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*जप चर्चा* *23 -02 -2022* *भगवन नाम महिमा* (श्रीमान राधे शयाम प्रभु द्वारा) *ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया । चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरुवे नम : ।।* *श्री चैतन्यमनोऽभीष्टं स्थापितं येन भूतले । स्वयं रूप: कदा मह्यंददाति स्वपदान्न्तिकम् ।।* *नम ॐ विष्णु-पादाय कृष्ण-प्रेष्ठाय भूतले श्रीमते भक्तिवेदांत-स्वामिन् इति नामिने ।* *नमस्ते सारस्वते देवे गौर-वाणी-प्रचारिणे निर्विशेष-शून्यवादि-पाश्चात्य-देश-तारिणे ॥* *श्रीकृष्ण-चैतन्य प्रभु नित्यानन्द।श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादि गौरभक्तवृन्द।।* *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।* श्रील प्रभुपाद की जय ! लोकनाथ स्वामी महाराज की जय! मेरे पिछले सत्र में हम लोग दो विषयों के बारे में सुन रहे थे। *रसिक-शेखर कृष्ण परम-करुण। एइ दुइ हेतु हैते इच्छार उद्गम ॥4.16॥* (चैतन्य चरितामृत आदि लीला) अनुवाद- अवतार लेने की भगवान् की इच्छा दो कारणों से उत्पन्न हुई थी-वे भगवत्प्रेम रस के माधुर्य का आस्वादन करना चाह रहे थे और वे संसार में भक्ति का प्रसार रागानुगा (स्वयंस्फूर्त) अनुरक्ति के स्तर पर करना चाहते थे। इस तरह वे परम प्रफुल्लित (रसिकशेखर) एवं परम करुणामय नाम से विख्यात हैं। ऐसा कृष्णदास कविराज गोस्वामी एक श्लोक में बताते हैं भगवान श्री कृष्ण की ओर आकर्षण जीवो में दो कारणों से होता है एक कारण है कि भगवान रसिक शेखर हैं। मतलब भगवान की लीला चेष्टाएं है और भगवान की शरणागति, भगवान की खूबसूरती, भगवान कैसे प्रेम के भंडार हैं और किस तरह व्यवहार करते हैं। इस तरह की चीज देखकर जीव में भगवान की ओर आकर्षण जग जाता है। जैसे वृंदावन में एक दिन जामुन बेचने वाली आवाज करते हुए सड़क में से निकली और बुलाया कि किसी को जामुन चाहिए जामुन चाहिए तब कृष्ण ने नंद भवन को छोड़कर बाहर आकर देखा उन्होंने उन्हें बहुत पसंद था जामुन, उनको मालूम था कि यदि जामुन खरीदना है तो उसके बदले में कुछ देना पड़ेगा। उन्होंने इधर उधर मुड़ कर देखा पड़ोस में एक गोपी घर के बाहर आकर रंगोली बना रही थी तो कृष्ण सीधा उसके पास पहुंच गए और उसके हाथ से कंकड़ों को बाहर निकाल लिया और अपने घर में आकर उस जामुन वाली को दे दिया और अपने दोनों हाथों में जामुन भर के ले लिया तो उस गोपी ने जाकर अन्य गोपियों को दिन में बताया कि आज सुबह यह हुआ मेरे साथ जिसको सुनकर सभी गोपियां हंसने लगी , उनमें से एक गोपी ने कहा ऐसा कैसे कान्हा कर सकता है तुम्हारे साथ तुम से बिना पूछे , तभी उनमें से कुछ गोपियां कहने लगी काश हमारे हाथ से भगवान कंकड़ ले लेते तो कितना अच्छा होता। इस प्रकार गोपियों के बीच में जो प्रजल्प हुआ वह दिव्य था क्योंकि उसका केंद्र बिंदु कृष्ण ही थे। इस प्रकार कृष्ण वृंदावन में शरारते करते हैं और समस्त जीवों के चित्त को चोरी करते हैं आकर्षित करते हैं। भगवान "रसिक-शेखर कृष्ण परम-करुण " तो यह पहली चीज है कि रसिक शेखर होकर भी आकर्षित करते हैं दूसरी है परम करुणा उसके बारे में आज थोड़ा और बताएंगे उससे पहले मैंने पांच ए के बारे में बताया था पहला है अट्रैक्शन दूसरा है अटेंशन, अटैचमेंट, अब्जॉर्प्शन, अफेक्शन, उसके बारे में पिछली बार हमने सुना था यह अट्रैक्शन प्रिंसिपल हो गया लेकिन आज हम करुणा के बारे में बताएंगे परम करुणा, भगवान की करुणा भरे हृदय के बारे में, जीव को सोचना चाहिए जब हमारे हृदय में भगवान की अनुकंपा देखकर हम उससे प्रभावित होते हैं तब हमारी मती में एकाग्रता आएगी, क्योंकि आप देखेंगे जो योगी होता है छठे अध्याय में हम भगवत गीता में पढ़ते हैं उसको अपने मन की गति को देखना चाहिए मन क्या कर रहा है , किधर जा रहा है, किन विषयों के बारे में सोच रहा है, मन की सोच विचार क्या है? मन के बारे में सभी भक्तों को सोचना चाहिए। कभी-कभी हम अंग्रेजी में बोलते हैं माइंड लैस इंडोवर इसका मतलब है रक रक रक रक रक करके जप करना *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे* ,फटाफट जप कर देना, ऐसा कुछ लोग करते हैं। लेकिन हमें देखना चाहिए कि मन में क्या चल रहा है मन के तीन कार्य हैं "थिंकिंग, फिलिंग, विलिंग" थिंकिंग का मतलब सोचना फ़ीलिंग का मतलब है अनुभव करना विलिंग का मतलब है कुछ कार्य करना, अभी हमारी थिंकिंग सोचना, कैसे होना चाहिए जैसे मन में भगवान का गुणगान उठता है। भगवान के महान भक्तों के हृदय में कि भगवान का नाम कितना श्रेष्ठ है जैसे बहुत से लोग भागवत में बताते हैं विष्णु दूत हरि नाम का गुणगान करते समय, *म्रियमाणो हरेर्नाम गृणन्पुत्रोपचारितम् । अजामिलोऽप्यगाद्धाम किमुत श्रद्धया गृणन् ॥