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03 अगस्त 2019
हरे कृष्ण!
आज हमारे साथ 320 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। मैं लॉस एंजेलिस में हूँ। यह कोई पूर्व में रिकॉर्ड की गई क्लास नहीं है। मैं लाइव सेशन दे रहा हूँ। यहाँ इस समय शाम के 5 बजकर 40 मिनट हुए हैं। आज मेरी अन्य व्यस्तताएँ भी हैं। आज लॉस एंजेलिस मंदिर में कीर्तन मेला है। मुझे शीघ्र ही लॉस एंजेलिस मंदिर में कीर्तन करने के लिए जाना है। इसलिए मुझे ये सेशन जल्दी ही समाप्त करना होगा।
मैं आश्वस्त हूँ कि आप सब ने पिछले दो दिनों में जप किया होगा। मैं जहाँ कहीं भी था, जप कर रहा था। मेरा अधिकांश समय तो एयरप्लेन(हवाई जहाज) के एयर क्राफ्ट में निकला परंतु जहां भी मुझे समय मिल रहा था, मैं वहां जप कर रहा था लेकिन मैं आप सबको मिस कर रहा था। मुझे आपकी अनुपस्थिति अनुभव हो रही थी । मुझे अच्छा नहीं लग रहा था परन्तु आप सभी भी जप कर रहे होंगे, मैं भी जप कर रहा था।
मैं ऐसा अनुभव कर रहा था कि भगवान सर्वत्र हैं, सर्वदा हैं। भगवान धरती पर भी हैं और आसमान में भी हैं।
हम जहाँ कहीं भी जप करते हैं, वहां भगवान होते हैं। जब मैं एयरप्लेन में था, उस वक़्त मैं अनुभव कर रहा था कि भगवान मेरे साथ उपस्थित हैं। वहाँ मैं जप कर रहा था, " यतो- यतो यामी ततो नरसिंह" " भगवान बाहर भी हैं, अंदर भी हैं यहाँ भी हैं, वहां भी हैं , मेरे प्रभु, मैं जहाँ कहीं भी होता हूँ, आप सर्वत्र हैं।" ऐसा नही है कि जब हम जप नहीं करते, वहाँ भगवान उपस्थित नहीं होते परंतु जब हम जप करते हैं तब हमें भगवान की विशेष उपस्थिति का अनुभव हो सकता है। हम जहाँ कहीं भी होते हैं, वहाँ भगवान होते हैं।
कल जब मैं हवाई जहाज से न्यूयॉर्क में उतरा , उस समय मैं श्रील प्रभुपाद की भावना से काफी अभिभूत हो गया। मुझे श्रील प्रभुपाद का स्मरण हो रहा था,उनकी याद आ रही थी।
जब मैं अमेरिका में पहुंचा, वहां कई भक्त मेरे स्वागत और अभिवादन के लिए आए हुए थे लेकिन श्रील प्रभुपाद जी अपनी डायरी में लिखते हैं कि जब वे 1965 में अमेरिका आए थे, उनके स्वागत के लिए कोई भी नहीं था, ना ही उनके पास रुकने का कोई स्थान था, न ही उनके लिए किसी ने होटल की व्यवस्था की थी। श्रील प्रभुपाद जी को यह भी नहीं पता था कि उनको बाएं जाना है या दाएं जाना है।
श्रील प्रभुपाद जी ने इस्कॉन (अंतरराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ) की स्थापना की और एक प्रकार से सारी व्यवस्थाओं और सुविधाओं का निर्माण किया।मैं ऐसा विचार कर रहा था कि श्रील प्रभुपाद के अतिरिक्त इस्कॉन में कोई भी ऐसा भक्त नहीं है जिसने मालवाहक जहाज से यात्रा की हो। श्रील प्रभुपाद जी 30 दिन की अति कठिन यात्रा कर अमेरिका पहुंचे थे परंतु मैं केवल 14 घंटो में ही अमेरिका आ गया जबकि प्रभुपाद जी ने अमेरिका आने के लिए कितनी अधिक कठिनाईयों का सामना किया था। केवल श्रील प्रभुपाद जी की वजह से ही आज हम लोगों को प्रचार और प्रसार करने के लिए सारी सुविधाएं प्राप्त हैं।
