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जप टॉक 25 अक्टूबर 2019 हरे कृष्ण! आज 502 प्रतिभागी हैं। अब यह बढ़कर 510 हो गए हैं। मैं आज से इस जपा टॉक में केवल हिंदी में ही बात किया करूंगा और जब मैं जपा टॉक हिंदी में कहूंगा तब गौर भगवान प्रभु उसी समय साथ ही साथ उसका अंग्रेजी में अनुवाद टाइप किया करेंगे जिसको ट्रांसक्रिप्शन भी कहते हैं।अंग्रेजी में टाइप किए हुए जपा टॉक को अंग्रेजी भाषी अर्थात जिन्हें हिंदी समझ में नहीं आती पढ़ सकते हैं और जो अंग्रेजी भी नहीं समझते जैसे रशियन भक्त, उनके लिए भी धीरे-धीरे व्यवस्था की जाएगी। मेरे हिंदी टॉक को गौर भगवान प्रभु जब अंग्रेजी में टाइप करेंगे तब उसको देखते हुए रशियन भक्त उसका अनुवाद रशियन भाषा में कर सकते हैं। जब जपा टॉक शुरू होगा तब आपको एक सावधानी बरतनी होगी। आपको जो लिखने की आदत पड़ी हुई है, आप कमैंट्स या प्रश्न लिखते रहते हो,अब वह सब नहीं हो सकता। यह बहुत ही महत्वपूर्ण बात आपको समझनी होगी और ऐसा करना भी होगा। जपा टॉक शुरू होते ही आप जो चैट सेंशन में लिखते हो, वह नहीं लिख पाओगे क्योंकि मेरे जपा टॉक का हिंदी से अंग्रेजी में जो भाषांतर है, हम केवल उसी को भक्तों को दिखाना चाहते हैं जिससे वह पढ़ सके। यदि आप सब भी लिखते रहोगे तो सब मिक्स(मिश्रित) होगा। हम ऐसा करने की यह नई पद्धति बना रहे हैं। इससे समय की बचत होगी। उससे थोड़ा समय तो बचेगा ही।जपा टॉक आधे घंटे के लिए चलता है परंतु मैं केवल 15 मिनट के लिए बोलता हूं। आप में से कई भक्त अंग्रेजी और हिंदी समझते हैं।आपको भी ऐसे बैठे रहना पड़ता है। वही बातें दो-दो बार सुननी पड़ती है, एक बार अंग्रेजी में सुनो, फिर हिंदी में भी सुनो। यह जपा टॉक 6:30 की बजाय 6:45 पर शुरू करने का विचार है। इससे मंदिर के भक्तों को भी जप करने का थोड़ा अधिक समय मिलेगा। यह जपा टॉक हिंदी में लगभग 15 मिनट के लिए होगी। उसका अनुवाद अंग्रेजी भाषा में उन भक्तों के लिए टाइप होगा जो हिंदी नहीं जानते, भारतवासी या अन्य देशों के भक्त भी इस कॉन्फ्रेंस में हैं। वे अंग्रेजी में इसको पढ़ सकते हैं। जो अंग्रेजी में नहीं पढ़ सकते उनके लिए अंग्रेजी का रशियन भाषा में अनुवाद की योजना भी धीरे-धीरे बनाई जाएगी। क्या आप सब समझ रहे हो? आपको टाइप नहीं करना है। जब यह जपा टॉक होगा तब आपका टाइपिंग बंद अर्थात जब जपा टॉक होगा तब आप हिंदी या अंग्रेजी या मराठी या किसी भी भाषा में टाइपिंग नहीं करोगे। हम अंग्रेजी का अनुवाद भक्तों को दिखाना चाहते हैं। वे देखकर इसे पढ़ सकते हैं। मैं यह सोच रहा हूं कि आप जो कमेंट और टाइपिंग करते हो, उसको मैं पढ़ लूंगा लेकिन उस पर कमेंट या रिपीट करने का प्रयास नहीं करूंगा। आप सभी को पढ़ने का मौका मिलता ही है। आप जप के समय या दिन में भी उसको पढ़ ही सकते हो, आपके पास पढ़ने के लिए पूरा दिन है। हमारे पास ऐसी सुविधा है कि आप दिन में स्वयं उसे पढ़ या लिख सकते हो। आप उसको भी समझ जाओ। आप दिन में लैटस चैंट टुगेदर फेसबुक पेज पर कमेंट, प्रश्न या अनुभव पढ़ या लिख सकते हो। ऐसा मैं सोच रहा हूं कि हम जपा सेशन में उसकी चर्चा नहीं करेंगे या कम ही करेंगे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। आपको