* श्रीमद भागवतम अनुवाद- अजामिल ने मृत्यु के समय कष्ट भोगते हुए भगवान् के पवित्र नाम का उच्चारण किया और यद्यपि उसका यह उच्चारण उसके पुत्र की ओर लक्षित था फिर भी वह भगवद्धाम वापस गया। इसलिए यदि कोई श्रद्धापूर्वक तथा निरपराध भाव से भगवन्नाम का उच्चारण करता है, तो वह भगवान् के पास लौटेगा इसमें सन्देह कहाँ है? ऐसा यमराज ने अपने दूतों को बोला यमदूत देखो हरी नाम की महिमा को देखो यमलोक आने वाले अजामिल को उसका पाश कट गया उसको भगवत धाम लौटने का मौका मिला केवल हरि नाम मात्र के उच्चारण से , *नामोच्चारणमाहात्म्यं हरेः पश्यत पुत्रकाः । अजामिलोऽपि येनैव मृत्युपाशादमुच्यत ॥* श्रीमद भागवतम अनुवाद- हे मेरे पुत्रवत् सेवकों! जरा देखो न, भगवन्नाम का कीर्तन कितना महिमायुक्त है! परम पापी अजामिल ने यह न जानते हुए कि वह भगवान् के पवित्र नाम का उच्चारण कर रहा है, केवल अपने पुत्र को पुकारने के लिए नारायण नाम का उच्चारण किया। फिर भी भगवान् के पवित्र नाम का उच्चारण करने से उसने नारायण का स्मरण किया और इस तरह से वह तुरन्त मृत्यु के पाश से बचा लिया गया। कट गया पाश और प्राप्त हुआ बैकुंठ वास, अजामिल का भाग्य देखो उसके भाग्य की सीमा नहीं है सिर्फ हरि नाम मात्र करने से। इस तरह से यमराज हरि नाम का गुणगान कर रहे हैं और विष्णु दूतों ने भी अनेक प्रकार से हरि नाम का गुणगान किया। इसी तरह, भगवन्नाम के कीर्तन के महत्त्व को न जानते हुए भी यदि कोई व्यक्ति जाने या अनजाने में उसका कीर्तन करता है, तो वह कीर्तन अत्यन्त प्रभावकारी होगा। *यथागदं वीर्यतममुपयुक्तं यदृच्छया । अजानतोऽप्यात्मगुणं कुर्यान्मन्त्रोऽप्युदाहृतः ॥* श्रीमद भागवतम अनुवाद- यदि किसी दवा की प्रभावकारी शक्ति से अनजान व्यक्ति उस दवा को ग्रहण करता है या उसे बलपूर्वक खिलाई जाती है, तो वह दवा उस व्यक्ति के जाने बिना ही अपना कार्य करेगी, क्योंकि उसकी शक्ति रोगी की जानकारी पर निर्भर नहीं करती है। हरि नाम की महिमा को एक दवाई की शक्ति से उसकी तुलना की गई है एक डॉक्टर जब हमको हरे पीले काले रंग की दवाई देता है तब हमको मालूम ही नहीं होता कि अंदर क्या है नाम भी याद रखना मुश्किल होता है क्योंकि एलोपैथी का नाम जब सुनते हैं तो वह बहुत लंबा लंबा नाम होता है। लेकिन जब हम उस दवाई को खा लेते हैं तो हमारा बुखार मिट जाता है, बच्चा क्यों ना हो या बूढ़ा भी क्यों ना हो कोई भी उस दवाई को खाता है तो उस दवाई का असर होता ही है। इसी तरह हरि नाम का उच्चारण करने वाले व्यक्ति को लाभ अवश्य होता है। पाश्चात्य देश के लोगों ने कभी भी हरि नाम सुना ही नहीं था अपने जीवन में कृष्ण कौन हैं? या राम कौन हैं? उनकी लीला क्या है? उनका गुण क्या है? उनका चरित्र क्या है उन्होंने क्या किया कुछ भी उनको मालूमात नहीं था, फिर भी वह *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।* यह नाम लेकर उनका चित्त शुद्ध हुआ और उन्होंने प्रगति की। इस प्रकार विष्णु दूत हरि नाम का गुणगान कर रहे हैं। *गुरूणां च लघूनां च गुरूणि च लघूनि च । प्रायश्चित्तानि पापानां ज्ञात्वोक्तानि महर्षिभिः ॥* श्रीमद भागवतम अनुवाद- प्राधिकृत विज्ञ पंण्डितों तथा महर्षियों ने बड़ी ही सावधानी के साथ यह पता लगाया है कि मनुष्य को भारी से भारी पापों का प्रायश्चित्त करने के लिए प्रायश्चित की भारी विधि का तथा हल्के पापों के प्रायश्चित्त के लिए हल्की विधि का प्रयोग करना चाहिए। किन्तु हरे कृष्ण-कीर्तन सारे पापकर्मों के प्रभावों को, चाहे वे भारी हों या हल्के, नष्ट कर देता है। यदि बड़ा पाप हो तो उसके लिए बड़ा प्रायश्चित करना पड़ता है और यदि छोटा हो तो उसके लिए छोटा प्रायश्चित या प्रेयर करना पड़ता है लेकिन हरि नाम करने वालों के लिए और दूसरा कुछ करना ही नहीं है क्योंकि हरिनाम करते जाओ तो बड़ा छोटा सब पापों को मिटा देने की क्षमता हरि नाम में