हम कहते हैं कि जब श्रील प्रभुपाद जी अमेरिका आए, वे मित्रहीन थे अर्थात उनका कोई मित्र नहीं था, न ही कोई उनके स्वागत के लिए आया था। श्रील प्रभुपाद जी धनहीन भी थे, उनके पास केवल पांच डॉलर थे परन्तु यह हमें केवल बाह्य दृष्टि से देखने में लगता है कि उनका कोई मित्र नही था, उनके पास कोई धन नहीं था। वास्तव में तो स्वयं भगवान श्रील प्रभुपाद जी के साथ थे। भगवान स्वयं प्रभुपाद जी के परम मित्र के रूप में उनके साथ आए थे। हम यह भी नही कह सकते कि श्रील प्रभुपाद जी धन और सम्पत्ति से विहीन थे। उनके पास प्रचुर मात्रा में हरि नाम की धन सम्पत्ति थी। श्रील प्रभुपाद जी के पास श्री मदभागवतम थी जो कि सम्पूर्ण धन और सम्पत्ति का स्रोत है। श्री मदभागवतम में पूर्ण रूप से पूरे विश्व (संसार) की धन और सम्पति निहित है, जिस धन सम्पति को श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु "गोलोकेर प्रेम धन" से लेकर आए थे, श्रील प्रभुपाद जी उसी धन संपत्ति को लेकर पाश्चात्य देश अमेरिका में आए।
पाश्चात्य देश में अमेरिकन लोगों के पास भौतिक दृष्टि से बहुत अधिक धन संपत्ति थी परंतु वे लोग हिप्पी बन रहे थे, क्योंकि उनके पास वास्तविक धन नहीं था जो उनको प्रसन्न कर सके।
श्रील प्रभुपाद जी ने हरिनाम की संपत्ति इन अमेरिकन और पाश्चात्य देशों में बांटी जिससे वे वास्तव में हैप्पी बन सकें।श्रील प्रभुपाद जी ने उन अमेरिकन,पाश्चात्य देश के निवासियों को हरि नाम की सम्पति दी जिससे वे प्रसन्नचित बन सकें, जो उनकी धन सम्पति उनको नहीं दे पा रही थी।
मुझे न्यूयॉर्क में पहुंच एक औऱ बात का स्मरण हुआ, जब मैं 1978 में पहली बार न्यूयॉर्क में आया था तब मेरे गुरुभाई पूर्वदास प्रभुजी, मुझे एयरपोर्ट पर लेने के लिए आए थे और वे न्यूयॉर्क में श्रील प्रभुपाद जी के musuem के संचालक भी थे, वे मुझे अपने साथ वहां लेकर गए और हाथ में प्रभुपाद लीलामृत दी। गाइडेड टूर मेरे गुरुभाई ने उन सभी लीलास्थलियों का भ्रमण करवाया जहाँ जहाँ श्रील प्रभुपाद जी ने विभिन्न लीलाएं की थी और विभिन्न प्रकार से प्रचार और प्रसार कार्य प्रारंभ किया।
हम सब से पहले बावरी गए, जहां श्रील प्रभुपाद जी का कई बार हिप्पियों के साथ भिंड़त(एनकाउंटर) हुआ था। उसके बाद में हम ग्रीन स्कवायर पार्क गए, जहाँ श्रील प्रभुपाद जी ने इस्कॉन का पहला नगर संकीर्तन किया था और हमने उस वृक्ष के भी दर्शन किए जिसके नीचे खड़े होकर प्रभुपाद जी ने हरे कृष्ण महामंत्र का पहला लेक्चर दिया था। वे उन हिप्पिज़ को कृष्णभावनामृत के बारे में बता रहे थे। उसके उपरांत हम उस इस्कॉन के पहले केंद्र मैचलैस गिफ्ट्स 26th 2nd एवेन्यू, न्यूयॉर्क में गए।
