के प्रसाद के रूप में यह पुत्र प्राप्त हुआ है, ऐसा समझा और पुत्र को विमला प्रसाद नाम दिया। हरि! हरि!। यह आशा की किरण रही। मेरे गुरु भ्राता रूप विलास प्रभु ने 'रे ऑफ हॉप' नामक ग्रंथ भी लिखा है अर्थात भक्ति विनोद ठाकुर की जीवनी लिखी है। लाइफ एंड टीचिंग नाम तो नहीं है लेकिन नाम ही 'रे ऑफ विष्णु' अर्थात विष्णु की किरण अथवा आशा की किरण है। हरि! हरि! वे लगभग १० माह ही जगन्नाथपुरी में रहे। तत्पश्चात श्रीमती भगवती व उनकी गोद में विमला प्रसाद को पालकी में बैठा कर जगन्नाथ पुरी से बंगाल में राणाघाट नामक स्थान पर पहुंचाया गया। (हम जब कोलकाता से मायापुर जाते हैं, तब रास्ते में राणाघाट आता है। ) भक्ति विनोद ठाकुर व उनका परिवार वहाँ पहुंच गया। वहीं आकर रहने लगे। बाल अवस्था में ही विमला प्रसाद मां भगवती के मुख से वह कृष्ण कथाएं सुना करते थे। उन्हें ऐसे संस्कार मिल रहे थे। यह बालक भगवान् की कथाएँ बड़े गौर और प्रेम से सुना करता था। जब वे राणाघाट में थे, तब आम का उत्सव आया। एक दिन जब आम खरीदे गए, उसको भोग लगाने से पहले ही विमला प्रसाद ने ( विमला प्रसाद लगभग ३ वर्ष के ही थे। उस समय अन्नमय स्थिति होती ही है, बालक जिस चीज़ को देखता है और जो भी हाथ में लगता है, उसको खाता ही रहता है) आम उठाया और खाने ही लगा तभी भक्ति विनोद ठाकुर ने उन्हें रोका और डांटा फटकारा, " हे, भगवान के भोग लगाए बिना तुम ऐसे आम को खा रहे हो, भोगी कहीं के," बस इतना ही पर्याप्त था। तत्पश्चात श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर ने अपने जीवन में कभी भी आम नहीं खाया। इस प्रकार बाल अवस्था से ही इस बालक ने अपने आचार्य के लक्षणों का प्रदर्शन किया। मनुष्य होने के कारण कुछ गलतियां अपराध हो सकते हैं लेकिन गलती को स्वीकार करना और गलती को सुधारना और पुनः ऐसी गलती नहीं करूंगा, ऐसा संकल्प लेना यह आचार्य के लक्षण हैं। कई बार श्रील प्रभुपाद हमें अथवा अपने शिष्यों को इस विषय में बताया करते थे। श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर महाराज को कई बार आम के सीजन में आम ऑफर किए जाते थे कि यह ऐसा आम है, वैसा आम है लेकिन हर बार श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर महाराज कहा करते थे कि नहीं! नहीं! मैं अपराधी हूं। मैं अब आम नहीं खाऊंगा। हरि! हरि! उनकी बाल अवस्था और उनके संस्कार अथवा उनका लालन-पालन ऐसा रहा। केवल पालन ही नहीं, लालन भी रहा। श्रील भक्ति सिद्धांत ठाकुर महाराज श्रुतिधर थे। उन्हें केवल 7 वर्ष की आयु में सारी भगवत गीता कण्ठस्थ थी। उन्होंने लगभग ग्यारह वर्ष की आयु में भक्ति विनोद ठाकुर के साथ गौर मंडल की परिक्रमा की। श्रील भक्ति विनोद ठाकुर इस प्रकार इस बालक को प्रशिक्षित कर रहे थे। श्रील भक्ति विनोद ठाकुर तबादला (ट्रांसफर) होकर कृष्ण नगर के जिला अधिकारी हो गए। वे अब गोद्रुम द्वीप, सरस्वती नदी के तट पर रहने लगे। श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती ठाकुर गणित तथा खगोल में दक्ष थे। श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती ठाकुर ने सूर्य सिद्धान्त भी प्रकाशित किया अर्थात उन्होंने सिद्धांत का प्रकाशन किया था, तत्पश्चात उन्हें भक्ति सिद्धांत की पदवी प्राप्त हुई। भक्ति सिद्धांत एक पदवी है। वे खगोल शास्त्रज्ञ थे, वह श्रील भक्ति विनोद ठाकुर के साथ गोद्रुम द्वीप में रहते थे। उन दिनों में ऐसा भी समय था (मुझे कहने में गर्व और हर्ष होता है। हम भी जब वहां जाते हैं, भक्ति विनोद ठाकुर समाधि स्थली का दर्शन करते हैं लेकिन पूर्व में वहाँ भक्ति विनोद ठाकुर रहा करते थे। उनका निवास स्थान था।) जब भक्ति विनोद ठाकुर वहां