है। हम जब हरि नाम चालू करते हैं वह चिंगारी की भांति है एक चिंगारी के ऊपर यदि भूसे को डाल दिया जाए तो सारा भूसा जलकर राख हो जाता है, इसी प्रकार पाप चाहे कितनी भी बड़ी मात्रा में क्यों ना हो वह भी समाप्त हो जाता है। इस तरह विष्णु भगवान के नाम की महिमा का गान गाते हैं जब अजामिल को यमदूत ले जाने वाले थे विष्णु दूत अलग-अलग सुंदर श्लोकों से वह गुणगान करते हैं। हम लोगों के मन में भगवान के नाम रूप गुण लीला इत्यादि का उदय होना चालू हो गया है, इसका मतलब उसको उत्तम श्लोक बोलते हैं। उत्तम श्लोक का मतलब है , जब महान शुद्ध भक्त जैसे कुंती महारानी जैसे पांडव, जैसे ब्रह्मा जी, जैसे प्रल्हाद महाराज, गजेंद्र, ध्रुव महाराज इस तरह अलग-अलग पुरुषों के हृदय से उठने वाली प्रार्थना को उत्तम श्लोक बोलते हैं। उत्तम का मतलब है तम से ऊपर, कौन है इस तम के ऊपर या दुनिया के अंधकार से ऊपर भगवान श्रीकृष्ण। उनके संबंध में जब ह्रदय में प्रेरणा जगती है तब भगवान का गुणगान उत्पन्न होता है। भगवान से इस प्रकार की प्रार्थना वह कर पाते हैं भगवान जिनको शक्ति देते हैं और फिर वे भगवान का गुणगान करते हैं। हम लोगों को इतना ही करना है कि हमें वैष्णव गीतों को पढ़ना है और भगवान की दी हुई प्रार्थनाओं को भागवत में पढ़कर यदि हम, हमारे हृदय में, प्रभावित होते हैं और इस तरह प्रभावित होकर वही इस हृदय को कोमल कर देते हैं। इस तरह की थिंकिंग, फीलिंग, विलिंग जो होता है उसमें भगवान के गुणवान के विषय में हमको सोचना चाहिए और विलिंग का मतलब है अपने अंदर भगवान को महसूस करना और अपने दोषों को देखना और पश्चाताप करना और अपने पहले किए हुए पाप कर्म के बारे में सोच कर पछताना और भगवान से याचना करना और भगवान के श्री चरणों में गिर पड़ना इस तरह की भावना भक्तों के हृदय में उठना चाहिए। *नाम्नामकारि बहुधा निज-सर्व-शक्तिस् तत्रार्पिता नियमितः स्मरणे न कालः ।एतादृशी तव कृपा भगवन्ममापि दुर्दैवमीदृशमिहाजनि नानुरागः ॥* अनुवाद- "हे प्रभु, हे पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान्, आपके पवित्र नाम में जीव के लिए सर्व सौभाग्य निहित है, अतः आपके अनेक नाम हैं यथा कृष्ण तथा गोविन्द, जिनके द्वारा आप अपना विस्तार करते हैं। आपने अपने इन नामों में अपनी सारी शक्तियाँ भर दी हैं और उनका स्मरण करने के लिए कोई निश्चित नियम भी नहीं हैं। हे प्रभु, यद्यपि आप अपने पवित्र नामों की उदारतापूर्वक शिक्षा देकर पतित बद्ध जीवों पर ऐसी कृपा करते हैं, किन्तु मैं इतना अभागा हूँ कि मैं पवित्र नाम का जप करते समय अपराध करता हूँ, अत: मुझ में जप करने के लिए अनुराग उत्पन्न नहीं हो पाता है।' आप अपने अनेक नामों के रुप में आते हो और अनेक नाम में शक्ति है लेकिन मैं इतना मूर्ख हूं कि नामों में रुचि नहीं आती और मेरा मन सारी दुनिया में भटकता है। इस तरह से एक भक्त को पछताना चाहिए और विलिंग का मतलब है देखना चाहिए कि क्या मेरे मुंह से भगवान का नाम निकल रहा है यह क्या मैं सो तो नहीं गया और मेरे हाथ या उंगली सही ढंग से माला को घुमा रहे हैं या नहीं तो कभी-कभी माला गिर जाती है या एक मंत्र में हम तीन चार मणि को आगे कर देते हैं । इस तरह से देखना चाहिए कि विलिंग कंपोनेंट, सही ढंग से हम सीधा बैठे हैं क्या हम जागृत अवस्था में है या माला घूम रही है सही ढंग से और एक माला करने के लिए कितना टाइम लगा। अगर एक माला के लिए 10/15 मिनट लगता है तो सो गये क्या, अगर एक माला 5 मिनट में होता है तो हम जल्दी बाजी कर रहे हैं। इस तरह से 7 मिनट में एक माला हो रही है तो ठीक है अर्थात ये सब हमें देखना होगा। ये विलिंग कंपोनेंट है। थिंकिंग, फीलिंग, विलिंग तो यह जो पहले वाला है उसमें थिंकिंग और दूसरे वाला है इन दोनों को सही ढंग से करने के लिए हम लोगों को भगवान की मालूमात या जानकारी होना आवश्यक है। उसमें से एक है रसिक शेखर श्रीकृष्ण परम करुणा, जिसके विषय में मैं पिछले सत्र में बता चुका हूं तो आज हम बता रहे हैं परम करुणा भगवान अति कृपालु और दयालु हैं उनकी कृपा का अनुभव हम कैसे कर सके। जैसे बच्चा माता की करुणा भावना जानता है इसलिए वह मां की ओर आकर्षित होता है नहीं तो हम आकर्षित नहीं होंगे, इस दुनिया में जब हम मुड़कर देखते हैं हर स्तर पर भगवान की करुणा का प्राकट्य हमको देखने को मिलता है। जैसे भगवान अपने धाम में लीला करते हैं लेकिन अपने धाम को छोड़कर जो जीव भौतिक दुनिया में भटकना चाहता है उसके साथ आने के लिए भगवान बद्ध जीव के लिए व्यवस्था करते हैं महा विष्णु के रूप में और महाविष्णु से ही अनंत कोटी ब्रम्हांड निकलता है। *यस्यैकनिश्वसितकालमथावलम्ब् जीवन्ति लोमविलजा जगदण्डनाथाः विष्णुर्महान् स इह यस्य कलाविशेषो गोविन्दमादिपुरुषंतम् अहं भजामि।।