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4th Aug 2019 आज हम जैसा कि कल हमने किया था, अभी हम इस कॉन्फ्रेंस मे जप कुछ समय तक करते हैं और तत्पश्चात मैं जपा टोक देता हूं। जब मैं भारत में था उस समय हम अधिक समय तक जप करते थे, परंतु यहां पर शाम को मेरे अधिकतर कार्यक्रम है, जिनमें मुझे सम्मिलित होना है। लॉस एंजेलिस में तो हमने कुछ देर जप किया, अब हम जब चर्चा करेंगे। तो आप सभी भक्त इस जप चर्चा के पश्चात अपना बचा हुआ जप पूरा कर सकते हैं। सभी भक्त अपना जप सुबह करने का प्रयास कीजिए जैसा कि मैं जानता भी हूं और मुझे पता भी चला है जब दुबई से श्यामालंगी माताजी ने मुझे लिखा कि कुछ भक्त अपना जप सुबह के समय पूरा नहीं कर पाते हैं तो वे शाम के समय ऑफिस से आने के पश्चात गाड़ी चलाते समय जब पूरी तरह से थक जाते हैं, शाम को या रात के समय वे बैठ कर अपना जप पूरा करते हैं । यह अच्छी बात नहीं है यह अत्यंत बुरी बात है आपको अपना जप सुबह के समय पूरा करना चाहिए, क्योंकि जप हमारे आध्यात्मिक जीवन का सबसे विशेष अंग है और यदि हम इसे सुबह के समय जब सतोगुण का प्रभाव सर्वाधिक होता है और इस समय रजोगुण और तमोगुण का प्रभाव कम होता है। रात को जब हम सोते हैं तत्पश्चात सुबह के समय जगने के बाद हमारा शरीर और मन दोनों ही ताजा होते हैं , दोनों ही 1 तरीके से पर्याप्त विश्राम कर चुके होते हैं उस समय में हम ध्यान पूर्वक जप कर सकते हैं हम भगवान का चिंतन कर सकते हैं हम हरे कृष्ण के मंत्र का अनुभव कर सकते हैं। तो आप इस चीज का ध्यान रखिए अपना जप सुबह के समय पूरा करें, इस प्रकार से आप अपनी अधिकतर माला सुबह के समय पूरी कर सकते हैं ऐसा नहीं है कि आप में से कोई भक्त सुबह के समय जप नहीं करता है, अधिकतर आप सुबह के समय जप करते हैं परंतु कुछ भक्त ऐसे भी हैं जो सुबह के समय बिल्कुल भी जप नहीं करते हैं। वे अपना जप दिन भर खींचते हैं, रात के समय पूरा करते हैं, जप को टुकड़ों में करते हैं यह अच्छी बात नहीं है।आप को जितना हो सके 16 माला में से अधिकतर माला सुबह के समय पूरी कर लेनी चाहिए इस प्रकार जो हरे कृष्ण महामंत्र का जप करने वाले साधक हैं, हमें दिन के 24 घंटों का हिसाब किताब रखना चाहिए कि मैं किस समय जप करूंगा, मैं किस समय अध्ययन करूंगा, यह सुबह का समय प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त का समय है यह हमारे जप, अध्ययन के लिए सर्वोत्तम है तो इस समय जपऔर अध्ययन करने का फल प्राप्त होता है। जो परिणाम हमें प्राप्त होता है वह सबसे उत्तम है। मैं स्पंज के विषय में सोच रहा था, जो स्पंज है उसे स्याही , पानी अथवा किसी तरल पदार्थ में डूबाते हैं तो वह उस पदार्थ को शोषित कर लेता है, उसे शोख लेता है परंतु एक बार यह उस पदार्थ को शोख लेता है, उसके पश्चात उसे फिर से डुबाएंऔर यदि हम चाहें की और अधिक पानी को शोखे तो यह संभव नहीं होता है। एक स्थिति होती है कि जहां तक स्पंज उस पानी को शोख सकता है उसके पश्चात आप डूबाएंगे तो भी कुछ नहीं होगा, क्योंकि वह पहले से ही उस पानी से भरा हुआ है अथवा उस तरल पदार्थ से भरा हुआ है। इसी प्रकार हमारा मन वह भी उस स्पंज के समान है, हमारा मन पूरे दिन कार्य करने के पश्चात अथवा कई विचार हमारे मन में आते हैं पूरे दिन में उनका चिंतन करता है और इस प्रकार से उन विचारों के चिंतन से उन कार्यों के कारण से यह मन पूर्ण हो जाता है वह उस विचारों से भर जाता है और तब यदि आप उसके पश्चात जब हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हैं तो मन महामंत्र के जप को शोखता नहीं है अथवा उसको ध्यान पूर्वक सुनता नहीं, अपितु उसे पुनः उछाल देता है इस प्रकार से यदि आप एक बॉल दीवार पर फेंकते हैं तो वह तुरंत उछल कर आपके पास आ जाती है,उसी प्रकार जब आपका मन बाह्य विचारों अथवा आपके दैनिक कर्म के विचारों से पूरी तरह भरा होता है अपितु परिपूर्ण रहता है तब यदि आप बैठकर रात्रि के समय "हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे " का जप करते हैं तो मन इसको स्वीकार नहीं करता है और वह उस हरि नाम को पुनःउछाल देता है, अर्थात वह हमारे भीतर प्रवेश नहीं करता है तो ऐसे जप से हम उस पर चिंतन नहीं कर पाएंगे। हम उसका श्रवण नहीं कर पाएंगे। सबसे उत्तम होता है प्रातः काल का समय जब मन एकदम ताजा रहता है, फ्रेश रहता है