श्रील प्रभुपाद जी ने हरे कृष्ण आंदोलन का पहला केंद्र 26th 2nd एवेन्यू में स्थापित किया। यह केंद्र किराए के स्थान पर बना हुआ था। हम सोच सकते हैं कि अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ का मुख्यालय एक किराये की बिल्डिंग में स्थित था। श्रील प्रभुपाद सड़क के किनारे कीर्तन करके, पार्कों में जाकर लोगों को अपने केंद्र 26th 2nd एवेन्यू के लिए आमंत्रित करने लगे। इस प्रकार से जब लोग वहां आने लगे तब श्रील प्रभुपाद जी ने अकेले ही 100 से 150 लोगों का पहले स्वागत करते थे, अकेले ही उनके लिए प्रसादम बनाते थे। बाजार से सामग्री को खरीद कर लाते थे, उसको धोते थे, काटते थे, भोग बनाते थे और भगवान को अर्पित करते थे। उसके उपरांत वे सबको क्लास दे कृष्ण भक्ति का प्रचार करते थे। उनको खड़ा कर नृत्य सिखाते थे, स्वामी स्टेप सिखाते थे। प्रभुपाद जी ने उन सबको नृत्य करना सिखाया। इसके पश्चात श्रील प्रभुपादजी, सबको पंक्तिबद्ध बैठाकर अपने हाथ से सबको प्रसाद परोसते थे। जब वे सब उदर भर कर, पेट भर कर खा कर चले जाते थे, तब प्रभुपाद जी पूरी तरह से उस जगह की सफाई करते थे। ये सारे कार्य श्रील प्रभुपाद जी अकेले ही करते थे। एक अकेले व्यक्ति होकर 'सिंगल हंडेड' वे सारे कार्य करते थे।
एक आगंतुक जो श्रील प्रभुपाद जी का लेक्चर और हरिनाम के विषय में सुनने के लिए उनके पास आया करता था, एक दिन उन्होंने उस दुकान के बाहर (जहां प्रभुपाद जी ने स्टोर के फ्रंट पर अपना केंद्र बनाया हुआ था) मैचलैस गिफ्ट अर्थात अनमोल उपहार का एक बोर्ड लगा हुआ देखा, उन्होंने सोचा कि इस बोर्ड का क्या करना चाहिए, तब वे श्रील प्रभुपाद जी के पास गए और उनसे पूछा, "स्वामी जी, दुकान के पास जो बोर्ड लगा हुआ है और जिस पर लिखा है 'मैचलैस गिफ्ट्स', क्या हम इसको हटा दे या इसको लगे रहने दे" श्रील प्रभुपाद जी ने सोचने के बाद कहा, "नही! नही! इसको लगे रहने दो,वास्तव में मैं जो देने के लिए आया हूँ, वो तो अनमोल ही है, मैचलैस ही है, उसका कोई मूल्य नहीं है, वह तो बहुत सुंदर उपहार देने के लिए है।" वास्तव में श्रील प्रभुपाद जी एक अनमोल उपहार ले कर ही वहां गए थे। मैचलैस मतलब अतुलनीय। श्रील प्रभुपाद जी अतुलनीय उपहार ले कर गए थे। प्रभुपाद जी वहाँ जो सिद्धांत और दर्शन प्रस्तुत कर रहे थे, क्लास दे रहे थे, वो भी अतुलनीय था। श्रील प्रभुपाद जी जो हरिनाम दे रहे थे, वो भी अतुलनीय था। जो प्रसादम वहाँ दे रहे थे, वो भी अतुलनीय था। श्रील प्रभुपाद जी उनको कृष्ण दे रहे थे,वो तो अतुलनीय ही हैं। भगवान अतुलनीय ही हैं।। इस प्रकार श्रील प्रभुपाद जी ने मना कर दिया, "नही! नही! आप इस बोर्ड को मत हटाइये। उसको वहीं लगे रहने दीजिए।" इस प्रकार हम देखते हैं कि वहां से श्रील प्रभुपाद जी द्वारा ये नाम मैचलैस गिफ्ट अतुलनीय उपहार आज पूरे संसार में वितरित हो रहा है।