* इस तरह से उनके शरीर के रोम छिद्रों से अनेक ब्रह्मांड निकलते हैं उन ब्रमाण्डो को भगवान ने क्यों तैयार किया है? हम लोगों के लिए वह जानते थे कि यह जीव भगवत धाम में रहना नहीं चाहता बाहर घूमना चाहता है तो घूमने के लिए व्यवस्था की है। खुद ही आते हैं इतने बड़े विशाल शरीर को धारण करते हैं अपने आप को स्थापित करके विश्वरूप में लेटे हैं भगवान, यह कारण सागर में और उतना ही नहीं हर एक ब्रह्मांड के अंदर गर्भ दक्षायी विष्णु रहते हैं और 14 भुवन का निर्माण करके उसके अंदर ब्रह्मा जी को जिम्मेदारी सौंप आते हैं कि तुम 8400000 योनियों में जीवों की व्यवस्था करो, जैसे हम बोलते हैं रोटी कपड़ा और मकान। रोटी का आयोजन कैसे किया है उन्होंने जैसे सूर्य से बारिश होता है और उससे अनाज पैदा होते हैं तरकारी पैदा होती है तरह-तरह की मसाले पैदा होते हैं और फल फूल इत्यादि पैदा होते हैं इस प्रकार 8400000 योनियों के जीवों का अलग-अलग तरीके का भोजन है और उनके लिए व्यवस्था की गई है। कपड़ा मतलब 8400000 योनियों के जीवों का यह शरीर ही कपड़ा है। पंचमहाभूतो से बनाया हुआ यह कपड़ा वह भी दिया है उन्होंने, यदि किसी जीव को ध्रुव के निकट रहना हो बहुत ठंडी हो तब उनके लिए भगवान ने एक दूसरा कपड़ा दिया है फर या वुल से बना हुआ जिससे उनको ठंडक महसूस नहीं होगी ऐसे ही आप देखेंगे इस दुनिया में जैसे पानी में रहने वाले जल चर जीव होते हैं। उनके लिए इतना ठंडी जगह, पानी में तो उसके लिए भगवान ने क्या व्यवस्था की है, ठंड के मौसम में पाश्चात्य देश में हम देखते हैं पानी के ऊपर बर्फ बनता है क्योंकि बर्फ बनने से, बाहर की ठंडी का उनके ऊपर फर्क नहीं पड़ता। बर्फ बनते समय ही वह गर्मी छोड़ता है। ऐसे ही नदी का पानी जिस प्रकार हम लोग गीजर में पानी गर्म करते हैं वैसे ही हो जाता है और जो जलचर हैं उनको उस पानी में तब बहुत अच्छा लगता है इस तरह भगवान ने उनको रहने के लिए अच्छी व्यवस्था की है उनको गर्म पानी चाहिए ठंड के मौसम में तो गर्मी मिल जाती है, उनको बाहर की ठंडी का असर भी नहीं पड़ता। आप पूछेंगे कि अरे इस तरह से बंद कर दिया और ऑक्सीजन नहीं मिलेगा तो सब मर जाएंगे, कैसे जिएंगे ?लेकिन बर्फ बनते बनते वह गर्मी भी छोड़ता है और ऑक्सीजन भी छोड़ता है, अंदर हवा भी आ जाती है उनको पानी में, अतः जलचर को ऑक्सीजन और गर्मी दोनों ही है। इसको हम ऐसे समझ सकते हैं जैसे एक पिताजी बेटे को कमरे में बंद कर दें उसको सील कर दिया और अंदर ऑक्सीजन सिलेंडर रख दिया साथ ही साथ उनके लिए पंप भी रख दिया तो यह एक उदाहरण दिया मैंने इस प्रकार और भी अनेक उदाहरण हैं। जैसे भूमि के ऊपर ओजोन आवरण भी बोलते हैं तो एक आवरण भगवान ने बनाया है इस प्रकार ताकि मेरे जीवों को तकलीफ नहीं होना चाहिए। सूर्य से जो अल्ट्रावॉयलेट रेडिएशन निकलता है वह भूमि के ऊपर नहीं जाना चाहिए इस प्रकार से भगवान ने एक कवरिंग बनाया है किंतु मूर्ख जीव् ऑटोमोबिल चलाकर उससे जो कार्बन मोनोऑक्साइड पैदा होता है वह जाकर ओजोन लेयर को तोड़ता है। अंदर अल्ट्रावॉयलेट रेज आते हैं और जीवों को व्याधि होता है। अतः व्याधि को पैदा करने वाले मूर्ख जीव ही हैं। भगवान ने जो आयोजन किया है उसको छोड़ कर देखो अपना नुकसान करते हैं जीव् जैसे कि आप देख सकते हैं भगवान ने गोबर बनाया, गोबर एक खाद है सब धान को पैदा करते समय गांव में डालते हैं आपने देखा होगा लेकिन गोबर के बगैर आजकल इतना रसायन पैदा करता है इंसान, पेस्टिसाइड्स रसायन डालकर जो तरकारी खाते हैं लोग उससे इतनी व्याधि होती है शरीर में। इस प्रकार दुख देने वाले, व्याधि देने वाले भगवान नहीं हैं हम खुद ही कुल्हाड़ी लेकर अपने पांव में मार रहे हैं इस प्रकार हम देख सकते हैं कि भगवान के आयोजन में भगवान की हर सृष्टि में सुरक्षा की व्यवस्था है। जैसे ही हम आग को छूते हैं तो तुरंत ही हमें