आप पूरी रात सोते हैं, कल के सारे विचार पीछे चले जाते हैं। जैसा कि कहा जाता है उस समय सतोगुण का प्रभाव होता है तो इस कारण से भी चारों और शांति रहती है। तब जब आप हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हैं तब मन एक-एक शब्द को अवशोषित करता है और उस पर चिंतन कर सकता है, इस प्रकार अभी चतुर्मास चल रहा है चतुर्मास्य शयनी एकादशी से प्रारंभ होता है। शयनी एकादशी को आप में से कई भक्त पंढरपुर में उपस्थित थे तो यह चातुर्मास शयनी एकादशी से प्रारंभ होकर उत्थान एकादशी को जो कि कार्तिक में आती है तब तक चलता है। चतुर्मास्य के समय हमें हमारी साधना को ध्यान पूर्वक करना चाहिए, उसे ठीक प्रकार करना चाहिए, श्रवण कीर्तनम की संख्या बढ़ानी चाहिए। आप इस समय अधिक मात्रा में जप कर सकते हैं आप अधिक मात्रा में अध्ययन और श्रवण कर सकते हैं। चतुर्मास के समय कुछ पदार्थों का भी निषेध होता है जैसे कि हरे पत्तेदार सब्जियां, दूध, दही उड़द की दाल एक एक महीने में इनका निषेध होता है। कई भक्त होते हैं जो इनका कठोरता पूर्वक पालन करते हैं परंतु यहां पर जो मुख्य बात है कि हमें इस चतुर्मास के समय हमारे जप को हमारे अध्ययन को हमारे शश्रवण को और जो हम आध्यात्मिक सेवाएं करते हैं उनको ध्यान पूर्वक करना चाहिए। उनकी संख्या को बढ़ाना चाहिए और चैतन्य महाप्रभु जब पुरी में थे, चतुर्मास्य के समय संपूर्ण बंगाल, उड़ीसा , शांतिपुर आदि कई स्थानों से भक्त जगन्नाथपुरी आते थे और पूरे 4 महीने जो चतुर्मास का समय है, उस समय तक वे पुरी में ही महाप्रभु के साथ निवास करते थे इस प्रकार 4 महीने भगवान जब शयन करते हैं और कार्तिक में जो उत्थान एकादशी आती है, जब भगवान उठते हैं तो यह चतुर्मास वहां पर समाप्त होता है। तो पंढरपुर में कुछ भक्त शयनी एकादशी से जब भगवान शयन करने जाते हैं उससे पहले पंढरपुर आते हैं और भगवान विट्ठल का दर्शन करते हैं। इस प्रकार भगवान जब शयन कर रहे होते हैं तब भक्त धाम में, पंढरपुर में वृंदावन, जगन्नाथपुरी, मायापुर अथवा आप भक्त अपने घरों में क्योंकि आपके घर में भगवान के विग्रह है भगवान की पूजा होती है आपका घर भी धाम ही है, आप अपने घर में रहकर भी इन आध्यात्मिक सेवाओं को संपन्न कर सकते हैं। इस प्रकार आप अधिक मात्रा में जप कीजिए, अध्ययन कीजिए, ध्यान पूर्वक श्रवण कीजिए । आप जो जप करें रहे हैं उसको आप ध्यान पूर्वक सुनिए और कई बार ऐसा होता है कि हम जप करते हैं, श्रवण नहीं कर पाते परंतु कोई और ही श्रवण करता है ऐसा नहीं होना चाहिए, जब आप जप कर रहे हो तो आप उसका श्रवण करें, और इस चतुर्मास्य का आप इस प्रकार से लाभ ले सकते हैं। आप ध्यान पूर्वक जप कीजिए आप अपराधों से बचने की कोशिश कीजिए इस प्रकार आप एक लिस्ट बना सकते हैं की चतुर्मास में क्या-क्या कार्य करूंगा, कुछ भक्त ऐसा भी करते हैं, इस चतुर्मास में मैं नमक नहीं खाऊंगा अथवा मैं इस चतुर्मास में वैष्णव अपराध नहीं करूंगा अपितु मैं वैष्णव की सेवा करूंगा तो नामे रुचि जीवे दया,यहां पर मैं प्रयास करूंगा कि हरिनाम में रुचि उत्पन्न हो इसलिए आप ध्यान पूर्वक जप करेंगे तो आपकी रुचि इसमें उत्पन्न होगी और जीवो के प्रति अपनी दया दिखाइए, आप के आस पास पड़ोस के व्यक्ति,आपके भाई बहन संपूर्ण मानवता के प्रति आप दयालु बनिए। इस प्रकार से आप चतुर्मास का लाभ ले सकते हैं, अभी मैं लॉस एंजिल्स में हूं जैसा कि मैंने कहा है कि कल आपको बताया था यहां पर रथ यात्रा संपन्न होने वाली है और आपको कल यह भी बताया गया कि लॉस एंजेलिस जो आध्यात्मिक नाम है नवीन द्वारका न्यू द्वारका है यहां पर जो भक्त हैं, वे इस रथ यात्रा की जो अद्भुत और बहुत विशाल रथ यात्रा होने वाली है इसकी तैयारी में लगे हुए हैं, यह रथयात्रा यहां पर कल वेनिस तट पर संपन्न होगी। आज सुबह मैं चैतन्य चरितामृत पर प्रवचन दे रहा था जहां पर सभी भक्त एकत्रित थे वहां पर मैं बता रहा था कि पुरी में चतुर्मास चल रहा था तो उस समय सभी भक्त जो पुरी आ रहे थे, राजा प्रताप रुद्र इन भक्तों को नहीं जानते थे, जो भक्त नवदीप से आ रहे थे जब वे भक्त वहां आए और जब वे जगगनाथपुरी में नगर संकीर्तन कर रहे थे, उस समय महाराजा प्रताप रुद्र अपने महल की छत पर चले गए थे, सार्वभौम भट्टाचार्य और गोपीनाथ आचार्य भी उनके साथ थे, और महाराज प्रताप रुद्र उनसे पूछ रहे थे अरे वह जो