हमारी पॉलिसी के बारे में बातें समझ में आई कि क्या करना है और क्या नहीं करना है। क्या आपको पता चल रहा है? हरिबोल! अब हम आपसे कुछ वार्तालाप करना चाहते हैं। आप लिखना बंद कर दीजिए। श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभुनित्यानन्द श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादि – गौरभक्तवृन्द आप सभी न्यूनतम 16 माला जप कर ही रहे हो। आप में से किसी ने रिपोर्टिंग की है कि आप में से कुछ भक्त अधिक माला का भी जप कर रहे हैं। सोलापुर से अम्बरीष महाराज प्रभु ने 128 माला का जप किया। गणेश प्रभु ने 64 माला का जप किया। 51 माला का जप करने वालों ने भी रिपोर्ट की है। अधिक राउंडस (माला) करने वालों का स्वागत है लेकिन यह गुणवत्ता 16 माला की है या 25 माला की या अधिक माला की। कल एकादशी थी, इसलिए भी आपने अधिक जप किया होगा या फिर दामोदर मास में आपने अधिक माला करने का संकल्प लिया होगा। आप क्वांटिटी बढ़ा रहे हो इसका स्वागत है परंतु महत्वपूर्ण बात क्वालिटी की है। आप एक माला या आठ माला या 16 माला या 32 माला या 64 माला या 128 माला का जप कर रहे हो परंतु क्वालिटी बहुत ही महत्वपूर्ण है। क्वांटिटी भी है लेकिन उसकी गुणवत्ता अधिक महत्वपूर्ण है। क्वालिटी में मुख्य बात ध्यान की होती है। जब कोई क्वालिटी(गुणवत्तापूर्ण) जप करने को कहता है तब क्वालिटी का अर्थ ध्यानपूर्वक जप करना होता है। जप ध्यानपूर्वक करना चाहिए अर्थात जप गुणवत्तापूर्वक होना चाहिए। क्या आपने गुणवत्ता बढ़ाई या आपने गुणवत्ता की तरफ पूरा ध्यान दिया। हमें प्रतिदिन ध्यानपूर्वक जप करने का अभ्यास करना है। हम ध्यानपूर्वक अभ्यास करेंगे। जप को एक शब्द में ही कहा जा सकता है कि जप कैसा करना चाहिए- ध्यानपूर्वक जप करना चाहिए। कोई कह सकता है कि प्रेमपूर्वक जप करना चाहिए। यह उसी का दूसरा नाम हुआ। ध्यान पूर्वक जप करेंगे तो प्रेमपूर्वक जप होगा ही। कोई कह सकता है कि हमें अपराध रहित जप करना चाहिए। हमनें ध्यानपूर्वक या प्रेमपूर्वक जप करने का अभ्यास किया है या हम कर रहे हैं तब हमनें अपराध रहित जप करने का प्रयास भी किया होगा ही। यदि हम अपराध रहित जप करने का प्रयास करेंगे तभी तो ध्यानपूर्वक या प्रेमपूर्वक जप करेंगे। हार्दिक! तुम सुन नहीं रहे हो। सुनो, मुझे सुनो! अभी खुद के जप को नहीं सुनना है। आपके जप में सुधार लाने के लिए आपको कुछ सुनाया जा रहा है। यदि आप सुधार की बातें सुने बिना ही जप करते रहोगे तो यह आपका बिजनेस है जोकि अपराध पूर्ण है, यह है या वह है और वह ऐसे ही चलता ही रहेगा। ध्यान के संबंध में वृहदअरण्य उपनिषद में कुछ सुझाव दिए गए हैं एवं कुछ विधियां समझाई गयी हैं। कुछ दिन पहले सच्चिदानंदन स्वामी महाराज ने भी जप के विषय में लिविंग नेम्स नामक एक और ग्रंथ लिखा है। उसमें मुझे यह पढ़ने को मिला। वैसे मैं आपको पहले भी यह विभिन्न तरीके से या कुछ अंश एक समय, दूसरा अंश दूसरे समय कह चुका हूं लेकिन मैं आपको एक साथ यह गाइडलाइन, यह विधि यह ध्यान पूर्वक जप करने की विधि जितना संक्षिप्त हो सके उसको सुनाना और बताना चाहता हूं। हमारे पास समय कम है। कुछ आज कहूंगा फिर कभी पुनः किसी दिन कुछ और भी कहूंगा। इसमें श्रवण, मनन, निधि