अनुभव होता है कि आग , ज्यादा टाइम तक उस को छू नहीं पाएंगे क्यों ऐसा किया है भगवान ने ? क्योंकि यदि ऐसा नहीं किया तो हम आग के अंदर हाथ डालेंगे ज्यादा समय तक, तो हमारा हाथ जल जाएगा। यदि हमें ताप का अनुभव नहीं होता इसीलिए ताप रखा है। इसी तरह जब पहाड़ के ऊपर खड़े होकर नीचे देखते हैं तब हम को डर होता है क्यों ? यदि हमें डर नहीं होगा तो हम ऐसे ही कूद जाएंगे और कूदकर मरेंगे इसीलिए हम देख सकते हैं कि भगवान की सृष्टि में सुरक्षा की कितनी व्यवस्था है पग पग पर। इतना ही नहीं भोजन की व्यवस्था बोला मैंने, लेकिन साथ ही साथ रहने की व्यवस्था 14 भुवन दिया और *ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः | जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसाः ||* (श्रीमद भगवद्गीता १४. १८) अनुवाद -सतोगुणी व्यक्ति क्रमशः उच्च लोकों को ऊपर जाते हैं, रजोगुणी इसी पृथ्वीलोक में रह जाते हैं और जो अत्यन्त गर्हित तमोगुण में स्थित हैं, वे नीचे नरक लोकों को जाते हैं । हर एक जीव के मनोभाव के अनुसार रहने की व्यवस्था है जैसे यदि आप एक बिल्डिंग में जाकर देखते हो कि आप ग्राउंड फ्लोर में एक बीयर बार है, कैबरे डांस चल रहा है कुछ लोग उस तरफ जाना चाहते हैं उनकी मति ऐसी ही है वह उनके लिए ही बनाया गया है। इसी तरह ऊपर वाले माले में देखना है उधर जिम है जिम में सब लोग एक्सरसाइज कर रहे हैं अपने शरीर की तंदुरुस्ती के लिए कोई रॉक म्यूजिक सुन रहा है। कोई अपना बड़प्पन बता रहा है इस तरह उसके भी ऊपर देखिए सतोगुणी लोग हैं। जहां वहां एक मंदिर है लोग जपा कर रहे हैं, हरि नाम चल रहा है, गीता भागवत चल रही है, कोई पढ़ाई चल रही है या कोई सत्र चल रहा है तो अलग अलग व्यक्ति अपनी मती के अनुसार या तो ग्राउंड फ्लोर में फर्स्ट फ्लोर में या सेकंड फ्लोर में जाएगा। इसलिए भगवान ने 14 भुवन बनाए हैं और रजोगुण लोगों को नीचे रखो और तमोगुण लोगों को नीचे के लोको में भेजो। इस तरह से रहने के लिए भी व्यवस्था की है। भगवान ने ब्रह्मा जी को बोला डाल दो अलग-अलग जीवों को अलग-अलग योनियों में, पहले उनको शरीर दो, शरीर मतलब कपड़े उनके लिए शरीर रूपी कपड़ा दे दो और भोजन की व्यवस्था की है और उनको अलग-अलग अकोमोडेशन दे दो। इस प्रकार से रोटी कपड़ा और मकान की व्यवस्था की है। उन्होंने इस दुनिया में इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि कोई भी अपने बेटे को इंजीनियरिंग या मेडिकल कुछ पढ़ाना हो तो पैसा भेजता है, लेकिन पिता बोलेगा देखो तुम को पैसा चाहिए तो मेरे मत के अनुसार चलना चाहिए ,अच्छी तरह पढ़ाई करो अच्छे मार्क्स लाओ इंजीनियर बन कर मेरे बिजनेस में ज्वाइन करो। अगर कोई बेटा पढता नहीं मनमानी करता है, बाइक में घूमता है, शराब पीता है, नशा करता है, एग्जाम में फेल होता है तो कोई पिता पैसा भेजेगा क्या? लेकिन आप देख रहे हैं कि भगवान नास्तिक जीवों को भी सब चीजें भेज रहे हैं रोटी कपड़ा और मकान इसलिए साधारण पिता से भी श्रेष्ठ है भगवान। क्योंकि साधारण पिता आपको तब सपोर्ट करेंगे जब आप उनकी इच्छा के अनुसार चलते हो लेकिन भगवान की इच्छा के विरुद्ध चलने वाले जीव को भी भगवान सब सुविधाएं प्रदान करते हैं यह उनकी अनुकंपा है। उनको मालूम है कि वह मनमानी कर रहा है, गलत करने लगा है फिर भी अंततोगत्वा वह मेरा बच्चा ही है और उसको देना ही पड़ेगा ऐसा सोचकर भगवान उसको देते हैं, व्यवस्था करते हैं। इतना ही नहीं यह जीव इतना मूर्ख होता है, उसे यह नहीं पता कि वह जब सूअर की योनि में या अन्य योनियों में भी होता है तब भी भगवान उसके साथ जाते हैं। भगवान कहते हैं कि मैं अंतर्यामी परमात्मा के रूप में तुम्हारे साथ आऊंगा इस प्रकार भगवान उनके साथ जाते हैं। *तानहं द्विषतः क्रूरान्संसारेषु नराधमान्। क्षिपाम्यजस्रमशुभानासुरीष्वेव योनिषु॥* ॥ (श्रीमद्भगवद्गीता 16.19) अनुवाद- उन द्वेष करने वाले पापाचारी और क्रूरकर्मी नराधमों को मैं संसार में बार-बार आसुरी योनियों में ही डालता हूँ *आसुरीं योनिमापन्ना मूढा जन्मनि जन्मनि। मामप्राप्यैव कौन्तेय ततो यान्त्यधमां गतिम्॥* (श्रीमद्भगवद्गीता 16.20) अनुवाद- हे अर्जुन! वे मूढ़ मुझको न प्राप्त होकर ही जन्म-जन्म में आसुरी योनि को प्राप्त होते हैं, फिर उससे भी अति नीच गति को ही प्राप्त होते हैं अर्थात् घोर नरकों में पड़ते हैं ॥ यह जीव भगवान का विरोध करते हुए भगवान को मारना चाहता है जैसे हिरण्यकशिपु , रावण बन कर और हम बोलेंगे कि नहीं !नहीं ! हम तो ऐसे नहीं हैं। किंतु हम भगवान की बात को ना मानकर और भगवान के दिए हुए शास्त्रों को ना पढ़कर जीव इंद्रियों के पीछे जब भागते हैं तो भगवान भी दुखी होते हैं अपने ह्रदय में। जो बताया गया है भगवत गीता में, भगवान देखते हैं कि मेरा बच्चा सीधा सरल मार्ग को पकड़कर मेरे पास आ सकता है चलो मैं भी उसके पास जाता हूं और धीरे-धीरे लेकर आता हूं । हम जब दक्षिण भारत के मंदिर में गए थे तो वहां एक गांव था कुलशेखर जी का । एक मंदिर में ग्राउंड फ्लोर, फर्स्ट फ्लोर, सेकंड फ्लोर भगवान विष्णु इधर खड़े थे पहले फ्लोर में वह बैठे थे और दूसरे फ्लोर में वह लेटे हुए थे । हमने पूछा पुजारी को, कि भगवान क्यों इस तरह से अलग-अलग पोज दे रहे हैं तो वह बताते हैं यदि आपको किसी ने कर्जा दिया है आपके घर के दरवाजे पर आकर खड़ा रहेगा, बोलेगा कि कर्जा वापस लौटा दो अगर आप नहीं दोगे तो वह बैठ जाएगा फिर भी यदि आप वापस नहीं देते तो वह क्या करेगा वह लेट जाएगा जब तक आप पैसा नहीं दोगे वह निकलने वाला नहीं है। इसी प्रकार भगवान भी जीव को बुलाने के लिए आए हैं। मेरे प्रिय बच्चों आ जाओ भगवत धाम, खड़े होकर परमात्मा के रूप में वह बुला रहे हैं जब हम नहीं सुनते तो वह बैठ जाते हैं, फिर भी हम नहीं आते तो लेट कर बुला रहे हैं, ठीक है मैं वेट करूंगा आ जाओ ऐसा बोल कर के भगवान अनंत में लेटे हैं। इसलिए कहते हैं कि भगवान इतनी अनुकंपा दिखा रहे हैं तो तुम भी अनुकंपा दिखाओ उनके ऊपर, वह आए हैं बुलाकर भगवत धाम वापस ले जाने के लिए तो चलो लौट जाओ ऐसा बताया है इस प्रकार भगवान ने अपनों को कितना फ्रीडम भी दिया है सुख सुविधा भी प्रदान की है। हम देख सकते हैं और ब्रह्मा जी को भगवान ने बोला कि 8४ लाख योनियों के जीवों को सुविधा प्रदान करो, हर एक योनि जो है वह एक-एक की इच्छा को पूर्ति करने के लिए है। किसी को उड़ने की इच्छा है, किसी को खाने की इच्छा है तो हाथी टन में खाता है वह, मैथुन जीवन में जैसे कबूतर होता है 1 घंटे में दर्जनों बार वह मैथुन करता है, इस प्रकार अलग-अलग योनियों में जो जीव जन्म लेता है उसके लिए अलग-अलग योनियों में इच्छाएं पूर्ति करने के लिए भगवान ने व्यवस्था की है। बताओ तुम्हारी क्या इच्छा है बेटा तुम टेंशन मत लो अलग-अलग योनियों में जाओ और अपनी इच्छा की पूर्ति कर लो जब तृप्त हो जाओगे तो वापस आ जाना मेरे पास। उन्होंने सुविधा दी है इस प्रकार से इतना ही नहीं आप देखेंगे कि ब्रह्मा जी सब जीवों को शरीर देने के उपरांत जीव शांति से नहीं जीते हैं एक दूसरे के साथ झगड़ा करते हैं। जानवर के शरीर में तो एक दूसरे को पकड़ कर खाते हैं आप जानते ही हो लेकिन मनुष्य में भी देखा जाता है मनुष्य मनुष्य में, परिवार परिवार में, देश देश में, लेकिन एक देश में भी आपस में भी झगड़ा है एक जाति के लोगों के अंदर भी झगड़ा है। जगह-जगह दुनिया में ऐसे लोगों को कैसे शांत किया जाए, भगवान ने तुरंत बोला कि वेदों को ले लो मैंने ब्रह्मा को दे दिया है। *ॐ नमो भगवते वासुदेवाय जन्माद्यस्य यतोऽन्वयादितरतश्चार्थेष्वभिज्ञ: स्वराट तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये मुह्यन्ति यत्सूरयः । तेजोवारिमृदां यथा विनिमयो यत्र त्रिसर्गोऽमृषा धाम्ना स्वेन सदा निरस्तकुहकं सत्यं परं धीमहि ॥* (श्रीमद भागवतम 1.1. 1 ) अनुवाद- हे प्रभु, हे वसुदेव-पुत्र श्रीकृष्ण, हे सर्वव्यापी भगवान्, मैं आपको सादर नमस्कार करता हूँ। मैं भगवान् श्रीकृष्ण का ध्यान करता हूँ, क्योंकि वे परम सत्य हैं और व्यक्त ब्रह्माण्डों की उत्पत्ति, पालन तथा संहार के समस्त कारणों के आदि कारण हैं। वे प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से सारे जगत से अवगत रहते हैं और वे परम स्वतंत्र हैं, क्योंकि उनसे परे अन्य कोई कारण है ही नहीं। उन्होंने ही सर्वप्रथम आदि जीव ब्रह्माजी के हृदय में वैदिक ज्ञान प्रदान किया। उन्हीं के कारण बड़े-बड़े मुनि तथा देवता उसी तरह मोह में पड़ जाते हैं, जिस प्रकार अग्नि में जल या जल में स्थल देखकर कोई माया के द्वारा मोहग्रस्त हो जाता है। उन्हीं के कारण ये सारे भौतिक ब्रह्माण्ड, जो प्रकृति