वृद्ध व्यक्ति है सफेद दाढ़ी में वह कौन है, उन्हें उत्तर मिलता है कि वह अद्वैत आचार्य हैं, इसी प्रकार वे पूछते हैं और वह व्यक्ति कौन है जिसने नीले कलर की धोती पहनी हुई है, मुझे आशा है कि आपको पता होगा कि वह व्यक्ति कौन है वह नित्यानंद प्रभु हैं, फिर पूछते हैं कि उनके पीछे कौन है फिर पता चलता है कि श्रीवास हैं,उन्हें परमेश्वर और उनके आदि भक्तों का परिचय प्राप्त हो रहा था महाराजा प्रताप रूद्र उनका दर्शन कर रहे थे। और वे सब जो हरि नाम संकीर्तन कर रहे थे महाराजा प्रताप रूद्र स्तब्ध रह गए, वे उन से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने सार्वभौम भट्टाचार्य और गोपीनाथ आचार्य से पूछा कि मैंने पहले भी कई बार कीर्तन सुना है जहां कीर्तनीय इस मंत्र को गाते हैं, इसी प्रकार से करताल और मृदंग बजाकर कीर्तन करते हैं, परंतु मैं इस कीर्तन से बहुत अधिक प्रभावित हो रहा हूं। इनमें क्या भिन्नता है यह कीर्तन क्यों एक अलग कीर्तन है और क्यों मैं इसके प्रति अधिक से अधिक आकर्षित हो रहा हूं। उन्होंने उत्तर दिया की है यह प्रेम कीर्तन है इस कीर्तन में प्रेम के साथ में भक्त भगवान के नाम का गान कर रहे हैं , यह अपराध रहित कीर्तन है, यह शुद्ध नाम कीर्तन है। इस प्रकार से हमसे भी आशा की जाती है जो गौड़ीय वैष्णव है हम से आशा की जाती है की हम इस प्रकार से प्रेम जप और प्रेम कीर्तन करें। जब हम सदैव निरंतर जप करते रहते हैं तो भगवान के प्रति प्रेम की प्राप्ति होती है, प्रेम उत्पन्न होता है और तब हम जप और कीर्तन करते हैं, वह कीर्तन होता है। हमारा जो लक्ष्य है वह यह है जो बंगाल से भक्त आते थे और कीर्तन करते थे,हमें भी उनके पद चिन्हों का अनुसरण करते हुए ध्यान पूर्वक जप करके उस प्रेम को प्राप्त करने के लिए प्रेम कीर्तन और प्रेम जप करने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार से आपको यह संदेश मिल चुका है, आज के विचार आहार के समान है अब हम इस जप कॉन्फ्रेंस को विराम देते हैं। और यह आपके और हमारे लिए दिन का अंत नहीं है यहां लॉस एंजलिस में सायं कालीन कार्यक्रम है या कीर्तन मेला अभी भी चल रहा है। आप भी इस कीर्तन मेला को गुरु महाराज के युटुब चैनल, एफबी पेज पर लाइव देख सकते हैं, और लॉस एंजलिस के समय के अनुसार 7:30 बजे शाम को अभी से 1 घंटा 20 मिनट के पश्चात गुरु महाराज वहां पर जो मंदिर है वहां पर कीर्तन करेंगे, हम सभी इसे लाइव देख सकते हैं और कल यहां पर विशेष जगन्नाथ यात्रा है। भक्त संपूर्ण अमेरिका से पूर्व पश्चिम से लॉस एंजेलिस आ रहे हैं और कई देशों से भी भक्त इस जगन्नाथ रथ यात्रा में सम्मिलित होने के लिए लॉस एंजेलिस आ रहे हैं तो यह रथयात्रा कल संपन्न होगी।आप जप करते रहिए,जो बाकी जप है आप उसे पूरा कीजिए और आगे जप कीजिए। हरे कृष्णा

English

4th August 2019 Brahma Muhurta - the best time to chant Try to chant your japa during the morning hours. I heard from Shyamlangi Mataji from Dubai, how devotees plan to do their japa during the day or at the end of the day after they have returned home tired from work and then they are trying to do their japa. Don’t do that. That’s very bad policy. The best time of the day for devotional performances, especially chanting, is the early morning hours when the mode of goodness prevails and the modes of passion and ignorance are subdued. That is the time after the night’s rest that our body and mind has rested and is peaceful and ready to absorb more thoughts, vibrations or talks. This is the time we should be chanting our japa. Make sure you are chanting in the morning. At least you should chant most of your rounds in the morning. Some remaining rounds are fine. You can try to complete them during the day or in the evening. I was talking of the devotees who do not chant in the morning at all. And they plan to do all their chanting from beginning to finish during the day, in the evening or late in the night. We as Sadhakas, the practitioners of the chanting of the holy name. We have to plan our day, all 24 hours. This time I am going to do