श्रील प्रभुपाद जी मैचलैस गिफ्ट के स्टोर में एक वर्ष रहने के बाद वे पहली बार कैलिफोर्निया के सेनफ्रांसिस्को शहर में गए। श्रील प्रभुपाद जी की पहली हवाई यात्रा न्यूयॉर्क से सेनफ्रांसिस्को तक की। जब वे वायुयान में बैठे, उन्होनें अपने अनुभव अपने शिष्यों के साथ साझा किए कि "किस प्रकार से हवाई जहाज उड़ा और उन्होंने गगन चुम्बी इमारतों को देखा।" प्रभुपाद जी ने कहा कि "उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे एक माचिस की डिब्बी के ऊपर दूसरी माचिस की डिब्बी रख दी हो और फिर जोड़ जोड़ कर इमारतें खड़ी कर दी गयी है। इस प्रकार से श्रील प्रभुपाद जी अपने शिष्यों के साथ अपना अनुभव साझा कर रहे थे। श्रील प्रभुपाद जी ये सब देखकर काफी अचम्भित हो गए थे क्योंकि यह प्रभुपाद जी की पहली हवाई यात्रा थी, इससे पूर्व प्रभुपाद जी कभी हवाई जहाज में नहीं बैठे थे।
आप सब को पता ही है कि श्रील प्रभुपाद जी ने सेनफ्रांसिस्को में पहली जगन्नाथ रथ यात्रा का आयोजन किया था। यहां हमें श्रील प्रभुपाद जी की कई कहानियां सुनने को मिलती हैं। उनकी कई लीलाओं का पता चलता है।हम सब को पता है कि श्रील प्रभुपाद जी का सेनफ्रांसिस्को में एक इतिहास है। जब श्रील प्रभुपाद जी ने पहली जगन्नाथ रथ यात्रा का यहाँ आयोजन किया था,इस कार्यक्रम में लगभग 10000 की संख्या में अमेरिकन स्त्री और पुरुष एकत्रित हुए थे और श्रील प्रभुपाद जी को उस कार्यक्रम से बहुत बड़ी अभूतपूर्व सफलता प्राप्त हुई थी। उसके उपरांत श्रील प्रभुपाद जी ने कहा कि "मैं सेनफ्रांसिस्को का एक नया नाम देता हूँ। " उन्होंने सेनफ्रांसिस्को शहर का नामकरण कर उसको न्यू जगन्नाथपुरी नाम दिया।यह शहर नवीन जगन्नाथपुरी कहलाएगा। श्रील प्रभुपाद जी ने वहां के इस्कॉन मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलदेव, सुभद्रा जी की स्थापना भी की।
मैं आज सुबह जगन्नाथ रथ यात्रा महोत्सव के लिए न्यूयॉर्क से लॉस एंजिल्स आया हूँ ।यहाँ रविवार के दिन जगन्नाथ रथ यात्रा महोत्सव रखा गया है। लॉस एंजिल्स की रथ यात्रा बहुत ही अतुलनीय है और प्रसिद्ध है। यहां इसमें तीन रथ होते हैं। श्रील प्रभुपाद जी ने लॉस एंजिल्स का भी नामकरण कर उसको नवीन द्वारकापुरी नाम दिया। नवीन द्वारकापुरी , लॉस एंजिलिस में यहाँ के प्रसिद्ध समुद्री किनारे 'रेन्स बीच' पर रथ यात्रा होती है। श्रील प्रभुपाद जब यहाँ रहते थे, प्रतिदिन वॉक के लिए यहाँ आया करते थे। मैं भी इस रथ यात्रा में भाग लेने के लिए आया हूं। यहां मेरा दो दिवसीय प्रोग्राम, प्रचार कार्य रहेगा। आज कीर्तन मेला में भी मुझे भाग लेना है। मैं यहां दो दिन निवास करूंगा, प्रचार करूंगा, कीर्तन मेला, रथ यात्रा में सहभागी बनूँगा।
मुझे अभी यहाँ रुकना होगा क्योंकि मुझे आगे के कार्यक्रम में जाना है। हम आप लोगों के साथ इस कॉन्फ्रेंस में जप करते रहेंगे या तो लाइव जप चर्चा के माध्यम से जैसे कि आज हो रही है या रिकार्डेड कॉन्फ्रेंस के माध्यम से, लेकिन हमारा प्रयास रहेगा इस कॉन्फ्रेंस को चालू रखें। इसमें निरतंर सहभागी बनते रहिएगा और आते रहिएगा।
जय श्रील प्रभुपाद की जय!
हरे कृष्ण!