के तीन गुणों की प्रतिक्रिया के कारण अस्थायी रूप से प्रकट होते हैं, वास्तविक लगते हैं जबकि ये अवास्तविक होते हैं। अत: मैं उन भगवान् श्रीकृष्ण का ध्यान करता हूँ, जो भौतिक जगत के भ्रामक रूपों से सर्वथा मुक्त अपने दिव्य धाम में निरन्तर वास करते हैं। मैं उनका ध्यान करता हूँ, क्योंकि वे ही परम सत्य हैं। भगवान ने तुरंत दे दिए और ब्रह्मा को बोले कि सब जीवों को प्रदान करें और उसको पढ़ कर तुरंत शांत हो जाएं , भगवत धाम लौटने के लिए मार्ग बना लेंगे इसलिए बताया गया है। वेद और पुराण दिए हैं जिससे हमारी चित्त शुद्धि हो सकती है और पढ़ने के बाद ही भगवान बताते हैं *मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि | अथ चेत्त्वमहङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि ||* (श्रीमद भगवद्गीता 18.58) अनुवाद - यदि तुम मुझसे भावनाभावित होगे, तो मेरी कृपा से तुम बद्ध जीवन के सारे अवरोधों को लाँघ जाओगे | लेकिन यदि तुम मिथ्या अहंकारवश ऐसी चेतना में कर्म नहीं करोगे और मेरी बात नहीं सुनोगे, तो तुम विनष्ट हो जाओगे | अर्जुन यदि तुम मेरी बात मान कर चलोगे, वेदों में जो मैंने दिया है तो तुम सब तरीके की तकलीफों से ऊपर उठ जाओगे, सब बाधाओं को मैं हटा दूंगा तुम्हारे मार्ग से, और मेरी कृपा से तुम मेरे धाम को आ जाओगे। लेकिन मेरी बात ना मानकर तुम मनमानी करोगे तो क्या होगा? तुम्हारा विनाश होगा। इसलिए मेरी बात मानो कि भगवान वेद पुराण देते हैं और फिर नदियों को देते हैं ताकि हम गंगा यमुना कावेरी में नहा कर हमारे पापों को मिटा सकते हैं। भगवान अपने भक्तों को भेजते हैं, दिव्य ग्रंथों को देते हैं, दिव्य नाम को दिया है, दिव्य प्रसाद को दिया है, दिव्य धामों को दिया है जैसे वृंदावन द्वारका मथुरा रामेश्वरम बद्रीनाथ, ऐसे इस प्रकार भगवान ने अलग-अलग व्यवस्था की है। भक्तों को देखना चाहिए किस प्रकार की कृपा भगवान हमको देते हैं शरीर के लिए भी और मन के लिए भी अनेक प्रकार की मनोरंजक चीजें हम को भगवान ने दी हैं, शब्द स्पर्श रूप रस गंध इस प्रकार हर एक की तुष्टि के लिए भगवान ने दिया है। बुद्धि की पुष्टि के लिए भगवान ने कितने ही सब्जेक्ट दिए हैं, यदि भगवान के ऊपर जीव को इंटरेस्ट नहीं है तो भगवान ने हमें केमिस्ट्री बायोलॉजी मैथमेटिक्स दिए। कुछ लोगों को भगवान को भूल कर अच्छा लग रहा है इसलिए भगवान ने आयोजन किया है कि ठीक है तुमको जितना ही समय उछलना कूदना है या मनोरंजन करना है दुनिया में खेलो कूदो जब तुम तैयार हो जाओगे तो मैं तुमको गीता और भागवत देकर वापस लौटा लाऊंगा। इस प्रकार से उन्होंने व्यवस्था की है सब् अलग-अलग योनियों में खाना पीना सोना मैथुन करना यह सब करते जाते हैं और उसके बाद प अनेक जन्मों को काटने के बाद जब वे थक जाते हैं तब वे भगवान की ओर मुड़ते हैं। जैसा कि बताया गया है दो पक्षी यहां पर बैठे हैं एक पेड़ पर एक आत्मा और दूसरा परमात्मा । जब वह भगवान की ओर मुड़ता है तब भगवान उनको वापस लौटाने के लिए बुलाते हैं। ऐसे भगवान की अनुकंपा कहीं नहीं है. देखिए भगवान असुरों के लिए भी अपने धाम के दरवाजे बंद नहीं करते हैं। असुर भगवान को ही काटना चाहते हैं, मारना चाहते हैं, भगवान का विरोध करते हैं, वे उनको भी बोलते हैं ठीक है नो प्रॉब्लम तुम सुधर कर आओ दरवाजा तुम्हारे लिए खुला है। उनके लिए भी वह खोल कर रखते हैं और ऐसे असुरो को भी चांस देते हैं। सत्य त्रेता द्वापर और कली इन चार युगों में यदि किसी ने सुधार नहीं किया तो कल्कि अवतार के रूप में आकर उनको वध करके उनका उद्धार करते हैं ताकि अगले सतयुग में जब आएगा, उसको आगे बढ़ने के लिए मौका मिलेगा। इस तरह से आप देखेंगे चार चार साल तक फेल होकर बैकबेंचर्स होकर जीव जीते हैं दुनिया में फिर भी भगवान उनको सुविधाएं देते हैं और एक बार सत्य त्रेता द्वापर और कली ऐसे गोल्डन एज सिल्वर एज ब्रॉन्ज एज आयरन एज तो हर एक व्यक्ति को भगवान की अनुकंपा के बारे में देखना चाहिए और भागवत में एक श्लोक आता है। *अहो बकी यं स्तन-काल-कूटं जिघांसयापाययदप्यसाध्वी। लेभे गतिं धात्र्युचितां ततोऽन्यं कं वा दयालु शरणं व्रजेम॥