this. This time I am going to do that. Especially for chanting, hearing and some reading also, Brahama Muhurta is the most favourable time. You will reap better results while chanting in the morning. I was just thinking. A sponge absorbs ink or water or some liquid. So if a sponge has already absorbed ink or water and it is saturated, then it won’t absorb any more. If you try to use the same sponge to wipe the ink or water that has fallen, it won’t absorb or suck in the ink or water because it is already full. I was thinking our minds are also like that. All day we are taking in so many thoughts, so many things are absorbed, contemplated upon by the mind and mind is kind of saturated, super saturated, overloaded and under stress. It can’t take in any more. If you try to use such a mind that has overworked the whole day thinking and hearing and observing, then on top of that you try to chant Hare Krishna, Hare Krishna’ then that ‘Hare Krishna, Hare Krishna’ is going to bounce off your mind. Like you throw a ball against the wall and it just bounces back. So we say ‘Hare Krishna, Hare Krishna’ but the mind is already preoccupied with all the thoughts throughout the day. We are keeping our mind busy so there is no room for ‘Hare Krishna, Hare Krishna’. Even if we chant it will just bounce off our ears or our mind. It will not take it in or contemplate on the Hare Krishna Mahamantra. It will not absorb the ‘Hare Krishna, Hare Krishna’ Mahamantra. So the best time is when the mind is fresh and ready during the early, peaceful morning hours. All our yesterday’s thoughts and wanderings have kind of taken a back seat or settled somewhere and then the mind is ready for more. It is peaceful in the mode of goodness in the morning hours and then when we chant ‘Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare, Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare’ the mind would very eagerly take that and hear and think about what it has been hearing. From Sayani Ekadasi Caturmasya commences. Many of you were in Pandharpur for Vyasa puja on Sayani Ekadasi. That was the beginning of Caturmasya which is also a good time for doing more sadhana, more sravanam kirtanam, of course some tapasya , some fasting from spinach one month, no milk for one month, no yogurt another month and no urad dhal another month. We do not follow so much austerity. Some devotees become more strict with the diet. We could do more sadhana, more chanting, hearing, more studies, more sadhu sanga. There are lots of festivals also during this four-month period. While Caitanya Mahaprabhu was on the planet He was spending time in Jagganath Puri. Devotees would come from all over Orissa, Bengal, Bangladesh, East Bengal, Santipur, here and there. Many of them would stay on for four months in Jagannatha Puri with Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu. Utthana Ekadasi comes during the month of Kartik. Utthana means getting up and Sayan means sleeping. That’s the Lord’s program for all those pilgrims you noticed coming to Pandharpur. They were coming there to receive darsana of the Lord before He goes to sleep and rest for four months. Good idea? We too will follow in the footsteps of the Lord. While the Lord is relaxing and resting, devotees in the dham like Pandharpur dham, Jagganath Puri dham, Vrindavan dham and also could be at your home, concentrate on the holy names of the Lord. Your home is also a place of pilgrimage. You have made your home into a temple and there devotees practice more hearing and chanting and concentrate on what he is hearing, “I want to hear the holy name. I