अभ्यास है। सच्चिदानंदन महाराज ने श्रवण, मनन, निधि अभ्यास के साथ वन्दनम (प्रार्थना) को जोड़ दिया है। वैसे श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं .... हम कोई भी बात या मंत्र श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं कहते हैं या हम कृष्ण के संबंध में कोई भी बात सुनते हैं, उसको श्रवण कहते हैं किंतु यदि हम केवल उसको सुन लेते हैं तो उससे हमारा श्रवण समाप्त नहीं होता है और न ही होना चाहिए। वह तो श्रवण की शुरुआत ही होती है, सुनी हुई बात को और सुनते रहो। जब हम कोई बात सुनते हैं, वह ध्वनि उत्पन्न करती है। कुछ बातें ध्वनित होती हैं, कुछ कंपन होता है, उसको सुनने से हम उसका कुछ अर्थ, भावार्थ या कुछ गूढ़ अर्थ समझते हैं।उसी को मनन कहते हैं। हमने सुना अथवा श्रवण किया, उसको आगे समझना चाहिए कि हमने क्या सुना है? हमनें जो हरे कृष्ण, हरे कृष्ण सुना है, श्रवण किया है, यह क्या है? हरे क्या है? कृष्ण क्या है? मैंने क्या सुना है? इसका अर्थ क्या है? भावार्थ क्या है? यह हरे कौन है? यह कृष्ण कौन है? ऐसे विचार उत्पन्न होना और उस पर ध्यान करना ही मनन कहलाता है। सच्चिदानंदन महाराज लिखते हैं कि हमने श्रवण किया अर्थात हम किसी विषय वस्तु को अपने कान तक लाएं। उन्होंने इसकी तुलना खाने की प्रक्रिया से की है। जैसे कि हम कोई वस्तु खाते हैं या अन्न, कोई प्रसाद, कोई घास अपने मुख तक लाते हैं अर्थात हमनें श्रवण किया अथवा हम उसे अपने कान के परदे तक लाए, कुछ ठक ठक हुई, कुछ घंटी बजी। हम कोई बात, वस्तु , नाम या होंठों तक लाए। मनन का अर्थ है उसको चबाना, उसको समझना कि वह कौन सा पदार्थ है? यह क्या है? इसका कौन सा स्वाद है? उसी समय हम उसका थोड़ा अर्थ या भावार्थ के साथ रस अनुभव करने लगते हैं। हम जो भी बात सुनते या खाते हैं, उसको चर्वण करके अथवा चबाकर भली-भांति समझने का प्रयास करते हैं। हमें सुनने में ज़्यादा समय नहीं लगता, यदि हमने कोई भी बात सुनी और खाई है अर्थात हमें उसको होठों तक लाने में और जिव्हा तक रखने में ज्यादा समय नहीं लगता है लेकिन हमें उसी पदार्थ या व्यंजन को चबाना भी होता है। जैसे कि कहा है कि हमें उसे 32 बार चबाना चाहिए। भगवान ने हमें बत्तीस दांत दिए हैं इसलिए उसे 32 बार चबाना चाहिए। हम जितना अधिक चबाएंगे, उतना अधिक रसास्वादन होगा। श्रवणं और उसके पश्चात मनन लेकिन यहाँ बात समाप्त नहीं हुई। इसे श्रवण की विधि का रूपांतर कह सकते हैं। हम लोग श्रवण से मनन की ओर जाते हैं, फिर वहां पर भी बात समाप्त नहीं होती है फिर वहां निधि अभ्यास शुरू होता है। उसका ध्यान शुरू होता है। वह अंश जिन्हें हम होठों तक लाए थे, तत्पश्चात जिव्हा पर रखा जाता है। पहले उनका श्रवण हुआ, फिर चर्वण हुआ। फिर होठों पर लाकर दांतों और जिव्हा पर लाकर उसको चर्वण किया, उसका मनन किया, ध्यान लगा कर उसे समझने का प्रयास किया। हमें उसका कुछ स्वादन होता है। फिर हम भेदय तक पहुंच जाते हैं। निधि अभ्यास अभी चालू ही है। श्रवण हुआ, मनन हुआ, फिर निधि अभ्यास होगा। उस खाने के पार्टिकल्स से उसके और छोटे-छोटे कण बनाए जाएंगे, उसका चर्वण होगा। पेट में उसके छोटे-छोटे कण बनेंगे, अंततोगत्वा उन कणों का रस