* अनुवाद- “यह कैसा अद्भुत है कि बकासुर की बहन पूतना अपने स्तनों में घातक विष का लेप करके और स्तनपान कराकर कृष्ण को मारना चाहती थी। फिर भी भगवान् कृष्ण ने उसे अपनी माता के रूप में स्वीकार किया और इस तरह उसने कृष्ण की माता के योग्य गति प्राप्त की। तो मैं उन कृष्ण के अतिरिक्त और किसकी शरण ग्रहण करूँ, जो सर्वाधिक दयालु हैं?" मैं किस व्यक्ति की शरण ले सकता हूं कृष्ण को छोड़कर क्योंकि कृष्ण ने ऐसे एक क्रूर बालघात पूतना नाम की राक्षसी जो अपने स्तन में विष का लेपन लगा कर आई थी कृष्ण को मारने की योजना बनाकर, कृष्ण के पास घृणा के साथ आई थी तो भी भगवान ने एक धात्री की तरह उसका उद्धार किया और उसका सम्मान किया। ऐसे कृष्ण से ज्यादा कृपालु और कौन हो सकता है। यह कोई भी भेदभाव नहीं करते हैं कि कौन असुर है भगवान असुरों को भी अपना बना लेते हैं। जब वह लोग जैसे प्रल्हाद को भी अपने गोद में बिठा लिया भगवान ने। भगवान बली महाराज के द्वारपाल बने, लेकिन अपना ही पुत्र जो भौमासुर था भगवान ने देखा कि वो वैदिक संस्कृति के विरुद्ध है सभी जीवों का उद्धार करने के विरुद्ध है। इसीलिए भगवान ने उसको अपना बेटा होने के बावजूद भी मिटा दिया अर्थात भगवान यह नहीं देखते हैं कि कोई असुर है या कोई देवता है जो वैदिक संस्कृति को अपनाकर भगवत धाम लौटने की प्रक्रिया में लगता है तो भगवान यह परवाह नहीं करते कि उसने किस जाति और कुल में जन्म लिया है। इस प्रकार भगवान अलग-अलग जीव् अन्य योनियों में भी मौका देते हैं चाहे वे वानर भी क्यों ना हो हनुमान जैसे, चाहे गिद्ध भी क्यों ना हो जैसे जटायु और एक नीच कुल में जैसे निषाद ही क्यों ना हो, ऐसे लोगों को भी भगवान ने अपना भक्त बना लिया है। ऐसे भगवान की सहनशीलता जैसे वृंदावन में भी भगवान वानरों के साथ मोरों के साथ कोयल और अन्य पंछियों के साथ गाय बछड़ों के साथ, हिरणो के साथ जुड़ते हैं। इस तरह भगवान सबको अपनी कृपा प्रदान करते हैं। शिशुपाल को सौ अपराध करने के बाद ही उनका गर्दन काटा, लोग सोचेंगे कि शायद भगवान सहन नहीं कर पाए इतने इतना अपराध कर दिया है लेकिन शास्त्र बताते हैं कि उन्होंने क्यों उसकी गर्दन को काटा। क्योंकि यदि उसको छोड़ देते तो वह और अपराध करते करते घोर नरक में जाता इसलिए उसको बचाने के कारण भगवान ने उसका उद्धार कर दिया। आप देख सकते हैं इस प्रकार भगवान ने असुरों के ऊपर भी अपनी कृपा दिखाई। इस प्रकार से भगवान की कृपा के विषय में स्मरण करना बहुत आवश्यक है। जैसे प्रभु रामचंद्र बोलते हैं रावण को, वह रावण को मारने ही वाले थे और उन्होंने बोला एक गीत तमिल भाषा में है। हे रावण तुम आज चले जाओ कल वापस लौट आना कहते हैं क्यों? तो एक चांस देता हूं तुमको, अगर आज जाकर तुम सुधर जाओगे और कल आकर मुझे सीता को वापस दे दोगे तो मैं तुम्हें मारूंगा नहीं तुम्हें जिंदा छोडूंगा तुम लंका नरेश रहो ऐसा बताते हैं। देखिए कितनी कृपा है उनके हृदय में, वह लास्ट मिनट में भी सोचते हैं कि यदि वो सुधर जाए तो मुझको उसको दंड नहीं देना पड़ेगा। यदि हम भौतिक जीवन में एक इंजीनियरिंग कॉलेज में एक पेपर में भी फेल हो गए आपको डिग्री नहीं मिलेगी 50 का पेपर है 49 पास हो गया , एक पेपर इंजीनियरिंग ड्राइंग और मैथमेटिक्स में फेल हो गए तो क्या डिग्री मिलेगा ? नहीं मिलेगा। इसी प्रकार जटायु फेल हो गए रावण के साथ लड़ाई करते हुए, रावण ने एक शुभ मुहूर्त में सीता को उठाकर ले जाने के लिए प्रयास किया था, लेकिन उस शुभ मुहूर्त को मैंने टाल दिया ताकि वह सीता को उस समय में लेकर नहीं जा पाएगा मैंने जान दे दी। इसके लिए मैं खुश हूं क्योंकि रावण विजय ही नहीं होगा, सीता को ले जाने में । भगवान ने जटायु की गति देखकर आंसू बहाया और अपनी गोद में लिया और जटायु को बोले कि जटायु मेरी सीता को बचाने के लिए तुमने प्राण दे दिये, अभी मैं तुमको बैकुंठ में भेज दूंगा। रावण के युद्ध में फेल होने के बाद भी भगवान ने उसको बैकुंठ प्रदान किया उसके ऊपर कृपा की इसीलिए कृपा निधि ऐसा कहकर सीता माता उनको बुलाती हैं। अनेक प्रकार से चीजें हम बोल सकते हैं लेकिन समय की पाबंदी है। आप लोग तो भक्त हो आप लोग अनेक उदाहरणों को इन चीजों को जोड़ कर देख सकते हो। भगवान की कृपा के बारे में, ध्यान करने से हमारा नाम जप अच्छे से निकलता है और हम अच्छे से नाम का उच्चारण कर पाएंगे। श्रील प्रभुपाद की जय !कृष्ण भगवान की जय ! हरे कृष्ण !

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