गोद्रुम द्वीप में रहते थे, स्वानंदसुखद् कुंज स्थान का नाम था। उस समय हमारे संप्रदाय के चार आचार्य हैं, जिनके छोटे विग्रह या चित्र हमारे इस्कॉन मंदिर में होते ही हैं, भगवान की आराधना के साथ उनकी आराधना होती है। श्रील जगन्नाथ दास बाबा जी महाराज, श्रील भक्ति विनोद ठाकुर, श्रील गौर किशोर दास बाबा जी महाराज, उनके शिष्य श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर महाराज, यह चारों आचार्य वहां एक साथ कृष्ण चर्चा करते थे। नाना-शास्त्र-विचारणैक-निपुणौ सद्-धर्म संस्थापकौ लोकानां हित-कारिणौ त्रि-भुवने मान्यौ शरण्याकरौ राधा-कृष्ण-पदारविंद-भजनानंदेन मत्तालिकौ वंदे रूप-सनातनौ रघु-युगौ श्री-जीव-गोपालकौ।।२।। ( षड् गोस्वामी अष्टक) अनुवाद:- मै, श्रीरुप सनातन आदि उन छः गोस्वामियो की वंदना करता हूँ की, जो अनेक शास्त्रो के गूढ तात्पर्य विचार करने मे परमनिपुण थे, भक्तीरुप परंधर्म के संस्थापक थे, जनमात्र के परम हितैषी थे, तीनो लोकों में माननीय थे, श्रृंगारवत्सल थे,एवं श्रीराधाकृष्ण के पदारविंद के भजनरुप आनंद से मतमधूप के समान थे। जैसे वृंदावन में षड गोस्वामी वृन्द एकत्रित होकर राधा दामोदर मंदिर में व अन्य स्थानों पर शास्त्रार्थ अथवा बोधयन्तः परस्परम् करते थे। मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम् । कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च ॥ ( श्रीमद् भगवतगीता १०.९) अनुवाद:- मेरे शुद्ध भक्तों के विचार मुझमें वास करते हैं, उनके जीवन मेरी सेवा में अर्पित रहते हैं और वे एक दूसरे को ज्ञान प्रदान करते तथा मेरे विषय में बातें करते हुए परमसन्तोष तथा आनन्द का अनुभव करते हैं। वैसे ही नवद्वीप अथवा गोद्रुम द्वीप में श्रील भक्ति विनोद ठाकुर के निवास स्थान पर यह चार आचार्य ... श्रील भक्ति विनोद ठाकुर जो कि हमारे सप्तम गोस्वामी भी कहलाते हैं।( छः गोस्वामी तो वृंदावन में हुए और सातवें गोस्वामी श्रील भक्ति विनोद ठाकुर कहलाते हैं) ऐसी मान्यता है। सप्तम गोस्वामी और तीन आचार्यों अर्थात चारों एक साथ (सभी तो वहाँ नहीं रहते थे) वहां एकत्र होकर महा सत्संग अथवा विचार- विमर्श शास्त्रार्थ किया करते थे। इस प्रकार विमला प्रसाद नहीं रहे अपितु वे भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर बन रहे थे। उनका प्रशिक्षण चल रहा था। 1914 में श्रील भक्ति विनोद ठाकुर समाधिस्थ हुए। अब गौड़ीय वैष्णव के रक्षा या इस सम्प्रदाय की पूरी जिम्मेदारी श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर महाराज की जिम्मेदारी बन गई थी। हरि! हरि! श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर महाराज कई वर्षों तक योग पीठ से कुछ दूरी पर गंगा तट पर एक कुटिया बनाकर, उसमें अपनी साधना व भजन किया करते थे। वे हरे कृष्ण महामन्त्र का जप उसी प्रकार करते थे जैसे नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर नाम जप करते थे। हरि! हरि! उन्होंने कठोर तपस्या व साधना की। कहते हैं कि जब वर्षा के दिनों में कुटिया में जल गिरता था तब वे छाता लेकर बैठ जाते थे। एक हाथ में छाता पकड़ते थे और दूसरे हाथ से जप करते रहते थे। यह विशेष कालावधि रही, वह कई वर्षों तक जप करते रहे। कहा जाता है कि एक दिन हवा के झोंके से एक पत्र उन तक पहुंचा, जब उन्होंने उसे पढ़ा, तब उसमें आदेश लिखा हुआ था कि श्रील भक्ति सिद्धान्त! तुम यह करो, तुम वह करो! तुम गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय का प्रचार करो, पुस्तक वितरण करो, संकीर्तन आंदोलन को फैलाओ। ( मुझे अभी अच्छी तरह याद नहीं) इस प्रकार वे विशेष आदेश थे। श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर महाराज मान गए कि यह मुझे पंचतत्व का आदेश प्राप्त हो रहा है। तत्पश्चात उन्होंने गौर किशोर दास बाबा जी की तस्वीर के समक्ष सन्यास लिया और उन्होंने मायापुर में चैतन्य गौड़ीय मठ की स्थापना की। आप शायद चैतन्य गौड़ीय मठ के विषय में जानते होंगे। तत्पश्चात वे चैतन्य गौड़ीय मठ संघ व संस्था की ओर से प्रचार करने लगे। उन्होंने लगभग ६० मठों की भारत में तथा चार मठों की विदेशों में स्थापना की। पूरे देश का भ्रमण किया, जबरदस्त प्रचार किया। कई सारे सन्यासी तथा हजारों ब्रह्मचारी उनके शिष्य बने। गृहस्थ शिष्य भी बने, उन्होंने जात-पात भेदभाव नहीं रखा। दीनहीन यत छिल, हरिनामे उद्धारिल, ता’र साक्षी जगाइ-माधाइ॥3॥ ( श्री नरोत्तम दास ठाकुर द्वारा रचित) अनुवाद:- जो व्रजेंद्रनन्दन कृष्ण हैं, वे ही कलियुग में शचीमाता के पुत्र (श्रीचैतन्य महाप्रभु) रूप में प्रकट हुए, और बलराम ही श्रीनित्यानंद बन गये। उन्होंने हरिनाम के द्वारा दीन-हीन, पतितों का उद्धार किया। जगाई तथा मधाई नामक महान पापी इस बात के प्रमाण हैं। वह दीन- हीन पतित स्त्री, पुरुष, शुद्र, चांडाल, ब्राह्मण सभी का स्वागत करके सभी व्यक्तियों को ब्राह्मण दीक्षा देने लगे। वैसे ब्राह्मण से भी श्रेष्ठ वैष्णव होता है। उन्होंने इस सिद्धांत की स्थापना व प्रचार किया। वैष्णव सर्वोपरि होता है। वह सभी को ब्राह्मण नहीं अपितु वैष्णव बना रहे थे। उस समय इसका विरोध भी खूब चल रहा था। किन्तु उन्होंने इसकी कोई फिक्र नही की, उसको आगे बढ़ाया। वह विदेश में प्रचार के लिए अपने शिष्यों को भेज रहे थे। वर्ष 1922 में श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती ठाकुर महाराज से अभय बाबू की मुलाकात हुई। श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती ठाकुर महाराज की जय! उस पहली मुलाकात में ही अभय बाबू को पाश्चात्य देशों में प्रचार प्रसार करने का आदेश दिया। हरि! हरि! यदि कलकत्ता में 1922 में मुलाकात ना होती तो श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती ठाकुर ऐसा आदेश नही देते तब भक्ति वेदान्त स्वामी श्रील प्रभुपाद भी नही होते और इस्कॉन की स्थापना नही होती और हम और आप भी नहीं होते, होते तो सही लेकिन गौड़ीय वैष्णव भी नहीं होते। यह गौड़ीय वैष्णव शांतरुपिणी थाईलैंड तक कैसे पहुंचता। श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर का सभी को वैष्णव बनाने का संकल्प था। उसकी इच्छा की पूर्ति श्रील भक्ति वेदांत प्रभुपाद ने की। हमें जो प्राप्त हुआ है अथवा जो यह कृष्ण भावना प्राप्त हुई है, हमें इसका प्रचार करना है। य़ारे देख, तारे कह ' कृष्ण'- उपदेश।आमार आज्ञाय गुरु हञा तार' एइ देश।। ( श्री चैतन्य चरितामृत मध्य लीला ७.१२८) अनुवाद:- हर एक को उपदेश दो कि वह भगवद गीता तथा श्रीमद्भागवत में दिए गए भगवान श्रीकृष्ण के आदेशों का पालन करें। इस तरह गुरु बनो और इस देश के हर व्यक्ति का उद्धार करने का प्रयास करो। कृष्ण उपदेश अथवा बोधयन्तः परस्परम् करना है। हमें एक दूसरे की मदद करनी है। एक दूसरे को प्रोत्साहित करना है और मिलजुलकर श्रील भक्ति सिद्धांत ठाकुर महाराज के कार्य अथवा इस्कॉन करे कार्य को आगे लेकर जाना है यह उन्हीं की ओर से कार्य हो रहा है। मैं अब रुक जाऊंगा। जैसा कि मैंने पहले कहा था कि इस कार्य को आगे बढ़ाने के लिए हमें व्यवस्थित होना चाहिए। हम कैसे एक दूसरे को प्रोत्साहित कर सकते है या कैसे कुछ जिम्मेदारी ले सकते हैं या हम भी कुछ मार्गदर्शन कर सकते हैं। हर एक् को मार्गदर्शन की आवश्यकता है। शिक्षा ग्रहण की आवश्यकता होती है। बने रहिये। हरे कृष्ण!

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