want to hear’. Many times we chant but we do not hear. Or maybe we are chanting, and others are hearing but we are not hearing. So, it’s a good time to take advantage of this Caturmasya and practice attentive chanting. Practice avoiding the ten offences. You could make a list, “I am going to avoid this, I am going to avoid that. I am not going to eat salt and the benefits are there also. I am going to avoid Vaisnava aparadha. On the contarary I am going to serve Vaisnavas, do Vaisnava seva, sadhu seva, name ruci, jive daya. I am going to increase the attachment and the taste for chanting and do jive daya, exibit some compassion or daya on other fellow human beings or fellow brothers and sisters. This Caturmasya is the time when each one of you could see what you could do in addition to improve your sadhana, your chanting. Here in Los Angeles there is a Ratha-yatra tomorrow, big Ratha-yatra festival. Los Angeles is also known as New Dwaraka. Devotees of New Dwaraka are getting ready for grand Jagannatha Ratha-yatra festival here tomorrow at Venice Beach. So, this morning in Caitanya-caritamrta class, I was asked to give class and we were remembering the devotees who 500 years ago were coming to Jagannatha Puri. So I was narrating this morning that now they were arriving. King Prataparudra was new to this. He did not know who is who. As they were coming in big numbers and in a procession, nagar Kirtana was also taking place. He was very curious to know and understand who they were and what they were doing? King Prataparudra climbed up to the rooftop of his palace and he was accompanied by Sarvabhauma Battacharya and Gopinath Acarya. King Prataparudra wanted to know who that elderly person with the beard was? That’s Advaitacarya, And what about that one with the blue Dhoti? Who was he? Balaram? It was Nityananda Prabhu. And who is that one behind Him? It was Srivas Thakur, And that one? Parmeshwar. Who is that one?Narsimhananda. And so it went on. King Prataparudra was taking darsana. The one thing that impressed and amazed king Prataparudra was the performance of the Kirtana. He was asking others around him, Sarvabhauma Battacharya and others, “I have heard Kirtana, but not of this kind. Kirtaniyas are chanting the same mantra, playing the same drums and kartals, but this Kirtana that I am hearing today performed by these pilgrims arriving from all over Bengal, is something different. I am really attracted by this Kirtana. This is very appealing to me and this is very powerful. What is the difference between this Kirtana and the other Kirtanas that I had heard? The reply given was that this Kirtana is Prema Kirtana. They are singing with prema, with love for the Lord. This Kirtana is offenceless Kirtana,pure chanting, suddha nama japa. That is desirable. What is expected. Gaudiya Vaisnava japa or kirtana is prema japa or prema Kirtana, Kirtana with love for the Lord. By chanting and chanting they have developed love for the Lord. One could feel that love and get influenced by this loving Kirtana. Make your goal of chanting like those pilgrims coming from Bengal. You got the message. It’s enough food for thought for the day, so we will wind up here. It’s not end of the day for me us here.At 7.30 Los Angeles time, in 1 hour and 20 minutes, I will also be chanting in the temple and there is Ratha-yatra tomorrow. Devotees are arriving from all over America. This is the West coast. Devotees are coming from the East coast and from other countries. Continue chanting. You have more japa to do. Jai Jagannatha.

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