बनेगा। रस से रक्त बनेगा और उसका उपयोग शरीर के पोषण के लिए होगा अर्थात शरीर की पुष्टि होगी। जैसा कि कहा है अन्न से पूरा शरीर बनता है। अन्न पहले जिस प्रकार से था अगर हम उसको सीधा पेट में डाल देंगे तो उल्टी भी हो सकती है या डायरिया हो सकता है। उसका शरीर के कल्याण/ पोषण या वर्धन के लिए कोई उपयोग नहीं होगा। अतः पहले हमने श्रवण किया, मनन किया फिर यदि उसका निधि अभ्यास किया अर्थात पेट तक पहुंचाया। हम इसे रक्त या भक्ति के रस भी कह सकते हैं। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे से उत्पन्न होने वाले जो भक्ति के रस हैं, अंततोगत्वा इस रस का पान ही हमारा लक्ष्य है। हमारी आत्मा इसका रसपान करे जिससे हम आत्मा के महात्मा बने या हमारी आत्मा महात्मा बने। हमारी भक्ति में वर्धन हो। भक्ति का शोषण नहीं हो अपितु पोषण हो। यह निधि अभ्यास और ध्यान श्रवण से हुई बात को इसका रूपांतरण मनन में करके निधि अभ्यास तक इस हरि नाम के और कई सारे भावार्थ उत्पन्न हो जाते हैं जिनसे भक्ति उत्पन्न होती है या रस उत्पन्न होता है। जब उसका आस्वादन आत्मा करती है तब वही जपयोग और भक्ति योग होता है। जब हमने भगवान के नाम हरे कृष्ण महामंत्र का श्रवण किया, हरे कृष्ण हरे कृष्ण ध्यान करने से उसका मनन करने से निधि अभ्यास करने से आत्मा को हरि नाम का परिचय होगा। नाम चिंतामणि रस विग्रह या हरि नाम रस की खान है। यह नित्य शुद्ध मुक्त और पूर्ण मैं ठीक ढंग से नहीं कह रहा हूँ किंतु चार बातें तो हैं ही। यह नित्य शुद्ध है, यह पूर्ण है, ये मुक्त है यह सब साक्षात्कार आत्मा को होने लगेंगे। हम लोग इसी के साथ आत्मसाक्षात्कारी या भागवत साक्षात्कारी बनेंगे या साक्षात्कार की पूर्णता की सिद्धि को प्राप्त करेंगे। अभिन्नतवाम नाम नामिनो यह नाम और नामी अभिन्न है। यह नाम ही तो भगवान है। ऐसा आत्मा का साक्षात्कार है। मैंने उसी के साथ लगभग कहा था या कहना चाहता हूं कि हमनें यह जपयोग या भक्ति योग श्रवण किया, यह हरिनाम महामंत्र है। मनन से, निधि अभ्यास से ऐसा उसको बनाया गया जिससे आत्मा उसका पान या आस्वादन कर सकती है। वहां हरि नाम अर्थात हरि और आत्मा का मिलन हो रहा है। यही सिद्धि / पूर्णता या साक्षात्कार है। बृहद अरण्यक उपनिषद में यही तीन विधि समझाई गयी है श्रवणं, मनन, निधि अभ्यास। सच्चिदानंदन महाराज ने वंदना (प्रार्थना) को जोड़ दिया है कि भगवान से प्रार्थना करो, हरि नाम को प्रार्थना करो, हरिनाम का आभार मानो, हरिनाम के चरणों में वंदना करो। अपनी आत्मा की तरफ से कुछ रिस्पांस करो। भगवान कुछ कह रहे हैं, हरिनाम कुछ कह रहा है, कई सारी बातें ध्वनित हो रही हैं। आत्मा भी अपना आभार प्रकट कर रही है या हर्ष का अनुभव कर रही है। इसी के साथ वंदना (प्रार्थना) कर रही है। आत्मा भी बोल रही है, विचार उत्पन्न हो रहे हैं जिसको भगवान सुन रहे हैं। उस भगवान नाम को या उस भगवान के नाम से ध्वनित होने वाली बातों को आत्मा सुन रही है। हरि! हरि! संक्षिप्त में ऐसा कहा जा सकता है।समय बीत चुका है। हम लोग यहाँ रुक जाते हैं, कल हम आगे इस बात को आगे बढ़ाएंगे या कोई और बात पर चर्चा करेंगे। हरे कृष्ण!

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